तुम नंगे थे बस धूर्तता के लबादे में सजे धजे थे , तुम हत्यारे थे बस गीता से गंगा तक किये उपायों से बचे रहे, तुम अब लुटेरे हो इसलिए अब तुम खुलकर मौत और दंगों का , धर्म और दबंगो का, मंडल का कमंडल भूमण्डल को निगलने खातिर खुला खेल खेलने आये हो ! तुम्हारी हरकतें और नंगी, भूखी, लालची हवस ने उस कुर्सी को भी नंगा कर दिया है , जो आज तक लोकतंत्र का नुमाइंदा होने का नाटक भद्दे बेहूदे ढंग से ही सही पर सन सैंतालिस के बाद से लगातार करती आ रही थी .............................!