मातला नदी पार करते हुए
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सागर के मुहाने पर नदी मचलती है
शायद मिलन की आतुरता है
मैं नाव पर बैठे हुए देखता हूँ लहरों को
नौका नाचती है जैसे नशे में हों
नदी के ठीक बीच पहुँच कर देखता हूँ दोनों किनारों को
रोमांचित हो उठता हूँ
अभी और कोई शब्द नहीं है मेरे पास
किन्तु लगता है कुछ ऐसा , जैसे मैं एक लम्बे अरसे से इसी क्षण की प्रतीक्षा में था
दोनों किनारों के घाटों पर प्रतीक्षा में हैं यात्री
उन्हें जाना है आर -पार
और मैं चाह रहा था रुकी रहे यहीं पर नाव
ताकि मैं देख सकूँ आकाश को लहरो पर नाचते हुए
किन्तु , किनारों पर यात्री प्रतीक्षा में थे
माझी ने देखा गौर से मेरे चेहरे को
और मुस्कुरा दिया
और फिर मैंने भी।
-नित्यानंद गायेन