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सुंदरवन की इस मेधावी बेटी के लिए भी दो बूंद आंसू बहाइये मेरे देश के लोगों को! पलाश विश्वास

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सुंदरवन की इस मेधावी बेटी के लिए भी दो बूंद आंसू बहाइये मेरे देश के लोगों को!

पलाश विश्वास

सुंदरवन की इस मेधावी बेटी के लिए भी दो बूंद आंसू बहाइये मेरे देश के लोगों को! बंगाल की खाड़ी में तबाही के कगार पर खत्म हो रहे सुंदरवन में आदमखोर बाघ सिर्फ मैनग्रोव जंगल में नहीं होते,वे आबादी में भी भटकते रहते हैं और मुक्तबाजार की मैनफोर्स पीढ़ी भी बाघ बनकर कहर बरपा देती है अमूमन।


बाघ के खाये मर्दों की विधवाओं की तस्वीरें हम कभी कभार मीडिया में दर्ज होते देखते हैं।सुंदरवन से आनेवाली ट्रेनों  में भर भरकर महानगर और उपनगरो और उपनगरों में भद्रलोक घरों में दिहाड़ी करने वाली कामवालियों की किरचों में बिखरी जिंदगी से आप चाहे तो जिस किसी दिन रुबरु हो सकते हैं और हावड़ा सियालह से मांस के दरिया में सप्लाई कर दी जाने वाली लड़कियां भी रोज दिख जायेंगी।


फिरभी जिंदगी जीने और जिंदगी बदलने के ख्वाब लेकर रोज रोज आदमखोर बाघों का सामना करने वाली बहादुर लड़कियों को हम हर्गिज नहीं जानते।


मध्यभारत हो या पूर्वोत्तर या देशभर की दलित आदिवासी आबादी,शहरी गंदी बस्तियों में  ये लड़कियां खामोशी से वक्त और बाजार के खिलाफ लड़ रही हैं और आदमखोर बाघों की नस्ल सरेआम सरेबाजार उनका आखेट कर रही है।


कानून का राज और लोकतंत्र लेकिन खामोश है।स्त्री आखेट की खुल्ली छूट देदी है सुंगधित मैनफोर्स के बाजार में,जहां हफ्ते में तीन दिन खटियातोड़ने का राकेट कैप्सूल हर समाचार से पहले विज्ञापित होकर पुरुष वर्चस्व का जयघोष करते हैं और हमारे भीतर ही बलात्कारी शीत्कार हमें  उस मर्द आदमखोर जमात में शामिल करती रहती है।


महानगरों में होने वाली इक्की दुक्की लड़कियों की बलात्कारशुदा मौत पर मोमबत्ती जुलूस निकालकर ही ठहर जाता है लोकतंत्र का दायरा और उस दायरे से बाहर सुपर्णा नस्कर जैसी लड़कियों के लिए न्याय नहीं मिलता जैसे न्याय नहीं मिलता लाखों की तादादा में रोज बलात्कार की शिकार होती आदिवासी और दलिलत स्तिरयों से लेकर कुलीन सभ्य और सवर्ण स्त्रियांं।


जैसे न्याय नहीं मिला अमिताभी की फिल्म  सौदागर के कामदुनी के गांव की गरीब लड़की को,वह बी पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती है और कन्याश्री के विज्ञापन  से चमचमाती मां माटी मानुष की सरकार ने उस बलात्कार के विरोध में उठने वाली आवाज को माओवादी करार दिया और राष्ट्रपति भवन में भी कामदुनी को न्याय नहीं मिला।आवाजों ने थोक भाव से दम तोड़ दिया है गूंगों अंधों के देश में।


नाबालिगों को बालिगों के बराबर सजा देने का कानून या बलात्कार के एवज में फांसी देने से ही मुक्त बाजार में उपभोक्ता समामग्री बना दी गयी हमारी स्त्रियां इस पुरुष वर्चस्व के पाखंडी देश में सुरक्षित हो नहीं जातीं,जबकि घर परिवार गांव और समाज में बलात्कार की संसकृति मुकम्मल है और चौबीसों घंटे सातों दिन बारह महीने बलात्कार की योग्यता को पुरुषत्व का प्रतिमान मान लिया जाये,जबकि ज्यादा से ज्यादा स्त्रियों को बिस्तर या काउच में खींचकर बलाता्कार का शिकार बनाने वाले लोग हमारे सबसे बेशकीमती आइकन हैं


सुंदरवन के कैनिंग इलाके की दो नंबर ब्लाक की जीवनतला गांव की लड़की सुपर्णानस्कर का अपराध यह था कि वह बेहद सुंदर थी और उसका परिवार दिहाड़ी पर गुजारा करता है,जिसका कोई माईबाप नहीं है।


सुपर्णा का अपराध यह था कि वह पढ़ लिख ही नहीं रही थी ,मेधावी भी थीं और आदमखोर बाघों के तिलिस्म में घुसने से साफ इंकार कर रही थी।


माध्यमिक परीक्षा के बाद वह पंचायत के नलके से पानी लेने गयी तो आदमखोर बाघों के गिरोह से समाना हो गया सुपर्णा का और वह उनके कुप्रस्ताव को मानने के लिए राजी नहीं हुई।


जीरो डाउन पर मोटरसाइकिलें भी इफरात हैं गांव और कस्बों में इन दिनों।


इन मोटरसाइकिलों पर सवार अश्वमेधी सांढ़ और घोड़े कहीं भी कभी भी देखे जा सकते हैं और वे हमारे मताधिकार के ठेकेदार भी है।


आदमखोर बनकर भी वे मोटरसाइकिलों पर सवार होते हैं।


उन्हीं आदमखोर बाघ ने सुपर्णा को मोटरसाइकिल से कुचल दिया।


अब माध्यमिक का रिजल्ट आ गया।हमारी बेटियों ने इस बार भी हमेशा की तरह बेहतरीन रिजल्ट निकाला है।स्कूल से लेकर घर तक वे मासूम फूल खिलखिला रहे हैं।


उन फूलों में एक फूल सुंदरवन का नहीं है और न जाने कितने ऐसे फूल कहां कहां मुरझा गये होंगे। क्योंकि आदमखोर बाघों का यह सुसमय,अच्छे दिन हैं।


बहरहाल रिजल्ट से पता चला कि सुपर्णा नस्कर ने न सिर्फ अपने स्कूल में टाप किया,न  सिर्फ  दिहाड़ी परिवार की बेटी ने प्रथम श्रेणी के नंबर हासिल किये,तीन तीन विषयों में उसे विशेष योग्यता मिली है।लेकिन आगे कहीं उसका दाखिला होना असंभव है क्योंकि अब वह सिर्फ एक तस्वीर है।


न जाने कोई मोमबत्ती जुलूस निकलेगा या नहीं निकलेगा उस तस्वीर के लिए।



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