वो लौट कर घर ना आए
वे घर से निकले थे मुस्कुराते हुए और शाम होते होते महज कुछ चीथडे घर आए, कोई निजी दुश्मनी नहीं थी, था तो बस मुल्क की नीतियों पर विवाद, यह तथ्य सामने आ चुका है कि तमिल समया को ले कर वेलुपल्ली प्रभाकरण जब दिल्ली आया तो राजीव गांधी ने उससे सशस्त्र संघर्ष, तमिल शरणार्थियों के भारत में प्रवेश जैेस मसले पर करार चाहा, जिसे उसने इंकार कर दिया था, राजीव गांधी को यह बात पसंद आई नहीं और उन्होंने उसे दिल्ली के पांच सितारा होटल में कमरे में बंदी बना लिया था, उसे तभी छोडा गया जब वह भारत सरकार की शर्ते मााने को राजी हुआ, हालांकि वह एक धोखा था बस कैद से निकलने का, भारत में भी कई शक्तियां काम कर रही थी, किसी ''छद्रम'' को कुर्सी तक लाने की उसमें कुछ संत थे, कुछ गुरू घंटाल थे और फिर 21 मई को दुनिया के सबसे दर्दनाक हमले में एक ऐसा व्यक्ति मारा गया जिसके द्वार दी गई देश की दशिा से आज भारत की ख्याति दुनियाभर में हैं, भले ही किसी को भारतीय होने पर शर्म आती हो, लेकिन कंप्यूटर, जल मशिन जैसी कई ऐसी योजनाएं हैं जिसने आज भारत का झंडा दुनिया में गाडा है
सियासती जुमलों से अलग , मुझे राजीव गांधी का कार्यकाल देश के विकास का बडा मोड महसूस हुआ, एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसके पास सपना था, दूरगामी योजना थीं, जुमले नहीं थे, अब आप चर्चा कर सकते हैं उनकी मंडली की, गलत फैसलों की , लेकिन इस बात को नहीं भूलना कि जो मुल्क अपने शहीदों को सम्मान नहीं देता, उसके भविष्य में कई दिक्कतें आती हैं
देखें राजीव गांधी के कुछ फोटो व शाम को उनके घर क्या पहुंचा और आज वहां क्या है, क्या किसी नारेबाज ने अपने घर ऐसी शहादत होते देखा है ?
उन दिनों राजीव जी कांग्रेस के महासचिव थे, मैं ''जागरण, झांसी'' के लिए रिपोर्टिंग करता था, उनके बुंदेलखंड दौरे पर तीन दिन साथ रहा था, जागरण में पहली बार किसी का पहले पेज पर आठ कालम में बैनर मय नाम के छपा था, उस दौरान मैने राजीव जी को काम करते, लोगों से जानकारी लेते, बात करते देखा था, बेहद निश्चल और कुछ नया करने के लिए लालायित रहते थे, जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति हर मसले पर पारंगत हो, लेकिन उसमें सीखने की उत्कंठा होना चाहिए, वह राजीवजी में थी