कोई व्यक्ति कब, क्या और क्यों करता है, एक पत्रकार के लिए यह बहुत मायने रखता है। पत्रकारिता के धंधे में सबसे पुराना परखा नुस्खा किसी घटना की टाइमिंग और वैधता का है। इसीलिए सलमान खान के नाम रवीश कुमार के लिखे इस खुले पत्र को पढ़कर मैं बिलकुल हैरत में नहीं हूं, बल्कि रवीश के बारे में मेरी बनी-बनायी धारणा और पुष्ट हुई है। इस देश में बहुत से लोगों को भले और सामाजिक कामों के चलते गंभीर दंड दिए गए हैं। साई बाबा जेल में मर रहे हैं। वे शिक्षक हैं और आदिवासियों के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं। बिनायक सेन जेल से निकल चुके हैं। सीमा आज़ाद जेल में रह चुकी हैं। तिहाड़ जेल में 120बी के तहत हज़ारों कैदी विचाराधीन सड़ रहे हैं। अरुण फरेरा से लेकर जीतन मरांडी तक तमाम मामले हैं जिनमें उन्होंने कोई अपराध नहीं किया, लेकिन जेल की सज़ा काट आए। इनके लिए तो आज तक कोई खुला पत्र क्या, रवीश कुमार ने इनके समर्थन में भी कभी पत्र नहीं लिखा। लिखा भी तो एक हत्यारे की आत्मा को जगाने के लिए? क्या रवीश बुद्ध बनने का मुग़ालता पाले बैठे हैं?
सलमान खान तो बाकायदे एक अपराधी साबित हो चुके हैं, फिर भी रवीश कुमार उनकी अंतरात्मा की आवाज़ को जगाने के लिए उनसे गुहार कर रहे हैं। ऐसा क्या याराना है भाई? चलिए, अगर किसी की आत्मा को जगाना ही है, तो एक पत्र नरेंद्र मोदी के नाम ज़रूर बनता था। वो भी रवीश ने कभी नहीं लिखा। लालू यादव चारा घोटाले में जब जेल गए, तो रवीश कुमार को उन्हें कम से कम एक पत्र लिखना चाहिए था। लोकप्रियता और सामाजिक न्याय के तकाज़े से लालू के मुकाबले सलमान कुछ नहीं हैं। क्षेत्रीयता के नाते ही सही, एक पत्र बनता था। रवीश ने तब भी नहीं लिखा। इतने बेगुनाह मुसलमान लड़के पिछले दस साल में पकड़े गए, शाहिद आज़मी से लेकर मौलाना खालिद तक हत्या के सिलसिले मौजूद हैं, रवीश ने इनके बारे में कोई खुला पत्र नहीं लिखा। आखिर सलमान ही क्यों?
कहीं यह शो-बिज़नेस की मजबूरियों का तकाज़ा तो नहीं? क्या इसे वर्ग-एकता माना जाए? लघु प्रेम कथा की टुच्ची संवेदना क्या दबंगों के लिए पोसी गई थी? यह भी तो हो सकता था कि सड़क पर जो आदमी सलमान के पहिये के नीचे दबकर मर गया, रवीश उसके नाम एक पत्र लिखते। यह कहीं ज्यादा इनोवेटिव और पत्रकारीय होता। कहीं इस उम्मीद में तो यह पत्र नहीं लिखा गया कि सलमान जब इस केस से बाहर आवें तो अपने स्टारडम की थोड़ी सी धूल अपने से सहानुभूति रखने वालों पर भी छींट दें? ... कि जब कभी रवीश उनसे मिलें, वे बोल सकें कि भाई, मैंने उस समय आपके बचाव में एक चिट्ठी लिखी थी, याद है? ...कि बॉलीवुड के इतिहास की एक बड़ी घटना के बारे में कभी कहीं कोई किताब लिखी जाए, तो अपना भी जि़क्र आदि-इत्यादि में हो सके?