दर्दनाक : सत्याग्रहियों ने सरकार से नाउम्मीद होकर मुत्यु गान किया शुरू
खंडवा।
घोंगलगांव में ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध कर रहे जल सत्याग्रहियों ने सरकार से नाउम्मीद होकर मुत्यु गान शुरू कर दिए हैं। यह लोग 'इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले, गोविंद नाम ले के प्राण तन से निकले'जैसे गीत गा रहे हैं। इन लोगों की आखिरी इच्छा यही है कि संघर्ष करते हुए मर भी जाएं तो अंत समय में उनके मुंह से गोंविद का नाम जरूर निकले।
गौरतलब है कि नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से कई गांव के परिवारों की रोजी-रोटी मुश्किल में पड़ गई है। इससे प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा नहीं मिला और जमीन के बदले जमीन की चाहत भी पूरी नहीं हुई। यही कारण है कि यहां 80 से ज्यादा लोग जल सत्याग्रह कर रहे हैं। पिछले 20 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे इन लोगों की हालत अब बिगड़ रही है। इनके पैरों की चमड़ी गल गई है और उसमें से खून का रिसाव हो रहा है। ऊपर से सर्दी-जुकाम और बुखार का खतरा भी बना हुआ है।
विरोध में एक तरफ जहां 80 लोग पानी में खड़े हैं तो खुले खेतों में एकत्र महिलाएं सरकार की आलोचना कर रही हैं और सत्याग्रह करने वालों का हौसला बढ़ा रही हैं। ढोल-मंजीरों और तालियों में गूंजते इनके गीत यह संदेश दे रहे हैं अपनी जमीन बचाने के लिए यह लोग लंबे संघर्ष के लिए तैयार हैं। यहां 60 साल की लीला बाई कहती हैं, 'सरकार किसान के कल्याण और अच्छे दिन की बातें करती रही है, मगर उन्होंने किसका कल्याण किया है और किसके अच्छे दिन आए हैं, यह उन्हें पता नहीं, मगर उनके बुरे दिन जरूर आ गए हैं। अब तो हम मान चुके हैं कि सरकार हमें जीते जी मारने पर तुल गई है। यही कारण है कि हमने भी ठान लिया है कि मर जाएंगे, मगर जमीन नहीं छोड़ेंगे।'
वहीं 65 साल की गिरिजा बाई कहती हैं कि उनके बच्चे हैं, नाती भी साथ रहता है, सभी का जीवन सिर्फ खेती से चलता है। अब खेती भी पानी में डूब चली है, यानी मौत करीब आ गई है। उनके लिए सिर्फ दो ही रास्ते बचे हैं- या तो संघर्ष करते हुए जान दे दें या दाने-दाने के लिए मोहताज होकर मरें। उन्होंने जमीन पाने की आस में पूर्व में मिला मुआवजा सूदखोर से कर्ज लेकर लौटा दिया था, न तो बढ़ा हुआ मुआवजा मिला और न ही खेती की जमीन। जो जमीन थी, वह भी अब डूब चली है। सरकार उनके लिए काल बन गई है। गिरिजा जी की तरह गीत गा रहीं सक्कू बाई संभावित खतरे को याद करते हुए गुस्से में आ जाती हैं। उनका कहना है, 'रोजी-रोटी छिन रही है, इसे बचाने के लिए जो भी करना होगा करेंगे। सरकार बातें बहुत करती हैं, मगर हकीकत में होता कुछ नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों के साथ अन्याय कर रहे हैं, इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी।'
बुजुर्ग और अधेड़ महिलाओं के साथ नौजवान लड़कियां भी सत्याग्रहियों का उत्साह बढ़ाने में लगी हैं। वकालत कर रहीं दीपिका गोस्वामी खरगोन से आंदोलन में अपनी नानी का साथ देने आई हैं। वह कहती हैं कि यह सरकार कैसी है जो आमजन से उसका मौलिक अधिकार छीन रही है। घोगलगांव में जल सत्याग्रह स्थल का नजारा दीगर आंदोलनों से जुदा है, यहां एक तरफ लोग पानी में हैं तो दूसरी तरफ पानी से बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा है। बीते 20 दिनों से सुबह से लेकर शाम तक यही नजारा देखा जा रहा है, मगर उत्साह किसी का कम नहीं है, वे दावा यही कर रहे हैं कि यह लड़ाई जीतने के लिए लड़ी जा रही है, हार भी गए तो याद किए जाएंगे।
खबर एनबीटी
खंडवा।
घोंगलगांव में ओंकारेश्वर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध कर रहे जल सत्याग्रहियों ने सरकार से नाउम्मीद होकर मुत्यु गान शुरू कर दिए हैं। यह लोग 'इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले, गोविंद नाम ले के प्राण तन से निकले'जैसे गीत गा रहे हैं। इन लोगों की आखिरी इच्छा यही है कि संघर्ष करते हुए मर भी जाएं तो अंत समय में उनके मुंह से गोंविद का नाम जरूर निकले।
गौरतलब है कि नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से कई गांव के परिवारों की रोजी-रोटी मुश्किल में पड़ गई है। इससे प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा नहीं मिला और जमीन के बदले जमीन की चाहत भी पूरी नहीं हुई। यही कारण है कि यहां 80 से ज्यादा लोग जल सत्याग्रह कर रहे हैं। पिछले 20 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे इन लोगों की हालत अब बिगड़ रही है। इनके पैरों की चमड़ी गल गई है और उसमें से खून का रिसाव हो रहा है। ऊपर से सर्दी-जुकाम और बुखार का खतरा भी बना हुआ है।
विरोध में एक तरफ जहां 80 लोग पानी में खड़े हैं तो खुले खेतों में एकत्र महिलाएं सरकार की आलोचना कर रही हैं और सत्याग्रह करने वालों का हौसला बढ़ा रही हैं। ढोल-मंजीरों और तालियों में गूंजते इनके गीत यह संदेश दे रहे हैं अपनी जमीन बचाने के लिए यह लोग लंबे संघर्ष के लिए तैयार हैं। यहां 60 साल की लीला बाई कहती हैं, 'सरकार किसान के कल्याण और अच्छे दिन की बातें करती रही है, मगर उन्होंने किसका कल्याण किया है और किसके अच्छे दिन आए हैं, यह उन्हें पता नहीं, मगर उनके बुरे दिन जरूर आ गए हैं। अब तो हम मान चुके हैं कि सरकार हमें जीते जी मारने पर तुल गई है। यही कारण है कि हमने भी ठान लिया है कि मर जाएंगे, मगर जमीन नहीं छोड़ेंगे।'
वहीं 65 साल की गिरिजा बाई कहती हैं कि उनके बच्चे हैं, नाती भी साथ रहता है, सभी का जीवन सिर्फ खेती से चलता है। अब खेती भी पानी में डूब चली है, यानी मौत करीब आ गई है। उनके लिए सिर्फ दो ही रास्ते बचे हैं- या तो संघर्ष करते हुए जान दे दें या दाने-दाने के लिए मोहताज होकर मरें। उन्होंने जमीन पाने की आस में पूर्व में मिला मुआवजा सूदखोर से कर्ज लेकर लौटा दिया था, न तो बढ़ा हुआ मुआवजा मिला और न ही खेती की जमीन। जो जमीन थी, वह भी अब डूब चली है। सरकार उनके लिए काल बन गई है। गिरिजा जी की तरह गीत गा रहीं सक्कू बाई संभावित खतरे को याद करते हुए गुस्से में आ जाती हैं। उनका कहना है, 'रोजी-रोटी छिन रही है, इसे बचाने के लिए जो भी करना होगा करेंगे। सरकार बातें बहुत करती हैं, मगर हकीकत में होता कुछ नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसानों के साथ अन्याय कर रहे हैं, इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी।'
बुजुर्ग और अधेड़ महिलाओं के साथ नौजवान लड़कियां भी सत्याग्रहियों का उत्साह बढ़ाने में लगी हैं। वकालत कर रहीं दीपिका गोस्वामी खरगोन से आंदोलन में अपनी नानी का साथ देने आई हैं। वह कहती हैं कि यह सरकार कैसी है जो आमजन से उसका मौलिक अधिकार छीन रही है। घोगलगांव में जल सत्याग्रह स्थल का नजारा दीगर आंदोलनों से जुदा है, यहां एक तरफ लोग पानी में हैं तो दूसरी तरफ पानी से बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा है। बीते 20 दिनों से सुबह से लेकर शाम तक यही नजारा देखा जा रहा है, मगर उत्साह किसी का कम नहीं है, वे दावा यही कर रहे हैं कि यह लड़ाई जीतने के लिए लड़ी जा रही है, हार भी गए तो याद किए जाएंगे।
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