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मोदी सरकार, ये समय उद्दार का है, जासूसी का नहीं- नेपाली मीडिया नेपाली मीडिया के निशाने पर भारत और नेपाल सरकार

Next: Chairman from the private sector is the latest trend to revamp State run units! Besides bringing the second tranche of the existing CPSE ETF to raise Rs 5,000 crore, the government may create a second ETF consisting of only PSU shares. The Bagula community has taken over Indian Parliamentary system. No public hearing at all.No information about legislation.No publication of draft.It is the Bagula Private Expert panel which decides which law has to be amended next,what should be the new tax reform and what would be the policy of government of India.Parliament is made for readymade consensus to sustain the racial governance of fascism,the Manusmriti rule and our politics of Millionair Billionair ruling class irespective of ideology ,identity and color is all about the continuity of ethnic cleansing.
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मोदी सरकार, ये समय उद्दार का है, जासूसी का नहीं- नेपाली मीडिया

नेपाली मीडिया के निशाने पर भारत और नेपाल सरकार

नई दिल्ली। भूकंप की तबाही से उजड़े नेपाल को संवारने में जुटी वहां की सत्ताधारी कुलीन वर्ग की जो रीढ़विहीन औकात है, उस पर हिन्दुस्तानी सुगम संगीत की एक महानतम शख्सियत में से एक बेग़म अख्तर की गाई एक ग़ज़ल बिलकुल सटीक बैठती है।

कोई उम्मीद गर नजर नहीं आती/ कोई सूरत नजर नहीं आती//

एक कठपुतली सरकार से कोई आशा करे भी तो कैसे? एक कठपुतली सरकार जिसके चेले चपाटी बारी बारी से कौन बनेगा प्रधानमंत्री के खेल में मस्त रहने की परिपाटी में रमे रहना ही अपना धन्यभाग समझते हों। एक देश जिसके माथे पर सदियों से दो बिशाल मुल्कों भारत व चीन के बीच फंसे सूखे कद्दू की तरह अटके रहने की अभिशप्तता हो, कि किसी एक पहाड़ ने थोड़ा करवट इधर लिया कि देश की अखंडता और सार्वभौमिकता गयी भाड़ में। एक देश जो जिसकी एक तिहाई आबादी की आजीविका दक्षिणी सीमा के पार सदियों से चाय के बर्तन मांजकर, उसकी सीमाओं की हिफाजत करके भी 'भाड़े के सैनिक'वाली इज्जत बटोरने के नाम बहादुर कहलाती हो। एक देश जिसकी सार्वभौमिकता, इतिहास के तहखाने से उसकी सार्वभौम जनता को उन्नति व सुख-शांति के पथ पर ले जाने के लिए राजतंत्र से लोकतंत्र में 'स्टेज'करा देने के बाद रद्दी के ढेर में फ़ेंक दी जाती रही हो। वो भी सब कुछ विकास, गणतंत्र और देश में 'अच्छे दिन'आयात करने के नाम पर।

हाँ, यहाँ नेपाल की ही बात की जा रही है। और प्रसंग है, भूकंप के लिए ऑपरेशन मैत्री के तहत नेपाल गयी मेरी 'महान'मात्रभूमि धोती (नेपाली जनमानस में भारतीय सत्ता के वर्चस्व को राष्ट्रवादी अभिव्यक्ति में धोती की संज्ञा दी जाती है) की कारगुजारियां। नेपाल से जो खबरें आ रही हैं, उसको सुनते और समझते समय एक भारतीय के रूप में मेरी आत्मा कांप उठती है; ह्रदय दुख से फटने को होता है। कि शर्म आती है अपने पर, भारतीय नागरिक का ठप्पा लगाते हुए। मैं यह भी कह सकता हूँ कि नेपाल में इन कारगुजारियों के जिम्मेवार यहाँ का सत्ता प्रतिष्ठान (नेहरूवादी 'समाजवादी'से लेकर अभी के प्रचारवादी हिन्दुत्ववादी तक) हैं। तब क्यूँ मैं अपने को दोष दूँ। लेकिन तब मैं अपने से पूछता हूँ कि एक देश के ऊपर लगने वाले दाग से क्या मैं 'उसका एक नागरिक मुक्त'हो सकूँगा।

भूकंप के तबाह हुए देश नेपाल को आज राहत सामग्री पहुँचाने और बचाव कार्य में सहयोग करने वाले प्रत्येक देश की जरूरत है। लेकिन आरोप लग रहे हैं कि  नेपाल का यह दक्षिणी पड़ोसी राहत व बचाव कार्य के अलावा नेपाल की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के साथ ही साथ दूसरे पड़ोसी चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा पर सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है। जिस प्रकार से भारतीय वायु सेना के सैन्य हेलीकाप्टर एम् आई-17, चीन की सीमा से लगे हुए नेपाल के सुदूर-दुर्गम जिलों यथा सोलुखुम्बू, व रसुवा में उद्धार कार्य के बहाने चीन की हवाई सीमा में प्रवेश कर उसके उल्लंघन में पहले दिन से ही लगे हुए हैं। जिस तरह घायलों को बचाने और सुरक्षित निकालने के नाम पर सैन्य हेलीकाप्टर एम् आई-17 नेपाली इलाके से सटे हुए चीनी हवाई क्षेत्र में उड़ान पर उड़ान भर रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे नेपाल इस पड़ोसी देश का एक अभिन्न राज्य हो। अन्यथा चीन सरकार ने शुरू में ही नेपाल सरकार को भारत के इस जासूसी कदम पर चेतावनी न दी होती।

… लेकिन मामला रुकता नजर नहीं आ रहा है। बहरहाल मामला यहीं तक तो मात्र सीमित नहीं है, क्योंकि काठमांडू एअरपोर्ट में जिस रणनीतिक तरीके से भारतीय सेना (व उसकी पैरामिलिट्री बल 'सीमा सशत्र बल') की उपस्थिति जारी है और उसके हेलीकाप्टर बचाव कार्य के नाम पर मात्र भारतीय और गाहे-बगाहे विदेशी नागरिकों को बचाने में लगे हैं, वह शर्मनाक है। नेपाली पत्रकार राजेश राई के हवाले से 1 मई को "सरकार ! हामी ढलेका छौं, देशको स्वाभिमान ढल्न नदिनुहोस्" शीर्षक से प्रकाशित खबर ( http://www.nayapage.com/oped/10125 ) के अनुसार, सोलुखुम्बू व रसुवा जिलों में लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। अभी तक इन इलाकों में राहत सामग्री के नाम पर खाने के पैकेट ही पहुंचे हैं। क्षतिग्रस्त मकानों के मलबों के नीचे दबे लोगों को बचाने का काम अभी तक शुरू नहीं किया गया है। हजारों घायल लोग खुले मैदानों में शरण लिए हुए हैं। और तब यह हाल है, भारतीय वायुसेना के बचाव दल पर्यटकीय क्षेत्रों लुक्ला व लाटाबांग में केवल भारतीय पर्यटकों (इसमें भारतीय मीडिया कर्मी का 'भूकंप पर्यटन' भी शामिल हैं) को वापस सुरक्षित स्थान पर ला रहे हैं।

पत्रकार राई की इस खबर में, नेपाली सेना व ब्रिटिश गुरखा सिग्नल के सीनियर अधिकारी के हवाले से यह कहा गया है कि 'भारतीय सैन्य विमान नेपाली जिलों से सटे चीन के इलाकों का गहरा अध्ययन करने के लिए जासूसी में जुटे हुए हैं'।

मोदी सरकार ! तपाईलाई थाहा छ, नेपाल क्षतविक्षत जस्तै छ । तर, जे भएपनि भोली नेपाल रहन्छ । हामी रहन्छौं । यस्ता जासुुसी भोली गरे हुन्न ?

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वे आगे लिखते हैं कि यह कैसी विडम्बना है कि इन इलाकों के लोग अभी तक टेंट व त्रिपाल न मिल सकने के कारण बारिश के समय भी खुले में रहने को मजबूर हैं। भारत के 6 हेलीकॉप्टर जहाँ जासूसी के लिए चीनी क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन करने में लगे हुए हैं, वहीँ दूसरी ओर बाकी के 6 विमान राहत व बचाव के नाम पर खाने के पैकेट गिराने वाली उड़ाने ज्यादा कर रहे हैं, क्योंकि इसके चालक दुर्गम इलाकों में राहत/ बचाव कार्य में उड़ाने भरने के आदी नहीं हैं।

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आफ्नो नागरिक लिएर कलंकीबाट फर्किदै गरेको भारतीय बस । बसमा अधिकांस सिटहरु खाली देखिन्थे तर, यात्रुुहरुले हारगुुहार गर्दा पनि नेपाली कसैलाई चढाएनन् – See more at: http://www.nayapage.com/oped/10125#sthash.KTLp2a0q.dpuf

पवन पटेल

photo मोदी सरकार, ये समय उद्दार का है, जासूसी का नहीं- नेपाली मीडिया

About The Author

पवन पटेल, लेखक जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में पीएचडी हैं और आजकल वे 'थबांग में माओवादी आन्दोलन'नाम से एक किताब पर काम कर रहे हैं; वे भारत-नेपाल जन एकता मंच के पूर्व महा सचिव भी रह चुके हैं।


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