नेपाल-मलबे के ढेर में से इंसानी अंग दिखते हैं तो मजबूत कलेजे वाले का भी दिल काँप जाता है
जब हम इंडिया मे थे तो फेसबुक पर RIP लिखना या We are with Nepal लिखना बहुत आसान लग रहा था।
लेकिन जब यहां आकर देखा तो ढहे हुये मकान, बाहर निकलने के लिये बस स्टेशन पर लगी लंबी लाइनें, राहत सामग्री की गाड़ियों को ताकते बच्चे, सीमित संसाधनों के बीच लगातार राहत कार्य में लगी देशी विदेशी संस्थायें और सबसे दुखद कि इन मलबों के बीच में अपनो को ढूंढती आसुओं भरी बेबस आंखें।
जब गिरे हुये मलबे के ढेर में से इंसानी अंग दिखते हैं तो मजबूत से मजबूत कलेजे वाले का भी दिल काँप जाता है।
आज सबसे पहले बस अड्डे पर गये जहां सोनौली एआरएम परशुराम पांडे के मुस्तैदी से ड्यूटी करने के बावजूद यूपी बिहार और आन्ध्र प्रदेश के लोगों का हुजूम था, जिसे हमारे नेता सुनील सिंह यादव और उदयवीर जी ने अपनी सूझ-बूझ से निपटाया।
काठमांडू से आठ किलोमीटर दूर बसा हुआ खूबसूरत कस्बा साकू पूरी तरह तबाह हो गया था, तीस के आस-पास मौतें हुई थीं और लगभग इतने ही लापता थे, रोती हुई औरतों और बच्चों के आंसू कलेजे को हिला देते थे।
वहां अग्रजों के कुछ स्थानीय संपर्कों और "दलित आदिवासी सेवा संस्थान"के युवा साथियो के बताने पर एक बहुत ही खूबसूरत, लेकिन उससे भी दुर्गम और उससे भी ज्यादा तबाह "लफसिफेरी"की तरफ बढ़े जो कभी अपनी दुर्गमता की वजह से माओवादियों और उनके नेता प्रचंड का एक सुरक्षित पनाहगार हुआ करता था। आज पूरी तरह बर्बाद था। खुद कंधे पर राहत सामग्री उठाये फिट भर के रास्ते पर चलकर जब युवा साथी ऊपर पहुंचे तो वहॉ के निवासियों की आंखों में भारत के प्रति कृतज्ञता साफ दिख रही थी।
अजीत प्रताप सिंह
काठमांडू से
नेपाल का आंखों देखा हाल
नेपाल से ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
नेपाल- हर तरफ तबाही
नेपाल- ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
नेपाल में अखिलेश यादव की लाल सेना