हर दल से कार्यकर्ता टूटकर भाजपा में शामिल होने लगे, कांग्रेसी वोट बैंक भी भाजपा के हिस्से में
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सारे देश में जैसे लोग टूटकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं,वैसा बंगाल में भी हो रहा है।फर्क यह है कि सांसद विधायक या बड़े नेता बंगाल में दूसरे दलों से भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं।कोई बड़ा धमाका नहीं होने के कारण खबर भी नहीं बन रही है।सितारों की चमतक तक चर्चा सीमित है। लेकिन जिलों, नगरों, महानगरों, उपनगरों,कस्बों और गांवों में हर दल से कार्यकर्ता टूटकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं।जो लोग कल तक माकपा, तृणमूल और कांग्रेस के लिए काम करते देखे गये,बड़ी संख्या में वैसे लोग हर हर मोदी,घर घर मोदी के नारे लगाने लगे हैं।खासकर बंगाल सरकार की अल्पसंख्यक राजनीति से चिढ़े हुए हिंदू मतों का ध्रूवीकरण बेहद तेज है। तो दूसरी और कड़ी शिकस्त खाने की कगार पर खड़ी काग्रेस के नेताओं के चुनाव लड़ने से इंकार और उम्मीदवार तय होने का पूरा फायदा भाजपा को हो रहा है। कांग्रेस वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के खाते में शामिल हो रहा है।देशभर में तेज हो रही मोदी लहर का असर अलग है।
हम पहले से ही लिख रहे हैं कि भाजपा बंगाल में तृणमूल को कड़ी टक्कर देने की हालत में है।कांग्रेस अधीर चौधरी और मौसम बेनजीर की सीट बचाने के लिए भी मुश्किल में दीख रही है तो दूसरी ओर वामदलों के पुरान जनाधार और धंस रहे हैं। मेदिनीपुर में घाटाल और झाड़ग्राम तो देब और संध्या राय के जरिए बेदखल होने को हैं ही,बांकुड़ा में भी मुनमुन सेन ने नौ बार के सांसद वासुदव आचार्य की नींद हराम कर दी है। उत्तर बंगाल के वामदलों के नेता तो राज्य सभा चुनावके वक्त ही दलबदल कर चुके हैं।पहाड़ की तीनों सीटों परकोई वाम संभावना नहीं है तो दक्षिण बंगाल में रज्जाक मोल्ला के बहिस्कार के बाद वाम की हालत और पतली है।
लेकिन खास बात तो यह है कि खस्ताहाल वामदलों और कांग्रेस की बुरीगत का फायदा सत्तादल के बजाय तभाजपा को होने के आसार ज्यादा है। फिर मौजूदा सांसदों के कामकाज से तृणमूल की भी कई सीटें खतरे में हैं। इनमें लोकसभा में एक भी प्रश्न न करने वाले तापस पाल और शताब्दी राय खास हैं।इन दोनों में से तापस पाल की हालत ज्यादा खराब है और कृष्णनगर में फिर जुलु बाबू की वापसी के आसार है।
दमदम में दो बार के भाजपा सांसद,कुशल संगठक और पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकदार को माकपा तृणमूल मुकाबले में फिलहाल कमजोर समझा जा रहा है।इस संसदीइलाके में कांंग्रेस के परंपरागत वोट हैं तो कट्टर भाजपी समर्थक भी कम नहीं है।तपन सिकदार ने अपने कार्यकाल में स्थानीय क्लबों और संस्थाओं से मधुर संबंध बना लिये थे। जहां से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उन्हें मिल रहे हैं।पूरे इलाके में उनकी मोटरसाईकिल रैलियं की धूम लगी है।
तो बारासात मे दीदी के नाम पर अब तृणमूल को एकतरफा समर्थन मिलने के आसार कम है। जादूगर पीसी सरकार को भारी जनसमर्थन मिल रहा है।उनकी सर्वप्रियता उनकी बड़ी पूंजी है और अपनी साफ छवि के जरिये वे अपनी बेटी अभिनेत्री मौबनी के शब्दों में शायद बंगाल में अब तक का सबसे बड़ा मैजिक दिखा दें।ईवीएम मशीनों पर कमल खिलने लगे बारासात में तो कोई ताज्जुब नहीं है क्योंकि वायदे के मुताबिक न रंजीत पांजा ने और न काकोली घोष दस्तिदार ने दीदी को दिये गये बिना समर्थन का कोई मान रखा है।
हुगली में चंदन मित्र,श्रीरामपुर में बप्पी लाहिड़ी और आसनसोल में बाबुल सुप्रिय मजबूत उम्मीदवार हैं और केसरिया लहर पर सवार पांसा पलट सकते हैं।
हावड़ा भाजपा का सबसे बड़ा गढ़ है।जहां जीत की शायद सबसे ज्यादी संभावना थी, जो अब वजनदार उम्मीदवार मैदान में नहोने की वजह से कम हो गयी है। कोलकाता उत्तर अब कोलकाता उत्तर पूर्व नहीं है। इसका वोटबैंक समीकरण सिरे से बदल गया है।लेकिन भाजपा ने कोलकाता के दोनों सीटों में इस सीट को खास तवज्जो देकर राहुल सिन्हा को मैदान में उतारा है।इसीतरह हावड़ा में अगर भाजपा का कोई वजनदार उम्मीदवार होता और इतना जोर लगाया गया होता तो निश्चित तौर पर हावड़ा की सीट भी भाजपा की झोली में गिरना तय था।
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन के जरिये भाजपा ने दार्जिलिंग सीट तो चुनाव प्रक्रिया शुरु होने से पहले ही अपनी झोली में डाल दी है,जलपाीगुडी़ और अलीपिर दुआर में भी भाजपा मजबूती से बढ़त पर हैं।
इसबार तो दक्षिण 24 परगना में भी कमल खिलने के आसार बन गये हैं।मथुरापुर सुरक्षित सीट पर भजपा का दावा बन गया है।
खास बात है कि बंगाल में करीब डेढ़ करोड़ मतदाता गैरबंगाली हैं,जो ज्यादातर भाजपा और रनरेंद्र मोदी के समर्थक हैं।भाजपा का संगठन कम समर्थन के बावजूद बंगाल में हमेशा मजबूत रहा है।इस सांगठनिक बढ़त का फायदा भाजपा को अब मिलना बाकी है। तपन सिकदार,तथागत राय और राहुल सिन्ही की तिकड़ी राज्य भाजपा नेतृत्वका चमकदार चेहरा तो हैं ही।इस पर संसाधनों की कोई कमी है नहीं।इसके अलावा मुर्शिदाबाद,हुगली ,बर्दवान,मेदिनीपुर,हावड़ा और दोनों 24 परगना के जो एक करोड़ से ज्यादा लोग महाराष्ट्र, गुजरात और भाजपा प्रभावित राज्यों में काम कर रहे हैं,वोट देने वे जब राज्य में लौटेंगे,तो उनके रुक का असर भी लाजिमी है।
यह समीकरण कांग्रेस और वामदलों को कितना समझ में आ रहा है, कहना मुश्किल है।लेकिन ममता बनर्जी ने तृणमूल कार्यकर्ताओं को आगाह कर दिया है कि एक भी वोट भाजपा को नहीं गिरने चाहिए। खुद दीदी,मुकुल राय और तृणमूल के छोटे बड़े नेता बार बार ऐलान कर रहे हैं कि बंगाल में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलने वाली है।अगर ऐसा ही है तो भाजपा को इतना तवज्जो क्यों दे रहीं हैं दीदी और अब तक मोदी और भाजपा के बारे में खामोस रहने के बावजूद अब कांग्रेस की तुलना में भाजपा और मोदी पर ज्.ादा तीखा प्रहार क्यों कर रही हैं दीदी,इसे गहराई से समझने की जरुरत है।