अरे ! इस मुख्यमंत्री को कारागार से तो मुक्त करवाओ. यह तो पचास के दशक के नेपाल के जैसे हालात हो गये हैं. राजा त्रिभुवन कैद में थे और राजकाज उनके नाम पर राणा लोग चलाया करते थे. तब नेपाली कांग्रेस की मदद करने के लिये भारत को भी हस्तक्षेप करना पड़ा था.
माफियाओं की कैद में बन्द इस मुख्यमंत्री को कैसे छुड़ायें ? यह तो उनसे मुक्त हो ही नहीं पा रहा है. लोकतांत्रिक ढंग से तो यह 2017 के विधान सभा चुनाव के बाद चला ही जायेगा. मगर ये दो साल भी कैसे कटेंगे ? यह तो सांवैधानिक संकट जैसी स्थिति आ गई है. ऐसी अराजकता में कैसे चलेगा दो साल यह प्रदेश ?
अभी पौड़ी में संपन्न उमेश डोभाल समारोह से लौटा हूँ. वहाँ हरीश रावत की प्रतीक्षा थी. कार्यक्रम के आयोजक ही नहीं, जिला प्रशासन भी सतर्क था. ऐन मौके पर वे कन्नी काट कर टिहरी चले गये. चर्चा थी कि माफियाओं ने उन्हें समझा दिया कि यह पच्चीस साल से उमेश डोभाल की संघर्ष की परंपरा को खींच रहे पत्रकारों और संस्कृतिकर्मियों का कार्यक्रम है, देहरादून के 'हाँ जी..हाँ जी'....'जो तुमको पसंद हो वही बात कहेंगे' वाले स्टेनोग्राफरों का नहीं. वहाँ कड़वी-कड़वी सुनाने वाले ही मिलेंगे. बस भाग लिये हरीश रावत!
ऐसा नहीं कि समारोह में उनकी बहुत जरूरत थी. मुख्य वक्ता आनंद स्वरुप वर्मा सहित बहुत सारे लोगों की उनके आने पर असहमति थी. बाद में तो यह तय ही करना पड़ा कि उमेश डोभाल की शानदार परम्परा को कलंकित होने से बचाने के लिये भविष्य में किसी राजनेता को नहीं बुलाया जायेगा.
एक तरह से रावत को बुलाया भी नहीं गया था. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के अड़ियल अधिकारियों के अड़ंगे के कारण जब एक महीने तक कोशिश करने के बावजूद उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पन्त 'राजू' को जब मुख्यमंत्री से मिलने का समय ही नहीं मिला तो उन्होंने जैसे-तैसे फोन पर रावत से सम्पर्क किया. उमेश डोभाल प्रकरण से पूरी तरह वाकिफ रावत ने स्वयं ही कार्यक्रम में आने की पेशकश की. अब कोई कहे कि मैं आपके घर आऊँगा तो यह तो नहीं कहा जा सकता कि आप न आएँ.
मगर माफियाओं के घर शादी और नामकरण पर भी हेलीकाप्टर से चले जाने वाले हरीश रावत ऐन मौके पर पैरों पर माफियाओं द्वारा डाली गई बेडी नहीं तोड़ सके.
मगर माफियाओं के घर शादी और नामकरण पर भी हेलीकाप्टर से चले जाने वाले हरीश रावत ऐन मौके पर पैरों पर माफियाओं द्वारा डाली गई बेडी नहीं तोड़ सके.
माफियाओं की कैद में बन्द इस मुख्यमंत्री को कैसे छुड़ायें ? यह तो उनसे मुक्त हो ही नहीं पा रहा है. लोकतांत्रिक ढंग से तो यह 2017 के विधान सभा चुनाव के बाद चला ही जायेगा. मगर ये दो साल भी कैसे कटेंगे ? यह तो सांवैधानिक संकट जैसी स्थिति आ गई है. ऐसी अराजकता में कैसे चलेगा दो साल यह प्रदेश ?
अभी पौड़ी में संपन्न उमेश डोभाल समारोह से लौटा हूँ. वहाँ हरीश रावत की प्रतीक्षा थी. कार्यक्रम के आयोजक ही नहीं, जिला प्रशासन भी सतर्क था. ऐन मौके पर वे कन्नी काट कर टिहरी चले गये. चर्चा थी कि माफियाओं ने उन्हें समझा दिया कि यह पच्चीस साल से उमेश डोभाल की संघर्ष की परंपरा को खींच रहे पत्रकारों और संस्कृतिकर्मियों का कार्यक्रम है, देहरादून के 'हाँ जी..हाँ जी'....'जो तुमको पसंद हो वही बात कहेंगे' वाले स्टेनोग्राफरों का नहीं. वहाँ कड़वी-कड़वी सुनाने वाले ही मिलेंगे. बस भाग लिये हरीश रावत!
ऐसा नहीं कि समारोह में उनकी बहुत जरूरत थी. मुख्य वक्ता आनंद स्वरुप वर्मा सहित बहुत सारे लोगों की उनके आने पर असहमति थी. बाद में तो यह तय ही करना पड़ा कि उमेश डोभाल की शानदार परम्परा को कलंकित होने से बचाने के लिये भविष्य में किसी राजनेता को नहीं बुलाया जायेगा.
एक तरह से रावत को बुलाया भी नहीं गया था. सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के अड़ियल अधिकारियों के अड़ंगे के कारण जब एक महीने तक कोशिश करने के बावजूद उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पन्त 'राजू' को जब मुख्यमंत्री से मिलने का समय ही नहीं मिला तो उन्होंने जैसे-तैसे फोन पर रावत से सम्पर्क किया. उमेश डोभाल प्रकरण से पूरी तरह वाकिफ रावत ने स्वयं ही कार्यक्रम में आने की पेशकश की. अब कोई कहे कि मैं आपके घर आऊँगा तो यह तो नहीं कहा जा सकता कि आप न आएँ.
मगर माफियाओं के घर शादी और नामकरण पर भी हेलीकाप्टर से चले जाने वाले हरीश रावत ऐन मौके पर पैरों पर माफियाओं द्वारा डाली गई बेडी नहीं तोड़ सके.
मगर माफियाओं के घर शादी और नामकरण पर भी हेलीकाप्टर से चले जाने वाले हरीश रावत ऐन मौके पर पैरों पर माफियाओं द्वारा डाली गई बेडी नहीं तोड़ सके.