धर्मनिरपेक्षता के रंग बिरंगे चेहरे बेनकाब
केसरिया,कारपोरेट
शत प्रतिशत हिंदुत्व में बाकी धर्म अनुयायियों के खात्मे का एजंडा है,हमले इसीलिए।
अबाध पूंजी के हितों में अमेरिका अब भारत पर न आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है और न परमाणु प्रतिबंध।अभी अभी रक्षा बाजार अमेरिकी कंपनियों के लिए खुला है।अभी अभी बीमा बाजार खुला है।खुदरा कारोबार भी अलीबाबाओं के हवाले हैं।
इसलिए हिंदुत्व के एजंडे को न अमेरिका का डर है और न वैटिकन का।
अब यह भी देखिये कि अमेरिका और बाकी ईसाई दुनिया,जिनका इजराइल से जितना चोली दामन का साथ है,उतना ही मजबूत टांका है ग्लोबल हिंदुत्व के साथ।
भारत में सिखों,मुसलमानों,बौद्धों,गैर नस्ली नगरिकों,बहुजनों,जिन्हें जबरन हिंदू बनाया जा रहा है,आदिवासियों और शरणार्थियों के मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन पर अगर अमेरिका और वैटिकन खामोश हैं तो ईसाइयों पर हो रहे हमले से हिंदू साम्राज्यवाद को रोकने की कोई राह बचती नहीं है।
पलाश विश्वास
The Economic Times
In this interview with ET, Julio Ribeiro, retired IPS officer, says Prime Minister Narendra Modi needs to tell right wing fringe groups to shut up, and walk the talk of development for all.
Your reactions? But first, read the full interview here!
Attempts to make India saffron Pakistan won't work: Former IPS Julio Ribeiro - The Economic Times
In an interview with ET, Julio Ribeiro says PM Modi needs to tell right wing fringe groups to shut up,...
खबर है कि देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराध का मुद्दा मंगलवार को लोकसभा में गूंजा। कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की। विपक्षी पार्टियों ने सदन में हरियाणा में एक गिरजाघर पर हमला और पश्चिम बंगाल में एक नन के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म का मुद्दा उठाया।
खबर है कि नदिया में चार दिन पहले बुजुर्ग नन के साथ हुए गैंगरेप को लेकर आज संसद में हंगामा हुआ है. विरोधियों ने ममता और मोदी सरकार पर निशाना साधा है। अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
एक और अहम खबर ये है कि वेटिकन सिटी से एक टीम रानाघाट कल आने वाली है। वेटिकन में पोप रहते हैं औऱ ईसाईयों का सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र है।
हिसार चर्च में तोड़फोड़ के मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी को गिरफ्तार किया है। एजंसी ने ये खबर दी है। पुलिस ने गांव के सरपंच सहित 5 लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। हिसार में तो गिरफ्तारी हो गई लेकिन नदिया में चार दिन पहले बुजुर्ग नन के साथ हुए गैंगरेप के आरोपी अभी तक पक़ड में नहीं आए हैं।
संसदीय कार्यवाही का आंखों देखा हाल चूंकि आप किसी न किसी माध्यम से जान रहे होंगे,इसलिए इस के विस्तार में नहीं जा रहा हूं।
इस सिलसिले में हस्तक्षेप पर हमारा आलेख पढ़ लेंः
संविधान से धर्मनिपेक्ष का पाखंड हटा ही दें अगर विधर्मी और अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं
शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजंडे पर खामोशी।
2021 तक भारत को इस्लाम मुक्त और ईसाई मुक्त करने की संघ परिवार की टाइम लाइन पर खामोशी।
सभी भारतीय हिंदू है,वक्तव्य पर सन्नाटा।
मस्जिद धर्मस्थल नहीं,उन्हें कभी भी तोड़ा जा सकता है,खुल्ला ऐलान पर राजधर्म का अता पता नहीं।
सांसदों और मंत्रियों तक के धर्मोन्मदी बयानों पर कोई अंकुश नहीं।
बजरंगियों को कहीं भी कुछ भी कर गुजरने का लाइसेंस।
और अब जाकर कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में बुजुर्ग नन से सामूहिक बलात्कार और हरियाणा में एक चर्च तोड़े जाने की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की और इन पर तत्काल रिपोर्ट मांगी है।
प्रधानमंत्री के राजधर्म के विपरीत विश्व हिंदू परिषद ने हरियाणा में हिसार के चर्च में तोड़फोड़ की घटना का समर्थन करते हुए पूछा है कि क्या ईसाई वेटिकन सिटी में हनुमान मंदिर के निर्माण की अनुमति देंगे।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार, विहिप के संयुक्त सचिव सुरेंद्र जैन ने स्वतंत्रता के लिए 1857 की लड़ाई को धर्म के लिए युद्ध बताया और कहा कि अगर ईसाइयों ने धर्मातरण नहीं रोका तो ऎसे युद्ध किए जाएंगे।
उन्होंने दावा किया कि नदिया जिले में नन से गैंगरेप को सांप्रदायिक रंग देने के पीछे चर्च की साजिश है। उन्होंने कहा कि नन कायौन शोषण ईसाइयों की संस्कृति है, यह हिंदुओं की संस्कृति नहीं है।
जैन ने कहा कि नन से रेप को लेकर पोप काफी चिंतित हैं इसलिए इसे रोकने के लिए वे समलैंगिक यौन संबंध को बढ़ावा दे रहे हैं।
गौरतलब है कि हिसार के चर्च में तोड़फोड़ और नदिया जिले में नन से गैंगरेप के मामले में हिंदू समुहों के शामिल होेेने का आरोप लगा है। दोनों ही मामलों में विहिप ने किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है।
संसदीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता की यह कारपोरेट केसरिया समरस अभिव्यक्ति है।
धर्मनिरपेक्षता के प्रसंग में इस देश के गैरअनार्य आदिवासियों की गिनती भारतीय वोटबैंक की राजनीति में नहीं है,इसीलिए सलवा जुड़ुम या आफसा से धर्मनिरपेक्षता को कोई ऐतराज नहीं न जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता से बेदखली से धर्मनिरपेक्षता को कोई मतलब है।
इसीलिए आदिवासियों की बेदखली वाले तमाम कानूनों को पास कराने में धर्मनिरपेक्षता और धर्मोन्माद एकाकार।
हम पहले से लिखते रहे हैं कि बिलियनर मिलियनर सत्ता वर्ग के लिए जनसंहारी कारपोरेट मनुस्मृति जायनी राज्यतंत्र को बहाल रखने के लिए अनिवार्य संसदीय जनादेश हासिल करने के लिए धर्मनिरपेक्षता वोट बैंक दखल बेदखल करने का अचूक रामवाण है,जिसका वोट राजनीति के दायरे से बाहर आचरण में कोई वजूद नहीं है।
इसका क्या कहिये कि जिस राज्यसभा में सुधार संबंधी तमाम विधेयक बंधक हैं,बीमा बिल पास करा लेने के बाद बाकी बिलों के मामले में हिंदुत्व की सबसे बड़ी और मौलिक पार्टी कांग्रेस भी जिन्हें पास कराने के लिए राजी नहीं हैं,उन्हें पास कराने में मददगार हैं धर्मनिरपेक्षता के सूरमाओं की पार्टियांं तृणमूल कांग्रेस,जनतादल-यू और बीजू जनतादल।समाजवादी पार्टी कुछइधर है तो कुछ उधर भी।
विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने विपक्ष से अपील की कि वह राज्यसभा में भूमि विधेयक पारित कराने के सरकार के प्रयासों का विरोध करे।तो व्यापक विपक्ष की एकता का संदेश देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कम से कम 10 राजनीतिक दलों के नेता मंगलवार को संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करते दीखे।
भूमि अधिग्रहण बिल पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दल के तकरीबन 125 सांसद आज राष्ट्रपति से मिले। राष्ट्रपति को सांसदों ने ज्ञापन सौंपा। इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में विपक्षी सांसदों का राष्ट्रपति भवन की ओर मार्च किया। सौ से ज्यादा सांसद इस मार्च में शामिल हुए। ये सांसद तख्तियां लिए हुए और भूमि बिल के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। पुलिस ने ये रास्ता आम लोगों की आवाजाही के लिए बंद कर दिया था।
हम शुरु से लिखते रहे हैं कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें धर्मोन्मादी कारपोरेट राजकाज के सहायक हैं और सरकारों के स्थायित्व के लिए निर्णायक बनीं ये ताकतें 16 मई,1014 से पहले तक तमाम अल्पमत सरकारों को जनविरोधी कानून और नीतियों को अमली जामा देने में संसदीय सहमति और धर्मनिरपेक्ष वोट बैंक की राजनीति करती रही हैं।
बंगाल में अभी हाल में हुए राणाघाट चर्च में 72 साल की नन के साथ जघन्य बलात्कार कांड के बाद मुख्यमंत्री के धर्मनिरपेक्ष चेहरे की कलई खुल गयी है जबकि यह वारदात ईसाइयों के लिए नहीं,बंगाल में वोटबैंक राजनीति में निर्णायक मुसलमानों को जान माल की सीधी चेतावनी है।ममता के परिवर्तन राज में स्त्री उत्पीड़न और सामूहिक बलात्कार की वारदातें राणाघाट से आगे भी जारी हैं।
असली धर्मनिरपेक्षता का रंग ममता बनर्जी और उनकी पार्टी संसद में दिखा रही है।धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ने तो सीधे भारतीय बीमा बाजार को अमेरिका के लिए खोलने के अपने एजंडे को संघ परिवार के कंधे पर बंदूक रखकर पास करवा लिया तो बीमा और खुदरा बाजार में एफडीआई का विरोध करने वाली तृणमूल कांग्रेस बीमा बिल पर वोट से पहले रज्यसभा से वाकआउट करके बिल पास हो जाने का रास्ता साफ कर दिया।
यूपी में 2017 में इलेक्शन है और धुरंधर क्षत्रप मुलायम को दोनों हाथ में लड्डू रखने और खाने के गुर खूब मालूम हैं।समाजवादी पार्टी संघपरिवार के साथ सैफई से लेकर संसद तक में खड़ी है,लेकिन यूपी में चुनावी हितों के मद्देनजर इसका खुलासा होने नहीं देना चाहती।
मुलायम के हाल में बने रिश्तेदार भयंकर धर्मनिरपेक्ष हैं और संसद में उनकी कोई ताकत नहीं हैं।वे एकदम सुरक्षित खेल रहे हैं।जबकि उन्हें हाशिये पर फेंकने वाली फिलहाल सत्ता समीकरण में उनके साथ नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनतादल यू,बंगाल की ममता बनर्जी और ओड़ीशा को कारपोरेट हवाले करने वाले नवीन पटनायक राज्यसभा में कोयला और खान अधिनियमों में संशोधन के अहम सुधारों को पास करने में धर्मोन्मादी संघ परिवार के हम साथ साथ हैं,परिवार।फिरभी पूछते रहेंगे,हम आपके हैं कौन।
हम शुरु से लिख रहे हैं कि सरकार को भूमि अधिग्रहण संशोधन की जल्दबाजी नहीं है।
अमेरिकी हितों के मद्देनजर टाप पर रहा है बीमा संशोधन बिल,वह स्मूदली पारित हो गया धर्मनिरपेक्ष कंधों पर सवार।
देश के आदिवासी भूगोल को बेदखल करने से धर्मनिरपेक्ष वोटबैंक की राजनीति को कुछ आता जाता नहीं है।सिर्फ ओड़ीशा में झारखंड और छत्तीसगढ़ के बाद सबसे ज्यादा आदिवासी हैं ,जिनकी जमीनें नवीन पटनायक पहले ही कारपोरेट हवाले कर चुके हैं।
बंगाल में तीस फीसद मुसलमान वोटर हैं तो नमाज पढ़ने या हिजाब ओढ़ने तक से परहेज नकरके धर्मनिरपेक्ष ममता मोदी को कमर में रस्सी बांधकर जेल भेजने का ऐलान करती हैं लेकिन बंगाल में आदिवासी वोट सिर्फ सात फीसद हैं।जंगल महल दखल करने का उनका एजंडा पूरा हो गया।वाम भी हाशिये पर हैं।
इसलिए बेहिचक संसद में ममता संघपरिवार में शामिल और बाहर संघ परिवार के खिलाफ जिहाद, जिहाद,जिहाद।ताकि मुसलमान गलतफहमी में रहे।
इसीतरह बिहार में भी आदिवासी वोटरों का प्रतिशत काफी कम है,जो चुनाव नतीजों के गणित के हिसाब से बेमतलब है।
अब समझ लीजिये कि कैसे धर्मनिरपेक्षता के क्षत्रपों की यह तिकड़ी कोयला और खान संशोधन विधेयकों को पास कराने के लिए कांग्रेस के विरोध के बावजूद राज्यसभा में संघ परिवार की जीत क्यों तय कर रहे हैं।उनकी धर्मनिरपेक्षता का आशय क्या है।
सर्वभारतीय पार्टी होने के कारण आदिवासियों के हितों की कतई परवाह न करने वाली और आजादी के बाद से आदिवासियों को लगातार तबाह करते रहने वाली कांग्रेस के लिए सत्ता में वापसी के लिए आदिवासी हितों के रक्षक बतौर दीखने की गरज है,इसलिए भूमि,कोयला और खनन विधेयकों को उसका समर्थन निषिद्ध है।
व्यापारी कांग्रेस के वोटबैंक नहीं है,इसलिए खुदरा कारोबार रसातल में जाये तो कांग्रेस को फर्क नहीं पड़ता और न देश के संसाधन बेचने के अपने अभियान संघ परिवार की ओर से और तेज किये जाने से उसके पेट मों कोई तितलियां हैं।देश बेचने का मौलिक सौदागर फिर वहींच कांग्रेस।विदेशी पूंजी की काजलकोठरी में सबके चेहरे कारे हैं।
यही सबसे बड़ा कोयला घोटाला है,जिस पर कोई मुकदमा चलेगा नहीं।
इसलिए हम तीसरा विकल्प धर्मनिरपेक्ष विकल्प नहीं मानते क्योंकि संसदीय सहमति की राजनीति में धर्मनिरपेक्षता सबसे बड़ी धोखाधड़ी है।
इसीलिए हम बार बार लाल नील एकता के तहत मेहनतकश के वर्गीय ध्रूवीकरण का एकमात्र रास्ता बता रहे हैं।अंध गलियों में भटकने के बजाये लाल और नील ताकतों को बहुजन सर्वहारा तबके के वर्गीय ध्रूवीकरण के लिए काम करना चाहिए।
वाम को धर्मनिरपेक्ष सत्ता लोलुप क्षत्रपों के चंगुल से निकलकर मेहनकश जनता की गोलबंदी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
वहीं,नीले झंडे के अनुयायियों को समझ लेना चाहिए कि जिस बाबासाहेब को वे अपना ईश्वर बनाये हुए हैं,वे जातिव्यवस्था को खत्म करने के लिए जिये मरे और समता औक सामाजिक न्याय के लिए उऩका जो जाति उन्मूलन का एजंडा है,वह बहुजनों को वर्ग मानने की बुनियाद पर खड़ा है।वर्गीयध्रूवीकरण का मकसद जितना वाम है,उससे कमसकम भारतीय संदर्भ में वह अंबेडकरी कहीं ज्यादा है।
इस सत्य को समझे बिना इस केसरिया कारपोरेट समय में न वाम का कोई भविष्य है और न बहुजन आंदोलन का।
हस्तक्षेप में कल लिखे अपने आलेख,अस्मिता और भावना के आधार पर संगठन बनाना आसान, लेकिन बाबा साहेब इसके खिलाफ थे,
(http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/ajkal-current-affairs/2015/03/17/%E0%A4%85%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AA),के संदर्भ में मैंने आज खुद आनंद तेलतुंबड़े को यह आलेख लिखने से पहले फोन कियाऔर उनसे निवेदन किया कि उनको उद्धृत करने में कहीं गलती हो गयी या उनके कहे का आशय निकालनेमें हमारे विश्लेषण अगर उनके विचारों के विपरीत है,तो तुरंत स्पष्टीकरण भेजेंताकि हम तथ्यों मे अगर कोई गलती हो तो तुरंत उसमें सुधार करेंक्योंकि अब हम यह बहस और तेज करने वाले हैं।
आनंद ने साफ साफ कहा कि किसी स्पष्टीकरण की कोई जरुरत नहीं है।मुक्त बाजारी तिलिस्म की दीवारें तोड़ने की जितनी जरुरत है ,अस्मिताओं की आत्मघाती राजनीति से बहुजनों को निकालकर जनता के राष्ट्रीय मोर्चे की गोलबंदी उतनी ही जरुरी है।उन्होंने वायदा किया है कि वे इस सिलसिले में सिलसिलेवार लिखेंगे।
अब इसे भी समझना गलतफहमियों को दूर करने के लिए बेहद जरुरी है कि फासीवाद का असली चेहरा सिर्फ केसरिया नहीं है।
सबसे पहले इस खबर पर गौर कीजिये,योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण द्वारा अरविंद केजरीवाल से मिलने का समय मांगे जाने के एक दिन बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक ने आज जबाव में 'जल्द मिलने' की बात कही है। दोनों नेताओं की तरफ से सोमवार सुबह केजरीवाल को एक एसएमएस भेजा गया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री के बंगलुरू से लौटने के कुछ घंटों के बाद, दोनों विरोधी गुटों के बीच सुलह के एक और प्रयास के तहत केजरीवाल गुट के वरिष्ठ नेताओं ने सोमवार देर रात यादव से मुलाकात की और कई विवादित मुद्दों पर बातचीत की. दोनों गुटों ने विचार-विमर्श को सकारात्मक बताया है।
अर्थात सही मायने में जनमोर्चा बने या न बने,बहुजनों का वर्गीय ध्रूवीकरण हो या न हो,उससे निपटने की रणनीति में कोई कसर बाकी नहीं है।
मतभेदों के जरिये आंतरिक लोकतंत्र के ईमानदार करतब के तहत संघ परिवार के विकल्प बतौर आप बिखर भी नहीं रहा है।
यह ऐतिहासिक सच है कि करंट स्टेटस चाहे संघ परिवार की राजनीति को हिंदुत्व का वारिस बतौर पेश कर रही है।लेकिन तथाकथित हिंदुत्व के पुनरूत्थान से पहले आजादी से पहले और आजादी के बाद दुनियाभर में हिंदुओं के प्रतिनिधित्व का दावेदार कांग्रेस रही है।भारत विॆभाजन के दो राष्ट्र सिद्धांत के तहत जो सत्ता हस्तातंरण हुआ,उसकी बुनियाद हिंदुओं की पार्टी बतौर साम्राज्यवादियों की कांग्रेस को मान्ता है।संघ परिवार को नहीं।
हिंदुत्व के उस पुनरूत्थान के लिए जो सिखों का नरसंहार हुआ,उसमें भी हाथ कांग्रेस के ही रंगे हुए हैं।
जिस बाबरी विध्वंस के बाद संघ परिवार सत्ता की दावेदार बनकर उभरने लगा नवउदारवादी मुक्तबाजारी कारपोरेट राज के शुभारंभ से,उसके पीछे भी गौर से देखें तो फिर वहीं कांग्रेस का काला हाथ है।राम मंदिर का ताला खोलकार रामरथ का दिगिविजयी रास्ता तैयार किया कांग्रेस ने फासीवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के जरिए अबाध पूंजी के लिए।
सिख जनसंहार के तुरंत बाद हुए 1984 के लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी के सुपर तकनीक अवतार से डिजिटल देश बनाने का जो सिलसिला हुआ,दृश्य माध्यम के विस्तार के साथ,सूचना प्राद्योगिकी की पैत्रोदा भूमिका के तहत जो डिजिटल देश बनाने का मेकिंग इन अमेरिका आज फूल ब्लूम केसरिया कमल है,उस ऐतिहासिक संक्रमण काल में संघ परिवार ने सत्ता का विसर्जन करते हुए राजीव गांधी की कांग्रेस का बिना शर्त समर्थन किया था।
फिर हरित क्रांति की महारानी बतौर जिन इंदिरा गांधी ने कृषि के सफाये की परिकल्पना शुरु की और हिंदुत्व राष्ट्रवाद को बांग्लादेश विजयमाध्यमे हकीकत में बदला,उनके एकात्म हिंदुत्व में भी तत्कालीन आरएसएस प्रधान बालासाहेब देवरस को पूर्ण समर्थन था।इमरजेंसी में संघ पर प्रतिबंध से जो रिश्ते खत्म हुए,समझा गया,राजीव जमाने में उसका नया नवउदारवादी कायाकल्प हो गया।
यह भी ऐतिहासिक सच है कि बाबरी विध्वंस के वक्त यूपी में भाजपा के कल्याण सिंह की सरकार थी तो केंद्र में कांग्रेस की नरसिंहराव की सरकार थीं।जिसे भारत में नवउदारवादी कायाकल्प और मुक्तबाजार की बुनियाद बनाने का श्रेय है और उस सरकार में वित्तमंत्री विश्वबैंक ने तय किये।
तब केंद्र और राज्य सरकार ने,कांग्रेस और संघपरिवार ने मिलकर भारत को मुक्त बाजार में तब्दील करने के इस निर्णायक फासीवादी आपरेशन को अंजाम दिया,जिसकी परिणति आज की यह केसरिया कारपोरेट डाउकैमिक्लस मनसैंटोराज है।
मनसैंटो राज की शुरुआत भी कांग्रेस ने किया है तो डाउ कैमिकल्स की आत्मा भोपाल गैस त्रासदी के वक्त भी केंद्र में कांग्रेसी हिंदुत्व का राजकाज चल रहा था।
भोपाल गैस त्रासदी के गुनाहगारों को बचाने में भी कांग्रेस की सबसे बड़ी भूमिका रही है।
आप थोड़ा सा इन तथ्यों की जांच परख कर लें और तथ्य इससे भिन्न हों तो इसकी जानकारी हमें देकर दुरुस्त जरुर करें।इस बीच कुछ जरुरी बातें कर ली जायें।
कल रात बुखार नहीं आया और न कंपकंपी आयी।सविताबाबू की जिद पर दफ्तर जाने का जोखिम नहीं उठाया और रात के दो बजे तक अपने मोर्चे पर डटा रहा।सुबह सात बजे जाग भी गये कि डाक्टर के चैंबर से जांच पड़ताल के लिए खून लेनेवाला आ गया।
छह किस्म की जांच के लिए सुबह सुबह सोलह सौ रुपये गिनने पड़े।आज मेरा आराम दिवस है और शाम तक जो जांच रपट आ जानी है,उसके तहत डाक्टर फिर से इलाज की दिशा तय करेंगे।
स्वाइन फ्लू हुआ तो अस्पताल जाने की नौबत आ सकती है।
सबकुछ ठीक रहा तो कल से फिर दफ्तर जाउंगा।
खास बात यह है कि बिना बीमार पड़े हम जो मेडिकल चेकअप कराने के अभ्यस्त नहीं हैं,उस हिसाब से सविता बाबू के फिक्रमंद हो जाने से वह भी निबट गया।इलाज ठीक हुआ तो फिर पूरे दम के साथ आपकी नींद में खलल डालता रहूंगा।
भुक्तभोगी का यथार्त बदल जाता है।स्वाइन फ्लू की महामारी के फंडे पर नये सिरे से गंभीरता से सोचना पड़ रहा है और इस सिलसिले में तमाम तथ्य हाथ आये हैं।अगर सेहत ठीक रही तो देर रात तक उन्हें साझा करने की कोशिश जरुर करुंगा।
ताजा स्टेटस यह है कि तीसरे मोर्चे की राजनीति अब सिरे से बेनकाब हो गयी है।
सामाजिक बदलाव और परिवर्तन के बहाने मुक्तिकामी बहुजन सर्वहारा जनता की ठगी के अपराध का खुलासा भी हो गया है।
गौतम बुद्ध,बाबासाहेब और बहुजन पुरखों के हजारों साल के आंदोलन की समूची विरासत को मसीहाई और धनवसूली का एटीएम बना देने का खुलासा
भी हो गया।
अब भी न जागे बहुजन तो कब फिर जागेंगे बहुजन,कोई बता दें।
सच यह भी है कि धर्मनिरपेक्षता भी अब कारपोरेट केसरिया गीता महोत्सव की समरसता है।
धर्मनिरपेक्षता को गंगा में डालकर उसका धर्मांतरण कर दिया है धर्मनिरपेक्षता के मसीहा संप्रदाय ने,जिनका जनसंहारी राजकाज में वध्य जनता की नियतिबद्ध परिणति से कुछ लेना देना नहीं है।
आपको याद होगा कि पंद्रह लाख टका के सूट और अमेरिकी धर्म स्वतंत्रता का क्या अजब गजब तमाशा हुआ भारत के गणतंत्र महोत्सव के दौरान और उसके तुरंत बाद कैसे मुक्त बाजारी घोड़ों और सांढ़ों का अश्वमेध अभियान का सिलिसला तेज होता गया और संसदीय सहमति की नौटंकी बजरिये कैसे कैसे एक के बाद एक सुधार कार्यक्रम लागू होने लगे।
अब यह भी देखिये कि अमेरिका और बाकी ईसाई दुनिया,जिनका इजराइल से जितना चोली दामन का साथ है,उतना ही मजबूत टांका है ग्लोबल हिंदुत्व के साथ।
इसलिए हिंदुत्व के एजंडे को न अमेरिका का डर है और न वैटिकन का।
अमेरिका में तो सत्ता अमेरिकियों के बजाय या जायनी तत्वों की है या फिर ग्लोबल हिंदुत्व की।ग्लोबल हिंदुत्व की वही बरखा बहार भारत में डाउ कैमिकल्स और मनसैंटो की सत्ता है।
गुजरात नरसंहार,सिख संहार और बाबरी विध्वंस के लिए रेड कारपेट बिछाते हुए सिरे से अबाध पूंजी और दुनिया की सबसे बड़ी इमर्जिंग मार्केट को अमरिकी उपनिवेश बनाने के लिए मानवता के विरुद्ध युद्ध अपराधों को क्लीन चिट देने वाली अमेरिका सहित समूची ईसाई दुनिया भारत में गिरजाघरों पर हो रहे हमलों के सिलसिले में धर्म की स्वतंत्रता का राग अब अलापने लगी है।
हमारे ईसाई मित्रों,स्वजनों को हम साफ कर देना चाहते हैं कि हमारा मकसद कतई इन हमलों को न्यायोचित ठहराने का नहीं है,लेकिन इन हमलों के जिम्मेदार हिंदू साम्राज्यवाद के विजयरथ के सारथी जो लोग हैं,हम उनकी भूमिका की बात कर रहे हैं।
हमारे पुराने सहकर्मी कवि अरविंद चतुर्वेद के पहले कवितासंग्रह का शीर्षक इस सिलसिले में बेहद मौजू हैःचेहरे खुली किताब।
हम इन हमलों के खिलाफ सिर्फ ईसाइयों की नहीं,समूची भारतीय जनता की गोलबंदी के पक्षधर हैं।क्योंकि यह मामला जितना ईसाइयों के खिलाफ है,उससे कतई कम नहीं है भारतीय जनता के खिलाफ।
भारत में सिखों का संहार हुआ।ईसाई दुनिया और और उसके सबसे बड़ी हुकूमत पवित्रतम वैटिकन में सन्नाटा छाया रहा।
ईसाई सत्ता के सबसे बड़े दावेदार अमेरिका सिख संहार के वास्तविक अपराधियों का बचाव करता रहा।
बाबरी विध्वंस हुआ भारत में तो इसे इजराइल की नजरिया से यरूशलम पर कब्जे का ड्रेस रिहर्सल बना दिया गया और भारतीय राजनीति और राजनय दोनों इस्लाम और इस्लामी दुनिया के खिलाफ अमेरिका और इजराइल के आतंक के विरुद्ध युद्ध में पारमाणविक पार्टनर बन गये।
गुजरात नरसंहार में मुसलमानों का कत्लेआम हुआ और उस दौरान मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र भाई मोदी को प्रधानमंत्रित्व के सबसे बड़े दावेदार के रुप में उभरते न उभरते उन्हें सारे आरोपों से मुक्त कर दिया उऩका वीसा रोके रहे अमेरिका ने और अब वे अमेरिकी राष्ट्रपति के निजी मित्र हैं,जिनसे ओबामा गाहे बगाहे मन की बातें करते रहते हैं और ओबामा उन्हीं के कर कमलों में भारत के मुक्तबाजारी कायाकल्प की बागडोर सौंपे हुए हैं।
यह पृष्ठभूमि है ,भारत में ईसाइयों और गिरजाघरों पर हमलों की,कृपया इस पर गौर करें।
इस बीच इजराइल और अमेरिका के इस्लाम और इस्लाम के विरुद्ध सत्तर दशक के अंत से अब तक जो लगातार युद्ध ,गहयुद्ध और गणतंतर वसंत है,भारत में हिंदुत्व के संपूर्ण पुनरूत्थान से पहले,बाबरी विध्वंस से पहले और संघ परिवार के केंद्र की सत्ता पर पहले दखल से पहले कांग्रेसी हिंदुत्व के भारत ने भरपूर सहयोग दिया।
हमारा कहना यह है कि अमेरिका इस इमर्जिंग मार्केट को कब्जा करने की नीयत से हिंदू साम्राज्यवाद का साझेदार बनकर भारत को जो मुक्त बाजार बनाता रहा है खाड़ी युद्ध और सोवियत विघटन के डाबल धमाके से,वह बूमरैंग हो रहा है।
यह ईसाई दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है कि उसने फिर एक हिटलर पैदा कर दिया है,जो उसे बख्शने वाला नहीं है।भारत में वह शुरुआत हो चुकी है।
भारत में सिखों,मुसलमानों,बौद्धों,गैर नस्ली नगरिकों,बहुजनों,जिन्हें जबरन हिंदू बनाया जा रहा है,आदिवासियों और शरणार्थियों के मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन पर अगर अमेरिका और वैटिकन खामोश हैं तो ईसाइयों पर हो रहे हमले से हिंदू साम्राज्यवाद को रोकने की कोई राह बचती नहीं है।
फासीवाद से दुनिया में जो कहर बरपा ,उसका इतिहास भी देखना जरुरी है।
जैसे तालिबान को लाल होती दुनिया के रंग बदलने के लिए पाला पोसा अमेरिका ने और ओसामा बिन लादेन जैसे भस्मासुर पैदा किया अमेरिका ने,कम्युनिस्ट विरोधी पश्चिम ने कम्युनिस्टों के सफाये के लिए तबतक हिटलर और मुसोलिनी को खुल्ला खेल खेलने दिया,यहूदियों का नरसंहार होने दिया,जबतक न जर्मनी का दावानल उनके घरों को जलाने लगा और हिटलर ने औचक स्टालिन से समझौता कर लिया।
स्टालिन को भी इस समझौते की कीमत भारी चुकानी पडी,जब हिटलर की सेनाएं मास्को की ओर कूच करने लगीं।सोवियत शीत ने हिटलर का दम निकाल दिया,वरना क्राति को तो तभी बाट लगनी थी।
फासीवाद के उभार में पूरब पश्चिम का समान योगदान है।
अब भारत में भी हूबहू वही हो रहा है।
एकच हिटलर बोल रहा है,जिसकी पीठ पर अमेरिका और इजराइल सवार है।
मुक्तबाजारी हितों के लिए अमेरिका,इजराइल और उनके सहयोगी फासीवादी हिंदू साम्राज्यवाद को महाशक्ति बनाने लगी है।
इजराइल को इसका अहसास नहीं होगा क्योंकि इस्लाम के खिलाफ हिंदुत्व की जिहाद में उसे अपनी ही जीत दीख रही है और भारत में इतने यहूदी और यहूदी धर्म स्थल भी नहीं है,जिनपर हिंदुत्व के विजयपताका लहराने की गुंजाइश है।
भारतीय जनता के चौतरफा सर्वनाश के लिए चाकचौबंद इंतजाम बतौर फासीवाद के जिस महाबलि को जनमा है अमेरिकी कोख ने,संजोग से ईसाइयों और गिरजाघरों पर वही हमला कर रहा है।यह निर्मम कटु सत्य है।
बयानों से कुछ नहीं होने वाला।
अबाध पूंजी के हितों में अमेरिका अब भारत पर न आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है और न परमाणु प्रतिबंध।अभी अभी रक्षा बाजार अमेरिकी कंपनियों के लिए खुला है।अभी अभी बीमा बाजार खुला है।खुदरा कारोबार भी अलीबाबाओं के हवाले हैं।
सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि अमेरिका कंपनियों के हितों के मुताबिक फासीवाद की यह बहार है और भारत में हिंदू साम्राज्यवादी फासीवादी अशवमेध अमेरिकी हितों के ही मुताबिक है।इसलिए अमेरिका उसपर अंकुश लगायेगा नहीं।
जैसे हमले सिखों और मुसलमानों,बहुजनों और आदिवासियों,अनार्य नस्लों पर लगातार होते रहे हैं,संजोग वश शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजंडे और 2021 तक भारत को ईसाईमुक्त इस्लाम मुक्त बनाने के संघ परिवार के महती एजंडे के तहत वैसे ही हमले अब ईसाइयों और गिरजाघरों पर हो रहे हैं।
इससे भी कटु सत्य यह है कि भारत के ईसाइयों और गिरजाघरों की सुरक्षा के लिए बयान और राजनय की रस्म अदायगी के अलावा न अमेरिका कुछ करने जा रहा है और न वैटिकन।आखिरकार भारत के ईसाई काले हैं,जिनकी परवाह पश्चिम को नहीं है।
अमेरिका राष्ट्रपति बाराक ओबामा के धर्म स्वतंत्रता के माहन उद्गार और राणाघाट के जघन्य बलात्कार कांड पर महामान्य पोप के बयान से हिंदू साम्राज्यवाद के अश्वमेधी आक्रमण रुकेंगे नहीं।
उन्हें यह समझना चाहिेए कि भारत में मुसलमान और सिख अगर हमलों के शिकार होंगे तो न ईसाई सुरक्षित होंगे और न गिरजाघर।शत प्रतिशत हिंदुत्व में बाकी धर्म अनुयायियों के खात्मा का एजंडा है,हमले इसीलिए।