काश दुनिया में दाउदी बोहरा समाज की तरह सभी समाजों में आपसी भाई चारा रहता... तो दुनिया जन्नत से बढकर होती
दुनिया भर 20 लाख दाउदी बोहरा समाज के अमीर हो या गरीब सब लोग रात का खाना सांझा चुल्हे में बना ही खाना खाते है
'दुनिया में भले ही आतंकी घटनाओं के चलते व मुस्लिम देशों में जो आतंकी मारकाट मची हुई है उससे पश्चिमी देशों में मुसलमानों को शंका की दृष्टि से देखा जा रहा है। परन्तु पूरे विश्व में मुस्लिम धर्म को मानने वाला अमनपंसद व भाईचारा बढाने वाला दाउदी बोहरा समाज को देख कर लोग अपनी धारणा को बदलने के लिए मजबूर हो जायेंगे। दाउदी बोहरा समाज का कोई व्यक्ति अमीर हो या गरीब सभी आदमी एक ही सांझा चुल्हे का बना रात का खाना मिल कर खाते है। दुनिया भर में करीब 20 लाख की संख्या में रहने वाले दाउदी बोहरा समाज को मानने वाले हैं। दाउदी बोहरा समाज का हर बस्ती, हर शहर में एक सांझी रसोई होती है यहां ही सभी परिवारों के लिए रात का खाना बनता है। अमीर हो या गरीब सभी परिवारों का खाना रात को उनके यहां टिफिन में यह समिति पंहुचाती है। अपने समाज के हर व्यक्ति के सुख दुख में दाउदी बोहरा मजबूती से खडा रहता है। इसी कारण समाज का कोई व्यक्ति कभी अपने आपको असहाय नहीं समझता'।
यह बहुत ही सुखद जानकारी भारतीय भाषा आंदोलन के धरने में 14 दिसम्बर को मकर संक्रांति के दिन भोपाल के समीप कस्बे में रहने वाले दाउदी बोहरा समाज के समाजसेवी शाकिर अली जिन्हें हम मोहम्मद सैफी के नाम से जानते है, ने दी। यह सुन कर मुझे लगा कि जैसे मेरा बचपन का 'पूरे गांव/संसार'को एक परिवार की तरह मिल कर खाना नही नहीं एक दूसरे के सुख दुख में हाथ बंटाने का सपना साकार कहीं तो हो गया। दुनिया के सभी समाजों को दाउदी बोहरा समाज से प्रेरणा लेकर एक दूसरे को सहयोग करके देश व समाज को मजबूत बना कर इस दुनिया को स्वर्ग बनाना चाहिए।
सांझा चुल्हे के बारे में बताते हुए सैफी भाई ने बताया कि यह तीन साल से चल रहा है। केवल रविवार की सांयकाल को यह सांझी रसाई का अवकाश होता है। बोहरा समाज के लोग सुबह व दोपहर का खाना ही अपने घरों पर बनाते है। सांयकाल का खाना हर दाउदी बोहरा समाज के घरों में टिफिनों में उनके शहर या बस्ती में चल रहे सांझे चुल्हे से ही बन कर आता है। इसके पीछे यह धारणा है कि समाज का कोई इंसान गरीबी या असहायता के कारण अच्छे खाने से वंचित न हो। इस सांझा चुल्हें को संचालित करने में समाज का हर व्यक्ति अपनी सामथ्र्य से सहयोग करता है।
यही नहीं दाउदी बोहरा समाज का कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे इसका भी सर्वोतम व्यवस्था की गयी है। इसके साथ चिकित्सा के लिए दाउदी बोहरा समाज ने मुम्बई में अत्याधुनिक सैफी चिकित्सालय बनाया हुआ है। इसके साथ वोहरा समाज जो अमेरिका, पश्चिमी देशों, अरब देशों व भारत सहित पूरे विश्व में कुल मिला कर करीब 20 लाख की संख्या में रहते है। उसमें से करीब 15 लाख के करीब भारत में निवास करते है। भारत में सबसे अधिक गुजरात में रहते है। इसके अलावा मुम्बई, मध्य प्रदेश के भोंपाल व इंदोर में भी निवास करते है। दिल्ली सहित देश के अन्य भागों में भी वोहरा समाज के लोग रहते है। हर शहर में या जनसंख्या के हिसाब से हर कस्बे में एक दाउदी बोहरा समाज की समिति होती है वह न केवल रात का सांझा खाना बना कर इनके घरों में हर रोज पंहुचाती है। अपितु हर नये बच्चे का नामांकरण से लेकर शादी व्याह, अन्य सभी सुख दुख के कार्यो में यह समिति महत्वपूर्ण सहयोग करती है। बिना व्याज का कारोबार, मकान आदि के लिए धन भी समाज देता है। मनुष्य मिल कर अपने संसार को कितना हसीन बना सकता है यह बोहरा समाज को देख कर सहज ही कल्पना की जा सकती है। अमीर हो या गरीब सबके लिए बोहरा समाज का एक सा व्यवहार है। दाउदी बोहरा समाज दुनिया भर में नौकरी नहीं अपने व्यवसाय करने पर विश्वास करता है। इसी कारण गुजरात में हीरे, मोती का व्यापार हो या अन्य व्यापार में ही दाउदी बोहरा समाज के लोग लगे होते है। वहीं केवल 5 प्रतिशत से भी कम लोग नौकरी पेशे में होंगे। सबसे सराहनीय है कि बोहरा समाज के लोग अन्य धर्म व समाजों से भी बहुत ही मेलजोल कर रहते है। यह अमन व भाईचारा का पैगाम देने वाला समाज पूरी दुनिया में इस्लाम का उदारवादी व मानवीय मूल्यों से युक्त नये चेहरे को अपने कार्यो व व्यवहार से रोशन करता है। दाउदी बोहरा समाज ने सांझा चुल्हे से यह साबित कर दिया कि इंसान चाहे तो इस दुनिया को जन्नत बना सकता है।