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अब गढ़वाल की बारी....

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अब गढ़वाल की बारी....
14-15 दिसम्बर की बर्फबारी का दंश कुमाऊवासी अभी झेल रहे हैं. लगभग दो दर्जन लोगों ने जान गँवाई. सैकड़ों के हाथ-पांव टूटे. बागेश्वर जैसे नगर में अब जाकर विद्युत् व्यवस्था सुचारु हुई है तो कपकोट के अंदरूनी क्षेत्रों में कब बल्ब जलेंगे, गणित का एकिक नियम लगा लीजिये. मंत्री और मुख्यमंत्री अपने संरक्षण में रह रहे अपराधियों को बचाने और ठेकेदार व माफियाओं को दाल-रोटी मुहैय्या कराने की जुगत में लगे हैं तो अधिकारी मौका ताड़ कर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने में. पटवारी हड़ताल पर हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों की सुध लेने वाला रहा कौन है ?
मौसम विभाग की मानें (वैसे मौसम विभाग ही कौन सा विश्वसनीय है, वहाँ भी वही हरामखोर बैठे हैं) तो अफगानिस्तान के ऊपर विक्षोभ फिर बन गया है जो 23 ता. को गढ़वाल में कुछ करिश्मा कर सकता है. कुमाउं में आते-आते तो शायद उसकी कमर टूट जाये.
....तो अपनी तैय्यारी कर लीजिये और जैसी सलाह पिछले मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा दे गये थे, भजन-कीर्तन शुरू कर दीजिये. सरकार-प्रशासन जब अगोचर हैं तो उनकी ओर देखने का क्या फायदा ?


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