भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ों में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए!
गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनवाने के लिए।
अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागरात तक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है।
यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीय संविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है।
पलाश विश्वास
भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए!
झील के जमे पानी पर घूम रहे हैं सैलानी
नैनीताल (एसएनबी)। कश्मीर की डल झील की तरह ही सरोवरनगरी की सूखातालझील भी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड से पूरी तरह जम गई है। दिलचस्प बात यह है कि बच्चे झील पर जमी बर्फ की मोटी चादर पर हॉकी जैसा खेल खेल रहे हैं। साथ ही सैलानी भी इस पर मजे से घूम रहे हैं। कुछ लोग कुदरत की इस नेमत की शक्ति को मापने के लिए बर्फ पर पांव से जोर के प्रहार कर रहे हैं, मगर बर्फ कहीं से भी चटकती नजर नहीं आ रही है। गौरतलब है कि सामान्यत: सूखाताल झील वर्ष में अधिकांश समय सूखी ही रहती है और यहां पानी नहीं होता है, मगर इस वर्ष बारिश के समय में यह काफी भरी थी और हालिया बर्फवारी से पहले दो दिन हुई बारिश से यह अपने सिरे पर पानी से भरी हुई थी। स्थानीय चंद्रशेखर कार्की ने बताया कि बर्फवारी से पहले झील के उत्तर-पश्चिमीछोर पर काफी पानी था। बहरहाल यह सैलानियों, बच्चों व नगरवासियों के लिए तो आनंद का माध्यम बनी हुई है। इस तरह बीती 14 दिसम्बर को हुई बर्फबारी के चार दिन बाद बर्फ से भरे रहने को नैनी झील के पर्यावरणीय दृष्टिकोण से काफी लाभप्रद माना जा रहा है, क्योंकि यह झील नैनी झील की सर्वाधिक (70%) जलप्रदाता झील है।
बहुत तेजी से हालात वैसे ही बन रहे हैं,जैसे हम हालीवूड की फिल्मों में देखते रहे हैं कि कहीं मनुष्यता का चरणचिन्ह तक नहीं और सारे के सारे यंत्रों ने मनुष्यों की जगह ले ली है।
उन फिल्मों को दोबारा देखें और अपने कर्मफल की नियति समझ लें।
देश की सेहत पर शायद कोई फर्क ही न पड़ता हो कि उत्तराखंड कड़ाके की ठंड की चपेट में है। बद्रीनाथ केदारनाथ औली, आली बुग्याल, पंचाचूली, पिथौरागढ़ की तमाम चोटियों के बाद विश्वप्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल भी मोटी बर्फ की चादर से ढंका हुआ है।
केदार जलप्रलय में बाकी देश के लोग भी हादसे के शिकार न हुए रहते तो किसी को पहाड़ की तरफ देखने की जरुरत भी महसूस नहीं होती और लोग अब तक शोक ताप आत्मसात करते हुए अनंत भोग के मुक्तबाजार में निष्णात हो गये हैं ।
तो पहाड़वालों की जीवननरकयंत्रणा के साजेदार वे बनेंगे ,ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती।लेकिन पहाड़ के अपने लोग ही तो अब देवमंडल के मूर्धन्यमूर्धन्यहैं और पहाड़ों के राज्य भी अलग अलग हो गये।
हमारे अपने सारे लोग मिलियनर बिलियनर हो गये ठैरे दुखवा अब कासे कहूं।
पहाड़ के लोगों को तो अब लखनऊ को दोषी ठहराकर किस्मत का रोना धोना रस्म निभाने का मौका भी नहीं है।
डल झील बन गया है नैनीताल का सूखा ताल और माल रोड पार करने में पांचछह घंटे लग रहे हैं।वहां तापमान माइनस पांच के नीचे तक पहुंच गया तो हिमाचल के लाहौल स्फीति और लद्दाख के हालात बयां ही नहीं किये जा सकते।
नैनीताल में बर्फ पर फिसल जाने से एक आदमी की मौत भी हो गयी।पहलीबार ऐसा सुनने को मिला है।
ऐसे में पहाड़ों में इस वक्त सबसे जरुरी है कोयला और लकड़ी।जंगल में जाना मुश्किल है।खरीदने के लिए लेकिन आधार कार्ड चाहिए।ऐसा फतवा जारी किया गया है।
नाटो का आधार यानी नागरिकता की निजता के हनन के साथ उनकी अमेरिकी निगरानी का बंदोबस्त किसी नाटो देश ने मंजूर नहीं किया है।
भारत सरकार ने आधार योजना शुरु करने से पहले संसद की मंजूरी तक नहीं ली।
इंफोसिस के मुनाफे की कीमत पर लगातार आधार के लिए गैरकानूनी तौर पर करदाताओं के खून पसीने की कमाई का इस्तेमाल हुआ।
नकद सब्सिडी के लिए सुप्रीम कोर्टने इसे अनिवार्य नहीं माना है।
भारत सरकर आंकड़ों में ही राजकाज चलाती है।
आंकड़ों में सेनसेक्स की उछल कूद के साथ विकास गाथा के ढोल नगाड़े बजते रहते हैं।
आंकड़ों में गरीबी उन्मूलन होता है।
अब भारत के सारे नागरिकों को आंकड़ों में तब्दील करने की तैयारी है जबकि दावा है कि गैस की सब्सिडी के लिए साठ करोड़ लोगों के आधार बन गये।
हमारे मोहल्ले के वाशिंदों ने लोकसभा चुनाव से काफी पहले एनपीआर के तहत अपनी उंगलियों की छाप और पुतलियों की तस्वीर भारत सरकार के हवाले कर आये हैं,उन्हें आधार अभी मिला नहीं है।
गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनावाने के लिए।
अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागराततक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है।
यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीयसंविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है।
मुक्त बाजार में सबसे गैर जरुरी हो गयी है,मनुष्यता,भाषा,संस्कृति और सभ्यता।
हम उसी दिशा में अभूतपूर्व बुलेटगति से बढ़ रहै हैं और हमारी आत्मा और देह में जो बुलेट धंसते जा रहे हैं,एनेस्थिसिया का इतना मोहक असर है कि उसका हमें अहसास नहीं है।
पर्यटकों के पास इफरात पैसा है।लेकिन जो हिल स्टेशन नहीं है,उस पहाड़ के न तापमान हमें मालूम हैं और न हालात।
हमने नैनीताल में इतनी बर्फबारी कभी देखी नहीं है।बागेश्वर में तो साठ साल बाद हिमपात हुआ।आजतक के मुताबिक ताजा हालात इस तरह हैंः
ठंड से बचने की जद्दोजहद...
उत्तर भारत के कई इलाकों में बर्फबारी और कोहरे का कहर जारी है. पर्वतीय इलाकों में कई जगहों पर पारा जीरो डिग्री सेल्सियस से नीचे चला गया है, तो मैदानी भागों में कोहरे और शीतलहर का प्रकोप है. उत्तर भारत में जानलेवा ठंड का प्रकोप
पहाड़ों पर बर्फ तो हर साल गिरती है, परेशानी हर साल आती है. लेकिन इस साल सीजन की पहली बर्फबारी में ही रिकॉर्ड टूट गया. बर्फबारी औसत से ज्यादा हो रही है. ऊंचे स्थानों पर पानी पाइपों में ही जम जा रहे हैं. बिजली की तो बात छोड़िए, जिन इलाकों में बर्फबारी हुई है, वहां जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है. रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कते आ रही हैं.
पहाड़ों पर बर्फबारी जारी है. मनाली में करीब 4 फुट बर्फबारी हुई है. पहले जो बर्फबारी सैलानियों का पैसा वसूल कर रही थी, अब वो मुसीबत बन गई है. बर्फबारी से हाइवे पर सैकड़ों गाड़ियां फंसी हैं. रोहतांग पास के करीब बर्फीले तूफान में फंसे करीब 500 सैलानियों को रेस्क्यू टीम ने सुरक्षित निकाल लिया है.
नैनीताल में बर्फ से जानवरों को भी बचाया जा रहा है. कड़ाके की ठंड से बचाने के लिए जानवरों को गरम खुराक दी जा रही है. कोमल पक्षियों के लिए प्रशासन ने बाड़े में परदे भी लगाए हैं. जू परिसर में बर्फ जमा होने की वजह से सैलानियों को भी खासा मजा आ रहा है.
हिमाचल प्रदेश में अभी हाल में हुई बर्फबारी के बाद ठंड का कहर जारी है. हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध पर्यटन नगरी डलहौजी का लक्कड़मंडी गांव पूरी तरह से बर्फ में दफन हो चुका है. इस गांव के निवासी यहां से पलायन कर निचले इलाकों में चले गए हैं. लक्कड़मंडी में छतों पर बर्फ की मोटी चादर देखी जा सकती है. यहां बर्फबारी के बाद सन्नाटा छाया हुआ है. वहीं डलहौजी में सुबह शाम कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. रात को पारा शून्य से नीचे चला जा रहा है, जिससे पानी जम रहा है. अभी हाल में हुए बर्फबारी से कुल्लू मनाली के हालात देख पर्यटक डलहौजी का रुख कर रहे हैं.
डलहौजी में दिन को धूप खिलने से लोग राहत महसूस करते हैं, लेकिन शाम होते ही बाजारों में कड़ाके की ठंड से कर्फ्यू जैसा माहौल देखने को मिलता है.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/cold-weather-continues-in-north-india-1-792146.html
पहाड़ों में जीवनयात्रा कैसे चल पा रही होगी ,हमें इसका कोई अंदाजा कोलकाता में नहीं है।
हमारे सहकर्मी चित्रकार सुमित गुहा नैनीताल में हफ्तेभर से बेटी और पत्नी के साथ होटल में फंसे हुए हैं।नैनतील के अलावा वे भीमताल नौकुचियाताल हो आये हैं लेकिन आगे का रास्ता अब खुल नहीं रहा है ।
नीचे का रास्ता भी बंद है।
वे कार्बेट पार्क जाने की योजना बनाकर गये थे,जहां वे जा नहीं सकते।
उनका मोबाइल बंद है।
इंटरनेट भी बाधित है।
हमें राहत है कि वे हमारे बंगाल होटल के दादा सदानंदगुहा मजुमदार के अभिभावकत्व में हैं और जैसे उनके अभिभावकत्व में नैनीताल मं हमें कभी कोई तकलीफ नहीं हुई,वैसे सुमित और उनके परिवार को नहीं होगी और उनके भरोसे हम कमसकम सुमित और उनके परिवार के लिए निश्चिंत रह सकते हैं।
बाकी पहाड़ का अभिभावक कौन हैं,हम नहीं जानते।
लैंड फोन में उनने जो मुझे ददफ्तर फोन करके नैनीताल का हाल बयां किया,उससे बाकी पहाड़ और तराई की कड़ाके की सर्दी कोलकाता की सर्दी से मापने की कोशिशें कर रहा हूं।
उत्तराखंड राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के पास सड़र पर पड़ी बर्फ पर फिसलने से 40 साल के प्रकाश टम्टा के सिर में चोट लग गयी जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
वह नैनीताल के प्रसिद्ध बोट हाउस क्लब में वेटर थे और घटना के समय अपने काम पर जा रहे थे। उधर, दो दिनों से बारिश बंद होने से प्रदेश को राहत मिली और ज्यादातर जगहों पर मौसम साफ रहा। हालांकि, बर्फबारी के चलते अब भी कुछ मार्ग बंद हैं और उन्हें खोलने की कोशिश की जा रही है।
ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग भैंरवघाटी पास, ऋषिकेश-बदरीनाथ राजमार्ग हनुमानचट्टी मार्ग बंद हैं। इन मुख्य मार्गो के अलावा प्रदेश में कई छोटे-छोटे मार्ग भी बर्फ के कारण बंद हैं।
केदार जलप्रलय तो पर्यटन पर असर न हो इसलिए मौसम चेतावनी कूड़े के ढेर में फेंक देने के बाद इतना प्रलयंकर हो गया और लाशें अब भी लापता हैं,गांव अब भी लापता हैं और घाटियां तबाह हैं।
उस आत्मघाती भूल से हुक्मरान को कोई सबक मिला हो हिमपात के बाद बने हालात उसके सबूत हैं।
अमूमन पहाड़ों में बर्फ देखने के लिए ही सर्दियों में सैलानियों की भीड़ उमड़ती है तो इस खुशमनुमा मौसम में पहाड़वालों की जिंदगी कितनी कठिन बनायी जा सकती है,उसका हर संभव इंतजाम में लगी है सरकार।
यह मोहक एनेस्थेसिया दरअसल हिदुत्व राष्ट्रवाद है जो दरअसल नस्ली वर्चस्ववाद और रंगभेद के सिवाय कुछ नहीं।
बाकी देश के लिए हिमालय सिर्फ तीर्थाटन है या फिर पर्यटन।
ऐसा अब पहाड़ के लोग भी समझने लगे हैं।हिमालय को देवभूमि कहते अघाते नहीं हैं पहाड़ के वाशिंदे जो शायह हिंदुत्व से सबसे ज्यादा लथपथ हैंं और नस्ली वर्चस्व के राजकाज के शिकार हैं हजारों सालों से।
इतना शोषण हुआ है पहाड़ों का कि पहाड़वालों को किसी शोषण का अहसास तक नही हैं।
पूरा हिमालय उत्तुंग हिमाद्रिशिखर भी नहीं है।
पूरा पहाड़ खूबसूरत नैनीझील भी नहीं है।
न पूरा पहाड़ चारधाम हैं।न सिर्फ ग्लेशियरों का बसेरा है हिमालय।
वही हिमालय रोज रोज की आपदाओं से घिरा भूस्खलन,भूकंप,बाढ़ और मानव निर्मित डूब में समाहित हो रहा है आहिस्ते आहिस्ते।
उस तीर्थाटन और पर्यटन से पहाड़ के मनुष्य बेदखल हो रहे हैं आहिस्ते आहिस्ते।
जैसे इंच दर इंच जमीन बेदखल है आहिस्ते आहिस्ते।
रोबोटों का देश बना रहे हैं हिंदू साम्राज्यवाद के ध्वजावाहक अमेरिकापरस्त प्रधानमंत्री।
पहाड़ों में तापमान माइनस पांच से भी नीचे हैं और अभूतपूर्व हिमपात है।
कुमांय़ू गढ़वाल के दूरदराज इलाकों में बर्फबारी आफत बन आयी है और उत्तराखंड पर्यटकों के लिए स्वर्ग बन गया है अनछुए कश्मीर का बिकल्प जैसा कुछ आवाजाही बंद है और जरुरी चीजों की भारी किल्लत है।
तो दूसरी ओर,पिछले दिनों हुई बारिश और बर्पबारी के बाद चल रही तेज शीतलहर की वजह से हिमाचल प्रदेश में सोमवार को जन-जीवन ठहर-सा गया। मनाली में न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे दो डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। राजधानी शिमला में रविवार से अब तक 29.3 सेंटीमीटर बर्पबारी दर्ज की गई है। शिमला रविवार रात सर्वाधिक सर्द रहा, जहां रात्रि का तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। ऊपरी शिमला और कुल्लू तथा मनाली के बीच लगातार दूसरे दिन सोमवार को भी वाहनों की आवाजाही बाधित रही।
शिमला के करीब स्थित कुफरी और नरकंडा जैसे मशहूर पर्यटनस्थलों पर पिछले दो दिनों में अच्छी बर्पबारी हुई है। सोलन जिले में स्थित पर्यटनस्थल कसौली में भी हल्का हिमपात हुआ है। मनाली-लेह राजमार्ग पर स्थित रोहतांग र्दे (13,050फुट) और बारालाचा र्दे (16, 020 फुट) पर भी भारी बर्पबारी देखी गई। मौसम विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि पिछले दो दिनों में किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा जिलों के पहाड़ों में भारी हिमपात देखा गया है। सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि पूरे किन्नौर जिले और शिमला जिले के नरकंडा, जुबाल, कोटखाई, कुमारसैन, कुल्लू, खड़ापत्थर, रोहरु और चोपाल जैसे कस्बों का बाकी राज्य से संर्पक टूट गया है।
उत्तराखंड में हिमालय की उढंची पहाड़ियों पर बर्फवारी होने तथा निचले इलाकों में छिट-पुट बारिश जारी रहने से पूरा प्रदेश भीषण "ठंड से जूझ रहा है और कई जगहों पर जनजीवन भी अस्त-व्यस्त हो गया है।
गढ़वाल हिमालय में बदरीनाथ,केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब, चकराता और औली तथा कुमांउ में मुनस्यारी और धारचूला की चोटियां बर्फ से ढक गयी हैं।
नैनीताल में बर्फबारी की खबर से पर्यटकों ने शहर का रूख करना शुरू कर दिया है और इससे होटल तथा अन्य व्यवसायियों के चेहरे जरुर खिल गये हैं।
उधर, चमोली जिले के उढंचे इलाकों में बर्फबारी होने के कारण कई मुख्य मार्ग बंद हो गये हैं और जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है।
गढ़वाल को कुमांउढ से जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-बागेश्वर मुख्य मार्ग ग्वालदम के पास भारी बर्फबारी होने से बंद हो गया है। कर्णप्रयाग-रानीखेत-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग गैरसैंण के पास बंद है। कई और मार्गों पर भी बर्फ पडने से वे आवागमन के लिये बंद हो गये हैं।
आपका ध्यान इस आधार बला से नागरिकों की हो रही फजीहत की ओर दिलाने के लिए आज के इकानामिक टाइम्स में प्रकाशित यह रपट पेश हैः
Dec 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Fingerprints Aadhaar for Bankers' Heartburn
Sugata Ghosh & Sangita Mehta |
Mumbai |
Banks back PIN-based authentication even as NDA again pushes for biometric verification
Can the poor, illiterate, unbanked masses, unfamiliar with technology and multiple passwords, remember and key in the 4-digit PIN to withdraw money from ATMs and use the debit card that the Modi government wants banks to offer? Isn't it simpler for a customer to give her fingerprint on a biometric reader that's linked to the Aadhaar data base, to prove that she is, indeed, the person she claims to be?
Not really, say many bankers.Dirt and grime on fingers of labourers and farm workers may often block biometric recognition; even when fingerprints are recorded, transmitting the images will require more bandwidth and time; besides, if folks in remote, impoverished African villages can remember the PIN, why can't those in rural India, they counter -arguing `why reinvent the wheel' and complicate a transaction when chip & PIN, a globally accepted technology , is already in place.
This old and simmering standoff, though not so apparent, between banks and the government -with the Reserve Bank of India (RBI) occasionally striking a middle ground -had almost dissipated with the defeat of Congress and exit of Nandan Nilekani as the chairman of Unique Identification Authority of India, the agency that issues the 12digit Aadhaar number.
But the subject has once again resurfaced in the wake of the Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana -the financial inclusion programme that, among other things, envisages issue of debit cards to 75 million new bank accountholders.
The issue cropped up a fortnight ago, at a meeting of Indian Banks' Association (IBA). It was suggested banks will have to gradually change their systems and machines to enable biometric authentication for cards as well as ATM transactions.
आपदाओं से निपटने कि हमारी तैयारी
नैनीताल से हमारे दाज्यू राजीव लोचन शाह ने जो लिखा है,उससे रुह कांप उठती है यह सोचकर कि दूर दराज के लोगों पर क्या बीत रही होगीः
आपदाओं से निपटने कि हमारी तैयारी इतनी है कि हमारे एक मित्र, दयाकृष्ण कांडपाल दो शवों के साथ दो रातों, लगभग 30 घंटों से पनवानौला के पास बर्फ में फँसे हैं। बावजूद इसके कि मेरे फोन करने पर आयुक्त कुमाऊँ ने अल्मोड़ा प्रशासन को झकझोर दिया है। वे शवदाह के लिये जागेश्वर जा रहे थे। उन्हें और उनके साथ के एक दर्जन स्त्री,पुरुष, बच्चों को समीपवर्ती गांव वाले खिला रहे हैं। अल्मोड़ा जनपद के दर्जनों गाँवों में बिजली, पानी की व्यवस्था दुरुस्त होने में हफ़्तों लग जायेंगे।
इधर हमारे मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा चोपड़ा समिति, जिसने गये साल की त्रासदी के लिये जल विद्युत् परियोजनाओं को जिम्मेदार माना है, की सिफारिशों को स्वीकार कर लिये जाने से दुखी हैं। कारण ? इससे उनकी ठेकेदार और माफियाओ कीफ़ौज के मुँह का निवाला छिनता है ? आखिर केदारनाथ जैसी और कितनी त्रासदियां चाहते हैं हरीश रावत ?
हिमाचल के हालात भी बेहतर नहीं
हिमाचल के हालात भी बेहतर नहीं है।मौसम के पहले भारी हिमपात के बीच मशहूर पर्यटन स्थल रोहतांग से मनाली के बीच सैकड़ों पर्यटक फंस गये। दोपहर 12 बजे के करीब शुरू हुई इस बर्फबारी में रोहतांग से नीचे मढ़ी, गुलाबा और कोठी जैसे स्थानों पर यातायात अवरुद्ध हो गया।पर्यटन स्थल कुफरी, फागू और नारकंडा में भारी हिमपात होने के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग-22 पर वाहनों की आवाजाही से बंद हो गई है।
शिमला। हिमाचल प्रदेश में मौसम का मिजाज एक बार फिर बदलने वाला है। मौसम विभाग से जारी पुर्वानुमान के मुताबिक 21 दिसम्बर से प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हिमपात होने की संभावना है। इस बार हिमपात का सिलसिला चार दिन तक जारी रह सकता है।
मौसम विभाग के निदेशक मनमोहन ङ्क्षसह ने आज यहां बताया कि ताजा पश्चिमी विक्षोभ 21 दिसम्बर से सक्रिय हो जाएगा, जिसका असर ऊंचाई वाले इलाकों में देखा जाएगा। उन्होंने कहा कि 21 से 24 दिसम्बर तक मौसम की स्थिति इसी प्रकार रहेगी और दिन के तापमान में गिरावट का क्रम जारी रहेगा। इस बीच जनजातीय क्षेत्र केलंग आज भी प्रदेश में सबसे ठण्डा रहा और यहां न्यूनतम तापमान शुन्य से नीचे 11 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया। जबकि राजधानी शिमला में तापमान छह डिग्री सेल्सियस रहा।
स्मरण रहे कि पांच दिन पूर्व राज्य के पर्वतीय इलाकों में भारी हिमपात हुआ था। किन्नौर, लाहौल स्पिति, कुल्लू और शिमला जिलों में बर्फ से जनजीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया था। जनजातीय क्षेत्रों में अभी भी हालात जस के तस बने हुए हैं और स्थानीय लोगों को मुलभूत समस्याओं से जुझना पड़ रहा है।
दैनिक हिंदुस्तान में 15 दिसंबर को यह रपट आयीः
उत्तराखंड में केदारनाथ, बदरीनाथ और आसपास की पहाड़ियों पर 26 घंटे से लगातार बर्फ पड़ रही है। नैनीताल में बर्फबारी हुई है और मसूरी में इसके आसार हैं। बागेश्वर शहर में 60 साल बाद ऐसी बर्फबारी देखी गई है। जोशीमठ बाजार में 19 साल बाद बर्फ पड़ी है। पिथौरागढ़ शहर और आसपास के इलाके में भी खूब बर्फ पड़ी है। मसूरी के पास धनोल्टी और बुरांसखंडा में बर्फबारी की खबर है। वहीं, गंगोत्री हाईवे बर्फ जमा होने के कारण बंद कर दिया गया है।
गढ़वाल हिमालय में बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब, चकराता और औली तथा कुमांउ में मुनस्यारी और धारचूला की चोटियां बर्फ से ढक गयी हैं। प्रसिद्ध पर्यटक नगरी नैनीताल में भी कल देर शाम से शुरू बर्फबारी आज सुबह तक जारी रहने की खबर है। निचले इलाकों में ज्यादातर स्थानों पर आज भी धूप-छांव का खेल चलता रहा, जबकि कुछ स्थानों पर छिटपुट बारिश जारी रही। इससे ठिठुरन बढ़ गयी।
नैनीताल में बर्फबारी की खबर से पर्यटकों ने शहर का रुख करना शुरू कर दिया है और इससे होटल तथा अन्य व्यवसायियों के चेहरे खिल गये हैं। उधर, चमोली जिले के उंचे इलाकों में बर्फबारी होने के कारण कई मुख्य मार्ग बंद हो गये हैं और जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। गढ़वाल को कुमांउ से जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-बागेश्वर मुख्य मार्ग ग्वालदम के पास भारी बर्फबारी होने से बंद हो गया है। कर्णप्रयाग-रानीखेत-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग गैरसैंण के पास बंद है। कई और मार्गों पर भी बर्फ पडने से वे आवागमन के लिये बंद हो गये हैं।
इस बीच, यहां मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने बताया कि पिछले दो दिन से खराब मौसम में कल से सुधार आने और धूप निकलने की उम्मीद है।
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56 Countries Indian Citizens Can Travel To Without Visa - Only Indian Passport is Needed
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पहाड़ो के हालात बयां करती यह रपट भी देखें सौजन्य से चंद्रशेखर उप्रेतीः
बल हर दा,
आप ना देख पा रहे हो, ना दिखा पा रहे हो ?
चौदह वर्ष का उत्तराखंड फिलवक्त संक्रमण काल से गुजर रहा है । उधार और इमदाद के बल पर कायम हुआ सिस्टम समय की पटरी पर उल्टा भाग रहा है । कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार तक और अपराध से लेकर चो तरफा अराजकता तक, हर खाने नकारात्मकता का ग्राफ बढ़ रहा है ।
सरकार की धमक बीजापुर गेस्ट हाउस की चारदीवारी से टकराकर वापस लौट रही है । मुख्यमंत्री व्यवस्था में सुधार लायें वरना जिम्मेदारी तय कर उन्हें देख लेने की धमकी देते हैं लेकिन कारिन्दो पर इस धमकी का कोई असर नहीं होता है । मुख्यमंत्री न तो अव्यवस्था के पीछे का सच देख पा रहे हैं और न ही इसके लिए जिम्मेदार लोगों को उनकी हैसियत ही बता पा रहे हैं । नतीजा दिन-प्रतिदिन बिगड़ते हालात के रूप में सबके सामने हैं । फरवरी 2015 का पहला दिन अपने साथ मुख्यमंत्री हरीश रावत की ताजपोशी का सलाना जश्न लेकर आएगा ।
2 फरवरी-2014 का यह वही दिन है, जब सूबे के मठाधीश बने हाकिमों के दिल की धड़कनें अचानक बढ़ गई थीं । हरीश रावत के नाम का खौफ इस कदर फैला था कि अफसर आधी रात्रि तक उनके बुलावे का इंतजार करते रहते थे । कई अफसरों ने नींद न आने की गोलियां खानी शुरू कर दी थीं । परंतु यह वक्त जल्द बदल गया, मुख्यमंत्री बीमार होकर अस्पताल पहुंच गए और अफसरों ने सिस्टम को फिर से अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया । मुख्यमंत्री सिस्टम को क्या चलाते सिस्टम ने ही उन्हें चलाना शुरू कर दिया । पिछले कुछ दिनों के हालात इस बात के गवाह हैं कि सीएम या तो उदासीन बनते जा रहे हैं या शासन के मुखिया के रूप में उनकी हनक और धमक खत्म हो गई है । उनकी घोषणाओं पर जरा सा भी अमल नहीं हो रहा है । ज्यादा नाराज होने पर वह जिम्मेदार अफसरों को देख लेने की चेतावनी भी दे रहे हैं । पर उनकी चेतावनी नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है ।
बहुत दिन नहीं हुए जब बीते 26 नवंबर को हल्द्वानी में सीएम के काफिले पर हमला हुआ था । इस हमले से गुस्साए सीएम ने तत्काल गृह और पुलिस विभाग से जुड़े अफसरों की मीटिंग कॉल की । इस मीटिंग में उन्होंने बिगड़ते हालात पर चिंता जताते हुए इसे अविलंब सही करने को कहा । इससे पहले कि सीएम की नाराजगी का ठीकरा किसी पुलिस अफसर पर फूटता उनके सामने उन सभी पुलिस प्रस्तावों की सूची रख दी गई जो वर्षों से शासन में लंबित हैं । जायज प्रस्तावों की फेहरिश्त देख सीएम संयमित हुए और शासन को तत्काल आदेशित किया कि सात दिन के अंदर ये सभी मांगें पूरी हो जानी चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि यदि उनके आदेश पर अमल नहीं हुआ तो इसके लिए संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी । सात दिन तो छोड़ो सीएम के आदेश के लगभग बीस दिन हो गए । प्रस्तावों पर अमल तो दूर, उन पर अभी तक विचार भी नहीं हुआ । जो अफसर जहां थे वहीं हैं ।
मुख्यमंत्री भी आदेश देकर शायद इस प्रकरण को भूल गए । भूले भी क्यों नहीं ? उनकी प्राथमिकता भी तो बदल गई है । जब से हेलीकॉप्टर हादसे में घायल हुए तब से उन्होंने सचिवालय जाना छोड़ दिया है, उनके कुछ खास बगलगीर कारिंदे और गिनती के अफसर उन्हें जो दिखाते हैं, जैसा दिखाते हैं वे वैसा ही देखते हैं । मुख्यमंत्री का लगभग पूरा वक्त मेले और रैले में बीत रहा है । प्रदेश में बढ़ता भ्रष्टाचार, बिगड़ता माहौल, कहूँ और फैलती अराजकता और बदतर से बदतर होती कानून व्यवस्था पर नजर डालने का समय उनके पास नहीं है !
असल हालात यह है कि जो काम सरकार को करना चाहिए वह राज्य का उच्च न्यायालय कर रहा है । सरकार और उसके मंत्रियों को फूल माला पहनने या शाल ओढ़कर सम्मानित होने से ही फुर्सत नहीं । जमीनी राजनीति से ढेरों ठोकरें खा कर वर्षों बाद राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे जिस व्यक्ति की छवि डिलीवरी मैन की होनी चाहिए वह केवल मात्र पोस्टर ब्वाय बनकर रह गया है ।
बल भैजी, ऐसे में मुख्यमंत्री के आदेशों पर अमल कौन करे और क्यों करे ?
साभार : दैनिक जनवाणी
फिर यह रपटभी कि कैसा उत्तराखंड मिला हैः
आत्मदाह नहीं, एकजुटता दिखायें
देश और समाज के किसी चिराग का असमय बुझ जाना भला किसे बुरा नहीं लगेगा। उत्तराखण्ड में छात्र नेताओं को चाहिए कि अपनी मांगों को लेकर आत्मदाह के रास्ते पर न चलें। इसके बजाए राज्य में छात्र आंदोलन के स्वर्णिम अतीत पर गौर करें तो बेहतर होगा।
रामनगर में पिछले दिनों छात्र नेता रोहित पांडे ने आत्मदाह कर जीवन लीला समाप्त कर डाली। अब देहरादून में छात्र नेता मोहन भंडारी आत्मदाह के मकसद से पेट्रोल लेकर एक मोबाइल टाॅवर पर चढ़ गए। अपनी मांगों को लेकर किसी भी छात्र नेता का आक्रोश व्यक्त करना जायज है, लेकिन इसके लिए आत्मदाह का तरीका अपनाना बेहद चिंताजनक है। इसके दुष्परिणाम न सिर्फ आत्मदाह करने वाले छात्र नेता के परिजनों बल्कि पूरे समाज को झेलने पड़ते हैं। देश के किसी चिराग का समाज को रोशनी दिए बिना ही असमय बुझ जाना भला किसे अच्छा लगेगा? अतीत में झांककर देखें तो कुछ साल पहले छात्र नेता गंभीर सिंह कठैत एवं उससे पहले निर्मल पंडित की भी आत्मदाह से मौत हो गई थी। इसका नुकसान उनके परिजनों के साथ ही पूरे समाज को हुआ।
सन् 1990 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंडल कमीशन के विरोध में छात्र नेता राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा दी थी। गोस्वामी तत्काल इलाज मिलने के कारण उस वक्त बचा तो लिए गए, वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुन लिए गए, लेकिन बाद के दिनों में उनको क्या-क्या तकलीफें झेलनी पड़ी होंगी यह उनके परिजन ही बता सकते हैं। फिर भी समाज के लोग इतना तो अंदाजा लगा ही सकते हैं कि जो छात्र नेता कभी हजारों छात्र-छात्राओं के साथ ही देश के लाखोें लोगों की नजरों में हीरो हुआ करता था, वह बाद के दिनों में कहीं सार्वजनिक जीवन में क्यों नहीं दिखाई दिया। हालांकि गोस्वामी ने गृहस्थी बसाई और उनके दो बच्चे भी हैं, लेकिन खुद को आग के हवाले कर देने से उनका शरीर इतना कमजोर पड़ गया कि वह सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए। सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए इससे अधिक पीड़ादायक त्रासदी दूसरी कोई नहीं हो सकती।
उत्तराखण्ड में छात्र नेताओं के आत्मदाह के रास्ते पर चलने का एक कारण यह समझ में आता है कि शासन-प्रशासन शांतिपूर्ण ढंग से आवाज उठाने पर उनकी सुनता नहीं है। दशकों से यहां के छात्र अपनी छोटी-छोटी मांगों को लेकर भूख हड़तालों का सहारा लेते आ रहे हैं। लेकिन दुखद है कि जो लोग खुद कभी छात्र नेता रहे, वह विधायक और मंत्री बन जाने पर भूल जाते हैं कि आखिर राज्य की उच्च शिक्षा के प्रति उनका भी कोई दायित्व है। सच तो यह है कि उनका ध्यान छात्र हितों के बजाए इस दिशा में लगा रहा कि अपने कौन से चहेते को किस खास जगह पर बिठाया जाए। ऐसे में आज छात्रों के लिए भी सोचने का विषय है कि वे भविष्य के लिए अपने बीच से कैसे नेताओं को आगे बढ़ाएं। राज्य के छात्र नेताओं को सोचना होगा कि आत्मदाह से हटकर वे कौन से तरीके हैं जिनके चलते वे अपनी मांगों को लेकर शासन-प्रशासन को झुका सकें, इसके लिए यदि वे राज्य में छात्र आंदोलन के स्वर्णिम अतीत पर नजर डालें तो बेहतर होगा। वे जान सकेंगे कि यहां की छात्र शक्ति न सिर्फ जनता को अपनी मांगों के पक्ष में सड़कों पर उतारने में सफल रही, बल्कि समय-समय पर उसने जन आंदोलनों को ऊर्जा और नेतृत्व देने का काम भी किया। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में 60 और 70 के दशक में चले शराब विरोधी आंदोलनों में छात्र शक्ति ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 70 के दशक में छात्र शक्ति एक ऐसे आंदोलन का सूत्रधार बनी जिसके चलते गढ़वाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए। राज्य में उच्च शिक्षा के द्वार खुले। जनसमस्याओं को लेकर चले तमाम छोटे-बड़े आंदोलनों में भी छात्र अग्रिम मोर्चे पर खड़े रहे। 80 के दशक में टिहरी जिले में एक कर्मचारी चिरंजी लाल जोशी की हत्या हुई तो स्वामी राम तीर्थ संघटक महाविद्यालय के छात्रों ने जिले के कई छोटे-बड़े स्कूलों तक को आंदोलन में उतार दिया था। छात्रों का आरोप था कि हत्या में बांध निर्माण में जुटी एक निजी कंपनी के गुर्गों का हाथ है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में भी छात्र शक्ति की ऐतिहासिक भूमिका रही।
आज राज्य में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक हर जगह बदहाली है। ऐसे में सोचने का विषय है कि यहां की छात्र शक्ति अतीत की तरह कोई बड़ा आंदोलन क्यों नहीं खड़ा कर पा रही है? जहां तक मैं समझता हूं इसका कारण यह है कि आज मूल विषयों पर छात्रशक्ति एकजुट नहीं हो पाती। वह राजनीतिक पार्टियों के दलदल में उलझी हुई है। छात्र नेता चाहे किसी पार्टी के विचार से जुड़े रहें, लेकिन जहां पर छात्र हित या सामाजिक प्रतिबद्धता की बात आती है, वहां उन्हें एकजुट होकर अपनी एकता का प्रदर्शन करना चाहिए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऐतिहासिक आंदोलन की सफलता का राज भी यही था। (दि संडे पोस्ट, अंक 27 दिसंबर 2014)