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Mamata censors Press!Trying to bulldoze the Press!

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Mamata censors Press!
Mamata told  press in New Delhi as well as in in Kolkata, "BJP is trying to bulldoze the democratic institution. Mitra's arrest is illegal and ... West Bengal chief minister and Trinamool supremo Mamata Banerjee says BJP is behind Madan Mitra's arrest. The fallout of the arrest ... No one had any inkling of the dramatic developments in store when Mitra got out of his car, draped in a shawl, and walked into CBI's Salt Lake CGO Complex office in Kolkata at 10.55am — a time marked "auspicious" by his astrologer.
In fact it is she,the head of Maa Maati Manush government incarnated after the market forced Parivartan istrying her best to bulldoze the Press in Bengal.
In Bengal,the Press is vertically divided in accordance to party lines ,worst in India.
Iconic media persons have everything to enjoy but the common media persons have to live with in a situation as hand to mouth.
Only Bengal has no Press Colony no where.
Only Calcuta press club is closed for other media persons other than the reporters.
Since the press is divided ,every ruler may play with the Press in Bengal and Mamata is doing it as she pleases.
Palash Biswas



Mamata censors Press!Trying to bulldoze the Press!

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Mamata censors Press!
Mamata told  press in New Delhi as well as in in Kolkata, "BJP is trying to bulldoze the democratic institution. Mitra's arrest is illegal and ... West Bengal chief minister and Trinamool supremo Mamata Banerjee says BJP is behind Madan Mitra's arrest. The fallout of the arrest ... No one had any inkling of the dramatic developments in store when Mitra got out of his car, draped in a shawl, and walked into CBI's Salt Lake CGO Complex office in Kolkata at 10.55am — a time marked "auspicious" by his astrologer.
In fact it is she,the head of Maa Maati Manush government incarnated after the market forced Parivartan istrying her best to bulldoze the Press in Bengal.
In Bengal,the Press is vertically divided in accordance to party lines ,worst in India.
Iconic media persons have everything to enjoy but the common media persons have to live with in a situation as hand to mouth.
Only Bengal has no Press Colony no where.
Only Calcuta press club is closed for other media persons other than the reporters.
Since the press is divided ,every ruler may play with the Press in Bengal and Mamata is doing it as she pleases.
Palash Biswas



Elephants endangered by Humanity

Saradindu Uddipan:জেহাদের ভীত নাড়িয়ে দিয়েছে মালালার দীপ্ত আভাঃ

Next: भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ों में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए! गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनवाने के लिए। अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागरात तक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है। यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीय संविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है। पलाश विश्वास
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জেহাদের ভীত নাড়িয়ে দিয়েছে মালালার দীপ্ত আভাঃ
পেশোয়ারের সৈনিক স্কুলে ঢুকে নির্বিচারে গুলি করে নিস্পাপ শিশুদের হত্যা করার পর তেহরিক–ই-তালিবান মুখে যা খুশি স্বীকার করুক না কেন আসলে তারা যে মালালার উদাত্ত আহ্বানে এবং সামাজিক পুনর্গঠনের কর্মসূচীতে ভয় পেয়ে গেছে তার নানা আভাস পাওয়া যাচ্ছে। গত ১০ই সেপ্টেম্বর নোবেল পুরস্কার ভাষণে মালালা উদাত্ত কন্ঠে ঘোষণা করেছিল, 
"প্রিয় বোন এবং ভাইয়েরা... কেন আমারা সেই দেশগুলিকে শক্তিশালী বলি যারা যুদ্ধে বলশালী কিন্তু শান্তি প্রতিষ্ঠায় দুর্বল? যে হাতে বন্দুক তুলে দেওয়া এত সহজ সেই হাতে বই তুলে দেওয়া এত কঠিন কেন? 
আমরা এখন আধুনিক যুগে বাস করছি এবং আমরা বিশ্বাস করি যে কোন কিছুই অসম্ভব নয়। আমরা ৪৫ বছর আগে চাঁদে পৌঁছে গেছি এবং তাড়াতাড়িই মঙ্গলের মাটি স্পর্শ করতে পারব। তারপর এই ২১ শতকে অবশ্যই আমরা প্রত্যেক শিশুকে উৎকর্ষ মূলক শিক্ষা দিতে সক্ষম হব। 
প্রিয় বোন এবং ভাইয়েরা, সহকর্মী শিশুরা, আমাদের কাজ করতে হবে...ওপেক্ষা করলে চলবে না। শুধুমাত্র রাজনীতিবিদ বা আন্তর্জাতিক নেতৃবৃন্দ নয়, আমাদের সবাইকে অংশগ্রহণ করতে হবে। আমি, তুমি আমরা, এটাই আমাদের কর্তব্য। 
আমরা যেন সেই প্রথম প্রজন্ম হোই যারা শেষ শূন্য শ্রেণিকক্ষ, নষ্ট শৈশব এবং সম্ভাবনার জঞ্জাল দেখার সিদ্ধান্ত নিই। এটা যেন শেষের দিন হয় যখন একটি মেয়ে একটি ছেলে খারখানার ভিতরে তার শৈশব অতিবাহিত করে। এটা যেন শেষের দিন হয় যখন একটি মেয়ে বাল্যবিবাহের জন্য বাধ্য হয়। এটা যেন শেষের দিন হয় যখন একটি শিশু যুদ্ধে প্রাণ হারায়। এটা যেন শেষের দিন হয় যেন আমরা একটি শিশুকে বিদ্যালয়ের বাইরে দেখি। এই পরিস্থিতি যেন আমাদের সাথে সাথেই শেষ হয়। এই শেষের শুরু হোক... এক সাথে...আজ...এখানেই...এখনি। এই শেষ লগ্নের এখনই শুরু হোক"। Nobel Lecture by Malala Yousafzai, Oslo, 10 December 2014. 
এর ঠিক কদিন পরেই গত ১৬ই ডিসেম্বর সংঘটিত হয় এই নারকীয় হত্যালীলা। পাকিস্তানে সদ্য গজিয়ে ওঠা সন্ত্রাসবাদী দল তেহরিক–ই-তালিবান স্বীকার করে যে, পাকিস্তানী সৈনিকদের শিক্ষা দিতে এই নিরপরাধ ১৩২ জন শিশু, ১০ জন শিক্ষক এবং ৩জন পাকিস্তানী সেনা সহ ১৪৫ জন মানুষের রক্ত স্নানের মাধ্যমে তারা ইসলামের পবিত্রতা রক্ষা করেছে। একই সঙ্গে পালন করেছে জেহাদী ধর্ম। পৈশাচিক হত্যার দায় এভাবেই স্বীকার করে নিয়ে উল্লাস প্রকাশ করেছে তেহরিক –ই-তালিবান এর সর্বেসর্বা 'ফয়জল হায়াত'ওরফে 'মোল্লা ফয়জুল্লা'বা 'রেডিও মোল্লা'।
এখানে বলে রাখি যে, এই 'মোল্লা ফয়জুল্লা'বা 'রেডিও মোল্লা'গত ২০১২ সালে মালালাকে হত্যা করার জন্য শরিয়তি ফরমান জারি করেছিল। মালালা গুলি বিদ্ধ হলে সারা দুনিয়া জুড়ে শুরু হয়েছিল প্রার্থনা। মোমবাতির পবিত্র আলোকে মিলিত হয়েছি সারা বিশ্ব। একটি অন্বেষী প্রাণের করুণ আকুতি মানব মিলনের এক মহাক্ষেত্র প্রস্তুত করেছিল সেদিন। মহামানবের অনুভূতি, অবধ্য প্রাণশক্তি, অদম্য সাহসিকতা নিয়ে মালালা বেঁচে ওঠে। মোল্লাতান্ত্রিক কালাকানুন, আইএসআইএস এর ঘোষিত "লাভ জেহাদের"রক্তচক্ষু উপেক্ষা করেই চালিয়ে যেতে থাকে তার প্রগতিশীল কর্মধারা। বিদগ্ধ মনন ও দীপ্ত আভাতেই নোবেল পুরস্কারের তালিকায় স্থান করে নেয় মালালা। নোবেল পুরস্কারের সমস্ত অর্থ মালালা ফাউন্ডেশন দান করে তার মাতৃভূমি পাকিস্তানেই শিক্ষাকেন্দ্র গড়ে তোলার সংকল্প গ্রহণ করে। অশিক্ষা, শিশুশ্রম, অন্ধবিশ্বাস, বাল্যবিবাহ, যুদ্ধোন্মাদনার বিরুদ্ধে নিরন্তর কাজ করে বিশ্বের সমস্ত শিশুকে তাদের কাঙ্ক্ষিত মার্গে পৌঁছে দেবার মহান ব্রত ধ্বনিত হয় তার কণ্ঠে। 
সম্ভবত এখানেই রেডিও মোল্লাদের বিপদ। তারা মোল্লাপন্থী, গোড়া, সুড়ঙ্গের জীব। 
আধুনিক বিজ্ঞান, দর্শন, ইতিহাস ও প্রগতি তাদের নীতির পরিপন্থী। তারা বিশ্বাস করে বাল্য বিবাহে। বহু বিবাহের মাধ্যমে নেকী বা পুণ্য অর্জন করা যায় বলে তারা মনে করে। তারা মনে করে যে নারীর চোখ, ঠোট, চিবুক পরপুরুষকে কামনার আগুনে দগ্ধ করতে পারে। তাই গোটা নারী শরীরকে বোরখার অন্তরালে লুকিয়ে রাখাই তাদের ফরমান। নারী স্বাধীনতা, নারী শিক্ষা এবং নারীর স্বশক্তিকরণ তাদের কাছে অবান্তর। বরং এগুলিকে গুনাহ বলে মনে করে এবং এই গুনাহগারদের কাফের হিসেবে হত্যা করতে পারলেই তাদের জান্নাত প্রাপ্তি নিশ্চিত হয়। 
কিন্তু মালালার অদম্য কর্মকাণ্ডে প্রমাদ গুনতে শুরু করেছে এই সুড়ঙ্গ জীবীরা। জনপুঞ্জের বিপুল সমর্থন পাচ্ছে মালালা। আর সেই কারণেই ধর্ম যুদ্ধ, জেহাদ বা লাভ জেহাদের ভিত ধ্বসে পড়তে শুরু করেছে। তাই যে শিশুদের নিয়ে মালালা এক কাঙ্ক্ষিত স্বপ্নের দেশে পাড়ি জমাতে চায় সেই শিশুদেরই টার্গেট করে ঝাঁপিয়ে পড়েছে জল্লাদেরা। সংঘটিত করেছে এই পৈশাচিক শিশুমেধ। 
অত্যন্ত মর্মবেদনার সাথে জানাচ্ছি যে, এই যদি জেহাদ বা ধর্মযুদ্ধের নমুনা হয়, নিরপরাধ শিশুদের হত্যা করার মধ্য দিয়ে যদি সেই ধর্মের বিজয় উল্লাস ঘোষিত হয় তবে নিঃসন্দেহে এটা শয়তানের ধর্ম, পিশাচের ধর্ম, নরখাদকদের ধর্ম। আর কোন ফরমান যদি এই হত্যালীলা সংঘটিত করার জন্য উৎসাহ জোগায় নির্দ্বিধায় তা শয়তানী ফরমান। কোন ভাবেই এই পথ ইসলাম বা শান্তি প্রতিষ্ঠার পথ হতে পারেনা, কোন ভাবেই এই কদর্যত পন্থায় বিশ্বভ্রাতৃত্ব প্রতিষ্ঠা সম্ভব নয়। মালালা এই মর্মান্তিক ঘটনার জন্য নিন্দা প্রকাশ করেছে। আমরাও এই বর্বরতার বিরুদ্ধে ধিক্কার জানাই।

জেহাদের ভীত নাড়িয়ে দিয়েছে মালালার দীপ্ত আভাঃ  পেশোয়ারের সৈনিক স্কুলে ঢুকে নির্বিচারে গুলি করে নিস্পাপ শিশুদের হত্যা করার পর তেহরিক–ই-তালিবান মুখে যা খুশি স্বীকার করুক না কেন আসলে তারা যে মালালার উদাত্ত আহ্বানে এবং সামাজিক পুনর্গঠনের কর্মসূচীতে ভয় পেয়ে গেছে তার নানা আভাস পাওয়া যাচ্ছে। গত ১০ই সেপ্টেম্বর নোবেল পুরস্কার ভাষণে মালালা উদাত্ত কন্ঠে ঘোষণা করেছিল,
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भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ों में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए! गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनवाने के लिए। अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागरात तक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है। यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीय संविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है। पलाश विश्वास

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भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ों में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए!

गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनवाने के लिए।


अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागरात तक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है।


यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीय संविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है।

पलाश विश्वास

भारी हिमपात मध्ये रोबोट देश के पहाड़ में कोयला और लकड़ी के लिए भी आधार चाहिए!


झील के जमे पानी पर घूम रहे हैं सैलानी

नैनीताल (एसएनबी)। कश्मीर की डल झील की तरह ही सरोवरनगरी की सूखातालझील भी बर्फबारी और कड़ाके की ठंड से पूरी तरह जम गई है। दिलचस्प बात यह है कि बच्चे झील पर जमी बर्फ की मोटी चादर पर हॉकी जैसा खेल खेल रहे हैं। साथ ही सैलानी भी इस पर मजे से घूम रहे हैं। कुछ लोग कुदरत की इस नेमत की शक्ति को मापने के लिए बर्फ पर पांव से जोर के प्रहार कर रहे हैं, मगर बर्फ कहीं से भी चटकती नजर नहीं आ रही है। गौरतलब है कि सामान्यत: सूखाताल झील वर्ष में अधिकांश समय सूखी ही रहती है और यहां पानी नहीं होता है, मगर इस वर्ष बारिश के समय में यह काफी भरी थी और हालिया बर्फवारी से पहले दो दिन हुई बारिश से यह अपने सिरे पर पानी से भरी हुई थी। स्थानीय चंद्रशेखर कार्की ने बताया कि बर्फवारी से पहले झील के उत्तर-पश्चिमीछोर पर काफी पानी था। बहरहाल यह सैलानियों, बच्चों व नगरवासियों के लिए तो आनंद का माध्यम बनी हुई है। इस तरह बीती 14 दिसम्बर को हुई बर्फबारी के चार दिन बाद बर्फ से भरे रहने को नैनी झील के पर्यावरणीय दृष्टिकोण से काफी लाभप्रद माना जा रहा है, क्योंकि यह झील नैनी झील की सर्वाधिक (70%) जलप्रदाता झील है।


बहुत तेजी से हालात वैसे ही बन रहे हैं,जैसे हम हालीवूड की फिल्मों में देखते रहे हैं कि कहीं मनुष्यता का चरणचिन्ह तक नहीं और सारे के सारे यंत्रों ने मनुष्यों की जगह ले ली है।


उन फिल्मों को दोबारा देखें और अपने कर्मफल की नियति समझ लें।


देश की सेहत पर शायद कोई फर्क ही न पड़ता हो कि उत्तराखंड कड़ाके की ठंड की चपेट में है। बद्रीनाथ केदारनाथ औली, आली बुग्याल, पंचाचूली, पिथौरागढ़ की तमाम चोटियों के बाद विश्‍वप्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल भी मोटी बर्फ की चादर से ढंका हुआ है।


केदार जलप्रलय में बाकी देश के लोग भी हादसे के शिकार न हुए रहते तो किसी को पहाड़ की तरफ देखने की जरुरत भी महसूस नहीं होती और लोग अब तक शोक ताप आत्मसात करते हुए अनंत भोग के मुक्तबाजार में निष्णात हो गये हैं ।


तो पहाड़वालों की जीवननरकयंत्रणा के साजेदार वे बनेंगे ,ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती।लेकिन पहाड़ के अपने लोग ही तो अब देवमंडल के मूर्धन्यमूर्धन्यहैं और पहाड़ों के राज्य भी अलग अलग हो गये।


हमारे अपने सारे लोग मिलियनर बिलियनर हो गये ठैरे दुखवा अब कासे कहूं।


पहाड़ के लोगों को तो अब लखनऊ को दोषी ठहराकर किस्मत का रोना धोना रस्म निभाने का मौका भी नहीं है।


डल झील बन गया है नैनीताल का सूखा ताल और माल रोड पार करने में पांचछह घंटे लग रहे हैं।वहां तापमान माइनस पांच के नीचे तक पहुंच गया तो हिमाचल के लाहौल स्फीति और लद्दाख के हालात बयां ही नहीं किये जा सकते।


नैनीताल में बर्फ पर फिसल जाने से एक आदमी की मौत भी हो गयी।पहलीबार ऐसा सुनने को मिला है।


ऐसे में पहाड़ों में इस वक्त सबसे जरुरी है कोयला और लकड़ी।जंगल में जाना मुश्किल है।खरीदने के लिए लेकिन आधार कार्ड चाहिए।ऐसा फतवा जारी किया गया है।


नाटो का आधार यानी नागरिकता की निजता के हनन के साथ उनकी अमेरिकी निगरानी का बंदोबस्त किसी नाटो देश ने मंजूर नहीं किया है।


भारत सरकार ने आधार योजना शुरु करने से पहले संसद की मंजूरी तक नहीं ली।


इंफोसिस के मुनाफे की कीमत पर लगातार आधार के लिए गैरकानूनी तौर पर करदाताओं के खून पसीने की कमाई का इस्तेमाल हुआ।


नकद सब्सिडी के लिए सुप्रीम कोर्टने इसे अनिवार्य नहीं माना है।


भारत सरकर आंकड़ों में ही राजकाज चलाती है।


आंकड़ों में सेनसेक्स की उछल कूद के साथ विकास गाथा के ढोल नगाड़े बजते रहते हैं।


आंकड़ों में गरीबी उन्मूलन होता है।


अब भारत के सारे नागरिकों को आंकड़ों में तब्दील करने की तैयारी है जबकि दावा है कि गैस की सब्सिडी के लिए साठ करोड़ लोगों के आधार बन गये।


हमारे मोहल्ले के वाशिंदों ने लोकसभा चुनाव से काफी पहले एनपीआर के तहत अपनी उंगलियों की छाप और पुतलियों की तस्वीर भारत सरकार के हवाले कर आये हैं,उन्हें आधार अभी मिला नहीं है।


गैरकानूनी असंवैधानिक आधार नाटो योजना को अमेरिकापरस्त हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालर हर जरुरी सेवा और वेतन पगार मजदूरी के साथ नत्थी करके मजबूर कर रहे हैं आधार कार्ड बनावाने के लिए।


अब वैवाहिक विज्ञापनों से लेकर सुहागराततक और शायद हगने मूतने तक के लिए आधार अनिवार्य बनने चला है।


यह सुप्रीम कोर्ट और भारतीयसंविधान की अवमानना तो है ही,नागरिक मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध भी है।


मुक्त बाजार में सबसे गैर जरुरी हो गयी है,मनुष्यता,भाषा,संस्कृति और सभ्यता।


हम उसी दिशा में अभूतपूर्व बुलेटगति से बढ़ रहै हैं और हमारी आत्मा और देह में जो बुलेट धंसते जा रहे हैं,एनेस्थिसिया का इतना मोहक असर है कि उसका हमें अहसास नहीं है।


पर्यटकों के पास इफरात पैसा है।लेकिन जो हिल स्टेशन नहीं है,उस पहाड़ के न तापमान हमें मालूम हैं और न हालात।


हमने नैनीताल में इतनी बर्फबारी कभी देखी नहीं है।बागेश्वर में तो साठ साल बाद हिमपात हुआ।आजतक के मुताबिक ताजा हालात इस तरह हैंः

ठंड से बचने की जद्दोजहद...

ठंड से बचने की जद्दोजहद...




उत्तर भारत के कई इलाकों में बर्फबारी और कोहरे का कहर जारी है. पर्वतीय इलाकों में कई जगहों पर पारा जीरो डिग्री सेल्स‍ियस से नीचे चला गया है, तो मैदानी भागों में कोहरे और शीतलहर का प्रकोप है. उत्तर भारत में जानलेवा ठंड का प्रकोप

पहाड़ों पर बर्फ तो हर साल गिरती है, परेशानी हर साल आती है. लेकिन इस साल सीजन की पहली बर्फबारी में ही रिकॉर्ड टूट गया. बर्फबारी औसत से ज्यादा हो रही है. ऊंचे स्थानों पर पानी पाइपों में ही जम जा रहे हैं. बिजली की तो बात छोड़िए, जिन इलाकों में बर्फबारी हुई है, वहां जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है. रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कते आ रही हैं.

पहाड़ों पर बर्फबारी जारी है. मनाली में करीब 4 फुट बर्फबारी हुई है. पहले जो बर्फबारी सैलानियों का पैसा वसूल कर रही थी, अब वो मुसीबत बन गई है. बर्फबारी से हाइवे पर सैकड़ों गाड़ियां फंसी हैं. रोहतांग पास के करीब बर्फीले तूफान में फंसे करीब 500 सैलानियों को रेस्क्यू टीम ने सुरक्षित निकाल लिया है.


नैनीताल में बर्फ से जानवरों को भी बचाया जा रहा है. कड़ाके की ठंड से बचाने के लिए जानवरों को गरम खुराक दी जा रही है. कोमल पक्षियों के लिए प्रशासन ने बाड़े में परदे भी लगाए हैं. जू परिसर में बर्फ जमा होने की वजह से सैलानियों को भी खासा मजा आ रहा है.

हिमाचल प्रदेश में अभी हाल में हुई बर्फबारी के बाद ठंड का कहर जारी है. हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध पर्यटन नगरी डलहौजी का लक्कड़मंडी गांव पूरी तरह से बर्फ में दफन हो चुका है. इस गांव के निवासी यहां से पलायन कर निचले इलाकों में चले गए हैं. लक्कड़मंडी में छतों पर बर्फ की मोटी चादर देखी जा सकती है. यहां बर्फबारी के बाद सन्नाटा छाया हुआ है. वहीं डलहौजी में सुबह शाम कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. रात को पारा शून्य से नीचे चला जा रहा है, जिससे पानी जम रहा है. अभी हाल में हुए बर्फबारी से कुल्लू मनाली के हालात देख पर्यटक डलहौजी का रुख कर रहे हैं.

डलहौजी में दिन को धूप खिलने से लोग राहत महसूस करते हैं, लेकिन शाम होते ही बाजारों में कड़ाके की ठंड से कर्फ्यू जैसा माहौल देखने को मिलता है.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story/cold-weather-continues-in-north-india-1-792146.html




पहाड़ों में जीवनयात्रा कैसे चल पा रही होगी ,हमें इसका कोई अंदाजा कोलकाता में नहीं है।


हमारे सहकर्मी चित्रकार सुमित गुहा नैनीताल में हफ्तेभर से बेटी और पत्नी के साथ होटल में फंसे हुए हैं।नैनतील के अलावा वे भीमताल नौकुचियाताल हो आये हैं लेकिन आगे का रास्ता अब खुल नहीं रहा है ।


नीचे का रास्ता भी बंद है।


वे कार्बेट पार्क जाने की योजना बनाकर गये थे,जहां वे जा नहीं सकते।


उनका मोबाइल बंद है।


इंटरनेट भी बाधित है।

हमें राहत है कि वे हमारे बंगाल होटल के दादा सदानंदगुहा मजुमदार के अभिभावकत्व में हैं और जैसे उनके अभिभावकत्व में नैनीताल मं हमें कभी कोई तकलीफ नहीं हुई,वैसे सुमित और उनके परिवार को नहीं होगी और उनके भरोसे हम कमसकम सुमित और उनके परिवार के लिए निश्चिंत रह सकते हैं।


बाकी पहाड़ का अभिभावक कौन हैं,हम नहीं जानते।


लैंड फोन में उनने जो मुझे ददफ्तर फोन करके नैनीताल का हाल बयां किया,उससे बाकी पहाड़ और तराई की कड़ाके की सर्दी कोलकाता की सर्दी से मापने की कोशिशें कर रहा हूं।


उत्तराखंड राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के पास सड़र पर पड़ी बर्फ पर फिसलने से 40 साल के प्रकाश टम्टा के सिर में चोट लग गयी जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।


वह नैनीताल के प्रसिद्ध बोट हाउस क्लब में वेटर थे और घटना के समय अपने काम पर जा रहे थे। उधर, दो दिनों से बारिश बंद होने से प्रदेश को राहत मिली और ज्यादातर जगहों पर मौसम साफ रहा। हालांकि, बर्फबारी के चलते अब भी कुछ मार्ग बंद हैं और उन्हें खोलने की कोशिश की जा रही है।


ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग भैंरवघाटी पास, ऋषिकेश-बदरीनाथ राजमार्ग हनुमानचट्टी मार्ग बंद हैं। इन मुख्य मार्गो के अलावा प्रदेश में कई छोटे-छोटे मार्ग भी बर्फ के कारण बंद हैं।


केदार जलप्रलय तो पर्यटन पर असर न हो इसलिए मौसम चेतावनी कूड़े के ढेर में फेंक देने के बाद इतना प्रलयंकर हो गया और लाशें अब भी लापता हैं,गांव अब भी लापता हैं और घाटियां तबाह हैं।


उस आत्मघाती भूल से हुक्मरान को कोई सबक मिला हो हिमपात के बाद बने हालात उसके सबूत हैं।


अमूमन पहाड़ों में बर्फ देखने के लिए ही सर्दियों में सैलानियों की भीड़ उमड़ती है तो इस खुशमनुमा मौसम में पहाड़वालों की जिंदगी कितनी कठिन बनायी जा सकती है,उसका हर संभव इंतजाम में लगी है सरकार।


यह मोहक एनेस्थेसिया दरअसल हिदुत्व राष्ट्रवाद है जो दरअसल नस्ली वर्चस्ववाद और रंगभेद के सिवाय कुछ नहीं।


बाकी देश के लिए हिमालय सिर्फ तीर्थाटन है या फिर पर्यटन।


ऐसा अब पहाड़ के लोग भी समझने लगे हैं।हिमालय को देवभूमि कहते अघाते नहीं हैं पहाड़ के वाशिंदे जो शायह हिंदुत्व से सबसे ज्यादा लथपथ हैंं और नस्ली वर्चस्व के राजकाज के शिकार हैं हजारों सालों से।


इतना शोषण हुआ है पहाड़ों का कि पहाड़वालों को किसी शोषण का अहसास तक नही हैं।


पूरा हिमालय उत्तुंग हिमाद्रिशिखर भी नहीं है।


पूरा पहाड़ खूबसूरत नैनीझील भी नहीं है।


न पूरा पहाड़ चारधाम हैं।न सिर्फ ग्लेशियरों का बसेरा है हिमालय।


वही हिमालय रोज रोज की आपदाओं से घिरा भूस्खलन,भूकंप,बाढ़ और मानव निर्मित डूब में समाहित हो रहा है आहिस्ते आहिस्ते।


उस तीर्थाटन और पर्यटन से पहाड़ के मनुष्य बेदखल हो रहे हैं आहिस्ते आहिस्ते।


जैसे इंच दर इंच जमीन बेदखल है आहिस्ते आहिस्ते।


रोबोटों का देश बना रहे हैं हिंदू साम्राज्यवाद के ध्वजावाहक अमेरिकापरस्त प्रधानमंत्री।


पहाड़ों में तापमान माइनस पांच से भी नीचे हैं और अभूतपूर्व हिमपात है।



कुमांय़ू गढ़वाल के दूरदराज इलाकों में बर्फबारी आफत बन आयी है और उत्तराखंड पर्यटकों के लिए स्वर्ग बन गया है अनछुए कश्मीर का बिकल्प जैसा कुछ आवाजाही बंद है और जरुरी चीजों की भारी किल्लत है।


तो दूसरी ओर,पिछले दिनों हुई बारिश और बर्पबारी के बाद चल रही तेज शीतलहर की वजह से हिमाचल प्रदेश में सोमवार को जन-जीवन ठहर-सा गया। मनाली में न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे दो डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। राजधानी शिमला में रविवार से अब तक 29.3 सेंटीमीटर बर्पबारी दर्ज की गई है। शिमला रविवार रात सर्वाधिक सर्द रहा, जहां रात्रि का तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। ऊपरी शिमला और कुल्लू तथा मनाली के बीच लगातार दूसरे दिन सोमवार को भी वाहनों की आवाजाही बाधित रही।

शिमला के करीब स्थित कुफरी और नरकंडा जैसे मशहूर पर्यटनस्थलों पर पिछले दो दिनों में अच्छी बर्पबारी हुई है। सोलन जिले में स्थित पर्यटनस्थल कसौली में भी हल्का हिमपात हुआ है। मनाली-लेह राजमार्ग पर स्थित रोहतांग र्दे (13,050फुट) और बारालाचा र्दे (16, 020 फुट) पर भी भारी बर्पबारी देखी गई। मौसम विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि पिछले दो दिनों में किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा जिलों के पहाड़ों में भारी हिमपात देखा गया है। सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि पूरे किन्नौर जिले और शिमला जिले के   नरकंडा, जुबाल, कोटखाई, कुमारसैन, कुल्लू, खड़ापत्थर, रोहरु और चोपाल जैसे कस्बों का बाकी राज्य से संर्पक टूट गया है।

उत्तराखंड में हिमालय की उढंची पहाड़ियों पर बर्फवारी होने तथा निचले इलाकों में छिट-पुट बारिश जारी रहने से पूरा प्रदेश भीषण "ठंड से जूझ रहा है और कई जगहों पर जनजीवन भी अस्त-व्यस्त हो गया है।


गढ़वाल हिमालय में बदरीनाथ,केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब, चकराता और औली तथा कुमांउ में मुनस्यारी और धारचूला की चोटियां बर्फ से ढक गयी हैं।


नैनीताल में बर्फबारी की खबर से पर्यटकों ने शहर का रूख करना शुरू कर दिया है और इससे होटल तथा अन्य व्यवसायियों के चेहरे जरुर खिल गये हैं।


उधर, चमोली जिले के उढंचे इलाकों में बर्फबारी होने के कारण कई मुख्य मार्ग बंद हो गये हैं और जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है।


गढ़वाल को कुमांउढ से जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-बागेश्वर मुख्य मार्ग ग्वालदम के पास भारी बर्फबारी होने से बंद हो गया है। कर्णप्रयाग-रानीखेत-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग गैरसैंण के पास बंद है। कई और मार्गों पर भी बर्फ पडने से वे आवागमन के लिये बंद हो गये हैं।




आपका ध्यान इस आधार बला से नागरिकों की हो रही फजीहत की ओर दिलाने के लिए आज के इकानामिक टाइम्स में प्रकाशित यह रपट पेश हैः





Dec 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Fingerprints Aadhaar for Bankers' Heartburn

Sugata Ghosh & Sangita Mehta

Mumbai





Banks back PIN-based authentication even as NDA again pushes for biometric verification

Can the poor, illiterate, unbanked masses, unfamiliar with technology and multiple passwords, remember and key in the 4-digit PIN to withdraw money from ATMs and use the debit card that the Modi government wants banks to offer? Isn't it simpler for a customer to give her fingerprint on a biometric reader that's linked to the Aadhaar data base, to prove that she is, indeed, the person she claims to be?

Not really, say many bankers.Dirt and grime on fingers of labourers and farm workers may often block biometric recognition; even when fingerprints are recorded, transmitting the images will require more bandwidth and time; besides, if folks in remote, impoverished African villages can remember the PIN, why can't those in rural India, they counter -arguing `why reinvent the wheel' and complicate a transaction when chip & PIN, a globally accepted technology , is already in place.

This old and simmering standoff, though not so apparent, between banks and the government -with the Reserve Bank of India (RBI) occasionally striking a middle ground -had almost dissipated with the defeat of Congress and exit of Nandan Nilekani as the chairman of Unique Identification Authority of India, the agency that issues the 12digit Aadhaar number.

But the subject has once again resurfaced in the wake of the Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana -the financial inclusion programme that, among other things, envisages issue of debit cards to 75 million new bank accountholders.

The issue cropped up a fortnight ago, at a meeting of Indian Banks' Association (IBA). It was suggested banks will have to gradually change their systems and machines to enable biometric authentication for cards as well as ATM transactions.


आपदाओं से निपटने कि हमारी तैयारी


नैनीताल से हमारे दाज्यू राजीव लोचन शाह ने जो लिखा है,उससे रुह कांप उठती है यह सोचकर कि दूर दराज के लोगों पर क्या बीत रही होगीः

आपदाओं से निपटने कि हमारी तैयारी इतनी है कि हमारे एक मित्र, दयाकृष्ण कांडपाल दो शवों के साथ दो रातों, लगभग 30 घंटों से पनवानौला के पास बर्फ में फँसे हैं। बावजूद इसके कि मेरे फोन करने पर आयुक्त कुमाऊँ ने अल्मोड़ा प्रशासन को झकझोर दिया है। वे शवदाह के लिये जागेश्वर जा रहे थे। उन्हें और उनके साथ के एक दर्जन स्त्री,पुरुष, बच्चों को समीपवर्ती गांव वाले खिला रहे हैं। अल्मोड़ा जनपद के दर्जनों गाँवों में बिजली, पानी की व्यवस्था दुरुस्त होने में हफ़्तों लग जायेंगे।


इधर हमारे मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा चोपड़ा समिति, जिसने गये साल की त्रासदी के लिये जल विद्युत् परियोजनाओं को जिम्मेदार माना है, की सिफारिशों को स्वीकार कर लिये जाने से दुखी हैं। कारण ? इससे उनकी ठेकेदार और माफियाओ कीफ़ौज के मुँह का निवाला छिनता है ? आखिर केदारनाथ जैसी और कितनी त्रासदियां चाहते हैं हरीश रावत ?

हिमाचल के हालात भी बेहतर नहीं

हिमाचल के हालात भी बेहतर नहीं है।मौसम के पहले भारी हिमपात के बीच मशहूर पर्यटन स्थल रोहतांग से मनाली के बीच सैकड़ों पर्यटक फंस गये। दोपहर 12 बजे के करीब शुरू हुई इस बर्फबारी में रोहतांग से नीचे मढ़ी, गुलाबा और कोठी जैसे स्थानों पर यातायात अवरुद्ध हो गया।पर्यटन स्थल कुफरी, फागू और नारकंडा में भारी हिमपात होने के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग-22 पर वाहनों की आवाजाही से बंद हो गई है।


हिमाचल में दो दिन बाद हिमपात की आशंका

शिमला। हिमाचल प्रदेश में मौसम का मिजाज एक बार फिर बदलने वाला है। मौसम विभाग से जारी पुर्वानुमान के मुताबिक 21 दिसम्बर से प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हिमपात होने की संभावना है। इस बार हिमपात का सिलसिला चार दिन तक जारी रह सकता है।

मौसम विभाग के निदेशक मनमोहन ङ्क्षसह ने आज यहां बताया कि ताजा पश्चिमी विक्षोभ 21 दिसम्बर से सक्रिय हो जाएगा, जिसका असर ऊंचाई वाले इलाकों में देखा जाएगा। उन्होंने कहा कि 21 से 24 दिसम्बर तक मौसम की स्थिति इसी प्रकार रहेगी और दिन के तापमान में गिरावट का क्रम जारी रहेगा। इस बीच जनजातीय क्षेत्र केलंग आज भी प्रदेश में सबसे ठण्डा रहा और यहां न्यूनतम तापमान शुन्य से नीचे 11 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया। जबकि राजधानी शिमला में तापमान छह डिग्री सेल्सियस रहा।



स्मरण रहे कि पांच दिन पूर्व राज्य के पर्वतीय इलाकों में भारी हिमपात हुआ था। किन्नौर, लाहौल स्पिति, कुल्लू और शिमला जिलों में बर्फ से जनजीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया था। जनजातीय क्षेत्रों में अभी भी हालात जस के तस बने हुए हैं और स्थानीय लोगों को मुलभूत समस्याओं से जुझना पड़ रहा है।


आपदाओं से निपटने कि हमारी तैयारी इतनी है कि हमारे एक मित्र, दयाकृष्ण कांडपाल दो शवों के साथ दो रातों, लगभग 30 घंटों से पनवानौला के पास बर्फ में फँसे हैं। बावजूद इसके कि मेरे फोन करने पर आयुक्त कुमाऊँ ने अल्मोड़ा प्रशासन को झकझोर दिया है। वे शवदाह के लिये जागेश्वर जा रहे थे। उन्हें और उनके साथ के एक दर्जन स्त्री,पुरुष, बच्चों को समीपवर्ती गांव वाले खिला रहे हैं। अल्मोड़ा जनपद के दर्जनों गाँवों में बिजली, पानी की व्यवस्था दुरुस्त होने में हफ़्तों लग जायेंगे।   इधर हमारे मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा चोपड़ा समिति, जिसने गये साल की त्रासदी के लिये जल विद्युत् परियोजनाओं को जिम्मेदार माना है, की सिफारिशों को स्वीकार कर लिये जाने से दुखी हैं। कारण ? इससे उनकी ठेकेदार और माफियाओ की फ़ौज के मुँह का निवाला छिनता है ? आखिर केदारनाथ जैसी और कितनी त्रासदियां चाहते हैं हरीश रावत ?



दैनिक हिंदुस्तान में 15 दिसंबर को यह रपट आयीः

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उत्तराखंड में केदारनाथ, बदरीनाथ और आसपास की पहाड़ियों पर 26 घंटे से लगातार बर्फ पड़ रही है। नैनीताल में बर्फबारी हुई है और मसूरी में इसके आसार हैं। बागेश्वर शहर में 60 साल बाद ऐसी बर्फबारी देखी गई है। जोशीमठ बाजार में 19 साल बाद बर्फ पड़ी है। पिथौरागढ़ शहर और आसपास के इलाके में भी खूब बर्फ पड़ी है। मसूरी के पास धनोल्टी और बुरांसखंडा में बर्फबारी की खबर है। वहीं, गंगोत्री हाईवे बर्फ जमा होने के कारण बंद कर दिया गया है।

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गढ़वाल हिमालय में बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब, चकराता और औली तथा कुमांउ में मुनस्यारी और धारचूला की चोटियां बर्फ से ढक गयी हैं। प्रसिद्ध पर्यटक नगरी नैनीताल में भी कल देर शाम से शुरू बर्फबारी आज सुबह तक जारी रहने की खबर है। निचले इलाकों में ज्यादातर स्थानों पर आज भी धूप-छांव का खेल चलता रहा, जबकि कुछ स्थानों पर छिटपुट बारिश जारी रही। इससे ठिठुरन बढ़ गयी।

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नैनीताल में बर्फबारी की खबर से पर्यटकों ने शहर का रुख करना शुरू कर दिया है और इससे होटल तथा अन्य व्यवसायियों के चेहरे खिल गये हैं। उधर, चमोली जिले के उंचे इलाकों में बर्फबारी होने के कारण कई मुख्य मार्ग बंद हो गये हैं और जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। गढ़वाल को कुमांउ से जोड़ने वाले कर्णप्रयाग-बागेश्वर मुख्य मार्ग ग्वालदम के पास भारी बर्फबारी होने से बंद हो गया है। कर्णप्रयाग-रानीखेत-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग गैरसैंण के पास बंद है। कई और मार्गों पर भी बर्फ पडने से वे आवागमन के लिये बंद हो गये हैं।

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इस बीच, यहां मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने बताया कि पिछले दो दिन से खराब मौसम में कल से सुधार आने और धूप निकलने की उम्मीद है।

- See more at: http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-Uttrakhand-kedarnath-Snow-fall-cold-waves-Badrinath-nanital-57-0-464149.html&locatiopnvalue=0#sthash.7goDAtLf.dpuf


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पहाड़ो के हालात बयां करती यह रपट भी देखें सौजन्य से चंद्रशेखर उप्रेतीः

बल हर दा,

आप ना देख पा रहे हो, ना दिखा पा रहे हो ?

चौदह वर्ष का उत्तराखंड फिलवक्त संक्रमण काल से गुजर रहा है । उधार और इमदाद के बल पर कायम हुआ सिस्टम समय की पटरी पर उल्टा भाग रहा है । कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार तक और अपराध से लेकर चो तरफा अराजकता तक, हर खाने नकारात्मकता का ग्राफ बढ़ रहा है ।

सरकार की धमक बीजापुर गेस्ट हाउस की चारदीवारी से टकराकर वापस लौट रही है । मुख्यमंत्री व्यवस्था में सुधार लायें वरना जिम्मेदारी तय कर उन्हें देख लेने की धमकी देते हैं लेकिन कारिन्दो पर इस धमकी का कोई असर नहीं होता है । मुख्यमंत्री न तो अव्यवस्था के पीछे का सच देख पा रहे हैं और न ही इसके लिए जिम्मेदार लोगों को उनकी हैसियत ही बता पा रहे हैं । नतीजा दिन-प्रतिदिन बिगड़ते हालात के रूप में सबके सामने हैं । फरवरी 2015 का पहला दिन अपने साथ मुख्यमंत्री हरीश रावत की ताजपोशी का सलाना जश्न लेकर आएगा ।

2 फरवरी-2014 का यह वही दिन है, जब सूबे के मठाधीश बने हाकिमों के दिल की धड़कनें अचानक बढ़ गई थीं । हरीश रावत के नाम का खौफ इस कदर फैला था कि अफसर आधी रात्रि तक उनके बुलावे का इंतजार करते रहते थे । कई अफसरों ने नींद न आने की गोलियां खानी शुरू कर दी थीं । परंतु यह वक्त जल्द बदल गया, मुख्यमंत्री बीमार होकर अस्पताल पहुंच गए और अफसरों ने सिस्टम को फिर से अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया । मुख्यमंत्री सिस्टम को क्या चलाते सिस्टम ने ही उन्हें चलाना शुरू कर दिया । पिछले कुछ दिनों के हालात इस बात के गवाह हैं कि सीएम या तो उदासीन बनते जा रहे हैं या शासन के मुखिया के रूप में उनकी हनक और धमक खत्म हो गई है । उनकी घोषणाओं पर जरा सा भी अमल नहीं हो रहा है । ज्यादा नाराज होने पर वह जिम्मेदार अफसरों को देख लेने की चेतावनी भी दे रहे हैं । पर उनकी चेतावनी नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है ।

बहुत दिन नहीं हुए जब बीते 26 नवंबर को हल्द्वानी में सीएम के काफिले पर हमला हुआ था । इस हमले से गुस्साए सीएम ने तत्काल गृह और पुलिस विभाग से जुड़े अफसरों की मीटिंग कॉल की । इस मीटिंग में उन्होंने बिगड़ते हालात पर चिंता जताते हुए इसे अविलंब सही करने को कहा । इससे पहले कि सीएम की नाराजगी का ठीकरा किसी पुलिस अफसर पर फूटता उनके सामने उन सभी पुलिस प्रस्तावों की सूची रख दी गई जो वर्षों से शासन में लंबित हैं । जायज प्रस्तावों की फेहरिश्त देख सीएम संयमित हुए और शासन को तत्काल आदेशित किया कि सात दिन के अंदर ये सभी मांगें पूरी हो जानी चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि यदि उनके आदेश पर अमल नहीं हुआ तो इसके लिए संबंधित अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी । सात दिन तो छोड़ो सीएम के आदेश के लगभग बीस दिन हो गए । प्रस्तावों पर अमल तो दूर, उन पर अभी तक विचार भी नहीं हुआ । जो अफसर जहां थे वहीं हैं ।

मुख्यमंत्री भी आदेश देकर शायद इस प्रकरण को भूल गए । भूले भी क्यों नहीं ? उनकी प्राथमिकता भी तो बदल गई है । जब से हेलीकॉप्टर हादसे में घायल हुए तब से उन्होंने सचिवालय जाना छोड़ दिया है, उनके कुछ खास बगलगीर कारिंदे और गिनती के अफसर उन्हें जो दिखाते हैं, जैसा दिखाते हैं वे वैसा ही देखते हैं । मुख्यमंत्री का लगभग पूरा वक्त मेले और रैले में बीत रहा है । प्रदेश में बढ़ता भ्रष्टाचार, बिगड़ता माहौल, कहूँ और फैलती अराजकता और बदतर से बदतर होती कानून व्यवस्था पर नजर डालने का समय उनके पास नहीं है !

असल हालात यह है कि जो काम सरकार को करना चाहिए वह राज्य का उच्च न्यायालय कर रहा है । सरकार और उसके मंत्रियों को फूल माला पहनने या शाल ओढ़कर सम्मानित होने से ही फुर्सत नहीं । जमीनी राजनीति से ढेरों ठोकरें खा कर वर्षों बाद राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे जिस व्यक्ति की छवि डिलीवरी मैन की होनी चाहिए वह केवल मात्र पोस्टर ब्वाय बनकर रह गया है ।

बल भैजी, ऐसे में मुख्यमंत्री के आदेशों पर अमल कौन करे और क्यों करे ?

साभार : दैनिक जनवाणी

फिर यह रपटभी कि कैसा उत्तराखंड मिला हैः

आत्मदाह नहीं, एकजुटता दिखायें

देश और समाज के किसी चिराग का असमय बुझ जाना भला किसे बुरा नहीं लगेगा। उत्तराखण्ड में छात्र नेताओं को चाहिए कि अपनी मांगों को लेकर आत्मदाह के रास्ते पर न चलें। इसके बजाए राज्य में छात्र आंदोलन के स्वर्णिम अतीत पर गौर करें तो बेहतर होगा।

रामनगर में पिछले दिनों छात्र नेता रोहित पांडे ने आत्मदाह कर जीवन लीला समाप्त कर डाली। अब देहरादून में छात्र नेता मोहन भंडारी आत्मदाह के मकसद से पेट्रोल लेकर एक मोबाइल टाॅवर पर चढ़ गए। अपनी मांगों को लेकर किसी भी छात्र नेता का आक्रोश व्यक्त करना जायज है, लेकिन इसके लिए आत्मदाह का तरीका अपनाना बेहद चिंताजनक है। इसके दुष्परिणाम न सिर्फ आत्मदाह करने वाले छात्र नेता के परिजनों बल्कि पूरे समाज को झेलने पड़ते हैं। देश के किसी चिराग का समाज को रोशनी दिए बिना ही असमय बुझ जाना भला किसे अच्छा लगेगा? अतीत में झांककर देखें तो कुछ साल पहले छात्र नेता गंभीर सिंह कठैत एवं उससे पहले निर्मल पंडित की भी आत्मदाह से मौत हो गई थी। इसका नुकसान उनके परिजनों के साथ ही पूरे समाज को हुआ।

सन् 1990 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मंडल कमीशन के विरोध में छात्र नेता राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा दी थी। गोस्वामी तत्काल इलाज मिलने के कारण उस वक्त बचा तो लिए गए, वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुन लिए गए, लेकिन बाद के दिनों में उनको क्या-क्या तकलीफें झेलनी पड़ी होंगी यह उनके परिजन ही बता सकते हैं। फिर भी समाज के लोग इतना तो अंदाजा लगा ही सकते हैं कि जो छात्र नेता कभी हजारों छात्र-छात्राओं के साथ ही देश के लाखोें लोगों की नजरों में हीरो हुआ करता था, वह बाद के दिनों में कहीं सार्वजनिक जीवन में क्यों नहीं दिखाई दिया। हालांकि गोस्वामी ने गृहस्थी बसाई और उनके दो बच्चे भी हैं, लेकिन खुद को आग के हवाले कर देने से उनका शरीर इतना कमजोर पड़ गया कि वह सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए। सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए इससे अधिक पीड़ादायक त्रासदी दूसरी कोई नहीं हो सकती।

उत्तराखण्ड में छात्र नेताओं के आत्मदाह के रास्ते पर चलने का एक कारण यह समझ में आता है कि शासन-प्रशासन शांतिपूर्ण ढंग से आवाज उठाने पर उनकी सुनता नहीं है। दशकों से यहां के छात्र अपनी छोटी-छोटी मांगों को लेकर भूख हड़तालों का सहारा लेते आ रहे हैं। लेकिन दुखद है कि जो लोग खुद कभी छात्र नेता रहे, वह विधायक और मंत्री बन जाने पर भूल जाते हैं कि आखिर राज्य की उच्च शिक्षा के प्रति उनका भी कोई दायित्व है। सच तो यह है कि उनका ध्यान छात्र हितों के बजाए इस दिशा में लगा रहा कि अपने कौन से चहेते को किस खास जगह पर बिठाया जाए। ऐसे में आज छात्रों के लिए भी सोचने का विषय है कि वे भविष्य के लिए अपने बीच से कैसे नेताओं को आगे बढ़ाएं। राज्य के छात्र नेताओं को सोचना होगा कि आत्मदाह से हटकर वे कौन से तरीके हैं जिनके चलते वे अपनी मांगों को लेकर शासन-प्रशासन को झुका सकें, इसके लिए यदि वे राज्य में छात्र आंदोलन के स्वर्णिम अतीत पर नजर डालें तो बेहतर होगा। वे जान सकेंगे कि यहां की छात्र शक्ति न सिर्फ जनता को अपनी मांगों के पक्ष में सड़कों पर उतारने में सफल रही, बल्कि समय-समय पर उसने जन आंदोलनों को ऊर्जा और नेतृत्व देने का काम भी किया। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में 60 और 70 के दशक में चले शराब विरोधी आंदोलनों में छात्र शक्ति ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 70 के दशक में छात्र शक्ति एक ऐसे आंदोलन का सूत्रधार बनी जिसके चलते गढ़वाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए। राज्य में उच्च शिक्षा के द्वार खुले। जनसमस्याओं को लेकर चले तमाम छोटे-बड़े आंदोलनों में भी छात्र अग्रिम मोर्चे पर खड़े रहे। 80 के दशक में टिहरी जिले में एक कर्मचारी चिरंजी लाल जोशी की हत्या हुई तो स्वामी राम तीर्थ संघटक महाविद्यालय के छात्रों ने जिले के कई छोटे-बड़े स्कूलों तक को आंदोलन में उतार दिया था। छात्रों का आरोप था कि हत्या में बांध निर्माण में जुटी एक निजी कंपनी के गुर्गों का हाथ है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में भी छात्र शक्ति की ऐतिहासिक भूमिका रही।

आज राज्य में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक हर जगह बदहाली है। ऐसे में सोचने का विषय है कि यहां की छात्र शक्ति अतीत की तरह कोई बड़ा आंदोलन क्यों नहीं खड़ा कर पा रही है? जहां तक मैं समझता हूं इसका कारण यह है कि आज मूल विषयों पर छात्रशक्ति एकजुट नहीं हो पाती। वह राजनीतिक पार्टियों के दलदल में उलझी हुई है। छात्र नेता चाहे किसी पार्टी के विचार से जुड़े रहें, लेकिन जहां पर छात्र हित या सामाजिक प्रतिबद्धता की बात आती है, वहां उन्हें एकजुट होकर अपनी एकता का प्रदर्शन करना चाहिए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऐतिहासिक आंदोलन की सफलता का राज भी यही था। (दि संडे पोस्ट, अंक 27 दिसंबर 2014)



Worried for the Iron lady! Whatever America wants,Modi is making in.GST opens the killing field in Indian Business. I am afraid that the cakes for this Christmas is not going to be so sweet as it happened to be.The snowfall and the chilling weather in the hills,is enveloping the Christmas day as legislation is meant ethnic cleansing now. Palash Biswas

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Worried for the Iron lady!

Whatever America wants,Modi is making in.GST opens the killing field in Indian Business.

I am afraid that the cakes for this Christmas is not going to be so sweet as it happened to be.The snowfall and the chilling weather in the hills,is enveloping the Christmas day as legislation is meant ethnic cleansing now.

Palash Biswas

Worried for the Iron lady!

Whatever America wants,Modi is making in.GST opens the killing field in Indian Business.

it is not limited to FDI at all mind you,the basic structure of Indian economy and the federal setup are being broken as the peasantry has been killed and service proirities have dumped indigenous business and industry.Retail FDI is not a factor at all as Etailing has taken over Indian market.


The Constitution Amendment Bill on Goods and Services Tax, that will pave the way for a mega tax reform, was tabled in the Lok Sabha today. In the Rajya Sabha, Finance Minister Arun Jaitley said the government would formally take up the bill and seek to pass in the next session of Parliament. The current session ends on Tuesday next.


NDTV reports,here is your 10-point cheat-sheet to the Goods and Services Tax (GST):

  • The GST provides a major taxation reform by introducing a national sales tax that will replace a myriad of overlapping state duties that deter investment. The cabinet this week approved a constitutional amendment bill that paves the way for the introduction of GST.

  • Mr Jaitley described the GST as the "single biggest tax reform since Independence" and a "win-win situation" for both the Centre and states and said the bill would not hold a "fear of the unknown" unlike the Value Added Tax or VAT.

  • The Finance Minister said the concerns of all states have been addressed in the new provision of the bill after consultation. He said the interest of states would be adequately protected and that he did not foresee a situation where states would be the losers.

  • Investors and manufacturers have long advocated the GST as a way to simplify taxes while broadening the tax base, adding as much as 2 percentage points to economic growth in Asia's third-largest economy.

  • Some of India's 29 states were reluctant to give their assent for fear of revenue losses. In a compromise, Mr Jaitley has offered to compensate the states for any loss of revenues following the implementation of the GST.

  • The government aims to bring the tax into effect from April 1, 2016.

  • With only two working days left in this session the Bill will be taken up for debate in the Budget session which will begin in February.

  • Since the bill seeks to amend the Constitution, it needs to be cleared by a two-third majority of both houses of Parliament. The government will face no problem in the Lok Sabha, where it has huge numbers, but it is in a minority in the Rajya Sabha and will need the opposition's support.

  • The proposal will then have to be cleared by at least half of the country's state legislatures before it becomes a law.

  • GST will replace a number of indirect taxes currently levied by both the Central and State governments and seeks to provide a common national market for goods and services. Once in force, GST will reduce the total number of indirect taxes apart from the customs duty (only on imported goods) to just three.

http://www.ndtv.com/article/cheat-sheet/gst-mega-tax-reform-tabled-in-lok-sabha-637004


I am afraid that the cakes for this Christmas is not going to be so sweet as it happened to be.The snowfall and the chilling weather in the hills,is enveloping the Christmas day as legislation is meant ethnic cleansing now.


This christmas day is slated to be celebrated as sushasan day to celebrate the birthday of Atal Bihari Vajpayee.


The rupee today lost 19 paise against the dollar at 63.30 at close as initial gains were washed out on account of strong demand for the US currency from oil companies even as stock markets were bullish.the FM declares it is not a crisis at all.


The schools would remain closed as Smriti Irani withdrew the controversial circular to keep open the schools.But the optional agenda of the day has to be the topmost priority in the government institutions,it should be understood.Peshawar genocide has rather provoked the Hindutva as never before and the hate campaign against non hindus get momentum.


I am worried for the iron lady we love so much,Irom Sharmila as she has to break her Hunger strike or simply opt for suicide as no one is going to feed her with force.Economic times story is quite worrying which tells that Decriminalising attempted suicide ironically puts Irom Sharmila in danger!


Economic times also tells the story why AFSPA might not be repealed as the Military holds the key of business and industry in the AFSPA region. It is eyeopening.Please read the complete story.


I am afraid that the cakes for this Christmas is not going to be so sweet as it happened to be.


The snowfall and the chilling weather in the hills,is enveloping the Christmas day as legislation is meant ethnic cleansing now.


Narendra Bhai Modi banned in United States of America since Gujarat Genocide,is the blue eyed boy whom America loves most after he got the helms of the monopolistic ruling hegemony of racial apartheid and he serves very well in US interests.


Whatever America wants,Modi is making in.


The latest legislation agenda for the Parliament is going to prove as a cake walk as Mamata Banerjee seems to be managed as she has no option to surrender as Mayawati, Mulayam,Lalu,Jailalitha and Karunanidhi had been managed in the past.


Thus it happened!


The Government on Friday took the first step towards switching to a Goods and Service Tax (GST) regime by introducing The Constitution (122nd Amendment) Bill in the Lok Sabha amid demands for referring it to a Departmental Standing Committee.Mamata has hinted to support the legislation.


The West Bengal government would support the Goods and Service Tax (GST) Bill only if the states were fully compensated for the revenue loss, Chief Minister Mamata Banerjee said Friday.


"States are concerned that their revenue generation should not fall… If you collect Rs 40,000 crore from our state and give us Rs 8,000 crore and say the Centre is giving it, we don't support this. After all this is the money of our state," Banerjee told reporters here.


"GST is in our manifesto, we have committed to support it. But we cannot support it in this form as it will harm the states' interest. States should be fully compensated," she said, indicating that some provisions of the legislation were not in the interests of the states.


Her remarks came on a day when the GST Bill, touted as the single biggest indirect taxation reforms since Independence, was introduced in the Lok Sabha.


Finance Minister Arun Jaitley, however, said in Parliament that concerns of all states have been taken care of and measures would be taken up in the next Parliament session.

The Trinamool chief said the Centre "should allow states to collect their own tax, not collect it on states' behalf. We are fighting for all states not for Bengal alone."


She said her government had objected to the proposed inclusion of petroleum products, tobacco and entry tax in the ambit of the GST and wanted them to be excluded.


"The present form of GST Bill is not what was decided unanimously earlier by the Empowered Committee. When something is decided unanimously, it must be respected. You cannot bulldoze just because someone is in a majority," Banerjee said, indicating the ruling BJP.


Maintaining that there was a promise of adequate compensation to states, she said "you are deviating what was decided earlier. It is against federal structure… The states' views should be heard."


West Bengal Finance Minister Amit Mitra had earlier written to both Finance Minister Arun Jaitley and chairman of empowered committee A R Rather about Bengal's objections.


The decisions taken at July 3 meeting were that petroleum products, tobacco and entry tax should not be subsumed under GST and the Centre's share in inter-state supplies of goods and services should be part of divisible pool and devolved to the state as per the Finance Commission formula, Mitra said.


Banerjee also blamed the erstwhile Left Front government, for the financial "crisis" being faced by West Bengal, saying "because of the last government we are facing serious financial crisis. So do some justice to us."


Now Modi has ensured to pass all the reform laws subjected to amendment and change and deletion before he welcomes President Barack Obama on republic day.


I have been just focusing on governance and policy making and of course legislation since 1991.


We had called to celebrate Constitution day on 26th November as the republic day has been hijacked by foreign capital.


How do they manage the economy?


The rupee today lost 19 paise against the dollar at 63.30 at close as initial gains were washed out on account of strong demand for the US currency from oil companies even as stock markets were bullish.


Finance Minister Arun Jaitley in Parliament, however, said there was "no serious crisis" for the domestic currency as it was stabilising after a few days of "volatility".


"I don't see any serious crisis on the real value of rupee," he asserted.


The rupee had plunged to 13-month low of 63.53 earlier this week amid chaos in global financial markets caused by volatility in Russian currency rouble.


Rupee weakness was also aided by investor fears that US Fed Reserve in December 16-17 meet would start the process of rate hike that would have sucked up liquidity in emerging markets, including India. Much to the relief of investors, the Fed said a rate hike was unlikely in the short-term.


The rupee had declined by a steep 132 paise or 2.12% in three days of losses till December 17 before it notched up a 50-paise gain yesterday.


Forex dealers said strength in dollar which has hit multi-year high in overseas markets, also weighed on the rupee heavily today notwithstanding a rally in local equities.


At the Interbank Foreign Exchange (Forex) market, the domestic unit breached the 62-level in early trade in tandem with gains in stock markets.


The rupee, however, succumbed to selling pressure amid continued capital outflows and settled the day 63.30, a net fall of 19 paise or 0.30% from its previous close.


Foreign portfolio investors sold shares worth Rs 874.89 crore yesterday, as per provisional data.


Pramit Brahmbhatt, Veracity Group CEO, said: "The rupee lost... Taking cues from the dollar demand from oil companies which dented the rupee movement and also the dollar index is trading multi-year high...."


The Finance Minister said "there is a serious challenge as far as emerging markets are concerned due to stronger dollar...


"Rupee is performing better compared to other emerging markets," he added.


"There was turmoil and volatility as far as emerging markets were concerned. After two days of volatility, there is a sobering effect as far as Indian rupee is concerned, he said.



Dec 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

FOLK THEOREM - An Icon's Mortal Coils

Abheek Barman






Gandhi, Das are back with a vengeance, and Irom is their legatee. Manipur can't afford to let her become a martyr. But it doesn't have the spine to repeal Afspa.

On December 10, New Delhi decriminalised attempted suicide. Till then, a sui cide attempt was punishable with a fine and imprisonment of a year, or both.Twenty-two Indian states have decided to repeal Section 309 of the penal code, and many are celebrating the imminent release of India's most famous `attempted suicide', Manipur's icon Irom Sharmila Chanu, now fasting for 14 years. But it could actually be a mixed blessing for her, if not a sentence of death.

On November 2, 2000, a 28-yearold Sharmila decided to fast to death until the Armed Forces Special Powers Act (Afspa), which lets the military literally get away with murder, was scrapped. That morning, the Assam Rifles, without any provocation, shot dead 10 people waiting at a bus stop in Malom near Imphal. The victims included an 18-year-old boy who'd won a national bravery award, his brother and a 62year-old woman. On November 5, Sharmila was arrested under Section 309, trying to commit suicide, and force-fed through her nose in Imphal's Jawaharlal Nehru Hospital.

Afspa gives the right to use overwhelming force over non-combatants. And it says that forces shielded by the law do not need to justify abductions, searches, imprisonment, torture and killing under its um brella. Most northeastern states and Jammu and Kashmir are covered under Afspa.

Afspa Suits Everyone

For nearly 60 years, New Delhi has refused to repeal Afspa, mainly under pressure from the military. Not that it has helped much. Today, the government records the presence of around 40 active or semi-active `insurgent' groups in Manipur. But it suits everyone. The military is happy with its control over the system and large chunks of the state's economy.

Here's an example. Manipur abolished the production and sale of liquor in 1991 after protests by groups led by the Meira Paibis, or the Mothers' Movement. These groups back Sharmila fanatically . Yet on a visit to Imphal this year, I spotted no inkling of the liquor ban. I was handed a mobile number, which was answered by someone who promised the delivery of the tipple of your choice wherever you wanted it in 30 minutes. Then I noticed a sticker on the bottle: `For sole consumption by defence personnel only . Not for sale to civilians.' Ho-hum.

The civilian government is not bothered, as long as majority Meitei-dominated parties get elected to power. Presumably , some of the takings from graft and extortion trickle up to the top. And the civil rights groups have a mini-industry centred on their icon Sharmila.

Sharmila has said that unless Afspa is repealed, she will not eat. For the last 14 years, the obvious legal way around this form of civil disobedience, fasting to death, was to enforce Section 309, and force-feed the protestor. But what now?

The Indian state cracks down violently on so-called insurgents, Nax als and Maoists, but is helpless be fore non-violent struggles. This is probably because it witnessed the humbling of the British Empire by Mohandas Gandhi's fasts, which were preceded by Jyotin Das who fasted to death in 1929 at 24, and fol lowed by Potti Sriramulu, a Telugu speaking Gandhian who cam paigned for a linguistic state for Te lugus by fasting to death in 1952.

Within a month, the new govern ment led by Nehru buckled in to Sri ramulu's demands. Gandhi, Das and Sriramulu are back with a ven geance, and Sharmila is their lega tee. The Indian state cannot afford her to become a martyr. But it doesn't have the spine to repeal Afspa.

Idol Worship

Today , Sharmila is treated in the rel atively sterile precincts of her hos pital-jail. Years of being fed nasally could have compromised her ability to eat and digest `normal' food. Due to lack of use, many of her digestive organs could have atrophied. She could be treated at home, perhaps, but she is now free to fast to death. If she starts to sink, Manipur, other northeastern states and J&K could erupt in waves of protest.

Sharmila's long years of imprisonment have taken a toll on her private life, such as it is. In 2009, a British citizen of Goanese descent, Desmond Coutinho, started writing to Sharmila and she reciprocated.In 2011, they met in jail in Imphal for the first time. Sharmila now acknowledges that she is in love with him. But the relationship has created umbrage among her supporters.How could their idol let herself be wooed by a mere mortal? And how could he have once said, as the activists claim, that he cared only about Sharmila and not about the greater fight against Afspa?

Perhaps the saddest outcome of all this is the rift between Sharmila and her elder brother, Irom Singhajit, a soft-spoken, gentleman who remains her biggest supporter. Yet, brother and sister have not met for years.

Will Sharmila be ever be free of the shackles of idolatry? In January she told my wife and me, "I am not a god, just a person fighting for her people.And if the cause is achieved, I am free. Then, I'd love to travel a lot."




আমি অসমীয়া মুছলিমে কেতিয়াবা ভাবিব পাৰো নে এনে পৰ্যায়ৰ এখন ইচলামিক স্কুল এখনৰ কথা ?আমাৰ অসমত সম্ভৱ হবনে এনেধৰণৰ অন্ত:ত এখন আধুনিক মাদ্ৰাছা স্থাপনৰ সুবিধা??

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আমি অসমীয়া মুছলিমে কেতিয়াবা ভাবিব পাৰো নে এনে পৰ্যায়ৰ এখন ইচলামিক স্কুল এখনৰ কথা ?আমাৰ অসমত সম্ভৱ হবনে এনেধৰণৰ অন্ত:ত এখন আধুনিক মাদ্ৰাছা স্থাপনৰ সুবিধা??

তলত আমি উল্লেখ কৰা ফটোসমূহ হৈছে উচ্চ মানদণ্ড শীততাপ নিয়ন্ত্ৰিত কোঠা তথা বিভিন্ন বৈজ্ঞানিক পৰীক্ষাগাৰৰে পৰিপূৰ্ণ এখন আন্তঃৰাষ্ট্ৰীয় মানদণ্ডৰ বিদ্যালয় |নাম হৈছে ভাৰতৰ মুম্বাইত থকা "ইচলামিক ইন্টাৰনেচনেল স্কুল" |এই স্কুলখন ইচলামিক শিক্ষাৰ লগতে ইচলামিক পৰিবেশৰ কাৰণে বিখ্যাত |

এই স্কুলখন মাধ্যমিক আৰু উচ্চ মাধ্যমিক শিক্ষাৰ বাবে ইউ.কে. ৰ কেমব্ৰিজ বিশ্ববিদ্যালয়ৰ IGCSE (IGCSE Board, Cambridge University, UK)বৰ্ডৰ অন্তৰ্ভুক্ত|

যোৱা বছৰৰ অৰ্থাৎ ২০১৩ চনৰ জুন মাহৰ মেট্ৰিকুলেচন পৰীক্ষাত এই বিদ্যালয়খনৰ পৰাই এজন ছাত্ৰই ইংৰাজী বিষয়ত সমগ্ৰ ভাৰতৰ ভিতৰতেই সৰ্বোচ্চ নম্বৰ লাভ কৰে |

এই বিদ্যালয়খনত আৰবী আৰু ইংৰাজী ভাষা বাধ্যতামূলক |লগতে সংস্কৃত বিষয়টোও পাঠ্যক্ৰমৰ এটি গুৰুত্বপূৰ্ণ বিষয় | লগতে কোৰআনৰ শিক্ষাও উচ্চ শিক্ষিত শিক্ষকৰ গোট এটাই প্ৰদান কৰে আৰু অতি কম বয়সতে ছাত্ৰ-ছাত্ৰী সকলক কোৰআনৰ হাফিজ(যিসকলে সম্পূৰ্ণ কোৰআনখন মনত ৰাখে) ৰূপে গঢ়ি তোলা হয় | আটাইতকৈ ডাঙৰ কথাটো হ'ল যে কেজি(KG) ৰ পৰাই ইয়াত আৰবী আৰু ইংৰাজীৰ শিক্ষা দিয়া হয় আৰু যাৰ ফলস্বৰুপে তেঁওলোকে আৰবী ভাষাও বুজি পায় আৰু আৰবসকলৰ নিচিনাকৈ সলসলীয়াকৈ আৰবী ভাষাত আৰু ব্ৰিটছসকলৰ দৰে সলসলীয়াকৈ ইংৰাজী ভাষাত পাৰ্গত হৈ পৰে | লগতে ল'ৰা আৰু ছোৱালীৰ বাবে বেলেগ বেলেগ কেম্পাছৰ সুবিধা আছে |

ইয়াৰোপৰিও টাইকোৱানডো আৰু সাঁতোৰ ইচলামিক ইন্টাৰনেচনেল স্কুলৰ এটি অপৰিহাৰ্য অংশ| ষষ্ঠমানৰ ছাত্ৰই ব্লেক-বেল্টৰ অধিকাৰী হোৱাটো বাধ্যতামূলক |সমসাময়িক পৰিস্থিতৰ ওপৰত ভিত্তি কৰি অন্যান্য পাঠ্যক্ৰম লগত সংলগ্ন কাৰ্যসূচী(Extra Curricular programs)ও ইয়াত হাতত লোৱা দেখা যায় |আন্তঃৰাষ্ট্ৰীয় বিখ্যাত ইচলামিক তথা সৰ্বধৰ্মীয় পণ্ডিত জাকিৰ নাইক হৈছে এই আধুনিক স্কুলখনৰ অধ্যক্ষ|

প্ৰশ্ন হয় আমি এনেধৰণৰ এখন আধুনিক মাদ্ৰাছা অসমত দেখিব পাম নে?? নে স্বয়ম্ভু ধৰ্মীয় নেতাই ইয়াৰো বিৰোধীতা কৰি যাব??

© Zarid HussainArif Hussain/Assamese_Muslim_Page℠

আমি অসমীয়া মুছলিমে কেতিয়াবা ভাবিব পাৰো নে এনে পৰ্যায়ৰ এখন ইচলামিক স্কুল এখনৰ কথা ?আমাৰ অসমত সম্ভৱ হবনে এনেধৰণৰ অন্ত:ত এখন আধুনিক মাদ্ৰাছা স্থাপনৰ সুবিধা??    তলত আমি উল্লেখ কৰা ফটোসমূহ হৈছে উচ্চ মানদণ্ড শীততাপ নিয়ন্ত্ৰিত কোঠা তথা বিভিন্ন বৈজ্ঞানিক পৰীক্ষাগাৰৰে পৰিপূৰ্ণ এখন আন্তঃৰাষ্ট্ৰীয় মানদণ্ডৰ বিদ্যালয় |নাম হৈছে ভাৰতৰ মুম্বাইত থকা "ইচলামিক ইন্টাৰনেচনেল স্কুল" |এই স্কুলখন ইচলামিক শিক্ষাৰ লগতে ইচলামিক পৰিবেশৰ কাৰণে বিখ্যাত |    এই স্কুলখন মাধ্যমিক আৰু উচ্চ মাধ্যমিক শিক্ষাৰ বাবে ইউ.কে. ৰ কেমব্ৰিজ বিশ্ববিদ্যালয়ৰ IGCSE (IGCSE Board, Cambridge University, UK)বৰ্ডৰ অন্তৰ্ভুক্ত|     যোৱা বছৰৰ অৰ্থাৎ ২০১৩ চনৰ জুন মাহৰ মেট্ৰিকুলেচন পৰীক্ষাত এই বিদ্যালয়খনৰ পৰাই এজন ছাত্ৰই ইংৰাজী বিষয়ত সমগ্ৰ ভাৰতৰ ভিতৰতেই সৰ্বোচ্চ নম্বৰ লাভ কৰে |     এই বিদ্যালয়খনত আৰবী আৰু ইংৰাজী ভাষা বাধ্যতামূলক |লগতে সংস্কৃত বিষয়টোও পাঠ্যক্ৰমৰ এটি গুৰুত্বপূৰ্ণ বিষয় | লগতে কোৰআনৰ শিক্ষাও উচ্চ শিক্ষিত শিক্ষকৰ গোট এটাই প্ৰদান কৰে আৰু অতি কম বয়সতে ছাত্ৰ-ছাত্ৰী সকলক কোৰআনৰ হাফিজ(যিসকলে সম্পূৰ্ণ কোৰআনখন মনত ৰাখে) ৰূপে গঢ়ি তোলা হয় | আটাইতকৈ ডাঙৰ কথাটো হ'ল যে কেজি(KG) ৰ পৰাই ইয়াত আৰবীৰ শিক্ষা দিয়া হয় আৰু যাৰ ফলস্বৰুপে তেঁওলোকে আৰবী ভাষাও বুজি পায় আৰু আৰবসকলৰ নিচিনাকৈ সলসলীয়াকৈ আৰবী ভাষাত আৰু ব্ৰিটছসকলৰ দৰে সলসলীয়াকৈ ইংৰাজী ভাষাত পাৰ্গত হৈ পৰে | লগতে লৰা আৰু ছোৱালীৰ বাবে বেলেগ বেলেগ কেম্পাছৰ সুবিধা আছে |    ইয়াৰোপৰিও টাইকোৱানডো আৰু সাঁতোৰ ইচলামিক ইন্টাৰনেচনেল স্কুলৰ এটি অপৰিহাৰ্য অংশ| ষষ্ঠমানৰ ছাত্ৰই ব্লেক-বেল্টৰ অধিকাৰী হোৱাটো বাধ্যতামূলক |সমসাময়িক পৰিস্থিতৰ ওপৰত ভিত্তি কৰি অন্যান্য পাঠ্যক্ৰম লগত সংলগ্ন কাৰ্যসূচী(Extra Curricular programs)ও ইয়াত হাতত লোৱা দেখা যায় |আন্তঃৰাষ্ট্ৰীয় বিখ্যাত ইচলামিক তথা সৰ্বধৰ্মীয় পণ্ডিত জাকিৰ নাইক হৈছে এই আধুনিক স্কুলখনৰ অধ্যক্ষ|    প্ৰশ্ন হয় আমি এনেধৰণৰ এখন আধুনিক মাদ্ৰাছা অসমত দেখিব পাম নে?? নে স্বয়ম্ভু ধৰ্মীয় নেতাই ইয়াৰো বিৰোধীতা কৰি যাব??    © Zarid Hussain/ Arif Hussain/Assamese_Muslim_Page™
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এই পাগলৰ কথা শুণক কি কৈ আছে ।আপোনালোকৰ মতামত কি? It is the real mission of Hindu imperialism so that Manusmriti rule becomes the only Monopoly.

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RSS is now calling for the mission to free India from Islam and Christianity within 2021.It is the real mission of Hindu imperialism so that Manusmriti rule becomes the only Monopoly.I am posting an Assamese news post with an assamese comment.
Palash Biswas

এই পাগলৰ কথা শুণক কি কৈ আছে ।আপোনালোকৰ মতামত কি?

এই পাগলৰ কথা শুণক কি কৈ আছে ।আপোনালোকৰ মতামত কি?

কোৰআনে অমুছলমানক হত্যা কৰিব কয় নেকি?ই সন্ত্ৰাসবাদক উৎসাহ জনাই নেকি?এনেধৰণৰ বিভিন্ন প্ৰশ্নৰ উত্তৰ যদি আপুনি বিচাৰি আছে তেন্তে....

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কোৰআনে অমুছলমানক হত্যা কৰিব কয় নেকি?ই সন্ত্ৰাসবাদক উৎসাহ জনাই নেকি?এনেধৰণৰ বিভিন্ন প্ৰশ্নৰ উত্তৰ যদি আপুনি বিচাৰি আছে তেন্তে.........

সোনকাল কৰক !এতিয়া আপোনাৰ দুৱাৰদলিত বিনামূল্য আমি অসমীয়া মুছলিম পৃষ্ঠাই আগবঢ়াম অসমীয়া আৰু ইংৰাজী কোৰআন |(অকল হিন্দু আৰু অন্যান্য অমুছলমান বন্ধুসকলৰ বাবে)

গতিকে আজিয়েই আপোনাৰ নাম আৰু ঠিকনা অসমীয়া মুছলিম 
পৃষ্ঠাৰ ইনবক্সত বা তলত কমেণ্ট কৰি পঠিয়াওক |

ধন্যবাদ(পষ্টটো শ্বেয়াৰ কৰি আপোনাৰ অমুছলমান বন্ধুকো এই সুখবৰটো জনাব বুলি আশা থাকিল)

কোৰআনে অমুছলমানক হত্যা কৰিব কয় নেকি?ই সন্ত্ৰাসবাদক উৎসাহ জনাই নেকি?এনেধৰণৰ বিভিন্ন প্ৰশ্নৰ উত্তৰ যদি আপুনি বিচাৰি আছে তেন্তে.........    সোনকাল কৰক !এতিয়া আপোনাৰ দুৱাৰদলিত বিনামূল্য আমি অসমীয়া মুছলিম পৃষ্ঠাই আগবঢ়াম অসমীয়া আৰু ইংৰাজী কোৰআন |(অকল হিন্দু আৰু অন্যান্য অমুছলমান বন্ধুসকলৰ বাবে)    গতিকে আজিয়েই আপোনাৰ নাম আৰু ঠিকনা অসমীয়া মুছলিম   পৃষ্ঠাৰ ইনবক্সত বা তলত কমেণ্ট কৰি পঠিয়াওক |    ধন্যবাদ(পষ্টটো শ্বেয়াৰ কৰি আপোনাৰ অমুছলমান বন্ধুকো এই সুখবৰটো জনাব বুলি আশা থাকিল)
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Face the real threat before Obama comes!

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Face the real threat before Obama comes!

The war against terror,terror strikes,Muslim Brotherhood and US economy of war,civil war,weapon and oil under dollar Hegemony in reference to the rise of Hindu Imperialism!

White House Declares Muslim Brotherhood Not Terrorists!

Not enough,The U.S. backed secret negotiations with the spiritual leadership of the Islamic State group, conducted by two al Qaeda-linked clerics and a former Guantanamo detainee, in a bid to secure the release of American hostage Peter Kassig, who changed his name to Abudul-Rahman after converting to Islam, according to an investigation carried out by the Guardian.

Palash Biswas

  1. The Muslim Brotherhood was founded in Ismailia, Egypt by Hassan al-Banna in March 1928 as an Islamist religious, political, and social movement.

  2. History of the Muslim Brotherhood in Egypt - Wikipedia, the ...

  3. en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Muslim_Brotherhood_in_Egypt

More about Muslim Brotherhood


As we welcome the US President Barack Obama on the republic day nad Indian Parliament passes all the reform bills slated for ethnic cleansing and before manusmriti rule becomes only monopoly regime in India killing rural India,Indian business and industry under bull run,we should be aware that the Peshawar strike was predestined on the day first when United States of America decided to handover the muslim world to Taliban and Al Qaeda it created during the cold war.


We must know that beside Taliban ,Al Qaeda,ISIS,Muslim brotherhood supported by United States of America may disintegrate despite the internal security network monitored by NASA,Pentagon,NATO,CIA,M16 and Mossad.


Mind you,he White House is declaring that the Muslim Brotherhood is not a terrorist group.


The move comes in response to a petition with 213,146 signatures on the White House's "We the People" site.


The petition states: "Muslim Brotherhood has a long history of violent killings and terrorizing opponents. Also MB has direct ties with most terrorist groups like Hamas."


Not enough,The U.S. backed secret negotiations with the spiritual leadership of the Islamic State group, conducted by two al Qaeda-linked clerics and a former Guantanamo detainee, in a bid to secure the release of American hostage Peter Kassig, who changed his name to Abudul-Rahman after converting to Islam, according to an investigation carried out by the Guardian.

The negotiation effort was the work of Stanley Cohen, a controversial New York attorney, who among others has represented Osama Bin Laden's son-in-law, Abu Gaith, in U.S judicial proceedings.

According to the Guardian, Cohen enlisted the help of Abu Muhammed al-Maqdisi, a jihadi scholar, radical Islamist cleric Abu Qatada, and an unnamed Kuwaiti who was a veteran of al Qaeda and a former Guantanamo prisoner.

In return for Kassig's life, the clerics were offering to ensure that al Qaeda would cease its criticism of ISIS as being without proper Islamic credentials.

Senior FBI officials were aware of the effort, and had agreed to pay thousands of dollars in expenses incurred by Cohen, according to the paper.

The negotiations, which went on for a number of weeks, collapsed after Jordanian security services arrested Maqdisi, despite an agreement secured by Cohen that the country would not intervene in their attempts to contact ISIS.

Cohen told the Telegraph that here was now "no chance" that Islamic factions opposed to ISIS' hostage-taking would try to secure the release of other captives.

Kassig was eventually murdered by his captors, and a graphic video was posted online last month purporting to show the aftermath of his killing.

The negotiations are not the first incidence of al Qaeda intervening on behalf of a Western hostage held by ISIS. The group also appealed for the release of British hostage Alan Henning, because it believed he was an innocent aid worker who was genuinely trying to help suffering Muslims, according to the U.K.'s Independent.

Al Qaeda has, in the past, also not shied away from expressing disquiet at the brutal tactics employed by other Islamist militant groups. In personal letters from Osama Bin Laden, described in Mark Bowden's book "The Finish: The Killing Of Osama Bin Laden," the al Qaeda leader urged Abu Musab al-Zarqawi, then the leader of al Qaeda in Iraq, to refrain from killing fellow Muslims in bomb attacks.

The fate of many Western hostages, including Kassig, who have been killed by ISIS terrorists in recent months, has caused many in the U.S. and U.K. to re-examine the longstanding policy of refusing to negotiate with terrorists, or to pay ransoms for hostages.

The U.S. government is currently conducting a review of how it handles hostage situations, but it is thought that the policy is unlikely to change.

In stark contrast to the U.S. and U.K., many central European nations have reportedly paid ransoms to secure the release of their nationals from the hands of groups like ISIS, attracting criticism that they are effectively bankrolling terrorist activity, according to the New York Times.



When the petition was first posted July 7, 2013, the group's Islamic regime had just been ousted from power in Egypt.


"The Muslim Brotherhood has shown in the past few days that it is willing to engage in violence and killing of innocent civilians in order to invoke fear in the hearts of its opponents. This is terrorism. We ask the U.S. government to declare MB as a terrorist group for a safer future for all of us," the petition said.


The White House finally responded more than a year later, stating "We have not seen credible evidence that the Muslim Brotherhood has renounced its decades-long commitment to non-violence."


CBN News has reported that Brotherhood followers hold influential advisory positions in the Obama administration.


Has Muslim Brotherhood failed?It is an article to have a look into latest status of Muslim Brotherhood itself and the US sponsored Arabian Spring exported by United States of America on the line of Taliban and Al kaeda.


As a state,United States of America had to bear the most of the burns it created to sustain its economy of war,civil war,weapons and oil under omnipotent dollar hegemony hitherto unchallenged.


Muslim brotherhood and Arabian spring do knock the doors of this bleeding geopolitics  which are wide open thanks to free market economy and free flow of foreign capital.

I am posting a write up which justify Muslim Brotherhood activities and dismiss all criticism published in Bangladesh which is inflicted with the coup threat by Islamists  and which has to have greater impact on India as we know from our experiences since 1971.


We may not help Pakistan to recover from the terror network it created and suffering from at the cost of innocent citizens,women and children across the border.


We may not help the Tamil,Indian origin humanscape in Srilanka from ethnic cleansing!


We could not make Nepal a real friend to make it a Hindu Nation once again despite the fact the Hinutva elements there has a open agenda of greater Nepal and demands the entire Himalaya and the Terai.

Despite the complicated refugee problem and the complex corridors ,Bangladesh power politics factions Awami League as well as BNP wants to remain friend of India.Because in Bangladesh the democracy is sustained despite coup threats as the democratic and social forces,secular elements are united rock solid.


This article pronounces the real threat that Pro America governance and policy making makes India a subject to direct or indirect intervention with its known weapons of terror which has been used in South East Asia, Europe, USSR,Middle East,Latin America,Africa and everywhere in the glob grabbed by the dollar hegemony.


Earlier today,I have posted a clipping of an Assamese news item in which RSS claims to make India free form Muslims and Christians.Understandably,RSS agenda is hitherto quite hidden how it wants to wipe out Sikhs,Buddhists and even Jainies without which the Hindu Rashtra Mission should be incomplete.

Since the recent brutal terror strike in Peshawar,I have ben writing time and again,we should stop Hindu imperialism lest we become a Pakistan.

How real is the threat ,just read this story in Bengali:


মুসলিম ব্রাদারহুড কি ব্যর্থ?

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॥ ড. আজ্জাম তামিমী॥

ভালো নিয়তে হোক বা খারাপ নিয়তে হোক, এখানে সেখানে কেউ কেউ দাবি করছেন যে, ২০১৩ সালে মিসরে যা ঘটেছে তাতে মুসলিম ব্রাদারহুডের পতনের শুরু হয়ে গেছে। শুধু তাই নয়, এদের অনেকে এও দাবি করছেন যে মুসলিম ব্রাদারহুড সংগঠন হিসেবে নিজেরাই ভেঙে দিয়ে পরিসমাপ্তি করে দেয়া উচিত, কারণ এই সংগঠনটি পুরোপুরি ব্যর্থ হয়ে গেছে এবং এর আর কোনো সম্ভাবনা বা ভূমিকা নেই।

যারা এমন দাবি করে আসছেন তাদের কেউ কেউ নিজেদেরকে ব্রাদারহুড বা তার যুব শাখার লোক বলে পরিচয় দেন। কিছুদিন আগ পর্যন্ত এদের কেউ কেউ ব্রাদারহুড এর সিনিয়র নেতাও ছিলেন।

১৯৫৪ সালে যখন ব্রাদারহুড তার প্রথম বড় চ্যালেঞ্জ এর সম্মুখীন হয় তখন আমার জন্ম ও হয়নি। সে সময় সংগঠনটির কয়েকজন বড় নেতাকে ফাঁসি দেয়া হয়েছিলো, শতশত কর্মীকে জেলে নেয়া হয়েছিলো, হাজার হাজার গুম, আন্ডারগ্রাউন্ড বা দেশছাড়া করা হয়েছিলো। ১৯৬৫ সালে যখন সংগঠনটি দ্বিতীয়বার বড় বিপর্যয়ের মুখোমুখি হলো তখন আমার বয়স ছিলো ১০ বছর। সেবারও বিখ্যাত লেখক সাইয়্যেদ কুতুবসহ এর কয়েকজন প্রথমসারির নেতাকে ফাঁসি দেয়া হয়েছিলো, শতশত জেলবন্দী করা হয়েছিলো এবং হাজার হাজার গৃহছাড়া বা দেশছাড়া করা হয়েছিলো।

আমার মনে নেই যে আমি তখন এই বিষয়গুলো পুরোপুরি বুঝতাম কিনা, কিন্তু স্পষ্ট মনে আছে যে আমার অনেক নিকট আত্মীয় যারা জামাল আব্দুন নাসেরকে মুসলিমবিশ্বের আশু ত্রাণকর্তা এবং ফিলিস্তিনের উদ্ধারকারী হিসেবে মনে করতেন, তারা মুসলিম ব্রাদারহুডের এই বিপদে উল্লাস প্রকাশ করেছিলেন এবং এর বিপর্যয়ে অত্যন্ত আনন্দিত হয়েছিলেন। জামাল নাসেরের মিডিয়ামেশিন অত্যন্ত সফলতার সাথে ব্রাদারহুড এর ইমেজ ধ্বংস করতে পেরেছিলো এবং সমগ্র মিডেলইস্ট এর জনমতকে ভুল পথে প্রভাবিত করতে পেরেছিলো।

আমি এখন মনে করতে পারি যে ১৯৫০ এবং ১৯৬০ এর দশকে এর চরম বিপর্যয়ের সময় কিছু মানুষ ব্রাদারহুড সম্পর্কে কি বলেছিলেন। তখন যা বলা হয়েছিলো তা এখন যা বলা হচ্ছে তার থেকে ভিন্ন কিছু নয়। এসব কথার সারাংশ ছিলো এই যে, 'সব কিছুর জন্য ব্রাদারহুড নিজেই দায়ী'। এর নেতাদের কে তীক্ষè সমালোচনা করা হয়েছিলো, এবং দাবি করা হয়েছিলো যে ব্রাদারহুড নিজ থেকেই সংগঠনটির পরিসমাপ্তি করে দেয়া উচিত এবং অন্যদেরকে নতুনভাবে কাজ করার জন্য জায়গা ছেড়ে দেয়া উচিত।

ব্যাপারটা এইরকম যে, ব্রাদারহুড এর উক্ত সমালোচকরা সংগঠনটির বিরুদ্ধে এবং এর সমর্থক অন্যান্য দল বা গোষ্ঠীর বিরুদ্ধে সামরিক জান্তার সকল জুলুম নির্যাতনের জন্য ব্রাদারহুডকেই মূলত দায়ী মনে করেন। তাই সমালোচকরা মনে করেন যে, ব্রাদারহুড তার জায়গা ছেড়ে চলে না গেলে তারা তাদের নতুন উদ্ভাবিত কোনো শক্তি বা পন্থা অনুযায়ী কাজ করার জায়গা পাবেন না, এবং মুসলিম উম্মাহর জন্য এমন বিজয় অর্জন করতে পারবেন না যা ব্রাদারহুড এর মত ৮০ বছরের বৃদ্ধ দলটি করতে ব্যর্থ হয়েছে।

একথা মনে করার কোনো কারণ নেই যে, আমি ওই সমস্ত লোকদের বিরুদ্ধে যারা মনে করেন বর্তমান অবস্থা থেকে ব্রাদারহুডের অনেক কিছু শিক্ষা গ্রহণ করা উচিত বা ব্রাদারহুডের কিছু সংস্কার করা উচিত। মুসলিম ব্রাদারহুড বা অন্য যেকোনো সংগঠন ভুল বা সমালোচনার ঊর্ধ্বে নয়। কিন্তু গতবছরে রক্তক্ষয়ী সামরিক ক্যু এর পর থেকে ব্রাদারহুড এর বিরুদ্ধে যে সমস্ত সমালোচনা করা হয়েছে তাতে আমি তেমন কোনো নিরপেক্ষতা, ন্যায্যতা বা গভীরতা দেখতে পাইনি। ব্রাদারহুডের কিছু সিদ্ধান্তের কথা উল্লেখ করে সমালোচকরা সেগুলো ভুল সিদ্ধান্ত বলেন, যা আপাতত সঠিক মনে হয়। কিন্তু সে সিদ্ধান্তগুলো আরো গভীরভাবে বিশ্লেষণ করার দরকার আছে, এবং যারা তখনকার সময় বিভিন্ন সিদ্ধান্ত নিয়েছিলেন তাদের পক্ষ থেকেও বিস্তারিত ব্যাখ্যা জানা দরকার- কিন্তু তারা অধিকাংশই বর্তমানে জেলে অথবা আন্ডারগ্রাউন্ডে আছেন।

যে সমস্ত যুবকরা তীব্র সমালোচোনা করছেন তাদের অনেকেরই অনেক সূক্ষ্ম বিষয় সম্পর্কে গভীর জানাশুনার অভাব ধরা পড়েছে। তারা যেসব সমালোচনা করছেন তার বেশিরভাগই নানারকম ভিত্তিহীন কানাঘুষা বা ব্রাদারহুড বিরোধী প্রচারণায় প্রভাবিত।

যারা ব্রাদারহুড সম্পর্কে এমন সিদ্ধান্ত দিচ্ছেন যে, সংগঠনটি ব্যর্থ হয়ে গেছে, তারা ব্রাদারহুড থেকে এমন বিশাল কিছু আশা করছিলেন যার বাস্তবায়ন হয়নি। যদি এমনটিই হয়ে থাকে, তাহলে তাদের এরকম কল্পনাবিলাসের জন্য ব্রাদারহুড দায়ী হবে কেনো? ব্রাদারহুড তো কখনো এমন প্রতিশ্রুতি দেয়নি যে আমরা তোমাদের জন্যে এই দুনিয়াকে বেহেশত বানিয়ে দিবো। ব্রাদারহুড কেবল এমন একটি আদর্শের প্রচার করে যা তারমতে এই দুনিয়া ও আখিরাতে মানুষের জন্য কল্যাণকর হবে; সেইসাথে মানুষকে দুনিয়ার ও আখিরাতের জীবন উন্নত করার উদ্দেশ্যে চেষ্টা সাধনা করার জন্য উৎসাহিত করে।

ব্রাদারহুড কখনো কাউকে খুশি বা তুষ্ট করার জন্যে কাজ করেনি। তার উদ্দেশ্য কোনো মানুষকে খুশি করা নয়, বরং আল্লাহর সন্তুষ্টি লাভ করাই তার চূড়ান্ত উদ্দেশ্য। সংগঠনটির স্লোগান সবসময় এটাই ছিলো যে : আল্লাহ আমাদের লক্ষ্য, রাসূল (সা.) আমাদের আদর্শ, জিহাদ আমাদের পথ, এবং আল্লাহর পথে শাহাদাৎ আমাদের সর্বোত্তম কাম্য।

যখন কেউ মুসলিম ব্রাদারহুড কে ব্যর্থ বলে সমালোচনা করে তখন আমার কুরআন শরিফের সূরা আল-বুরুজে বর্ণিত ঐতিহাসিক ঘটনা মনে পড়ে। এক স্বৈরাচারী শাসক নিজেকে খোদা বলে দাবি করেছিলো। যারা আল্লাহর তাওহিদ ছেড়ে ওই স্বৈরাচারীকে খোদা বলে মানতে অস্বীকার করেছিলো তাদেরকে পুড়িয়ে মারার জন্যে গর্ত খুড়ে তাতে আগুন জ্বালা হয়েছিলো। তাহলে এই সমালোচনাকারীরা কি দাবি করবে যে ঐসব সাহসী নেকবান্দা, যারা ওই স্বৈরাচারী শাসককে অস্বীকার করে আগুনে পুড়ে মরতে প্রস্তুত ছিলো, তারা ব্যর্থ? অথবা হাদিসে বর্ণিত সেই বালকের কথা- যে নিজের কপালে তীর বরণ করে নিয়ে শাহাদাৎ বরণ করেছিলো এই উদ্দেশ্যে যে, তার শাহাদাতের মাধ্যমে মানুষ সত্য ও মিথ্যার পার্থক্য বুঝতে পারবে- সেই বালক কি ব্যর্থ বা পরাজিত?

নিঃসন্দেহে যখন আগুনে পুড়ে মুমিনদের কে মারা হচ্ছিলো তখন তা দেখে অনেকে ভয়ে ঘাবড়ে গিয়েছিলো, এবং এই যন্ত্রণাদায়ক মৃত্যুকে অসহনীয় মনে করে সেই স্বৈরাচারের দাসত্ব গ্রহণ করেছিলো, বিনিময়ে অল্প কিছুদিন বেশি বেঁচে থাকার সুযোগ পেয়েছিলো। তারা হয়তো মনে করেছিলো যে আগুনে পুড়ে মৃত্যুকে সাদরে গ্রহণকারী ঈমানদারগণ ব্যর্থ হয়েছেন। তাহলে উক্ত দুই দলের মধ্যে কারা সঠিক পথে ছিলো আর কারা ভুল পথে ছিলো?

কিছু হতাশ তরুণ এরকম মনোভাব প্রকাশ করছে যে তারা ব্রাদারহুড এর বয়স্ক নেতাদের উপর বিরক্ত যারা নিজেদের পজিশন আঁকড়ে ধরে আছে এবং তা ছেড়ে দিতে নারাজ। এই তরুণরা দাবি করছে যে, বৃদ্ধরা অবসরে চলে গিয়ে তরুণদের নেতৃত্বে আসার সুযোগ করে দেয়া উচিত। একথা বলার সময় এই তরুণরা ভুলে যায় যে, যে বৃদ্ধদের প্রতি তাদের এত অপবাদ- সেই বৃদ্ধরাই বর্তমানে স্বৈরাচারের জুলুম নির্যাতনের কাছে মাথানত করতে অস্বীকার করায় জেলে বন্দী। এই বৃদ্ধরা তাদের উপর সমস্ত বিপদ আপদকে সাহসিকতার সাথে সহ্য করে যাচ্ছেন। এই বৃদ্ধদের অবিচল আত্মবিশ্বাস আছে যে, সহসাই তারা সঠিক প্রমাণিত হবেন। এই বৃদ্ধরা জানেন যে তারা যেসমস্ত বিপদের সম্মুখীন হচ্ছেন তা তাদের পূর্ববর্তী যারা ন্যায়, মর্যাদা ও স্বাধীনতার জন্যে সংগ্রাম করেছিলেন তারাও এসব কিছুর সম্মুখীন হয়েছিলেন।

কিছু কিছু সমালোচনাকারীর একটা অভ্যাসে পরিণত হয়েছে এমন লোকদের মৃত মাংস ভক্ষণ (গিবত) করা, যারা হয়তো আর বেঁচে নেই অথবা জেলে বন্দী অথবা নির্বাসনে। এই সমালোচনাকারীরা উক্ত লোকদের তাদের দৃষ্টিতে ভুলভ্রান্তি উল্লেখ করে অনেকটা উল্লাসের সাথে সমালোচনা করে বেড়াচ্ছে। তারা দম্ভোক্তি করে বলে বেড়াচ্ছে যে, প্রেসিডেন্ট মুরসি বা খায়রাত আল শাতেরের জায়গায় তারা থাকলে সবকিছু অনেক ভালোভাবে করতে পারতো। হায়- এই লোকদের সময় ও শক্তি নষ্ট করার কি আজব পন্থা! এদের এসব কাজকর্ম সম্পূর্ণ নিরর্থক।

ব্রাদারহুডের বিভিন্ন সময়ে নেয়া কিছু সিদ্ধান্তের ব্যাপারে বারবার একই অভিযোগ করা হচ্ছে। অথচ কি পরিস্থিতিতে ওই সিদ্ধান্তগুলো নেয়া হয়েছিলো তার সঠিক জ্ঞান সমালোচনাকারীদের জানা নেই। আর যদি ধরেই নিই যে ওই সিদ্ধান্তগুলোর কিছু আসলেই ভুল ছিলো বা সর্বোত্তম ছিলোনা- যা হওয়া স্বাভাবিক- তাহলে তাতেই বা কি এসে যায়? ইজতিহাদের পন্থাই হলো বিদ্যমান পরিস্থিতির প্রয়োাজন অনুসারে নিজস্ব বিশ্লেষণ, সর্বোচ্চ সামর্থ্য ও জ্ঞান অনুযায়ী সিদ্ধান্ত গ্রহণ করা. এভাবে নিজেদের নেয়া সিদ্ধান্ত সঠিকও হতে পারে, আবার ভুলও হতে পারে। ইসলামী শিক্ষা অনুযায়ী সিদ্ধান্ত যাই হোক- ইজতিহাদ করলে চেষ্টা সাধনা করার কারণে সওয়াব হবে- সঠিক হলে দুই সওয়াব, আর ভুল হলে এক সওয়াব।

ব্রাদারহুডের পারফরমেন্স এবং অবদানের ব্যাপারে যারা অসন্তুষ্ট, বিশেষ করে যারা একসময় এর সদস্য ছিলেন কিন্তু এখন এর নেতৃত্বের মুখ দেখাদেখি বন্ধ, তাদের প্রতি আমার আন্তরিক পরামর্শ এই যে, আপনারা (নিজেদের কর্মসূচি নিয়ে) এগিয়ে যান, কারণ ময়দান অনেক বড় ও প্রশস্ত। দোয়া করি যাতে আপনারা সফল হোন. নিজেরা যা সঠিক মনে করেন তা করতে থাকুন, অন্যরা যেখানে ব্যর্থ হয়েছে আপনারা সেখানে সফল হোন।

১৯২৮ সালে প্রতিষ্ঠার পর থেকে অনেকেই এই সংগঠন ছেড়ে স্বেচ্ছায় চলে গেছেন। এটা তেমন বড় কোনো ব্যাপার নয়। যারা ছেড়ে চলে গেছেন তারা বিভিন্নজন বিভিন্ন পথে গেছেন। কেউ কেউ ভালো কিছু করেছেন, কেউ কেউ তেমন ভালো কিছু করতে পারেননি। যারা ভালো কিছু করেছেন তাতে তারা নিজেরাই লাভবান হয়েছেন, আর যারা খারাপ করেছেন তার ফল তাদের উপর। মুসলিম ব্রাদারহুডই কেবল ইসলাম নয়, বা ইসলামের একমাত্র সংগঠন নয়, বরং এটি বৃহত্তর মুসলিম উম্মাহর মাঝে একটি সংগঠন। এর সমস্ত চেষ্টা সাধনা ও কর্মসূচি পরিচালিত হয় এর সদস্যদের সর্বসম্মত কিছু নিয়ম কানুন অনুযায়ী। যারা ছেড়ে চলে যান তারা এতে কোনো পাপ করেন না; তারা স্বেচ্ছায় প্রবেশ করেছিলেন, আবার স্বেচ্ছায় বের হয়ে যাবার স্বাধীনতাও তাদের আছে।

কিন্তু মুসলিম ব্রাদারহুডের দিন শেষ হয়ে গেছে আর তাই নিজেরাই একে ভেঙ্গে দেয়া উচিত- কারো এরকম দাবি করা বৃথা ও অনর্থক। সবকিছুর উপরে কথা হলো- ব্রাদারহুড একটি আদর্শের নাম, আর আদর্শের কোনো মৃত্যু নেই; এটি একটি আশার বাণী, আর আশা আকাক্সক্ষার কোনো শেষক্ষণ নেই; এটি একটি সংস্কার কর্মসূচি, আর সংস্কার হলো ইসলামী বিশ্বাসের মর্মমূলে। তাই, যাদের অনেক তাড়া, যারা হতাশ, বা যারা ফল লাভে মরিয়া, তাদের কে বলবো যে, ব্রাদারহুড কে এত তাড়াতাড়ি অবান্তর মনে করবেন না। যতক্ষণ পর্যন্ত কোনো ব্রাদার্স থাকবে, ততক্ষণ পর্যন্ত ব্রাদারহুড থাকবে। ব্রাদারহুড আবার সেভাবেই পুনরুজ্জীবিত হবে, অতীতে বারবার যেভাবে হয়েছিলো।

আপনাদের মাঝে যারা দীর্ঘকাল বেঁচে থাকবেন তারা দেখতে পাবেন যে কষ্টের পরে আরাম আসবে, বিপদের পরে আসবে শান্তি। আজকের সঙ্কট আগামীদিনের জন্যে সুপ্ত আশীর্বাদ হিসেবে প্রমাণিত হবে ইনশাল্লাহ।

অনুবাদ : সাকিব হেলাল

সূত্র : মিডল ইস্ট মনিটর

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Quite a new equation to help the passage of the all reform bills in the Parliamnet.The snow melts at last.

Next: कुछ न कुछ पका है दिल्ली में! लेकिन बंगाल दखल करने का ख्वाब फिलहाल संघपरिवार का पूरा होना मुश्किल! असम में संघ परिवार 2021 तक भारत को मुसलमानों और ईसाइयों से मुक्त करने का संकल्प दोहरा रहा है तो निशाने पर हैं बौद्ध,सिख और जैन धर्म के अनुुयायी भी। कोलकाता में अपनी पिछली सभा में अमित साह कह गये हैं कि बंग विजय के बिना भारत विजय असंभव है।उनका तेवर ऐसा है कि जैसे किसी हमलावर विदेशी सेना के सिपाहसालार किसी देश के एक के बाद एक जनपद को रौंदता चला जा रहा हो।बहरहाल बंगविजय का सपना कम से कम 2016 में तो पूरा होते नहीं दीख रहा है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
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Quite a new equation to help the passage of the all reform bills in the Parliament.The snow melts at last.Mamata already hinted to support GST which was most opposed by then Gujarat Chief Minister Narenrda Bahi modi who is incidentally the Chief Minister of India and has an uphill task to pass all the reform Bills to serve US interest lest he should not be balmed for policy paralysis.
Uncle Sam is coming! Christmas or No Christmas!

Palash Biswas
16.12.2014 (7 photos)
Kolkata gets ready to be in a festive mood to celebrate Christmas and 

New Year.

Today, the 4th Kolkata Christmas Festival was inaugurated at Allen Park, 

Park Street.

From 18th December to 2nd January, 2015, as part of the festival, there 

will be Christmas Carols, Live Bands, cultural programs, food courts, 

entertainment zones and lots of fun. The entire area will be decorated 

with festival lights.

I invite all of you to come and enjoy the festivities.
Mamata Banerjee's photo.
Mamata Banerjee's photo.
Mamata Banerjee's photo.
Mamata Banerjee's photo.

कुछ न कुछ पका है दिल्ली में! लेकिन बंगाल दखल करने का ख्वाब फिलहाल संघपरिवार का पूरा होना मुश्किल! असम में संघ परिवार 2021 तक भारत को मुसलमानों और ईसाइयों से मुक्त करने का संकल्प दोहरा रहा है तो निशाने पर हैं बौद्ध,सिख और जैन धर्म के अनुुयायी भी। कोलकाता में अपनी पिछली सभा में अमित साह कह गये हैं कि बंग विजय के बिना भारत विजय असंभव है।उनका तेवर ऐसा है कि जैसे किसी हमलावर विदेशी सेना के सिपाहसालार किसी देश के एक के बाद एक जनपद को रौंदता चला जा रहा हो।बहरहाल बंगविजय का सपना कम से कम 2016 में तो पूरा होते नहीं दीख रहा है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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कुछ न कुछ पका है दिल्ली में!


लेकिन बंगाल दखल करने का ख्वाब फिलहाल संघपरिवार का पूरा होना मुश्किल!

असम में संघ परिवार 2021 तक भारत को मुसलमानों और ईसाइयों से मुक्त करने का संकल्प दोहरा रहा है तो निशाने पर हैं बौद्ध,सिख और जैन धर्म के अनुुयायी भी।




कोलकाता में अपनी पिछली सभा में अमित साह कह गये हैं कि बंग विजय के बिना भारत विजय असंभव है।उनका तेवर ऐसा है कि जैसे किसी हमलावर विदेशी सेना के सिपाहसालार किसी देश के एक के बाद एक जनपद को रौंदता चला जा रहा हो।बहरहाल बंगविजय का सपना कम से कम 2016 में तो पूरा होते नहीं दीख रहा है।



एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


भाजपाई पहल पर बने तीनों छोटे राज्यों उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ में संघ परिवार की विजययात्रा भले ही केकवाक साबित हो,ऐसा अनार्यभूमि के बाकी हिस्सों में भी हो कोई जरुरी नहीं।बंगाल,ओड़ीशा,तमिलनाडु और असम जीतना उतना अासान भी नहीं है।बहरहाल,ताजा परिदृश्य के मुताबिक पश्चिम बंगाल ने राजनीतिक परिदृश्य में 2014 में निश्चित रूप से बदलाव महसूस किया। इस साल लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा एक ओर एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी वहीं शारदा चिट फंड घोटाले एवं बर्द्धमान विस्फोट का लाभ उठाते हुये उसने राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को`बैकफुट' ला दिया।



असम में संघ परिवार 2021 तक भारत को मुसलमानों और ईसाइयों से मुक्त करने का संकल्प दोहरा रहा है तो निशाने पर हैं बौद्ध,सिख और जैन धर्म के अनुुयायी भी।मीडिया की खबरें से मिल रहे तथ्यों के आदार पर जमीनी हकीकत के बरखिलाफ बंगाल में केसरिया गुब्बारे खूब उड़ाये जा रहें है और एकमुश्त कश्मीर और तमिलनाडु समेत पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत यूपी बिहार एमपी राजस्थानमहाराष्ट्र की तर्ज पर घनघोर घृणा अभियान की पूंजी के दम पर जीत लेने की तैयारी में है संघ परिवार।


कोलकाता में अपनी पिछली सभा में अमित साह कह गये हैं कि बंग विजय के बिना भारत विजय असंभव है।उनका तेवर ऐसा है कि जैसे किसी हमलावर विदेशी सेना के सिपाहसालार किसी देश के एक के बाद एक जनपद को रौंदता चला जा रहा हो।बहरहाल बंगविजय का सपना कम से कम 2016 में तो पूरा होते नहीं दीख रहा है।


तो मोहन भागवत ने खुल्ला ऐलान करते ङुए घरवापसी जारी रखने का उद्घोष कोलकाता की सरजमी से किया जहां तीस फीसद से ज्यादा मुसलमान हैं और एक तिहाई सीटों पर मुसलमानों के वोट निर्मायक हैं।


हिंदू समाज जागने लगा है। भारत में रह रहे हिंदुओँ को डरने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि, हम किसी अन्य देश से यहां नहीं आये। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोलकाता के शहीद मीनार मैदान में विश्व हिंदू परिषद के स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में आयोजित 'विराट हिंदू सम्मेलन'को संबोधित करते हुए य बातें  कहीं।


वाममोर्चा शासन में जहां संघ की शाखाएं भी बंगाल में नहीं लगीं,ममता बनर्जी की नाक के नीचे शंग परिवार की यह युद्धघोषणा निश्चय ही ममता बनर्जी और परिवर्तन के बाद सत्ता में आय़ी मां माटी मानुष सरकार की महान उपलब्धि है।


मोहन भागवत ने जो कहा,वह असम में मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये की घोषणा की पृष्ठभूमि है।उनने कहा कि घुसपैठ के चलते भारत में हिंदुओँ की संख्या घट रही है। एक वक्त था जब भारत में रहने वाले सभी हिंदु हुआ करते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या घट कर देश की कुल जनसंख्या का ८२ प्रतिशत हो चुकी है। उन्होंने आशंका प्रकट करते हुए कहा कि कहीं यह संख्या घट कर ४२ प्रतिशत न हो जाये। इस दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल को घुसपैठियों से मुक्त कराने का संकल्प जाहिर कियाŸतथा गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाये जाने की मांग की। सम्मेलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद के स्थानीय नेताओँ व विभिन्न पंथों से जुडे धर्मगुरुओं व संतो ने भी संबोधित किया। लगभघ सभी वक्ताओं ने qहदू समाज को संगठित और सशक्त बनाने पर विशेष जोर दिया व हिंदुओं के लिये विश्व हिंदू परिषद द्वारा दुनिया भर में किये जा रहे कार्यों की सराहना की।


बहरहाल,हुआ इतना है कि सीबीआई महिमा की वजह से कटघरे में हैं ममता बनर्जी और एक के बाद एक दागी मंत्री सासद वगैरह वगैरह जेल की सलाखों के पीछे हैं।तपिश और दबिश दोनों ममता बनर्जी के खिलाफ हैं।


केंद्र के खिलाफ दिल्ली और कोलकाता में जिहाद का ऐलान करने वाली ममता बनर्जी राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अनुरोध पर नई दिल्ली रुक गयी और अचानक उनके साथ प्रधानमंत्री राष्ट्रपति भवन में भेंटा गये,यह गप्प बंगाल में किसी के गले उतर नहीं रहा है,जबकि जीएसटी बिल की शुरुआत से कड़ा  विरोध करने वाली ममता ने इसके सबसे भयंकर विरोधी गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री जो अब प्रधानमंत्री बनकर उस कानून को बाराक बाबू के आगमन से पहले राज्यसभा में जरुरी बहुमत के बिना जैसे तैसे पासकराने की जुगत लगा रहे हैं,के साथ खड़ी दीख रही हैं।


बाकी कानून पास करने में भी तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों के समर्थन बेहद निर्णायक साबित होेने वाला है।


ममता की दिल्ली यात्रा और उनकी आग उगलू प्रेस कांफ्रेंस के मध्य यकबयक जीएसटीबिल ममता की हरी झंडी के बिना लोकसभा में पेश करने वाले कारपोरेट वकील अरुण जेटली जो बीमा समेत तमाम सुधार कानून पास करने का दावा करने लगे हैं,उससे सीबीआई जांच का पुराना इतिहास दुहराया जाता नजर आ रहा है,जिसमें कटघरे में तो सारे के सारे क्षत्रप हुएकभी न कभी,लेकिन सजा अकेले लालू प्रसाद की हो गयी।बाकी सारे लोग छुट्टा घूम रहे हैं।



एक्जिट पोल में मीडिया ढाक ढोल पीटकर झारखंड में भाजपाई जीत का ऐलान कर रही है जबकि इकोनामिक टाइम्स ने खास हिंदुत्व के गढ़ जम्मू में नैसेटी ब्लो के लिए भाजपा को सतर्क पहले ही कर दिया है और कश्मीर में जो भारी मतदान हुआ है वह संग परिवार के खिलाफ है।


जाहिर है कश्मीर को जीत लेने का दावा करने वाला केसरिया मीडिया अब खामोश हैं।


पहलीबार कोलकाता नगरनिगम के चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री आ रहे हैं।किसी प्रधानमंत्री ने दिल्ली महापालिका के लिए कभी चुनाव प्रचार किया है या नहीं,इस बारे में हमें जानकारी नही है।संघपरिवार की शाखाएं बंगाल में खूब लग रही हैं और संघ संगठनों ने तो बाकायदा बंगाल जीतने का ऐलान ही कर दिया है।


प्रधानमंत्री से ममता की संजोगवश मुुलाकात के मध्य ही मुरझाये हुए जेलबंदी मदनमित्र जेल रवाना होने से पहले माकपा के तीन नेताओं रोबिन देब,मोहम्मद सलीम और सुजन चक्रवर्ती के जो शारदा फर्जीवाड़े में नाम गिना गये,उसके नतीजे देखना दिलचस्प होगा।


दरअसल संघ परिवार को असम और बंगाल का जनसंख्या विन्यास मालूम है।शत प्रतिसत धारिमिक ध्रूवीकरण हुआ तो अपर पक्ष भी खामोश बैठने वाला नहीं है और उनके वोट कश्मीर की तरह भाजपा विरोधी शक्तियों को पड़ने वाले हैं।


ममता को भगाने से ही बंगाल दखल संभव नहीं है,जाहिर है।इसके लिए वामदलों का सफाया जरुरी है और चुनावी पराजयों के बाद अब जो तेजी से गोलबंद होने लगे हैं।उत्तरी बंगाल में कांग्रेस के गढ़ अभी बने हुए हैं,जिन्हें ध्वस्त करने की भी चुनौती है।


अब बंगाल मिशन के तहत दरअसल भाजपा तृणमूल काग्रेस के अलावा कांग्रेस और वामदलों की घेराबंदी करने की तैयारी में हैं और गुल अभी और तरह तरह के खिलने वाले हैं।जाहिर है कि कड़कती सर्दियों में भी बागों में बहार है।


इसीलिए विहिप सम्मेलन में उमडे जनसैलाब को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि भारत हिंदुओँ का देश है और हिंदू यहां पूरी तरह सुरक्षित हैं। उसे कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। हिंदू अपनी भूमि छोड कर कहीं नहीं जायेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक हिंदू समाज सिर्फ सहता रहा है लेकिन अब और सहने की जरूरत नहीं है।



विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिया ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए घुसपैठ की समस्या पर गंभीर चिंता जाहिर की। घुसपैठ को भारत  के लिये बडा खतरा करार देते हुए उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से लाखों की तादाद में घुसपैठिये भारत में आ चुके हैं जो हिंदुस्तान के लिये खतरा पैदा कर रहे हैं।

लव जिहाद का मुद्दा उठाते हुए तोगडिया ने कहा कि इस अभियान के जरिये हिंदू लडके-लडकियों का धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। इसे कतई सहन नहीं किया जा सकता। उन्होंने लोगों से बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपने घर में ठहरने नहीं देने की अपील करते हुए कहा कि जो भारत के नागरिक नहीं है उन्हें घर किराये पर देना अपराध है।



राज्य में नरेन्द मोदी की लहर के सहारे मई में हुये लोकसभा चुनाव में भाजपा की झोली में 17 प्रतिशत मत आये जबकि 2011 में हुये विधानसभा चुनाव में पार्टी को राज्य में केवल चार फीसदी मत हासिल हुये थे। बहुकोणीय मुकाबले में, तृकां को सबसे अधिक लाभ मिला और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 पर उसने कब्जा कर लिया। भाजपा के एक ताकत के रूप में उभरने के कारण बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव महसूस किया गया और पूर्व में एक मजबूत ताकत रही वाम किनारे चली गयी। वाम मोर्चे की वरिष्" सहयोगी माकपा बशीरहाट और चौरंगी विधानसभा सीटों पर हुये उपचुनाव में अपनी जमानत जब्त करवा बैठी।


भाजपा ने बशीरहाट सीट जीत ली जबकि चौरंगी सीट पर वह दूसरे नम्बर पर रही जहां तृकां ने चुनाव जीता। ना केवल अपने राजनीतिक विरोधियों बल्कि पार्टी के भीतर भी माकपा को आलोचना का शिकार होना जिससे बाद पार्टी ने अपने दो नेता अब्दुर रज्जाक मुल्ला और लक्ष्मण से" को `पाटी विरोधी गतिविधियों' के आरोप के कारण निलंबित कर दिया।


भाजपा के उभार को देखते हुये तृकां प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोदी सरकार के खिलाफ हमले तेज कर दिये हैं और उनपर देश बेचने का आरोप लगाया और सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश के लिए भाजपा पर हमला किया।

कोई शक नहीं कि ताजा हालाते जो दीख रहे हैं,वे इस तरह हैं कि राजनीतिक परिदृश्य में कई करोड़ के शारदा घोटाले की गूंज सुनाई देती रही और सत्तारूढ़ पार्टी के परिवहन मंत्री मदन मित्रा और दो राज्यसभा सांसद सृंजय बोस और कुणाल घोष को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया जिससे पार्टी को बड़ी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा।

दो अक्तूबर को बर्द्धमान विस्फोट में जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश के दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गये थे और इस मुद्दे को लेकर भी राज्य सरकार पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य सरकार पर यह आरोप लगाते हुए हुए शिंकजा कसा कि इसमें भी सारधा घोटाले के धन का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि, केन्द ने बाद में कहा कि जांच में अभी तक इस तरह के किसी भी लेन-देन का पता नहीं चला है जिसमें आतंकवादी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश पैसा जा रहा हो।

इसी बीच ममता पर और दबाव बनाने के लिएशारदा घोटाले के मामले बंगाल से बाहर स्थानांतरित करने की तैयारी है।गिरफ्तार मंत्री मदनमित्र को अदालत में पेश करने के दौरान समर्थकों की भारी भीड़ के देखते हुये शारदा घोटाले की जांच कर रहे सीबीआई के विशेष अपराध शाखा मामले को किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है, ऐसा बताया जा रह है जिससे सत्ता खमे में जाहिरा तौर पर खलबली मच गयी है।

सीबीआई के एक सूत्र ने बताया 'शनिवार को अलीपुर अदालत में पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री मदन मित्रा को पेश करने के दौरान भारी भीड़ को देखते हुये हम लोग किसी दूसरे राज्य में मामले को स्थानांतरित करने के बारे में विचार कर सकते हैं।'

अदालत में मित्रा को पेश करने के लिए जाने से पहले और बाद में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के हजारों समर्थक अदालत परिसर के सामने जमा हो गये और उनमें से कई लोगों ने एसयूवी को घेर लिया जिसमें मंत्री और सीबीआई के एक अधिकारी बैठे हुये थे।

सूत्र ने बताया 'भीड़ उपद्रवी थी। हम लोगों ने पश्चिम बंगाल पुलिस प्रशासन से अगली बार 16 दिसंबर को फिर से मंत्री की पेशी के दौरान बेहतर व्यवस्था करने की मांग की है।'सूत्र ने बताया 'देखते हैं, क्या होता है। अगर 16 दिसंबर को स्थिति में सुधार नहीं होता है तब हम दूसरे विकल्प पर विचार करेंगे।'



जरा अपने घर में भी झांक कर देख लें घर वापसी कराने वाले

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जरा अपने घर में भी झांक कर देख लें घर वापसी कराने वाले

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Posted by: हस्तक्षेप 2014/12/20 in आपकी नज़र Leave a comment

 

   मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी है, जो कि शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक) का लोगों के विभिन्न तबकों और उनकी महिलाओं के मध्य असमान बंटवारे से उत्पन्न होती रही है। यही वह समस्या है जिसके खात्मे के लिए गौतम बुद्ध, मज्दक, सवोनरोला, विलियम गाड्विन, सेंट साइमन,वाल्टेयर, रॉबर्ट ओवन, मार्क्स, माओ, लेनिन, आंबेडकर इत्यादि जैसे ढेरों महामानवों का उदय हुआ। इनके प्रयत्नों से मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या से पार पाने की दिशा में ठोस काम हुए, बावजूद इसके कमोबेश इसकी व्याप्ति दुनिया में सारी जगह है। किन्तु इस मामले में भारत जैसी बदतर स्थिति विश्व के अन्य किसी देश में नहीं है। दुनिया के किसी भी देश में हजारों साल के परम्परागत रूप से विशेषाधिकारयुक्त व सुविधासंपन्न अल्पजन लोगों का शक्ति के स्रोतों पर 80-85 प्रतिशत कब्ज़ा नहीं है। इस सुविधासंपन्न वर्ग द्वारा खड़ी की गयी विषमता की खाई के कारण देश गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, विच्छिन्न्तावाद, आतंकवाद के दलदल में बुरी तरह फँस गया है। विषमता की यह स्थिति पूर्ववर्ती सरकारों की गलत नीतियों का परिणाम है, जिन्होंने शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे की दिशा में सम्यक कदम नहीं उठाया। ऐसे में जब अच्छे दिन आने का सपना दिखा कर भारी बहुमत के साथ भाजपा की सरकार सत्ता में आयी तब इस पार्टी के ख़राब रिकार्ड के बावजूद अंततः इस लेखक को उम्मीद थी कि राष्ट्र-भक्ति का सब समय उच्च उद्घोष करने वाली यह पार्टी इस बार विषमता के खात्मे की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाएगी तथा विभाजनकारी भावनात्मक मुद्दों से दूर रहेगी, जिसके लिए यह देश-विदेश में बदनाम है। किन्तु हुआ उल्टा। विषमता का मुद्दा पता नहीं कहाँ खो गया और अभूतपूर्व रूप से उभरकर आ गया वह विभाजनकारी मुद्दा जिसे तुंग पर पहुंचाने की इस पार्टी और इसके सहयोगी संगठनों को महारत हासिल है।

   आज इस पार्टी के सहयोगी संगठनों के सौजन्य से सारे आवश्यक मुद्दे पृष्ठ में चले गए हैं, मुख्य मुद्दा बन गया है धर्मान्तरण जिसे 'घर वापसी'का नाम दिया जा रहा है। यही आज सड़क से लेकर संसद और बौद्धिक बहसों का प्रधान मुद्दा बन गया है। अभी तक घर वापसी के निशाने पर कुछ खास जिले ही थे, किन्तु अब भाजपा के मातृ संगठन संघ के एक अनुषांगिक संगठन की ओर से 2021 तक भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की खुली घोषणा कर दी गयी है। इसके नेता ने खुलकर कह दिया है कि 2021 तक मुस्लिम और ईसाईयों को हिन्दू बना लिया जायेगा। बहरहाल संघ के तीन दर्जन अनुषांगिक संगठनों की गतिविधियों से यह स्पष्ट है कि यह आर्थिक और सामाजिक विषमता को पूर्ववत रखना चाहता है। ऐसा इसलिए कि जिन विशेषाधिकार युक्त व सुविधासंपन्न अल्पजनों का शक्ति के समस्त स्रोतों पर प्रायः एकाधिकार है, यह संगठन उन्हीं के हित का पोषण करने के उद्देश्य से बना है। ऐसे में अल्पजनों के प्रभुत्व को अटूट रखने लिए यह वंचितों की उर्जा विषमता के खात्मे की बजाय अन्य दिशा में मोड़ना चाहता है। इसलिए ही वह जज्बाती मुद्दे को तूल दे रहा है। बहरहाल आज की तारीख में जब सुविधाभोगी वर्ग के हित में वंचितों की उर्जा घर वापसी में लगाने की दिशा में संघ के आनुषांगिक संगठन सुपरिकल्पित रूप से आगे बढ़ रहे हैं, यह लेखक उनसे अपने घर में झांकने की गुजारिश कर रहा है। क्या जिस घर में वर्षों पूर्व घर छोड़े लोगों की वापसी करने की कवायद हो रही है,उसमें पहले से रह रहे लोग संतुष्ट हैं? मेरा प्रश्न है क्या कुछ विशिष्ट किस्म के ब्राह्मणों को छोड़कर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण से कई सहस्रों मानव प्रजातियों में बंटे हिन्दू स्त्री-पुरुषों, जिनमे रंचमात्र भी आत्मसम्मान और विवेक है, को हिन्दू धर्म में रहना चाहिए?

  याद करें भूमिहार, उपाध्याय, आचार्य, महापात्र, दुबे, तिवारी, चौबे वगैरह की नम्बुदरीपाद, वाजपेयी, मिश्र इत्यादि ब्राह्मणों के समक्ष सामाजिक मर्यादा। क्या इनकी तुलनात्मक सामाजिक मर्यादा हिन्दू धर्म से मुक्त होने के लिए प्रेरित नहीं करती? इसी तरह हिन्दू समाज में सिंहों की भांति विचरण करने वाले क्षत्रियों से हिन्दू धर्म यह कहता है कि सत्तर वर्ष के क्षत्रिय को चाहिए कि वह दस वर्ष के ब्राह्मण बालक को पिता जैसा मानते हुए प्रणाम करे, और बड़ी-बड़ी मूंछे फहराए क्षत्रिय ऐसा करते भी हैं। क्या यह शास्त्रादेश क्षत्रियों को हिन्दू-धर्म से मोहमुक्त होने के लिए प्रेरित नहीं करता ? और हिन्दू धर्म में वैश्य मात्र वित्तवान होने के अधिकार से समृद्ध हैं, पर ब्राह्मण और क्षत्रियों के समक्ष उनकी हीनतर स्थिति क्या हिन्दू धर्म के परित्याग का आधार नहीं बनाती? आत्मसम्मान के अतिरिक्त हिन्दू-धर्म अर्थात वर्ण-धर्म के मात्र आंशिक अनुपालन से उपजी विवेकदंश की समस्या तो इनके साथ है ही, पर आत्मसम्मान और विवेक विसर्जित कर भी सवर्णों के हिन्दू धर्म में रहने की कुछ हद तक युक्ति है क्योंकि इसके विनिमय में उन्हें हजारों साल से शक्ति के स्रोतों में पर्याप्त हिस्सेदारी मिली है। पर, आत्मसम्मान व विवेक से समृद्ध सवर्ण नारियां व शुद्रातिशुद्रों से कैसे कोई प्रत्याशा कर सकता है कि वे हिन्दू धर्म में बने रहेंगे?

  जिन्हें हिन्दू माना जाता है उनका हिंदुत्व वर्ण-धर्म के पालन पर निर्भर है। और वर्ण-धर्म के पालन का अर्थ है कि सच्चा हिन्दू वर्ण और कर्म-संकरता से दूर रहेगा। वर्ण-संकरता से बचने का मतलब एक सच्चे हिन्दू को जाति सम्मिश्रण की सम्भावना को निर्मूल करते जाना होगा। वहीँ कर्म-संकरता से बचने का एकमेव मार्ग प्रत्येक जाति/वर्ण के हिन्दू को जन्मसूत्र से निर्दिष्ट कर्म/पेशे में ही लगा रहना होगा। अर्थात चमार व दुसाध जैसे चर्मकारी व सुअर पालन छोड़कर अध्यापक, पुजारी सैनिक इत्यादि नहीं बन सकते, उसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य क्रमशः हलवाही, कुलीगिरी, धोबीगिरी इत्यादि जैसा सेवा कर्म नहीं कर सकते। लेकिन किसी भी समाज को वर्ण व कर्म संकरता से बचाए रखना असंभव कार्य लगता है क्योंकि यह मानवीय इच्छा की पूर्णतया हत्या किये बिने संभव ही नहीं है। वैसे दुनिया में हिन्दू समाज को छोड़कर अन्य समाजों ने इसकी जरुरत ही महसूस नहीं की। लेकिन भारत में असंभव सा काम ब्रिटिशराज स्थापित होने के पूर्व तक ब्राह्मणों के शास्त्रों और क्षत्रियों शस्त्रों के सम्मिलित प्रयास से सफलता पूर्वक अंजाम दिया गया। हिन्दू समाज को वर्ण व कर्म-संकरता से बचाए रखने में सवर्ण नारियों और शुद्रातिशुद्रों को जिस तरह इस्तेमाल होना पड़ा है, वह अपने आप में एक इतनी गहरी तिक्त अभिज्ञता है जो इनके आत्मसम्मान को गहराई से ललकारते हुए हिन्दू-धर्म से भागने की विकत आवाज लगाती है।

   हिन्दू- धर्म स्त्रियों को किस रूप में देखता है इस तथ्य से गाँव की अनपढ़ चमारिन, दुसाधीन, अहिरिन वगैरह तो अनजान हो सकती हैं, किन्तु इंदिरा गाँधी, किरण बेदी, ऐश्वर्या राय बनने की आकांक्षी शहरी पढ़-लिखी महिलाएं तो जानती ही हैं कि हिन्दू-धर्म नारियों को जिस रूप में देखता है उससे कोई भी स्वाधीन नारी एक पल भी इसमें नहीं रहना चाहेगी। वैसे तो आमतौर पर सभी नारियों को ही कुटिल, मिथ्याभाषिणी, रूप और उम्र का विचार किये बिना सदैव परपुरुष के सम्भोग की आकांक्षी इत्यादि बताते हुए हिन्दू-धर्म उन्हें सदा पुरुष की छाया में रखने की हिदायत देकर नीच साबित करता रहता है। किन्तु वर्ण-संकरता से समाज को बचाए रखने के लिए सती-विधवा-बालिका विवाह और बहु-पत्निवादी-प्रथा के माध्यम से उच्च-वर्ण (ब्राह्मण-क्षत्रिय) नारियों का जीवन जिस तरह नारकीय बनाया गया है, वह किसी भी सभ्य व सुशिक्षित नारी को हिन्दू-धर्म परित्याग की घोषणा  करने के लिए प्रेरित  करेगा। पर भारत की सभ्य व सुशिक्षित माने जाने वाली नारियां, जो मुख्यतः सवर्ण समुदाय से हैं, अभी भी पराधीन हैं और पति की दासी के रूप में जीवन का उपभोग करने की अभ्यस्त हैं, इसीलिए हिन्दू-धर्म में बनी हुई हैं. लेकिन इन्होने भी अब खुद को दलित कहना शुरू कर दिया है। जिस दिन इनमें आंबेडकरवाद से दीक्षित दलितों का अहसास आ जायेगा उस दिन….

      जहां तक अहसास का सवाल है सवर्ण नारियों की तरह सछूत- शूद्र (ओबीसी) भी इससे मीलों दूर हैं। एक मशहूर एक्टिविस्ट के मुताबिक, 'विदेशों में जिन्हें स्लेव (दास) कहते हैं, हिन्दू धर्म में वही शूद्र हैं। जिस दिन शूद्रों के अपने शुद्र्त्व का अहसास हो जायेगा उस दिन भारत में सामाजिक क्रांति हो जाएगी।'शूद्र चूंकि आत्मसम्मान और दासत्व के अहसास से शून्य हैं इसलिए ही ये अभी भी हिन्दू धर्म में बने हुए हैं। पर क्या एक मिनट के लिए भी इनके हिन्दू धर्म में रहने की युक्ति है? आजहिन्दू आरक्षण-व्यवस्था (वर्ण-व्यवस्था) के विकल्प के रूप में विकसित अम्बेडकरी आरक्षण व्यवस्था के सहारे कई हजार सालों से शक्ति के स्रोतों से पूरी तरह बहिष्कृत शुद्रातिशूद्र (दलित –पिछड़े) शासक-प्रशासक, अध्यापक, डाक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी इत्यादि बनकर बेहतर जीवन जीने की ओर अग्रसर हैं। ऐसे लोग यदि उपलब्धि कर लें कि हिन्दू-धर्म के कारण ही हजारों सालों से उनके पुरुखों को शक्ति के स्रोतों से पूरी तरह वंचित होकर सवर्णों की मुफ्त सेवा में लगा रहना पड़ा तो क्या उनका आत्मसम्मान एक पल भी हिन्दू-धर्म में बने रहने की इजाजत देगा?

  आज आंबेडकरवाद से दीक्षित जिन लोगों में आत्मसम्मान व विवेक जाग्रत हो गया है,वे हिन्दू धर्म का परित्याग कर रहे हैं.अफ़सोस यही है कि ऐसा सिर्फ शिक्षित दलितों में ही हो पाया है, सवर्ण नारियों और शूद्रों में जाग्रत होना बाकी है। पर क्या इनका इनका आत्मसम्मान व विवेक सदा सुप्त ही रहेगा? नहीं संघ के लोग यह जान गए हैं कि देर- सवेर उनका भी आत्मसम्मान व विवेक जाग्रत होगा, फिर हिन्दू-धर्म तो वे हिन्दू धर्म को वीरान कर देंगे। इस अप्रिय भविष्य को ध्यान में रखकर ही सवर्णवादी संघ के आनुषांगिक संगठन मुस्तैद हो गए हैं। उनके घर वापसी अभियान का मुख्य लक्ष्य यह है कि धर्मान्तरण के मुद्दे को गरमा कर किसी तरह थोक भाव से होने वाले धर्मान्तरण पर रोक लगाने का कानून बनवा लिया जाय। बिना ऐसा किये वे अपने घर में रह रहे लोगों को घर छोड़ने से रोक नहीं पाएंगे

 O-    एच. एल. दुसाध

 

About The Author

एच. एल. दुसाध, लेखक प्रख्यात बहुजन चिंतक हैं। वे बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं

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Satyananda Stokes (16 August 1882 - 14 May 1946) was an American who settled in India and participated in the Indian Independence Movement.[1] He is best remembered today for having introduced apple cultivation to the Indian state of Himachal Pradesh, where apples are today the major horticultural export crop.

Satyananda was born Samuel Evans Stokes, Jr., in an American Quaker family. His father, a very successful businessman, was the founder of the Stokes and Parish Machine Company which was a leading manufacturer of elevatorsin the USA. The Young Samuel did not acquire any professional skill as he was not interested in business. Nevertheless, his father made many efforts to involve him in running the business but Samuel was not interested as he believed in doing greater good in life. Since the family was wealthy, they provided for his needs.

In 1904, aged 22, Samuel came to India to work at a leper colony located at Subathu in the Shimla. His parents were opposed to this move, but he did it anyway because it was a job where he felt happy and satisfied. India was also far away from his parents and other people who looked down on him for not taking over his family business with eagerness. The lepers needed him and adored him and the other local people treated him with great respect because he was a foreign man doing a pious job. Once his parents realized that this job fulfilled some deep emotional need of their son, they supplied him with considerable money, which he used both for the leper colony and for helping local villagers in small ways, all of which further enhanced his respectability. Raised a Quaker, Samuel was drawn to the asceticism that is exalted in Indian spirituality and began living a simple, frugal life among the villagers, becoming a sort of Christian Sannyasi.

A few years later, the Archbishop of Canterbury, who was visiting the Viceroy at Shimla (the summer capital of the British Raj) heard of the leper colony and was impressed. He encouraged Samuel to form an order of Franciscan Friars, an order of monkhood committed to living in poverty and aiding the diseased and dying. Samuel formed such an order, but his membership in this wandering brotherhood of monks lasted only two years.

In 1912, Samuel married a local Rajput girl, gave up his life of poverty, purchased a chunk of farmland near his wife's village and settled there. His wife, Agnes, was the daughter of a first generation Rajput Christian.[2] Samuel's father had settled a considerable fortune upon Samuel, and the purchasing power of this inheritance was magnified manifold in the remote, beautiful part of India where he settled. He had also by now dealt with the demons of failure that had plagued his growing years, and as a white man in an uncritical rural society, in the company of an Indian wife who was non-judgmental and made few demands on his, Samuel was happier than he had ever been before. The family grew with the birth of five children.

Samuel applied himself to improving the farmland he had purchased and was able to access scholarly resources unknown to the other villagers in this endeavour. He identified a new strain of apples developed by the Stark brothers of Louisiana,USA as being suitable to the Simla Hills and began cultivating them on his farm. This was in the year 1916. The resulting bumper crops, coupled with Samuel's access to the white people who ran the export business in Delhi encouraged the other farmers to do as Samuel was doing, and he helped them wholeheartedly in every way. Indeed, he purchased more land and devoted it to groving apple cultivars which the villagers would use to seed their own farms. The local economy was vastly reinvigorating.

This happy idyll was shattered with the loss of his son Tara to amoebic dysentery. He moved closer to Hinduism and a few years later in 1932 he converted to Hinduism, taking the name "Satyananda" while his wife Agnes changed her name to "Priyadevi".[3] [4] Stokes' decision to convert to Hinduism was painful for his wife Agnes because it would cut her off from those she loved but she was prepared to follow the rest of the family through the painful readjustment.[5]

Stokes had always had a strong sense of social justice and later became active in India's freedom struggle for independence from Great Britain.[6] Stokes had the rare honour of being the only American to become a member of the All India Congress Committee (AICC) of the Indian National Congress. Along with Lala Lajpat Rai, he represented Punjab. He was the only non-Indian to sign the Congress manifesto in 1921, calling upon Indians to quit government service. He was jailed for sedition and promoting hatred against the British government in 1921, becoming the only American to become a political prisoner of Great Britain in the freedom struggle. On Stokes' arrest, Mahatma Gandhi wrote: "That he (Stokes) should feel with and like an Indian, share his sorrows and throw himself into the struggle, has proved too much for the government. To leave him free to criticise the government was intolerable, so his white skin has proved no protection for him…"

He died on 14 May 1946 after an extended illness shortly before Indian independence.

http://en.wikipedia.org/wiki/Satyananda_Stokes

এক বিদেশী ভারতবাসীর গল্প :সন্জয় দে
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আমাদের এই দেশে কত বিচিত্র মানুষের যে আভির্ভাব ঘটেছে, সেসব বেশিরভাগই আমাদের অজানা. আজ আমি যে মানুষটির কথা লিখব, আমার মনে হয় এসব মানুষের জীবনকথা স্কুলের পাঠ্যপুথিতে স্থান পাওয়া উচিত.

স্যামুয়েল ইভান স্টক এমনই এক ব্যক্তিত্ব যিনি আমেরিকার বিত্ত ঐশ্বর্য্য সব ছেড়ে ভারতে এসে স্থায়ী হয়েছিলেন এবং ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামে যোগ দিয়েছিলেন আজ ভারতের হিমাচল প্রদেশে horticultural export crop.হিসেবে যে বস্তুটি মর্যাদা পেয়েছে, সেই আপেল চাষের সূচনা তিনিই প্রথম আমাদের দেশে করেছিলেন. ভারতবাসীর সাথে মনে-প্রাণে একাত্ম হয়ে যাবার জন্য তিনি নিজের নাম পর্য্যন্ত বদলে নিয়ে এক ভারতীয় নাম ধারণ করেছিলেন, তিনি পরিচিত হয়েছিলেন সত্যানন্দ স্টক নামে.

১৮৮২ সনের ১৬ই আগস্ট আমেরিকার এক সম্ভ্রান্ত পরিবারে তাঁর জন্ম হয়. তাঁর বাবা আমেরিকার একজন সফল ব্যবসায়ী ছিলেন. তিনি ছিলেন Stokes and Parish Machine Company 'র প্রতিষ্ঠাতা. সমস্ত আমেরিকায় elevators তৈরির ক্ষেত্রে এই কোম্পানি ছিল অগ্রগণ্য. যুবক স্যামুয়েল কোন বৃত্তি মূলক দক্ষতা অর্জন করেন নি, কারণ ব্যবসার প্রতি তাঁর কোন আকর্ষণ ছিল না. কিন্তু তাঁর বাবা তাঁকে এই চলিত ব্যবসায় নিয়োজিত করার অনেক চেষ্টা করেছিলেন. কিন্তু ব্যবসার প্রতি তাঁর কোন আগ্রহ ছিল না, তিনি জীবনে ভাল কিছু করার জন্য মানসিকভাবে অঙ্গীকারবদ্ধ ছিলেন. পরিবারটি বিত্তশালী ছিল, তাই ব্যবসাতে নিয়োজিত না হয়েও রুটি-কাপড় মিলছিল.

১৯০৪ সনে মাত্র ২২ বছর বয়সে স্যামুয়েল ভারতের সিমলার সুবাথুতে leper কলোনির বাসিন্দাদের সাথে কাজ করতে আসেন. তার এই গতিবিধিতে তাঁর মা-বাবার ঘোর আপত্তি ছিল. কিন্তু এখানে তিনি তাঁর কাজে সুখী ও সন্তুষ্ট ছিলেন বলে মা-বাবার আপত্তি তাঁর কাছে অবান্তর মনে হয়েছিল. পরিবারের এত একটা সফল ব্যবসাকে অবজ্ঞা করে ভারতে চলে আসাতে তাঁর মা-বাবা সহ চেনা-পরিচিত আর স্বজনরাও তাঁর উপর সন্তুষ্ট ছিলেন না. লেপার কলোনির বাসিন্দাদের কাছে তাঁর প্রয়োজন ছিল, এবং তারাও তাকে পরম শ্রদ্ধাভরে গ্রহণ করেছিল. একজন বিদেশী বিত্তশালী লোক হয়েও তিনি সাধারণ মানুষের সাথে সাধারণ মানুষেরই কাজ করে গেছেন. এক সময় তাঁর মা-বাবা অনুভব করলেন যে তাদের ছেলে সত্যিই তাঁর নিজের কাছে সন্তুস্ট আর সুখী আছে. তখন তাঁরা স্যামুয়েলকে আমেরিকা থেকে অর্থ প্রেরণ করতেন. স্যামুএল এই অর্থের একটা অংশ লেপার কলোনির উন্নতির জন্য ব্যয় করতেন আর অবশিষ্ট অংশ বিলিয়ে দিতেন স্থানীয় গরিব গ্রামবাসীর মধ্যে. এইসব জনকল্যাণমূলক কাজের জন্য তিনি একসময় সকল শ্রেনীর মানুষের শ্রদ্ধার পাত্র হয়ে উঠলেন. তিনি গ্রামবাসীকে সাধারণ ও আধ্যাত্মিক জীবন যাপনের পরামর্শ দিতেন. এ জন্যই তিনি তাদের কাছে এক খ্রিস্টান সন্ন্যাসী হিসেবে পরিগণিত হয়ে গেলেন.

কয়েক বছর পর Canterbury 'র বিশপ যখন সিমলার ভাইসরয়'র সাথে দেখা করলেন, তখন তিনি লেপার কলোনির কথা শুনে খুব উচ্ছ্বাস প্রকাশ করেন এবং স্যামুয়েলকে কাজ করার প্রেরণা দেন.. তিনি গরিব, দুস্থ মানুষের সেবা করার জন্য স্যামুএলকে অনুপ্রাণিত করেন.

১৯১২ সনে স্যামুএল স্থানীয় এক রাজপূত মেয়েকে বিয়ে করেন. বিয়ের পর জীবনের দারিদ্রতা ত্যাগ করে স্ত্রীর গ্রামে এক টুকরা কৃষি জমি ক্রয় করে সেখানেই বসতি স্থাপন করেন. তাঁর স্ত্রী এগনেস প্রথম প্রজন্মের রাজপুত খ্রিস্টানের মেয়ে ছিলেন. স্যামুএল ভারতীয় স্ত্রীর সান্নিধ্যে পরম সুখী ছিলেন এবং পাঁচ সন্তানের আবির্ভাবের মধ্য দিয়ে পরিবারের কলেবর বৃদ্ধি পেল.

স্যামুয়েল তার কেনা কৃষি জমিতে কিছু করার জন্য মনোযোগী হলেন. তিনি এমন একটা ফলের চাষ করতে উদ্যত হয়েছিলেন, যেটা ভারতবাসীর কাছে ছিল সম্পূর্ণ অপরচিত. brothers of Louisiana, দ্বারা আমেরিকাতে আবিস্কৃত আপেলের নুতন প্রজাতির চারা আমদানি করেছিলেন. তাঁর ধারনা ছিল, সিমলার মাটিতে এই আপেলের চাষ খুব ভাল হবে. ১৯১৬ সনে তিনি তাঁর নিজের জমিতে এই আপেলের চাষ শুরু করেন. স্যামুয়েলের জমিতে এই আপেলের অকল্পনীয় ফলন হয়েছিল. তিনি ওই আপেল দিল্লিতে রপ্তানি করেন. স্যামুয়েলের এই সাফল্য অন্যান্য চাষীদের অনুপ্রাণিত করেছিল আর তাঁরাও আপেল চাষের সিদ্ধান্ত নিল. স্যামুয়েল ঐসব স্থানীয় চাষীদের নানা ভাবে সাহায্য করেন. ক্রমে তিনি আরো কৃষিজমি ক্রয় করে ব্যাপক হারে আপেলের চাষ শুরু করেন এবং স্থানীয় চাষীরা তাঁর কাছ থেকেই এই আপেলের বীজ/চারা সংগ্রহ করত. স্যামুয়েল স্টকের এই সক্রিযতাতে স্থানীয় অর্থনীতি চাঙ্গা হয়ে উঠেছিল.

এই কর্মবীর সুখী মানুষটা এক সময়ে একটা বড় মানসিক আঘাতে স্তব্দ হয়ে পড়েন, যখন তাঁর ছেলেটা অকালে মারা গেল. একসময় তিনি ধীরে ধীরে হিন্দুত্বের প্রতি ঝুঁকে পড়েন এবং ১৯৩২ সনে তিনি ধিন্দুধর্মে দীক্ষা গ্রহণ করেন. হিন্দুধর্ম গ্রহণ করে তিনি আর তাঁর স্ত্রী "সত্যানন্দ আর "প্রিয়াদেবি" নাম ধারণ করেন. এই ধর্ম পরিবর্তনের ঘটনা তাঁর স্ত্রী এগনেসের কাছে খুব বেদনাদায়ক একটা ব্যাপার হয়েছিল. কারণ এই ধর্ম পরিবর্তনের মধ্য দিয়ে তাঁর বাপের বাড়ির সাথে একটা চির ধরে গিয়েছিল. তবু তিনি painful readjustment 'র মাধ্যমে বাকি জীবন স্বামীর সাথে থাকারই সিদ্ধান্ত নিয়েছিলেন.

সত্যানন্দের মধ্যে সামাজিক ন্যায়ের একটা শক্তিশালী সেন্স বা ধারণা ছিল. এজন্যই তিনি বৃটিশের কবল থেকে ভারতকে মুক্তির লক্ষে ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামে ঝাঁপিয়ে পড়েন. তিনি এই হিসেবে বিরল ব্যক্তি ছিলেন যিনি একজন আমেরিকান হয়েও ভারতের জাতীয় কংগ্রেসের সর্ব ভারতীয় কংগ্রেস কমিটির সদস্য পদ অলংকৃত করেছিলেন. তিনি লালা রাজপত রায়ের সাথে পাঞ্জাবের প্রতিনিধিত্ব করেছেন. তিনি একমাত্র বিদেশী যিনি ১৯২১ সনে কংগ্রেস মেনিফেস্টোতে স্বাক্ষর করে ভারতবাসীকে বৃটিশের চাকুরী থেকে পদত্যাগ করার আহ্বান জানিয়েছিলেন. তিনিই একমাত্র আমেরিকান ছিলেন যিনি বৃটিশের বিরুদ্ধে একজন ভারতবাসী হয়ে জেল খেটেছেন. সত্যানন্দকে যখন গ্রেফতার করা হয় তখন মহাত্মা গান্ধী লিখেছিলেন-- "That he (Stokes) should feel with and like an Indian, share his sorrows and throw himself into the struggle, has proved too much for the government. To leave him free to criticise the government was intolerable, so his white skin has proved no protection for him…"

১৯৪৬ সনের ১৪ই মের অভিশপ্ত দিনটিতে এই মহান কর্মবীরের জীবনাবসান হয়. দুর্ভাগ্য এটাই, তিনি আমাদের স্বাধীনতা প্রাপ্তির দিনটি দেখে যেতে পারেন নি.

এক বিদেশী ভারতবাসীর গল্প   -----------------------------    আমাদের এই দেশে কত বিচিত্র মানুষের যে আভির্ভাব ঘটেছে, সেসব বেশিরভাগই আমাদের অজানা. আজ আমি যে মানুষটির কথা লিখব, আমার মনে হয় এসব মানুষের জীবনকথা স্কুলের পাঠ্যপুথিতে স্থান পাওয়া উচিত.     স্যামুয়েল ইভান স্টক এমনই এক ব্যক্তিত্ব যিনি আমেরিকার বিত্ত ঐশ্বর্য্য সব ছেড়ে ভারতে এসে স্থায়ী হয়েছিলেন এবং ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামে যোগ  দিয়েছিলেন   আজ ভারতের হিমাচল প্রদেশে  horticultural export crop.হিসেবে যে বস্তুটি মর্যাদা পেয়েছে, সেই আপেল চাষের সূচনা তিনিই  প্রথম আমাদের দেশে করেছিলেন. ভারতবাসীর সাথে মনে-প্রাণে একাত্ম হয়ে যাবার জন্য তিনি নিজের নাম পর্য্যন্ত বদলে নিয়ে এক ভারতীয় নাম ধারণ করেছিলেন,  তিনি পরিচিত হয়েছিলেন সত্যানন্দ স্টক নামে.    ১৮৮২ সনের ১৬ই আগস্ট আমেরিকার এক সম্ভ্রান্ত পরিবারে তাঁর জন্ম হয়. তাঁর বাবা আমেরিকার একজন সফল ব্যবসায়ী ছিলেন. তিনি ছিলেন  Stokes and Parish Machine Company 'র প্রতিষ্ঠাতা. সমস্ত আমেরিকায় elevators তৈরির ক্ষেত্রে  এই কোম্পানি ছিল অগ্রগণ্য. যুবক স্যামুয়েল কোন বৃত্তি মূলক দক্ষতা অর্জন করেন নি, কারণ ব্যবসার প্রতি তাঁর কোন আকর্ষণ ছিল না. কিন্তু তাঁর বাবা তাঁকে এই চলিত ব্যবসায় নিয়োজিত করার অনেক চেষ্টা করেছিলেন. কিন্তু ব্যবসার প্রতি তাঁর কোন আগ্রহ  ছিল না, তিনি জীবনে ভাল কিছু করার জন্য মানসিকভাবে অঙ্গীকারবদ্ধ ছিলেন.  পরিবারটি বিত্তশালী ছিল, তাই ব্যবসাতে নিয়োজিত না হয়েও  রুটি-কাপড় মিলছিল.     ১৯০৪ সনে মাত্র ২২ বছর বয়সে স্যামুয়েল ভারতের সিমলার সুবাথুতে leper কলোনির বাসিন্দাদের সাথে কাজ করতে আসেন. তার এই গতিবিধিতে তাঁর মা-বাবার ঘোর আপত্তি ছিল. কিন্তু এখানে তিনি তাঁর কাজে সুখী ও সন্তুষ্ট ছিলেন বলে মা-বাবার আপত্তি তাঁর কাছে অবান্তর মনে হয়েছিল. পরিবারের এত একটা সফল ব্যবসাকে অবজ্ঞা করে ভারতে চলে আসাতে তাঁর মা-বাবা সহ চেনা-পরিচিত আর স্বজনরাও তাঁর উপর সন্তুষ্ট ছিলেন না. লেপার কলোনির বাসিন্দাদের কাছে তাঁর প্রয়োজন ছিল, এবং তারাও তাকে পরম শ্রদ্ধাভরে গ্রহণ করেছিল. একজন বিদেশী বিত্তশালী লোক হয়েও তিনি সাধারণ মানুষের সাথে সাধারণ মানুষেরই কাজ করে গেছেন. এক সময় তাঁর মা-বাবা অনুভব করলেন যে তাদের ছেলে সত্যিই তাঁর নিজের কাছে সন্তুস্ট আর সুখী আছে. তখন তাঁরা স্যামুয়েলকে আমেরিকা থেকে অর্থ প্রেরণ করতেন. স্যামুএল এই অর্থের একটা অংশ  লেপার কলোনির উন্নতির জন্য ব্যয় করতেন আর অবশিষ্ট অংশ বিলিয়ে দিতেন স্থানীয় গরিব গ্রামবাসীর মধ্যে. এইসব জনকল্যাণমূলক কাজের জন্য তিনি একসময় সকল শ্রেনীর মানুষের শ্রদ্ধার পাত্র হয়ে উঠলেন. তিনি গ্রামবাসীকে সাধারণ ও আধ্যাত্মিক জীবন যাপনের পরামর্শ দিতেন. এ জন্যই তিনি তাদের কাছে এক খ্রিস্টান সন্ন্যাসী হিসেবে পরিগণিত হয়ে গেলেন.     কয়েক বছর পর  Canterbury 'র বিশপ যখন সিমলার  ভাইসরয়'র সাথে দেখা করলেন, তখন তিনি লেপার কলোনির কথা শুনে খুব উচ্ছ্বাস প্রকাশ করেন এবং স্যামুয়েলকে কাজ করার প্রেরণা দেন.. তিনি গরিব, দুস্থ মানুষের সেবা করার জন্য স্যামুএলকে অনুপ্রাণিত করেন.     ১৯১২ সনে স্যামুএল স্থানীয় এক রাজপূত মেয়েকে বিয়ে করেন. বিয়ের পর জীবনের দারিদ্রতা ত্যাগ করে স্ত্রীর গ্রামে এক টুকরা কৃষি জমি ক্রয় করে সেখানেই বসতি স্থাপন করেন. তাঁর স্ত্রী এগনেস প্রথম প্রজন্মের রাজপুত খ্রিস্টানের মেয়ে ছিলেন. স্যামুএল ভারতীয় স্ত্রীর সান্নিধ্যে পরম সুখী ছিলেন এবং পাঁচ সন্তানের আবির্ভাবের মধ্য দিয়ে পরিবারের কলেবর বৃদ্ধি পেল.     স্যামুয়েল তার কেনা কৃষি জমিতে কিছু করার জন্য মনোযোগী হলেন.  তিনি এমন একটা ফলের চাষ করতে উদ্যত হয়েছিলেন, যেটা ভারতবাসীর কাছে ছিল সম্পূর্ণ অপরচিত. brothers of Louisiana, দ্বারা  আমেরিকাতে আবিস্কৃত আপেলের নুতন প্রজাতির চারা আমদানি করেছিলেন. তাঁর ধারনা ছিল, সিমলার মাটিতে এই আপেলের চাষ খুব ভাল হবে. ১৯১৬ সনে তিনি তাঁর নিজের জমিতে এই আপেলের চাষ শুরু করেন.  স্যামুয়েলের জমিতে এই আপেলের অকল্পনীয় ফলন হয়েছিল.  তিনি ওই আপেল দিল্লিতে রপ্তানি করেন. স্যামুয়েলের এই সাফল্য অন্যান্য চাষীদের অনুপ্রাণিত করেছিল আর তাঁরাও আপেল চাষের সিদ্ধান্ত নিল. স্যামুয়েল ঐসব স্থানীয় চাষীদের নানা ভাবে সাহায্য করেন. ক্রমে তিনি আরো কৃষিজমি ক্রয় করে ব্যাপক হারে আপেলের চাষ শুরু করেন এবং স্থানীয় চাষীরা তাঁর কাছ থেকেই এই আপেলের বীজ/চারা সংগ্রহ করত. স্যামুয়েল স্টকের এই সক্রিযতাতে স্থানীয় অর্থনীতি চাঙ্গা হয়ে উঠেছিল.        এই কর্মবীর সুখী মানুষটা এক সময়ে একটা বড় মানসিক আঘাতে স্তব্দ হয়ে পড়েন, যখন তাঁর ছেলেটা অকালে মারা গেল.   একসময় তিনি ধীরে ধীরে হিন্দুত্বের প্রতি ঝুঁকে পড়েন  এবং ১৯৩২ সনে তিনি ধিন্দুধর্মে দীক্ষা গ্রহণ করেন. হিন্দুধর্ম গ্রহণ করে তিনি আর তাঁর স্ত্রী "সত্যানন্দ আর "প্রিয়াদেবি" নাম ধারণ করেন. এই ধর্ম পরিবর্তনের ঘটনা তাঁর স্ত্রী এগনেসের কাছে খুব বেদনাদায়ক একটা ব্যাপার হয়েছিল. কারণ এই ধর্ম পরিবর্তনের মধ্য দিয়ে তাঁর বাপের বাড়ির সাথে একটা চির ধরে গিয়েছিল. তবু তিনি  painful readjustment 'র মাধ্যমে বাকি জীবন স্বামীর সাথে থাকারই সিদ্ধান্ত নিয়েছিলেন.     সত্যানন্দের মধ্যে সামাজিক ন্যায়ের একটা শক্তিশালী  সেন্স বা ধারণা ছিল. এজন্যই তিনি বৃটিশের কবল থেকে ভারতকে মুক্তির লক্ষে ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামে ঝাঁপিয়ে পড়েন. তিনি এই হিসেবে বিরল ব্যক্তি ছিলেন যিনি একজন আমেরিকান হয়েও ভারতের জাতীয় কংগ্রেসের সর্ব ভারতীয় কংগ্রেস কমিটির  সদস্য  পদ অলংকৃত  করেছিলেন. তিনি লালা রাজপত রায়ের সাথে পাঞ্জাবের প্রতিনিধিত্ব করেছেন.   তিনি একমাত্র বিদেশী যিনি ১৯২১ সনে কংগ্রেস মেনিফেস্টোতে স্বাক্ষর করে ভারতবাসীকে  বৃটিশের চাকুরী থেকে পদত্যাগ করার আহ্বান জানিয়েছিলেন. তিনিই একমাত্র আমেরিকান ছিলেন যিনি বৃটিশের বিরুদ্ধে একজন ভারতবাসী হয়ে জেল খেটেছেন. সত্যানন্দকে যখন গ্রেফতার করা হয় তখন মহাত্মা গান্ধী লিখেছিলেন--

घर वापसी न हुई तो मारे जाओगे और बचेगा नहीं कोई म्लेच्छ अब कहीं! अल्हा उदल गाओ रे भइये,बजाओ रे रणसिंघे कि धर्मक्षेत्र भारदेश कुरुक्षेत्र है अब! कृपया डालर वर्चस्व और अमेरिका के मनुष्य,प्रकृति और सभ्यता के विरुद्ध तमाम अपराधों के मदमदेनजर इस समीकरण पर गौर जरुर करें कि भारत में दूसरे चरण के सुधारों के लिए मनमोहन खारिज और कल्कि अवतरण और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन से पहले तमाम बिलों को पास कराने का कार्यभार,लंबित परियोजनाओं में फंसी लाखों करोड़ की विदेशी पूंजी की जमानत का तकाजा और इसी के मध्य सिडनी से पेशावर तक मनुष्यता पर बर्बर हमले के तहत पूरे एशिया आस्ट्रेलिया में इस्लामोफोबिया का तिसिस्म घनघोर और उसी के मध्य हिंदू साम्राज्यवाद का मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के लिए दक्षिणपूर्व एशिया के सिंहद्वार कोलकाता से विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खुली युद्धयोजना।बंगाल का केसरिया कायकल्प। पलाश विश्वास

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घर वापसी न हुई तो मारे जाओगे और बचेगा नहीं कोई म्लेच्छ अब कहीं!

अल्हा उदल गाओ रे भइये,बजाओ रे रणसिंघे कि धर्मक्षेत्र भारदेश कुरुक्षेत्र है अब!

कृपया डालर वर्चस्व और अमेरिका के मनुष्य,प्रकृति और सभ्यता के विरुद्ध तमाम अपराधों के मदमदेनजर इस समीकरण पर गौर जरुर करें कि भारत में दूसरे चरण के सुधारों के लिए मनमोहन खारिज और कल्कि अवतरण और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन से पहले तमाम बिलों को पास कराने का कार्यभार,लंबित परियोजनाओं में फंसी लाखों करोड़ की विदेशी पूंजी की जमानत का तकाजा और इसी के मध्य सिडनी से पेशावर तक मनुष्यता पर बर्बर हमले के तहत पूरे एशिया आस्ट्रेलिया में इस्लामोफोबिया का तिसिस्म घनघोर और उसी के मध्य हिंदू साम्राज्यवाद का मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के लिए दक्षिणपूर्व एशिया के सिंहद्वार कोलकाता से विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खुली युद्धयोजना।बंगाल का केसरिया कायकल्प।


पलाश विश्वास


अल्हा उदल गाओ रे भइये,बजाओ रे रणसिंघे कि धर्मक्षेत्र भारतदेश कुरुक्षेत्र है अब!


घर वापसी न हुई तो मारे जाओगे और बचेगा नहीं कोई म्लेच्छ अब कहीं!

आज के रोजनामचे के लिए सबसे पहले कुछ जरुरी बातें।


कृपया डालर वर्चस्व और अमेरिका के मनुष्य,प्रकृति और सभ्यता के विरुद्ध तमाम अपराधों के मदमदेनजर इस समीकरण पर गौर जरुर करें कि भारत में दूसरे चरण के सुधारों के लिए मनमोहन खारिज और कल्कि अवतरण और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन से पहले तमाम बिलों को पास कराने का कार्यभार,लंबित परियोजनाओं में फंसी लाखों करोड़ की विदेशी पूंजी की जमानत का तकाजा और इसी के मध्य सिडनी से पेशावर तक मनुष्यता पर बर्बर हमले के तहत पूरे एशिया आस्ट्रेलिया में इस्लामोफोबिया का तिसिस्म घनघोर और उसी के मध्य हिंदू साम्राज्यवाद का मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के लिए दक्षिणपूर्व एशिया के सिंहद्वार कोलकाता से विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खुली युद्धयोजना।बंगाल का केसरिया कायकल्प।


इसी सिलसिले में हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी का लिखा यह मंतव्यभी गौर तलब हैः

मोहन भागवत जी! तुम न मोदी को चैन लेने दोगे और न अच्छे दिनों के आने की उम्मीद में मोदी की ओर टकटकी लगाए भारत के आम आदमी को और न भारत की तथाकथित बची खुची एकता को।

उन्होंने आगे लिखा हैः

मनुष्य सब से पहले एक मनुष्य होता है. उसके बाद होता है अभाव ग्रस्त और अति भाव मस्त. अभावग्रस्त होने पर विश्वामित्र भी चांडाल के घर से कुत्ते का मांस चुराकर भूख मिटते हैं. ये जो धरम- वरम है न! भरपेटियों और ठगों के चोंचले हैं. ॠषि याज्ञवल्क्य के शब्दों में सारे नाते, सारी परंपराएँ, सारे धर्म, स्वार्थ पर टिके हैं. (आत्मनस्तु कामाय वै सर्वं प्रियं भवति)

सम्मोहन भगवत जी! हमें हिन्दू राष्ट्र नहीं, शोषण विहीन समतामूलक राष्ट्र चाहिए.


सुधीर समुमन के इस मंतव्य पर भी गौर करेंः

भाजपा वाले जब गाँधी जी के हत्यारे को महिमंडित कर रहे हैं और हत्यारे की मूर्ति लगवाना चाह रहे हैं. तो अचानक मोदी के एक बिहारी सिपहसालार गिरिराज सिंह का बयान याद आ गया, उसने सैकड़ों बेगुनाह बच्चों, महिलाओं और आम लोगों की हत्या के लिए जिम्मेवार रणवीरसेना सुप्रीमो को 'बिहार का गाँधी' बताया था. अब भईया उसकी हत्या किसने की, पता नहीं, उसकी तुलना मैं गोडसे करना भी नहीं चाहता. लेकिन महात्मा गाँधी के हत्यारों के गुणगान में लगे लोगों को ब्रह्मेश्वर की हत्या करने वाले को भी ढूँढना चाहिए और बिहार में एकाध उसकी मूर्ति बनवानी चाहिए. क्योंकि बकौल गिरिराज उसने बिहार के गाँधी की हत्या की थी, तो गोडसे भक्तों को उसका भी सम्मान तो करना ही चाहिए न! ये कैसे चलेगा कि गोडसे भी आपका और गाँधी भी आपका. या ब्रह्मेश्वर की हत्या करने वाले की मूर्ति नहीं बना सकते तो एक नया बयान दो कि 'वह बिहार का गोडसे था"


विशुद्ध नरसंहार के आक्रामक तेवर में

जंगल बुक के प्रकाशन के पूरे 120 साल हो गये।अगर संभव हो तो दोबारा यह किताब पढ़ें।फिल्में भी हैं,समयनिकालकर जरुर देखें।


वैदिकी सभ्यता और वैदिकी साहित्य और इतिहास का राग अलापने वाले मुक्तबाजारी अमेरिकापरस्त इजराइल मुग्ध जो हिंदुत्व के झंडेवरदार भपारत का चप्पा चप्पा मैनहटट्न और न्यूयार्क बना देने के लिए जनसंहारी संस्कृति के तहत विशुद्ध नरसंहार के आक्रामक तेवर में हैं,वे शायद भूल रहे हैं कि भारत की प्राचीन आर्य अनार्य सभ्यता आरण्यक रही है और आर्यों ने ही उस प्रकृति के सान्निध्य की संस्कृति और सभ्यता का सर्वनाश किया।


भारत के आदिवासियों को छोड़कर अब जंगल से किसी को कोई मोहब्बत नहीं है और हम अंधाधुंध वनविनाश को विकास का अभिमुख बनाये हुए हैं।


सुंदरवन जैसा दुनिया का सबसे बड़ा मैनग्रोव फारेस्ट इलाके में कारपोरेटस्विमिंग पुल का शुभारंभ करने गये मास्टर ब्लास्टर सांसद सचिन तेंदुलकर को पहनाये गये चौतीस हजार गुलाबों की हार हमारी उत्तरआधुनिक सभ्यता की अभिव्यक्ति है।


उस आरण्यक सभ्यता में लेकिन मानवीय उत्कर्ष प्राकृतिक शक्तियों में अभिव्यक्त होता रहा है और हम तब मूर्ति पूजक भी नहीं बने थे।


उस आरण्यक सभ्यता को फील करने का सर्वोत्तम माध्यम जंगल बुक है।

द जंगल बुक

http://hi.wikipedia.org/s/6i9v

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

द जंगल बुक  

JunglebookCover.jpg

जॉन लॉकवुड किपलिंगके रेखांकनों पर आधारितद जंगल बुक के मूल संस्करण का गुलकृत आवरण पृष्ठ

लेखक

रुडयार्ड किपलिंग

चित्र रचनाकार

जॉन लॉकवुड किपलिंग (रुडयार्ड किपलिंग के पिता)

देश

संयुक्त राजशाही

भाषा

अंग्रेजी

शृंखला

द जंगल बुक्स

प्रकार

बाल पुस्तक

प्रकाशक

मैकमिलन पब्लिशर्स

प्रकाशन तिथि

1894

मीडिया प्रकार

मुद्रित (सजिल्द व अजिल्द)

पूर्ववर्ती

"इन द रुख"

उत्तरवर्ती

द सेकंड जंगल बुक

द जंगल बुक (अंग्रेजी:The Jungle Book) (1894) नोबेल पुरस्कारविजेता अंग्रेजी लेखक रुडयार्ड किपलिंगकी कहानियों का एक संग्रह है। इन कहानियों को पहली बार 1893-94 में पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया था। मूल कहानियों के साथ छपे कुछ चित्रों को रुडयार्ड के पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग ने बनाया था। रुडयार्ड किपलिंग का जन्म भारत में हुआ था और उन्होने अपनी शैशव अवस्था के प्रथम छह वर्ष भारत में बिताये। इसके उपरान्त लगभग दस वर्ष इंग्लैण्डमें रहने के बाद वे फिर भारत लौटे और लगभग अगले साढ़े छह साल तक यहीं रह कर काम किया। इन कहानियों को रुडयार्ड ने तब लिखा था जब वो वर्मोंटमें रहते थे। जंगल बुक के कथानक में मोगली नामक एक बालक है जो जंगल मे खो जाता है और उसका पालन पोषण भेड़ियों का एक झुंड करता है, अंत मे वह गाँव में लौट जाता है।

पुस्तक में वर्णित कहानियां (और 1895 में प्रकाशित 'द सेकंड जंगल बुक'में शामिल मोगली से संबंधित पाँच कहानियां भी) वस्तुत: दंतकथाएं हैं, जिनमें जानवरों का मानवाकृतीय तरीके से प्रयोग कर, नैतिक शिक्षा देने का प्रयास किया गया है। उदाहरण के लिए 'द लॉ ऑफ द जंगल' (जंगल का कानून) के छंद में, व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करने की हिदायत दी गयी है। किपलिंग ने अपनी इन कहानियों में उन सभी जानकारियों का समावेश किया है जो उन्हें भारतीय जंगल के बारे में पता थी या फिर जिसकी उन्होनें कल्पना की थी। अन्य पाठकों ने उनके काम की व्याख्या उस समय की राजनीति और समाज के रूपक के रूप में की है। उनमें से सबसे अधिक प्रसिद्ध तीन कहानियां हैं जो एक परित्यक्त "मानव शावक" मोगली के कारनामों का वर्णन करती हैं, जिसे भारत के जंगल में भेड़ियों द्वारा पाला जाता है। अन्य कहानियों के सबसे प्रसिद्ध कथा शायद "रिक्की-टिक्की-टावी" नामक एक वीर नेवले और "हाथियों का टूमाई"नामक एक महावत की कहानी है। किपलिंग की हर कहानी की शुरुआत और अंत एक छंद के साथ होती है।

http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6_%E0%A4%9C%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%95


स्तालिन के जन्मदिवस (21 दिसम्बर) के अवसर पर

इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की पूँजीवादी कोशिशों के बावजूद इस सच्चाई को नहीं झुठलाया जा सकता

हिटलर को हराकर दुनिया को फासीवाद के राक्षस से मजदूरों के राज ने ही बचाया था

सच तो यह है कि स्तालिन हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के समय से ही पश्चिमी देशों को लगातार फसीवाद के ख़तरे से आगाह कर रहे थे लेकिन उस वक्त तमाम पश्चिमी देश हिटलर के साथ न सिर्फ समझौते कर रहे थे बल्कि उसे बढ़ावा दे रहे थे। स्तालिन पहले दिन से जानते थे कि हिटलर समाजवाद की मातृभूमि को नष्ट करने के लिए उस पर हमला जरूर करेगा। उन्होंने आत्मरक्षार्थ युद्ध की तैयारी के लिए थोड़ा समय लेने के वास्ते ही हिटलर के साथ अनाक्रमण सन्धि की थी जबकि दोनों पक्ष जानते थे कि यह सन्धि कुछ ही समय की मेहमान है। यही वजह थी कि सन्धि के बावजूद सोवियत संघ में समस्त संसाधनों को युद्ध की तैयारियों में लगा दिया गया था। दूसरी ओर, हिटलर ने भी अपनी सबसे बड़ी और अच्छी फौजी डिवीजनों को सोवियत संघ पर धावा बोलने के लिए बचाकर रखा था। इस फौज की ताकत उस फौज से कई गुना थी जिसे लेकर हिटलर ने आधे यूरोप को रौंद डाला थां रूस पर हमले के बाद भी पश्चिमी देशों ने लम्बे समय तक पश्चिम का मोर्चा नहीं खोला क्योंकि वे इस इन्तजार में थे कि हिटलर सोवियत संघ को चकनाचूर कर डालेगा। जब सोवियत फौजों ने पूरी सोवियत जनता की जबर्दस्त मदद से जर्मन फौजों को खदेड़ना शुरू कर दिया तब कहीं जाकर पश्चिमी देशों ने मोर्चा खोला।

http://www.mazdoorbigul.net/archives/5448

बेहतर हैं वीरेनदा।

अच्छी खबर यह है कि हमारे आपके प्रिय कवि वीरेनदा एकदम दुरुस्त हैं और बहुत जोश में हैं।थोड़े कमजोर हैं लेकिन कुल मिलाकर सेहत बेहतर हैं।


दरअसल नैनीताल में फंसे अपने सहकर्मी चित्रकार  सुमित का फोन मिलते ही कोलकाता में गिरते तापमान के मध्यहमने ख्याल किया की वीरेन दा की पेसबुक टिप्पणियां गायब हो गयी हैं और हमने दो रोज पहले तुरत ही फोन उठा लिया।भाभी ने पकड़ा तो डर डर कर पूछा कि दा कैसे हैं।बोली वह ,बहुत बेहतर हैं।थोड़े कमजोर हैं ,बस।


फिर बाथरूम से निकलने पर वीरेदा उसी पुराने मिजाज में।

बोले वे,यार,दिल्ली में बहुत सर्दी है।इसलिए फेसबुक से गैरहाजिर हूं लेकिन पढ़ता सबकुछ।

इसके बाद हम गपियाते रहे।


हिमपात मुक्त नैनीताल,अल्मोड़ा ग्वालदम बागेश्वर बदहाल

कल रात को सुमित को काठगोदाम से गाड़ी पकड़नी थी।उसने फोन नहीं किया तो फिक्र हो गयी। उससे संपर्क नहीं हो पाया।तो आज सुबह सुबह नैनीताल समाचार में फोन लगाया।समाचार प्रभारी महेश दाज्यू से हाल चाल मालूम हुआ।


महेशदाज्यू ने बताया कि राजीवदाज्यू नैनीताल में ही आसन जमाये हुए हैं तो पवन राकेश दुकानदारी में लगा है।नैनीताल में बर्फ की परतें पिघल गयी है। लेकिन महेश दाज्यू ने कहा कि नैनीताल में सैलानियों को बहुत ही ज्यादा हिमपात नजर आया तो क्या बाकी पहाड़ के मुकाबले वह कुछ भी नहीं ठैरा।


महेशदाज्यू ने बताया कि बलि (कुमांयूनी में बलि का इस्तेमाल हम कहते हैं के लिए करते हैं,आगे इसे बलि ही पढ़ें।समाचार में हम सूत्रों के मुताबिक के बदले बलि का इस्तेमाल करते रहे हैं और धिक्कार के लिए हड़ि का,दोनों शब्द गिरजदा के सौजन्य से) बाकी पहाड़ में तो बहुतै ज्यादा बर्फबारी हुई है।


इसी बीच मुख्यमंत्री हरीश रावत ज्यू ने फरमान जारी कर दिया है कि किसी की ठंड से मौत हुई तो डीएम होंगे जिम्मेदार,जैसे कि डीएमं बिना कुछ किये मौत रोक लेने वाले ठैरे।


महेशदाज्यू ने कहा कि पहाड़ में जहां हिल स्टेशन और आर्मी नहीं है,जनजीवन ठप है बलि।बलि अल्मोड़ा से आगे तमाम गांवों और घाटियों में ठंड का कहर है।


हल्द्वानी से किसी ने लिखा है कि आधार अनिवार्य नहीं है।लेकिन आधार का वैकल्पिक प्रयोग के विशेषाधिकार तो उसकी अनिवार्यता के लिए काफी है।कान जैसे भी पकड़ो,कान तो पकड़ा ही जाता है।भारत सरकार कुछ वैसा ही कर रही है बलि।


मनीआर्डर इकानामी


हमें मालूम नहीं कि हमारी इजाएं और भूलियां और बैणियां अब जंगल जाने के हक से वंचित है या नहीं पहाड़ में।


देहरादून में रोमा हैं और वे बेहतर बता सकती हैं कि वनाधिकार के क्या हाल हैं वहां पहाड़ में।आदिवासी इलाकों में तो आदिवासियों के लिए जंगल के सारे हक हकूक छिन गये ठैरे।


बहरहाल लकड़ी बीनने के हालात और  जुगाड़ हो या न हो, खरीदनी हो तो आधार की जरुरत हो या न हो,खींसे में तो तेल नून दाना पानी के खर्च के अवलावा लकड़ी कोयले के पैसे भी चाहिए।


मनीआर्डर अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह कितना ठैरा वे तो एक हरीश रावत कह सकते हैं तो दूजे किशोर उपाध्याय जी को मालूम होगा।बलि वे दोनों देहरादून को ही राजधानी नहीं,संपूर्ण हिमालय समझ रहे होंगे।संपूर्ण उत्तराखंड तो बीजापुर गेस्टहाउस है।


महेश दाज्यू को ग्वालदम और बागेश्वरे के हालात मालूम हैं और अल्मोड़ा के गांवों के बारे में भी पता है।


फोकस में तीर्थस्थल या पर्यटनस्थल,बस


कुमांयू गढ़वाल से मीडिया में तीर्थस्थलों और पर्यटनस्थलों के अलावा फोकस कहीं बनाया नहीं है।


केदार जलप्रलय के वकत फिर भी बीबीसी हिंदी की खबरें थीं लेकिन वे लगता हैं कि पेशावर में कुछ ज्यादा व्यस्त हो गये ठैरे।


राजेश जोशी और सलमान रवि बड़े लोग ठैरे,उन्हें फोन खटखटाने की हिम्मत नहीं हुई।


हमारे पुराने अखबार अमरउजाला में अतुल माहेश्वरी नहीं हैं अब।राजुल भइया हैं,जो हमें बेहद प्रिय रहे हैं।अब वहां यशवंत व्यास और हमारे मेरठ जमाने एक मित्र विनोद अग्निहोत्री का बसेरा है।


विनोद जी पत्रकार बिरादरी में बहुतै सज्जन हैं जैसे अपने मनोज मिश्र।वे भी मेरठ में हुआ करते थे।हम तब जागरण में थे।


गपशप के लिए कल विनोद जी को फोन लगाया तो बोले, मीटिंग में हूं।कहा कि फोन करता हूं बाद में।


उनसे भी बात हो जाये तो पहाड़ के हालात का अंदाजा हो।


मारे डर के पिर फोन नहीं लगाया कि कहीं संजीव भाई की तरह रचना उचना वगैरह छापने का जुगाड़ न समझ बैठे या धीरेंद्र अस्थाना की तरह पचानने से ही ही इंकार न कर दें।


तो भइये,जो जहां हों,कुछ खबर लगी हो तो हम तक जरुर कुशल क्षेम पहुंचा दें।


कोलकाता में हम

कल माननीय प्रवीण तोगड़िया ने कह दिया कि पूरा बंगाल अब केसरिया है।


बेरोकटोक घर वापसी की चुनौती के बाद,खुल्ले नरसंहार की युद्ध घोषणा के बाद अमित साह को तो बंगाल में गुजरात ही नजर आ रहा होगा लेकिन उनका रंग लाल है कि केसरिया,थोड़े कनफ्यूजन में हूं।


2012 तक हिंदू राष्ट्र की जो घोषणा हो गयी है और मुसलमानों और ईसाइयों से भारत आर्यावर्त को मुक्त कराके हिंदुस्तान बना डालने का जो एजंडा है.उसे कोलकाता में बहुत असुरक्षित महसूस करने लगा हूं।कि क्या पता कोई बजरंगी कहीं धुन न डालें।


वैसे भी संघी एजंडा में जैसे बौद्धों सिखों और जैनियों के घर वापस लाने का संकल्प नहीं है और वह एजंडा हिडन है तो समझा जा सकता सबसे ज्यादा ब्राह्मणवादी बंगाल के केसरिया हो जाने के बाद गैरब्राह्मणों और शरणार्थियों और आदिवासियों और अछूतों और स्त्रियों का क्या हाल होने वाला है।


डेरा डंडा उठाकर मोदी की चेतावनी के मद्देनजर कहीं और भागना पड़ेगा,जहां गुजरात का साया न हो।कहां होगी वह जगह इस केसरिया हुआ जैसे भारत में,यह पहेली बूझ लें तो बतइयो।


ओबामा सैम अंकल पधार रहे हैं म्हारा देश।


सारे सुधार लागू होने वाले ठैरे।


दीदी दिल्ली से आकर कोलकाता की भाषा में फिर जिहाद जिहाद खेल रही हैं तो मंत्री मदन मित्र की जेल हिरासत के बावजूद पूरी मौज है।


जेल से वे स्थानांतरित होकर अस्पताल के एसी वार्ड में हैं और वहां उनका दरबारे खास और दरबारे आम का चाकचौबंद इंतजाम है बलि।


दीदी की बयानबाजी और अरुण जेटली की गिला शिकायतों की छोड़ें और नवउदारवादी भइयों बहनों,निश्चिंत रहिये कि ओबामा आका आने से पहले मैदान साफ हो जाना ठैरा।


इस बीच बहुत दिनं बाद चेकअप कराने की वजह से हमारा शुगर लेवल बढ़ा हुआ मिला तो डाक्टरबाबू ने दनादन महंगी महंगी दवाइयां दाग दी हैं।


जब तक नौकरी है भइये,खा भी लेंगे महंगी दवाइयां। लेकिन फिर एअर इंडिया हो गये तो जिंदगी क्या और कितनी मोहलत देगी बता नहीं सकते। लेकिन इस बीच सविता की नजरदारी सख्त हो गयी है और भोर छह बजे तक तो पीसी से प्रेमालाप की मनाही है।


इस्लामोफोबिया

अमेरिका की अब गजब मेहरबानी है।


इस्लामोफोबिया उन्हींकी मेहरबानी है तो अल कायदा, आईसिस, तालिबान और इस्लामिक ब्रदरहुड भी उनकी मेहरबानी है।


तालिबान और अलकायदा के करिश्मा तो खैर मालूम ही होगा।


खाड़ी युद्ध से पहले,अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के खिलाफ पाकिस्तान में जमे तालिबान को हथियार और डालर अमेरिका ने दिये,पूरे आठ के दशक में भारत उनसे लहूलुहान होता रहा है जो सिलसिला अब भी जारी है।


1948,1962,1965 और 1971 के युद्द में हथियारों के सौदागर अमेरिका का पक्ष क्या रहा है ,याद भी करें।हिंद महासागर में सातवें नौसैनिक बेड़ा और दियागो गार्सिया को भी याद करें।

इतने पीछे जाना न चाहे तो इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर को हुई हत्या से पहले उनके भाषण को पढ़ें और सुनें।


अभी अभी व्हाइटहाउस ने मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकवादी संगठन मानने से मना कर दिया है और गार्जियन की खबरों के मुताबिक आइसिस के आकाओं से अमेरिका की प्रेमं पिंगे चल रही हैं।


सीआईए के भरोसे हमारी सुरक्षा

अब हिंदुत्व का यह उन्माद अगर मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये का खुल्ला ऐलान कर सकता है और राज्यसरकारें और केंद्र सरकार कार्वाई नहीं करतीं तो भारत को तोड़ने की शुरुआत से कोशिश कर रही सीआईए और दूसरी अमेरिकी एजंसियों के हवाले हुई कारपोरेट हितों के लिए आंतरिक सुरक्षा के छाता तले मध्य एशिया के अमेरिकी वसंत से हम लोग कब तक इस्लामोफोबिया का जाप करते हुए बचे रहेगें,हम यानी हिंदू मुसलमान समेत सारे भारत के सारे नागरिक।


आतंकवाद किसी की पहचान देखकर धमाका नहीं करता और इसके नजारे पूरे मध्यएशिया में देखते रहने के बाद पेशावर में भी भुगत रहा है पाकिस्तान जहां हर पाकिस्तानी ड्रोन के निशाने पर है।


बायोमेट्रिक डिजिटल देश में हम भी अमेरिकी चांदमारी के निशाने पर हैं और हमें इसका अहसास भी नहीं है।


आखिरकार हम भी पाकिस्तान हुए।



हिंदू साम्राज्यवादी अश्वमेध से भारतीयों का खून चाहे जितना बहे,अंकल सैम को परवाह नहीं होगी,लेकिन अमेरिकी किसी नागरिक या अमेरिकी हितों को लहूलुहान होना पड़ जाये तो समझ लीज्यो कि हम चाहे कभी न समझें अंकल सैम समझ जायेंगे कि आखिरकार हम भी पाकिस्तान हुए।


सौजन्य संघ परिवार और उनका हिंदू साम्राज्यवाद।


कल्कि राजकाज के अल्हा उदल


अब फिर वही वीरगाथा काल है।आर्यों के शौर्य वीर्य का पुनरूत्थान है।एकबार फिर परशुराम के कुठाराघात से क्षत्रियों का नाश हो गया है।


बाइसवीं बार शायद।


पगड़ियों और बलखाती मूंछों,बाबू राजनाथसिंह और बाबू दिग्विजयसिंह की कलाबाजियों में महान क्षत्रियों के गौरवमय इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है,इसका सबूत मिला नहीं है।


राजा मांडा के अवसान के बाद इस देश में शादी व्याह और दहेज के वास्ते जाति व्यवस्था के अंतरग्त ही क्षत्रियों की अस्मिता और पहचान बची है,बाकी न कोई क्षत्रिय है और न राजपूत।


बामण भी अब वर्णश्रेष्ठ नहीं है।


वर्णश्रेष्ठ सचमुच वही है जो कारपोरेटबनिया है और जिसके तुणीर में अबाध विदेशी पूंजी हैं जैसे सुविधा वास्ते हम हिंदूजा, अंबानी, टाटा,बिड़ला, अडानी,मित्तल, जिंदल वगैरह वगैरह विश्व विजेताओं को याद कर सकते हैं।


कल्कि अवतार हो चुका है।


शूद्रों का राजकाज है।


लेकिन जाति व्यवस्था जस की तस है।


मनुस्मृति अनुशासन बहाल है।


मर्यादा पुरुषोत्तम बाबरी विध्वंस से हासिल खंडहर में रामलला बनकर कड़कती सर्दियों में सीता रसोईके भरोसे कैसे दिन काट रहे होंगे ,कुछ मालूम नहीं है तो सत्य,त्रेता द्वापर में धूम धड़ाका करने वाले परशुराम के कुठार खून लबालब जरुर हैं लेकिन वे खुद कहां मर खप गये मालूम नहीं है।अश्वत्थाम हो तो नहीं गये,क्या पता ठैरा।


बामणों और क्षत्रियों का हाल भी दलितों अति दलितों जैसा है ।


बहरहाल शूद्रों के कल्कि अवतार में बदला कुछ भी नहीं है।


मनुस्मृति जस की तस है और वर्ण व्यवस्था जाति स्थाई बंदोबस्त के मुताबिक सत्य,त्रेता और द्वापर से मुक्तबाजारी वैशिवकि हिंदुत्व के साम्राज्य में अमेरिका इजराइल सहयोगे बहुत ज्यादा मजबूत है और बनियातंत्र के आगे बामणों और क्षत्रियों का हाल भी दलितों अति दलितों जैसा है ।


बिजनेस फ्रेंडली मिनमम गवर्नमेंट वास्ते देश अब डिजिटल है।


इस डिजिटल देश में अंग्रेजी हुक्मरान ने पहले मनुस्मृति अनुशासन तोड़कर शिक्षा, संपत्ति और शस्त्र के हथियार शूद्रों और अछूतो को देकर माहर फौज खड़ी कर दी और बाबा साहेब जैसे अवतार पैदा कर दियों।तो तभी से उत्पादन प्रणाली ऐसी बनी कि जन्म पेशा का बंधन टूटि गयो।


हम जो जाति से अछूत हैं

और कायदे से हमें जो खेती सेती में मरखप जाना था,दुनियाभर के बामणों के वर्चस्व के बावजूद अर्थशास्त्र वगैरह निषिद्ध विषय पर रात दिन गुड़ गोबर कर रहे हैं,वह जन्मगत पेशा अपनाने की मजबूरी खत्म होने की वजह से ही।


ताराशंकर बंद्योपाध्याय ज्ञानपीठ विजेता हैं और अति सम्मानीय हैं और उनके तमाम उपन्यासों में गणदेवता के चंडी मंडप में मनुस्मृति अनुशासन टूटने की सवर्ण नरकयंत्रणा का मानवीय दस्तावेज पेश है और स्वराज आंदोलन की पृष्ठभूमि जाननी है तो जलसाघर के ध्वस्त होते सामंती अवशेष को देखना चाहिए।


कवि की नियति और आरोग्य निकेतन की वैदिकी चिकित्सकीय ज्योतिषीय करुण दारुण कथा और हांसुली बांकेर उपकथा में टोटेम से बाहर निकल जाते आदिवासियों के आख्यान संक्रमण काल के भारत को जानने के अद्भुत पाठ हैं।


अश्वमेधी घोड़े  रेशम पथ पर भी दौड़ेंगे


बहरहाल,हिंदुत्व के बहाने अर्थव्यवस्था में हुई वर्णश्रेष्ठों की महादुर्गति के विनाश के लिए मोहन भागवत,प्रवीण तोगड़ियाकी अगुवाई में तरह तरह के कल्कि सिपाहसालार अल्हा उदल गा गाकर घर वापसी के नारे के साथ विधर्मियों के विनाश के लिए राजसूय अश्वमेध शुरु कर चुके हैं और घोड़े इसबार रेशम पथ पर भी दौड़ेंगे।


हो सकता है कि उनकी दौड़ खास वाशिंगटन या तेल अबीबी तक धमाका का उत्सव कर दें।


न कोई चित्रांगदा है और न कोई नंदिनी है


मणिपुर में किसी स्त्री के हाथों पराजित होने को अभिशप्त नहीं कोई धनुर्धर क्योंकि अब न कोई चित्रांगदा है और न कोई नंदिनी है जो सुरंगों का पातालघर के अंधेरे में आलोक झरऩाधारा बरसा दें।


अब देवियां हैं जिनका विसर्जन नियति बद्ध है चाहे वे निर्भया बनकर मारे जाये या वैशाली की नगरवधू हनकर रह जाये या खजुराहो की भित्तिचित्र बन जाये।मुक्तबाजार चुना है हमने,सभ्यता खोकर।


सांढ़ संस्कृति और सांढ़ों की उछलकूद के मुक्तबाजारी कार्निवाल अब हमारा जीवन है।


वैश्विक व्यवस्था के सिरमौर भी संजोग से कोई अमेरिकी अश्वेत गुलामों के वंश के कल्कि अवतार ही हैं।


निराधार हैं आधार के बिना


भारत नामक जो लोक गणराज्य है,वह मरणासण्ण हैं और नागरिक सारे रोबोट हैं।


निराधार हैं आधार के बिना सोने हगने मूतने की इजाजत तक नहीं है और सभीपर अंकल सैम की निगरानी है।सबकी उंगलियों की छाप जमा है और सबकी पुतलियांं भी जमा है।कुछ टेंफें बोलने की नौबत नहीं है।


सबकी मैपिंग हो गयी है।

सभी नंबर हो गये हैं और ड्रोन की पहरेदारी है।

जैसा कि पाकिस्तान में हो रहा है कि कहीं भी किसी भी ठिकाने पर आतंक के खिलाफ युद्धों में मारे जा रहे हैं बेगुनाह।


इमर्जिंग मार्केट में जिसके तोते में अटकी हुई है डालर की जान।



वैसा ही अब देर सवेर होने वाला है भारत के इमर्जिंग मार्केट में जिसके तोते में अटकी हुई है डालर की जान।


उस तोते से छेड़छाड़ के बारे में अगर सोच्चा भी किसी ने तो ड्रोन महानगरों और देहात भारत के आसमान में भी उड़ रहे हैं और अंतरिक्ष में इसरो नासा के बेइंतहा युद्धक निगरीनी तंत्र है।


स्मार्टफोन,पीसी और टैब में पोर्नोग्राफी जितने लोड करो .जितने बतियाओ,जितने शेयर वेयर करो ,मुक्त बाजार और हिंदुत्व के खिलाफ बोले तो कारपोरेट मीडिया बन जाओगे दमदार हुए तो,तकनीके साध लोगे तो सोशल मीडिया का अवतार बनोगे और बाकीर कुछ ज्यादा उधम काटा तो गाइडेड मिसाइल गाइडेड बुलेट वगैरह वगैरह हर आधार नंबर के लिए तय है,राशन पानी गैस बिजली शिक्षा चिकित्सा नकदी वगदी मिले न मिले।


चप्पे चप्पे पर मृतात्माओं का पहरा है


चप्पे चप्पे पर मृतात्माओं का पहरा है जो साजिशें रच रही हैं।

उनको जिनने नंगा देख लिया,मुक्तिबोध वे बनें ,यह भी जरुरी  नहीं है।

खुदीराम बोस या भगतसिंह भी किसी को बनने नहीं दिया जायेगा।


इरोम शंबूकनी की जान आफत में

मसलन अपनी प्रियतम लैहमानवी इरोम शर्मिला है,जिन्हें आत्महत्या का अधिकार मिल जाने की वजह से जबरन फीडिंग और जीवन रक्षक प्रणाली पर रखने का राजकाज खत्म है।


अब उनकी भलाई इसी में है कि अपना चौदह साल का आमरन अनशन तोड़ दें।आफसा वापस नहीं होना है।


सैन्य शासन में आफसा जोन का सारा कारोबार,उद्योग व्यापार प्रशासन के हवाले नहीं,सैन्यतंत्र के हवाले है।


तो सेना को सुरक्षा के तर्क गढ़ने में दक्षता जो है,हर स्तर पर इस सैन्यशासन के भागीदारों के मतलब भी वही है।


जाहिर है कि सशस्त्र सैन्यबल विशेष अधिकार कानून अब खत्म होने के आसार नहीं है।


किसी इरोम शर्मिला से न इस देश को कोई मतलब है और न इस देश की सेहत पर कोई असर होना है ,वे चाहे जियें या मरें।


अब तो आत्महत्या का अधिकार है।


रोजी रोटी जिनको होन नसीब,वे खुदकशी कर लें,कोई नहीं रोकनावाला।नाकाम भी हुए तो कोई नहीं पूछनेवाला।


बड़की क्रांति हुई गयो रे।


अब किसानों,कारोबरियों,आंदोलन नहीं कर सकते तो सामूहिक खुदकशी की तैयारी कर लो।


अब हर तरह का जनांदोलन असंभव बनाकर निरंकुश है हिंदू साम्राज्यवाद।भागवत और तोगड़िया का आशय यही है।


चौदह साल का वनवास पारकर मर्यादा पुरुषोत्तम का राजकाज शुरु हो चुका है और किसी शंबूकनी को तपस्या की इजाजत नहीं है।


इंद्रासन डोलें तो नारद बोले और असुरों का सफाया फिर शुरु है।


गांधी वगैरह का अनशन का फंडा और अनशन पर अंडा और झंडा,कुछो नहीं चलेगा।


बाकी जो सड़क पर या जल जंगल  जमीन या पहाड़ या मरुस्थल या रण या समुंदर या डूब में चीखेगा चिल्लायेगा ,उसकी आवाज हमेशा हमेशा के लिए बंद करने का पुरकश इंतजाम सलवाजुड़ुम देश व्यापी है और इसे अब घर वापसी कहा जाने लगा है।


या तो अल्हा उदल गाओ वरना मारे जाओगे।


समझो, कि ग्लोबीकरण से प्रकृिति के सारे संसाधन बिकने हैं।


समझो कि विनिवेश विनियंत्रण विनमयमन अब राजकाज है।


समझो कि राजकाज अब कारपोरेट प्रोजेक्ट है।


समझो कि बिलियनर मिलियनर सांसदों मंत्रियों विधायकों से लेकर गांव पधानों तक कोई तुम्हारा कुछो नहीं लगता।


हम आपके कौन हैं गाओगे तो बेमौत मारे जाओगे।


क्योंकि नूरा कुश्ती का सबसे बड़ा अखाड़ा अब भारतीय लोकतंत्र है।


जहां हर चेहरे पर रंग बिरंगे मुखौटे हैं और मरने मारने का जो नाटक है,वह अभिनय के सिवाय कुच्छ भी नहीं है।


असली एजंडा वही है जो भागवत और तोगड़िया का जयघोष और युद्द घोषणाएं हैं।


समझो कि जलवायु बदल गया है कि प्रकृति से रोजे बलात्कार हो रहा है जैसे स्त्री देह की रोजे नीलामी है वैसे इस देश की भी रोजे नीलामी है और उस नीलामी का नाम फ्रीसेक्स सेनसेक्स है और जिस पर तमाम विदेशी निवेशकों के दांव है।


समझों कि मौसम चक्र बदल रहा है।


समझो कि भार हिमपात का समय है यह और सारे रास्ते बंद हैं।


ऊपर भी जाना मुश्किल है तो नीचे भी उतरना मुश्किल है।जो जहां फंसा है,मनुस्मृति अनुशासन में वहीं बना रहे,वरना पेशावर के आयात में देरी कोई नहीं है और सेना हिल स्टेशनों,तीर्थ स्थलों में हानीमून मनाते जोड़ों के बचाव के लिए बर्फ नहीं काटने वाली है।


समझो कि फिर फिर आने वाला है भूकंप।


समझों कि फिर फिर डूब में शामिल हो जाना है।


समझो कि सिर्फ उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश नहीं है।


बाकी सारे प्रदेश भी उर्जी परमाणु उर्जा खंड खंड रेडियोएक्टिव और भोपाल गैस त्रासदियां हैं,गुजरात नरसंहार का आयोजन सर्वत्र है अब और सिखों का नरसंहार फिर दोहराया जाना वाला है।


अब इस देश में हर कहीं बाबरी विध्वंस होने वाला है।


समझो कि पल चिन पल छिन भूस्खलन जारी है महानगरों के उन्मुक्त राजपथ से लेकर तमाम हाईवे एक्सप्रेसवे बुलेट चतुर्भुज गलियारा सेज मेंं पुणे का हाल है या पहाड़ों का।


समझो कि ग्लेशियर और घाटियों और झीलों और नदियों की मृत्यु का समय है यह।


समझो आसण्ण जलसंकट को।


समझो आसण्ण अन्न  संकट को।


समझो की नौकिरिया जैसे खत्म है,वैसे ही बिजनेस इंडस्ट्री का काम तमाम है।आजीविका निषिद्ध है।


समझो कि फिर फिर आने को है सुनामियां।


सुंदरवन खत्म है समझो।


पश्चिम घाट वैसे ही नंगे हैं जैसे विंध्य,अरावली,सतपुड़ा और हिमालय।समझो कि सारे अभयारण्य अब कारपोरेट हवाले हैं।


पूरा देश अब सीमेंट का जंगल है।


पूरा देश अब प्रोमोटर बिल्डर राज बाधित विदेशी पूंजी की लाखों करोड़ों की परियोजनाएं है,जिन्हें अबाध बनाने के लिए सर्वदलीय शीतकालीन सहमति सत्र दानछत्र है।


समझ लो भइये कि मातृभाषाओं के मरने का सही समय है यह।


सूंघो कि यह दमघोंटू सडांध कहां से किस माध्यम,किस विधा और किस लोक से है।


समझो कि विज्ञापनी जिंगल के सनी जिंगल मैनफोर्स समय में बार बार करने की प्रबल इच्छा दरअसल लोक और गीतों के लिए मृत्यु पदचाप है।



समझो कि साधु संत मौसम चक्र बदल जाने के कारण हिमालय में तपस्या के बदले राजकाज में जबरन अड़ंगा डाल रहे हैं।


हिमालय में भारी हिमपात है।


जहां सेना का नियंत्रण है,वहां तो जवान अपनी आवाजाही के लिए मसलन जैसे सिक्किम और लद्दाख लेह में बर्फ काट रहे हैं।लेकिन मैदान से सिर्फ कुछ ही किमी ऊपर बसे नैनीताल में भी भारी बर्फबारी से सैलानी फंसे हुए हैं हानीमून उत्सव में।


जाहिर है कि साधू संतों का हानीमून से कोई नाता नहीं है।हालांकि कैलाश मानसरोवर से लेकर केदार बदरी तक अब हानीमून स्पाट ही हैं।


वे सारे साधू संत वशिष्ठ या विश्वमित्र या जमादग्नि की तरह उधम मचा नहीं पा रहे हैं।


क्योंकि न लाखों घोड़े किसी क्षत्रिय राजे के पास हैं और न उनके अंदरमहल में हजारों रानियां और राजकुमारिया हैं।


उनमें कुछ बाबा बनकर सत्ययुग की वापसी जरुर करने में लगे हैं।


सतजुग को पुष्यमित्र शुंग के राजकाज में बदलने की कवायद चल रही है।


इसी सिलसिले में एक अति शूद्र कोई एच एल दुसाध ने कल एक प्रलयंकारी आलेख हस्तक्षेप में डाल दिया है जिससे हिंदू साम्राज्यवादियों के विजयअभियान में खल ल पड़ भी सकती है।दुसाध भाया वैसे तो उम्मीद कर रहे थे कि समरसता सिद्धांत के तहत केसरिया कारपोरेट राज में डायवर्सिटी लागू हो जाने से यानी शक्ति स्रोतों के समान आवंटन कोयला ब्लाकों के आवंटन के माफिक समान तौर पर सध जाने से जाति उन्मूलन के विष्णु अवतार बाबासाहेब अंबेडकर का एजंडा पूरा हो जायेगा और जाति व्यवस्था का सिरे से विनाश हो जायेगा क्योंकि नये बंदोबस्त में शूद्र महाराज कल्कि ही राजा हैं तो बामणों और राजपूतों के वर्चस्व के दिन खत्म हुए तो दलितों अतिदलितों और विधर्मी अल्पसंख्यकों के दिन बहुरेंगे।


लेकिन घर वापसी के नाम पर मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के भागवती रणहुंकार जो उनके घरु कोलकाता के असुर देश में हुआ और सारे असुर मारे डर के दुबके हैं कि कोई दुर्गा या काली उनका फिर वध कार्यक्रम शुरु न कर दें,तो भारतदेशे वैश्विक धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का नजारा देख दुसाध डायवर्सिटी को कल्कि राज की असलियत का अहसास हो गया और उनने लिख मारा हैः


याद करें भूमिहार, उपाध्याय, आचार्य, महापात्र, दुबे, तिवारी, चौबे वगैरह की नम्बुदरीपाद, वाजपेयी, मिश्र इत्यादि ब्राह्मणों के समक्ष सामाजिक मर्यादा। क्या इनकी तुलनात्मक सामाजिक मर्यादा हिन्दू धर्म से मुक्त होने के लिए प्रेरित नहीं करती? इसी तरह हिन्दू समाज में सिंहों की भांति विचरण करने वाले क्षत्रियों से हिन्दू धर्म यह कहता है कि सत्तर वर्ष के क्षत्रिय को चाहिए कि वह दस वर्ष के ब्राह्मण बालक को पिता जैसा मानते हुए प्रणाम करे, और बड़ी-बड़ी मूंछे फहराए क्षत्रिय ऐसा करते भी हैं। क्या यह शास्त्रादेश क्षत्रियों को हिन्दू-धर्म से मोहमुक्त होने के लिए प्रेरित नहीं करता ? और हिन्दू धर्म में वैश्य मात्र वित्तवान होने के अधिकार से समृद्ध हैं, पर ब्राह्मण और क्षत्रियों के समक्ष उनकी हीनतर स्थिति क्या हिन्दू धर्म के परित्याग का आधार नहीं बनाती? आत्मसम्मान के अतिरिक्त हिन्दू-धर्म अर्थात वर्ण-धर्म के मात्र आंशिक अनुपालन से उपजी विवेकदंश की समस्या तो इनके साथ है ही, पर आत्मसम्मान और विवेक विसर्जित कर भी सवर्णों के हिन्दू धर्म में रहने की कुछ हद तक युक्ति है क्योंकि इसके विनिमय में उन्हें हजारों साल से शक्ति के स्रोतों में पर्याप्त हिस्सेदारी मिली है। पर, आत्मसम्मान व विवेक से समृद्ध सवर्ण नारियां व शुद्रातिशुद्रों से कैसे कोई प्रत्याशा कर सकता है कि वे हिन्दू धर्म में बने रहेंगे?


हस्तक्षेप पर अब दुसाध को पढ़ लीजियेगा।


फिर सोचें कि कहां कहां किसे रोक लीजियेगा।



दुसाध बाबू लिखते बहुतै बढ़िया हैं और सच दिल खोलकर लिख डालते हैं सिर्फ कल्कि अवतार की उनकी आस्था प्रबल है बाकी वे भी कोई हनुमान कम नहीं हैं।


पूंछ में उनकी आग ऐसी है कि ससुरे लंका को जलना ही है।लेकिन संघ परिवार के आसरे डायवर्सिटी लागू करने के बारे में उनका जो मोहभंग हुआ है,वैसा मोहभंग भारत के चरम उपभोक्तावादी,परम भोगी,नकद नारायण के उपासक कर्मकांडी हिंदुओं का हो रहा होगा,ऐसी कोई आशंका नहीं है।

कि सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है



अभी हमारे पास आनंद तेलतुंबड़े जैसे लोग हैं।अपना अभिषेकवा है।अमलेंदु हैं।रियाज है और अभी जिंदा हैं वीरेन डंगवाल,पंकज बिष्ट और आनंदस्वरुप वर्मा की जमात।


बाकीर देश भर की तमाम भाषाओं और तमाम जनपदों के लोग बाग उधमिये भी हैं।


16 मई के बाद कविता है तो प्रतिरोध का सिनेमा भी है।


हर शहर से हर गांव से अब उठने वाला है तूफान।


कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर जनपद बोलेगा।


हम हस्तक्षेप में जनपदों की व्यथा कथा ही दर्ज कर रहे हैं।


जो हवाओं में,पानियों में जहर घोल रहे हैं,उनके मुकाबले हम खड़े हैं और हम अकेले भी नहीं हैं।


दम है तो हाथ में रखो हाथ।


कि सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है।


बिंदास लिखो बिंदास बोलो।


अपनी भाषा में,अपनी बोली में बोलो,लिखो,हम हर आवाज को दर्ज करेंगे और मरते दम मोर्चा न छोड़ेंगे।



गीता उपदेश हमारे विरुद्धे जो हैं,उस गीता महोत्सव का आंखों देखा हाल आप जानना चाहें तो दिव्यचक्षु हमारे पास भी हैं।


वैसे सारे साधु संत हिंदुत्व के झंडेवरदार मुंह में वंदेमातरम कहकर छुरिया शान दे रहे हैं कि किस किसका न जाने गला काटना हो इस हिंदू साम्राज्य के पुनरूत्थान और मनुस्मृति के अनंत आदिगंत बंदोबस्त में दुसाध जैसे इक्के दुक्के शंबूकों की तपस्या भंग कर दिया जाये या फिर उनका शुद्धिकरण करके उन्हें कल्कि फौज में शामिल कर लिया जाये।


बाकीर मुरगियों और बकरियों की पंचायत लग रही हैं कि उनकी गर्दन रेंती जायें या एकमुश्त हलाल कर दिया जाये उन्हें,ऐसा तय करने की आजादी उन्हें मिल जाये।


गनीमत है कि इस कल्कि अवतार से बहुत पहले कोई बाबासाहेब नाम के शंबूक भी हुआ करते थे और मनुस्मृति बंदोबस्त में विदेशी अंग्रेजन के राज में उनके संरक्षण में शूद्रों को जो हथियार उठाने और शिक्षा का अधिकार मिल जाने से मनुस्मृति अनुशासन भंग हुआ और राम जी अंतर्धान रहे तो बाबा साहेब विलायत के कैंब्रिज आक्सफोर्ड वगैरह वगैरह जीतकर आ गये।  


और उनने अर्थ शास्त्र साधकर मनुस्मृति के अर्थशास्त्र को भरसक बदलने की कोशिश की, रुपै की समस्या उजागर कर दी और रिजर्व बैंक की स्थापना से लेकर गोल्ड स्टैंडर्ज और श्रम कानून ट्रेड यूनियन के हक हकूक से लेकर मैटरनिटी लिव तक के बंदोबस्त तक कर दीन्ही ।


तो तब कोई बूढ़बाबा गांधी महाराजो भी थे जो जात से बनिया थे और बनियाराज लाने के खातिर रामराज की बात किया करते थे।


बाबासाहेब के जाति उन्मूलन एजंडा को उनने ममता बनर्जी के शब्दों में बिना छिला बांस कर दिया आमरण अनशन की धमकी देकर कि उनके प्राण बचाने बाबासाहेब ने झटपट पुणे करार पर दस्तखत करके आरक्षण कोटा बंदोबस्त मान लिया और इसी तरह बूढ़बाबा गांधी महाराज ने शूद्र राजकाज का बंदोबस्त करके बहाल मनुस्मृति में सौ फीसदी बनियाराज का चाकचौबंद इंतजाम कर दिया।


इस कारण हजारों बरस बने भारत को वे नये सिरे से पैदा कर गये और बापू कहलाये।


उनके अनुयायियों ने फिर धूम धड़ाके से बजरिये बारत विभाजन के अंग्रेजों को खदेड़ बाहर किया तो देश अखंड रखकर समानता और न्याय के आधार पर जो आजाद भारत के लिए शहादत देते रहे,उनके किये धरे पर माटी गोबर डालने का काम करते रहे उनके तमाम अनुयायी,जो बाद में संघ परिवार के छाते में चले गये।


बाकीर राजकाज स्वतंत्रता सेनानी ही चलाते रहे,ऐसा मनाने वाले बुरबकौ हैं।


उन घरानों का भूत भविष्य वर्तमान देख लीजिये जो अंग्रेजी हुकूमत के वाफादार थे और भारत की आजादी के खिलाफ थे और कदम दर कदम सदियों से वे विदेशी हुक्मरान के मनसबदार थे,उनके वंशज ही अब भारत भाग्यविधाता हैं।


सत्ता हस्तांतरण के वखत वहींच बाबासाहेब को संविधान का ड्राफ्टबनाने का काम दिया गया और जवाहर लाल ने हांक हांक कर उनसे जो संविधान बनवाया,उसमें आरक्षण कोटा के फौरी बंदोबस्त के अलावा बहुत कुछ खतरनाक तत्व भी बिना किसी राष्ट्रव्यापी जनसमर्थन के अपनी कुशाग्र मेधाकारणे बाबासाहेब ने डाल दिये जैसे मौलिक अधिकारों का बवंडर,जैसे श्रम कानून,जैसे स्त्रियों के अधिकार जैसे संसाधनों के राष्ट्रीयकरण का प्रावधान,जैसे पांचवीं और छठी अनुसूचियों में आदिवासियों के हक हकूक,जैसे आठवीं अनुसूची केममुताबिक मातृृभाषा के अधिकार,जैसे भूमि सुधार की गुहार,जैसे लोककल्याणकारी राज्य क नीति निर्धारक सिद्धांत।


हालांकि जवाहर ने भी बामण बहुमत का पूरा जुगाड़ कर लिया था और वे पक्के कश्मीरी पंडित साबित हुए जो नेताजी को देशबाहर करके सत्ता के एकमात्र वारिस हो गये और ऐन वक्त सरदार बल्लभ भाई पटेल को किनारे भी कर दियो।बंगाल और पंजाब का विभाजन हो जाने से वहां से बहरहाल नेतृत्व की कोई चुनौती न थी।


वैसे ये बाबासाहेब न होते तो इहो कल्कि अवतार भी न होता।


शूद्रों का यह राजकाज भी उन बाबा साहेब का अखंड प्रताप है,जाहिरै है कि जिनको अब संघ परिवार सबसे खतरनाक मानता है और ऐसा मानते हुए उनको सीधे पहले बवालिया गौतम बुद्ध को भगवान बनाकर किनारे करके बौद्धमय भारत के खात्मे के अासान के फार्मूले के तौर पर मुक्म्मल भगवान बना दिया गया है।


मूर्ति तो गांधी बाबा की भी बनी है।उसकी इन दिनों कोई पूजा वगैरह होती नहीं है।


राजघाट में मत्था टेकने की रघुकुल रीति चली आ रही है और उनके स्वराज की परिकल्पना और विदेशी पूंजी के उनके जिहाद को तो नवउदारवाद के भगवान मनमोहन सिंह और नरसिम्हावतार नें बारह बजा दिये।


उन नरसिम्हावतार ने हासलांकि बाबरी विध्वंस में कारसेवकों का पूरा संरक्षण भी किया और इसी तरह बाबरी विध्वसं से मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र भले रामलला बनकर सीता रसोई में कैद भये,लेकिन हिंदुत्व का एजंडा वैश्विक हो गया और मुक्त बाजारी जायनी बंदोबस्त में उसे अब अमेरिका और इजराइल का पूरा समर्थन है।


जिन बराक ओबामा को बुलाया गया वे एकमुश्त ईसाई और मुसलमान दोनों है,हमें नहीं मालूम कि संघ परिवार और हिंदुत्व के सिपाहसालार अपने ईसाई मुसलमान नरसंहार सूची में उनको कैसे बख्श रहे हैं।


हालांकि जैसे कि कल्कि अवतार का सिद्धांत है कि शूद्र भयो तो क्या हुआ,लागू वही मनुस्मृति विधान तुम्हारा राजकाज है,इस कसौटी पर ओबामा बम बम है।


अमेरिका ने जो तालिबान अलकायदा आईसिस मुस्लिम ब्रदरहुड नाम के भस्मासुर पैदा कर दियो है,इस्लाम तो वैसे ही संकट में है।


ध्यएशिया में हर कहीं मुसलमान मुसलमान को मारे हैं।रोज रोज आत्मघाती धमाका।अमेरिका का आतंकविरोदी युद्ध तो मुसलमान खुदे लड़बे करै हैं।


अमेरिकी फौजें हालांकि मध्य एशिया में फंसी हैं लेकिन वह मुसलमानों की हिफाजत के लिए नहीं, सफाये के लिए।


हिंदुओं इतिहास से सबक लें तो बेहतर।वरना हिंदू तालिबान हंदुओं की वही गति करेंगे जो इस्लामी तालिबान मुसलमानों का कर रहे हैं।


अपने डालर वर्चस्व और तेलहितों के लिए बुश से लेकर ओबामा तक को झख मारकर वैसा करना पड़ा है ।सारे अमेरिकी राष्ट्रपति वैसा ही करते रहे हैं और करते रहेंगे।


जैसे बजरिये नासा, पेंटागन, नाटो, विश्वबैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संगठन,रेटिंग एजंसियां,तमाम चर्च संगठन,सीआईए एफबीआई वगैरह वगैरह भारत को हिंदू बनाकर भारत का बाजार दखल करके डालर की सेहत सुधारने के लिए झोंके हुए है अमेरिका।


बाकीर अमेरिका में भी हिंदुत्व का जयपताका है।जयडंका बाजे घना घना।केम छे।केम चे।


हिंदुत्व के सिपाहसालार ही ओबामा प्रशासन का राजकाज चला रहे हैं।


इसे यूं समझिये कि मेले में बिछुड़े पश्चिमी कल्कि जु़ड़वां भाई महाराज अंकल सैम के म्हारो देश पधारने से पहले पहली बार शायद कोई भारतवंशी रिचर्ड राहुल वर्मा भारत में अमेरिकी राजदूत तैनात हैं।


और वे सुंदरी नैसी पावेल की जगह बैठेंगे जिनने दलित राजनयिक देवयानी खोपड़ागड़े के साथ कथित बदसलूकी की वजह से भारत अमेरिकी राजनय बेजायका होने से इस्तीफा दे दियाथा पिछले मार्च में ही।


अब राहुल बाबा की नियुक्ति तब हुई जब दलित कन्या देवयानी काअपराध मानकर भारत सरकार ने उनकी सेवा खत्म ही कर दी।


जनपद कथा बतर्ज

सिवनी जिले का इतिहास

3/15/2012 9:42:19 AM

  सिवनी जिले के नामकरण के संबंध में जिले में अनेक दंतकथायें एवं धारणायें प्रचलित है। इतिहास के पृष्ठों में यह जिला मंडला के गौंड राजाओं के 52 गंढों में से एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। नगर मुख्यालय में तीन गढ चावडी, छपारा और आदेगांव प्रमुख थे। गौंड राजाओं के पतन के पश्चात सन 1700 ई. में नागपुर के भोसले के साम्राज्य के अधीन आ गया। सत्ता का केन्द्र छपारा ही था। सन् 1774 में छपारा से बदलकर मुख्यालय सिवनी हो गया। इसी समय दीवानगढी का निर्माण हुआ और सन् 1853 में मराठों के पतन एवं रघ्घुजी तृतीय की मृत्यु  निःसंतान होने के कारण यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव में आ गया। सन् 1857 की क्रान्ति के पश्चात कम्पनी का समस्त शासन ब्रिटिश हुकूमत के अधीन हो गया। मुख्यालय में दीवान साहब का सिवनी ग्राम, मंगलीपेठ एवं भैरोगंज ग्राम मिलकर सिवनी नगर बना। इसके बाद सन् 1867 में सिवनी नगरपालिका का गठन हुआ। सिवनी में वनोपज हर्रा, बहेडा, आंवला एवं महुआ बहुतायात में होता है। महुआ का अधिक उत्पादन होने के कारण सन् 1902 में डिस्लरी का निर्माण हुआ। सन् 1909 तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर श्लोकाक विस्तार करते हुए रेल्वे लाईन का विचार किया। सन् 1904 में बंगाल नागपुर नैरोगेज रेल्वे का आगमन हुआ। सन् 1938 में बिजली घर के निर्माण ने नगर में एक नये युग का सूत्रपात किया। नगर की गलियां और घर बिजली की रोशनी से जगमगा उठे।

   सन् 1939 से 1945 के मध्य द्वितीय विश्व युद्व ने अंग्रेजी साम्राज्य की जडे हिला दी।

नागपुर से जबलपुर एन.एच. 7 के मध्य सिवनी ना केवल प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था बल्कि जंगल अधिक होने के कारण अंग्रेजों के लिए सुरक्षित स्थान भी था। महात्मा गांधी के अथक प्रयासों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अमर बलिदान से 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ।

   सिवनी जिला सन् 1956 में पुनः जिला बना। जिला बनने पर प्रथम कलेक्टर श्री ए.एस. खान पदस्थ हुए। हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, वर्तमान में अनेक उतार चढाव देखने के पश्चात भी इस जिले में अपनी विकास यात्रा जारी रखी है। जिले में अनेक सपूतों ने अपनी यशगाथा प्रदेश, देश और विदेश में फैलाई है। उनमें परम पूज्य द्विपीठाधीश्वर जगत गुरू शंकराचार्य, स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज का नाम प्रमुख है।


प्रथम धारणा

   सिवनी नगर का नाम सिवनी क्यों पडा इस संबंध में प्रथम धारणा यह है कि यहां कभी सेवन वृक्षों का बाहुल्य था। कदाचित इसी कारण इस नगर का नाम सिवनी पडा है। आज भी जिले में यत्र-तत्र सेवन के वृक्ष पाये जाते है।


द्वितीय धारणा

   शैव मत के अनुयायी शिव भक्तों का बाहुल्य एवं भगवान शिव के इष्टदेव के रूप में पूजा अर्चना की अधिकता के कारण इस नगर का नाम शिवनी था, कलान्तर में इसका रूप बिगडकर अप्रभ्रंश होने के बाद सिवनी हो गया होगा।


तृतीय धारणा

   ऐतिहासिक पृष्ठभूमि लिए हुए तीसरी धारण यह है कि वीरगाथा काल (सम्वत् 1050 से 1375 तक) में नैनागढ के गोंड राजा इन्दरमन (इन्द्रमन) की बहिन सोना रानी अनुपम सुन्दरी थी। सोना रानी हिर्री नदी विकासखंड केवलारी ग्राम अमोदागढ के पास ग्राम  खोहगढ में अपने भाई के साथ रहती थी। वीर भोग्या वसुन्धरा की उक्ति के अनुसार तत्कालीन राजधरानों की परम्परानुसार वीरता को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। अतः सोनारानी जब जवान हुई तो उसके पिता श्री सोमदेव ने उसकी शादी के लिये एक शर्त रखी कि जो वीर शेर से लडने की क्षमता रखता हो उसे ही सोना रानी का विवाह किया जायेगा।

   आल्हा एवं उदल महोबा चंदेल राजा परमरद (राजा परमाल) के महान पराक्रमी योद्वा (सेनानायक) थे। ये बनाफ र क्षत्रिय थे। अनुज ऊदल की इच्छा थी कि अल्हा का विवाह सोना रानी से हो। अतः उदल ने अपने बडे भाई आल्हा को सोना रानी से विवाह कराने की सलाह दी। आल्हा ने कहा कि नैनागढ का राजा बहुत ही बलशाली है तथा उसके पास अस्त्र-शस्त्र भी बहुत है। उसने सोना से विवाह करने की इच्छा से आये 52 वीरवरों को बंदी बनाया लिया है। अतः आल्हा ने विषम परिस्थिति को भांप कर मना कर दिया, किन्तु उदल हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने हमला बोल दिया। इन्दरमन के साथ घमासान युद्व हुआ और ऊदल जीतकर सोना रानी को ले गाया। तत्पश्चात आल्हा के साथ सोना रानी का विवाह सम्पन्न हुआ। सोना रानी के नाम पर इस नगर का नाम सिवनी पडा।  


चतुर्थ धारणा

   एक धारणा यह भी है कि संभवतः आद्य शंकराचार्य दक्षिण दिशा से उत्तर भारत की यात्रा करते हुए जब यहां से निकले तो यहां की प्राकृतिक सम्पदा से प्रभाविक होकर उन्होंने इसे श्रीवनी के नाम से विभूषित किया। इसीलिये इसे सिवनी के नाम से जानते है।


पंचम धारणा

   श्रीवनी का अर्थ होता है बेल के फलों का वन। इसके पत्ते शिवलिंग पर चढाते हैं और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इसके फल यज्ञ हवन में काम आते है। सिवनी नगर में बेल के वनों की अधिकता के कारण इसका नाम श्रीवनी पडा हो और संभव है कालान्तर में अप्रभ्रंश होकर इसका नाम सिवनी हो गया।


षष्टम् धारणा

   मुगलों का आक्रमण जब गढ मंडला में हुआ तब उस आक्रमण को विफल करने के लिए नागपुर से राजा भोसले की सेना और गढ मंडला से गोंड राजा की सेना गढ छपारा में आकर रूकी । सेना के रूकने के स्थान को छावनी कहा जाता है सेना के रूकने के क्षेत्र धूमा, लखनादौन,छपारा सिवनी, खवासा रहे है। चूंकि सिवनी सैनिकों के लिए सर्वसुविधा युक्त स्थान था। अतः कुछ अंग्रेज विद्वानों का मत है कि यह विशाल सैनिक क्षेत्र छावनी रहा है। कालान्तर में छावनी का अपभ्रंश रूप सिवनी हो गया।

   उपर्युक्त विभिन्न धारणाओं के बीच सिवनी नगर के नामकरण के साथ कौन सी धारणा सत्य है इसका निर्णय नीर क्षीर विवेकी प्रबुद्व सुधी पाठकों पर ही छोडना उचित है।

   प्राचीन काल में भारत में इतिहास लेखन की कोई सुव्यवस्थित परम्परा नही थी। अतः सिवनी क्षेत्र का भी प्राचीन काल का कोई क्रमबद्व इतिहास उपलब्ध नहीं है। यंत्र-तत्र बिखरी जो कुछ अल्प सामग्री प्राप्त है उसके आधार पर लगभग तीसरी शताब्दी से ही संक्षिप्त इतिहास की रूपरेखा निर्धारित की जा सकती है।


An INVITATATION of AJMEER Seminar on 25,26 January 2015

Previous: घर वापसी न हुई तो मारे जाओगे और बचेगा नहीं कोई म्लेच्छ अब कहीं! अल्हा उदल गाओ रे भइये,बजाओ रे रणसिंघे कि धर्मक्षेत्र भारदेश कुरुक्षेत्र है अब! कृपया डालर वर्चस्व और अमेरिका के मनुष्य,प्रकृति और सभ्यता के विरुद्ध तमाम अपराधों के मदमदेनजर इस समीकरण पर गौर जरुर करें कि भारत में दूसरे चरण के सुधारों के लिए मनमोहन खारिज और कल्कि अवतरण और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन से पहले तमाम बिलों को पास कराने का कार्यभार,लंबित परियोजनाओं में फंसी लाखों करोड़ की विदेशी पूंजी की जमानत का तकाजा और इसी के मध्य सिडनी से पेशावर तक मनुष्यता पर बर्बर हमले के तहत पूरे एशिया आस्ट्रेलिया में इस्लामोफोबिया का तिसिस्म घनघोर और उसी के मध्य हिंदू साम्राज्यवाद का मुसलमानों और ईसाइयों के सफाये के लिए दक्षिणपूर्व एशिया के सिंहद्वार कोलकाता से विहिप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खुली युद्धयोजना।बंगाल का केसरिया कायकल्प। पलाश विश्वास
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NATIONAL    COUNCIL   FOR   POLITICAL  &   SOCIAL UNITY
                                                                                                                   & 
                                                                                                                                                                                                                            
                                             NATIONAL COUNCIL for Promotion of Democracy & Secularism
Central Office   : A 4 , LOTUS LEGEND APARTMENT,Kummaripalam Centre,  Vijayawada 520012,     Andhra Pradesh,      India       Mobile 09618953802,                                                                                                          
 
Dear Brothers/Sisters
 
            National Council for Promotion of Democracy and Secularism, a non-profit organisation & NCPSU , have planned a two-day National Seminar on the theme of "Secularism under Siege: Revisiting Indian Secular State", to be held at AJMEER (Rajasthan), JANUARY 25-26, 2015. I request all of you to participate in the seminar as a discussion on all two  days and also bring other persons who may be interested to attend.. For your perusal I am also attaching the Concept Note of the seminar. An image of the poster depicting the highlights of the upcoming seminar is also attached.
NCPSU
               NCPDS 
              A.P.Abdul Rahman, National Convenor, / Cell:09618953802/abutaharahman@yahoo.com
Riyaya Atish, Bihar, State Convenor 09386098299raa786@gmail.com
               Adv.Ameen Peeran, Maharastra, State Convenor,09619915629 ameenpeeran156@gmail.com
               Mirza Shakir Baig, Telangana, State Convenor,08686074594mshaker7@yahoo.com
               Mohammed Omer Khan,West Bengal,Chairman,NCPSU,09339105712 best.kol@gmail.com
               Abdul Hafiz Lakhani,Gujrat State Convenor, 09228746770abdulhafizlakhani@gmail.com
               C.R.Imtiaz,South India Convenor ,0944849449imtiazcr@gmail.com
               Habeebur Rahman,Andhra Pradesh,State Convenor, 09440172786 habeebindian @gmail.com
               Mohammed Kamran Khan,New Delhi, State Convenor, 09311211293m_k_khan@rediffmail.com
               Mohammed Nayeem,Rajasthan,State Convenor, 09875166098
                          Dr.N.A.Shah Quadri, Karnataka State Convenor,09242301488drnaqdwdoi@gmail.com
                          Adv.S.J.Inayatullah,Tamilnadu State Convenor,09444049844,sjinayath@yahoo.com
                          Dr.Hasan,Madhya Pradesh, State Convenor,09300381061 uro4444@hotmail.com
                          P.Amir Ali,Kerala State Convenor, 09221668641

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News from Nepal:डा. सी. के. राउतको पक्षमा मधेशमा जनसागर उर्लियो

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डा. सी. के. राउतको पक्षमा मधेशमा जनसागर उर्लियो

परासि बजार, पुष ४ गते – मधेशमाथि लादिएको उपनिवेश र मधेशीहरूमाथि हुँदै आएको विभेद र दमनको जागरुकता अभियानमा नवलपरासि को परासि बजारमा शुक्रबार १२००० भन्दा बढी समर्थकहरूबिच डा. सी. के. राउतले जनसम्बोधन गरेका छन् । मधेशी एकता समाज र स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन नवलपरासीको संयोजकत्वमा गरिएको आमसभामा प्रमुख अतिथि डा. राउत, बिशेस अतिथि केन्द्रिय उपाध्यक्ष कैलाश महतो, केन्द्रिय प्रवक्ता अब्दुल खान, बालगोबिन्द चोधरी, जे.पी. यादव, दिपेन्द्र चोबे, चन्दन सिंह, सुरेश यादव लगायतका वक्ताहरूले मधेशको गौरवशाली इतिहासदेखि नेपाली औपनिवेशिक शासन, मधेश र मधेशी प्रतिको अन्याय विषयमा मन्तव्य राखेका थिए भने आमसभाको अध्यक्षता मधेशी एकता समाजका मदन यादवले गरेका थिए ।

डा. राउतले मधेशीहरु सदियोदेखि उपेक्षित रहेको भन्दै नेपालि साम्राज्यले गरेको भेदभाव विरुद्ध एकजुट भई धैर्य र साहसका साथ शान्तिपूर्ण तरीकाले लडाई लडनुपर्ने बतउनुभयो । मेडिया बाट समेत उपेक्षित रहेको देखिएको उक्त सभामा नेपालि कुनै पनि मेडियाले मधेशका समाचार प्रकाशन तथा प्रशारण नगरेकोले मधेश अलग देश नै भएको स्वत: भान हुने अधिकांस वक्ताहरुले बताएका थिए । त्यस्तै कार्यक्रमका अध्यक्षता गरेका मदन यादवले "राज्यले बिभेद गरे छुटीन्न पाउने अधिकार"सहितको संविधान जारि नगरे आफूहरु महाआन्दोलनमा जाने बताउँदै अबको महाआन्दोलनले मधेश स्वराज स्थापित गरेरै छाड्ने दृढता व्यक्त गरे ।

यस अघि काठमाडौंको खुल्लामञ्चमा मिति २०७१ मंसिर १० गते बुधवार राखिएको मधेशी जनसभालाई नेपाल सरकार र त्यसका प्रहरी प्रशासनद्वारा बिथोलिएको, डा. राउतलगायत मधेशबाट काठमाडौं आएका र काठमाडौं समेतमा बस्ने, बाटोमा हिंडडुल गरिरहेका मधेशी अनुहार, छाला, भाषा र पोशाक भएका सयकडौं मधेशी समुदाय, युवा, विद्दार्थी कर्मचारी तथा अभियानका डा. राउत लगायत ५०० भन्दा बढी नेता कार्यकर्तालाई काठमाडौंको विभिन्न ठाउँहरुबाट धरपकड गर्दै लाठी चार्ज समेतगरी घाइते बनाएको र सामुदायिक तथा साम्प्रदायिक रुपमा बेइज्जत र मानहानि गर्दै विभिन्न बन्दी गृहहरुमा झण्डै आधा साता भन्दा बढी शारीरिक र मानसिक रुपमा प्रताडना दिइएको थियो । मंसिर १९ गते पनि बाराको सिम्रैनगढमा डा. सी. के. राउतका १०००० भन्दा बढी समर्थकहरूले जनप्रदर्शन गरेका थिए, जसका प्रशारण कुनै पनि नेपालि मेडियाले गरेका थिएनन्, यसबाट पनि नेपलि मेडिया वर्गविशेस र रंगभेदि रहेको प्रस्ट प्रमाणित हुन्छ ।

– कैलाश महतो
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News from Nepal:आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय आन्दोलनको मार्चपासले सबैलाई तर्सायो

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आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय आन्दोलनको मार्चपासले सबैलाई तर्सायो 

एकजातिको मात्र हालीमुहाली रहने गरि ल्याइएको काँग्रेस, एमालेको राज्य पूर्न संरचनाको प्रस्तावित खाकाको कारण एकजुट हुन पुगेका आदिवासी जनजाति तथा मधेसीहरुले आन्दोलन शुरु गरेका छन् ।

४ पौस २०७१ का दिन दिउसो १२ बजे माइतीघर मण्डलाबाट नयाँ बानेश्वरको संविधानसभा हल तर्फ हजारौको संख्याले मार्चपास गरेका छन् । सबै पार्टीका जनजाति नेता तथा कार्यकर्ताहरु सम्मिलित मार्चपासले सबैलाई झस्काई दिएको छ भने संसारभरका मुक्तिगामीहरुलाई उत्साह प्रदान गरेको छ ।

मार्चपासलाई श्रेद्धय मानवअधिकारवादी नेता पदमरत्न तुलाधरले सम्बोधन गर्नुहुदै संयमित भई जुझारुका साथ आन्दोलनमा सहभागि हुन आग्रह गर्नुभएको छ । वहाले संविधानसभा र देशविदेशलाई ध्यानआकृष्ट गराउनु भएको छ ।

जनजाति आदिवासी तथा मधेसीहरुको बेग्लाबेग्लै माग भएपनि लगभग मिल्दोजुल्दो १४ वा १० प्रदेशको मागमा रहेका छन् । ३ महत्वपूर्ण विषय निर्वाचन प्रणाली, संघीयता र न्याय प्रणाली मध्ये निर्वाचन प्रणालीको बारेमा भएको सहमति जनजातिहरुको हित विपरित भई सकेको छ । समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली माग भएपनि मिश्रीत प्रणालीमा सहमत गरेका छन् । संघीयता काँग्रेस, एमालले ६ वा ७ वा ८ प्रदेशको कुरा हिजो विकास क्षेत्र भन्दा फरक नभएको र प्रभावकारीरुपबाट चल्नै नसक्ने प्रदेशको प्रस्ताव । अपनत्व बोध गर्ने समुदायहिन उक्त प्रदेसको प्रस्तावले एकजातिलाई मात्र समेट्ने देखिन्छ । न्यायप्रणालीको छिनोफानो हुन अझै बाँकी भएपनि अहिले नेपालभरको जेलहरुमा ८० प्रतिशत जनजाति, मधेसी र दलितहरु थुनिएको अपुष्ट तथ्याङ्क छ । त्यसैले न्यायप्रणाली पनि महत्वपूर्ण विषय रहेको छ ।

यो राष्ट्रिय आन्दोलनमा नेपाल आदिवासी जनजाति महासंघका केही पदाधिकारीहरुलाई सहभागि हुन अप्ठयारो हुनुको भित्रि कुरा मुख्य २ वटा रहेका छन् । पहिलो हो एमाले काँग्रेसको आदेश मान्ने र दोस्रो हो महासंघको कार्यकारी पदाधिकारीहरुमा थोरै जनसंख्या रहेको जातिय समुदायबाट प्रतिनिधित्व हुन । थोरै जनसख्या भएकाले एकल राज्यको विरुद्धमा स्वयं महासङ्घका नेतृत्वहरु हुन की भन्ने आशका हुनु हो । र, अर्को कारण जनजाति महासंघको नेतृत्वले निर्णायक आन्दोलन हाँक्न सक्दैन्न र सर्वमान्य पद्यरत्न तुलाधरको नेतृत्व भएको आन्दोलनमा सबैको आस्था रहनु ।

ठूलो सख्याको सहभागिताले आन्दोलनकारीहरुको मनोबल बढेको छ ।

रोचक पक्षः केही बर्ष अघिसम्म सेना र प्रहरी क्षेत्रमा ठूलो उपस्थिती र बर्चश्व राख्ने क्षेत्री जातिले आफ्नो विरासत गुमाए संगै नयाँ जनजातिमा रुपान्तरण हुदै गएका छन् । अहिले सेना र प्रहरीमा पनि बाहुन जाति लाइन लागि सकेका छन् । खसान प्रदेश हुदा क्षेत्रीहरुको पहिचानलाई पनि शासकहरुले स्वीकार्न चाहेका छैनन् ।

पहिचानसहितको सङ्घीयताको लागि जनजातिद्वारा संविधानसभामा धर्ना

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पहिचानसहितको सङ्घीयताको लागि जनजातिद्वारा संविधानसभामा धर्ना

काठमाडौँ, ३० जेठ । नेपाल आदिवासी जनजाति महासङ्घले पहिचानसहितको सङ्घीय संविधान निर्माण गर्नुपर्नेलगायतका माग अघि सारी आज नयाँ बानेश्वरमा धर्ना दिएको छ ।

महासङ्घसँग आबद्ध विभिन्न आदिवासी जनजातिका सङ्घसंस्थाका प्रतिनिधिले बबरमहलदेखि प्लेकार्डसहित संविधानसभा भवन अगाडि नयाँ बानेश्वर चोकमा पुगेर धर्ना दिएको हो ।

धर्नापछि आयोजित कार्यक्रममा महासङ्घका अध्यक्ष नगेन्द्रकुमार कुमालले पहिचातसहितको सङ्घीयता हुनुपर्ने, संविधानसभाबाटै संविधान निर्माण गर्नुपर्ने, संविधानसभालाई पूर्णता दिन छिटोभन्दा छिटो २६ जनाको मनोनयन गर्नुपर्ने र मनोनयन गर्दा अन्तरिम संविधानको धारा ६३ को ३ ग मा उल्लेख भएअनुसार आदिवासी जनजातिलाई प्राथमिकता दिनुपर्ने बताउनुभयो ।

आदिवासी जनजाति महासङ्घसँगको २० बुँदे सम्झौता कार्यान्वयन गर्नुपर्ने तथा राज्यको स्रोत साधनमा पहुँच र नीति निर्माण तहमा जनसङ्ख्याको आधारमा जनजातिलाई समानुपातिक प्रतिनिधि गराउनुपर्ने महासङ्घको माग छ ।

तमू ह्युल छोंज धीं गुरुङ राष्ट्रिय परिषद्का सदस्य एवम् तनहुँ बन्दिपुर छिंकेश्वर तमू समाजका उपाध्यक्ष सुरसिंह गुरुङले राज्यले मुलुकका सम्पूर्ण जाति र भाषालाई समान रुपमा व्यवहार गर्नुपर्ने बताउनुभयो ।

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