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स्टींग के झाग का इस फाग में कोई काम नहीं..सारारारा! सत्ता दल की बढ़त है।लेकिन कांग्रेस के समर्थन की बदौलत जो बहुत उसे मिलता रहा है,वह 45 फीसद भी नहीं है। बंगाल में अब कांग्रेस वामपक्ष के साथ है और वाम पक्ष का चरम दुर्दशा में भी वोट चालीस फीसद के आसपास है। एक के खिलाफ एक उम्मीदवार की रणनीति के तहत वाम कांग्रेस गठबंधन 45 फीसद से कम समर्थन से खिसक रहे सत्तादल के लिए सीधे मुकाबले मेंं बहुत बडी चुनौती है,जबकि भाजपा वोटों का सोलह फीसद का गुब्बारा पांच से शून्य तक पिचक जाने का नजारा है। बंगाल में सनसनी के विकल्प से शार्टकट में वापसी का रास्ता चुनने की भूल न करें विपक्ष तो बेहतर! बेहतर हो कि जिन मुद्दों को लेकर सत्ता बेनकाब है,जनगण के जीवन आजीविका के उन्हीं मुद्दों को लेकर राजनीतिक विमर्श में ही लौटें कामरेड! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

Previous: राजीव नयन बहुगुणा उवाच,उनके फेसबुक वाल से साभार धिक् नराधम --------------- प्रागैतिहासिक काल के आख्यानों में युयुत्सु शासक अपनी जीत का डंका बजाने के लिए घोड़े की बलि देते थे । इसे अश्व मेध यज्ञ कहा जाता था । आज देहरादून में उत्तराखण्ड के एक माननीय विधायक ने यह वेद विहित रस्म साकार कर दी । मनुष्य की मूक हय से यह कैसी प्रतिद्वन्द्विता । यह क्रूरता का जुगुप्सु सार्वजनिक विस्फोट ! धत्तेरे की । अय हिंसक पशु तुल्य , तू तो गधे से भी न्यून निकला ।
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स्टींग के झाग का इस फाग में कोई काम नहीं..सारारारा!

सत्ता दल की बढ़त है।लेकिन कांग्रेस के समर्थन की बदौलत जो बहुत उसे मिलता रहा है,वह 45 फीसद भी नहीं है।


बंगाल में अब कांग्रेस वामपक्ष के साथ है और वाम पक्ष का चरम दुर्दशा में भी वोट चालीस फीसद के आसपास है।


एक के खिलाफ एक उम्मीदवार की रणनीति के तहत वाम कांग्रेस गठबंधन 45 फीसद से कम समर्थन से खिसक रहे सत्तादल के लिए सीधे मुकाबले मेंं बहुत बडी चुनौती है,जबकि भाजपा वोटों का सोलह फीसद का गुब्बारा पांच से शून्य तक पिचक जाने का नजारा है।


बंगाल में सनसनी के विकल्प से शार्टकट में वापसी का रास्ता चुनने की भूल न करें विपक्ष तो बेहतर!


बेहतर हो कि जिन मुद्दों को लेकर सत्ता बेनकाब है,जनगण के जीवन आजीविका के  उन्हीं मुद्दों को लेकर राजनीतिक विमर्श में ही लौटें कामरेड!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



चिटफंड घोटाले में खुद मुख्यमंत्री कटघरे में हैं।पक्ष विपक्ष के तमाम दिग्गज आरोपो के घेरे में हैं।लाखों लोगों का फूल सर्वनाश हो गया है।अनेक गिरफ्तारियां हुई हैं और अनेक आदरणीय जेल की सलाखों के पीछे हैं।रोज खबरें बनती हैं और खूब चलती है।


सीबीआई और तमाम केंद्रीयएजंसियां वर्षों से अभियुक्तों की पड़ताल कर रही हैं।


न लोगों को अपना पैसा वापस मिला न मिलने के आसार हैं।


राजनीतिक समीकरण कभी कटु,कभी अम्ल और कभी मधुर हानीमून या फिर वसंत बहार है।


कुल मिलाकर मामला रफा दफा है।इससे बड़ी बात किसी भी चुनाव में बड़ा मुद्दा बनते रहने के बावजूद इसका असर हुआ नहीं है।


ऐन चुनाव के मौके पर अज्ञात कुलशील नारद महिमा से स्टिंग आपरेशन एक हुआ है,जिसमें बीस लाख तक की रकम की लेनदेन अनेक आदरणीय चेहरों के मुखारविंद से नत्थी है,जो अदालत में सबूत बन पायेंगे,इसका शक है।


चुनाव नतीजे आने तक इस स्टिंग की साख को झूठ या सच साबित करने की संभावना नहीं है।


बंगाल में पांव धरने की जमीन कखने में नाकामयाब बजरंगियों के लिए भागते बूत की यह लंगोट बहुत काम की चीज है और वे चुनाव निबटने तक और उसके बाद कमल की खेती में इस स्टिंग को राष्ट्रवाद की चाशनी में डालकर स्वादिष्ट खाद बनाते रहेंगे,लेकिन इसके जायके में बंगाल की जनता की शायद ही कोई दिलचस्पी हो।



हस्तक्षेप में जगदीश्वर चतुर्वेदी ने सही कहा है कि बंगाल में मौजूदा संकट राजनीतिक विमर्श की अनुपस्थिति है,जो बाकी देश के लिए बी ज्वलंत सच है।


सनसनी बदलाव की पूंजी नही होती।

शीतल पेय की बोतल की झाग की तरह सनसनी उबलती जरुर है,पर उसका असर नहीं होता।

बंगाल की राजनीति निर्णायक दौर में है।


ऊपरी तौर पर सत्ता दल की बढ़त है।लेकिन कांग्रेस के समर्थन की बदौलत जो बहुत उसे मिलता रहा है,वह 45 फीसद भी नहीं है।


अब कांग्रेस वामपक्ष के साथ हैऔर वाम पक्ष का चरम दुर्दशा में भी वोट चालीस फीसद के आसपास है।


एक के खिलाफ एक उम्मीदवार की रणनीति के तहत वाम कांग्रेस गठबंधन 45 फीसद से कम समर्थन से खिसक रहे सत्तादल के लिए सीधे मुकाबले मेंं बहुत बडी चुनौती है,जबकि भाजपा वोटों का सोलह फीसद का गुब्बारा पांच से शून्य तक पिचक जाने का नजारा है।


ऐसे हालात में सनसनी के विकल्प से शार्टकट में वापसी का रास्ता चुनने की भूल न करें विपक्ष तो बेहतर।


बेहतर हो कि जिन मुद्दों को लेकर सत्ता बेनकाब है,जनगण के जीवन आजीविका के  उन्हीं मुद्दों को लेकर राजनीतिक विमर्श में ही लौटें कामरेड।


अगर केंद्र और राज्यसर्कार की मिलीभगत न हो और बंगाल में तैनात केंद्रीयवाहिनी निष्पक्ष मतदान और स्वतंत्र मताधिकार सुनिश्चित कर दें,तो राज्य सरकार की उपलब्धियों के आधार पर ही जनादेश बनेगा,जो लोकतंत्र का तकाजा भी है।

संदर्भःपश्चिम बंगाल में चुनाव में कुछ दिन बचे है और अभी से तृणमूल कांग्रेस के नेता स्टिंग ऑपरेशन में फंसने लगे है, एक-दो नहीं बल्कि कुल 12 नेता इस स्टिंग में फंसे है।


इन नेताओं पर आरोप है कि चेन्नई की एक कंपनी को बंगाल में बिजनेस सेट अप करने के लिए इन नेताओं ने 4 लाख से 50 लाख रुपए तक नकदी के रुप में लिए है। हांलाकि स्टिंग पर तृणमूल का कहना है कि यह उनके खिलाफ साजिश है।


दूसरी ओर बीजेपी ने ममता बनर्जी से इस्तीफा मांगा है।


कैमरे में टीएमसी के मंत्री, विधायक व सांसद तक पैसे लेते दिख रहे है। एक न्यूज चैनल ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस स्टिंग का खुलासा किया, जिस कंपनी से पैसे लिए गए है, उसका नाम इंपेक्स कंसल्टेंसी है। एक न्यूज पोर्टल के पत्रकार टीएमसी नेताओं को पैसे ऑफर कर रहे है।


कहा जा रहा है कि 2014-16 के बीच हुए इस स्टिंग के दौरान वेबसाइट ने कुल 1 करोड़ रुपए टीएमसी नेताओं को दिए है। इससे ममता सरकार पर दबाव बढ़ गया है। विपक्ष मिलकर ममता पर हमले कर रही है।


सीपीएम का कहना है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। तृणमूल का कहना है कि ये वीडियो डॉक्टर्ड है।


तृणमूल के सांसद डेरेक ओब्रायन का कहना है कि राजनीतिक पार्टियां हमें बदनाम करने के लिए ओछे तरीके अपना रही है। तृणमूल वेबसाइट के किलाफ भी मानहानि का केस करेगी



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Next: अब हमारे पास जंजीरों को खोने के सिवाय खोने को कुछ भी नहीं है।अब नहीं तो कभी नहीं। हम साथ साथ हैं और हम पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे जब तक हम देश जोड़कर हालात न बदल दें! फासीवादी निरंकुश सत्ता के मुकाबला के लिए साझा मोर्चा जरुरी है,हर शख्स जो बजरंगी नहीं है,इसे समझने लगा है और लड़ाई का प्रस्थानबिंदू यही है। पलाश विश्वास
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पलाश विश्वास
18 मई का शुभ मुहूर्तअब आने ही वाला है,जब मुझे वातानुकूलित पशेवर पत्रकारिता के 36 साल लंगे जीवन को अलविदा कहकर सीधे सड़क पर आना है।
अब उसकी तैयारियां जोरों पर हैं।
सेवानिवृत्ति से पहले भारत तीर्थ के दर्शन के लिए सविता के साथ आज दोपहर तीन बजे घर से निकल रहा हूं और वापसी का टिकट 28 का है।मोबाइल पर मैं लिखता नहीं हूं।कहीं किसी मित्र का पीसी मिला रास्ते में तो दुआ सलाम होगी वरना इस अवधि में आपकी नींद में मैं खलल नहीं डालुंगा।
आगे लंबी लड़ाई है।
बंगाल के साथियों ले संगठनात्मक पर हस्तक्षेप के साथ खडे होने का वादा किया है और हम इसे बांग्ला मे बहुत जल्दी कोलकाता से भी शुरु करेंगे।
महाराष्ट्र के साथियों से भी सकारात्मक जवाब मिला है और पंजाब से बड़ी उम्मीद है।
यही उ्मीद देश के बाकी हिस्सों से ,बाकी साथियों से है।
हम आपसे न्यूनतम सहयोग चाहते हैं ताकि लोकतंत्र बहाल रखने के लिए जनसुनवाई का सिलसिला हम हर भारतीय भाषा में शुरु कर सकें।
चूंक लगभग एक पखवाड़े तक हमारे कहे लिखे से आपको आराम है तो हम आपसे निवेदन करते हैं कि पे पाल के जरिये तुरंत आनलाइन अपना सबसक्रिप्शन हस्तक्षेप के लिए भेज दें।
The worst illiterate is the political illiterate, he doesn't hear, doesn't speak,

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अब हमारे पास जंजीरों को खोने के सिवाय खोने को कुछ भी नहीं है।अब नहीं तो कभी नहीं। हम साथ साथ हैं और हम पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे जब तक हम देश जोड़कर हालात न बदल दें! फासीवादी निरंकुश सत्ता के मुकाबला के लिए साझा मोर्चा जरुरी है,हर शख्स जो बजरंगी नहीं है,इसे समझने लगा है और लड़ाई का प्रस्थानबिंदू यही है। पलाश विश्वास

Next: काहे की क्षेत्रीय अस्मिता और कौन सा स्वाभिमान ? जो आदमी चुनाव तक पहाड़ से लड़ने के लिए तैयार नहीं वो क्या यहाँ की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लडेगा ? यह तो सत्ता की मलाई का कटोरा पूरा नहीं पड़ रहा था,इस बात की लड़ाई है.हरीश रावत,उनका कटोरा इससे ज्यादा भरने को तैयार नहीं हैं और इतना भर कटोरा,उन्हें स्वीकार नहीं ! बात तो बस इतनी सी है.
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अब हमारे पास जंजीरों को खोने के सिवाय खोने को कुछ भी नहीं है।अब नहीं तो कभी नहीं।

हम साथ साथ हैं

और हम पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे

जब तक हम देश जोड़कर हालात न बदल दें!

फासीवादी निरंकुश सत्ता के मुकाबला के लिए साझा मोर्चा जरुरी है,हर शख्स जो बजरंगी नहीं है,इसे समझने लगा है और लड़ाई का प्रस्थानबिंदू यही है।

पलाश विश्वास

आज ही हिमगिरि से लौटना हुआ कोलकाता।


आदिवासी हक हकूक के मामलों में लगातार लड़ रहे हिमांशु कुमार जी और नो सेज मूवमेंट के याहू ग्रुप जमाने से लगातार सक्रिय मानसी जी जो प्रकाश जी के साथ विवाह के बाद हमारे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की बहू भी हैं,ने धर्म,जाति और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर चर्चा के लिए हमें पालमपुर में संभावना  के वर्कशाप बुनियाद के लिए बुलाया तो उत्तर भारत को नये नजरिये से देखने को मिला।


वहां कश्मीर समेत पूरे देस के युवा छात्र सामाजिक कार्यकर्ता तो थे ही,हमारे अंबेडकरी साथी अशोक बसोतरा और जम्मू से उनके तीन साथी रास्ते में सड़क हादसे के बावजूद पहुंच गये।


पहलीबार ऐसा हुआ कि विभिन्न जाति धर्म के अत्यंत मेधावी और प्रतिबद्ध युवाओं और छात्रों को हमने लगातार दो दिनों तक संबोदित किया और उनके सवालों के जबाव में मेरे साथ बैठे अशोक बसोतरा ने बाकायदा अंबेडकरी विचारधारा और मिशन के मुताबिक मनुस्मृति और ब्राहम्णवाद के खिलाफ खुलकर बोलते हुए इस विमर्श को जाति उन्मूलन के एजंडे पर फोकस किया।


पहलीबार हम कश्मीर के साथियों के  जमीनी अनुभव सिलसिलेवार सुन रहे थे,जिन्हें हम लगातार साझा करते रहेंगे।


समन्वय कर रहे थे प्रवीण कुमार जी जिनके अर्थ शास्त्र की कक्षाओं में हम बाद में शामिल हुए।शशांक,मुहम्मद और रिकी जी सारे विमर्श के संचालन के पीछे हर मिनट सक्रिय रहे।


हिमांशुजी और मानसी जी तो थे ही,प्रकाश जी की मौजूदगी में बातचीत की धार बहुत गहराई तक पैठ रही थी।


सत्तर के दशक से लेकर रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या से पहले छात्र युवा पीढ़ी ने कभी इतने धैर्य से जाति धर्म भाषा पहचान से ऊपर उठकर देश दुनिया जोड़ने के प्रति पूरी प्रतिबद्धता के साथ कभी इतने सीधे तौर पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के विचारों को बदलाव के परिप्रेक्ष्य में सुना हो,मुझे याद नहीं पड़ता।


कम सकम रोहित वेमुला प्रकरण और जेएनयू प्रकरण से पहले छात्र युवाओं में अंबेडकर की विचारधारा पर चेतना सिर्फ बहुजन समुदायों के कुछेक छात्रों तक सीमाबद्ध थी और वह भी सत्ता में हिस्सेदारी की राजनीति कर रहे लोगों के हितों के मुताबिक थी।


मसलन कोलकाता में कोलकाता और जादवपुर विश्वविद्यालय से लेकर आईआईटी खड़गपुर,आईआईएम कलकाता,इलाहाबाद विश्वविद्यालय,बीएचयू,बंगलूर ,मुंबई,पुणे,चेन्नई,गुवाहाटी कश्मीर और पूर्वोत्तर के विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति शासन के खिलाफ, संघवाद के खिलाफ लगातार जो आंदोलन जारी है,उससे साफ जाहिर है कियह तूफां किसी भी सूरत में थमने वाला नहीं है।


खास बात यह है कि नीले झंडे के साथ अंबेडकरी कार्यकर्ता बाकी लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं और सत्ता की राजनीति,उसके दांव पेंच,समीकरण और अंध राष्ट्रवाद के तमाम पैंतरों से हमारे छात्रों और युवाओं का आंदोलन अभीतक भटका नहीं है ,जैसा कि अतीत में हर छात्र युवा आंदोलन के साथ होता रहा है।



निरकुंश सत्ता से टकराने के मूड में छात्रों और युवाओं ने फासीवाद विरोधी तमाम विचारों और शक्तियों की गोलबंदी का जो बीड़ा उठाया है,पालमपुर में सभी समुदायों के के छात्रों और युवाओं के साथ लगभग हफ्तेभर पर्यावरण, राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था, ग्लोबीकरण और मुक्तबाजार,पितृसत्ता जैसे विषयों पर गहन विचार विनिमय के दौरान इसका अहसास गहराई से हुआ।


हमने देशभर के अपने अंबेडकरी साथियों से निरंतर संवाद जारी रखा है जैसे कि इस यात्रा के दौरान भी हिमाचल, कश्मीर, पंजाब,हरियाणा के साथियों के साथ आमने सामने और हर सूबे के साथियों से अन्य तमाम माध्यमों के जरिये हमारा संवाद जारी है।


इसलिए ऐसा कतई मत समझें  कि हम अकेले लिख या बोल रहे हैं या चल रहे हैं।आंदोलन और संगठन की बुनियादी शर्त यही है कि साथियों के लेकर चलना होता है।हम साथ साथ हैं।रहेंगे।


हम जो कह लिख रहे हैं ,वह समवेत स्वर ही समझें।

और यह स्वर बदलाव का अनिवार्य वक्तव्य है।


गुजरात के जनांदोलनों से दशकों से जुड़े और पर्यावरण से लेकर गुजरात नरसंहार तक के मामले में जमीन से जुड़कर जनांदोलन का नेतृत्व कर रहे रोहित प्रजापति के साथ वीडियो कांफ्रेंस में अद्भुत संवाद भी गजब का अनुभव है जैसा कि हम कह रहे थे कि मनुष्य और प्रकृति बुनियादी मुद्दे हैं और उनसे जुड़े हर मामले पर समग्र तौर पर विचार करके ही हमें देश और दुनिया को जोड़कर निरंकुश सत्ता का मुकाबला करना है।


रोहित जी गुजरात के विकास माडल का जो पर्दाफाश लगातार करते रहे हैं,इस संवाद में वह भी शामिल था जिसे हम साझा करते रहे हैं।


रोहित प्रजापति ने यकीन जताया कि अब हालात बेहद बेहतरीन हैं क्योंकि पहलीबार देश के छात्र युवा एकजुट हैं  और देश के हर हिस्से में दमन और उत्पीड़ने के बावजूद जनांदोलन जारी है।


रोहित प्रजापति ने यकीन जताया कि हम अपनी ताकतें जोड़ लें तोे निर्णायक जीत हमारी होगी और हम जीतेंगे यकीनन।


पालमपुर में कश्मीर से कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर से लेकर गुजरात तक का प्रतिनिधित्व कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्र  युवाओं के स्वर में इस संकल्प की गूंज सुनायी दी जो अब इस देश के हर कालेज.संस्थान और विश्वविद्यालय का मुख्य स्वर है।


विश्वविद्यालयों से बाबासाहेब के मिशन के तहत,जाति उन्मूलन के मिशन के तहत मनुस्मृति के खिलाफ,ब्राह्मणवादी रंगभेदी जाति व्यवस्था और भेदभाव के खिलाफ,संघवाद के खिलाफ जंग और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए, मेहनतकशों के हकहकूक के लिए,नागरिक और मानवाधिकारों के लिए जंग जारी है।


मुक्त बाजार के तंत्र मंत्र यंत्र के खिलाफ जो इंसानियत के जुलूसों का अविराम सिलसिला चल पड़ा है,उसके आगे अब  सिर्फ समता और न्याय की मंजिल है।


अब हमारे पास जंजीरों को खोने के सिवाय खोने को कुछ भी नहीं है।अब नहीं तो कभी नहीं।


मुझे यह साझा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि सत्ता की राजनीति में शामिल मसीहावृंद के अलावा बाकी अंबेडकरी आंदोलन का हर कार्यकर्ता देशभर में छात्र युवाओं के इस आंदोलन के साथ हैं।


कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारे तमाम साथी साथ साथ हैं और वे तमाम लोग सक्रिय भी हैं।


जिन्हें इस बारे में शंका हो,वे अपने सूबे,जिला और तहसील के सक्रिय कार्यकर्ताओं से तुंरत संपर्क कर लें।


अब हम किसी एक संगठन या एक विचारधारा,एक जाति,एक धर्म,एक नस्ल,एक क्षेत्र के नजरिये से नहीं,बल्कि निरंकुश सत्ता के अभूतपूर्व दमनात्मक निषेधात्मक तंत्र मंत्र यंत्र के विरुद्ध हर मनुष्य की स्वतंत्रता और उनके हक हकूक और प्रकृति व परायवरण के हित में देश जोड़ों मुहिम के तहत बाबासहेब अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे के तहत समता और न्याय  की मंजिल हासिल करके ही दम लेंगे।


पीड़ितों,उत्पीड़ितों,वंचितों,बहिस्कृतों,अछूतों की व्यापक एकता के लिए हम कुछ भी करने को तैयार है और यह सारे देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं को संकल्प हैं,जिनमें अंबेडकरी कार्यकर्ता भी शामिल हैं।


फासीवादी निरंकुश सत्ता के मुकाबला के लिए साझा मोर्चा जरुरी है,हर शख्स जो बजरंगी नहीं है,इसे समझने लगा है और लड़ाई का प्रस्थानबिंदू यही है।


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काहे की क्षेत्रीय अस्मिता और कौन सा स्वाभिमान ? जो आदमी चुनाव तक पहाड़ से लड़ने के लिए तैयार नहीं वो क्या यहाँ की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लडेगा ? यह तो सत्ता की मलाई का कटोरा पूरा नहीं पड़ रहा था,इस बात की लड़ाई है.हरीश रावत,उनका कटोरा इससे ज्यादा भरने को तैयार नहीं हैं और इतना भर कटोरा,उन्हें स्वीकार नहीं ! बात तो बस इतनी सी है.

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इंद्रेश मुखौरी

उत्तराखंड की सरकार के घोड़े की टांग की तरह धराशायी होने और फिर उसे सहारा दे के खड़े किये जाने की अवस्था को प्राप्त होने के बीच कुछ अजब-अजब प्रवृत्तियों भी प्रकट हुई.हमारा समाज भी कितने-कितने तरह से सोचता है,यह उत्तराखंड के राजनीतिक घटनाक्रम में एक बार फिर दिखाई दिया.गर्व करने को नायक न हों तो हम खल प्रवृत्ति के नायकों को ही महानायक की तरह देखने लगते हैं.व्यक्ति हमारे इलाके,जाति,धर्म आदि-आदि का हो तो कुछ लोग खड़े हो जायेंगे कि चाहे व्यक्ति खल प्रवृत्ति का है पर हमारी अस्मिता का प्रतिनिधि तो यही है.उसमे उस क्षेत्र के लिए कुछ करने के लक्षण दूर-दूर तक नजर न आते हों,वह वहां की आकाँक्षाओं के साथ लाख छल करता रहा हो,परन्तु अपने नितांत निजी स्वार्थों के लिए वह सियासी खींचातान में शामिल हो जाए तो कतिपय लोग प्रचारित करने लगेंगे कि देखो हमारे नेताजी तो क्षेत्र की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लड़-मरने को तैयार हैं.
ऐसा ही कुछ किस्सा, कतिपय लोग हरीश रावत के साथ नितांत निजी वजहों से लड़ने वाले हरक सिंह रावत के बारे में प्रचारित कर रहे हैं.ऐसे लोग हरक सिंह रावत की तमाम खल प्रवृत्तियों को स्वीकार करते हुए भी,उन्हें गढ़वाल की क्षेत्रीय अस्मिता और स्वाभिमान का प्रतिनिधि ठहराने पर उतारू हैं.अरे भाई साहब ! काहे की क्षेत्रीय अस्मिता और कौन सा स्वाभिमान ? जो आदमी चुनाव तक पहाड़ से लड़ने के लिए तैयार नहीं वो क्या यहाँ की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लडेगा ? यह तो सत्ता की मलाई का कटोरा पूरा नहीं पड़ रहा था,इस बात की लड़ाई है.हरीश रावत,उनका कटोरा इससे ज्यादा भरने को तैयार नहीं हैं और इतना भर कटोरा,उन्हें स्वीकार नहीं ! बात तो बस इतनी सी है.
पर जब यह बात मेरे सामने आ गयी कि कुछ लोग हरक सिंह रावत को हरीश रावत के साथ झगडे के चलते गढ़वाल का महानायक सिद्ध करने पर तुले हैं तो बरबस मेरे दिमाग में ख्याल आया कि कुमाऊँ में ऐसे ही नायक की छवि तो हरीश रावत की गढ़ी जा रही होगी कि देखो कैसे गढ़वाल वालों के खिलाफ कुमाऊँ का नायक ताल ठोक कर खड़ा है.वास्तविकता यह है कि न हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा गढ़वाल के लिए लड़ रहे हैं और न ही हरीश रावत कुमाऊँ वालों के लिए लड़ रहे हैं.शराब,रेता-बजरी,खनन,जमीन आदि के माफिया से न हरक सिंह रावत-विजय बहुगुणा को कोई ऐतराज है और न हरीश रावत को उनसे कोई गुरेज.लड़ाई बस इतने भर की है कि अपने-अपने नूर-ए-नजर माफियाओं के हितों का पोषण कैसे अधिकतम कर सकें. 
इस तरह के नकली क्षेत्रीय गर्व और खल मार्का नायकों को महानायक बना कर सिर्फ एक ही काम होता है कि क्षेत्रीय आधार पर लोगों के बीच की विभाजन रेखा को चौड़ा किया जाता है.यह गढ़ा हुआ,फर्जी इलाकाई नायकत्व लोगों को कैसे ठगता है,इसका एक रोचक किस्सा एन.डी.तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल का.2002 में एन.डी.तिवारी उत्तराखंड की पहली निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री बने.काफी अरसे तक तो उनके विकास पुरुष वाली विज्ञापनी छवि से काम चलाया जाता रहा.लेकिन धीरे-धीरे उनके लालबत्ती छाप विकास की कलई उतरने लगी.ऐसा होने के साथ-साथ कांग्रेसियों ने गढ़वाल में प्रचार करना शुरू किया कि एन.डी.तिवारी गढ़वाल का विकास नहीं कर रहे हैं,कुमाऊँ में देखो तो उन्होंने सब चमका दिया है.अधिकाँश लोगों ने कुमाऊं जाना नहीं था तो वे सोचते कि कर ही रहे होंगे तिवारी कुमाऊं का विकास ! विकास पुरुष के तमगे का कुछ तो आधार होगा ही.हकीकत ये थी कुमाऊं में तिवारी पंतनगर विश्वविद्यालय के गेस्ट हॉउस से आगे नहीं बढ़ते थे.बहरहाल इस प्रचार के बीच में 2004 में कुमाऊं के कुछ इलाकों में मैं घूमा.एन.डी.तिवारी के सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन पर पैनी दृष्टि रखने वाले एक बुजुर्गवार से नैनीताल जिले के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में मेरी मुलाक़ात हुई.मैंने उनसे पूछा कि गढ़वाल में तो लोग कह रहे हैं कि एन.डी.तिवारी गढ़वाल में तो कुछ नहीं कर रहे हैं.पर कुमाऊं में तो उनके विकास की चमचमाहट से लोगों की आँखें ही नहीं खुल रही हैं !पर यहाँ तो कुछ नहीं दिख रहा है.वे सहजतापूर्वक बोले-तिवारी जी करना तो चाहते हैं कुमाऊं का विकास पर सारे मंत्री तो गढ़वाल के हैं.वे तिवारी जी को करने ही नहीं देते कुमाऊं का विकास.क्या जबरदस्त दिमागी ठगी है ! गढ़वाल में कहो कि तिवारी तो सारा विकास कुमाऊं में कर रहे हैं,इसलिए तुम्हारा विकास नहीं हो रहा है.कुमाऊं में कहो कि गढ़वाल के मंत्री, तिवारी तो कुमाऊं का विकास नहीं करने दे रहे,नहीं तो..........
यही वो फार्मूला है जिससे लोग विकास विहीन रहते हैं और नेता जी की विकास पुरुष की छवि भी चमचमाती रहती है.दोनों ही जगह लोग एक दूसरे के प्रति द्वेष से भरते रहते हैं और खल प्रवृत्ति वालों को महानायक के आसन पर विराजित करते रहते हैं.हकीकत यह है कि न हरक सिंह ,विजय बहुगुणा गढ़वाल के लिए लड़ रहे हैं,न हरीश रावत का झगड़ा कुमाऊंनी अस्मिता के लिए है. कितनी शातिराना चाल है ये कि निजी स्वार्थों के लिए आपस में खली प्रजाति की नकली कुश्ती करने वाले, लोगों के बीच वास्तविक गहरी दरारें डालते जाते हैं.बहुतेरे समयों में यह विभाजन ही इन खल प्रवृत्ति के नायकों का खेवनहार बनता है.यह निजी स्वार्थों की साम्यता और जनता में बंटवारे वाला चक्रव्यूह यदि लोग भेद लें तो खल प्रवृत्ति के नायकों का अस्तित्व स्वयं ही धूल में मिल जाएगा.बांटने की यह राजनीति जनता की बड़ी शत्रु है,यह समझना ही होगा.


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PRESS INVITE:Press Conference on “Are Aadhaar like biometric identification projects in India, Nepal, Bangladesh and Pakistan legitimate?”

Previous: काहे की क्षेत्रीय अस्मिता और कौन सा स्वाभिमान ? जो आदमी चुनाव तक पहाड़ से लड़ने के लिए तैयार नहीं वो क्या यहाँ की अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लडेगा ? यह तो सत्ता की मलाई का कटोरा पूरा नहीं पड़ रहा था,इस बात की लड़ाई है.हरीश रावत,उनका कटोरा इससे ज्यादा भरने को तैयार नहीं हैं और इतना भर कटोरा,उन्हें स्वीकार नहीं ! बात तो बस इतनी सी है.
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PRESS INVITE:Press Conference on "Are Aadhaar like biometric identification projects in India, Nepal, Bangladesh and Pakistan legitimate?"


PRESS INVITE  

Press Conference on "Are Aadhaar like biometric identification projects in India, Nepal, Bangladesh and Pakistan legitimate?"

Date: Wednesday30th March, 2016

Time: 3.30 PM

Venue: The Foreign Correspondents' Club of South Asia

AB-19, Mathura Road, New Delhi: 110001

Tel: 91-11-23388535, 91-11-23385518 

Speakers:  Mr P D T Achary, former Secretary General, Lok Sabha     

Dr Usha Ramanathan, noted jurist

Kavita Krishnan, Secretary, All India Progressive Women Association (AIPWA)

Dr. M Vijayanunni, former Registrar General and Census Commissioner (TBC)

Col. Mathew Thomas, former Defence Scientist (TBC)

Dr Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL)

and other eminent citizens and representatives from neighboring countries 

Now that Aadhaar Act, 2016 has been notified in the Gazette after it received the President's assent, the press conference is aimed at examining the constitutionality and legitimacy of such initiatives in a global and South Asian context. Supreme Court of India is seized with the matter. Election Commission of India has refused to link Aadhaar with Voter ID in compliance with Court's order. Governments of India, Bangladesh, Pakistan and Nepal appear to have been compelled to adopt biometric identification for its residents ignoring the fact that countries like UK, USA, China, Australia, and France have scrapped either their identity projects or indiscriminate use of biometrics. But the same has been bulldozed in India, Bangladesh, Pakistan and Nepal. In the aftermath of disclosures by Wikileaks, Edward Snowden, Grec Greenwald and Citizen Four and access of a locked iPhone, it is evident that illegitimate advances of transnational entities are being legalized. Mass surveillance is harming democracy. It is silencing minorities of all ilks.  

Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL) has been working on the issue of biometric identification and related issues since 2010. It had submitted testimony before India's Parliamentary Standing Committee on Finance that examined the Aadhaar Bill, 2010 that was meant to legitimize Unique Identification Authority (UIDAI) of India.

To discuss this and allied issues we cordially invite you to join us onWednesday, 30th March, 3.30 pm at Foreign Correspondents' Club of South Asia.

 

For Details: Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), Mb: 09818089660, 08227816731, E-mail-1715krishna@gmail.com, Ramesh, Indian Social Action Forum, Mb: 9818111562 Email: rameshinsaf@gmail.com  


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नारद दंश के बाद बगावत की हलचल,हवा बदलने लगी है बंगाल में बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आखिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है। दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल.जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील है और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में। बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास संवाददाता हस्तक्षेप

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नारद दंश के बाद बगावत की हलचल,हवा बदलने लगी है बंगाल में


बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आखिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है।


दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल.जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील है और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में।


बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है।



एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

संवाददाता हस्तक्षेप

ममता बनर्जी के लिए शायद सबसे बुरी खबर यह है कि शारदा कांड और नारद दंश से भले ही केसरिया छाते के सहारे उनकी सरकार और उनकी पार्टी का कुछ बिगड़ा न हो,लेकिन उनकी पार्टी और सरकार में भूमिगत आग सुलगने लगी है।


जो बेदाग लोग हैं और दागी बिरादरी से अलग अपनी साख बचाने की फिराक में है,कांग्रेस वाम धर्मनिरपेक्ष गठबंधन की हवा की रुख समझकर वे तमाम लोग बगावत का झंडा कभी भी बुलंद कर सकते हैं और इससे भी बुरी खबर है कि जिन्हें दीदी ने वाम खेमे से तोड़कर अपने किलेबंदी की ईंटों में तब्दील करना चाहा,वे राख में तब्दील है।


मसलन,वाम किसान नेता रेज्जाक अली मोल्ला अभी से नेस्तानाबूत है। उम्मीदों के विपरीत वाम कांग्रेस गठबंधन जमीनी स्तर पर बहुत मजबूत किलेबंदी करने लगा है और दीदी का जो हो सो हो,बंगाल में भाजपा का और संघ परिवार का सूपड़ा साफ होने जा रहा है।


बिहार से हार का जो सिलसिला बना है,वह गोमूत्र से जीत में बदलने के आसार कम ही है।अंध राष्ट्रवाद की आंधी से बंगाल का प्रगतिशील बौद्धमय माहौल को धर्मांध बनाने में फेल हैं बजरंगी।


दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल,जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील हैं और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में।


बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।


जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है।


बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आकिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है।


बंगाल फासिज्म के राजकाज के लिए वाटरलू साबित होने लगा है।


बंगाल एकमात्र देश का वह हिस्सा है कि राज्यसरकार के साथ गुपचुप समझौते के बावजूद संघपरिवार का केसरिया अश्वमेधी रथों के पहिये कीचड़ में धंस गये हैं और कमल कहीं खिल नहीं रहे हैं।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शारदा चिटफंड घोटाले को रफा दफा कराने में कामयाब तो रही लेकिन नारद दंश से बचने के फिराक में संघ परिवार के हमलों के जवाब में खामोशी से मोदी दीदी गठबंधन का इस कदर पर्दाफाश हो गया है कि निर्णायक अल्पसंख्यक वोट बैंक अब साबुत बचा नहीं है।


और दिनोंदिन एक के खिलाफ एक प्रत्याशी के सीधे मुकाबला में धर्मनिरपेक्ष वाम लोकतांत्रिक गठबंधन की जमीन मजबूत होता जा रहा है।लोकसभा और राज्यसभा समितियों का फैसला जब आयेगा तब आयेगा, दीदी की ईमानदारी का चादर बेहद मटमैला हो गया है और शारदा के धब्बे कमल फूल बने खिल रहे हैं।


खुल्ला हो गया है सरेआम खेल फर्रूखाबादी।

बेनकाब हो गये हैं टाट के परदे।

अब कोई दुआ भी शायद काम आये।

वैसे भी बंगाल में अब फतवे का कोई काम नहीं है।


नारददंश के पहले हुए सर्वेक्षण और पिछले परिवर्तनकारी चुनावों के मतों के विश्लेषण से साफ था कि एक के खिलाफ एक प्रत्याशी की हालत में दीदी की सत्ता में वापसी बेहद मुश्किल हो सकती है।


कुछ शंका इसे लेकर थी कि साझा चुनाव प्रचार और साझा कार्यक्रम के बिना वाम वोटच कांग्रेस को और कांग्रेस के वोट वाम दलों के हस्तांतरित होने की संभावना कितनी है।जनता के प्रचंड समर्थन से वह शंका भी लगभग खत्म है,समझिये।


किन्हीं किन्हीं अखबारों में ऐन चुनाव से पहले विकास के विज्ञापनों का जो जलजला आया था और सड़क पुल अस्पताल केंद्रित विकास के उद्घाटन शिलान्यास मार्का बाजार समर्थित हवा जो बनायी जा रही थी,वह सबकुछ इसवक्त ध्वस्त है।

मजा इसमें यह है कि नारददंश के मुकाबले कोलकाता खुफिया पुलिस ने संघ परिवार को गाय तस्करी के मामले में घुसखोरी का जो स्टिंग कराना चाहा,उसका ऐसा खुलासा हो गया है कि संघ परिवार की मजबूरी यह हो गयी है कि बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण के मनसूबे पूरीतरह फेल हो जाने और हर चुनाव क्षेत्र में जमानत जब्त होने के हालात में यूपी उत्तराखंड और पंजाब में भी करारी शिकस्त तय जानकर दीदी के खिलाफ मोर्चा बांधने की मजबूरी है।


दूसरी तरफ, गले गले तक भ्रष्टाचार के गोरखधंधे में फंसी दीदी की ईमानदारी का कच्चा चिट्ठा बीच बाजार खुल जाने के बाद मोदी और अमित साह तो क्या राहुल सिन्हा तक के मुकाबले जबाव देने की कोई सूरत नहीं है।


बेहद मुखर दीदी का यह मौन असल किस्सा बताने लगा है इसतरह कि अब साबित करने को कुछ नहीं बचा है।


भाजपा और संघ परिवार के वैसे भी बड़े दुर्दिन आ गये हैं।


बाजार के मुनाफे के लिए विकास के बहाने जनविरोधी उसकी तमाम हरकतों से हिंदुत्व का ख्याली पुलाव गुड़गोबर है तो आस्था की पूंजी वाले देश के मेहनतकश तबकों को मालूम हो गया है कि इनका सारा खेल सुखीलाला की कारस्तानी है और मीठे जहर के कयामती कारवां लेकर ये जनता और देश का जनाजा निकालने पर आमादा हैं।देशभक्ति के ये इजारेदार देश बचने लगे हैं।


गुजरात के प्रयोग असम में दोहराने का कार्यक्रम भी फेल है और दिल्ली और यूपी  में दंगा करवाकर उत्तर भारत जीतने का मंसूबा भी बेकार है।तो उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार गिराने का दांव भी उलटा पड़ गया है।


हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन के आदेश के खिलाफ हरीश रावत को बहुमत साबित करने का मौका दे दिया है।अब रावत चाहे सरकार बचा ले या बागी कांग्रेसी सीधे संघ घराने में दाखिल हो जाये,चुनाव देर सवेर होंगे ही और तब बिहार से लेकर बंगाल यूपी असम तक फैले वाटरलू में खड़े संघपरिवार का क्या होगा,राम ही जाने।


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प्रो. आफ़ाक़ अहमद नहीं रहे

Previous: नारद दंश के बाद बगावत की हलचल,हवा बदलने लगी है बंगाल में बंगाल के चुनाव नतीजे चाहे कुछ हो,बंगाल आखिरकार संघ परिवार के लिए वाटरलू साबित होने जा रहा है। दिल्ली में तो सिर्फ एक जेएनयू है लेकिन बंगाल में जादवपुर, कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्याल.जिसके कुलाधिपति खुद प्रधानमंत्री हैं,खड़गपुर आईआईटी से लेकर कोलकाता आीआईएम तक फासिज्म विरोधी मोर्चे के अजेय किलों में तब्दील है और वहां किसी को राष्ट्रद्रोही करार देने की औकात न केंद्र सरकार में है और न राज्य सरकार में। बंगाल में बगावत सनसनी की तरह उबाल नहीं खाती।जमीन के भीतर ही भीतर भूमिगत आग की तरह सुलगती है क्रांति जिसकी आंच पहले पहलमालूम ही नहीं होती लेकिन एक बार खिल जाने के बाद वह आंच जंगल की आग की तरह दहकने लगती है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास संवाददाता हस्तक्षेप
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प्रो. आफ़ाक़ अहमद नहीं रहे 
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बयान
(30-03-2016)

उर्दू के जाने-माने अफ़सानानिग़ार, नक्काद, शायर और जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. आफ़ाक़ अहमद का भोपाल में कल देर रात इंतकाल हो गया. आज, 30 मार्च को, दोपहर बाद उन्हें भोपाल के जहांगीराबाद कब्रिस्तान में सुपुर्दे-खाक़ किया गया.

प्रो. आफ़ाक़ अहमद मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग से उर्दू प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत्त थे. शिक्षक के अलावा वे आल इंडिया अल्लामा इक़बाल अदबी मर्क़ज़ के सचिव और चेयरमैन रहे. मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के भी वे सचिव रहे, जहां से वे वेतन नहीं लेते थे. 'पुरज़ोर ख़ामोशी' (कहानी संग्रह) और 'अमानते क़ल्बोनज़र' (आलोचना पुस्तक) उनकी चर्चित किताबें हैं. 'गज़लीसे इक़बाल'का वे सम्पादन करते थे जो मर्क़ज़ के सेमिनारों के लेखों/भाषणों का सालाना संचयन है.

जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के साथ ही हाल-हाल तक वे जलेस की मध्यप्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी रहे थे. जलेस के साथ उनका अटूट नाता संगठन की स्थापना के समय से ही था. अदब में ही नहीं, अपने जीवन में भी वे तरक्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद उसूलों के बड़े पक्के थे. इसी वजह से भोपाल के सार्वजनिक जीवन में उनकी बहुत इज़्ज़त थी. शहर के हिन्दू और मुस्लिम, दोनों समुदायों में उनकी व्यापक स्वीकार्यता थी और साम्प्रदायिक तनावों के बीच शांति स्थापना में उनकी उल्लेखनीय भूमिका रहती थी. भोपाल शहर में उनके लेखन के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व और वक्तृता के प्रशंसक बड़ी संख्या में हैं. इसी साल 14 फरवरी को जनवादी लेखक संघ के मध्यप्रदेश राज्य-सम्मलेन के दोनों सत्रों को अपने पुरजोश अंदाज़ में संबोधित कर उन्होंने आश्वस्त कर दिया था कि अस्सी की उम्र में भी उनमें युवाओं जैसा जज़्बा और सजगता है. 'आज के हालात और लेखकों का प्रतिरोध'जैसे विषय पर उन्हें सुनते हुए उनकी प्रखरता से सभी प्रभावित हुए थे और इस बात की आशंका का कोई कारण नहीं था कि वे कुछ ही दिनों में हमें छोड़ जायेंगे.

जनवादी लेखक संघ अपने इस साथी के निधन पर शोक-संतप्त है. आफ़ाक़ साहब का न रहना हमारे लिए एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. हम गहरी वेदना के साथ उन्हें नमन करते हैं.


मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)

संजीव कुमार (उप-महासचिव)


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आर्कटिक नहीं, पाकिस्तान - मोहन भागवत

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दिलीप मंडल के वाल से साभार

आर्कटिक नहीं, पाकिस्तान - मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कल कोलकाता में कहा कि संस्कृत और वेदों का जन्म जहां हुआ, वहां अब पाकिस्तान है. उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज वहीं से सारी दुनिया में गए.

RSS के ऑफिशियल फेसबुक पेज पर जाकर पढ़िए.

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कल की क्यूट सी तस्वीर, RSS के पेज से.


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Anand Patwardhan All who can come are welcome at Ambedkar University, Delhi at 3 PM, 1st April

मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं? पलाश विश्वास

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 मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को  क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं?
पलाश विश्वास
मन बेहद कच्चा कच्चा हो रहा है।सत्तर साल पहले आजादी मिलने के बावजूद हमारी राष्ट्रीयता इतनी कमजोर है कि कुछ प्रतीकों और कुछ मिथकों में ही राष्ट्र,लोकतंत्र और मनुष्यता,धर्म और संस्कृति ,इतिहास और विरासत,मनुष्यता और सभ्यता कैद हो गयी।हम दीवारों को तोड़ने के बजाये रोज नये नये कैदगाह बना रहे हैं।गैस चैंबर में तब्दील कर रहे हैं पूरे मुल्क को और मुल्क सिर्फ राजनीतिक नक्शे और सत्ता की राजनीति के दायरे में दम तोड़ रहा है।जिस भारतवर्ष की अवधारणा विविध संस्कृतियों,नस्लों और संप्रदायों और भाषाओं के बावजूद मनुष्यता और सभ्यता के मूल्यों से बनी थी,जिसे हमारे पुरखों ने अग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भारतीय संविधान के तहत समता और न्याय,नागरिक और मानवाधिकार,मनुष्य और प्रकृति के तादात्म्य.प्राकृतिक संसाधनों के न्यायपूरण बंटवारे के आर्थिक लक्ष्य के साथ हकीकत की जमीन पर वंचितों और उत्पीड़ितों,बहिस्कृतों,अछूतों और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक रक्षाकवच और लोकतंत्र के संघीय ढांचे में विविध लोकतांत्रिक संस्थानों,स्थानीय स्वायत्तता और नैसर्गिक कृषि व्यवस्था के साथ औदोगीकरण और सतत विकास की परिक्लपना के तहत तामील करने की सुनिश्चित दिशा तय की थी,वह सबकुछ बिखरकर किरचों में टूटकर हमें ही लहूलुहान कर रहा है और हम खून की नदियों में मुक्तबाजार का उत्सव मना रहे हैं अस्मिताओं, पहचानों, मिथकों के आधार पर रंगभेदी जातिवादी वर्चस्व के एकाधिकारवादी निरंकुश सत्ता का अंध प्रजाजन बनकर जिसमें नागरिकता का कोई विवेक या साहस है ही नहीं,मनुष्यता और सभ्यता के मूल्यभी बचे नहीं है।जिन आस्थाओं के नाम यह सारा कारोबार गोरखधंधा है,उनके शाश्वत मूल्यों के विरुद्ध है पशुवत हिंसक यह घृणासर्वस्व राष्ट्रवाद।

किसी व्यक्ति या संगठन को दोष देकर शायद ही इस आत्मघाती तिलिस्म को तोड़ पाना असंभव है।आज अपने भीतर झांकने की जरुरत है कि क्या हमारा अंध राष्ट्रवाद का यह हिंसक धर्मोन्माद और आधिपात्यवादी ब्राह्मणवाद का मनुस्मृति आधिपात्य हमारी मनुष्यता,हमारी आस्था .हमारी लोक विरासत,हमारी भाषा और संस्कृति के मुताबिक है या नहीं।जो पढे़ लिखे समृद्ध और नवधनाढ्य मध्यम वर्ग का महत्वाकांक्षी तबका आजादी के बाद बना है,हमें इसकी पड़ताल करनी चाहिए आजादी के पहले जो स्वतंत्रता संग्राम में सबकुछ न्योच्छावर कर देने को तैयार हमारे पुरखे रहे हैं,उनकी विरासत का हम क्या बना बिगाड़ रहे हैं।
भारत माता का प्रतीक बहुत पुराना भी नहीं है।सन्यासी विद्रोह के दौरान भारत माता का यह प्रतीक बना,जिसे इस देश के अल्पसंख्यकों ने कभी स्वीकारा नहीं है।क्योंकि यह मिथक हिंदुत्व का प्रतीक भी है,जिसमें देश को हिंदू देवी के रुप में देखा जाता है।इसे लेकर बहुत विवाद भी हुआ हो,ऐसा भी नहीं है।जैसे जो लोग सरस्वती वंदना को अनिवार्य मानते हैं,उन्हें सरस्वती वंदना की स्वतंत्रता है और जो नहीं मानते उनके लिए सरस्वती वंदना अनिवार्य नहीं है।
भारतमाता की जय का उद्घोष अब तक अनिवार्य नहीं है।लोग अपनी अपनी आस्था के मुताबिक इन प्रतीकोे के साथ जुड़े हैं या नहीं भी जुड़े हैं।भारतीय संविधान ने किसी धार्मिक प्रतीक किसी समुदाय पर थोंपा भी नहीं है।
आज ही भारत देश की राजधानी में इक्कीसवीं सदी के बुलेट जमाने में भारत माता की जय कहला ना पाने के गुस्से में तीन बेगुनाह मुसलमान जिनकी आस्था हिंदुत्व के प्रतीकों के मफिक नहीं है,उनकी खुलेआम पिटाई कर दी गयी है और वे इसी देश के किसी राज्य के पिछड़े क्षेत्र के नागरिक हैं।इसे उन्माद कहा जाये या मूर्खता,समझ में नहीं आता।
28 मार्च को हम चंडीगढ़ से जालंधर पहुंचे कि हमें पठानकोट से टिकट बन जाने की वजह से वहीं से कोलकाता के लिए हिमगिरि एक्सप्रेस आधीरात के बाद 2 बजकर बीस मिनट पर पकड़नी थी।बगल में फगवाड़ा है औरयह पूरा इलाका सूखी हुई पंजाब की पांच बड़ी नदियों में से दो सतलज और व्यास का दोआब है,जिसे हरित क्रांति की कोख बी हम कह सकते हैं।फगवाड़ा से हमारे मित्र ज्ञानशील आ गये तो हम लोग देश के बाकी हिस्सों के मित्रों के साथ संवाद भी करते रहे और लगातार इस विषय पर बातचीत करते रहे कि देश दुनिया को कैसे जोड़ा जाये।हिमाचल में पालमपुर से लेकर शिमला तक यही कवायद जारी रहा।
पलामपुर में जम्मू से पधारे अशोक बसोतरा और उनके साथियों,पूंछ से आरटीआई कार्यकर्ता अयाज मुगल और कश्मीर घाटी से महेश्वर से और बाकी देश के लोगों जिनमें यूपी,बिहार,मध्यप्रदेश ,झारखंड,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र,असम,दिल्ली से लेकर गुजरात तक के युवा छात्र और सामाजिक कार्यक्र्ता शामिल थे,हम लगभग हफ्तेभर इसी माथापच्ची में फंसे रहे कि जाति और धर्म,नस्ल के तंग दायरे में पंसी इंसानियत को कैसे आजाद किया जाये।हम 17 मई को रिटायर करने वाले हैं 36 साल की पत्रकारिता से,जहां हमने हर मुद्दे पर लगातार विचार विमर्श जारी रखा ,उन लोगों के साथ भी जो हमसे असहमत हैं और हमारे दुर विरोधी हैं।अभी रिटायर होने के बाद हमें पेंशन मासिक दो हजार से ज्यादा मिलने वाली नहीं है और सर छुपाने लायक कोई छत हमारी है नहीं है और नघर वापसी का रास्ता हमारे लिए कोई खुली है।लेकिन हमारे लिए यह फिक्र का मसला उतना नहीं है,जितना  कि इस दुनिया को बेहतर बनाने का,कायनात की रहमतों बरकतों और नियामतों को बहाल रखने और नागिरकों के मानवबंधन के लिए साझा मंच बनाने का मुद्दा।
इसी दौरान आम आदमी पार्टी के निर्माम में खास भूमिका रखने वाले प्रशांत बूषण जी से बी लंबी बातें हुई तो हिमांशु जी के मार्फत हम मध्यबारत के ग्राउंड जीरो से भी टकराते रहे।इस वर्कशाप में स्वराज के कार्यकर्ता भी बहुत थे लेकिन उनकी सामाजिक पृष्ष्ठभूमि वही बहुजन  बिरादरी है जो अलग अलग विचारधाराओं और आस्थाओं में बेतरह बंटे हैं।
प्रशांत जी से और उन सबसे हमारा विनम्र निवेदन यही था कि इस अभूतपूर्वसंकट की घड़ी में निरंकुश फासिस्ट सत्ता के मुकाबले के लिए सभी विचारदाराओं और सभी समुदायों वर्गों का साझा मंच जरुरी है और इस मंच का फौरी कार्यभार टुकड़ा टुकड़ा बंटे हुए देश को एकताबद्ध करने का है।
हमने प्रशांत जी से कहा कि आपने राजनीतिक विकल्प की तलाश में भस्मासुर तैयार कर दिया है तो कृपया इस अनुभव से सबक लें क्योंकि अब राजनीतिक विकल्प राष्ट्र चरित्र को सिरे से बदले बिना असंभव है।मौजूदा तंत्र में हम बार बार नेतृत्व पर फोकस हैं और एक के बाद एक मसीहा गढ़े जा रहे हैं और उनका विश्वासघात का सिलसिला जारी है।सिर्प जनादेश के समीकरण से हालात बदलने वाले नहीं है।राष्ट्र की चर्चा हम जरुरत से ज्यादा करते हैं लेकिन नागरिकों की चर्चा हम करते नहीं है।बेहतर हो कि हम सब लोग अपने अपने आग्रह और अहंकार को छोड़कर इस देश के नागरिकों के हक में गोलबंद हो जाये और इसके लिए एक बहुत बड़े सामाजिक आंदोलन की जरुरत है,जिसे हमने सिरे से नजरअंदाज किया हुआ है।
प्रशांत जी की प्रतिक्रिया हमें मिली नहीं है लेकिन बाकी लोग कमोबेश सहमत है।
ज्ञानशील को सविता जी ने रात ग्यारह बजते न बजते घर के लिए रवाना कर दिया औरहम ट्रेन में सवार हो गये ।रात गहरा गयी थी और लंबे सफर की वजह से हम सो गये।
सुबह एक कश्मीरी मुसलमान साफ्टवेयर इंजीनियर की शिकायती उद्गार से हमारी नींद खुली।वह साफ्टवेयर इंजीनियर है और उसकी नागरिकता का प्रमाणपत्र बी उसके पास है।वह कोलकाता के किसी फर्म में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था।उसने सारे सबूत दिखाये लेकिन पंजाब पुलिस ने जब सारे लोग सो रहे थे,उसे नंगा करके उसकी तलाशी ली।
हम उसका नाम पता नहीं दे रहे हैं ताकि वह फिर उत्पीड़न का शिकार न हो।लेकिन उसकी यह बात आज फिर नासूर बनकर दर्द का सबब है कि उसने कहा कि मारो गोली कश्मीर को,मुसलमानों का बी कत्लेआम कर दो,लेकिन आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों के साथ हिंदू राष्ट्र में क्या हो रहा है।पूर्वोत्तर और कश्मीर की बात छोड़ बी दीजिये,हिमालयक्षेत्र से दिल्ली पहुंचने वाले नागरिकों से,बंगाली हिंदू शरणार्थियों से,जल जमीन जंगल से बेदखल लोगों से,बिहार यूपी झारखंड छत्तीसगढ़ से दिल्ली और दूसरे शहरो मे जाने वाले भारतीय नागरिकों के साथ आप क्या करते हो।
उसने कहा कि मुसलमानों को भले ही आप भारत माता की संतान न मानते हों,लेकिन दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और गरीब सवर्णों को  क्या आप भारत माता की संतान मानते हैं?

सिपाही भाइयों के नाम खुला पत्र हिमांशु कुमार

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सिपाही भाइयों के नाम खुला पत्र

हिमांशु कुमार
बी०एस०एफ० के पूर्व प्रमुख ई० एस० राम मोहन एक दिन हमारे घर आये| उन्होंने एक किस्सा सुनाया| एक बार वो आँध्रप्रदेश में सी०आर०पी०एफ० के किसी कार्यक्रम में बोल रहे थे| वहाँ उन्होंने कहा कि हमें हिंसा कम करने के लिए नक्सलियों से वार्ता करनी चाहिए| इस पर सी०आर०पी०एफ० के लोग बिफर गये और बोले वो हमें मारने के लिए हमारे नीचे बारूदी सुरंग बिछाते हैं, हम उनसे बात कैसे कर सकते हैं? राम मोहन जी ने कहा कि आप यहाँ किसकी रक्षा करने आये हो? और किसकी रक्षा कर रहे हो? आंध्रप्रदेश में क़ानूनी तौर पर कोई भी तीस एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं रख सकता| लेकिन जमींदारों ने कई - कई हजार एकड़ जमीन अपने पास रखी हुई है| आप कानून तोड़ने वाले जमींदारों की रक्षा करते हो| जिस दिन आप जमींदारों को कहोगे कि हम आपको ये गैर क़ानूनी जमीन नहीं रखने देंगे| और आप वो जमीन गांव के गरीबों में बंटवा दोगे, उस दिन से आपके नीचे बारूदी सुरंगे लगनी बन्द हो जायेंगी| गरीब के खिलाफ काम करोगे, कानून के खिलाफ काम करोगे संविधान के खिलाफ काम करोगे तो लोग आप पर हमला करेंगे ही? देश के हर सिपाही को, हर सैनिक को अपने आप से पूछना चाहिये कि वो किसका सैनिक है? उसे किसकी तरफ से लड़ना है और किसके खिलाफ लड़ना है| 
ये वही राम मोहन जी हैं जिन्हें दंतेवाडा में छिहत्तर सी आर पी एफ के सिपाहियों के मरने पर भारत सरकार ने जांच करने के लिए भेजा था ! और आज तक सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि उनकी दी हुई रिपोर्ट प्रकाशित करने कर सके !

आज हमारे सिपाही किससे लड़ रहे हैं? क्या बेईमान अमीरों से ? भ्रष्ट नेताओं से ? नहीं, आज हमारे सिपाही लड़ रहे हैं गरीबों से, आदिवासियों से, दलितों से, अपना हक़ मांगने वाली महिलाओं से | यानि सिपाही लड़ रहे हैं देश के विरुद्ध, क्योंकि ये करोड़ों गरीब, दलित, आदिवासी महिलाएं ही देश हैं| और रक्षा कर रहे हैं अमीरों और नेताओं की| यानि हमारे सिपाही मुट्ठी भर गलत लोगों की तरफ से करोड़ों देशवासियों के खिलाफ लगातार युद्ध में लगे हुए हैं | क्या एक गरीब व्यक्ति पुलिस को अपना रक्षक मानता है? क्या एक गांव की आदिवासी लडकी अपनी इज्जत बचाने के लिये पुलिस थाने की शरण ले सकती है? सब जानते हैं कि आप रेहड़ी वालों से ,खोमचे वालों से , रिक्शे वालों से , रेल की पटरी पर फेंकी हुई पुरानी पानी की बोतलें बीनने वाले बच्चों से भी पैसे वसूलते हैं ! क्या यही क़ानून की रक्षा है ? क्या यही देश भक्ति है ? खुद से पूछिये इनके जवाब?

अगर आप में से किसी में भी साहस है सत्य और कानून का साथ देने का तो मैं आपको कुछ वारंट देता हूँ कुछ बलात्कारी पुलिसवालों के खिलाफ | इन्होने उसी इलाके में बलात्कार किये हैं जिस इलाके में छियत्तर जवानों की जान गयी ! ये बलात्कारी पुलिस वाले आज भी खुलेआम छत्तीसगढ़ के दोरनापाल थाने में रहते हैं| हर महीने तनख्वाह लेते हैं| लेकिन सरकार कोर्ट में कहती है कि ये फरार हैं| आइये, कानून को लागु कीजिये, पकड़िये इन्हें और कोर्ट को सौंप दीजिये| मान लेंगे हम कि आप बहुत वीर सैनिक हैं| लेकिन आपकी बहादुरी तो नियमगिरी की पहाड़ी पर रहने वाले आदिवासियों के पूरे के पूरे गांव पर धारा ३०२ लगाने में दिखाई देती है| आपकी बहादुरी उड़ीसा के जगतसिंहपुर की तीन गांव की हर महिला पर फर्जी मुकदमे लगा देने में दिखाई देती है जो पोस्को नामक विदेशी कम्पनी को अपनी जमीन देने का विरोध करने के लिये जमीन पर लेट कर सत्याग्रह कर रही हैं|

आपकी नियुक्ति भारत के संविधान की रक्षा के लिये हुई है| लेकिन आप रोज संविधान तोड़ने वालों का साथ देते हैं और आप रोज संविधान लागू करने वालों पर हमला करते हैं| भारत का संविधान कहता है आदिवासियों की जमीने आदिवासियों की ग्राम सभा की अनुमति के बिना सरकार नहीं ले सकती| लेकिन पूरे आदिवासी क्षेत्रों में पुलिस की बंदूक के बल पर ये भ्रष्ट नेता, उद्योगपतियों से पैसा खाकर आदिवासियों की जमीने छीन रहे हैं| आप इन नेताओं के लिये संविधान तोड़ते हैं | जबकि आपको इन नेताओं की छाती पर बंदूक टिकाकर बोलना चाहिये कि मिस्टर चीफ मिनिस्टर मैं आपको भारत का संविधान नहीं तोड़ने दूँगा| और जिस दिन आपकी बंदूक भ्रष्ट नेता के खिलाफ उठेगी उसी दिन नक्सलवाद समाप्त हो जायेगा|
विदेशी कम्पनियाँ इस देश की जमीने हथिया रही हैं,! ये विदेशी सौदागर इस देश के खनिज की दौलत को लूट रहे हैं किसके दम पर ? आपके दम पर | आप इस देश को लूटने वाली कम्पनियों का साथ दे रहे हैं ! यही काम तो आजादी से पहले अंग्रेजों की पुलिस ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिये करती थी| तो आप आजादी के बाद फिर से गुलामी ला रहे हैं ? और जो जनता इस देश की दौलत को इन कम्पनियों की लूट से बचाने के लिये लड़ रही है, आप उस जनता पर गोली चला रहे हो ? ये देश भक्ति है ?
आप सोचते हैं आप लालची नेताओं, भ्रष्ट अमीरों के आदेश पर गरीबों को मारने जाओगे और अगर गरीब खुद को बचाने के लिये पलट कर आपको मार देगा तो हम आपके लिये आँसू बहायेंगे | बिलकुल नहीं | हम गरीबों के साथ हैं | हम अत्याचारी के खिलाफ हैं | और आप अत्याचारी के साथ खड़े हैं ! तो एक गाँधीवादी के नाते मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप तुरंत अत्याचारी को छोड़कर गरीब जनता की तरफ आ जाइये| संविधान की तरफ आइये ! देश की तरफ आइये ! हम आपके मानवाधिकारों के लिए तो लड़ सकते हैं लेकिन आपके बन्दूकाधिकार के लिए बिलकुल नहीं !



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कांग्रेस वाम गठबंधन की बढ़त जारी,जंगल महल की मुस्कान दीदी के लिए जहरीली होने लगी। संघ ने संभाला दीदी के खिलाफ मोर्चा और मजबूर दीदी चूं तक नहीं कर रही,उल्टे वामनेताओं को धमकाने लगी हैं! बंगाल में नूरा कुश्ती लाजवाब! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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कांग्रेस वाम गठबंधन की बढ़त जारी,जंगल महल की मुस्कान दीदी के लिए जहरीली होने लगी।

संघ ने संभाला दीदी के खिलाफ मोर्चा और मजबूर दीदी चूं तक नहीं कर रही,उल्टे वामनेताओं को धमकाने लगी हैं!

बंगाल में नूरा कुश्ती लाजवाब!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप संवाददाता

बंगाल में हर जिले तहसील में वाम कांग्रेस गठबंधन की बढ़त जारी है।पिछले चुनावों में दीदी की भारी जीत में कांग्रेस का समर्थन निर्णायक रहा है,कमसकम दीदी से बेहतर इसे कोई और समझ नहीं सकता।


अब हालात यह है कि पहले दौर के चुनाव के लिए जंगल महल में केंद्रीयवाहिनी की लामबंदी के बीच वहां अब भी सक्रिय माओवादी दीदी को हर कीमत पर हराने की कोशिश में लगे हैं।


गौरतलब है कि  कल तक दीदी की जीत में माओवादी खास मददगार थे,जैसा तृणमूल के पूर्व सांसद कबीर सुमन ने भी खुलासा किया है और नंदीग्राम सिंगुर की जंग जितने में माओवादी हाथ अब साफ साफ है।


किशनजी की पुलिसिया मुठभेड़ में मार गिराने की कार्रवाई को माओवादी दीदी की तरफ से विश्वासघात मानते हैं तो पिलिसियाअत्याचार विरोधी समिति के नेताओं को माओवादी ब्राडिंग के साथ जेल के सींखचों में डालकर जंगलमहल की मुस्कान के बावजूद वहां सैन्यशासन जैसी परिस्थितियों से भी माओवादी ज्यादा खुश नहीं हैं।


जंगल महल को जानने वाले समझते ही होंगे कि माओवादी समर्थन का मतलब क्या होता है।


जंगल महल जीतने के लिए दीदी को फिर उसी माओवादी समर्थन की सबसे ज्यादा जरुरत है जो मिलने के आसार नहीं है।


झारखंड से जुड़े पुरुलिया और बांकुड़ा के अलावा मेदिनीपुर में भी कांग्रेस का आधार बहुत मजबूत रहा है।


इसे ऐसे समझिये कि एकेले मेदिनीपुर जिले में आजादी की लड़ाई में करीब साढ़े तीन सौ महिला कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागेदारी रही है।अब चाचा ज्ञानसिंह सोहनपाल वहा काग्रेस के निर्विवाद आदरणीय नेता हैं।


दूसरी तरफ इसी जंगल महल में माओवादी वर्चस्व कायम होने से पहले तक वाम दलों का एकाधिकार रहा है।


अब जो समीकरण बना है ,उसके मुताबिक दीदी को जिताने वाले माओवादी उनके साथ नहीं है तो दूसरी तरफ कांग्रेस और वाम गठबंधन का साझा प्रचार अभियान जंगल महल में फिर तिरंगे और लेल झंडे की वसंत बहार है।


इस पर तुर्रा यह कि शंग परिवार का वरदहस्त हट जाने से जैसे तैसे चुनाव जीत लेने के मौके भी बन नहीं रहे हैं।


यही वजह है कि वाम और कांग्रेस के खिलाफ दिनोदिन आक्रामक शेरनी की तरह दहाड़ती दीदी नरेंद्र मोदी और अमित साह से लेकर राहुल सिन्हा तक के सीधे हमले के खिलाफ मंतव्य करने से बच रही हैं।


भाजपा के पास ममता पर हमला करने के सिवाय कोई विकल्प अब बचा नहीं है वरना बंगाल तो क्या पूर्वी भारत में कहीं भी पांव ऱकने की कोई जगह बची नहीं रहेगी संघ परिवार के लिए।


दीदी लेकिन इन मुश्किल हालात में केंद्र सरकार या संघ परिवार का दामन छोड़ने का जोखिम उठा नहीं सकती।


बहरहाल बंगाल के चुनाव नतीजे पीछे के रास्ते राज्यों की सत्ता दखल कर लेने के संघी मंसूबे और यूपी जीत लेने की तैयारी पर बेहद खराब असर डाल सकता है।


इससे वाकिफ बजरंगी ब्रिगेड ने अब देर सवेर ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है।


शारदा चिटफंड मामले में सुदीप्तो और देवयानी को हिरासत में लेने के बाद विधाननगर कमिश्नरेट के तत्कालीन कमिश्नर राजीव कुमार ने पहले ही झटके में इस मामले में फंसे आदरणीय बिरादरी के खिलाफ सबूत मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।


अब नये सिरे से जनादेश हासिल करने के अभियान में वे राजीव कुमार ही दीदी के पिलिसिया सिपाहसालार है,जिससे नत्थी है तृणमूल की सबकुछसफाया कर देने की वोट मशीन।


राजीव कुमार इस वक्त कोलकाता पुलिस कमिश्नर हैं और भाजपा नेता राहुल सिन्हा को स्टिंग आपरेशन में खुफिया पुलिस के जरिये फंसाने के आपरेशन उन्हीं का बताया जा रहा है।


अब दिल्ली और कोलकाता में सक्रिय भाजपा नेताओं ने इन्ही राजीव कुमार पर निशाना साधा,जिनपर सबकुछ जानते हुए शारदा मामला रफा दफा करने के सिलसिले में भाजपाइयों ने चूं तक नहीं की।जिस वजह से बहुत हिलाने डुलाने का दिखावा के बावजूद कटघरे में खड़े तमाम चेहरे उसी तरह रिहा है जैसे नारद स्टिंग मामले में कोई कार्वाई नही हुी है जबकि इसके उलट स्टिंग के बहाने उत्तराखंड में हरीश रावत का तख्ता पलट हो गया रातोंरात।


दीदी की हालत कितनी नाजुक है ,इसीसे समझ लीजिये कि अपने कस सिपाहसालार को बचाने की बजायउनकी कोशिश यह है कि राजीव कुमार जायें तो जायें,केंद्र सरकार और चुनाव आयोग उनकी वोट मशीनरी के किसी और खास आदमी को वहां बैठाने की इजाजत दे दें।ऐसा ही होने जा रहा है।


इसमें कुल निष्कर्ष यह है कि सत्ता में भागेदारी के लिहाज से भले ही पूरे देश में वामदल हाशिये पर हों,लेकिन जमीन पर आंदोलन और प्रतिरोध के मामले में संघ परिवार के मुकाबले में सिर्फ वामदल ही मैदान में है।इसलिए संघ परिवार का असली दुश्मन वाम है।


जाहिर है अपना घर बचाने की कवायद में लगी भाजपा को यह भी देखना होगा कि जनता को समझा लेने के बाद कहीं ऐसी गुंजाइसश न बन जाये कि दीदी सचमुच हार न जायें और बंगाल में कांग्रेस वाम गठबंधन का फार्मूला बाकी देश में संघ परिवार को कचरापेटी में डाल न दें।


जाहिर है कि इस नूरा कुश्ती का अंजाम भी मधुरेन समापन बनाने की पूरी कोशिश संघ परिवार की होगी।दीदी पर हमले के बावजूद उसका अंतिम लक्ष्य लेकिन कांग्रेस वाम गठजोड़ को फेल करके फिर दीदी की ताजपोशी करना है।


इस खेल को समझने में भूल हुई तो इसका असर भी चुनाव नतीजे पर होना है।


भाजपा के औचक बंगाल में सत्रह फीसद वोट पाने के पीछे मोदी दीदी का गठबंधन काम कर रहा था।


कमसकम इस चुनाव में चाहे कांग्रेस वाम गठबंधन जीते या न जीते,दीदी के साथ मधुर संबंध गुपचुप तालमेल से संघ परिवार को कोई फायदा नहीं है,यह समझने में शंग परिवार ने देर नहीं लगायी है और दीदी के खास सिपाहसालार को ही शुली पर चढ़ाने की तैयारी है।जाहिर है कि सिपाहसालार की बलि चढ़कर दीदी को बचा लेने की यह कवायद है।दीदी भी इसे बेहतर समझ रही होंगी और चुप हैं।


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Ten workers killed in PPP Model disaster in Kolkata to expose the smartness of digital development under Promoter Mafia Builder Raj! Excalibur Stevens Biswas HASTAKSHEP

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Ten workers killed in PPP Model disaster in Kolkata  to expose the smartness of digital development under Promoter Mafia Builder Raj!

Excalibur Stevens Biswas HASTAKSHEP

Rescue work gets underway after the Vivekananda Road flyover in Kolkata collapsed on Thursday. Photo: ANI

Rescue work gets underway after the Vivekananda Road flyover in Kolkata collapsed on Thursday. Photo: ANI


PPP model infrastucture collapsed in Kolkata,Ten feared to be death and One Hundred Fifty left trapped under the debris,under the under construction flyover ion the most crowded central Kolkata.


It exposes the nexus between different government agencies and promoter builder mafia raj which captured every metro and other cities in Smart Digital India!


One girder of the Vivekananda Road flyover near the old Ganesh Talkies collapsed and several vehicles are feared to be trapped underneath.All the dead persons are the workers!


An under-construction flyover has collapsed in North Kolkata near Ganesh Talkies (Girish Park), and at least ten people are feared dead. Rescue operations are underway. Mamata Banerjee is on her way to Kolkata.


The location of the bridge is in a densely populated locality in BaraBazar.


Rescue operations are currently underway and eye-witnesses at the site feared at least a 100 people could be trapped under debris.


Eyewitness said they heard a loud explosion and then a crashing sound. A cloud of smoke emerged from the collapse.


Visuals emerging from the location show huge amounts of tangled metal and concrete. There was also a fire reported under the bridge. The fire has been linked to fuel tanks that were under the bridge. Fire officials speaking to NDTV say that the fire sparked from the spilled fuel.


Official confirmation about casualties and injuries is yet to be received. However, PTI has reported one casualty in the accident.


Minister for Disaster Management Javed Khan said that about 20 to 35 people are injured in the collapse. He, however, couldn't confirm the number of deaths.


A disaster management team is on the spot.


2:25pm: More than one bus with passengers are still trapped under the debris, said Kolkata Police personnel manning the Lalbazar control room in Kolkata.

2:20pm: "The condition is pathetic. At this moment no one has any clue how many people are trapped," said Raichand Mohta, a police officer at the scene.


2.10pm: 2 units of NDRF were rushed to the accident site to assist in rescue work, says ANI.


2pm: According to Trinamool Congress sources chief minister Mamata Banerjee is rushing back to Kolkata from West Midnappore where she was on an election campaign trip.

Paramilitary forces in the city on election rushed to the spot to lend a helping hand to the rescue efforts

People were seen pushing water bottles responding to cries of help coming from persons trapped under the debris .


1.50pm:Two people declared dead. Local residents in north Kolkata's Girish Park say hundreds of people and some vehicles are trapped under the debris of the flyover.

The principal of Calcutta Medical College T K Lahiri told HT that two persons were "brought dead" while two were undergoing treatment at the hospital.

News agency ANI reported 10 people were dead.

ANI@ANI_news 3m3 minutes ago

#Visuals of the collapsed under-construction bridge near Ganesh Talkies in Kolkata, 2 units of NDRF rushed to spot


Photo: ANI





ANI@ANI_news 27m27 minutes ago

#Visuals of the collapsed under-construction bridge near Ganesh Talkies in Kolkata


ANI@ANI_news 32m32 minutes ago

#Visuals Taxis buried under the debris of the collapsed bridge near Ganesh Talkies in Kolkata





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Companies (Accounting Standards) Amendment Rules, 2016

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Companies (Accounting Standards) Amendment Rules, 2016

In exercise of the powers conferred by clause (a) of sub-section (1) of section 642 of the Companies Act, 1956 (1 of 1956) read with section 210A and sub-section (3C) of section 211 and of the said Act, the Central Government, in consultation with National Advisory Committee on Accounting Standards.

Click here to Access the Companies (Accounting Standards) Amendment Rules, 2016

Also read, Companies (Removal of Difficulties) First Order, 2016

Companies (Indian Accounting Standards) Amendment Rules, 2016

In Exercise of the powers conferred by section 133 read with section 469 of the Companies Act, 2013 (18 0f 2013) and sub-section(1) of section 210A of the Companies Act, 1956(1 off 1956), the Central Government, in consultation with National Advisory Committee on Accounting Standards.

Click here to access Companies (Indian Accounting Standards) Amendment Rules, 2015.

Also read, Companies (Removal of Difficulties) 2nd Order, 2016

Thank You!!

Team, Corporate Law Reporter!!!

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Getting confused with so many changes in Companies Act, 2013?

Access the entire Companies Act, 2013 i.e. all sections and updated text of all Rules, Notifications, Circulars and Orders under the relevant section updated on a real time basis.


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Film Makers, Writers, Cultural Personalities and Activists Demand Release of Deba Ranjan Sarangi

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Film Makers, Writers, Cultural Personalities and Activists Demand Release of Deba Ranjan Sarangi


Dear friends,

I am enclosing the list of endorsements I have received so far. Please send further endorsements to Kamayani. Her email id is:  kamayni@gmail.com 

Any further endorsements must reach her tonight, so that she can organise all endorsements properly and send it to us by tomorrow 7 pm. The idea is to release it in different parts of the country by April 2nd morning in a decentralised manner. You are welcome to use your press contacts and social media platforms once you get the final list of endorsementstomorrow night. Translations of the text in regional languages are also needed.

If there are any corrections on the endorsements or any names which are left out from this list, please inform Kamayani.

I express my sincere thanks to all of you for the overwhelming support to release of Debaranjan Sarangi.  The endorsements I have received so far are:

1.       Arundhati Roy , Writer

2.       Aruna Roy

3.       Mani Shankar Aiyar , RajyaSabha Member , Former Union Cabinet Minister

4.       Mallika Sarabhai , Padma Bhushan Award Winner, Dancer, Actress

5.       AnandPatwardhan , Film Maker

6.       TeestaSetalvad , Journalist & Human Rights Activist ,Mumbai

7.       Prof. Ram Puniyani, Writer ,Mumbai

8.       JavedAnand , Journalist ,Editor , Communalism Combat

9.       SandeepPandey , Human Rights activist , Magsasay award winner, Lucknow

10.   Sanjay Kak, Film Maker ,New Delhi

11.   Kedar Mishra , Writer , Art Critic , Odisha

12.   Prof. Anjali Monteiro ,Film Maker

13.   Prof. Uma Chakravarti , Academician

14.   Prof. K P Jayasankar ,Film Maker

15.   PankajButalia , Film Maker

16.   Rajeev Ravi , Camera Person , Feature Film Director

17.   Rahul Roy , Film Maker

18.   Vinod Raja , Documentary Film Maker

19.   Rakesh Sharma , Film Maker

20.   Amar Kanwar , Film Maker

21.   Dunu Roy , Researcher

22.   Sadanand Menon ,Writer

23.   Nityanand Jayaraman, writer, social activist, Chennai

24.   Gabriele Dietrich , National Alliance of People's Movement , Madurai

25.   DeepaDhanraj , Documentary Film Director

26.   Ajith Kumar , National Award winning Editor

27.   Dr. Mira Shiva , Health Activist

28.   Biju Toppo , Camera Person

29.   Navroze Contractor , Camera Person

30.   P Baburaj , Film Maker

31.   SreemithSekhar ,  Film Maker, Calicut

32.   Meghnath , Film Maker

33.   GeetaSeshu, Journalist , Mumbai

34.   ArundhatiDhuru ,Activist,Lucknow

35.   Ashok Chowdhury, NFFPM

36.   Kumar Prashant ,Chairman ,Gandhi Peace foundation,New Delhi

37.   Leo Saldanha , Researcher,Environmental Activist , ESG

38.   MadhumitaDutta , Activist- Researcher,Chennai

39.   ShripadDharmadhikary ,Researcher,ManthanAdhyayan Kendra

40.   C R Neelakandan , Writer ,Social Activist , NAPM

41.   Nicholas Barla

42.   Ajay Kumar Singh, Human Rights Activist, Odisha

43.   Sandeep Kumar Pattnaik

44.   Abhishek Kumar Dash

45.   ChandranathDani , Advocate ,Odisha

46.   Goldy George , Researcher , Dalit Activist

47.   EnakshiGanguly , Co-director, HAQ Centre for Child Rights ,New Delhi

48.   Irfan Engineer , CSSS

49.   Ovais Sultan Khan , Activist

50.   Fr. Cedric Prakash SJ, Human Rights Activist ,Ahemdabad

51.   Harsh Kapoor ,SACW

52.   Binu Mathew , Editor, Countercurrents

53.   Jose Kavi , Editor , Matters India

54.   NiveditaMenon , JNU , New Delhi

55.   Jagadish G Chandra , New Socialist Alternative

56.   Amudhan R P , Film Maker

57.   KritikaAgarwal , Camera Person

58.   Joe Athialy , New Delhi

59.   Benny Kuruvilla , Researcher , New Delhi

60.   A K Ramakrishnan , Professor , JNU , New Delhi

61.   PushpaAchanta , Journalist & Writer , Bangalore

62.   Benny Benedict , VIBGYOR International Film Festival

63.   Deme Oram , Tribal Activist , Sundargarh , Odhisha

64.   TapanPadhi , President, Mission Justice

65.   Razi , Film Director , Designer

66.   V S Roy David , National Adivasi Alliance

67.   Ananyaa Gaur , Musician

68.   SudhirPatnaik ,Writer, Editor, Odisha

69.   Wilfred D'costa , INSAF

70.   Adv. Kamayani Bali Mahabal, Activist

71.   SoumyaDutta, Bharat Jan VigyanJatha& India Climate Justice

72.   K P Sasi , Film Maker, Activist

73.   Vini Varghese , Assistant Director, Documentary Films

74.   PradeepEsteves, Activist, Context India

75.   Dr.NeshatQuaiser , Associate Professor , JamiaMilliaIslamia , New Delhi

76.   Shamsul Islam

77.   NeelimaShrama

78.   VibhutiNarainRai , Writer

79.   Ramesh Kamble , University of Mumbai

80.   Prof .ArvindSivaramakrishnan

81.   Karuna D.W., Researcher Chennai

82.   Arun Khote, PMARC

83.   Charul Bharwada, Artist n Researcher, Ahmedabad

84.   Vinay Mahajan, Artist n Researcher, Ahmedabad

85.   Mahi Pal Singh , Editor, The Radical Humanist , Former National Secretary PUCL

86.   Sharmila , IIT Bombay

87.   Rosemary Viswanath

88.   Ishwarbhai Prajapati

89.   Sultana Kamal, Human rights activist, Bangladesh

90.   Aklima Ferdows Lisa , Assistant Coordinator , Ain o Salish Kendra (ASK)

91.   Vasanthi Raman , Social Scientist and activist , New Delhi

92.    Firdaus Ahmed

93.   Achyut Yagnik , Writer and Social Activist

94.   Ashok Shrimali , Secretary General mines mineral & People

95.   Meera Velayudhan , Researcher

96.   Virginius Xaxa

Film Makers, Writers, Cultural Personalities and Activists Demand Release of Deba Ranjan Sarangi

 

We the undersigned film makers, writers, professionals in the area of art & culture, academics, activists and social organisations are deeply shocked to hear about the arrest of independent documentary film maker, writer and human rights activist Deba Ranjan Sarangi.  We  strongly condemn the arrest view it as part of an overall strategy of the Indian State to curb  freedom of speech, freedom of expression of artists, writers, film makers and cultural personalities. We also condemn it in the  context of the overall suppression of dissent and suppression of human rights defenders in the era of strong facilitation of the forces of communalism and globalisation by the Indian State  and in particular, by the Odisha government.

 

Deba Ranjan Sarangi was arrested on March 18, 2016, by plainclothes policemen from the Kucheipadar village of Rayagada District, Odisha. Debaranjan was in Kucheipadar to attend a funderal ceremony of one of his friend's  father. He was arrested with a non-bailable warrant issued by the court of JMFC, Kashippur in pursuance of a case registered in Tikri police station of Rayagada district in 2005,  when Debaranjan was actively involved in the struggle of the Adivasis in Kashipur to protect their lands from the invasion of the bauxite mining companies.

 

Deba Ranjan Sarangi has been a consistent and passionate voice against injustice both within and outside Odisha. As a writer, film maker and human rights activist, he has highlighted and critiqued policies of destructive development, unbridled mining practices, displacement, police impunity, atrocities on Dalits, Adivasi issues , growth of communal fascism in Odisha, violence on women and farmers' suicide in the context of acute agrarian.

 

As per the reports, Deba Ranjan Sarangi was detained at Jaraguda police station for interrogation. It is learnt that Tikiri police arrested him in an old case warrant with GR case no: 12 of 2005 under Sections 147,148 and 506 of Indian Penal Code. HRDA has been informed that the case is related to a protest and agitation against Utkal Alumunia Company in Kashipur block of Raigada district which took place in the year of 2005. During that period a non-bailable warrant was issued against the defender under section 506 of IPC which is apparently being executed now after a gap of 11 years. If the police machinery was really convinced about these fabricated cases on Deba Ranjan Saragi, there was no need to take 11 years to arrest him, since Debaranjan was active as a film maker and a writer during the entire period.

 

Writer and documentary film maker Deba Ranjan Sarangi who has spent his precious time for the struggles of Adivasis in Odisha is also a member of Ganantrik Adhilkar Surakya Sangathan (GASS). His films include: 1. At the Crossroads, 2. The Conflict: Whose Loss Whose Gain, 3. From hindu to Hindutva, 4. Visit to Basaguda.

We the undersigned hereby strongly reiterate that it is not possible to silence the voice of dissent, the expressions of our conscience or even the reporting of facts by intimidation, imprisonment or through fabricated cases. We remind the authorities that the arrest of Debaranjan Saragi is a clear violation of Articles 14, 19, 21 and 22 enshrined in the Indian Constitution in defense of freedom of speech, freedom of expression and human rights. Authorities have also violated the safeguards mandated by the Supreme Court in various decisions regarding the arrest of an individual.  Such arrests are not only undermining Indian democracy, but also the flourishing growth of all artistic creativity. Deba Ranjan has been put behind bars because he had the courage to show what he witnessed to the world through his expressions of film making, writing and speech. He is neither a Maoist nor a terrorist. We call upon the Odisha government to address the issues raised by the human rights defenders in the State of Odisha rather than imprisoning them and crushing the voices of film makers. We call upon the Odisha government to desist from such disgraceful attempts of  violating the Indian Constitution and Indian democracy.

 

Therefore we demand the immediate release of Debaranjan Sarangi and an immediate dropping of all false charges against him. We also  appeal to the civil society to circulate this information widely within your reach.


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CPI(M) Delegation Meets Chairperson National Commission for Minorities

Next: भगतसिंह का मानना था कि देश का अर्थ कोई काग़ज़ी नक्शा नहीं। देश को मातृभूमि या पितृभूमि कहने का अर्थ कोई हवाई सोच नहीं है। माँ या पिता वे होते हैं जो बच्चे को भोजन, वस्त्र और शरण देते हैं। ऐसे में देश और देशभक्ति का अर्थ क्या है? देश के सच्चे माँ और पिता कौन हैं? वे जो देश को रोटी, कपड़ा और मकान मुहैया कराते हैं। ये लोग हैं इस देश के 84 करोड़ मज़दूर, मध्यवर्ग और ग़रीब किसान जो कि महँगाई, बेरोज़गारी, सूखे, अम्बानियों-अदानियों की लूट और सरकारी दमन का शिकार हो आत्महत्याएँ करने को मजबूर हैं। ये वे लोग हैं जो देश में सुई से लेकर जहाज़ तक बना रहे हैं। अगर ‘देश’, ‘राष्ट्र’, ‘भारत माता’, ‘हिन्द’, ‘भारत’ जैसे विशाल शब्दों का कोई सच्चा अर्थ है, तो वह ये ही लोग हैं! भगतसिंह का मानना था की देश का अर्थ ये ही मज़दूर, आम मेहनती लोग और किसान हैं। ऐसे में देशभक्ति का अर्थ क्या हुआ? यह कि इस अन्नदाता, वस्त्रदाता, शरणदाता आबादी को ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई और पूँजीपतियों की गुलामी से मुक्ति मिले। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने इसीलिए कहा था कि हमारे लिए आज़ादी का मतलब केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं है, बल्कि इस देश के मज़दूरों
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CPI(M) Delegation Meets Chairperson National Commission for Minorities



CP(M) Delegation Meets Chairperson, National Commission for Minorities



Shri Naseem Ahmad, Chairperson of the National Commission for Minorities,
received a memorandum from Brinda Karat (member Polit Bureau, CPI(M), Nathu
Prashad (CPI(M) Delhi State Secretariat member) and Ram Pal (CPI(M) Delhi
State Committee member) in connection with the assault on three Muslim
students in Ramesh Enclave when they faced violence and threats and were
made to chant Mata ki Jai/ Bharat Mata ki Jai slogans. (Memo attached) This
was given after a meeting with the victims by a  delegation of the CPI(M)
yesterday.



Shri Naseem Ahmad expressed concern over the incident and assured that
appropriate action would be taken.







(Hari Singh Kang)

For CPI(M) Central Committee office

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Memorandum



Honble Chairperson Shri Naseem Ahmad and members of the Commission,



This is to draw your attention and request your intervention in the shocking
case of attack on three young Muslim men, Dilkush, Naeem and Ajmal, all
students in a local Madrassa in Ramesh Enclave, Delhi. They were assaulted
by a gang of five men who coerced them to shout slogans like Mata ki
Jai/Bharat Mata ki Jai. All three of them were badly beaten, one of them,
Dilkush suffered serious fractures.



A delegation of the Delhi State Committee, CPI(M) had met the three injured
students yesterday. This is clearly a hate crime motivated by hostility
towards minorities. The atmosphere created by leaders of the ruling party at
the Centre at different levels is the context in which such crimes are
occurring.



However the FIR copy given to the victims, does not include any clauses
connected with communal violence. On the contrary an effort is being made to
whitewash this aspect as it has wider ramifications and to reduce the crime
to a "personal dispute."



The students are all from very poor families in Bihar who have come here to
study. They are traumatized and in a state of fear.



It is essential that they are provided immediate compensation. However
neither the Delhi Government nor the Central Government has taken any notice
of this serious case in the capital of the country. This is a case which
directly relates to an assault on minorities and therefore is within the
mandate of the Minorities Commission. We request you to immediately
intervene and take appropriate action.



Thanking you,



Yours sincerely,



Sd/-

Brinda Karat                  Nathu Prashad                        Ram Pal

Member, Polit Bureau     Member, State Secretariat             Member, Delhi

CPI(M)                           Delhi State Committee         State
Committee

                                      CPI(M)
CPI(M)

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भगतसिंह का मानना था कि देश का अर्थ कोई काग़ज़ी नक्शा नहीं। देश को मातृभूमि या पितृभूमि कहने का अर्थ कोई हवाई सोच नहीं है। माँ या पिता वे होते हैं जो बच्चे को भोजन, वस्त्र और शरण देते हैं। ऐसे में देश और देशभक्ति का अर्थ क्या है? देश के सच्चे माँ और पिता कौन हैं? वे जो देश को रोटी, कपड़ा और मकान मुहैया कराते हैं। ये लोग हैं इस देश के 84 करोड़ मज़दूर, मध्यवर्ग और ग़रीब किसान जो कि महँगाई, बेरोज़गारी, सूखे, अम्बानियों-अदानियों की लूट और सरकारी दमन का शिकार हो आत्महत्याएँ करने को मजबूर हैं। ये वे लोग हैं जो देश में सुई से लेकर जहाज़ तक बना रहे हैं। अगर ‘देश’, ‘राष्ट्र’, ‘भारत माता’, ‘हिन्द’, ‘भारत’ जैसे विशाल शब्दों का कोई सच्चा अर्थ है, तो वह ये ही लोग हैं! भगतसिंह का मानना था की देश का अर्थ ये ही मज़दूर, आम मेहनती लोग और किसान हैं। ऐसे में देशभक्ति का अर्थ क्या हुआ? यह कि इस अन्नदाता, वस्त्रदाता, शरणदाता आबादी को ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई और पूँजीपतियों की गुलामी से मुक्ति मिले। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने इसीलिए कहा था कि हमारे लिए आज़ादी का मतलब केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं है, बल्कि इस देश के मज़दूरों

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भगतसिंह का मानना था कि देश का अर्थ कोई काग़ज़ी नक्शा नहीं। देश को मातृभूमि या पितृभूमि कहने का अर्थ कोई हवाई सोच नहीं है। माँ या पिता वे होते हैं जो बच्चे को भोजन, वस्त्र और शरण देते हैं। ऐसे में देश और देशभक्ति का अर्थ क्या है? देश के सच्चे माँ और पिता कौन हैं? वे जो देश को रोटी, कपड़ा और मकान मुहैया कराते हैं। ये लोग हैं इस देश के 84 करोड़ मज़दूर, मध्यवर्ग और ग़रीब किसान जो कि महँगाई, बेरोज़गारी, सूखे, अम्बानियों-अदानियों की लूट और सरकारी दमन का शिकार हो आत्महत्याएँ करने को मजबूर हैं। ये वे लोग हैं जो देश में सुई से लेकर जहाज़ तक बना रहे हैं। अगर 'देश', 'राष्ट्र', 'भारत माता', 'हिन्द', 'भारत'जैसे विशाल शब्दों का कोई सच्चा अर्थ है, तो वह ये ही लोग हैं! भगतसिंह का मानना था की देश का अर्थ ये ही मज़दूर, आम मेहनती लोग और किसान हैं। ऐसे में देशभक्ति का अर्थ क्या हुआ? यह कि इस अन्नदाता, वस्त्रदाता, शरणदाता आबादी को ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई और पूँजीपतियों की गुलामी से मुक्ति मिले। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने इसीलिए कहा था कि हमारे लिए आज़ादी का मतलब केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं है, बल्कि इस देश के मज़दूरों और किसानों को हर प्रकार की लूट और शोषण से आज़ादी दिलाना है। 

संघ परिवार व मोदी के "राष्‍ट्रवाद"की नौटंकी 

आज पूरे देश में कुछ ताक़तें देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ठेकेदार बने हुई हैं। ये देशभक्ति की नयी परिभाषा रच रही हैं। इनके अनुसार, जो मोदी सरकार और आर.एस.एस. की आलोचना करे, वह देशद्रोही है। लेकिन दोस्तो ज़रा सोचिये कि भाजपा और संघ परिवार के ये लोग देशभक्ति के ठेकेदार कब से बन गये? क्या आपको याद है कि भाजपा के मन्त्रियों ने कारगिल युद्ध के बाद मारे गये भारतीय सैनिकों के लिए ताबूत की ख़रीद में भी घोटाला कर दिया था? क्या आप भूल गये कि सेना के लिए ख़रीद में दलाली और रिश्वत खाते हुए भाजपा के अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण पकड़े गये थे? क्या आपको याद नहीं कि भाजपा के एक नेता दिलीप सिंह जूदेव कैमरा पर रिश्वत लेकर यह बोलते हुए पकड़े गये थे कि 'पैसा खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं!'क्या आपको याद नहीं है कि भाजपा की सरकार ने देश में पहली बार सरकारी नौकरियों को ख़त्म करने के लिए विनिवेश मन्त्रलय बनाया था? क्या हम भूल सकते हैं कि 1925 में अपनी स्थापना से 1947 में आज़ादी मिलने तक आर.एस.एस. ने हमेशा आज़ादी की लड़ाई विरोध किया था और इनके नेताओं ने भगतसिंह की शहादत को 'बेकार की कुर्बानी'बताया था? क्या आप भूल सकते हैं कि जिस समय भगतसिंह और उनके साथी अंग्रेज़ी हुकूमत से फाँसी की बजाय गोली मारे जाने की माँग करते हुए शहादत को गले लगा रहे थे, उस समय हिन्दू महासभा के सावरकर अण्डमान जेल से अंग्रेज़ी सरकार से माफ़ी माँगते हुए और कभी भी अंग्रेज़ों के विरुद्ध कोई गतिविधि न करने का वायदा करते हुए माप़फ़ीनामे पर माफ़ीनामे लिख रहे थे? क्या आपको पता है कि 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में जब देश के नौजवान उतर पड़े थे, तो अटलबिहारी वाजपेयी ने आन्दोलन में शामिल लोगों की मुखबिरी अंग्रेज़ों से की थी? आज़ादी के बाद जब कांग्रेस की इन्दिरा गाँधी की सरकार ने नौजवानों और मज़दूरों के आन्दोलन को दबाने के लिए एमरजेंसी लगायी तो आर.एस.एस. के नेता देवरस इन्दिरा गाँधी के नाम मा(फ़ीनामा लिख रहे थे और उन्हें देवीतुल्य बता रहे थे? क्या आपको पता है कि मोदी सरकार ने अपने दो बजटों में देश के 5 फीसदी अमीर लोगों के लिए नीतियाँ बनाते हुए टाटाओं, बिड़लाओं, अम्बानियों, अदानियों को पिछले दस साल में दी गयी 42 लाख करोड़ रुपये की कर माफी को जारी रखा है? वह भी उस समय जब देश में पिछले दो वर्षों में कर्ज़ तले दबकर लाखों ग़रीब किसानों ने आत्महत्याएँ की हैं? क्या आपको पता है कि मोदी सरकार ने शिक्षा के ख़र्च को आधा कर दिया है जिससे कि स्कूलों और कॉलेजों की फीसें इतनी बढ़ जायेंगी कि आप और हम अपने बच्चों को उसमें पढ़ाने का सपना भी नहीं देख पायेंगे? खाने के सामान पर सब्सिडी को मोदी सरकार ने लगभग 10,000 करोड़ रुपया कम कर दिया है; स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर करीब 6000 करोड़ रुपये की कटौती की गयी है, यानी आपको अब सरकारी अस्पताल में दवा और इलाज पहले से दुगुना महँगा मिलेगा; बड़ी-बड़ी देशी-विदेशी कम्पनियों का 1.14 लाख करोड़ रुपये का बैंक कर्ज सरकार ने माफ़ कर दिया है और दूसरी तरफ़ हमारी जेब पर डकैती डालते हुए सारे अप्रत्यक्ष कर बढ़ा दिये गये हैं, जिससे की महँगाई तेज़ी से बढ़ी है; अम्बानियों-अदानियों का 70,000 करोड़ रुपये का पेण्डिंग टैक्स भी माफ़ कर दिया गया है; दूसरी तरफ़ मोदी की "देशभक्त सरकार"ने खाने के सामानों में वायदा कारोबार की इजाज़त देकर सट्टेबाज़ी के दरवाज़े खोल दिये हैं, जिसके कारण दाल 170 रुपया किलो बिक रही है! छोटे व्यापारियों की पार्टी कहलाने वाली भाजपा ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाज़त देकर सारे छोटे उद्यमों को तबाह करने का रास्ता खोल दिया है; यहाँ तक कि इन्होंने रक्षा क्षेत्र तक में विदेशियों को घुसने की इजाज़त दे दी है! ये ही लोग पहले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के विरोध की नौटंकी कर रहे थे क्योंकि इन्हें मध्यवर्ग का वोट चाहिए था। क्या यही है देशभक्ति? क्या यही है राष्ट्रवाद? 

सच्चे देशभक्तों को याद करो! नकली "देशभक्तों"की असलियत को पहचानो! 

खुद सोचिये भाइयो और बहनो! कहीं 'देशभक्ति', 'राष्ट्रवाद', 'भारत माता'का शोर मचाकर संघ परिवार और मोदी सरकार देश से ग़द्दारी करने के अपने पुराने इतिहास और जनता के ख़ि‍लाफ़ टाटा-बिड़ला-अम्बानी की दलाली करने की अपनी असलियत को ढँकने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? कहीं ये असली मुद्दों से हमारा ध्यान भटकाने के लिए ये हल्ला तो नहीं मचा रहे हैं? कहीं संघ परिवार और मोदी सरकार इस शोर में महँगाई दूर करने, बेरोज़गारी से आज़ादी दिलाने, सभी खातों में 15 लाख रुपये डालने आदि के वायदे को भुला तो नहीं देना चाहते? सीधे कहें तो अपने आप से पूछिये भाइयो और बहनो-क्या आपको बेवकूफ़ तो नहीं बनाया जा रहा है? सोचिये! आपके असली दुश्मन कौन हैं? इस नफ़रत की सोच से अलग हटकर, ठहरकर एक बार सोचिये कि 2 लाख करोड़ रुपये का व्यापम घोटाला करने वाले, घोटाले के 50 गवाहों की हत्याएँ करवाने वाले, विधानसभा में बैठकर पोर्न वीडियो देखने वाले, विजय माल्या और ललित मोदी जैसों को देश से भगाने में मदद करने वाले देशभक्ति और राष्ट्रवाद का ढोंग करके आपकी जेब पर डाका और घर में सेंध तो नहीं लगा रहे? कहीं ये 'बाँटो और राज करो'की अंग्रेज़ों की नीति हमारे ऊपर तो नहीं लागू कर रहे ताकि हम अपने असली दुश्मनों को पहचान कर, जाति-धर्म के झगड़े छोड़कर एकजुट न हो जाएँ? सोचिये साथियो, वरना कल बहुत देर हो जायेगी! जो आग ये लगा रहे हैं, उसमें हमारे घर, हमारे लोग भी झुलसेंगे। इसलिए सोचिये! 

क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ, 

फ़ासीवाद का एक इलाज – इंक़लाब ज़ि‍न्दाबाद! 

नौजवान भारत सभा 

बिगुल मज़दूर दस्ता 

युनिवर्सिटी कम्युनिटी फॉर डेमोक्रसी एण्ड इक्वॉलिटी (यूसीडीई) 
http://naubhas.in/archives/574
सच्चे देशभक्तों को याद करो! नकली "देशभक्तों"की असलियत को पहचानो! - नौजवान भारत सभा
naubhas.in
इस नफ़रत की सोच से अलग हटकर, ठहरकर एक बार सोचिये कि 2 लाख करोड़ रुपये का व्यापम घोटाला करने वाले, घोट...

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टी 20विश्वकप सेमीफाइनल जो सो हारे,अब मैच फिक्सिंग की काली छाया ने आईपीएल की याद दिलायी एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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टी 20विश्वकप सेमीफाइनल  जो सो हारे,अब मैच फिक्सिंग की काली छाया ने आईपीएल की याद दिलायी

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
भारत सेमीफाइनल हारकर विश्वकप टी 20 से बाहर हो गया।वेस्ट इंडीज ने गेल के आउट होने के बावजूद मजे मजे में फाइनल में पहुंच गया।जबकि वेस्टइंडीज की महिला टीम भी फाइनल में पहुंच चुकी है।बेहतर खेलने वाले की जीत जायज है।यहां तक तो ठीक है लेकिन जिस तरह कप्तान धोनी ने मैच हारने के तत्काल बाद इस मैच की आईपीएल मैच से तुलना कर दी,उससे मैच फिक्सिंग का शक गहराने लगा है।वैसे भी इस मैच पर सट्टा काफी लगा है और आईपीएल में मैच फिक्सिंग अब संस्थागत हैं।दोनों टीमों में आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाड़ी भी हैं,जो पहले से विवादों के घेरे में हैं।

आईपीेल सर्कस की तुलना विश्वकप मैच से करने की भारतीय कप्तान की यह हरकत नागवार लग रही है क्योंकि यह राष्ट्रीयटीम थी कोई नीलामी में खरीदे गये रंग बिरंगी पेशेवर तमाशाई खिलाड़ियों की फ्रेंचायजी टीम नहीं।

टीम के चयन में जेनुइन गेंदबाजी की उपेक्षा भी हुई जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा।गेंदबाजों के इस्तेमाल के लिए मशहूर धोनी उसीतरह नाकाम हुए जैसे बल्लेबाज धोनी।आईपीएल मामले से बरी धोनी की कारगुजारी समझने की जरुरत है कयोंकि टीम के चयन में तमाम आरोप लगे हैं और राजनीतिक हस्तक्षेप है।

गौरतलब है कि अंडरवर्ल्ड डॉ़न दाऊद इब्राहिम की भविष्यवाणी की हुई है कि भारत टी-20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज को हरा देगा। डॉन की इसी भविष्यवाणी पर उसका सट्टा बाजार गर्म हो उठा है। जहां भारत और पाकिस्तान के पिछले मैच पर 2500 करोड़ का सट्टा लगा था वहीं भारत और वेस्टइंडीज के सेमीफाइनल मैच पर 4000 करोड़ का सट्टा लगने के आसार हैं।यह रकम इतनी बड़ी है कि हार जीत से बहुत कुछ न्यारा वारा होने के आसार है।  

जैसे अंतिम ओवर विराट कोहली से कराने का दांव समझ से बाहर है क्योंकि नियमित गेंदबाजों के ओवर अभी बाकी थे।इसके अलावा खुद को प्रमोट करने के बावजूद धोनी उतने आक्रामक नहीं थे और न बड़ा स्कोर करने की कोई गरज कोहली के अलावा किसी और खिलाड़ी का जज्बा बनकर दिखी।

जिस पिच पर वेस्टइंडीज के खिलाड़ी चौके छक्के की बहार दिखाकर भारत के स्कोर को पार किया,उसी पिच पर भारत की ओर से सिर्फ दो ही छक्के लगे।
गेम ठहर गया तो भी विकेट हाथ में रहने के बावजूद रैना,पांड्या या जडेजा जैसे हिटर को आजमाने की तरकीब नहीं सोची गयी।

गौरतलब है कि लैंडल सिमंस की अगुवाई में अपने बल्लेबाजों के आक्रामक और जुझारू प्रदर्शन के दम पर वेस्टइंडीज ने आज भारत को बेहद रोमांचक मुकाबले में सात विकेट से हराकर टी20 क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में प्रवेश कर लिया जहां उसका सामना इंग्लैंड से होगा।
 
पूर्व चैम्पियन कैरेबियाई टीम ने जीत के लिए 194 रन का मुश्किल लक्ष्य 19.4 ओवर में तीन विकेट खोकर हासिल कर लिया। सिमंस ने 51 गेंद में सात चौकों और पांच गगनभेदी छक्कों की मदद से नाबाद 83 रन बनाएजबकि आंद्रे रसेल 20 गेंद में 43 रन बनाकर नाबाद रहे जिसमें तीन चौके और चार छक्के शामिल थे। इससे पहले जानसन चाल्र्स ने 36 गेंद में सात चौकों और दो छक्कों के साथ 52 रन बनाए।
 
इससे पहले विराट कोहली के 47 गेंद में 89 रन की मदद से 2007 के चैम्पियन भारत ने दो विकेट पर 192 रन बनाए थे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ करो या मरो के आखिरी सुपर 10 मैच में नाबाद 82 रन बनाकर भारत को सेमीफाइनल में पहुंचाने वाले कोहली ने अपनी पारी में 11 चौके और एक छक्का लगाया।
 
कोहली और गेल का मुकाबला करार दिए जा रहे इस सेमीफाइनल में बाजी कैरेबियाई बल्लेबाजों ने मारी। गेल दूसरे ही ओवर में विकेट गंवा बैठे थे लेकिन उनकी टीम ने हार नहीं मानी और खचाखच भरे वानखेड़े स्टेडियम में भारतीय दर्शकों के सामने संयम खोये बिना कठिन लक्ष्य को हासिल किया। तीन अप्रैल को कोलकाता के ईडन गार्डन पर होने वाले फाइनल में कैरेबियाई टीम इंग्लैंड से खेलेगी।
 

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