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अपना अस्तित्व बचाने के लिये एकजुट हो रहे हैं लोग लेखक : राजीव लोचन साह

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अपना अस्तित्व बचाने के लिये एकजुट हो रहे हैं लोग


लेखक : राजीव लोचन साह


इस पखवाड़े नैनीताल में दो ऐसे भारी भरकम जलूस निकले, जिन्होंने 1994 के उत्तराखंड राज्य आन्दोलन की याद दिला दी। राज्य आन्दोलन के बाद ऐसा जलूस नैनीताल में  फिर शायद अगस्त 2011 में अण्णा हजारे के जन लोकपाल आन्दोलन को समर्थन देने के लिये ही निकला था।

nainital-candle-marchरविवार, 26 जुलाई को तीसरे पहर शेर का डाँडा पहाड़ी के सात नम्बर व आपसास के क्षेत्र के उन हजारों लोगों ने नगर में एक मौन जलूस निकाला, जिनके आशियानों के ध्वस्तीकरण के आदेश उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कहने पर जिला प्रशासन और नैनीताल झील विकास प्राधिकरण ने जारी किये हैं। लगभग सात-आठ हजार लोग इस जलूस में शामिल थे। दो दिन बाद, 28 जुलाई की शाम इन्हीं लोगों ने एक 'कैंडिल मार्च'निकाला, जिसमें भीड़ पहले जलूस की तुलना में अपेक्षाकृत कम थी, किन्तु अंधेरे में जगमगाती हजारों मोमबत्तियों के सैलाब ने उसी तरह का रोमांचक प्रभाव पैदा किया, जैसा राज्य आन्दोलन के दौरान 14 सितम्बर 1994 को निकले मशाल जलूस ने पैदा किया था। कोई आश्चर्य नहीं कि 30 जुलाई को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ ने 'अजय रावत बनाम भारत सरकार एवं अन्य'के नाम से सुनी जा रही जा रही जन हित याचिका, जो इन दिनों शासन-प्रशासन के बदले नैनीताल नगर की पूरी की पूरी व्यवस्थायें सम्हाल रही है, की खंडपीठ से न्यायमूर्ति आलोक सिंह एवं न्यायमूर्ति सर्वेश गुप्ता को हटा कर उनके स्थान पर न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति यू. सी. ध्यानी को रख दिया। हो सकता है कि पिछली सुनवाई में खंडपीठ और वकीलों के बीच उठे एक विवाद के बाद मुख्य न्यायाधीश ने यह कदम उठाया हो। यह जन हित याचिका कितनी शक्तिशाली है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मामूली से वकील भी कोर्ट कमिश्नर बन कर आयुक्त कुमाऊँ और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल जैसे अधिकारियों से ऐसा व्यवहार करने लगे हैं, मानों वे उनके अधीनस्थ कर्मचारी हों। जिन लोगों की साँसें पिछले एक साल से अटकी पड़ी हैं, उनमें खंडपीठ के इस बदलाव से कुछ आशा जगी है। प्रखर स्वतंत्रता संग्रामी भैरवदत्त धूलिया के पौत्र न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया टिहरी बाँध विरोधी आन्दोलन और उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में काफी सक्रिय रहे हैं, अतः उनसे संवेदनशीलता की आशा करना बेमानी भी नहीं है।

मगर इन प्रभावशाली प्रदर्शनों और न्यायिक खंडपीठ में आये इस बदलाव से न तो सात नंबर क्षेत्र के इन निवासियों की समस्या खत्म होने वाली है और न ही नैनीताल नगर के सर पर मँडराने वाला खतरा खत्म होने वाला है। जनता की एकजुट ताकत भी विज्ञान के भूलभूत नियमों को नहीं बदल सकती। यह इलाका कितना खतरनाक है, इसे समझने के लिये भू वैज्ञानिक होना जरूरी नहीं है। सामने अयारपाटा की पहाड़ी के किसी ऊँचे स्थान से देखने पर इसमें जमीन का उभार साफ दिखाई देता है, जिसे अन्दर रिसता हुआ पानी कभी भी उसी तरह नीचे की ओर बहा ले जायेगा, जिस तरह उसने 5 जुलाई को बिड़ला रोड के एक हिस्से को बहा कर मालरोड को दलदल बना दिया था। इस बार जान माल की कोई क्षति नहीं हुई। मगर यह इलाका टूटा तो क्या होगा, इसकी कल्पना करके ही सिहरन होती है। 18 सितम्बर 1880 के भू स्खलन में इसी पहाड़ी में हुई टूट से 151 व्यक्ति जिन्दा दफ्न हो गये थे। तब इस इलाके में कोई बसासत ही नहीं थी। इस वक्त यह नैनीताल का सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है।

मगर समस्या है तो उसका समाधान भी होगा ही। मगर यह समाधान न तो न्यायपालिका की जिद से हो सकता है और न ही प्रशासन के डंडे से। न ही यह समस्या एक या दो माह में सुलझ सकती है। पहले समस्या को समझ तो लें। ब्रिटिश काल से ही यह इलाका 'असुरक्षित'माना गया। यहाँ निर्माण कार्य निषिद्ध रहे। नवम्बर 1984 में 'नैनीताल झील विकास प्राधिकरण'का गठन होने से पूर्व तक यहाँ शायद ही कोई ऐसा भवन होगा, जो नियम-कानूनों के अन्तर्गत न बना हो। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की तर्ज पर बने झील विकास प्राधिकरण को न तो नैनीताल की संवेदनशीलता की कोई जानकारी थी और न ही उसे इसकी जरूरत थी। यह बहुत जल्दी ही अवैध काम करवाने वाली एक ऐसी दुकान बन कर रह गया, जिसमें हर तरह का सौदा होता है। महंगी मशीनें भी बिकती हैं तो नमक की पुडि़या भी। एक ओर इसके अधिकारियों और कर्मचारियों ने बाहर से आने वाले बड़े-बड़े बिल्डरों को नाजुक पहाडि़यों पर भारी भरकम कंक्रीट के ढाँचे खड़े करने की अनुमति दे कर लाखों रुपये कमाये तो दूसरी ओर निर्धन आय वर्ग के लोगों को सही-गलत जगहों पर छोटी-छोटी झोंपडि़याँ खड़ी करने को प्रोत्साहित किया और इसकी एवज में हजारों रुपये वसूले। यह वसूली इन अवैध निर्माणों को अनदेखा करने के लिये होती थी। यह खेल इतना फलने-फूलने लगा कि कतिपय शातिर लोगों ने संदिग्ध किस्म की जमीनों को टुकड़ों-टुकड़ों में बाँट कर सिर्फ दस-दस रुपये के स्टाम्प पेपरों पर उनका सौदा कर डाला। फिर अपना वोट बैंक बनाने के लिए कुछ राजनीतिक नेता भी जमीन के इस खेल में शामिल हो गये। शुरू में जमीनें बेचने वाले और ऐसे निर्माण कार्य करने वाले थोड़ा सहमे-सहमे रहते थे कि वे कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं। मगर फिर प्राधिकरण, नगरपालिका, जिला प्रशासन और विभिन्न विभागों की ओर से मौन सुरक्षा मिलने पर वे निश्चिन्त होते चले गये। जो कच्चे मकान थे, वे पक्के हो गये। जो इकमंजिले थे, वे दुमंजिले बन गये। बहती गंगा में हाथ धोने के लिये कुछ ऐसे लोगों ने भी यहाँ किराये में लगाने के लिये मकान बना डाले, जिनके अन्यत्र अपने अच्छे-खासे आवास थे। एकदम खड़ी ढलान पर बजरी के कट्टों की एक दीवार सी दे कर उन पर मकान खड़ा कर देने की एक ऐसी तकनीकी विकसित हुई, जिसे देख कर आँखें हैरत से खुली की खुली रह जाती हैं। प्राधिकरण बनने के आठ-दस सालों के भीतर ही नगर के कुछ जागरूक लोगों के प्रतिरोध के कारण ब्रजेन्द्र सहाय समिति की संस्तुतियाँ आईं और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश आये, मगर नैनीताल नगर को बचाने की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा तो यह मान लिया गया कि जो कुछ भी हो रहा है ठीक हो रहा है, न्यायसम्मत हो रहा है। धीरे-धीरे इस तथाकथित 'असुरक्षित'क्षेत्र में इतने अधिक निर्माण हो गये कि आज नैनीताल नगर की लगभग बीस प्रतिशत आबादी इन्हीं इलाकों में रहती है। पिछले साल न्यायिक सक्रियता बढ़ने के बाद इस ओर दृष्टि गई थी और इस बार 5 जुलाई को मालरोड पर मलबा आने से अदालत ने बेहद सख्त रुख अपना लिया।

मगर सिर्फ कड़ाई से तो समस्या सुलझने से रही। इस एक साल में प्रशासन पर लगातार दबाव बना कर अदालत ने मालरोड और फ्लैट्स पर लगने वाले फड़ों को पूरी तरह खत्म कर दिया है। नगर में साफ-सफाई की दृष्टि से यह बहुत अच्छा भी है। लेकिन इस निर्णय में रोजगार के सवाल को बिल्कुल अनदेखा कर दिया गया। जब सरकारी नीतियों की विफलता के कारण गाँवों में स्थितियाँ इतनी विकट हैं कि वहाँ आर्थिक उपार्जन तो दूर की बात रही, जंगली जानवरों के कारण पेट भरने के लिये अन्न उपजाना भी संभव नहीं है, तो गाँवों से नजदीकी शहरों की ओर पलायन तो होगा ही। सरकार के स्तर पर नौकरियों या स्व रोजगार के लिये पर्याप्त व्यवस्थायें नहीं हैं। तब क्या कोई ग्रामीण अपने बाल-बच्चे पालने के लिये सड़क पर भुट्टे भी न भूने ? तो क्या वह चोरी-चखारी पर उतरे या कि जेब काटने पर ? जबकि जरा सी कोशिश करने पर नैनीताल में ही इन लोगों के लिये योजनाबद्ध ढंग से व्यवस्था कर देना कोई कठिन काम नहीं था।

इसी तरह सात नम्बर और और आसपास के असुरक्षित क्षेत्र के निवासियों को सिर्फ डंडे से तो नहीं हाँका जा सकता। विशेषकर उस स्थिति में जबकि यहाँ रहने वाले निम्न या निम्न मध्य वर्ग के ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपनी जिन्दगी की पूरी कमाई अपने लिये एक अदद छत बनाने में झोंक दी है और उनके पास दुबारा कहीं बसने के लिये कोई पैसा नहीं बचा। वे इस अन्याय से भी बहुत अधिक नाराज हैं कि जिन नेताओं, अधिकारियों और जमीन के कारोबारियों ने पूरे आश्वासनों के साथ उन्हें यहाँ बसाया था, उनका तो बाल भी बाँका नहीं हो रहा है और उनके अस्तित्व पर चोट की जा रही है। अतः न्याय होता दिखने के लिये सबसे पहले उन जिम्मेदार अधिकारियों को ढूँढ कर उन पर दंडात्मक कार्रवाही होनी अनिवार्य है, जिन्होंने पिछले लगभग तीस सालों में यहाँ अवैध निर्माण होने दिये। ब्रजेन्द्र सहाय समिति ने अपनी रिपोर्ट के दूसरे भाग, जो गोपनीय थी, में उस वक्त तक के ऐसे दोषी अधिकारियों को चिन्हित किया था। दोषी अधिकारियों को न्याय के दायरे में लाने के बाद ही इस क्षेत्र में एक ऐसा सकारात्मक माहौल बन पायेगा कि समस्या का समाधान निकल सके। असम्भव कुछ भी नहीं है। इसके उपरान्त नैनीताल के आसपास कोई उपयुक्त जगह खोज कर इन लोगों को बसाना होगा। एक विकल्प तो पटवाडाँगर का भी हो सकता है। यहाँ युद्धस्तर पर सस्ते आवास बनाने होंगे। मगर इस काम के लिये सरकार में इच्छाशक्ति चाहिये और प्रशासन में लगन और ईमानदारी। इन दोनों चीजों का फिलहाल उत्तराखंड में पूरा अभाव है। इसलिये या तो अदालत और प्रशासन को अपने पाँव पीछे खींच कर नैनीताल के ऊपर मँडरा रहे खतरे को यों ही बने रहने देना होगा या फिर इस तरह के टकराव भविष्य में भी हमेशा होते रहेंगे। आखिर इस असुरक्षित क्षेत्र में रहने वाले न तो संख्या में फड़ वालों जितने कम हैं और न ही यह सिर्फ रोजगार का सवाल है। अपना अस्तित्व बचाने के लिये मनुष्य किसी भी सीमा तक जा सकता है।


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Bangladeshi Media blasts the viral INDIAN SERIAL Inflicted Child Education Scenario! -- শিশুদের শিক্ষা উপকরণেও ভারতীয় সিরিয়াল

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Bangladeshi Media blasts the viral INDIAN SERIAL Inflicted Child Education Scenario!
-- শিশুদের শিক্ষা উপকরণেও ভারতীয় সিরিয়াল





















ভারতীয় সিরিয়ালের নাম ও নায়ক-নায়িকাদের ছবি সম্বলিত শিশু শিক্ষা উপকরণে ছেয়ে গেছে গোটা পাবনা জেলা। দোকানগুলোতে নায়ক-নায়িকাদের রঙিন ছবি সম্বলিত এসব উপকরণ (খাতা) প্রকাশ্যে বিক্রি হলেও প্রশাসনের পক্ষ থেকে কোন পদক্ষেপ নেয়া হচ্ছে না। বিভিন্ন শিক্ষা প্রতিষ্ঠানের প্রধানগণ অভিভাবকদের সচেতন করেও এসব খাতা ব্যবহার থেকে বিরত রাখতে পারছে না শিক্ষার্থীদের।
এদিকে অভিভাবকরা বলছে তারা কোমলমতি শিশুদের এসব খাতা কিনে দিতে বাধ্য হচ্ছে। শহরের চেয়ে পাবনার গ্রামগুলোতে এর প্রভাব বেশি পড়েছে বলে জানিয়েছেন শিক্ষক ও অভিভাবকরা। প্রশাসনের উদাসিনতা এর জন্য দায়ী বলে মনে করেন তারা।
জেলার বিভিন্ন দোকান ও স্কুলগুলোতে ঘুরে দেখা গেছে, ভারতীয় বিভিন্ন টিভি চ্যানেলে প্রচারিত কিরণমালা, বোঝে না সে বোঝে না সিরিয়ালের পাখি, বধুবরণ, জলনূপুর, তোমায় আমায় মিলে, দিরা গমন, গৌরিদাস, বোমকেশসহ বিভিন্ন সিরিয়ালের নামকরণ এবং নায়িকাদের ছবি সম্মলিত খাতা দেদারছে দোকানগুলোতে বিক্রি ও শিক্ষার্থীদের ব্যবহার করতে দেখা যাচ্ছে।
এব্যাপারে পাবনা সদর উপজেলার কলুনিয়া সরকারি প্রাথমিক বিদ্যালয়ের প্রধান শিক্ষক আলাউদ্দিন পরাগ বলেন, কয়েকদিন আগে ৫ম শ্রেণীর আঁখি নামের এক ছাত্রীর কাছে এ ধরনের ৫টি খাতা পেয়ে আমরা জব্দ করেছি এবং এ ধরনের খাতা যেন কেউ ব্যবহার না করে সে ব্যাপারে স্কুলের শিক্ষার্থীদের নিষেধ করেছি।
তিনি আরো বলেন, শিক্ষার্থীরা এ ধরনের খাতা বাড়িতে ব্যবহার করছে। আমাদের নিষেধের কারণে তারা স্কুলে আনছে না বলে আমরা জানতে পেরেছি। এজন্য আমরা উঠান বৈঠকের মাধ্যমে অভিভাবকদের সচেতন করার উদ্যোগ নিয়েছি। ইতিমধ্যে আমার স্কুলের আশপাশের দোকানগুলোতে এধরনের খাতা বিক্রি থেকে বিরত থাকার জন্য প্রতিষ্ঠানের পক্ষ থেকে নিষেধ করেছি।
সদর উপজেলার কুঠিপাড়া সরকারি বালিকা উচ্চ বিদ্যালয়ের প্রধান শিক্ষক এসএম সালাহ উদ্দিন জানান, আমার বিদ্যালয়ের অধিকাংশ ছাত্রীদের এ ধরনের খাতা ব্যবহার করছে। অভিভাবকদের বলে এবং স্কুল কমিটিকে বলেও এই খাতা ব্যবহার থেকে ছাত্রীদের বিরত রাখতে পারছেন না বলে তিনি অসহায়ত্ব প্রকাশ করেন।
তিনি আরো বলেন, আমরা ইতিমধ্যে এসব বন্ধের জন্য মা সমাবেশ, অভিভাবক সমাবেশ ও উঠান বৈঠক করেছি। কিন্তু কাজের কাজ কিছুই হচ্ছে না। তিনি মনে করেন এই খাতা শুধু শিক্ষকদের পক্ষে বন্ধ করা সম্ভব নয়, এজন্য দরকার অভিভাবকের সচেতনা ও প্রশাসনের কঠোর পদক্ষেপ।
এ বিষয়ে আটঘরিয়া উপজেলার দেবত্তর গ্রামের আক্কাজ আলী জানান, আমার সন্তান একদিন স্কুল থেকে এসে পাখি খাতা কিনে দেয়ার জন্য বায়না ধরে। আমি তাকে নিয়ে একটি স্টেশনারির দোকানে গিয়ে দেখতে পাই ওই দোকানে জলনূপুর, কিরণমালাসহ বিভিন্ন ভারতীয় সিরিয়ালের নাম ও নায়ক নায়িকাদের রঙিন ছবি সম্বলিত খাতা। শিশুশিক্ষা উপকরণে এ ধরনে অশ্লিলতা দেখে আমি সন্তানকে খাতা কিনে দিতে না চাইলে সে স্কুলে যাবে না বলে জেদ ধরে। সন্তানের ক্ষতি হবে বুঝেও আমি বাধ্য হয়ে কিনে দেই।
এ ব্যাপারে আফরিনা আক্তার, কানিজ ফাতেমা ফাল্গুনী, সাঈদা পারভীনসহ কয়েকজন গৃহবধুর সাথে কথা হলে তারা বলেন, বাচ্চাদের যন্ত্রণায় অতিষ্ট হয়ে যাচ্ছি। বিষয়টি নিয়ে উদ্বিগ্নতারও আমাদের শেষ নাই। জেলা প্রশাসনকেই অশ্লিল খাতা বন্ধে দ্রুত এগিয়ে আসা উচিৎ। তারা সংশ্লিষ্ট বিভাগকেই দায়ী করেন।
পাবনা শহরের কয়েকটি দোকনদারের সাথে কথা বললে তারা জানান, তারাও বোঝে; শিশুদের হাতে এ ধরনের খাতা তুলে দেয়া ঠিক হচ্ছে না। এমনকি উপজেলা পর্যায় থেকেও আমাদের পাইকারী ক্রেতারা এসব খাতার অর্ডার দিচ্ছে। তাই আমরা ব্যবসায়ীক স্বার্থেই বিক্রি করতে বাধ্য হচ্ছি।
তারা অভিযোগ করেন, এগুলো ঢাকার দোয়া প্রডাক্টসসহ ঢাকা ও বগুড়ার কিছু বেনামী প্রেস থেকে এসব শিশুদের খাতা ছাপা হচ্ছে। যার কোন নাম কিংবা ঠিকানা খাতার পিছনে নেই।
এব্যাপারে পাবনার ভারপ্রাপ্ত অতিরিক্ত জেলা প্রশাসক (শিক্ষা ও আইসিটি) সালমা খাতুন বলেন, বিষয়টি আমার জানা নেই। আমি বিষয়টি খোঁজ নিব। সত্যতা পাওয়া গেলে আমি প্রয়োজনীয় পদক্ষেপ গ্রহণ করবো।


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বাংলার মীরজাফর তিনজন সংখ্যালঘু নেতা ভারতের প্রধানমন্ত্রী মিসেস ইন্দিরা গান্ধীর সঙ্গে দেখা করেন এবং তার কাছে 'বাংলাদেশকে ভারতের একটি অংশ করে রাখার'প্রস্তাব দেন?

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বাংলার মীরজাফর 

তিনজন সংখ্যালঘু নেতা ভারতের প্রধানমন্ত্রী মিসেস ইন্দিরা গান্ধীর সঙ্গে দেখা করেন এবং তার কাছে 'বাংলাদেশকে ভারতের একটি অংশ করে রাখার' প্রস্তাব দেন।

হুমায়ুন রশীদ চৌধুরী : মুক্তিযুদ্ধ চলাকালীন অস্থায়ী বাংলাদেশ সরকারের সঙ্গে ভারতের কেন্দ্রীয় সরকারের যোগাযোগ রক্ষা করার দায়িত্ব আমার ওপর অর্পিত ছিল। সেই সূত্রে প্রধানমন্ত্রীর ব্যক্তিগত স্টাফদের সঙ্গে আমার হার্দিক সম্পর্ক গড়ে ওঠে। প্রধানমন্ত্রীর এক ব্যক্তিগত স্টাফ আমাকে ২৯ ডিসেম্বর ১৯৭১-এ জানান যে, আগের দিন অর্থাৎ ২৮ ডিসেম্বর তিনজন  সংখ্যালঘু নেতা, যাদের মধ্যে চিত্তরঞ্জন সূতার ছিলেন একজন, প্রধানমন্ত্রীর সঙ্গে দেখা করেন। তারা তাঁর কাছে বাংলাদেশকে ভারতের অংশ করে রাখার প্রস্তাব রাখেন। প্রধানমন্ত্রী তাদের প্রস্তাবের জবাবে বলেন, "ইয়ে না মুমকীন হ্যায়।" প্রধানমন্ত্রীর ওই ব্যক্তিগত স্টাফ সেই সময় সেখানে ছিলেন। তিনিই ওই সাক্ষাৎকারের ব্যবস্থা করে দেন।

পরে আমি বাংলাদেশ সরকারকে বিষয়টি অবহিত করি। কিন্তু তাদের বিরুদ্ধে কোন ব্যবস্থা নেয়া হয় না। আসলে, তারা, কিছু সংখ্যালঘু নেতা চেয়েছিলেন বাংলাদেশকে সিকিম ধরণের ভারতীয় অংশ করতে॥"

- বাংলাদেশের স্বাধীনতা যুদ্ধে র এবং সিআইএ / মাসুদুল হক ॥ [মীরা প্রকাশন - ফেব্রুয়ারী, ২০০১ । পৃ: ১৪০-১৪৩]
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Jamiat Ahlihadees J&K Press Release To Sachnews Jammu Kashmir Bilal Habib

नेपाल फिर नहीं बनेगा हिंदू राष्ट्र नेपाल के सांसदों ने देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव को भारी बहुमत से खारिज कर दिया है। संविधान सभा (सीए) ने साफ किया कि नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहेगा। सात साल पहले नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया था।

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नेपाल के सांसदों ने देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव को भारी बहुमत से खारिज कर दिया है। संविधान सभा (सीए) ने साफ किया कि नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष देश बना रहेगा। सात साल पहले नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया गया था।

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गाँवों के विकास पर भी खर्च किया जाए स्मार्ट सिटी जितना पैसा- डॉ.राकेश सिंह राना जिस 48 हज़ार करोड़ रुपये से स्मार्ट सिटी बनेंगे, यदि इ्सी प्रकार 48 हज़ार करोड़ रुपये गाँव की मूलभूत ज़रूरतों पर खर्च किये जाएं तो पूरे देश के गाँव की मूलभूत ज़रूरते पूरी जो जायेंगी

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जिस 48 हज़ार करोड़ रुपये से स्मार्ट सिटी बनेंगे, यदि इ्सी प्रकार 48 हज़ार करोड़ रुपये गाँव की मूलभूत ज़रूरतों पर खर्च किये जाएं तो पूरे देश के गाँव की मूलभूत ज़रूरते पूरी जो जायेंगी
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‪#‎विकास‬ सिर्फ मंच से चिल्लाने का शब्द बन गया जो नजर नहीं आता। http://www.hastakshep.com/…/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%… ‪#‎IBN7Condemns‬ ‪#‎USOpen‬ ‪#‎RashtravadiBlast‬

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‪#‎विकास‬ सिर्फ मंच से चिल्लाने का शब्द बन गया जो नजर नहीं आता।
http://www.hastakshep.com/…/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%…‪#‎IBN7Condemns‬
‪#‎USOpen‬
‪#‎RashtravadiBlast‬

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गुलमिया अब हम नाहीं बजइबो अजदिया हमरा के भावेले https://www.youtube.com/watch?v=AaL7C94GN-g

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गुलमिया अब हम नाहीं बजइबो
अजदिया हमरा के भावेले

Published on 14 Sep 2015

A unity song for the release of Com. Hem and all other political prisoners.

Gorakh's revolutionary song performed by all democratic and progressive political, cultural organizations and several individuals including RCF, Jai Bheem Kala Manch, Dastak, Jagriti Natya Manch, DSU, JSM, Janrang, Kanhaiya, Vrittant, Krittika and many others.

28 August 2015
JNU

A unity song for the release of Com. Hem and all other political prisoners. Gorakh's revolutionary song performed by all democratic and progressive...

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മതത്തേയും ഭരണകൂടത്തേയും ഇന്ത്യ വേര്‍തിരിക്കേണ്ടതുണ്ട്- സീതാറാം യെച്ചൂരി

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മതസഹിഷ്ണുതയുടെ ഇത്തിരിവട്ടത്തിലാണ് മതേതരത്വത്തെ മിക്കപ്പോഴും മനസിലാക്കിയിട്ടുള്ളത്. മതസഹിഷ്ണുതയുമായി മാത്രം ബന്ധപ്പെടുത്തിയല്ലാതെ ഇന്ത്യന്‍ സാഹചര്യത്തില്‍ ഇതിന് കൂടുതല്‍ വിശാലമായ അര്‍ത്ഥമുണ്ടെന്ന് സൂചിപ്പിച്ചാണ് ഞാന്‍ തുടങ്ങുന്നത്. മതസൗഹാര്‍ദവും സഹിഷ്ണുതയും വിശാലമായ ഇന്ത്യ എന്ന ആശയത്തിന്റെ ഒരു ഘടകം തന്നെയാണ്. ബ്രിട്ടീഷ് കൊളോണിയല്‍ ഭരണത്തില്‍ നിന്നും സ്വാതന്ത്ര്യത്തിനായി നടന്ന ഐതിഹാസിക ജനകീയ സമരത്തിലാണ് ഇന്ത്യ എന്ന ആശയം ഉടലെടുക്കുന്നത്. എന്താണീ 'ഇന്ത്യ എന്ന ആശയം'? ലളിതമായി പറഞ്ഞാല്‍, സങ്കീര്‍ണമായ വൈവിധ്യങ്ങള്‍ ഉണ്ടെങ്കിലും ഒരു രാജ്യം എന്ന നിലക്ക് അതിന്റെ വൈവിധ്യങ്ങളെയും വിഭജനങ്ങളെയും മറികടന്ന് അതിന്റെ ജനതയുടെ ഗണ്യമായ തരത്തിലുള്ള ഒരു സമഗ്രമായ ഐക്യത്തിലേക്ക് നീങ്ങുന്ന ഒന്ന് എന്നു പറയാം.

ഇന്ത്യയുടെ ഭാഷാ, മത, വംശ, സാംസ്‌കാരിക വൈവിധ്യം അസാമാന്യമാണ്. ഔദ്യോഗികമായിതന്നെ ഇവിടെ 1618 ഭാഷകളുണ്ട്. 6400 ജാതികള്‍, 6 പ്രമുഖ മതങ്ങള്‍, അതില്‍ 4 എണ്ണം ഇവിടെ ഉണ്ടായതാണ്, നരവംശശാസ്ത്രപരമായി നിര്‍വചിച്ച വംശ വിഭാഗങ്ങള്‍, ഇതെല്ലാം രാഷ്ട്രീയമായുള്ള ഭരണനിര്‍വഹണത്തിന് കീഴിലാണ്. ഇന്ത്യയില്‍ 29 പ്രധാന മത-സാംസ്‌കാരിക ഉത്സവങ്ങളും, ലോകത്തിലേറ്റവും കൂടുതല്‍ മതപരമായ അവധി ദിനങ്ങളും ഉണ്ടെന്നത് ഈ വൈവിധ്യത്തിന്റെ പരപ്പ് കാണിക്കുന്നു.

ഇന്ത്യ എന്ന ആശയം യാഥാര്‍ത്ഥ്യമാകേണ്ടത് യുക്തിസഹമായാകണം- നാലാമത് ചിന്ത രവി അനുസ്മരണത്തില്‍ സീതാറാം യെച്ചൂരി...

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Nepal rejects Hindu nation calls; protesters, police clash

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Proposal to make Nepal a Hindu state rejected by its Constituent Assembly

Nepal to stay secular, proposal for a Hindu nation rejected

Times of India - ‎18 hours ago‎
The proposal made by pro-Hindu National Democratic Party Nepal to amend the constitution to make Nepal a Hindu state was rejected by more than two-thirds of lawmakers who declared that the country should remain secular as the constituent assembly ...

Nepal rejects Calls for Hindu Rashtra, Violent Protests Erupt

Odisha News Insight - ‎19 hours ago‎
Nepal-Flag Nepal's Constituent Assembly rejected calls to make the Himalayan Nation 'Hindu Rashtra' again, sparking violent protests across the country. Nepal was a Hindu Nation for centuries before being converted into a Secular State following the ...

Nepal rejects calls to revert nation to Hindu state; police, protesters clash

Times of India - ‎19 hours ago‎
The constitution has been delayed by years of disagreements between Nepal's main political parties, and the voting on the draft " done clause by clause and expected to take at least a couple of days " is seen as major progress. The three main parties ...



अमेरिका र भारतको विज्ञप्ति एकै दिन

संवैधानिक प्रक्रियाको स्वागत, सकेसम्म सबैलाई समेटन आग्रह


प्रत्यक्ष निर्वाचित कार्यकारी राष्ट्रपतिको प्रस्ताव अस्वीकृत

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राजसंस्थाको माग बहुमतले अस्वीकृत

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संविधान​सभामा आज धारा ५८ पछिका धारामा मतदान हुँदै

-विष्णु बुढाथोकी



हाम्रो आन्दोलन 'सेफ ल्यान्डिङ' चाहन्छः लेखी

सरकारसँगको वार्ता सकारात्मक बन्दै, चाँडै समाधान निस्कन्छ होला

मस्यौदामा हाम्रा धेरै माग पुरा भएका छन्। धर्म निरपेक्षता, समावेशी समानुपातिकता, थारू आयोग गठन लगायतका मुद्धा सम्बोधन भयो। तर, थारूको भूमिका बेगर नै प्रदेश संरचनाको निर्माण भयो। संवाद भए समस्या समाधान हुन्छ। विस्तृतमा

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Blast in Nepal Church and Hindutva Leaflet spilled! নেপালে গির্জায় বিস্ফোরণ, হিন্দু সংগঠনের লিফলেট উদ্ধার

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Blast in Nepal Church and Hindutva Leaflet spilled!

নেপালে গির্জায় বিস্ফোরণ, হিন্দু সংগঠনের লিফলেট উদ্ধার

নেপালে কর্মকর্তারা জানাচ্ছেন, দক্ষিণাঞ্চলীয় ঝাপা জেলায় গত রাতে এবং আজ সকালে দফায় দফায় বিস্ফোরণের ঘটনা ঘটেছে।পুলিশের একজন কর্মকর্তা বিবিসিকে জানিয়েছেন, বিস্ফোরণগুলো ঘটেছে দামাক, খাজুরগাছি এবং সুরুঙ্গার কয়েকটি গির্জার সামনে।
এ ঘটনায় তিনজন পুলিশ আহত হয়েছে।

বিস্ফোরণের পর এসব জায়গায় হিন্দু মোর্চা নেপাল নামে একটি সংগঠনের লিফলেট পাওয়া গেছে।

নেপালের সাংবিধানিক পরিষদ দেশটিকে ধর্ম নিরপেক্ষ রাষ্ট্র হিসেবে ঘোষণা করার কয়েক ঘণ্টার মধ্যেই এই বিস্ফোরণের ঘটনা ঘটল।বেশ কয়েকটি হিন্দু সংগঠন দাবি করে আসছে যে, নেপালকে হিন্দু রাষ্ট্রের মর্যাদা দিতে হবে, যেমনটি ২০০৭ সাল পূর্ববর্তী রাজতন্ত্রের আমলে নেপাল 'বিশ্বের একমাত্র হিন্দু রাজত্বের' মর্যাদা পেত।

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Pash fought fearlessly for the landless peasants and workers and faced indiscriminate torture

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Pash fought fearlessly for the landless peasants and workers and faced indiscriminate torture 

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Pash was only 37 when he took his last breath but his glory continue to grow leap and bound each passing years. Most of his poetry work has been translated in...
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जेएनयू में एबीवीपी की जीत के मायने

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जेएनयू चुनावों के नतीजे क्या बताते हैं? दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जीत उतने प्रश्न नहीं खड़े करती जितने जवाहर लाल...
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नेतन्याहू इसराइल के लिए सबसे बड़ा खतरा - इसराइली फिल्म निर्देशक इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू इसराइल के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। यह हमारा कहना नहीं है बल्कि यह कहना है जाने-माने इसराइली फिल्म निर्देशक व निर्माता डोर मोर्रेह का।

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इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू इसराइल के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। यह हमारा कहना नहीं है बल्कि यह कहना है जाने-माने इसराइली फिल्म निर्देशक व निर्माता डोर मोर्रेह का।
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हत्यारों का कोई दोष नहीं है गुसाई। भगवा हो गया इंद्रधनुष भी

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हत्यारे वे हाथ नहीं होते जिसने बंदूक पकड़ी हो बम फोड़ा हो, असल हत्यारा वह दिमाग है, जिसने उसे हत्यारा बना दिया है।...उस हत्यारे का चेहरा सबसे...
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Kamal Joshi · क्यों याद आये फिर..? चैन से नहीं रहने दोगे.....! अब करो फिर मोटरबाइक रवां...

मजहबी मुक्तबाजारी सियासत का खेल - कश्मीर को फिर बांग्लादेश बना दिया जाये

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सच यही है कि कश्मीर को भारत से अलहदा करने की मुहिम में लगे हिंदू और मुसलमान दोनों संघ के ग्लोबल हिंदुत्व के एजंडे को अंजाम दे रहे हैं। कश्मीर का सच छुपाने वाले लोग भारत के बंटवारे...

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"RSS, PDP, BJP or any power on earth, cannot dictate us what to eat"

Next: চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন, চাই শুধু নাগরিকত্ব! শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি! চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান! চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল! জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবন।স্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি! উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ! ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি! আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে! উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত ইউরোপে শরণার্থী সংকট পলাশ বিশ্বাস
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Extracts of Press Conference By Mirwaiz Qazi Yasir at Anantnag : Anantnag, Sep 15 : sachnews Jammu Kashmir : "Ummat e Islami to Organise a Token Hunger strike on Thursday against Beef Ban at Eid Gah" "People who used to sacrifice Sheep for Qurbani should Sacrifice bovines this Eid to uphold the Teachings of Allah," "We must not sacrifice individually but collective sacrifices should be arranged in Eid Gahs'' "People proved that Qazi Nissar still lives in every nook & corner of valley" "RSS, PDP, BJP or any power on earth, cannot dictate us what to eat"

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    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন, চাই শুধু নাগরিকত্ব! শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি! চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান! চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল! জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবন।স্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি! উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ! ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি! আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে! উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত ইউরোপে শরণার্থী সংকট পলাশ বিশ্বাস

    Next: চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন, চাই শুধু নাগরিকত্ব! শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি! চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান! চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল! জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবন।স্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি! উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ! ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি! আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে! উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত ইউরোপে শরণার্থী সংকট পলাশ বিশ্বাস
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    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন,

    চাই শুধু নাগরিকত্ব!

    শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি!

    চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান!

    চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল!


    জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবনস্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি!

    উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ!

    ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি!

    আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে!

    উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত

    পলাশ বিশ্বাস

    প্রসঙ্গ1ঃ

    আয়লানের কার্টুন এঁকে সমালোচিত শার্লি এবদো

    আয়লানের কার্টুন এঁকে সমালোচিত শার্লি এবদো

    সিরিয়ার তিন বছরের শিশু আয়লান কুর্দির কার্টুন ছেপে সমালোচনার মুখে ফ্রান্সের জনপ্রিয় ফ্রেঞ্চ ম্যাগাজিন শার্লি এবেদো। দ্য হাফিংটন পোস্টের প্রতিবেদনে শার্লি এবদোর ওই কার্টুন প্রকাশ নিয়ে তুমুল সমালোচনা করা হয়েছে।


    প্রসঙ্গ 2ঃ

    হিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্রই থাকছেহিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্রই থাকছে

    পার্লামেন্টে ভোটাভুটির পর হিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্র হিসেবেই থেকে যাচ্ছে। ৬০১ সদস্যের গণপরিষদের সদস্যদের মধ্যে দুই তৃতীয়াংশরও ভোট পড়ল ধর্মনিরেপক্ষ রাষ্ট্রের দিকে। সেই সঙ্গে প্রস্তাবিত নতুন সংবিধানে হিন্দু রাষ্ট্রে পরিণত হওয়ার প্রস্তাব বাতিল হয়ে গেল।

    নেই আর ধারণ ক্ষমতা, শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখওনেই আর ধারণ ক্ষমতা, শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখও

    শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখও। বিপুল মানুষের ঢলকে জায়গা দিতে তাঁরা অক্ষম বলে জানিয়ে দিয়েছে জার্মান প্রশাসন। শরণার্থীদের জায়গা দেওয়া নিয়ে দ্বিধা এখনও কাটেনি ইউরোপীয় দেশগুলোর। তবে ভিটেমাটি হারানো মানুষগুলোর পাঁশে দাঁড়ানোর দাবি নিয়ে পথে নেমেছে সাধারণ মানুষ।  শরণার্থী আশ্রয় দেওয়ার বিরোধিতা করেও চলছে পাল্টা  মিছিল।

    কে চায় পুনর্বাসন?

    কেন চাই করুণা?

    কেন চাই সহানুভূতি?

    কাদের সমর্থন চাই?

    ভিক্ষা কেন চাই?


    আমাদের,আমরা যারা উদ্বাস্তু,আমরা যারা বাস্তুহারা,আমরা যারা জল জমি জঙ্গল আসমান কুদরত থেকে বেদখল,আমরা যারা রহমত নিয়ামত বরকত থেকে বেদখল,আমরা যারা দোয়া,ইবাদত,প্রর্থনা থেকে বেদখল,আমারা যারা ইতিহাস ভূগোল থেকে বেদখল,আমরা যারা মনুষত্ব থেকে বেদখল,আমরা যারা সভ্যতা থেকে বেদখল,বাবার হাত ছাড়িযে আমরা যারা সাত দরিয়া তেরো নদীতে বিশ্ব জুড়ে আইলানের ছবি শুধু,আমাদের নাগরিকত্বের কোনো অধিকার নেই!


    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন,চাই শুধু নাগরিকত্ব!

    শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি!


    চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান!

    চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল!


    আমি জন্ম জন্মান্তরে বিশ্বাস করি না

    আমি কর্মফলে বিশ্বাস করি না

    আমি ধর্মে বিশ্বাস করি না


    তবু আমাদের,আমাদের বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটে,আমাদের মানে উদ্বাস্তুদের বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটে আগের জন্মের গপ্পো হয়ে গেছে,তাঁরা যখন বেঁচে ছিলেন না বাঁচার জীবন যন্ত্রণায়,তখনো সেই জন্ম ভিটেয় তাঁদের কোনো অধিকার ছিল নাঠিক যেমন বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটেয় আমাদের কোনো অধিকার নেই


    জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবনস্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি!


    তবু বাবার হাত ছাড়িয়েও,ভেসে গিয়েও আমরা সবসময় মরতে পারিনা!


    কাঁটাতারে সীমান্তরেখায় মনুষত্য ও সভ্যতাকে যারা ফ্যালানি করে রেখেছে,তাঁদের ধর্ম,তাঁদের রাজনীতি,তাঁদের অর্থব্যবস্থা,তাঁদের প্রভুত্ব,তাঁদের একচিটিয়া আধিপাত্য আমােদর শিঙি মাগুর মাছের মত জিইয়ে রাখে!


    উদ্বাস্তুদের থেকে অনেক ভালো হারানো পদ্মা নদীর ঈলিশ মাছ!তাঁদের জিইয়ে রেখে ভোটব্যান্কের রাজনীতি হয় না!

    মরে গেলেও তাঁদের সীমান্ত পেরোতে পাসপোর্ট ভিসা লাগে না!


    আমি আমার বাবাকে সেই মরা ঈলিশ মাছের মত ঝাঁপিয়ে ঝাঁপিয়ে সীমান্ত পেরিয়ে যেতে দেখেছি সেই বাপ ঠাকুর্দার ভিটে মাটি স্পর্শ করার স্মৃতি দংশনে,দহনে!


    আমি আমার বাবাকে সেই মরা ঈলিশ মাছের মত ঝাঁপিয়ে ঝাঁপিয়ে সীমান্ত পেরিয়ে যেতে দেখেছি সেই বাপ ঠাকুর্দার ভিটে মাটি স্পর্শ করার স্মৃতি দংশনে,দহনে!জন্ম তেকে জন্মান্তরে!


    জন্ম থেকে জন্মান্তরের ঔ কাঁটাতাঁর বিদ্ধ রক্তাক্ত জীবনের ফোঁটা ফোঁটা রক্ত আমার হৃদয়ে অসংখ্য নদী হয়ে বয়ে চলে লমহা লমহাঃঔ খাংটাতারের ধর্মে,রাজনীতিতে,ঔ বহিস্কার ও অস্পৃশ্যতার অর্থব্যবস্থায়,ঔ একচিটিয়া শাসনক্ষমতার নাগপাশে স্মৃতিহীন আমরা উদ্বাস্তুরা তবু কেন বেঁচে থাকি বেনাগরিক,অবান্ছিত,ঘৃণা ও করুণার পাত্র হয়ে,ইহাই আমার জীবনযন্ত্রণা আর সেই স্মৃতি দহনে,সেই সমাজ বাস্তবের নির্মম ঘাতে প্রতিঘাতে জমীন থেকে আসমানে আমি কোনো ঈশ্বরের দেখা পাইনা!আমি স্বর্গে ওঠার কোনো সিঁড়ি দেখতে পাই না!


    আমি উত্সবের অঙ্গ হতে পারিনা কোনো দিন!

    আমি মধুচক্রের দিগন্ত বলয়ে,ঈন্দ্রধনুষের সব রঙ্গের মাঝখানেও সেই ধূসর পান্ডুলিপি হয়ে আছি.যার সব লেখা আমি জন্মানোর আগেই মুছে গেছে!


    আহা কি আনন্দ আমার আনন্দ হতে পারে না কোনোদিন!

    আমি পূবের নই!

    আমি পশ্চিমের নই!


    উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ!

    সেই অসতী সতীর দেহখন্ড যেখানে পড়েছিল,সেি উত্তরের মানুষ আমি!


    পূবে আমার শিকড় নেই!

    পশ্চিমে আমার শিকড় নেই!

    হিমালয়ে আমি আমার শিকড় গেঁথে রেখেচি!


    আমি সবচেয়ে বেশি ঘৃণা করি সেই ধর্মের রাজনীতিক যার পরিণামে আমরা উদ্বাস্তুরা আগের জন্মের কথার মত বেমালুম ভুলে গিয়েছি সেই ছয় ঋতু.যা পৃথীবীতে আর কোথাও নেই!


    আমি সবচেয়ে বেশি ঘৃণা করি সেই ক্ষমতা বদলে,সেই জনসংখ্যা স্থানান্তরণের রক্তপাতে যারা ক্ষমত দখল করেছিল রক্তাক্ত খন্ডিত দেশের কাঁটাতারের,তাঁদের যারা আজও একচিটিয়া ক্ষমতায়,একচিটিয়া আধিপাত্যে আমাদের কাঁটাতারে ঝুলিয়ে বেনাগরিক লাওয়ারিশ করে রেখেছে!


    ধর্মে যারা বিশ্বাস করেন,আমি বেশ জানি ইহা তাহাদের বেঁচে থাকার শেষ সম্বল!ইবাদত,দোয়ার,পুজো পার্বনের অধিকারকে আমি মনুষত্বের অধিকার মনে করি!


    ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি!

    আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে!

    তথ্যসূত্রঃhttp://dw.com/p/1GAB2

    উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত


    উদ্বাস্তু


    চল, তাড়াতাড়ি কর,

    আর দেরি নয়, বেরিয়ে পড় বেরিয়ে পড় এখুনি।

    ভোররাতের স্বপ্নভরা আদুরে ঘুমটুকু নিয়ে

    আর পাশে ফিরতে হবে না।

    উঠে পড় গা ঝাড়া দিয়ে,

    সময় নেই-

    এমন সুযোগ আর আসবে না কোন দিন।

    বাছবাছাই না ক'রে হাতের কাছে যা পাস

    তাই দিয়ে পোঁটলাপুঁটলি বেঁধে নে হুট ক'রে।

    বেড়িয়ে পড়,

    দেরী করলেই পস্তাতে হবে

    বেরিয়ে পড়-

    ভূষণ পাল গোটা পরিবারটাকে ঝড়ের মতো নাড়া দিলে।

    কত দূর দিগন্তের পথ-

    এখান থেকে নৌকা ক'রে ষ্টিমার ঘাট

    সেখান থেকে রেলষ্টেশন-

    কী মজা, আজ প্রথম ট্রেনে চাপাবি,

    ট্রেন ক'রে চেকপোষ্ট,

    সেখান থেকে পায়ে হেঁটে-পায়ে হেঁটে-পায়ে হেঁটে-

    ছোট ছোলেটা ঘুমমোছা চোখে জিঞ্জেস করলে,

    সেখান থেকে কোথায় বাবা?

    কোথায় আবার! আমাদের নিজের দেশে।

    ছায়াঢাকা ডোবার ধারে হিজল গাছে

    ঘুমভাঙা পাখিরা চেনা গলায় কিচিরমিচির করে উঠল।

    জানালা দিয়ে বাইরে একবার তাকাল সেই ছোট ছেলে,

    দেখলে তার কাটা ঘুড়িটা এখনো গাছের মগডালে

    লটকে আছে,

    হাওয়ায় ঠোক্কর খাচ্ছে তবুও কিছুতেই ছিঁড়ে পড়ছে না।

    ঘাটের শান চ'টে গিয়ে যেখানে শ্যাওলা জমেছে

    সেও করুণ চোখে চেয়ে জিজ্ঞেস করছে, কোথায় যাবে?

    হিজল গাছের ফুল টুপ টুপ ক'রে এখনো পড়ছে জলের উপর,

    বলছে, যাবে কোথায়?

    তারপর একটু দূরেই মাঠে কালো মেঘের মত ধান হয়েছে-

    লক্ষীবিলাস ধান-

    সোনা রঙ ধরবে ব'লে। তারও এক প্রশ্ন- যাবে কোথায়?

    আরো দূরে ছলছলাৎ পাগলী নদীর ঢেউ

    তার উপর চলেছে ভেসে পালতোলা ডিঙি ময়ূরপঙ্খি

    বলছে, আমাদের ফেলে কোথায় যাবে?

    আমারা কি তোমার গত জন্মের বন্ধু?

    এ জন্মের কেউ নই? স্বজন নই?


    তাড়াতাড়ি কর- তাড়াতাড়ি কর-

    ঝিকিমিকি রোদ উঠে পড়ল যে।

    আঙিনায় গোবরছড়া দিতে হবে না,

    লেপতে হবে না পৈঁঠে-পিঁড়ে,

    গরু দুইতে হবে না, খেতে দিতে হবে না,

    মাঠে গিয়ে বেঁধে রাখতে হবে না।

    দরজা খুলে দাও, যেখানে খুশি চলে যা'ক আমাদের মত।

    আমাদের মত! কিন্তু আমরা যাচ্ছি কোথায়?

    তা জানিনা। যেখানে যাচ্ছি সেখানে আছে কী?

    সব আছে। অনেক আছে, অঢেল আছে-

    কত আশা কত বাসা কত হাসি কত গান

    কত জন কত জায়গা কত জেল্লা কত জমক।

    সেখানকার নদী কি এমনি মধুমতী?

    মাটি কি এমনি মমতামাখানো?

    ধান কি এমনি বৈকুন্ঠবিলাস?

    সোনার মত ধান আর রুপোর মতো চাল?

    বাতাস কি এমনি হিজলফুলের গন্ধভরা

    বুনো-বুনো মৃদু মৃদু?

    মানুষ কি সেখানে কম নিষ্ঠুর কম ফন্দিবাজ কম সুবিধাখোর?

    তাড়াতাড়ি করো, তাড়াতাড়ি করো-

    ভূষণ এবার স্ত্রী সুবালার উপর ধমকে উঠল:

    কী কত বাছাবাছি বাঁধাবাঁধি করছ,

    সব ফেলে ছড়িয়ে টুকরো-টুকরো ক'রে এপাশে-ওপাশে বিলিয়ে দিয়ে

    জোর কদমে এগিয়ে চলো,

    শেষ পর্যন্ত চলুক থামুক ট্রেনে গিয়ে সোয়ার হও,

    সোয়ার হতে পারলেই নিশ্চিন্তি।

    চারধারে কী দেখছিস? ছেলেকে ঠেলা দিল ভূষণ-

    জলা-জংলার দেশ, দেখবার আছে কী!

    একটা কানা পুকুর

    একটা ছেঁচা বাঁশের ভাঙা ঘর

    একটা একফসলী মাঠ

    একটা ঘাসী নৌকো-

    আসল জিনিস দেখবি তো চল ওপারে,

    আমাদের নিজের দেশে, নতুন দেশে,

    নতুন দেশের নতুন জিনিষ-মানুষ নয়, জিনিস-

    সে জিনিসের নাম কী?

    নতুন জিনিসের নতুন নাম-উদ্বাস্তু।


    ওরা কারা চলেছে আমাদের আগে-আগে-ওরা কারা?

    ওরাও উদ্বাস্তু।

    কত ওরা জেল খেটেছে তকলি কেটেছে

    হত্যে দিয়েছে সত্যের দুয়ারে,

    কত ওরা মারের পাহাড় ডিঙিয়ে গিয়েছে

    পেরিয়ে গিয়েছে কত কষ্টক্লেশের সমুদ্র,

    তারপর পথে-পথে কত ওরা মিছিল করেছে

    সকলের সমান হয়ে, কাঁধে কাঁধে মিলিয়ে,

    পায়ে-পায়ে রক্ত ঝরিয়ে-

    কিন্তু ক্লান্ত যাত্রার শেষ পরিচ্ছেদে এসে

    ছেঁড়াখোঁড়া খুবলে-নেওয়া মানচিত্রে

    যেন হঠাৎ দেখতে পেল আলো-ঝলমল ইন্দ্রপুরীর ইশারা,

    ছুটল দিশেহারা হয়ে

    এত দিনের পরিশ্রমের বেতন নিতে

    মসনদে গদীয়ান হয়ে বসতে

    ঠেস দিতে বিস্ফারিত উপশমের তাকিয়ায়।

    পথের কুশকন্টককে যারা একদিন গ্রাহ্যের মধ্যেও আনেনি

    আজ দেখছে সে-পথে লাল শালু পাতা হয়েছে কিনা,

    ড্রয়িংরুমে পা রাখবার জন্যে আছে কিনা

    বিঘৎ-পুরু ভেলভেটের কার্পেট।

    ত্যাগব্রতের যাবজ্জীবন উদাহরণ হয়ে থাকবে ব'লে

    যারা এত দিন ট্রেনের থার্ড ক্লাসে চড়েছে

    সাধারণ মানুষের দুঃখদৈন্যের শরিক হয়ে

    তারাই চলেছে এখন রকমারি তাকমার চোপদার সাজানো

    দশঘোড়ার গাড়ি হাঁকিয়ে

    পথচারীদের হটিয়ে দিয়ে, তফাৎ ক'রে দিয়ে

    সমস্ত সামনেওয়ালাকে পিছনে ফেলে

    পর-ঘর বিদেশী বানিয়ে।

    হ্যাঁ, ওরাও উদ্বাস্তু।

    কেউ উৎখাত ভিটেমাটি থেকে

    কেউ উৎখাত আদর্শ থেকে।


    আরো আগে, ইতিহাসেরও আগে, ওরা কারা?

    ঐ ইন্দ্রপুরী-ইন্দ্রপ্রস্থ থেকেই বেরিয়ে যাচ্ছে

    হিমালয়ের দিকে-

    মহাভারতের মহাপ্রস্থানের পঞ্চনায়ক ও তাদের সঙ্গিনী

    স্ব- স্বরূপ- অনুরূপা-

    যুদ্ধ জয় ক'রেও যারা সিংহাসনে গিয়ে বসল না

    কর্ম উদযাপন ক'রেও যারা লোলুপ হাতে

    কর্মফল বন্টন করল না নিজেদের মধ্যে,

    ফলত্যাগ করে কর্মের আদর্শকে রেখে গেল উঁচু ক'রে,

    দেখিয়ে গেল প্রথমেই পতন হল দ্রৌপদীর-

    পক্ষপাতিতার।

    তারপর একে একে পড়ল আর সব অহঙ্কার

    রূপের বিদ্যার বলের লোভের-আগ্রাসের-

    আরো দেখাল। দেখাল-

    শুধু যুধিষ্ঠিরই পৌছয়

    যে হেতু সে ঘৃণ্য বলে পশু বলে

    পথের সহচর কুকুরকেও ছাড়ে না।



    শরণার্থী

    উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকে

    ২০০৬ সালে দক্ষিণ লেবাননে অবস্থানকারী লেবাননীয় শরণার্থী

    শরণার্থী বা উদ্বাস্তু (ইংরেজি: Refugee) একজন ব্যক্তি যিনি নিজ ভূমিছেড়ে অথবা আশ্রয়েরসন্ধানে অন্য দেশেঅস্থায়ীভাবে অবস্থান করেন। জাতিগতসহিংসতা, ধর্মীয়উগ্রতা, জাতীয়তাবোধ,রাজনৈতিকআদর্শগত কারণে সমাজবদ্ধ জনগোষ্ঠীরনিরাপত্তাহীনতায়আক্রান্তই এর প্রধান কারণ। যিনি শরণার্থী বা উদ্বাস্তুরূপে স্থানান্তরিত হন, তিনি আশ্রয়প্রার্থী হিসেবে পরিচিত হন। আশ্রয়প্রার্থীব্যক্তির স্বপক্ষে তার দাবীগুলোকে রাষ্ট্র কর্তৃক স্বীকৃত হতে হবে।[১]

    ৩১ ডিসেম্বর, ২০০৫ সাল পর্যন্ত আফগানিস্তান, ইরাক, সিয়েরালিওন, মায়ানমার, সোমালিয়া, দক্ষিণ সুদান এবং ফিলিস্তিন থেকে বিশ্বের প্রধান শরণার্থী উৎসস্থল হিসেবে পরিচিতি পেয়েছে।[২]আইডিপিঅনুযায়ী বিশ্বের সবচেয়ে বেশী শরণার্থী ব্যক্তিএসেছে দক্ষিণ সুদানথেকে প্রায় ৫ মিলিয়ন। জনসংখ্যাঅনুপাতেসবচেয়ে বেশী আইডিপি রয়েছে আজারবাইজানে। সেখানে ২০০৬ সালের তথ্য মোতাবেক প্রায় আট লক্ষ শরণার্থী অন্যত্র আশ্রয় নিয়েছে।[৩]

    পরিচ্ছেদসমূহ

     [আড়ালে রাখো]

    সংজ্ঞার্থ নিরূপণ[সম্পাদনা]

    ১৯৫১ সালে জাতিসংঘ কর্তৃক শরণার্থীদের মর্যাদাবিষয়ক সম্মেলনেঅনুচ্ছেদ ১এ-তে সংক্ষিপ্ত আকারে শরণার্থীর সংজ্ঞাতুলে ধরে। একজন ব্যক্তি যদি গভীরভাবে উপলদ্ধি করেন ও দেখতে পান যে, তিনি জাতিগতসহিংসতা, ধর্মীয়উন্মাদনা, জাতীয়তাবোধ, রাজনৈতিকআদর্শ, সমাজবদ্ধ জনগোষ্ঠীরসদস্য হওয়ায় ঐ দেশের নাগরিকেরঅধিকারথেকে দূরে সরানো হচ্ছে, ব্যাপক ভয়-ভীতিকর পরিবেশ বিদ্যমান, রাষ্ট্র কর্তৃক পর্যাপ্ত নিরাপত্তা দিতে ব্যর্থ হচ্ছে; তখনই তিনি শরণার্থী হিসেবে বিবেচিত হন।[৪]১৯৬৭ সালের সম্মেলনের খসড়া দলিলেউদ্বাস্তুর সংজ্ঞাকে বিস্তৃত করা হয়। আফ্রিকাল্যাটিন আমেরিকায়অনুষ্ঠিত আঞ্চলিক সম্মেলনে যুদ্ধএবং অন্যান্য সহিংসতায়আক্রান্ত ব্যক্তি কর্তৃক নিজ দেশত্যাগকরাকেও অন্তর্ভূক্ত করা হয়।

    এ সংজ্ঞায় শরণার্থীকে প্রায়শঃই ভাসমান ব্যক্তিরূপেঅন্তর্ভূক্ত করা হয়। সম্মেলনে গৃহীত সংজ্ঞার বাইরে থেকে যদি যুদ্ধের কারণে নির্যাতন-নিপীড়নে আক্রান্ত না হয়েও মাতৃভূমি পরিত্যাগ করেন অথবা, জোরপূর্বক নিজ ভূমি থেকে বিতাড়িত হন - তাহলে তারা শরণার্থী হিসেবে বিবেচিত হবেন।[৫]

    দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধ[সম্পাদনা]

    ১৯৪২ সালে স্ট্যালিনগ্রাদের যুদ্ধেরুশ শরণার্থীদের অন্যত্র গমনের দৃশ্য।

    সংঘর্ষএবং রাজনৈতিক অস্থিতিশীলতারপ্রেক্ষাপটে দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধকালীন সময়ে অগণিতসংখ্যক লোক শরণার্থী হয়েছিলেন। যুদ্ধ শেষে একমাত্র ইউরোপেই৪০ মিলিয়নেরওঅধিক লোক শরণার্থী ছিল।[৬]১৯৪৩ সালে দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধে মিত্রশক্তিজাতিসংঘ ত্রাণ ও পুণর্বাসন প্রশাসন (ইউএনআরআরএ) গঠন করে। যার প্রধান কাজ ছিল দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধে অক্ষশক্তিরনিয়ন্ত্রণাধীন দেশসহ ইউরোপ ও চীনথেকে আগত শরণার্থীদেরকে সহায়তা করা। তাদের নিয়ন্ত্রণে ও প্রত্যক্ষ সহায়তায় ৭ মিলিয়ন লোক নিজ বাসভূমিতে ফিরে যায়। কিন্তু উদ্বাস্তু এক মিলিয়ন লোক মাতৃভূমিতে ফিরে যেতে অস্বীকৃতি জানায়।

    বিশ্বযুদ্ধের শেষ মাসে প্রায় পাঁচ মিলিয়ন জার্মান বেসামরিক নাগরিক পূর্ব প্রুশিয়া, পোমারানিয়াএবংসিলেসিয়ারাজ্য থেকে রেড আর্মিরপ্রচণ্ড আক্রমণের হাত থেকে রক্ষার লক্ষ্যে ম্যাকলেনবার্গ,ব্রান্ডেনবার্গএবং স্যাক্সনিতেউদ্বাস্তুহিসেবে আশ্রয়নেয়।

    পটসড্যাম সম্মেলনেরসিদ্ধান্ত মিত্রশক্তি অনুমোদন না করায় যুগোস্লাভিয়াএবং রোমানিয়ায়অবস্থানরত হাজার হাজার জাতিগত জার্মানদেরকে সোভিয়েত ইউনিয়নেদাস শ্রমের জন্য ফেরত পাঠানো হয়। বিশ্বের ইতিহাসে এটিই ছিল সবচেয়ে বেশী শরণার্থী স্থানান্তর প্রক্রিয়া। ১৫ মিলিয়ন জার্মানদের সবাই এতে অন্তর্ভূক্ত ছিলেন। এছাড়াও, দুই মিলিয়নেরও অধিক জার্মান বিশ্বযুদ্ধকালীন সময়ে বিতাড়িত হয়ে প্রাণ হারান।[৭][৮][৯][১০][১১]

    পূর্ব ইউরোপথেকে ব্যাপক সংখ্যায় দলে দলে লোক দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধেরপরবর্তী সময়ে অন্যত্র চলে যাওয়ার প্রেক্ষাপটে শরণার্থীরূপে বিবেচিত হয়। প্রধানতঃ ইউরোপীয় শরণার্থী হিসেবে ইহুদীএবং স্লাভগণজোসেফ স্টালিন, নাজিএবং দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধের প্রতিক্রিয়ার প্রেক্ষাপটে যুক্তরাষ্ট্রেআশ্রয়গ্রহণকে নিরুৎসাহিত করা হয়।[১২]

    রোহিঙ্গা জনগোষ্ঠী[সম্পাদনা]

    ১৯৯১-৯২ সালে আড়াই লক্ষাধিক মুসলিম রোহিঙ্গাশরণার্থী বার্মার (বর্তমান: মায়ানমার) সামরিক জান্তার নির্যাতন-নিপীড়ন থেকে মুক্তি পেতে বাংলাদেশেআশ্রয় নেয়। তাদের অনেকেই বিশ বছর যাবৎ বাংলাদেশে অবস্থান করছে। বাংলাদেশ সরকার তাদেরকে দু'টি ভাগে ভাগ করেছে। শরণার্থী ক্যাম্পেঅবস্থানকারী স্বীকৃত রোহিঙ্গা এবং বাংলাদেশী সম্প্রদায়ের সাথে মিশে যাওয়া অস্বীকৃত রোহিঙ্গা জনগোষ্ঠী রয়েছে। কক্সবাজারেরনয়াপাড়া এবং কুতুপালং এলাকার দু'টি ক্যাম্পে ত্রিশ হাজার রোহিঙ্গা বাস করছে।

    আরাকান রাজ্য থেকে গত কয়েক মাসে রোহিঙ্গাদের উপর ব্যাপক নির্যাতনের ফলে তাদের বাংলাদেশে অবৈধ অনুপ্রবেশঅব্যাহত রয়েছে। কঠোর নিবন্ধিকরণ আইনে রোহিঙ্গাদের নাগরিকত্ব, চলাফেরায় বিধিনিষেধ আরোপ, ভূমিবাজেয়াপ্তকরণ, বার্মার বৌদ্ধদেরঅবস্থানের জন্য জোরপূর্বক উচ্ছেদকরণ, ২০০৬ সালের শেষ পর্যায়ে পশ্চিমাঞ্চলীয় আরাকানের ৯টি মসজিদেরআশেপাশে অবকাঠামোগতপ্রকল্পগ্রহণ এর জন্য দায়ী বলে ধারনা করা হয়।[১৩][১৪]

    তথ্যসূত্র[সম্পাদনা]

    আরও পড়ুন[সম্পাদনা]

    • Refugee protection: A Guide to International Refugee Law UN HCR, Inter-Parliamentary Union, 2001

    • Alexander Betts Protection by Persuasion: International Cooperation in the Refugee Regime, Ithaca: Cornell University Press, 2009

    • Guy S. Goodwin-Gill and Jane McAdam The refugee in international law, Oxford: Oxford University Press, 2007

    • Matthew J. Gibney, "The Ethics and Politics of Asylum: Liberal Democracy and the Response to Refugees," Cambridge University Press 2004

    • Alexander Betts Forced Migration and Global Politics, London: Wiley-Blackwell, 2009

    • James Milner The Politics of Asylum in Africa, London: Palgrave MacMillan, 2009

    • James C. Hathaway The rights of refugees under international law, Cambridge: Cambridge University Press, 2005

    • Christina Boswell The ethics of refugee policy, Aldershot: Ashgate, 2005

    • Jane McAdam Complementary Protection, Oxford: Oxford University Press, 2007

    • Sarah Kenyon Lischer, Dangerous Sanctuaries, Ithaca: Cornell University Press, 2008

    • Susan F. Martin The uprooted - improving humanitarian responses to forced migration, Lanham, MD: Lexington Books, 2005

    • Stephen John Stedman & Fred Tanner (ed.) Refugee manipulation - war, politics, and the abuse of human suffering, Washington, D.C.: Brookings Institution Press, 2003

    • Arthur C. Helton The price of indifference - refugees and humanitarian action in the new century. Oxford: Oxford University Press, 2002

    • Gil Loescher, Alexander Betts and James Milner UNHCR: The Politics and Practice of Refugee Protection into the Twenty-First Century. London: Routledge, 2008

    • Frances Nicholson & Patrick Twomey (ed/) Refugee rights and realities - evolving international concepts and regimes, Cambridge: Cambridge University Press, 1999

    • James C. Hathaway (ed.) Reconceiving international refugee law, The Hague: Nijhoff, 1997

    • Gil Loescher Beyond charity - international cooperation and the Global Refugee Crisis, New York: Oxford University Press, 1993

    • Aristide R. Zolberg, Astri Suhrke & Sergio Aguayo Escape from violence - conflict and the refugee crisis in the developing world, New York: Oxford University Press, 1989

    বহিঃসংযোগ[সম্পাদনা]

    উইকিমিডিয়া কমন্সে শরণার্থীসংক্রান্ত মিডিয়া রয়েছে।


    উইকিঅভিধানে শরণার্থীশব্দটি খুঁজুন।

    ইউরোপ

    উদ্বাস্তু সংকট ইউরোপীয় আকার ধারণ করছে

    ইউরোপীয় কমিশন ফ্রান্স এবং ব্রিটেনকে চ্যানেল টানেলে উদ্বাস্তু সংকটের মোকাবিলায় সাহায্যের প্রস্তাব দিয়েছে৷ ফ্রান্সকে বিশ মিলিয়ন ইউরো দেওয়া হচ্ছে৷ ব্রিটেনকে পেয়েছে ২৭ মিলিয়ন৷

    Frankreich Flüchtlinge am Eurotunnel bei Calais

    পুলিশ জানাচ্ছে, মঙ্গলবার রাত্রেও ক্যালের কাছে চ্যানেল টানেল সাইটে ৫০০ উদ্বাস্তুকে ঘোরাফেরা করতে দেখা গেছে৷ ইতিপূর্বে প্রায় ৬০০ উদ্বাস্তু সাইটে ঢোকার চেষ্টা করে৷ তাদের মধ্যে চারশ'কে রোখা সম্ভব হয়৷ বাকি দুশো'র মধ্যে ১৮০ জনকে সাইটের ভিতরে ধরে বহিষ্কার করা হয়৷ ২০ জনকে গ্রেপ্তার করা হয়৷

    ইউরোপীয় কমিশনের অভিবাসন ও স্বরাষ্ট্র কমিশনার দিমিত্রিস আভ্রামোপুলোস জানিয়েছেন, ফ্রান্স ও ব্রিটেনের জন্য অভিবাসন সংক্রান্ত খাতে ২০১৪ থেকে ২০২০ সাল অবধি যে ২৬৬ মিলিয়ন, যথাক্রমে ৩৭০ মিলিয়ন ইউরো বরাদ্দ করা আছে, এই আর্থিক সাহায্য তা থেকেই আসছে৷

    উদ্বাস্তুদের রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির আবেদন পরীক্ষা করার কাজে ইউরোপীয় ইউনিয়নের সীমান্ত সুরক্ষা সংস্থা ফ্রন্টেক্স সাহায্য করতে পারে, বলে ইউরোপীয় কমিশন প্রস্তাব দিয়েছে৷ উদ্বাস্তুদের রেজিস্ট্রি করা, তারা যে সব দেশ থেকে আসছে এবং যে সব দেশ দিয়ে গেছে, সেই সব দেশের সঙ্গে যোগাযোগ স্থাপন করে তাদের পাসপোর্ট অথবা বিদেশযাত্রার অন্য কাগজপত্রের ব্যবস্থা করা, উদ্বাস্তুদের ফেরত পাঠানো, এ সব ক্ষেত্রে কমিশন আর্থিকভাবেও সাহায্য করতে প্রস্তুত, বলে ঘোষণা করেছেন আভ্রামোপুলোস৷

    কাঁটাতারের বেড়া

    Frankreich Flüchtlinge am Eurotunnel bei Calais

    ফ্রান্স টানেলের কাছে পুলিশ বাড়িয়েছে

    ইউরোপীয় ইউনিয়নের অপর প্রান্তে চলতি উদ্বাস্তু সংকটের ইউরোপীয় মাত্রা আরো স্পষ্ট৷ প্রতিদিন প্রায় দেড় হাজার প্রধানত আফগান বা সিরীয় উদ্বাস্তু জঙ্গলের পথে সার্বিয়া থেকে হাঙ্গেরিতে প্রবেশ করছে৷ পুলিশ তাদের নথিবদ্ধ করে আবার ছেড়ে দিচ্ছে, যাতে তারা কোনো অ্যাসাইলাম সেন্টারে গিয়ে নাম লেখাতে পারে৷ কিন্তু অধিকাংশ উদ্বাস্তুই একবার শেঙেন চুক্তি এলাকায় ঢুকে পড়ার পরে পশ্চিমের সমৃদ্ধ দেশগুলির দিকে যাত্রা করছে৷

    উদ্বাস্তুদের কাছে হাঙ্গেরি একটা ট্রানজিট রুট ছাড়া কিছু নয়৷ তা সত্ত্বেও হাঙ্গেরি এ সপ্তাহে সার্বিয়ার সঙ্গে তার ১৭৫ কিলোমিটার সীমান্ত বরাবর কাঁটাতারের বেড়া তৈরির কাজ শুরু করেছে৷ এছাড়া রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির নিয়মকানুন আরো কড়া করা হয়েছে, যাতে শীঘ্র বহিষ্কার করা সম্ভব হয়৷ অপরদিকে হাঙ্গেরি অপরাপর ইইউ দেশ থেকে উদ্বাস্তুদের ফেরৎ নিতেও অস্বীকার করছে, যদিও তা ইউরোপীয় ইউনিয়নের নিয়মাবলীর অঙ্গ৷

    যদি হয় সুজন, তেঁতুলপাতায় ন'জন

    • Griechenland - Füchtlinge vor Rhodos

    • প্রাণের মায়া না করে ইউরোপে আসার প্রচেষ্টা

    • প্রাণে বাঁচা

    • ২০শে এপ্রিল, ২০১৫: একটি ছোট পালের নৌকা গ্রিসের রোডোস দ্বীপের কাছে চড়ায় আটকালে সীমান্তরক্ষী আর স্থানীয় মানুষেরা বেশ কিছু উদ্বাস্তুকে উদ্ধার করেন৷ তা সত্ত্বেও এই দুর্ঘটনায় তিনজন উদ্বাস্তু জলে ডুবে মারা যান৷

    1234567

    জার্মানিতে ইতিমধ্যেই আগত উদ্বাস্তুদের জন্য আবাসের স্থান একটা সমস্যা হয়ে দাঁড়িয়েছে, বিশেষ করে পৌর প্রশাসনগুলির জন্য৷ কাজেই যে সব উদ্বাস্তুর রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির সম্ভাবনা কম – যেমন বলকান দেশগুলি থেকে আগত মানুষজন – তাদের আলাদা করে রেখে দু'সপ্তাহের মধ্যে সংশ্লিষ্ট অ্যাসাইলাম অ্যাপ্লিকেশনগুলির নিষ্পত্তি করার প্রস্তাব উঠেছে, যেমন স্যাক্সনি ও বাভারিয়া রাজ্যে৷

    বিভিন্ন ছোট-বড় জার্মান শহরের পৌর কর্তৃপক্ষ উদ্বাস্তু ও রাজনৈতিক আশ্রয়প্রার্থী সংক্রান্ত বিভিন্ন শিবির তথা কার্যালয়ের জন্য কর্মী নিয়োগ করতে গিয়ে হিমশিম খাচ্ছেন৷ প্রশাসন থেকে শুরু করে সমাজকর্মী, এমনকি চিকিৎসক, স্বল্প সময়ের মধ্যে যোগ্যতাসম্পন্ন কর্মী খুঁজে পাওয়া অথবা তাদের নিয়োগ দেওয়া খুব সহজ কাজ নয়৷ সেই সঙ্গে থাকছে অর্থসংস্থানের প্রশ্ন

    অপরদিকে ফেডারাল গুপ্তচর বিভাগ উদ্বাস্তু শিবির ও আবাসনগুলির উপর আক্রমণের ঘটনা ক্রমাগত বেড়ে চলায় চিন্তিত৷ ২০১৪ সালে এই ধরনের আগুন লাগানো থেকে শুরু করে ভাঙচুর বা পাথর ছোঁড়ার ঘটনা ২০১৩'র তুলনায় তিনগুণ বাড়ে৷ ২০১৫ সালে নাকি তাও ছাড়িয়ে যাবে৷

    এসি/এসবি (রয়টার্স, এএফপি)

    নির্বাচিত প্রতিবেদন

    শরণার্থী সংকট সামলাতে নাজেহাল ইউরোপ

    রাজনৈতিক শরণার্থী, নাকি অর্থনৈতিক অভিবাসী? ইউরোপে এই মুহূর্তে আশ্রয়প্রার্থীদের যে ঢল নেমেছে, তা নিয়ে উত্তাল সোশ্যাল মিডিয়াও৷ তর্ক-বিতর্কের মধ্যে নানা জটিল বিষয় উঠে আসছে৷ (29.07.2015)  

    জার্মানিতে রাজনৈতিক আশ্রয় প্রাপ্তির প্রক্রিয়া

    জার্মানিতে রাজনৈতিক আশ্রয়প্রার্থীর সংখ্যা ক্রমাগত বেড়েই চলেছে৷ কিন্তু এ দেশে রাজনৈতিক আশ্রয় পাবার বা প্রদানের প্রক্রিয়াটি কী? আসার পর, কী ধরনের সুযোগ-সুবিধা পাওয়া যায় জার্মানিতে? (28.06.2015)  

    মানুষ পাচার বন্ধে সামরিক অভিযান?

    ইউরোপীয় ইউনিয়ন উত্তর আফ্রিকার মানুষ পাচারকারীদের বিরুদ্ধে সামরিক পদক্ষেপ নিতে চায়৷ শেযমেষ তাদের উদ্বাস্তুদের ওপর গুলি চালাতে হবে, বলে ক্রিস্টফ হাসেলবাখ-এর আশঙ্কা৷ (28.06.2015)  

    প্রাণের মায়া না করে ইউরোপে আসার প্রচেষ্টা 


    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন, চাই শুধু নাগরিকত্ব! শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি! চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান! চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল! জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবন।স্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি! উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ! ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি! আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে! উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত ইউরোপে শরণার্থী সংকট পলাশ বিশ্বাস

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    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন,

    চাই শুধু নাগরিকত্ব!

    শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি!

    চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান!

    চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল!


    জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবনস্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি!

    উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ!

    ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি!

    আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে!

    উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত

    পলাশ বিশ্বাস

    প্রসঙ্গ1ঃ

    আয়লানের কার্টুন এঁকে সমালোচিত শার্লি এবদো

    আয়লানের কার্টুন এঁকে সমালোচিত শার্লি এবদো

    সিরিয়ার তিন বছরের শিশু আয়লান কুর্দির কার্টুন ছেপে সমালোচনার মুখে ফ্রান্সের জনপ্রিয় ফ্রেঞ্চ ম্যাগাজিন শার্লি এবেদো। দ্য হাফিংটন পোস্টের প্রতিবেদনে শার্লি এবদোর ওই কার্টুন প্রকাশ নিয়ে তুমুল সমালোচনা করা হয়েছে।


    প্রসঙ্গ 2ঃ

    হিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্রই থাকছেহিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্রই থাকছে

    পার্লামেন্টে ভোটাভুটির পর হিন্দু রাষ্ট্র নয়, নেপাল ধর্মনিরপেক্ষ রাষ্ট্র হিসেবেই থেকে যাচ্ছে। ৬০১ সদস্যের গণপরিষদের সদস্যদের মধ্যে দুই তৃতীয়াংশরও ভোট পড়ল ধর্মনিরেপক্ষ রাষ্ট্রের দিকে। সেই সঙ্গে প্রস্তাবিত নতুন সংবিধানে হিন্দু রাষ্ট্রে পরিণত হওয়ার প্রস্তাব বাতিল হয়ে গেল।

    নেই আর ধারণ ক্ষমতা, শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখওনেই আর ধারণ ক্ষমতা, শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখও

    শরণার্থীদের জন্য দরজা বন্ধ করল মিউনিখও। বিপুল মানুষের ঢলকে জায়গা দিতে তাঁরা অক্ষম বলে জানিয়ে দিয়েছে জার্মান প্রশাসন। শরণার্থীদের জায়গা দেওয়া নিয়ে দ্বিধা এখনও কাটেনি ইউরোপীয় দেশগুলোর। তবে ভিটেমাটি হারানো মানুষগুলোর পাঁশে দাঁড়ানোর দাবি নিয়ে পথে নেমেছে সাধারণ মানুষ।  শরণার্থী আশ্রয় দেওয়ার বিরোধিতা করেও চলছে পাল্টা  মিছিল।

    কে চায় পুনর্বাসন?

    কেন চাই করুণা?

    কেন চাই সহানুভূতি?

    কাদের সমর্থন চাই?

    ভিক্ষা কেন চাই?


    আমাদের,আমরা যারা উদ্বাস্তু,আমরা যারা বাস্তুহারা,আমরা যারা জল জমি জঙ্গল আসমান কুদরত থেকে বেদখল,আমরা যারা রহমত নিয়ামত বরকত থেকে বেদখল,আমরা যারা দোয়া,ইবাদত,প্রর্থনা থেকে বেদখল,আমারা যারা ইতিহাস ভূগোল থেকে বেদখল,আমরা যারা মনুষত্ব থেকে বেদখল,আমরা যারা সভ্যতা থেকে বেদখল,বাবার হাত ছাড়িযে আমরা যারা সাত দরিয়া তেরো নদীতে বিশ্ব জুড়ে আইলানের ছবি শুধু,আমাদের নাগরিকত্বের কোনো অধিকার নেই!


    চাইনা,এই এঁটো করুণা,ঘৃণ্য পুনর্বাসন,চাই শুধু নাগরিকত্ব!

    শুধু বিশুদ্ধ নাগরিকত্ব,না কম,না বেশি!


    চাই,মনুষত্বের অভ্যুত্থান!

    চাই সেই বিপ্লব,যেদিন এই পৃথীবীতে শযতানের রাজত্ব নিপাত যাবে,মানুষ বাস্তুহারা বেনাগরিক উদ্বাস্তু হবে না ছিন্নমূল!


    আমি জন্ম জন্মান্তরে বিশ্বাস করি না

    আমি কর্মফলে বিশ্বাস করি না

    আমি ধর্মে বিশ্বাস করি না


    তবু আমাদের,আমাদের বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটে,আমাদের মানে উদ্বাস্তুদের বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটে আগের জন্মের গপ্পো হয়ে গেছে,তাঁরা যখন বেঁচে ছিলেন না বাঁচার জীবন যন্ত্রণায়,তখনো সেই জন্ম ভিটেয় তাঁদের কোনো অধিকার ছিল নাঠিক যেমন বাপ দাদা ঠাকুরদার ভিটেয় আমাদের কোনো অধিকার নেই


    জলজ্যান্ত মানুষের স্মৃতি পূর্বজন্ম হয়ে যায়,এমনই উদ্বাস্তু জীবনস্মৃতি হারা মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত আইলান বেঁচে থাকলেও কি আর- নিস্পাপ শিশুরা যেমন দরিয়ায় ভেসে যাওয়ার জন্যেই,মরিচঝাঁপি হয়ে অগ্নিদগ্ধ হওয়ার জন্য জন্মায়,সেই আইলানের মরে যাওয়াও কি!


    তবু বাবার হাত ছাড়িয়েও,ভেসে গিয়েও আমরা সবসময় মরতে পারিনা!


    কাঁটাতারে সীমান্তরেখায় মনুষত্য ও সভ্যতাকে যারা ফ্যালানি করে রেখেছে,তাঁদের ধর্ম,তাঁদের রাজনীতি,তাঁদের অর্থব্যবস্থা,তাঁদের প্রভুত্ব,তাঁদের একচিটিয়া আধিপাত্য আমােদর শিঙি মাগুর মাছের মত জিইয়ে রাখে!


    উদ্বাস্তুদের থেকে অনেক ভালো হারানো পদ্মা নদীর ঈলিশ মাছ!তাঁদের জিইয়ে রেখে ভোটব্যান্কের রাজনীতি হয় না!

    মরে গেলেও তাঁদের সীমান্ত পেরোতে পাসপোর্ট ভিসা লাগে না!


    আমি আমার বাবাকে সেই মরা ঈলিশ মাছের মত ঝাঁপিয়ে ঝাঁপিয়ে সীমান্ত পেরিয়ে যেতে দেখেছি সেই বাপ ঠাকুর্দার ভিটে মাটি স্পর্শ করার স্মৃতি দংশনে,দহনে!


    আমি আমার বাবাকে সেই মরা ঈলিশ মাছের মত ঝাঁপিয়ে ঝাঁপিয়ে সীমান্ত পেরিয়ে যেতে দেখেছি সেই বাপ ঠাকুর্দার ভিটে মাটি স্পর্শ করার স্মৃতি দংশনে,দহনে!জন্ম তেকে জন্মান্তরে!


    জন্ম থেকে জন্মান্তরের ঔ কাঁটাতাঁর বিদ্ধ রক্তাক্ত জীবনের ফোঁটা ফোঁটা রক্ত আমার হৃদয়ে অসংখ্য নদী হয়ে বয়ে চলে লমহা লমহাঃঔ খাংটাতারের ধর্মে,রাজনীতিতে,ঔ বহিস্কার ও অস্পৃশ্যতার অর্থব্যবস্থায়,ঔ একচিটিয়া শাসনক্ষমতার নাগপাশে স্মৃতিহীন আমরা উদ্বাস্তুরা তবু কেন বেঁচে থাকি বেনাগরিক,অবান্ছিত,ঘৃণা ও করুণার পাত্র হয়ে,ইহাই আমার জীবনযন্ত্রণা আর সেই স্মৃতি দহনে,সেই সমাজ বাস্তবের নির্মম ঘাতে প্রতিঘাতে জমীন থেকে আসমানে আমি কোনো ঈশ্বরের দেখা পাইনা!আমি স্বর্গে ওঠার কোনো সিঁড়ি দেখতে পাই না!


    আমি উত্সবের অঙ্গ হতে পারিনা কোনো দিন!

    আমি মধুচক্রের দিগন্ত বলয়ে,ঈন্দ্রধনুষের সব রঙ্গের মাঝখানেও সেই ধূসর পান্ডুলিপি হয়ে আছি.যার সব লেখা আমি জন্মানোর আগেই মুছে গেছে!


    আহা কি আনন্দ আমার আনন্দ হতে পারে না কোনোদিন!

    আমি পূবের নই!

    আমি পশ্চিমের নই!


    উদ্বাস্তু জীবনে সতীর দেহ ছড়িয়ে ছিটিয়ে সারা পৃথীবী আজ উদ্বাস্তু উপনিবেশ!

    সেই অসতী সতীর দেহখন্ড যেখানে পড়েছিল,সেি উত্তরের মানুষ আমি!


    পূবে আমার শিকড় নেই!

    পশ্চিমে আমার শিকড় নেই!

    হিমালয়ে আমি আমার শিকড় গেঁথে রেখেচি!


    আমি সবচেয়ে বেশি ঘৃণা করি সেই ধর্মের রাজনীতিক যার পরিণামে আমরা উদ্বাস্তুরা আগের জন্মের কথার মত বেমালুম ভুলে গিয়েছি সেই ছয় ঋতু.যা পৃথীবীতে আর কোথাও নেই!


    আমি সবচেয়ে বেশি ঘৃণা করি সেই ক্ষমতা বদলে,সেই জনসংখ্যা স্থানান্তরণের রক্তপাতে যারা ক্ষমত দখল করেছিল রক্তাক্ত খন্ডিত দেশের কাঁটাতারের,তাঁদের যারা আজও একচিটিয়া ক্ষমতায়,একচিটিয়া আধিপাত্যে আমাদের কাঁটাতারে ঝুলিয়ে বেনাগরিক লাওয়ারিশ করে রেখেছে!


    ধর্মে যারা বিশ্বাস করেন,আমি বেশ জানি ইহা তাহাদের বেঁচে থাকার শেষ সম্বল!ইবাদত,দোয়ার,পুজো পার্বনের অধিকারকে আমি মনুষত্বের অধিকার মনে করি!


    ধর্মের নামে যারা দেশকে খন্ডিত করে,মানুষকে উদ্বাস্তু করে,মনুষত্ব ও সভ্যতাকে কেয়ামতে তব্দীল করে সেই নরপিশাচদের আমি সব চেয়ে ঘৃণা করি!

    আমি ধর্ম রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে!

    তথ্যসূত্রঃhttp://dw.com/p/1GAB2

    উদ্বাস্তু : অচিন্ত্যকুমার সেনগুপ্ত


    উদ্বাস্তু


    চল, তাড়াতাড়ি কর,

    আর দেরি নয়, বেরিয়ে পড় বেরিয়ে পড় এখুনি।

    ভোররাতের স্বপ্নভরা আদুরে ঘুমটুকু নিয়ে

    আর পাশে ফিরতে হবে না।

    উঠে পড় গা ঝাড়া দিয়ে,

    সময় নেই-

    এমন সুযোগ আর আসবে না কোন দিন।

    বাছবাছাই না ক'রে হাতের কাছে যা পাস

    তাই দিয়ে পোঁটলাপুঁটলি বেঁধে নে হুট ক'রে।

    বেড়িয়ে পড়,

    দেরী করলেই পস্তাতে হবে

    বেরিয়ে পড়-

    ভূষণ পাল গোটা পরিবারটাকে ঝড়ের মতো নাড়া দিলে।

    কত দূর দিগন্তের পথ-

    এখান থেকে নৌকা ক'রে ষ্টিমার ঘাট

    সেখান থেকে রেলষ্টেশন-

    কী মজা, আজ প্রথম ট্রেনে চাপাবি,

    ট্রেন ক'রে চেকপোষ্ট,

    সেখান থেকে পায়ে হেঁটে-পায়ে হেঁটে-পায়ে হেঁটে-

    ছোট ছোলেটা ঘুমমোছা চোখে জিঞ্জেস করলে,

    সেখান থেকে কোথায় বাবা?

    কোথায় আবার! আমাদের নিজের দেশে।

    ছায়াঢাকা ডোবার ধারে হিজল গাছে

    ঘুমভাঙা পাখিরা চেনা গলায় কিচিরমিচির করে উঠল।

    জানালা দিয়ে বাইরে একবার তাকাল সেই ছোট ছেলে,

    দেখলে তার কাটা ঘুড়িটা এখনো গাছের মগডালে

    লটকে আছে,

    হাওয়ায় ঠোক্কর খাচ্ছে তবুও কিছুতেই ছিঁড়ে পড়ছে না।

    ঘাটের শান চ'টে গিয়ে যেখানে শ্যাওলা জমেছে

    সেও করুণ চোখে চেয়ে জিজ্ঞেস করছে, কোথায় যাবে?

    হিজল গাছের ফুল টুপ টুপ ক'রে এখনো পড়ছে জলের উপর,

    বলছে, যাবে কোথায়?

    তারপর একটু দূরেই মাঠে কালো মেঘের মত ধান হয়েছে-

    লক্ষীবিলাস ধান-

    সোনা রঙ ধরবে ব'লে। তারও এক প্রশ্ন- যাবে কোথায়?

    আরো দূরে ছলছলাৎ পাগলী নদীর ঢেউ

    তার উপর চলেছে ভেসে পালতোলা ডিঙি ময়ূরপঙ্খি

    বলছে, আমাদের ফেলে কোথায় যাবে?

    আমারা কি তোমার গত জন্মের বন্ধু?

    এ জন্মের কেউ নই? স্বজন নই?


    তাড়াতাড়ি কর- তাড়াতাড়ি কর-

    ঝিকিমিকি রোদ উঠে পড়ল যে।

    আঙিনায় গোবরছড়া দিতে হবে না,

    লেপতে হবে না পৈঁঠে-পিঁড়ে,

    গরু দুইতে হবে না, খেতে দিতে হবে না,

    মাঠে গিয়ে বেঁধে রাখতে হবে না।

    দরজা খুলে দাও, যেখানে খুশি চলে যা'ক আমাদের মত।

    আমাদের মত! কিন্তু আমরা যাচ্ছি কোথায়?

    তা জানিনা। যেখানে যাচ্ছি সেখানে আছে কী?

    সব আছে। অনেক আছে, অঢেল আছে-

    কত আশা কত বাসা কত হাসি কত গান

    কত জন কত জায়গা কত জেল্লা কত জমক।

    সেখানকার নদী কি এমনি মধুমতী?

    মাটি কি এমনি মমতামাখানো?

    ধান কি এমনি বৈকুন্ঠবিলাস?

    সোনার মত ধান আর রুপোর মতো চাল?

    বাতাস কি এমনি হিজলফুলের গন্ধভরা

    বুনো-বুনো মৃদু মৃদু?

    মানুষ কি সেখানে কম নিষ্ঠুর কম ফন্দিবাজ কম সুবিধাখোর?

    তাড়াতাড়ি করো, তাড়াতাড়ি করো-

    ভূষণ এবার স্ত্রী সুবালার উপর ধমকে উঠল:

    কী কত বাছাবাছি বাঁধাবাঁধি করছ,

    সব ফেলে ছড়িয়ে টুকরো-টুকরো ক'রে এপাশে-ওপাশে বিলিয়ে দিয়ে

    জোর কদমে এগিয়ে চলো,

    শেষ পর্যন্ত চলুক থামুক ট্রেনে গিয়ে সোয়ার হও,

    সোয়ার হতে পারলেই নিশ্চিন্তি।

    চারধারে কী দেখছিস? ছেলেকে ঠেলা দিল ভূষণ-

    জলা-জংলার দেশ, দেখবার আছে কী!

    একটা কানা পুকুর

    একটা ছেঁচা বাঁশের ভাঙা ঘর

    একটা একফসলী মাঠ

    একটা ঘাসী নৌকো-

    আসল জিনিস দেখবি তো চল ওপারে,

    আমাদের নিজের দেশে, নতুন দেশে,

    নতুন দেশের নতুন জিনিষ-মানুষ নয়, জিনিস-

    সে জিনিসের নাম কী?

    নতুন জিনিসের নতুন নাম-উদ্বাস্তু।


    ওরা কারা চলেছে আমাদের আগে-আগে-ওরা কারা?

    ওরাও উদ্বাস্তু।

    কত ওরা জেল খেটেছে তকলি কেটেছে

    হত্যে দিয়েছে সত্যের দুয়ারে,

    কত ওরা মারের পাহাড় ডিঙিয়ে গিয়েছে

    পেরিয়ে গিয়েছে কত কষ্টক্লেশের সমুদ্র,

    তারপর পথে-পথে কত ওরা মিছিল করেছে

    সকলের সমান হয়ে, কাঁধে কাঁধে মিলিয়ে,

    পায়ে-পায়ে রক্ত ঝরিয়ে-

    কিন্তু ক্লান্ত যাত্রার শেষ পরিচ্ছেদে এসে

    ছেঁড়াখোঁড়া খুবলে-নেওয়া মানচিত্রে

    যেন হঠাৎ দেখতে পেল আলো-ঝলমল ইন্দ্রপুরীর ইশারা,

    ছুটল দিশেহারা হয়ে

    এত দিনের পরিশ্রমের বেতন নিতে

    মসনদে গদীয়ান হয়ে বসতে

    ঠেস দিতে বিস্ফারিত উপশমের তাকিয়ায়।

    পথের কুশকন্টককে যারা একদিন গ্রাহ্যের মধ্যেও আনেনি

    আজ দেখছে সে-পথে লাল শালু পাতা হয়েছে কিনা,

    ড্রয়িংরুমে পা রাখবার জন্যে আছে কিনা

    বিঘৎ-পুরু ভেলভেটের কার্পেট।

    ত্যাগব্রতের যাবজ্জীবন উদাহরণ হয়ে থাকবে ব'লে

    যারা এত দিন ট্রেনের থার্ড ক্লাসে চড়েছে

    সাধারণ মানুষের দুঃখদৈন্যের শরিক হয়ে

    তারাই চলেছে এখন রকমারি তাকমার চোপদার সাজানো

    দশঘোড়ার গাড়ি হাঁকিয়ে

    পথচারীদের হটিয়ে দিয়ে, তফাৎ ক'রে দিয়ে

    সমস্ত সামনেওয়ালাকে পিছনে ফেলে

    পর-ঘর বিদেশী বানিয়ে।

    হ্যাঁ, ওরাও উদ্বাস্তু।

    কেউ উৎখাত ভিটেমাটি থেকে

    কেউ উৎখাত আদর্শ থেকে।


    আরো আগে, ইতিহাসেরও আগে, ওরা কারা?

    ঐ ইন্দ্রপুরী-ইন্দ্রপ্রস্থ থেকেই বেরিয়ে যাচ্ছে

    হিমালয়ের দিকে-

    মহাভারতের মহাপ্রস্থানের পঞ্চনায়ক ও তাদের সঙ্গিনী

    স্ব- স্বরূপ- অনুরূপা-

    যুদ্ধ জয় ক'রেও যারা সিংহাসনে গিয়ে বসল না

    কর্ম উদযাপন ক'রেও যারা লোলুপ হাতে

    কর্মফল বন্টন করল না নিজেদের মধ্যে,

    ফলত্যাগ করে কর্মের আদর্শকে রেখে গেল উঁচু ক'রে,

    দেখিয়ে গেল প্রথমেই পতন হল দ্রৌপদীর-

    পক্ষপাতিতার।

    তারপর একে একে পড়ল আর সব অহঙ্কার

    রূপের বিদ্যার বলের লোভের-আগ্রাসের-

    আরো দেখাল। দেখাল-

    শুধু যুধিষ্ঠিরই পৌছয়

    যে হেতু সে ঘৃণ্য বলে পশু বলে

    পথের সহচর কুকুরকেও ছাড়ে না।



    শরণার্থী

    উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকে

    ২০০৬ সালে দক্ষিণ লেবাননে অবস্থানকারী লেবাননীয় শরণার্থী

    শরণার্থী বা উদ্বাস্তু (ইংরেজি: Refugee) একজন ব্যক্তি যিনি নিজ ভূমিছেড়ে অথবা আশ্রয়েরসন্ধানে অন্য দেশেঅস্থায়ীভাবে অবস্থান করেন। জাতিগতসহিংসতা, ধর্মীয়উগ্রতা, জাতীয়তাবোধ,রাজনৈতিকআদর্শগত কারণে সমাজবদ্ধ জনগোষ্ঠীরনিরাপত্তাহীনতায়আক্রান্তই এর প্রধান কারণ। যিনি শরণার্থী বা উদ্বাস্তুরূপে স্থানান্তরিত হন, তিনি আশ্রয়প্রার্থী হিসেবে পরিচিত হন। আশ্রয়প্রার্থীব্যক্তির স্বপক্ষে তার দাবীগুলোকে রাষ্ট্র কর্তৃক স্বীকৃত হতে হবে।[১]

    ৩১ ডিসেম্বর, ২০০৫ সাল পর্যন্ত আফগানিস্তান, ইরাক, সিয়েরালিওন, মায়ানমার, সোমালিয়া, দক্ষিণ সুদান এবং ফিলিস্তিন থেকে বিশ্বের প্রধান শরণার্থী উৎসস্থল হিসেবে পরিচিতি পেয়েছে।[২]আইডিপিঅনুযায়ী বিশ্বের সবচেয়ে বেশী শরণার্থী ব্যক্তিএসেছে দক্ষিণ সুদানথেকে প্রায় ৫ মিলিয়ন। জনসংখ্যাঅনুপাতেসবচেয়ে বেশী আইডিপি রয়েছে আজারবাইজানে। সেখানে ২০০৬ সালের তথ্য মোতাবেক প্রায় আট লক্ষ শরণার্থী অন্যত্র আশ্রয় নিয়েছে।[৩]

    পরিচ্ছেদসমূহ

     [আড়ালে রাখো]

    সংজ্ঞার্থ নিরূপণ[সম্পাদনা]

    ১৯৫১ সালে জাতিসংঘ কর্তৃক শরণার্থীদের মর্যাদাবিষয়ক সম্মেলনেঅনুচ্ছেদ ১এ-তে সংক্ষিপ্ত আকারে শরণার্থীর সংজ্ঞাতুলে ধরে। একজন ব্যক্তি যদি গভীরভাবে উপলদ্ধি করেন ও দেখতে পান যে, তিনি জাতিগতসহিংসতা, ধর্মীয়উন্মাদনা, জাতীয়তাবোধ, রাজনৈতিকআদর্শ, সমাজবদ্ধ জনগোষ্ঠীরসদস্য হওয়ায় ঐ দেশের নাগরিকেরঅধিকারথেকে দূরে সরানো হচ্ছে, ব্যাপক ভয়-ভীতিকর পরিবেশ বিদ্যমান, রাষ্ট্র কর্তৃক পর্যাপ্ত নিরাপত্তা দিতে ব্যর্থ হচ্ছে; তখনই তিনি শরণার্থী হিসেবে বিবেচিত হন।[৪]১৯৬৭ সালের সম্মেলনের খসড়া দলিলেউদ্বাস্তুর সংজ্ঞাকে বিস্তৃত করা হয়। আফ্রিকাল্যাটিন আমেরিকায়অনুষ্ঠিত আঞ্চলিক সম্মেলনে যুদ্ধএবং অন্যান্য সহিংসতায়আক্রান্ত ব্যক্তি কর্তৃক নিজ দেশত্যাগকরাকেও অন্তর্ভূক্ত করা হয়।

    এ সংজ্ঞায় শরণার্থীকে প্রায়শঃই ভাসমান ব্যক্তিরূপেঅন্তর্ভূক্ত করা হয়। সম্মেলনে গৃহীত সংজ্ঞার বাইরে থেকে যদি যুদ্ধের কারণে নির্যাতন-নিপীড়নে আক্রান্ত না হয়েও মাতৃভূমি পরিত্যাগ করেন অথবা, জোরপূর্বক নিজ ভূমি থেকে বিতাড়িত হন - তাহলে তারা শরণার্থী হিসেবে বিবেচিত হবেন।[৫]

    দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধ[সম্পাদনা]

    ১৯৪২ সালে স্ট্যালিনগ্রাদের যুদ্ধেরুশ শরণার্থীদের অন্যত্র গমনের দৃশ্য।

    সংঘর্ষএবং রাজনৈতিক অস্থিতিশীলতারপ্রেক্ষাপটে দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধকালীন সময়ে অগণিতসংখ্যক লোক শরণার্থী হয়েছিলেন। যুদ্ধ শেষে একমাত্র ইউরোপেই৪০ মিলিয়নেরওঅধিক লোক শরণার্থী ছিল।[৬]১৯৪৩ সালে দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধে মিত্রশক্তিজাতিসংঘ ত্রাণ ও পুণর্বাসন প্রশাসন (ইউএনআরআরএ) গঠন করে। যার প্রধান কাজ ছিল দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধে অক্ষশক্তিরনিয়ন্ত্রণাধীন দেশসহ ইউরোপ ও চীনথেকে আগত শরণার্থীদেরকে সহায়তা করা। তাদের নিয়ন্ত্রণে ও প্রত্যক্ষ সহায়তায় ৭ মিলিয়ন লোক নিজ বাসভূমিতে ফিরে যায়। কিন্তু উদ্বাস্তু এক মিলিয়ন লোক মাতৃভূমিতে ফিরে যেতে অস্বীকৃতি জানায়।

    বিশ্বযুদ্ধের শেষ মাসে প্রায় পাঁচ মিলিয়ন জার্মান বেসামরিক নাগরিক পূর্ব প্রুশিয়া, পোমারানিয়াএবংসিলেসিয়ারাজ্য থেকে রেড আর্মিরপ্রচণ্ড আক্রমণের হাত থেকে রক্ষার লক্ষ্যে ম্যাকলেনবার্গ,ব্রান্ডেনবার্গএবং স্যাক্সনিতেউদ্বাস্তুহিসেবে আশ্রয়নেয়।

    পটসড্যাম সম্মেলনেরসিদ্ধান্ত মিত্রশক্তি অনুমোদন না করায় যুগোস্লাভিয়াএবং রোমানিয়ায়অবস্থানরত হাজার হাজার জাতিগত জার্মানদেরকে সোভিয়েত ইউনিয়নেদাস শ্রমের জন্য ফেরত পাঠানো হয়। বিশ্বের ইতিহাসে এটিই ছিল সবচেয়ে বেশী শরণার্থী স্থানান্তর প্রক্রিয়া। ১৫ মিলিয়ন জার্মানদের সবাই এতে অন্তর্ভূক্ত ছিলেন। এছাড়াও, দুই মিলিয়নেরও অধিক জার্মান বিশ্বযুদ্ধকালীন সময়ে বিতাড়িত হয়ে প্রাণ হারান।[৭][৮][৯][১০][১১]

    পূর্ব ইউরোপথেকে ব্যাপক সংখ্যায় দলে দলে লোক দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধেরপরবর্তী সময়ে অন্যত্র চলে যাওয়ার প্রেক্ষাপটে শরণার্থীরূপে বিবেচিত হয়। প্রধানতঃ ইউরোপীয় শরণার্থী হিসেবে ইহুদীএবং স্লাভগণজোসেফ স্টালিন, নাজিএবং দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধের প্রতিক্রিয়ার প্রেক্ষাপটে যুক্তরাষ্ট্রেআশ্রয়গ্রহণকে নিরুৎসাহিত করা হয়।[১২]

    রোহিঙ্গা জনগোষ্ঠী[সম্পাদনা]

    ১৯৯১-৯২ সালে আড়াই লক্ষাধিক মুসলিম রোহিঙ্গাশরণার্থী বার্মার (বর্তমান: মায়ানমার) সামরিক জান্তার নির্যাতন-নিপীড়ন থেকে মুক্তি পেতে বাংলাদেশেআশ্রয় নেয়। তাদের অনেকেই বিশ বছর যাবৎ বাংলাদেশে অবস্থান করছে। বাংলাদেশ সরকার তাদেরকে দু'টি ভাগে ভাগ করেছে। শরণার্থী ক্যাম্পেঅবস্থানকারী স্বীকৃত রোহিঙ্গা এবং বাংলাদেশী সম্প্রদায়ের সাথে মিশে যাওয়া অস্বীকৃত রোহিঙ্গা জনগোষ্ঠী রয়েছে। কক্সবাজারেরনয়াপাড়া এবং কুতুপালং এলাকার দু'টি ক্যাম্পে ত্রিশ হাজার রোহিঙ্গা বাস করছে।

    আরাকান রাজ্য থেকে গত কয়েক মাসে রোহিঙ্গাদের উপর ব্যাপক নির্যাতনের ফলে তাদের বাংলাদেশে অবৈধ অনুপ্রবেশঅব্যাহত রয়েছে। কঠোর নিবন্ধিকরণ আইনে রোহিঙ্গাদের নাগরিকত্ব, চলাফেরায় বিধিনিষেধ আরোপ, ভূমিবাজেয়াপ্তকরণ, বার্মার বৌদ্ধদেরঅবস্থানের জন্য জোরপূর্বক উচ্ছেদকরণ, ২০০৬ সালের শেষ পর্যায়ে পশ্চিমাঞ্চলীয় আরাকানের ৯টি মসজিদেরআশেপাশে অবকাঠামোগতপ্রকল্পগ্রহণ এর জন্য দায়ী বলে ধারনা করা হয়।[১৩][১৪]

    তথ্যসূত্র[সম্পাদনা]

    আরও পড়ুন[সম্পাদনা]

    • Refugee protection: A Guide to International Refugee Law UN HCR, Inter-Parliamentary Union, 2001

    • Alexander Betts Protection by Persuasion: International Cooperation in the Refugee Regime, Ithaca: Cornell University Press, 2009

    • Guy S. Goodwin-Gill and Jane McAdam The refugee in international law, Oxford: Oxford University Press, 2007

    • Matthew J. Gibney, "The Ethics and Politics of Asylum: Liberal Democracy and the Response to Refugees," Cambridge University Press 2004

    • Alexander Betts Forced Migration and Global Politics, London: Wiley-Blackwell, 2009

    • James Milner The Politics of Asylum in Africa, London: Palgrave MacMillan, 2009

    • James C. Hathaway The rights of refugees under international law, Cambridge: Cambridge University Press, 2005

    • Christina Boswell The ethics of refugee policy, Aldershot: Ashgate, 2005

    • Jane McAdam Complementary Protection, Oxford: Oxford University Press, 2007

    • Sarah Kenyon Lischer, Dangerous Sanctuaries, Ithaca: Cornell University Press, 2008

    • Susan F. Martin The uprooted - improving humanitarian responses to forced migration, Lanham, MD: Lexington Books, 2005

    • Stephen John Stedman & Fred Tanner (ed.) Refugee manipulation - war, politics, and the abuse of human suffering, Washington, D.C.: Brookings Institution Press, 2003

    • Arthur C. Helton The price of indifference - refugees and humanitarian action in the new century. Oxford: Oxford University Press, 2002

    • Gil Loescher, Alexander Betts and James Milner UNHCR: The Politics and Practice of Refugee Protection into the Twenty-First Century. London: Routledge, 2008

    • Frances Nicholson & Patrick Twomey (ed/) Refugee rights and realities - evolving international concepts and regimes, Cambridge: Cambridge University Press, 1999

    • James C. Hathaway (ed.) Reconceiving international refugee law, The Hague: Nijhoff, 1997

    • Gil Loescher Beyond charity - international cooperation and the Global Refugee Crisis, New York: Oxford University Press, 1993

    • Aristide R. Zolberg, Astri Suhrke & Sergio Aguayo Escape from violence - conflict and the refugee crisis in the developing world, New York: Oxford University Press, 1989

    বহিঃসংযোগ[সম্পাদনা]

    উইকিমিডিয়া কমন্সে শরণার্থীসংক্রান্ত মিডিয়া রয়েছে।


    উইকিঅভিধানে শরণার্থীশব্দটি খুঁজুন।

    ইউরোপ

    উদ্বাস্তু সংকট ইউরোপীয় আকার ধারণ করছে

    ইউরোপীয় কমিশন ফ্রান্স এবং ব্রিটেনকে চ্যানেল টানেলে উদ্বাস্তু সংকটের মোকাবিলায় সাহায্যের প্রস্তাব দিয়েছে৷ ফ্রান্সকে বিশ মিলিয়ন ইউরো দেওয়া হচ্ছে৷ ব্রিটেনকে পেয়েছে ২৭ মিলিয়ন৷

    Frankreich Flüchtlinge am Eurotunnel bei Calais

    পুলিশ জানাচ্ছে, মঙ্গলবার রাত্রেও ক্যালের কাছে চ্যানেল টানেল সাইটে ৫০০ উদ্বাস্তুকে ঘোরাফেরা করতে দেখা গেছে৷ ইতিপূর্বে প্রায় ৬০০ উদ্বাস্তু সাইটে ঢোকার চেষ্টা করে৷ তাদের মধ্যে চারশ'কে রোখা সম্ভব হয়৷ বাকি দুশো'র মধ্যে ১৮০ জনকে সাইটের ভিতরে ধরে বহিষ্কার করা হয়৷ ২০ জনকে গ্রেপ্তার করা হয়৷

    ইউরোপীয় কমিশনের অভিবাসন ও স্বরাষ্ট্র কমিশনার দিমিত্রিস আভ্রামোপুলোস জানিয়েছেন, ফ্রান্স ও ব্রিটেনের জন্য অভিবাসন সংক্রান্ত খাতে ২০১৪ থেকে ২০২০ সাল অবধি যে ২৬৬ মিলিয়ন, যথাক্রমে ৩৭০ মিলিয়ন ইউরো বরাদ্দ করা আছে, এই আর্থিক সাহায্য তা থেকেই আসছে৷

    উদ্বাস্তুদের রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির আবেদন পরীক্ষা করার কাজে ইউরোপীয় ইউনিয়নের সীমান্ত সুরক্ষা সংস্থা ফ্রন্টেক্স সাহায্য করতে পারে, বলে ইউরোপীয় কমিশন প্রস্তাব দিয়েছে৷ উদ্বাস্তুদের রেজিস্ট্রি করা, তারা যে সব দেশ থেকে আসছে এবং যে সব দেশ দিয়ে গেছে, সেই সব দেশের সঙ্গে যোগাযোগ স্থাপন করে তাদের পাসপোর্ট অথবা বিদেশযাত্রার অন্য কাগজপত্রের ব্যবস্থা করা, উদ্বাস্তুদের ফেরত পাঠানো, এ সব ক্ষেত্রে কমিশন আর্থিকভাবেও সাহায্য করতে প্রস্তুত, বলে ঘোষণা করেছেন আভ্রামোপুলোস৷

    কাঁটাতারের বেড়া

    Frankreich Flüchtlinge am Eurotunnel bei Calais

    ফ্রান্স টানেলের কাছে পুলিশ বাড়িয়েছে

    ইউরোপীয় ইউনিয়নের অপর প্রান্তে চলতি উদ্বাস্তু সংকটের ইউরোপীয় মাত্রা আরো স্পষ্ট৷ প্রতিদিন প্রায় দেড় হাজার প্রধানত আফগান বা সিরীয় উদ্বাস্তু জঙ্গলের পথে সার্বিয়া থেকে হাঙ্গেরিতে প্রবেশ করছে৷ পুলিশ তাদের নথিবদ্ধ করে আবার ছেড়ে দিচ্ছে, যাতে তারা কোনো অ্যাসাইলাম সেন্টারে গিয়ে নাম লেখাতে পারে৷ কিন্তু অধিকাংশ উদ্বাস্তুই একবার শেঙেন চুক্তি এলাকায় ঢুকে পড়ার পরে পশ্চিমের সমৃদ্ধ দেশগুলির দিকে যাত্রা করছে৷

    উদ্বাস্তুদের কাছে হাঙ্গেরি একটা ট্রানজিট রুট ছাড়া কিছু নয়৷ তা সত্ত্বেও হাঙ্গেরি এ সপ্তাহে সার্বিয়ার সঙ্গে তার ১৭৫ কিলোমিটার সীমান্ত বরাবর কাঁটাতারের বেড়া তৈরির কাজ শুরু করেছে৷ এছাড়া রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির নিয়মকানুন আরো কড়া করা হয়েছে, যাতে শীঘ্র বহিষ্কার করা সম্ভব হয়৷ অপরদিকে হাঙ্গেরি অপরাপর ইইউ দেশ থেকে উদ্বাস্তুদের ফেরৎ নিতেও অস্বীকার করছে, যদিও তা ইউরোপীয় ইউনিয়নের নিয়মাবলীর অঙ্গ৷

    যদি হয় সুজন, তেঁতুলপাতায় ন'জন

    • Griechenland - Füchtlinge vor Rhodos

    • প্রাণের মায়া না করে ইউরোপে আসার প্রচেষ্টা

    • প্রাণে বাঁচা

    • ২০শে এপ্রিল, ২০১৫: একটি ছোট পালের নৌকা গ্রিসের রোডোস দ্বীপের কাছে চড়ায় আটকালে সীমান্তরক্ষী আর স্থানীয় মানুষেরা বেশ কিছু উদ্বাস্তুকে উদ্ধার করেন৷ তা সত্ত্বেও এই দুর্ঘটনায় তিনজন উদ্বাস্তু জলে ডুবে মারা যান৷

    1234567

    জার্মানিতে ইতিমধ্যেই আগত উদ্বাস্তুদের জন্য আবাসের স্থান একটা সমস্যা হয়ে দাঁড়িয়েছে, বিশেষ করে পৌর প্রশাসনগুলির জন্য৷ কাজেই যে সব উদ্বাস্তুর রাজনৈতিক আশ্রয়প্রাপ্তির সম্ভাবনা কম – যেমন বলকান দেশগুলি থেকে আগত মানুষজন – তাদের আলাদা করে রেখে দু'সপ্তাহের মধ্যে সংশ্লিষ্ট অ্যাসাইলাম অ্যাপ্লিকেশনগুলির নিষ্পত্তি করার প্রস্তাব উঠেছে, যেমন স্যাক্সনি ও বাভারিয়া রাজ্যে৷

    বিভিন্ন ছোট-বড় জার্মান শহরের পৌর কর্তৃপক্ষ উদ্বাস্তু ও রাজনৈতিক আশ্রয়প্রার্থী সংক্রান্ত বিভিন্ন শিবির তথা কার্যালয়ের জন্য কর্মী নিয়োগ করতে গিয়ে হিমশিম খাচ্ছেন৷ প্রশাসন থেকে শুরু করে সমাজকর্মী, এমনকি চিকিৎসক, স্বল্প সময়ের মধ্যে যোগ্যতাসম্পন্ন কর্মী খুঁজে পাওয়া অথবা তাদের নিয়োগ দেওয়া খুব সহজ কাজ নয়৷ সেই সঙ্গে থাকছে অর্থসংস্থানের প্রশ্ন

    অপরদিকে ফেডারাল গুপ্তচর বিভাগ উদ্বাস্তু শিবির ও আবাসনগুলির উপর আক্রমণের ঘটনা ক্রমাগত বেড়ে চলায় চিন্তিত৷ ২০১৪ সালে এই ধরনের আগুন লাগানো থেকে শুরু করে ভাঙচুর বা পাথর ছোঁড়ার ঘটনা ২০১৩'র তুলনায় তিনগুণ বাড়ে৷ ২০১৫ সালে নাকি তাও ছাড়িয়ে যাবে৷

    এসি/এসবি (রয়টার্স, এএফপি)

    নির্বাচিত প্রতিবেদন

    শরণার্থী সংকট সামলাতে নাজেহাল ইউরোপ

    রাজনৈতিক শরণার্থী, নাকি অর্থনৈতিক অভিবাসী? ইউরোপে এই মুহূর্তে আশ্রয়প্রার্থীদের যে ঢল নেমেছে, তা নিয়ে উত্তাল সোশ্যাল মিডিয়াও৷ তর্ক-বিতর্কের মধ্যে নানা জটিল বিষয় উঠে আসছে৷ (29.07.2015)  

    জার্মানিতে রাজনৈতিক আশ্রয় প্রাপ্তির প্রক্রিয়া

    জার্মানিতে রাজনৈতিক আশ্রয়প্রার্থীর সংখ্যা ক্রমাগত বেড়েই চলেছে৷ কিন্তু এ দেশে রাজনৈতিক আশ্রয় পাবার বা প্রদানের প্রক্রিয়াটি কী? আসার পর, কী ধরনের সুযোগ-সুবিধা পাওয়া যায় জার্মানিতে? (28.06.2015)  

    মানুষ পাচার বন্ধে সামরিক অভিযান?

    ইউরোপীয় ইউনিয়ন উত্তর আফ্রিকার মানুষ পাচারকারীদের বিরুদ্ধে সামরিক পদক্ষেপ নিতে চায়৷ শেযমেষ তাদের উদ্বাস্তুদের ওপর গুলি চালাতে হবে, বলে ক্রিস্টফ হাসেলবাখ-এর আশঙ্কা৷ (28.06.2015)  

    প্রাণের মায়া না করে ইউরোপে আসার প্রচেষ্টা 


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