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एक जरुरी संशोधनः

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एक जरुरी संशोधनःआदरणीय आनंद तेलतुंबड़े जी ने एक टाइपिंग चूक की ओर ध्यान दिलाया है।कोलकाता जलमग्न होने के कारण चार दिनों तक मेरा पीसी नेट से डिसकनेक्ट रहा।नेटखुलते ही आलेख जल्दी से खत्म करने की हड़बड़ी में मनमाड की जगह महाड़ लिखा गया।दरअसल विदर्भ के भुसावल के पास मनमाड में रेलवे कर्मचारियों के सम्मेलन में बाबासाहेब ने कहा था कि भारतीय मजदूरो के दो समान दुश्मन हैं,एक ब्राह्मणवाद और दूसरा पूंजीवाद।आलेख में मनमाड के बदले महाड़ चला गया है,इसे भुसावल के पास मनमाड ही पढ़ें।इसीतरह लोखांडे का पूरा नाम है नारायण मेघाजी लोखांडे। लोखांडे को भारतीयमजदूर आंदोलन का जनक माना जाता है जो बाबासाहेब के सहयोगी और महात्मा ज्योतिबा फूले के अनुयायी हैं।

कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?

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कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?

पलाश विश्वास

कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?


रेल बजट से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के बारामूला जिले के कटरा से रेलवे के निजीकरण का ऐलान कर दिया।उन्होंने हालांकि  संकेत भर  दिया है  कि रेलवे के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ सकती है।


बेसरकारीकरण को विनिवेश का नाम देने वालों ने जोर काझटका धीरे से गे,जाहिर है कि ऐसा ही चाक चौबंद इंतजाम कर दिया है।पूरा देश ही अब शाक एबजार्बर है।


लोकप्रिय थीमसांग है कि बजट में यह प्रावधान हो कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा मिले, इसके लिए आवश्यक माहौल बनाया जाए। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए निवेश से जुड़े कानूनों को उदार बनाया जाए।


कौन है माई का लाल जो बेसरकारीकरण और विनिवेश,प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश के खिलाफ बलकर अपनी हैसियत दांव पर लगा दें?


धर्मयोद्धा मोदी ने कहा हम चाहते हैं कि रेलवे स्टेशन पर हवाईअड्डों से बेहतर सुविधा हो। यह हमारा सपन है और ऐसा करना मुश्किल काम नहीं है और यह आर्थिक रूप से भी व्यावहारिक भी है। मैंने रेलवे से जुड़ मित्रों से इस संबंध में विस्तार से बात की है। आप निकट भविष्य में बदलाव देखेंगे।


गौरतलब है कि धर्मयोद्धा मोदी ने खुल्लमखुल्ला हाट में हड़िया तोड़ दी और कह दिया कि ऐसी स्थिति में निजी कंपनियां भी निवेश के लिए तैयार होंगी क्योंकि यह आर्थिक रूप से अच्छी परियोजना है और इससे सभी को फायदा होगा। यह दोनों के लिए फायदेमंद परियोजना होगी और हम चाहते हैं कि आने वाले दिनों में इस दिशा में आगे बढ़ें।निजी कंपनियों को तो फायदा ही फायदा होगा,बैशक,आम जनता का क्या हो गा,बस तेल देखिये,तोतेल की दार भी देखिये।


बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के बारामूला जिले में नियंत्रण रेखा के पास 240 मेगावाट की उरी-2 पनबिजली परियोजना (एचईपी) का उद्घाटन किया।


प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एन एन वोहरा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राष्ट्रीय जलविद्युत उर्जा निगम :एनएचपीसी: के शीर्ष अधिकारियों की मौजूदगी में परियोजना को राष्ट्र के नाम समर्पित किया।


गौर करें कि  रेलवे और ऊर्जा क्षेत्र हमारी विकास प्राथमिकताओं में शामिल हैं। जल्द ही इसमें आपको बदलाव नजर आएगा। निजी क्षेत्र की भागीदारी से यह बदलाव होगा। हमारा मकसद है कि विकास का लाभ आखिरी छोर तक बैठे व्यक्ति को भी मिले। अटलजी ने जिस विकास यात्रा को शुरू किया है, हम उसे आगे बढ़ाएंगे। हमारा मकसद राजनीतिक जय-पराजय का नहीं है, मैं जम्मू- कश्मीर के नागरिकों का दिल जीतना चाहता हूं। यह कार्य विकास के माध्यम से पूरा होगा। शुक्रवार को यह बात जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही।



भारत में बुलेट ट्रनों का इंतजार वे लोग सबसे ज्यादा बेसब्री से कर रहे हैं जो स्लीपर क्लास में रिजर्वेशन करने तक का पैसा जुटा नहीं पाते और भेड़ बकरियों की तरह एक्सप्रेस ट्रेनों के दो अदद जनरल डब्बों में सीट पाने के लिए घंटों कतारबद्ध रहते हैं।


आगरा एक्सप्रेसवे में दो घंटे के फर्राटे के बाद दिल्ली से आगरा तक की रेलयात्रा नब्वे मिनट में सिमट जाने से वे ब्राजील के विश्वकप विजय की तरह उन्माद हुए जा रहे हैं।


जिस पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे पंडित,सबसे जुझारु खेती विशेषज्ञ किसानों का वास है और जहां के किसान देश के महानगरों से ज्यादा राजस्व देते रहे हैं,उन्हें अब भट्टा परसौल की याद नहीं सताती।


कोई नहीं सोच रहा है,सोचने को तैयार भी नहीं है,क्या देश में यात्रियों का कोई ऐसा तबका है जो लगभग हवाई जहाज जितनी खर्चीली इसकी यात्रा का नियमित बोझ उठा सके? अभी तो मध्य वर्ग और साधारण तबका रेल किराये में मामूली बढ़ोतरी भी नहीं झेल पाता। फिर बुलेट ट्रेन किसके लिए चलेगी?


मीडिया विशेषज्ञ सपना बुनने में लगे हैं कि निश्चय ही बाधाएं बहुत हैं पर इनसे घबराकर हम विकास की दौड़ से बाहर नहीं हो सकते। सपना चाहे जितना भी खर्चीला हो, लंबे समय में वह सस्ता ही साबित होता है। इसलिए बुलेट ट्रेन चलाने के लक्ष्य को सामने रखकर रेलवे में सुधार जारी रखना होगा, ताकि एक दिन देश के सभी शहरों को एक-दूसरे के करीब लाया जा सके।


कोई नहीं बताता कि ये बुलेट ट्रेन भविष्य के कत्लगाहों को ही जोडेंगे ,इस देश के जनसामान्य इन्हीं बुलेट ट्रेनों के पहियों के नीच जमींदोज होंगे।


हमने यूरोप में  औद्योगिक क्रांति के सिलसिले में धर्म राजनीति और पूंजी के त्रिभुजाकार वर्चस्ववादी आक्रमण में किसानों के सफाये के बारे में पहले ही चर्चा की है।


कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान,इस सवाल का जवाब खोजने के लिए इस नापाक गठबंधन का खुलासा होना जरुरी है।


ध्यान योग्य बात तो यह है कि यूरोपीय नवजागरण से अभिभूत हम क्रुसेड से यूरोप की औद्योगिक क्रांति का संबंध समझने से अमूमन परहेज करते हैं,वैसे ही जैसे भारतीय नवजागरण की चर्चा करते हुए मनीषियों के व्यक्तित्व कृतित्व की चर्चा करते हुए हम सत्रहवीं और अठारवीं शताब्दियों में आदिवासी और किसान जनविद्रोह की शानदार विरासत की चर्चा करना भूल जाते हैं।


इसीलिए राजा राममोहन राय और ब्रह्मसमाज की चर्चा करते हुए हम भूलकर भी हरिचांद ठाकुर,वीरसा मुंडा,रानी दुर्गावती,टांट्या भील,बीरसा मुंडा,सिधो कन्हो,महात्मा ज्योतिबा फूले,अयंकाली को भूलकर भी याद नहीं करते हैं।


खास बात तो यह कि मध्य एशिया से गुजरने वाले रेशम पथ का नजदीकी रिश्ता सोने की चिड़िया भारत के मुहावरे और एशियाई मध्ययुगीन अर्थव्यवस्था से है।


उस एशियाई अर्थव्यवस्था के मुकाबले यूरोप कंगाल था औययूरोप के लोग कृषि का मतलब पशुचारण समझते थे।


इंग्लैंड में संसद में महारानी के सिंहासन के सामने लार्ड चांसलर की कुर्सी के नीचे ऊन का बोरा बताता है कि भेड़ों के मार्फत जीते थे तब यूरोप के लोग।


जो सोना चांदी का ख्वाब ही सजोते थे और जलदस्युओं के जरिये महासागर के रास्त बाकी दुनिया को लूटने का कारोबार चलाते थे।


एशियाई रेशम पथ की अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने के लिए सौ साल का धर्मयुद्ध लड़ा गया,वह उसी तरह दो संस्कृतियों या दो धर्मों की लड़ाई नहीं थी जैसे उत्तरआधुनिक ग्लोबल दुनिया के मध्यपूर्व में साम्राज्यवादी तेलयुद्ध कोई इस्लाम के विरुद्ध पोप का जिहाद नहीं है।


सौ साल के उस महायुद्ध में मौलिक भूमंडलीकरण की शुरुआत हुई जो चरित्र से धार्मिक और सामंती था।आज का उत्तर आधुनिक भूमंडलीकरण भी चरित्र से उतना ही धर्मोन्मादी और सामंती हैं।आज के धर्मयोद्धा यूरप के वे मासूम से दिखने वाली भेड़ें हैं, जिन्होंने चारा के साथ ही यूरोप की किसान आबादी को चबा लिया।


इसी धर्म युद्ध से आभिजात नाइटों का नया तबका तैयार हुआ और इन्हीं धर्मयोद्धाओं ने यूरोप में ही किसानों और देहात का सर्वनाश नहीं किया बल्कि दुनिया भर में सोना,चांदी हीरा जवाहिरात और दूसरे बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों के लिए जलदस्युओं के बेड़े के जरिये पूरे अमेरिका,पूरे आस्ट्रेलिया,पूरे अफ्रीका महाद्वीपों में स्थानीय जनसमुदायों का सफाया कर दिया।


वास्कोडिगामा,कप्तान कुक,मैडेलिन और कोलंबस को हमारे अंग्रेजीपरस्त इतिहासकारों ने महानायकों का दर्जा दे दिया है लेकिन वे कैरेबियन पाइरेट के मुकाबले ज्यादा खूंखार जलदस्यु और हत्यारे थे।


कैरेबियन पाइरेट में तो फिर भी मानवीय तमाम गुण है।कोलबंस और वास्कोडिगामा में ऐसा कोई गुण नहीं था।


हम तैमूर लंग और सिकंदर के हमलों की चर्चा करते हैं,लेकिन यूरोपीयहमलावरों को महान बनाने से बाज नहीं आते।विदेशी निवेशकों में जो खून का जायका  है,इंद्रियविकल हवाओं में उसकी कोई सुगंद नहीं है।


हमारे धर्मांध इतिहासकार जो तमाम इस्लामी धर्मस्थलों पर हिंदुत्व के दावे को पुष्ट करने में सबसे ज्यादा व्कत गंवाते हैं, वे यह तथ्य स्वीकार ही नहीं कर सकते कि भारत में तोपों से गोला बरसाते हुए और दरिया में सेरा जहाजों को लूटते डुबोते हुए भारत में दाखिल होने वाले वास्कोडिगामा अमेरिका,अफ्रीका और आस्ट्रेलिया महाद्वीपों में जा पहुंचे दूसरे जलदस्युओं की तरह स्थानीयजनसमूहों का सफाया सिर्फ इसलिए नहीं कर सकी कि तब वैस्विक अर्थव्यवस्था पर काबिज मुगलिया सल्तनत की केंद्रीय सत्ता इन जलदस्युओं को अपनी औकात बताने के लायक बेहद मजबूत थी।


गौरतलब है कि कंपनी राज के खिलाफ अठारवी सदीं के महाविद्रोह के नेता भी दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ही थे।


अब कोई इकलौती ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं है कोई,हजारों देशी विदेशी कंपनियां हैं और वे आपस में मारकाट में लगी भी हों तो जनसंहार के मोर्चे पर लामबंद हैं और जनता के मोर्चे पर कोई सांकेतिक प्रतिरोध की हलचल तक नहीं है।


नवजागरण के गौरवगान में औद्योगिक क्रांति के दौरान धर्म,राजनीति और पूंजी के प्रलंयकारी ब्रह्मा विष्णु महेश ने धर्मयोध्धाओं के जरिये कैसे यूरोप में जनसंहार को अंजाम दिया,ऐसा विश्वविद्यालयों में पढ़ाया नहीं जाता।


कैसे कैरेबियन द्वीपों, उत्तरी,मध्य और उत्तरी अमेरिका में भौगोलिक खोज के बहाने पूरी आबादी खत्म कर दी गयी और हालत यह हो गयी कि अफ्रीका के आदिवासी गांवों में आग लगाकर स्त्री पुरुष बच्चों को जंगली जानवरों की तरह हांककर अमेरिकागामी जहाजों के मालखाने में भूखों प्यासे लादकर अमेरिका में श्रमशक्ति की आपूर्ति की गयी,कैसे भारत से भी कैरेबियन द्वीपों में गिरमिटिया मजदूरों का निर्यात किया गया,स्कूली विश्वविद्यालयी  पाठ में इसका कोई स्थान है ही नहीं।


सिलेबस मठाधीशों की दुकाने तो इन्हीं की चाटने से चलती है।इतिहास और पुरात्व विभागो की क्या कहें।वे वैसे ही हैं जैसे हमारे माहन अर्थशास्त्री।


उतने ही देश भक्त मौसेरे भाई हैं अकादमिक जगत और आइकनिक सिविल सोसाइटी के सेलिब्रेटी लोग जैसे थोक दरों पर संसद में जा रहे अरबपति करोड़पति रंग बिरंगे जनप्रतिनिधि।ये तमाम लोग वैश्विक व्यवस्था के मुफ्त के विश्व पर्यटक हैं।


इसलिए मध्ययुगीन उस धर्म,राजनीति और पूंजी के संंहारक त्रिभुज के बारे में हमारे लोगों को कोई आइडिया ही नहीं है।


हम यह समझने में हमेशा चूक जाते हैं कि दस साल तक जो शख्स इस देश का प्रधानमंत्री था और विश्वबैंक से लगातार पेंशन उठाता रहा और सत्ता कुनबा में तमाम अति शीर्षस्थानीय लोग जो पेंशनधारी रहे हैं विश्वबैंक के,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के, विश्वव्यापार संघ के,यूरोपीय समुदाय के,युनेस्को के,एशिया विकास बैंक के,उस गुलाम गिरमिटिया मजदूरों के शासक तबके को एकमुश्त खारिज करके अचानक क्रुसेड के बाद के यूरोप की तर्ज पर नाइटों यानि धर्मयोद्धाओं को सत्ता सौंपने के लिए वैश्विक कारपेरटजायनी शैतानी बंदोबस्त ने लाखों करोड़ रुपये क्यों खर्च कर डाले।


क्शमीर से रेलवे के निजीकरण के धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री का ऐलान समझ लें कि मध्ययुग के सौ साल के धर्मयुद्ध का आवाहन ही है।


यूरोप में तो भेड़ों के मार्फत सामंतों ने पहले सारी जमीन का बाड़ाबंदी कर दी और नगरों महानगरों में विस्थापित किसानों को मजदूर बनाकर औद्योगिक क्रांति कर दी।


उपन्यास विधा ही उस औद्योगिक नरसंहार का आख्यन है और इस हिसाब से तो भारत में इने गिने उपन्यासकार ही हैं जैसे माणिक बंद्योपाध्याय,जैसे समरेश बसु,जैसे भैरव प्रसाद गुप्त,जैसे यशपाल।


बाकी देहकथा है।मिटते हुए जनपदों का लोक  महाकाव्य हालांकि कम नही लिखा गया हालांकि वह सिलसिला भी अब बंद हो गया।


यूरोप और अमेरिका में हुई कयामत की वह महागाथा विक्टर ह्युगो,चार्ल्स डिकेंस और टामस हार्डी के उपन्यासों में पढ़ी जा सकती है,जो इतिहास से कमतर कतई नहीं है।रुसी साहित्य में भी इसका ब्यौरा सिलसिलेवार है।दास्तावस्की से काफ्का,सार्त्र से कामु तक के साहित्य में उस विध्वंस की गूंज है।


लेकिन हमारे मीडिया और साहित्य में बाजार की देहकथा और कंडोम कार्निवाल के अलावा बाकी क्या बचा है,इसकी तफतीश जरुरी है।


हैरतअंगेज हैं कि कश्मीर और मणिपुर में मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन के तमाम मामलों,यूपी और गुजरात में तमाम फर्जी मुठभेड़ों,गोंडवाना और मध्यभारत और देशभर में खनिज समृद्ध इलाकों में आदिवासियों के खिलाफ अविराम जारी सलवा जुडुम को संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बताकर पत्रपाठ खारिज करने वाले और ऐसे मुद्दे को उठानेवाले इने गिने लोगों को तत्काल राष्ट्रद्रोही घोषित करने वाली धर्मयुद्ध की धर्मोन्मादी पैदल सेनाओं को भारत अमेरिकी परमाणु संधि,अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में पारमाणविक सैन्य गठजोड़ बनाकर मध्यपूर्व के युद्धक्षेत्र को हिंद महासार की हर लहर में विस्तृत करने की कार्रवाई तो समझ में नहीं आयी,तकनीकी क्रांति से सिक कबाब बनी जिंदगी को लेकर भी वे बेफिक्र हैं तो प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विनिवेश को वे राष्ट्रहित मानने लगे हैं।


ऐसा है यह धर्म राजनीति और पूंजी का संहारक त्रिभुज।


धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री ने बाकायदा राजसूयकर्मकांड विधि से रेलवे के निजीकरम का ऐलान कश्मीर से इसलिए किया है कि ताकि यह मामला भी अघोषित तौर पर निषिद्ध पाठ में शामिल हो जाये।


हमने कल रात इस प्रकरण पर अंग्रेजी में अपने आलेख में डिसइनवेस्टमेंट एजेंडा का खुलासा डिसइनवेस्टमेंट कौसिल की निजी कंपनियों के मालिकान का सरकारी उपक्रमों के खिलाफ युद्धघोषणा के दस्तावेज के साथ किया है।


जाहिर है,वह कहीं छपना नहीं है।चाहें तो मेरे ब्लागों में देख लें।


Long time before Budget,it is Killing time!PM hints at increased private sector role in Railways! Get bullet to destroy your rural India! If private players are allowed to harvest in the most sensitive defence arena,why should the private players not to be allowed to play on Railway pitch!In fact,they have already captured most of the structural Railway services skipping Railway staff and the workforce in Railway is getting size zero with greater speed than the Bullet train.

http://ambedkaractions.blogspot.in/2014/07/long-time-before-budgetit-is-killing.html



हम दृष्टिंअंध है।


सावन के गधों की तरह हमें दसों दिशाओं में हरियाली ही हरुयाली नजर आती है।

पतझड़ का रंग और मिजाज हम जानते नहीं है।


रैप म्युजिक और रीमिक्स में समयबद्ध विशुद्ध भारतीय राग आधारित शास्त्रीय संगीतसुनने का मन और कान दोनों हम खो चुके हैं।


हम देख नहीं रहे हैं कि अघोषित तौर पर पिछले तेइस सालों से विमानन,रेलवे, परिवहन,शिक्षा,चिकित्सा,डाक तार संचार,ऊर्जा, बैंकिंग, बीमा,बंदरगाह,शहरी विकास,निर्माण विनिर्माण,खुदरा कारोबार,खाद्य आपूर्ति,पेयजल,तेल और गैस,खनन, विज्ञान और आविस्कार,मीडिया और तकनीक,इंजीनियरिंग,प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा  समेत तमाम सेक्टरों और सेवाओं के साथ रेलवे का अघोषित बसरकारीकरण विश्वबैंक और वैश्विक व्यवस्थाओं के गुलामों ने कर दी है।


हम देख नहीं रहे हैं, ग्राम्यभारत का महाश्मशान जहां स्वर्णिम राजमार्गों और एक्सप्रेस हाईवे के नेटवर्क के जाल मे महासेजों,शैतानी औद्योगिक गलियारों और दसलखिया महानगरों के उत्थान का प्रेतसमय।


रेलवे कर्मचारियों की तादाद लगातार कम होती रहीं है।


रेलवे में निर्माण और तमाम जरुरी सेवाओं का निजीकरण पहले से हो चुका है और अब रेलपथों को निजी कंपनियों को सौंपने की बारी है।


बैकिंग और बीमा में निजी पूंजी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये सरकारी उपक्रमों को बहुत पहले बाट लग चुकी है।


सारे के सारे बंदरगाह बिकने लगे हैं।


एअर इंडिया का काम तमाम।रिलायंस को अंबानी को सौंपने की देर है,बस।


मीडिया,ऊर्जा,निर्माण विनिर्माण,टेलीकाम से लेकरतेल और गैस तो रिलायंस के हवाले हैं ही।


चाय और जूट उद्योग का कबाड़ा हो गया है दशकों पहले।


कपास से सिर्फ आत्महत्याओं का अनंत चरखा काता जा रहा है।


कपड़ा उद्योग तो इंदिरा गांधी ही धीरूभाई अंबानी को सौंपकर हावड़ा के मैनचेस्टर को तबाह कर चुकी हैं।


इंजीनियरिंग खत्म है।


तकनीकी क्रांति और सेवा विस्फोट।


रोजगार खत्म।


खेती तबाह।


सिर्फ सेवा क्षेत्र और आयात निर्यात पर निर्भर विकास दर और भुगतान संतुलन।


निवेशकों की आस्था कुलमिलाकर इस कर्मकांडी अंधविश्वासी कुसंस्कारी देश में आस्था और धर्म कर्म पर भारी।


बाकी बचा सेनसेक्स और सेक्स,जसमें सांढ़ों का राज है।


हम एक दशक से वाणिज्य राजधानी मुंबई में रेलवे,ऊर्जा,बैंकिंग,पोर्ट,बीमा,विमानन, तेल गैस समेत तमाम सेक्टरों के शीर्ष अधिकारियों और ट्रेड युनियनों के अलावा आम व्रक्र्स के मुखातिब होते रहे हैं।


मुंबई में ही वर्षों से बजट की व्याख्या करते रहे हैं।


बंदरगाहों की धूल फांकते रहे हैं।


बाकी देश में भी दौड़ लगाते रहे हैं।


लेकिन मलाईदार तबकों का वर्चस्व इतना प्रबल है कि हमारी आवाज अनसुनी रह गयी।


अब तमाम कायदे कानून को खत्म करने की योजना है।


संसद पहले से हाशिये पर है।


लोकतांत्रिक ढांचा खत्म है।

अस्मिताओं और अलगाव के अलावा देश में कुछ बचा ही नहीं है।


हर गली में नये नये धर्मयोद्धा।


हर गली में एंकाउटर का माहौल।


सब्सिडी खत्म तो सामाजिक योजनाओं के साथ लोककल्याणकारी राज्य भी खत्म।


भड़ुवा सिविल सोसाइटी।


कारपोरेट मीडिया।


दल्ला साहित्य।


ऐसे महातिलिस्म में इस धर्म युद्ध के मुकाबले हम सभी इक्के दुक्के प्रतिवादी स्वर का हश्र वहीं अभिमन्यु है।


हम अब भी ब्राजील फुटबाल कार्निवाल  में लहूलुहान ब्राजील को देख नहीं रहे हैं।नहीं सुन रहे हैं सदियों से जारी आदिवासियों की अनंत चीखें।हम रोते हुए खिलाड़ियों को देखकर देश प्रेम से गदगद हैं पर उन आंसुओं के रसायन की पहचान की तमीज हमें नहीं है।


हम बल्कि चिंतित हैं कि मेसी मारादोना बनेगा या नहीं। ब्राजील और अर्जेंटीना का फािनल होगा कि नहीं।


हम बल्कि चिंतित हैं कि अपनी मेजबानी में विश्वकप जीतने का ख्वाब देख रही ब्राजील की टीम को उस समय तगड़ा झटका लगा जब उसका सबसे चर्चित खिलाड़ी नेमार रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के कारण टूर्नामेंट से बाहर हो गया। नेमार को यह चोट कल क्वार्टर फाइनल में कोलंबिया पर मिली 2-1 से जीत के दौरान लगी। कोलंबियाई डिफेंडर जुआन जुनिग के साथ यहां मैच के अंतिम मिनटों में गेंद लपकने के प्रयास में नेमार इस कोलंबियाई खिलाड़ी के घुटने से टकराकर मैदान पर गिर गए और उन्हें दर्द से कराहते हुए स्ट्रेचर पर बाहर ले जाया गया।


जाहिर है कि नेमार की चोट और कप्तान थिएगो सिल्वा के अगले मैच के निलंबन जैसी बुरी हैं ब्राजील के लिए और हम ब्राजील प्रेमी अपने देश के आदिवासियों के जीने मरने की खबर नहीं रखते ,ब्राजील के बेदखल आदिवासियों को क्यों रोयें।





अकारण नहीं किआगामी आम बजट में सुधारवादी एवं विकासोन्मुखी कदम उठाए जाने की उम्मीद में तेल व गैस क्षेत्र सहित प्रमुख शेयरों में लिवाली समर्थन से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 138 अंक की बढ़त के साथ नई रिकार्ड ऊंचाई 25,962.06 अंक पर बंद हुआ।


अकारण नहीं है कि देश के शेयर बाजारों में पिछले सप्ताह प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी में तीन फीसदी से अधिक तेजी रही। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स पिछले सप्ताह 3.43 फीसदी या 862.14 अंकों की तेजी के साथ शुक्रवार को 25,962.06 पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 3.23 फीसदी या 242.8 अंकों की तेजी के साथ 7,751.60 पर बंद हुआ।


तीस शेयरों के भव से देश की आर्थिक सेहत बताते हैं अर्थशास्त्री और उसी मुताबिक नीति निर्धारम होता है।एक सौ बीस कराड़ की जनता तो जनगणना,आधार परियोजना या सिटीजन कार्ड और सचल वोटबैंक वास्ते हैं।


क्या फर्क पड़ता है कि आनेवालों दिनों में एलपीजी सिलेंडर के दाम में भारी इजाफा हो सकता है। पेट्रोलियम मंत्रालय विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुरूप मिट्टी के तेल व रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति (सीसीपीए) के पास भेजेगा।


भरोसा कीजै,अच्छे दिनों के ख्वाब रचिये कि वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि हर साल जुलाई-दिसंबर के दौरान जमाखोरी के कारण कुछ खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ती है। बढ़ती महंगाई के लिए जमाखोर जिम्‍मेवार हैं।वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को जल्द लागू करने के लिये केन्द्र सरकार राज्यों के साथ राजस्व क्षतिपूर्ति से जुड़े मुद्दे का समाधान करेगी। जीएसटी नई कर व्यवस्था है जिसमें मौजूदा अप्रत्यक्ष करों को समाहित किया जायेगा।


बहरहाल,जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर का आर्थिक विकास काफी हद तक रेलवे पर निर्भर है । उन्होंने जम्मू-बारामुला रेलवे ट्रैक के उन हिस्सों को जल्द पूरा करने की आवश्यकता पर जोर दिया जो अब तक नहीं जुड़ पाए हैं ।

उमर ने कहा कि जम्मू कश्मीर को शेष देश से आर्थिक रूप से जोड़ा जाना रेलवे पर निर्भर करता है और इस पहल के जरिए इसे समग्र बढ़ावा मिलेगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कटरा रेल लाइन परियोजना के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में जम्मू खंड में पुंछ-राजौरी, डोडा-किश्तवाड़ को जोड़ने तथा कश्मीर घाटी में विभिन्न स्थानों, खासकर तंगमार्ग, पहलगाम और अन्य पर्यटन क्षेत्रों में रेल पटरी के विस्तार की आवश्यकता भी जताई ।

उमर ने कहा कि कश्मीर में रेल सेवाएं एक सपना थीं । उन्होंने लोगों की इस इच्छा को अमली जामा पहनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी जिक्र किया । उन्होंने उधमपुर से कटरा तक रेलवे लाइन के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया और उम्मीद जताई कि विभिन्न स्थानों पर रेल लाइन के विस्तार की राज्य की मांग को इसके व्यापक आर्थिक एवं विकास हितों के लिए पूरा किया जाएगा ।उमर ने जम्मू रेलवे स्टेशन को उन्नत करने और देश के मॉडल शहरों जम्मू एवं श्रीनगर में विभिन्न पर्यटन और सौंदर्य परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए भी प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की ।

कटरा तक ट्रेन संपर्क महत्वाकांक्षी कश्मीर रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है जो घाटी को शेष देश से जोड़ेगी । कटरा और बनिहाल र्दे के बीच अंतिम लिंक के वर्ष 2018 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है । कुल 25 किलोमीटर लंबी उधमपुर-कटरा लाइन लंबे इंतजार के बाद शुरू हुई है जिसके निर्माण पर 1,132.75 करोड़ रूपये की अनुमानित लागत आई है ।

यह ट्रेन 7 सुरंगों और 30 से अधिक छोटे-बड़े पुलों से गुजरेगी । उधमपुर और कटरा के बीच एक छोटा स्टेशन चक्रख्वाल होगा । ट्रेनें अब सीधे कटरा तक पहुंचेंगी क्योंकि 53 किलोमीटर लंबी जम्मू-उधमपुर रेल लाइन पहले ही परिचालन में आ चुकी है । इससे वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालु सीधे आधार शिविर कटरा पहुंच सकेंगे ।


रेलवे की ऊंची उड़ान

नवभारत टाइम्स | Jul 5, 2014, 01.00AM IST


दिल्ली और आगराके बीच सेमी हाई स्पीड ट्रेन के सफल परीक्षण के जरिए भारतीय रेलवे ने एक ऊंची उड़ान की शुरुआत की है। बुलेट ट्रेन चलाने की दिशा में इसको एक छोटा कदम माना जा सकता है। वैसे यह स्वप्न अभी बहुत दूर है और इस तक पहुंचने के लिए कठिन रास्तों से गुजरना पड़ेगा। बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका वादा किया है और कहा है कि बड़े शहरों को तेज गति के रेल नेटवर्क से जोड़ऩे के लिए 'हीरक चतुर्भुज' बनाया जाएगा। भारत में बुलेट ट्रेन चलाने की चर्चा नई नहीं है लेकिन इसकी ख्वाहिश पालने के बावजूद इस मामले में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो पाई है।


आज भी देश में सबसे तेज चलने वाली ट्रेन भोपाल शताब्दी की रफ्तार दिल्ली और आगरा के बीच कहीं-कहीं 150 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है। वैसे इसकी औसत गति केवल 86 किलोमीटर प्रति घंटा ही है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो दिल्ली-आगरा के बीच प्रस्तावित ट्रेन सितंबर से 160 किलोमीटर की गति से दौड़ती दिखेगी। हालांकि बुलेट ट्रेन से जुड़ी भारतीय महत्वाकांक्षा को कई लोग संदेह से देखते हैं। उनका सवाल है कि जो भारतीय रेलवे बुनियादी समस्याओं से ही नहीं उबर पा रही, वह क्या हाई स्पीड ट्रेन आराम से चला ले जाएगी?



बुलेट ट्रेन चलाने वाले चीन, जापान, फ्रांस और इटली जैसे मुल्कों ने अपने सामान्य रेल तंत्र को पहले ही काफी मजबूत बना लिया था। भारत इस मामले में उनसे काफी पीछे है। भारतीय रेल अपने नेटवर्क में सालाना औसतन 220 किलोमीटर का ही विस्तार कर पा रही है जबकि चीन में रेलवे का सालाना फैलाव 1,000 किलोमीटर का है। हाई स्पीड ट्रेन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत पड़ेगी। सामान्य ट्रेनों की एक किलोमीटर पटरी बिछाने पर तीन करोड़ का खर्च आता है, जबकि बुलेट ट्रेन के लिए यह खर्च 8 करोड़ बैठता है। फिर उसके लिए बड़े पैमाने पर बिजली की व्यवस्था भी एक समस्या है। फिर खर्चे और आमदनी का हिसाब देखते हुए क्या यह समझदारी भरा प्रोजेक्ट साबित होगा?


अच्छे दिन का सौंदर्यशास्त्र भी गोरा बनाने के कारोबार का सौंदर्यशास्त्र है।

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अच्छे दिन का सौंदर्यशास्त्र भी गोरा बनाने के कारोबार का सौंदर्यशास्त्र है।


आंकड़ों और परिभाषाओं से जब अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकते हैं, तो बजट की कवायद आखिर क्यों है और जब नीतिगत घोषणाएं बजट से पहले हो जाती है तो संसद में बजट पेश करने का औचित्य नवधनाढ्यों को मामूली राहत देने और पूंजी को हर संभव छूट और रियायत देने के अलावा क्या हो सकती है?


अब यह भी समझने वाली बात है कि इस मुक्त बाजारी अश्वमेध की जो अवैध संतानें हैं,अकूत धन संपत्ति बिना किसी उत्पादन या बिना किसी लागत या बिना किसी पूंजी के यूंही हासिल कर रहे हैं जो लोग,जो मलाईदार तबका बनकर तैयार है और जो लोग इस नवधनाढ्य समय में उड़ते हुए नोटों के दखल खेल में निष्णात हैं, आजादी, दूसरी आजादी और क्रांति,समता और सामाजिक न्याय की उदात्त घोषणाोओं के बावजूद व्यवस्था परिवर्तन में उनकी क्या दिलचस्पी हो सकती है,समझने वाली बात है।



पलाश विश्वास


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भारत में अब सत्ता की भाषा विज्ञापनी सौंदर्यशास्त्र और व्याकरण के मुताबिक है।

इसी इस तरह से समझें,बालीवूड के बादशाह आजकाल पुरुषों को गोरा बनाने के एक विज्ञापन क लिए माडलिंग कर रहे हैं।पूर्व पीएमईएसी चेयरमैन सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने देश में गरीबी के स्तर के तेंदुलकर समिति के आकलन को खारिज कर दिया है और कहा है कि भारत में 2011-12 में आबादी में गरीबों का अनुपात कहीं ज्यादा था और 29.5 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा के नीचे थे। रंगराजन समिति के अनुसार, देश में हर 10 में से 3 व्यक्ति गरीब है।रंगराजन साहेब ने जैसे ही तेंदुलकर साहेब के प्रतिमानों और आंकड़ों में थोड़ा फेरबदल किया तो दस करोड़ लोग और गरीबी रेखा के नीचे चले आये।इसका मतलब यह हुआ कि तेंदुलकर साहेब ने मंटेक राज के दौरान गरीबी रेखा की परिभाषा बदलकर बिना कुछ किये एक झटके से दस करोड़ लोगो को गरीबी केभूगोल से बाहर निकाल दिया था।जाहिर है कि अच्छे दिन आ गये हैं तो इन दस करोड़ के साथ बाकी गरीबों का कल्याण भी हो जायेगा।


भारत में गोरा बनने की ललक पहले महिलाओं में थी,गोरा न होकर भी पुरुष वर्चस्व और पुरुषतांत्रिक सामंती समाज व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आया है।


हालांकि बेरोजगारी और अंधेरे भविष्य के मद्देनजर अब युवा समाज को सेक्स और नशे के नेटव्रक में कैद कर लेने का चाकचौबंद इतजाम हो चुका है,जिसके तहत वर्च्युअल सेक्स यानी बिना शारीरिक संबंध के तकनीकी सक्स का कारोबार चल रहा है।


पुरुषों की उत्कट सौंद्रर्य चेतना अब स्त्रियों को भी लज्जित कर सकती है।


सुगंध,तेल और कंडोम का कारोबार तो था ही,अब गोरा बनाने का कारोबार भी चल निकला है।


अब एक पुरुषों को गोरा बनाने का एक प्रोडक्ट लांच हुआ है ,जिसमें बादशाह सीना ठोककर कह रहे हैं कि संघर्ष के दिनों में इस उत्पाद को हमेशा साथ रखने में ही उनकी कामयाबी का राज है।


अब जो प्रोडक्ट अभी अभी लांच हुआ है,दो दशक पहले उसे संघर्ष के दिनों में वे कैसे सात रखते हैं,यह सवाल कोई पूछ नहीं रहा है।


अच्छे दिन का सौंदर्यशास्त्र भी गोरा बनाने के कारोबार का सौंदर्यशास्त्र है।


बजट के दिनों में आंकड़ों की कलाबाजी कुछ ज्यादा ही निखर जाती है।आंकड़ों के मार्फत नीतिगत घोषणाएं होती हैं और योजनाएं भी उसी मुताबिक बनती है। विकास दर का आंकड़ा ग्लोबीकरण समय में विकास और सभ्यता के प्रतिमान हैं तो सेनसेक्स की उछाल अर्थव्यवस्था की सेहत का वेदर क्लाक हैं।


भारत की राजनीति अस्मिताओं के मुताबिक चलती हैं,यह तो सारे लोग बूझ ही गये हैं।


बूझी हुई पहले गरीबी भी है।


एक रेखा खींच देने से ही जब गरीब खत्म हो जाती है,तो गरीबी उन्मूलन की इतना घोषणाओं और कार्यक्रमों की क्या जरुरत है,समझ से बाहर हैं।तेंदुलकर साहेब ने गरीबी घटा दी थी और नई परिभाषा गढ़कर रंगराजन ने गरीबी बढ़ा दी।मजा तो यह है कि आर्थिक नीतियों की निरंतरता बनी हुई है और जनसंहारक सुधारों का दूसरा चरण निर्माय़क निर्ममता से जारी है।


तो सवाल है कि जिन नीतियों के चलते यह गरीबी बढ़ी और जिसे छुपाने का काम परिभाषा और आंकड़ों से हुआ,उन्हीं नीतियों से यह बढ़ी हुई गरीबी कैसे दूर होगी और कैसे आयेंगे अच्छे दिन।


अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ जमीनी हकीकत से जुड़ने के लिए शीत ताप नियंत्रित महलों से बाहर नहीं निकलते तो हमारे निर्वाचित जन प्रतिनिधि करोड़पति कम से कम हैं और थोक दरों पर अरबपति भी बन रहे हैं।लेकिन इंदिरा समय से बिना कृषि या औदोगिक उतापादन प्रणाली में सुधार किये सिर्फ परिभाषाओं और आंकड़ों से गरीबी उन्मूलन का यह महती कार्यक्रम इंदिरा समय से चला आ रहा है।रंगराजन रपट से इस अनंत धारा में कोई बदलाव के आसार नहीं है।


उत्पादक शक्तियों की इस देश की अर्थव्यवस्था में कोई भूमिका नहीं है।नई सरकार के श्रम कानून संशोधन एजंडा से साफ जाहिर है।तो अतिरिक्त दस समेत आंकड़ों में मौजूद गरीबों की गरीबी दूर करने का ठेका फिर वही बिल्डर प्रमोटर कारपोरेट राज,क्रययोग्य अनुत्पादक सेवा उपभोग क्षेत्रों,अबाध पूंजी प्रवाह के लिए विनियमन,विनिवेश,निवेशकों की अटल आस्था और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के भरोसे पर ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का उपक्रम है।सारे कानून बदलकर पूरे देश को आखेटगाह बनाकर और औद्योगीकरण के नाम पर मुक्तबाजार के मेगा कत्लगाहों ,कत्ल गलियारों के निर्माण जरिये अंधाधुध शहरीकरण और जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता मानवाधिकार नागरिक अधिकार से बेदखली का फिर वही निरंतर जारी धर्मोन्मादी खेल।


फिर वही धर्म राजनीति और पूंजी का संहारक गठजोड़।आर्थिक अंग्रेजी अखबारों की तो कहिये मत,भाषाई मीडिया में बजट पूर्व प्राथमिकताओं में कारपोरेटलाबिइंग की धार देख लीजिये और इस त्रिभुज में बढ़ते धर्मोन्मादी तड़की की गंध समझ लीजिये।अमित साह और जावड़ेकर कम पड़ गये,देश की राजनीति दुरुस्त करने के लिए राममाधव का आवाहन है।


समांतर सत्ता चलाने वाले कारपोरेट मीडिया का गरीबों से कोई वास्ता नहीं है।


अब यह भी समझने वाली बात है कि इस मुक्त बाजारी अश्वमेध की जो अवैध संतानें हैं,अकूत धन संपत्ति बिना किसी उत्पादन या बिना किसी लागत या बिना किसी पूंजी के यूंही हासिल कर रहे हैं जो लोग,जो मलाईदार तबका बनकर तैयार है और जो लोग इस नवधनाढ्य समय में उड़ते हुए नोटों के दखल खेल में निष्णात हैं, आजादी, दूसरी आजादी और क्रांति,समता और सामाजिक न्याय की उदात्त घोषणाओं के बावजूद व्यवस्था परिवर्तन में उनकी क्या दिलचस्पी हो सकती है,समझने वाली बात है।


विश्व के इतिहास में जनविद्रोहों और क्रांतियों के इतिहास को देखें तो समझा जा सकता है कि व्यवस्था के शिकार लोग जब सड़कों और खेतों,कारखानों,जंगलों और पहाड़ों में गोलबंद होकर प्रतिरोध करते हैं,तभी परिवर्तन होता है।


नेतृत्व भी उन्हीं तबकों से उभर कर आता है।


मौजूदा व्यवस्था को यथावत रखने या उसको और ज्यादा जनसंहारक तत्व परिवर्तन के पक्षधर कैसे हो सकते हैं,यह समझने वाली बात है।


देश में उत्पादक और सामाजिक शक्तियों के मौजूदा तंत्र के विरुद्ध लामबंद होने की हलचल नहीं है।


जनांदोलन विदेशी वित्त पोषित कार्यक्रम है और सब्जबाग सजोकर,मस्तिष्क नियंत्रण मार्फत राजकाज और नीति निर्धारण की तमाम सूचनाओं को सिरे से अंधेरे में रखकर विज्ञापनी भाषा में जो सत्ता की राजनीति चल रही है,देश का हर तबका,विंचिक निनानब्वे फीसद जनता भी उसी आभासी ख्वाबगाह के तिलिस्म में कैद है।


अर्थशास्त्री तेंदुलकर और अर्थशास्त्री रंगराजन के दोनों मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था के महान प्रवक्ता है,दूसरी तमाम रपटों और आंकड़ों को जारी करने वालों की तरह।रंगराजन की यह रपट बल्कि केसरिया समय की पहल है,जिसका मुख्यकार्यभार इस गरीबी का ठीकरा पर्ववर्ती सरकार के मत्थे डालना है,गरीबी उन्मूलन का कतई नहीं।


देश में हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं।


न कृषि और न औद्योगिक उत्पादन में कोई चाम्कारिक वृद्धि हुई है।


अर्थव्यवस्था की बुनियाद में भी कोई बेसिक परिवर्तन नहीं हुआ है,विदेशी रेटिंग और सेनसेक्स की बढ़त के अलावा।


कोई परिवर्तन हुआ नहीं है विदेशी निवेशकों की आस्था मुताबिक धर्मोन्मादी जनादेश माध्यमे बिजनेस फ्रेंडली सरकार के अलावा।


कोई परिवर्तन हुआ नहीं है चुनी हुई सरकार और सत्ता पार्टी,संसद के हाथों से सत्ता संघ परिवार में केंद्रित होने के अलावा।


कोई परिवर्तन हुआ नहीं है दूसरे चरण के नरमेधी राजसूय को रिलांच करने के अलावा।


प्रतिमानों में फेरबदल भी खास नहीं है लेकिन गरीबी की परिभाषा से ही दस करोड़ लोगों की गरीबी खत्म हो गयी।तो परिभाषा बदलकर दस करोड़ लोगं को और गरीब बता दिये जाने से,तमाम कायदे  कानून खत्म कर दिये जाने से,दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों से यह बड़ीहुई गरीबी दूर हो जायेगी,ऐसा किस अर्थशास्त्त्र में लिखा है,इसके पाठ के संदर्भ तो डां.मनमोहन सिंह, मंटेक सिंह आहलूवालिया,राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और चिदंबरम जैसे लग दे सकते हैं,जिनके बीस साल के किये धरे कोखारिज किया जा रहा है।


बुनियादी मसला तो यह है कि  आंकड़ों और परिभाषाओं से जब अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकते हैं, तो बजट की कवायद आखिर क्यों है और जब नीतिगत घोषणाएं बजट से पहले हो जाती है तो संसद में बजट पेश करने का औचित्य नवधनाढ्यों को मामूली राहत देने और पूंजी को हर संभव छूट और रियायत देने के अलावा क्या हो सकती है,गैर अर्थ विशेषज्ञों के लिए समझना मुश्किल है।


लेकिन इस जनविरोधी,जनसंहारक सर्वनाशी अर्थ शास्त्र के तिलिसम को समझे बिना उत्पादक और सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी पीड़ितों और वंचितों की अगुवाई में असभव ही है।


बहरहाल योजना मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को सौंपी गई रिपोर्ट में रंगराजन समिति ने सिफारिश की है कि शहरों में प्रतिदिन 47 रुपए से कम खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीब की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, जबकि तेंदुलकर समिति ने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 33 रुपए का पैमाना निर्धारित किया था।


रंगराजन समिति के अनुमानों के अनुसार, 2009-10 में 38.2 प्रतिशत आबादी गरीब थी जो 2011-12 में घटकर 29.5 प्रतिशत पर आ गई। इसके विपरीत तेंदुलकर समिति ने कहा था कि 2009-10 में गरीबों की आबादी 29.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत रह गई।

सितंबर, 2011 में तेंदुलकर समिति के अनुमानों की भारी आलोचना हुई थी। उस समय, इन अनुमानों के आधार पर सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा गया था कि शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति रोजाना 33 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति रोजाना 27 रुपए खर्च करने वाले परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर समझा जाए।

सरकार ने तेंदुलकर समिति के मानकों और तरीकों की समीक्षा के लिए पिछले साल रंगराजन समिति का गठन किया था ताकि देश में गरीबों की संख्या के बारे में भ्रम दूर किया जा सके। रंगराजन समिति के अनुमान के मुताबिक, कोई शहरी व्यक्ति यदि एक महीने में 1,407 रुपए (47 रुपए प्रति दिन) से कम खर्च करता है तो उसे गरीब समझा जाय, जबकि तेंदुलकर समिति के पैमाने में यह राशि प्रति माह 1,000 रुपए (33 रुपए प्रतिदिन) थी।

रंगराजन समिति ने ग्रामीण इलाकों में प्रति माह 972 रुपए (32 रुपए प्रतिदिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीबी की श्रेणी में रखा है, जबकि तेंदुलकर समिति ने यह राशि 816 रुपए प्रति माह (27 रुपए प्रतिदिन) निर्धारित की थी।

रंगराजन समिति के अनुसार, 2011-12 में भारत में गरीबों की संख्या 36.3 करोड़ थी, जबकि 2009-10 में यह आंकड़ा 45.4 करोड़ था। तेंदुलकर समिति के अनुसार, 2009-10 में देश में गरीबों की संख्या 35.4 करोड़ थी जो 2011-12 में घटकर 26.9 करोड़ रह गई।


निर्धनता रेखा

http://hi.wikipedia.org/s/4mn

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

गरीबी रेखाया निर्धनता रेखा (poverty line) आयके उस स्तर को कहते है जिससे कम आमदनीहोने पे इंसान अपनी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने मे असमर्थ होता है । गरीबी रेखा अलग अलग देशों मे अलग अलग होती है । उदहारण के लिये अमरीकामे निर्धनता रेखा भारतमे मान्य निर्धनता रेखा से काफी ऊपर है ।

यूरोपीय तरीके के रूप में परिभाषित वैकल्पिक व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें गरीबों का आकलन 'सापेक्षिक' गरीबी के आधार पर किया जाता है। अगर किसी व्यक्ति की आय राष्ट्रीय औसत आय के 60 फीसदी से कम है, तो उस व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिताने वाला माना जा सकता है। औसत आय का आकलन विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए माध्य निकालने का तरीका। यानी 101 लोगों में 51वां व्यक्ति यानी एक अरब लोगों में 50 करोड़वें क्रम वाले व्यक्ति की आय को औसत आय माना जा सकता है। ये पारिभाषिक बदलाव न केवल गरीबों की अधिक सटीक तरीके से पहचान में मददगार साबित होंगे बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी ऐसा व्यक्ति जो गरीब नहीं है उसे गरीबों के लिए निर्धारित सब्सिडी का लाभ न मिले। परिभाषा के आधार पर देखें तो माध्य के आधार पर तय गरीबी रेखा के आधार पर जो गरीब आबादी निकलेगी वह कुल आबादी के 50 फीसदी से कम रहेगी।

योजना आयोग ने 2004-05 में 27.5 प्रतिशत गरीबी मानते हुए योजनाएं बनाई थी। फिर इसी आयोग ने इसी अवधि में गरीबी की तादाद आंकने की विधि की पुनर्समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया था, जिसने पाया कि गरीबी तो इससे कहीं ज्यादा 37.2 प्रतिशत थी। इसका मतलब यह हुआ कि मात्र आंकड़ों के दायें-बायें करने मात्र से ही 100 मिलियन लोग गरीबी रेखा में शुमार हो गए।

अगर हम गरीबी की पैमाइश के अंतरराष्ट्रीय पैमानों की बात करें, जिसके तहत रोजना 1.25 अमेरिकी डॉलर (लगभग 60 रुपये) खर्च कर सकने वाला व्यक्ति गरीब है तो अपने देश में 456 मिलियन (लगभग 45 करोड़ 60 लाख) से ज्यादा लोग गरीब हैं।

भारत में योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि खानपान पर शहरों में 965 रुपये और गांवों में 781 रुपये प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि इस तरह शहर में 32 रुपये और गांव में हर रोज 26 रुपये खर्च करने वाला शख्स बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा को पाने का हकदार नहीं है। अपनी यह रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर दी। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए थे। आयोग ने गरीबी रेखा पर नया क्राइटीरिया सुझाते हुए कहा कि दिल्ली, मुंबई, बंगलोर और चेन्नई में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वह गरीब नहीं कहा जा सकता।

बाद में जब इस बयान की आलोचना हुई तो योजना आयोग ने फिर से गरीबी रेखा के लिये सर्वे की बात कही।



नई गरीबी रेखा

टी. एन. नाइनन / नई दिल्ली July 04, 2014

दो वर्ष पहले रंगराजन समिति का गठन किया गया था ताकि वह गरीबी के मसले पर नए सिरे से विचार कर सके। खबरों के मुताबिक उसने गरीबी का निर्धारण करने के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है। हालांकि यह तरीका केवल भारत के लिए नया है, अमेरिका और यूरोप में इसे पहले से ही आजमाया जा रहा है। इसके तहत गरीबी का निर्धारण आय के विशिष्टï स्तर के आधार पर नहीं बल्कि उसके औसत स्तर के सापेक्षिक आधार पर किया जाएगा।

अमेरिका की बात करें तो वहां जिसकी आय औसत से 40 फीसदी अथवा उससे कम होगी वह गरीब है। वहीं यूरोप में और अधिक उदार तरीका अपनाते हुए इसे औसत मध्य से 60 फीसदी कम रखा गया है। हमने अपने स्तम्भों में अक्सर इस तरीके की वकालत की है। यह देखते हुए कि देश में आय का स्तर कम है, हमें गरीबी रेखा का निर्धारण करते वक्त अधिक उदार यूरोपीय मॉडल अपनाना चाहिए और गरीबी रेखा की निर्धारक दर मध्य आय के 60 फीसदी के बराबर रखनी चाहिए (इसका आकलन भी समुचित ढंग से किया जाना चाहिए न कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की तर्ज पर)। अगर ऐसा किया गया तो देश की गरीबी रेखा मौजूदा स्तर से काफी ऊपर निकल जाएगी।

एक अनुमान के मुताबिक अगर किसी ग्रामीण इलाके में पांच सदस्यों वाले परिवार की मासिक आय 6,000 रुपये से कम है और किसी बड़े शहरी इलाके में रहने वाले ऐसे ही परिवार की मासिक आय 11,000 रुपये से कम है तो उसे आधिकारिक तौर पर गरीब माना जाएगा।  देश में गरीबी रेखा को कई बार नए सिरे से निर्धारित किया जा चुका है। वर्ष 1993 की परिभाषा के मुताबिक वर्ष 2011-12 में देश की कुल आबादी का 11 फीसदी हिस्सा गरीब था। ऐसे दावे का समर्थन करना कतई आसान नहीं है। वर्ष 2005 की परिभाषा के हिसाब से देखा जाए (जो मोटे तौर पर 1.25 डॉलर रोजाना की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्य दर के करीब थी) तो यह आंकड़ा 22 फीसदी पर जा टिकता है।

रंगराजन द्वारा दिए गए नए फॉर्मूले के बाद यह आंकड़ा 30 फीसदी को पार कर सकता है। यह हकीकत के अधिक करीब नजर आता है। नई व्यवस्था के दो अन्य लाभ भी हैं। पहली बात, गरीबों के लिए उल्लिखित योजनाओं का लाभ अब सीधे गरीबों के पास जाएगा। दूसरी बात, राष्टï्रीय आय में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ गरीबी रेखा में स्वत: इजाफा होने लगेगा। ऐसे में हम कितने भी समृद्घ हो जाएं, हमारे पास गरीबों का स्पष्टï आंकड़ा होगा जिनका ख्याल रखे जाने की आवश्यकता होगी। एक और मसला है। गरीबी के स्तर वाली आय (या खर्च) का आकलन परिवार के स्तर पर किया जाना चाहिए न कि निजी तौर पर क्योंकि खर्च इकाई परिवार को माना गया है।

पांच सदस्यीय परिवार के लिए 10,000 रुपये का प्रबंधन करना आसान होगा बजाय कि दो व्यक्तियों वाले परिवार के द्वारा 4,000 रुपये का। हालांकि दोनों घरों के लिए प्रति व्यक्ति आय का स्तर एक ही होगा। लेकिन हमारे पास ऐसे आंकड़े नहीं हैं जो परिवारों के हिसाब से आय या खर्च का आकलन कर पाएं। इस दिशा में हमें काम करना होगा। इसके अलावा कौन सा परिवार किस श्रेणी में आता है, यह भी निर्धारित करना होगा और इसमें भी तमाम जटिलताएं हैं। ऐसा इसलिए कि हर राज्य अपने यहां गरीबों का आंकड़ा बढ़ाचढ़ाकर पेश करना चाहता है। कुछ राज्यों ने अपने यहां कुल परिवारों से भी अधिक बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) कार्ड जारी कर रखे हैं।

वित्त मंत्री ने कहा है कि वे सब्सिडी की समस्या से निपटने की कोशिश करेंगे। ऐसा करने के लिए यह जरूरी है कि समझदारी से तय की गई गरीबी रेखा हो ताकि यह तय हो सके कि सरकार की ओर से मिलने वाली छूट और लाभ किसे दिए जाने चाहिए तथा किसे नहीं। उदाहरण के लिए यह बात मूर्खतापूर्ण है कि खाद्य सुरक्षा कानून  के तहत देश की आधी शहरी आबादी और तीन चौथाई ग्रामीण आबादी के लिए खाद्यान्न रियायती दर पर उपलब्ध  कराया जाए। दूसरा उदाहरण लें तो घरेलू गैस का इस्तेमाल करने वाले 29 फीसदी परिवार उन 69 फीसदी परिवारों से बेहतर हैं जो ईंधन के रूप में लकड़ी, फसल के अवशेष अथवा गोबर के कंडों पर निर्भर हैं। उनमें से किसी को कोई सब्सिडी नहीं मिलती। तो फिर घरेलू गैस पर इतनी अधिक सब्सिडी क्यों? अगर सब्सिडी को नियंत्रित करना है तो सही पहचान करना और फिर उन तक ही लाभ पहुंचाना असल चुनौती है। यह आसान काम नहीं है।



गरीबी की बहस

अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष सी रंगराजन ने गरीबी की रेखा निर्धारित करने के लिए नए मानदंड तय किए हैं और इन मानदंडों के आधार पर भारत में लगभग 30 प्रतिशत लोग गरीब हैं। इसके पहले अर्थशास्त्री सुरेश तेंदुलकर ने गरीबी की जो रेखा निर्धारित की थी, उसकी काफी आलोचना हुई थी। तेंदुलकर समिति के मुताबिक, शहरों में 33 रुपये और गांवों में 27 रुपये रोज से कम खर्च करने वाला व्यक्ति गरीबी-रेखा के नीचे है। तेंदुलकर समिति के आकलन के अनुसार, देश में सन 2009-10 में 29.8 प्रतिशत लोग गरीब थे और सन 2011-12 में इनका प्रतिशत घटकर 21.9 फीसदी पर आ गया था। तेंदुलकर समिति की आलोचना मुख्यत: इस बात पर हुई थी कि उसने गरीबी की सीमा रेखा काफी नीचे निर्धारित की है। इसी आलोचना के मद्देनजर रंगराजन समिति का गठन किया गया कि वह गरीबी-रेखा के निर्धारण के लिए तेंदुलकर समिति के मानदंडों की समीक्षा करे और नए मानदंड तय करे। रंगराजन समिति ने शहरों में 47 रुपये और गांवों में 32 रुपये रोजाना को गरीबी-रेखा तय किया है। इस नई रेखा के हिसाब से 2009-10 में गरीबी की रेखा के नीचे 38.2 प्रतिशत जनसंख्या थी, जो 2011-12 में 29.5 प्रतिशत हो गई। इसका मतलब है कि नए मानदंडों से 10 करोड़ लोग गरीबी-रेखा के नीचे आ गए।

इस गरीबी की रेखा पर भी विवाद हो सकता है। हालांकि, यह तेंदुलकर समिति की गरीबी की रेखा से काफी ऊंची है। फिर भी हर मानदंड पर यह बहस तो होगी ही कि यह गरीबी को बढ़ा-चढ़ाकर या घटाकर दिखाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे तेंदुलकर समिति हो या रंगराजन समिति, दोनों के ही आकलन से 2009-10 और 2011-12 के बीच गरीबी में कमी का प्रतिशत तकरीबन बराबर ही रहा है, यानी यह बात पर्याप्त विश्वसनीय तौर पर कही जा सकती है कि इन दो सालों में भारत में लगभग नौ प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से उबरे हैं। यह बड़ी उपलब्धि है और आंकड़े बताते हैं कि पिछले करीब डेढ़ दशक में गरीबी से उबरने की रफ्तार काफी तेज रही है। यह सही है कि भारत में आर्थिक असमानता बढ़ी है, लेकिन यह भी सच है कि आर्थिक नीतियों का फायदा गरीबों को भी मिला है और उनकी तादाद घटी है। अगर गरीबी में कमी की यह रफ्तार बनाई रखी जाए या तेज की जा सके, तो अगले दशक के खत्म होने से पहले भारत में गरीबी-रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत बहुत कम हो जाएगा, भले ही जो भी मानदंड अपनाए जाएं। यह आजाद भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

गरीबों की तादाद में कमी के लिए उदार आर्थिक नीतियों के अलावा गरीबी कम करने के वास्ते लागू की गई योजनाओं ने भी काम किया है। लेकिन प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने से ज्यादा जरूरी जीवन-स्तर की बेहतरी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा और आवास की बेहतर सुविधाएं समाज के गरीब तबकों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं और इन तमाम क्षेत्रों में हमारा रिकॉर्ड बहुत खराब है। भारत स्वास्थ्य के मानदंडों पर अपने तमाम पड़ोसियों से पीछे है और इलाज के खर्च की वजह से लगभग एक करोड़ सीमांत परिवार सालाना गरीबी की रेखा के नीचे चले जाते हैं। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं इस स्थिति को सुधार सकती हैं। शिक्षा गरीबी से उबरने का सबसे प्रभावशाली माध्यम है, इसलिए इस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। गरीबी की रेखा और उसके मापदंड पर मीन-मेख निकालने से ज्यादा जरूरी हमारे देश के नागरिकों को जरूरी बुनियादी सुविधाओं से संपन्न गरिमामय जीवन मिलना है।



किसके दिन अच्छे निकलने वाले हैं।इकोनामिक टाइम्स के इस रपट से समझ लीजिये।

चूंकि सेनसेक्स 31 हजार पार निकलने के आसार हो गये हैं तो समझ लीजिये कि गरीबी भी खत्म।संसद में पेश होने वाली बजट की दशा और दिशा भी तय हो चुकी है और उस पर सिर्फ संसदीय मुहर लगना बाकी है।


Jul 07 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ET EXCLUSIVE - Sensex may Scale 31,000 Peak by March Next Year


MUMBAI

OUR BUREAU





Economic growth expected to rebound from multi-year lows and a new business cycle may emerge from the rubbles of the old one

India's stock market may continue to scale new highs in the next six to nine months as a confluence of easy liquidity, rising retail investor interest and improving investment climate is expected to drive growth in multiples, a panel of top equity strategists and fund managers said at a roundtable organised by ET.

Economic growth is expected to rebound from multi-year lows and a new business cycle may still emerge from the rubbles of the old one, though its expansion could be curbed by stubbornly high inflation and a weak and indifferent monsoon, they added.

The Sensex, the best performer among recognised global markets in 2014, could scale 31,000 by March 2015 in a bull case scenario, according to Ridham Desai, Managing Director and India Equity Strategist of Morgan Stanley. It could double in three years, said S Naganath, president and chief investment officer of DSP Blackrock Investment Managers.

Participants at the round table, held in Mumbai on Friday, July 4, felt that all ingredients of a continued bull

run are firmly in place though the Sensex has jumped 45% since its August 2013 lows of 17,903 and the priceto-earnings multiples have moved up to about 16 times now from about 13 times last year.

"From the valuations point of view one cannot say we are overvalued, but of course it's no longer cheap, and the index is fairly valued," said Nilesh Shah, managing director and CEO, Axis Capital. "Market capital to GDP ratio is not expensive as it used to be during the peak of the bull markets.

So there is some room for expansion."

A return of risk appetite in global markets has fuelled much of the rally with FIIs investing about Rs 64,000 crore into equities so far this year on top of the ` . 113,000 crore invested in 2012. "If you look at the global bond markets there has been a surprising return of risk appetite duration and euphoria and I think that that has a big role to play in the valuations," said Neelkanth Mishra, managing director India Equity Strategist at Credit Suisse. ""The second thing is the bottoming of the Indian economy which is something we have not seen happen elsewhere."

Indian companies have raised about $2.5 billion through qualified institutional placement programme in the past one month, much more than what they raised in 2013. A buoyant market may give a fillip to fund-raising, helping some companies pay off debt though heavily indebted companies may not get money as easily as others. The members of the panel were Ridham Desai, Neelkanth Mishra, Nilesh Shah, Saurabh Mukherjea, CEO Institutional Equities, Ambit Capital, S Naganath and Anoop Bhaskar, head equity UTI Asset Management Company.

The economy may grow over 5% in FY15 while earnings growth may of the Nifty/Sensex companies may cross 16% in FY16. Desai of Morgan Stanley said he was bullish on cyclicals which include eneergy, materials and auto in the shorter time frame, that is one year to 18 months. Consumer staples will struggle but in the longer time frame that is five to seven years, financials and consumer stocks will be the best bet.

S Naganath said that he expects GDP to touch 7% in FY16 and earnings to grow by 20% while Mishra of Credit Suisse expects price to earnings ratio to touch 18 times by next year.







Jul 07 2014 : The Times of India (Ahmedabad)

Rs 47 a day spent in cities breaches poverty line

Mahendra Kumar Singh

New Delhi:

TNN





Rangarajan Panel Pegs No. Of Poor At 363M In '11-12

Those spending over Rs 32 a day in rural areas and Rs 47 in cities should not be considered poor, a panel headed by former RBI governor C Rangarajan said in a report submitted to the BJP-led NDA government last week.

The recommendation, which comes just ahead of the budget session of Parliament, is expected to generate fresh debate over the poverty measure as the committee's report has only raised the bar marginally .

Based on the Suresh Tendulkar panel's recommendations in 2011-12, the poverty line had been fixed at Rs 27 in rural areas and Rs 33 in urban areas, levels at which getting two meals may be difficult.

The panel was tasked with revisiting the Tendulkar formula for estimation of poverty and identification of the poor after a massive public outcry erupted over the abnormally low poverty lines fixed by the UPA government.

The panel's recommenda tion, however, has resulted in a nearly 35% increase in the BPL population. Estimated at 363 million in 2011-12, compared to the 270 million estimate based on the Tendulkar formula, the increase in the BPL population is almost 35%.

This means 29.5% of India's population lives below the poverty line as defined by the Rang arajan committee, as against 21.9% according to Tendulkar.

For 2009-10, Rangarajan has estimated that the share of BPL group in total population was 38.2%, translating into a decline in poverty ratio by 8.7 percentage points over a two-year period.

The real change is in urban areas where the BPL number is projected to have nearly doubled to 102.5 million based on Rangarajan's estimates, compared to 53 million based on the previous committee's recommendations.

In the case of rural areas, the rise is 20% to 260.5 million, compared to around 217 million based on the Tendulkar formula. Rangarajan's estimates would put the BPL share of total population in rural areas at 30.9%, compared to 39.6% in 2009-10. Documents accessed by TOI show that the Rangarajan panel has suggested to the government that those spending more than Rs 972 a month in rural areas and Rs 1,407 a month in urban areas in 2011-12 do not fall under the definition of poverty . If calculated on a daily basis, this translates into a per capita expenditure of Rs 32 per day in rural areas and Rs 47 per day in urban areas in 2011-12. According to the Tendulkar methodology for 2011-12, the poverty line was Rs 816 in rural areas and Rs 1,000 in urban areas, which if calculated on a daily basis come out at Rs 27 per day in rural areas .


Jul 07 2014 : The Economic Times (Kolkata)

India has 100 Million More Poor: Rangarajan Committee

YOGIMA SETH SHARMA

NEW DELHI





The number of India's poor may rise by 100 million if the recommendations of the C Rangarajan committee on poverty, which comes just ahead of the maiden budget of the Narendra Modi government, are accepted by the government.

The Rangarajan committee, which has retained consumption expenditure as the basis for determining poverty , has pegged the total number of poor in the country at 363 million or 29.6% of the population against 269.8 million (21.9%) by the Suresh Tendulkar committee, as per the presentation made by Rangarajan to planning minister Rao Inderjit Singh last week.

The previous UPA government had set up a technical expert group under Rangarajan in 2012 after all-round criticism that the poverty line had been pegged much lower than it should have been by the Tendulkar committee amidst demands to revisit the methodology. Rangarajan headed the Prime Minister's Economic Advisory Council at the time.

However, the committee hasn't detailed the methodology used to arrive at the new numbers in its nine-page presentation made to the minister.

The poverty line is significant as social sector programmes are directed towards those below it and will be something that will factor into finance minister Arun Jaitley's budget-making exercise.

The budget will be announced on July 10.

The Rangarajan committee raised the daily per capita expen . 32 from ` diture to ` . 27 for the rural . 47 from ` poor and to ` . 33 for the urban poor, thus raising the poverty line based on the average monthly per capita expenditure to ` . 972 in rural India and `. 1,407 in urban India. The earlier methodology, devised by Tendulkar, had de fined the poverty line at `. 816 and . 1,000, respectively, based on the ` National Sample Survey Office (NSSO) data for 2011-12.

Thus, for a family of five, the allIndia poverty line in terms of consumption expenditure, as per the Rangarajan committee, would amount to ` . 4,760 per month in rural areas and ` . 7,035 per month in urban areas. The Tendulkar committee had pegged this at ` . 5,000.

. 4,080 and ` As per the Rangarajan committee, the percentage of people below the poverty line in 2011-12 was 30.95 in rural areas and 26.4 in urban areas as compared to 25.7 and 13.7, according to the Tendulkar methodology. The respective ratios for the rural and urban areas were 41.8% and 25.7%, respectively, and 37.2% for the country as a whole in 2004-05. It was 50.1% in rural areas, 31.8% in urban areas and 45.3% for the country as a whole in 1993-94.

Experts said the difference could be explained by variations in assumptions, such as increased expenditure on health and education or following the system of developed countries where the poverty line is defined as a fraction of the average expenditure level or purely going by normative expenditure, thus ignoring actual expenditure on health and education.

Lowering the poverty line could cut out those who need assistance. But reducing the number of poor means governments can claim success for welfare programmes.

The Planning Commission had last year released poverty figures based on the Tendulkar methodology, which had claimed a reduction of 137 million persons over a seven-year period. In 201112, India had 270 million persons below the Tendulkar-stipulated poverty line as compared to 407 million in 2004-05, the commission had said.



ভারতে ১০ জনের মধ্যে তিনজন দরিদ্র



প্রতি দশজন ভারতীয়র মধ্যেই তিনজনই দরিদ্র। এ কথা জানিয়েছে সি রঙ্গরাজন কমিটি। তাঁদের মতে, ২০১১-১২ আর্থিক বছরে মোট জনসংখ্যার ২৯.৫ শতাংশ মানুষই দরিদ্র। এই রিপোর্ট খারিজ করে দিয়েছে দারিদ্র নিয়ে সুরেশ তেণ্ডুলকর কমিটির রিপোর্টকেও। খবর জি নিউজের।

রঙ্গরাজন কমিটির রিপোর্ট জানিয়ে দিয়েছে, শহরাঞ্চলের ক্ষেত্রে ৩৩ টাকা, যাঁরা ৪৭ টাকার নীচে দৈনিক খরচ করেন, তাঁদেরকেই গরীব বলে চিহ্নিত করা যাবে। আর গ্রামাঞ্চলের ক্ষেত্রে অঙ্কটা সাতাশ টাকা নয়, বত্রিশ টাকার নীচে। গত বছর তেণ্ডুলকর কমিটির রিপোর্ট খতিয়ে দেখতে রঙ্গরাজন কমিটি তৈরি করা হয়। পরিকল্পনা মন্ত্রী ইন্দ্রজিত রাওয়ের হাতে কমিটি রিপোর্ট তুলে দিয়েছে।


भारत में ग़रीबी रेखा के निर्धारण का दर्शन, अर्थशास्त्र और राजनीति


फ्रांसीसी क्रान्ति से कुछ पहले फ़्रांस की रानी मैरी एण्टॉइनेट को जब बताया गया कि लोगों के पास खाने के लिए रोटी तक नहीं है तो उसने कहा था कि अगर उनके पास रोटी नहीं तो वे केक क्यों नहीं खा लेते! इसके पहले और बाद भी तमाम शासकों ने ऐसे चमत्कारिक बयान दिये हैं। रोम के ज़ालिम हुक्मरान नीरो ने तो कुछ कहना भी ज़रूरी नहीं समझा था और जब रोम जल रहा था तो वह बांसुरी बजा रहा था। ऐसे बयान हमेशा उन शासकों की ज़ुबान से निकले हैं जिनकी व्यवस्था पतनशीलता के शिखर पर पहुँच चुकी होती है। जब 2000 के दशक की मन्दी ने पहली बार अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर अपनी वक्रदृष्टि डालनी शुरू की थी तो जॉर्ज बुश ने कहा था कि जनता जमकर ख़रीदारी क्यों नहीं करती! अगर वह जमकर ख़रीदारी करे तो मन्दी से निजात मिल जायेगी! हमारे देश के हुक्मरानों ने अपनी शैली में बार-बार ऐसे काम किये हैं। 1989-90 के दौर में जब भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह डगमगायी हुई थी, तो देश के भूख से तड़पते लोगों को संवेदनशील प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर ने पेट पर पट्टी बाँधकर देश के अमीरज़ादों की समृद्धि को बढ़ाने की सलाह दी थी। निश्चित रूप से देश की तरक्की उनके अनुसार धनपशुओं की तरक्की की ही पर्यायवाची थी!


भारत में मैरी एण्टॉइनेट के वंशज


अब पतनशील, मरणासन्न और मानवद्रोही हो चुकी व्यवस्था के पैरोकारों ने ऐसे ही बयानों और दावों की फेहरिस्त में एक नया इज़ाफ़ा किया है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछे गये एक सवाल के जवाब में दायर एक हलफ़नामे में देश के योजना आयोग ने दावा किया कि देश में जो भी व्यक्ति गाँव में रु. 26 प्रतिदिन (रु. 781 प्रति माह) और शहर में रु. 32 प्रतिदिन (रु. 965 प्रति माह) कमा लेता है वह ग़रीब नहीं है! इस दावे का तर्कों से खण्डन करना वक़्त की बरबादी है। इसका खण्डन करने के लिए योजना आयोग के उच्च नौकरशाहों को, जिनका वेतन तमाम सुविधाओं को छोड़कर करीब रु. 80,000 है या फिर रु. 60,000 से अधिक वेतन पाने वाले सांसदों और विधायकों को रु. 26/32 की प्रतिदिन की आय पर महीने भर के लिए छोड़ देना चाहिए! और उसके बाद उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने आपको ग़रीबी रेखा से ऊपर अनुभव किया या फिर नीचे!

http://ahwanmag.com/archives/443

ग़रीबी रेखा के निर्धारण का दर्शन, अर्थशास्त्र और राजनीति

1973-74 के बाद सरकार ने कभी भी सीधे तौर पर नहीं देखा कि देश के कितने प्रतिशत लोग 2100/2400 किलो कैलो…





गरीबी रेखा: नए आंकड़े और एक कदम आगे

मंगलवार, 20 मार्च, 2012 को 01:59 IST तक के समाचार

भारत ग़रीबी

आंकड़ों के मुताबिक भारत की आबादी का 37 फीसदी हिस्सा ग़रीबी रेखा से नीचे है.

सोमवार को योजना आयोग की ओर से जारी पिछले पांच साल के तुलनात्मक आंकड़ें कहते हैं कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के दौरान देश में गरीबी 7 फीसदी घटी है और गरीबी रेखा अब 32 रुपये प्रतिदिन से घटकर 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन हो गई है.

योजना आयोग की ओर से सोमवार को जारी गरीबी के आंकड़े एक बार फिर उस बहस को छेड़ सकते हैं जिसका दारोमदार इस बात पर है कि भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में गरीबी रेखा की परिभाषा क्या हो.

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सोमवार को जारी योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है.

यानि अब शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गांवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता. नए फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है.

इससे एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए हलफनामे के बाद शुरू हुआ था. इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रुपये प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था.

इसके बाद भारत में खाद्य सुरक्षा अधिकारों को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने योजना आयोग के प्रमुख मोंटेक सिंह अहलूवालिया को चुनौती दी थी कि वो अपने बयान पर अमल करते हुए ख़ुद 32 रुपए में एक दिन का ख़र्च चला कर दिखाएं.

'मकसद ग़रीबों की संख्या को घटाना'

विश्लेषकों का कहना है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए ये आंकड़े भ्रामक हैं और ऐसा लगता है कि आयोग का मक़सद ग़रीबों की संख्या को घटाना है ताकि कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फ़ायदा देना पड़े.

भारत में ग़रीबों की संख्या पर विभिन्न अनुमान हैं. आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो भारत की 37 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है. जबकि एक दूसरे अनुमान के मुताबिक़ ये आंकड़ा 77 प्रतिशत हो सकता है.

भारत में महंगाई दर में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.

कई विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे में मासिक कमाई पर ग़रीबी रेखा के आंकड़ें तय करना जायज़ नहीं है.

साल 2011 मई में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि ग़रीबी से लड़ने के लिए भारत सरकार के प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहं हैं.

रिपोर्ट में कहा गया था कि भ्रष्टाचार और प्रभावहीन प्रबंधन की वजह से ग़रीबों के लिए बनी सरकारी योजनाएं सफल नहीं हो पाई हैं.

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/03/120320_poverty_line_pa.shtml


রেল বাজেটের আগে চোখ বিদেশ লগ্নির দিকেই

অনমিত্র সেনগুপ্ত

এক দিকে লোকসানের বোঝা কমিয়ে আয় বাড়ানোর দায়। অন্য দিকে বিশ্বমানের পরিষেবা দেওয়ার সংকল্প। মূলত এই জোড়া লক্ষ্য সামনে রেখেই রেলে বিদেশি বিনিয়োগের ক্ষেত্রে এ বার সুনির্দিষ্ট নীতি আনতে চাইছে কেন্দ্র। আসন্ন রেল বাজেটেই এই সংক্রান্ত ঘোষণা থাকতে পারে বলে মন্ত্রক সূত্রে খবর। সংসদের বাজেট অধিবেশেন শুরু হচ্ছে সোমবার। আর তার পরের দিন, ৮ জুলাই রেল বাজেট।

০৬ জুলাই, ২০১৪

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ভর্তুকির বোঝা কমবে কী ভাবে, দিশাহীন জেটলি

মুখে বলা যতটা সহজ, কাজে করা ঠিক ততটাই কঠিন। বাজেটে ভর্তুকির জগদ্দল পাথর সরাতে গিয়ে সেটাই টের পাচ্ছেন অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি। ডিজেল-রান্নার গ্যাস-কেরোসিনের মতো জ্বালানিতে এবং সর্বোপরি খাদ্য ও সারে ভর্তুকি কমাতে চাইছেন তিনি। কিন্তু কী ভাবে তা কমানো হবে, সেটাই হল প্রশ্ন।

প্রেমাংশু চৌধুরী

০৭ জুলাই, ২০১৪

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লক্ষ্য বাণিজ্য বৃদ্ধি, ব্রাজিল যাচ্ছেন মোদী

প্রধানমন্ত্রিত্বের প্রথম মাসে সার্ক ও দক্ষিণ পূর্ব এশিয়ার দেশগুলোকে অগ্রাধিকার দিয়েছিলেন নরেন্দ্র মোদী। এ বার লাতিন আমেরিকার সঙ্গে বাণিজ্যিক সম্পর্ক বিস্তারে আগ্রহ প্রকাশ করলেন প্রধানমন্ত্রী। এ ছাড়া, চিনের শীর্ষ নেতৃত্বের সঙ্গেও একটি অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ণ বৈঠকে বসছেন তিনি।

নিজস্ব সংবাদদাতা

০৭ জুলাই, ২০১৪

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সূচককে পথ দেখাবে জেটলির আসন্ন বাজেট

বাজেটের দূরত্ব আর মাত্র তিন দিন। সেনসেক্সের ২৬ হাজার ছুঁতে আর মাত্র ৩৮ পয়েন্ট। বৃহস্পতিবার প্রযুক্তিগত গোলযোগে মুম্বই স্টক এক্সচেঞ্জ ঘণ্টা আড়াই বন্ধ না-থাকলে ওই দিনই পর্দায় সম্ভবত ২৬ হাজার দেখতে পেতাম। এর ঠিক আগে সূচক স্পর্শ করেছিল ২৫,৯৯৯ অঙ্ক। শুক্রবার বাজার বন্ধের সময়ে সেনসেক্সের অবস্থান ছিল ২৫,৯৬২ অঙ্কে।

অমিতাভ গুহ সরকার

০৭ জুলাই, ২০১৪

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Jul 07 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ET Pre-Budget Markets Roundtable - FASTEN YOUR SEAT BELTS: WE'RE IN FOR A BULL RUN FASTEN YOUR SEAT BELTS: WE'RE IN FOR A BULL RUN







Monsoon may play truant and the Middle East may explode in an orgy of violence, but Indian investors need not be too worried. A rebounding economy and the return of risk appetite could send the Sensex up to 30,000 by March.

ET Given the various headwinds the government is facing, be it on the in flation front, fiscal front, the economy and investments. What do you think will be the priorities of finance minister Arun Jaitley when he steps in to announce the Budget?

NEELKANTH MISHRA: My view on the budget is -it's actually a lot less important exercise as it's made out to be. The states matter a lot more than the Central government. Hence, from sheer economic impact, the budget is an arithmetic exercise. If you look at it from a fiscal deficit prospective, there is not much the government can really do. Say, for example, in the US, about 11% of the taxes are corporate taxes.

In India, it's 34%, so a large part of the tax is hugely unstable. In government expenditure, 10-15% is discretionary, and the rest is salary, interest payments, defense, etc. There is limited room for announcements. If you look at the budget speech itself for the last 20 years, they remain the same, they are written by the same set of bureaucrats. There will be finetuning, some sectors will benefit and some sectors won't. As a policy statement there could be important updates like GST, DTC and so on. With the government less than six weeks in power, I really don't expect too much. The markets have run-up thinking that the budget is going to do great things. Do you think they will be disappointed?

ANOOP BHASKAR: I think, more than the economy, we have this confluence of events that has happened. If you look at various markets, there is no alternative to India today. For one, we have had good elections in India. Now, going ahead, we have elections in Indonesia, if the outcome is good, then the market attention might shift there. Right now, everyone is looking at India as the only alternative, since there is no other alternative. But these things don't last for too long. Second, we have this confluence of economic cycle which has bottomed out, and the new political cycle is coming at the same time which has lead to huge expectations. In the short term, the markets have voted that things will change very fast. And I don't think there will be any big correction after this budget. I think the real correction, if it would ever to happen, will happen after the next budget. Because, the government then will not have any excuse that they didn't have any time to settle things. So, over the next six months, the government will have enough ammunition, whether in terms of policy reforms to keep the markets up.

So, only in the next budget, the market is going to decide whether we are going to grow at 6% or it's going to take time longer than that. This budget is just the semifinal. The next budget will be the final which will be more crucial for the markets. Ridham, your views on what will be Jaitley's priorities in this budget.

RIDHAM DESAI: I agree that the budget will be about government spending which is about one-seventh of the GDP, which is certainly not the biggest driver of the economy. Government spending is at its near low since the revenues have dried up. Now, this quality of spending is crucial to the economy, it matters a lot. Cumulatively, the government has spent about $35 billion in the last five years. To me, the single factor driving inflation is that the Centre on an annual basis is spending $35 billion on subsidies It's a crucial thing -the quality of spending which I would expect the finance minister to do something about. I would not undermine the importance of the budget from the economic stand point. So, if you want to ride on inflation and growth, monetary policy can only do half the job, the other half has to be done by the quality of fiscal spending. My believe is that this is what investors are currently focused on. The level of spending is already low, but how the government spending will determine the outcome of the economy over the next 20-24 months. And this budget is as important as the next one. It's important to know that how the government is going to us its balance sheet -it's not a small number and it's a big balance sheet. Historically, the government has not used its balance sheet well. The markets are talking about divestment programme which is important. For the government, it's important to se up aggressive divestment targets and put money to kick start projects, as private investments are not coming in. Many balance sheets are broke due to which they are not able to raise capital. And these are two important things which the finance minister should focus on in the budget. And these are the two things that will set the stage for recovery in the next 9-12 months. What are the other means to lift investment in the economy?

RIDHAM DESAI: I think there is a role for the government to play by kick-starting the investment cycle.

People talk about FDI. Actually, I don't think it's important to increase FDI limits. If you look at FDIs, companies are happy to buy stakes in existing businesses and pay up a very large price. But they are very fearful of setting up new green-field projects, because you need 80 different clearances.

Instead of liberalising limits, if the government just reduces the number of limits, it will be easier for foreign investors to come and set up green-field projects which will rebound investment climate. . And these things are outside the budget. In the budget itself, the government can kick-start some of the infrastructure spending, which will change the mix of economic spending that is skewed towards consumption to more towards investments. Saurabh, what is the message you are hearing from foreign investors?

SAURABH MUKHERJEA: Investors have realised that the fiscal room available is very limited. We are half way through the year. And fiscally, we are challenged. I don't think anybody out there is expecting any sort of miracle this year on the fiscal e front. That being said there are three areas where there is a real desire in terms of road maps. The first is the fiscal consolidation road map; there is a great deal of curiosity that how the FM will deliver on this front. From the outside, none of us have the sense t about the pace of fiscal consolidation, and ways and means of consolidation. The second is the GST road map -we are all looking forward to GST to be an nounced whether it's a March 2015 event, or March 2016 event. The third road map is the PSU bank holding company. The government is not in position to recapitalise PSU banks, and we know that Prime minister Narendra Modi is not in favour of priva tisation. We are hopeful that through the Finance Act, the PSU bank holding company will be set up, and we look forward to the timeline when it will be done. These are the three road maps that the inves tors are expecting. If you see two out of the three road maps in the budget, it will be a good budget.

And if you see one out of the three road maps, then one has to answer foreign investors why we are so keen about this new Dawn of India. And if it's three out of three, then there is nothing like it. I think, this year, fiscal arithmetic will make a difference.

The history will remember this budget, not because of the big-bang, but because of the process we have began to lay down road maps on the fiscal side, GST side as well as the public sector bank holding com pany side. We have seen the Sensex going up from 17,000 to around 26,000 and the valuations also going up 16 times to its forward earnings. Is there any leg left in this rally or the markets are reaching near to an overvaluation stage?

NILESH SHAH: From the historical prospective, we are just above the historical valuation. The movement of 17,000 to around 26,000 in a year also tells you that earnings have multiplied in five years. From the valuations point of view, one cannot say we are overvalued. But of course, it's no longer cheap and the index is fairly valued. Now, a lot depends on the government -what steps are being taken to revive growth and investments. Market capital to GDP ratio is not expensive as it used to be dur ing the peak of bull markets.

There is some room for expansion. The bulk of the problem lies with the revenues as they are limited.

How do you think the government can achieve the 7% economic growth rate?

S NAGANATH: I think the key thing is if you infuse clarity in policy-making, streamline and speed up the approval process, they will get investors and industry to start investing. The other thing is psychology. For example, today, we are very bullish. We weren't so bullish 8-9 months ago. Once the corporates are able to raise risk capital, it will help revive the investment cycle. Household savings have gone into properties and gold. What we need now is to move savings into financial assets. Real rates have been flat to negative. One needs to give a positive real rate of return. I would term a proposal -that rather than giving tax incentives to depositors, give them a higher rate of interest. For borrowers, provide them tax incentives, if they repay loans properly. And through this way, the depositor is happy because he is getting a higher rate of return. The bank is happy, because it has got its spreads protected. And though the borrower pays a higher rate of interest, he gets a concession. If the borrower pays the interest on-time, the bank doesn't have any issues since it doesn't have NPAs. From the government point of view, the government saves because it has to less infuse capital into banks, so it matches up.

In the last few days, about $2.5 billion has been raised through QIPs and many companies have announced their intentions to raise funds though this route. Given the state of the market, is it a good step forward in resolving India Inc's indebtedness problem?

NEELKANTH MISHRA: If you look at the debt-tomarket cap of the companies that have been declared as NPAs is about 20 times -it was 21 times two weeks back, and now, it may be 18 times. Any amount of equity-raising is not going to be easy. We ran a screen of BSE 500 companies (non-financial) with a market cap of over $400 million and an EBITDA-to-interest of less than 2.5. There are 60 companies in this universe. I think these overleveraged companies need to go up another 100-200%. So, speculation is an art in many ways. If you have to catch the right stock and you move the stock up, if you have moved it high enough that the fund-raising can happen with a minimum dilution and still some balance-sheet repairing happens, then the guy who entered first has made a lot of money. Now, I think the speculators need to move some of these overleveraged stocks up another 150-200% before they start to reach a level where balance sheet repairs.

NILESH SHAH: We have helped a couple of companies raise money and when you do just a theoretical analysis what you miss out is that where is this latest equity raised going to be used. If it's going to be raised for completing a project which is going to start cash flows and once you hit the cash-flow numbers into projections, things start changing completely.

Second, if you see India Inc, it's been far more dividend than what it has been raising by way of equity. We expect them to invest with equity and with debt. So, until unless they have access to the equity markets, they are unlikely to come back to the investment mode. In this current cycle, where people can see that they are able to raise equity capital, it will lift the sentiment. This is far better than the September 2013 period when people didn't have the hope that they can raise equity.

RIDHAM DESAI: Let me just add one point to what Nilesh said. We did an exercise on top 100 companies in India. Their return on assets is well below the mean. That means there is a 50% upside to current consensus estimates for FY16. So, it would not happen in two years.

But presumably, it happens over three or four years. It is still a significant upside. So don't underestimate the power of a new investment cycle to that extent you know all these calculations and therefore answering your point boils down to specific stocks and companies is that you can end up under estimating all of this a great deal because stocks have gone up and you don't actually see that the earnings can change tremendously over the next 3-4 years. Has the new business cycle started?

RIDHAM DESAI: It looks at least that the previous one has ended. The jury is still out whether the new one has started or not. If the government does the right things, changes the quality of expenditure and does a few moves on the revenue side, I think you can get a new business cycle going.

The jury is out and the markets are betting that the new business cycle has started.

Therefore, the markets could be dead right and we will only know in a year or two from now.

What about the new credit cycle? Do you think that it has started?

RIDHAM DESAI: The loan-to deposit (L/D ratio) for banks has maxed out. We don't have room on the balance sheet. So, unless you lift deposit growth, they can't actually lend. On the private sector side, balance sheet debt is sitting right up here. The borrower doesn't have the capacity to borrow, the lender doesn't have capacity to lend. So, how do you get a new credit cycle. The credit cycle will start, but first, I need to see credit deposit growth going up. I need to see deleveraging.

Both the processes have started now, because real rates are positive, deposit growth is slowly inching higher and deleveraging has started.

We will get a new credit cycle, but it's not hap pening next quarter.

SAURABH MUKHERJEA: As I was saying in the CP rate market, you see rates coming down, you see NBFCs becoming a bit more willing to lend. In the FCCB market, we are getting the first signs of the market opening up. That's always the sign that there is a degree of risk appetite out there. You see Indian companies do foreign bond issuances after a long time.

These signs are there that the credit cycle might turn, but the unfortunate part in all this is for the reader of your newspaper is that in each of these cycles for the first four years con tains 70% of the stock market gains. So, what happens is that people like us debate the PE and the financial statements and intellectu alise it but the really savvy investor out there doesn't really wait for our analysis and as a re sult a ten year economic cycle gets discounted in three max four years. So 3-4 years will con tain 70-80% of the stock market gains. So if you take the election year as T from T to T+4 is pretty much your stock market gains so we can sort of have very clever analysis of PE and do our own forensic analysis but the more aggressive FIIs that I'm seeing the first time in four years they are calling me up and saying look just get the stock pay a 10% premium get the stock we have the intellectual discussion a year later.

NEELKANTH MISHRA: If you look at the global bond markets there has been a surprising return of risk appetite duration and euphoria and I think that that has a big role to play in the valu ations and the second thing is the bottoming of the Indian economy which is something we have not seen happen elsewhere so those are issues and if I talk to some of the really long term fundamental guys they are only excited about India forget about the elections we only worry about the elections because there is some volatility but what we are excited about India is that the growth has bottomed. See we like to com pare ourselves to Russia, Brazil, Mexico and China, per capita GDP wise we are one-fifth to one-seventh of those economies many of these economies are caught in the middle-income trap. We have a straight run of 20 years before we get into that middle-income trap so let's not equate ourselves to that but we have to under stand that it's a return of global risk appetite which is also driving up the markets and geopolitics is becoming incredibly difficult to project right now.

What do you think of PSU stocks? Should inves tors buy into them ?

SAURABH MUKHERJEA: I think we have to break the PSU's up there is the banks and the oil & gas complex, there is the metals, mining type complex. Let me just take one by one.

On the bank PSUs my reckoning is unless we have some visibility on the PSU bank hold-co there is very little basis for calling up clients and say buy a PSU bank because unless there is visibility on what exactly is the road map for the capitalization and perhaps ultimately the professionalization you really can't jus tify a one times book value for most of these entities so the budget will be relatively a sig nificant event or some pronouncement from the FM on the Nayak committee report. I find it very interesting the Nayak committee report came out on the 14th May we are one and half months into it and New Delhi has not said one word about it. Coming to the oil & gas complex, I think ONGC and Oil is relatively clear that the subsidy burden throttles off and the fuel gradually gets deregulated over 2-3 years period ONGC and Oil will be natural beneficiaries. The question then becomes once the balance sheet becomes stronger what will that surplus be used for will that surplus be used for buying gas blocks in Angola or Columbia and so on in which case we will have to figure out will that be a good thing for shareholders but just taking it very simplistically if get visibility on fuel deregu lation those two stocks become relatively interesting I'm not so sure about the oil mar keting companies my reckoning is that if you deregulate the fuel then the Reliance and the Essars will start competing for equal footing with the OMCs and I'm not so sure that peo ple should be buying those stocks given how much they have run up. Finally the natural resources complex, where Coal India is natu rally focused for the government, my reck oning is this as close to a one way bet as you can get over a one year I see coal production volumes go up. Once again you come to key issue Coal India's cash surplus will become big number 1-2-3 years down what would this government do with the cash surplus. If I look at what GSFC and GMDC have done with their cash surplus is not a very happy story that makes me hesitate a bit on Coal India but the near term story will be volume growth steps up and Coal India has a decent run but there is a big question mark on all the PSUs what would be this government's stance on the cash surplus on the balance sheets of the PSUs we don't know that yet, that I think is the big uncertainty.

Oil and gas stocks seem to be everybody's fa vourite. What are your views?

RIDHAM DESAI: I don't think there is much of an ambiguity, I think we are on our way to dereg ulation. I think the question is about timing whether it happens in the next month or it hap pens in the next 6-8 months, but largely I think the sector will be deregulated. So I expect die sel to be price-control free, petrol is already there.

I think at some point of time you will see kerosene price hikes. I'm not sure if it happens on the budget day, but if it happens the markets would love it. But it will happen over time, government has to do. The NDA in its previous avatar had recommended deregulation of fuel and then it got all derailed and we have lost 10 years now. So I think the oil & gas sector will see normalisation of earnings over the next 3-4 years, which would represent a big upside to earnings and the stocks still are cheap and so investors should stay invested there.

How will the poor monsoon impact industry?

NEELKANTH MISHRA: It depends on whether the monsoon will be below 40% or 7% of the normal as IMD has predicted. If it is 7% below normal, it's not going to be a big worry, but if its 40% below normal, then it will be a big worry as it will impact agricultural production and lead to a rise in prices of essential commodities. From an impact perspective, I think the lack of water will impact many industries.

Food inflation will remain high. In this scenario, the central bank may think of hiking rates. The cost of producing vegetable or milk or eggs will also go up. Labour is not cheap.

Labour is expensive in China too. So why is it that their inflation is not so high? Because their productivity is improving. In our case, the productivity is not improving even while the cost of labour is going up. So that is the challenge as labour is a big input.

RIDHAM DESAI: Productivity is key. I agree with Neelkanth. But there can be short-term improvement there as well. So, I would not completely rule out a deceleration in food inflation. If inflation stays high, then growth will be difficult to come by. So it is imperative for the inflation to go down. I do see there is scope for productivity improvement in the near term. I do see a role of demand management and not just supply, which is a longerterm thing that will take 3-5 years to fix. In the meanwhile, if you can address the demand side and productivity, you can lower inflation.

The RBI has set very realistic target and they are not impossible to achieve. But if we get there as per the RBI estimate of 4% by January 2015, I expect some steps in rate cut direction.

What are the sectors that you think that investors should look out for now?

ANOOP BHASKAR: I think one should let go of the two extremes and choose the middle path.

Only when you play the middle ground, you tend to miss the extreme moves of the market.

So for us, we are telling investors that when you see markets discounting 2-3 years, one should be realistic and cautious. Because a lot can happen in 18 months. We have moved up too fast too soon based on expectations that only time will tell. So investors should play the market more realistically. Mutual fund investors should understand that there has been no mutual fund investor who has become Rakesh Jhunjhunwala. The problem is that investors in India eschew equities and fall in love with it at the wrong time. So our advice is that they should do it more gradually like PF or PPF. The problem is that everyone wants to be a fund manager and time the market. We are in for good days but the extent of it can be debated.

S NAGANATH: I think there is high probability that the Sensex will double from the current levels in three years.

RIDHAM DESAI: I can back it up with numbers.

Right now the profit share of corporate India in GDP is about 4.9%, which at its peak was 6.7%. There is a good chance we will be somewhere between the trough and the top in three years from now. Let's assume for the argument purpose that we are at 6%.

GDP growth nominal growth, assume only 12%. Because that sets the ball for nominal profit growth. 3-4 years whatever is the time frame nominal growth would be about 22%.

Because when corporate profit and GDP go up, nominal GDP grows. So you calculate this with the Sensex and you will arrive at a level that is double from here. That too without any change in valuations and even if you take the PE multiple down from 18 to 16.

NILESH SHAH: Look at it from the other way. Till now most of our rallies are driven by FIIs.

In the month of May alone, we got Rs1,800 crore in domestic mutual funds. In June, I think it is around `7,000 crore. Now, domestic retail investors generally invest based on the performance of the past one year.

For the last 1-2 years, equities have outperformed real estate, fixed income significantly.

So, I believe that this trend of `7,000-crore inflow a month would continue and accelerate.

So are you saying that retail investor is coming back and he will continue to come back in increasing numbers?

NILESH SHAH: They are coming for wrong reasons, but they are coming to the right place at the right time. I would like to share a SMS that I got this morning (no bias to anyone). It says that if you had invested `5 lakh in HDFC Equity Fund in January 1, 2003, its value on June 30, 2014, is `92 lakh. Another example is Sundaram Select Midcap, whose value has moved from `5 lakh to `1.26 crore in the same period. So you would have moved from Dzire to Jaguar. Such is the power of equities. And this is after we have seen worst of the crisis and inflation.

So do you agree with Nagnath that the Sensex would double in three years?

NILESH SHAH: My feeling is that we are in a multi-year bull run and if the inflow of money into market continues then we will go from fair value (of stocks) to over value.

SAURABH MUKHERJEA: The only reason that I'm trying to inject a word of caution there is that the Indian investor's investment is more like hot money compared to even foreign flows. Foreign money coming to India has been relatively steady. And, hence, the fact that the foreign investor remains resolute is a source of comfort given the domestic investors' jittery behavior.

NILESH SHAH: We have to divide domestic investors in three parts -retail, HNI and institutions. If you see the IPO analysis, which is more reliable, you would notice that every single IPO, which has delivered good returns, has seen an increase in the retail investor base. Take the analysis of last eight years in any company where management has delivered and the stock price has gone up, the retail investor base has kept expanding.

Some of the best delivery has actually come in PSU banks because these shares were issued at relatively cheap levels. In all PSU banks, despite all the issues, the shareholder base has kept expanding as the stocks have delivered from their IPO price. It is the high net worth individuals segment where the flip-flop occurs. They are momentum chasers and smart guys, but they end up coming in at the wrong time, exiting at the wrong time and losing money.

RIDHAM DESAI: The point that Anoop made is more important for retail investors which is systematic investment. It's not about trying to be smart and say that oh this is the bottom or peak. We really don't know bottom or top, but if you keep investing every month like PF, it helps, which I think is a great example.

What sectors do you recommend?

RIDHAM DESAI: I think cyclical sectors should do well, but it's all a question of time frame actually.

Cyclical seems too broad.

RIDHAM DESAI: I will elaborate. If the time frame is 1 year to 18 months, then cyclicals like energy, materials, banks and autos could do well. I think consumer staples would struggle on a 1-2 year time frame. If you are looking for longer term (5-7 year period), then you have to buy financial services and consumptionrelated stocks. These are the sectors that will do the best.

What about IT?

RIDHAM DESAI: I'm bullish on IT on a 1-2 year basis. I think the US growth story looks very strong. IT orders will look good. I don't think the rupee is going to appreciate a lot. On a real account basis, the rupee is losing value on inflation differentials. So, if you let the rupee appreciate on a nominal basis, the gap widens.

So, instead of that the RBI would buy dollars and accumulate reserves. Therefore, I think IT should do well over a 1-2 year time frame.

Stocks of infrastructure owners and not necessarily builders will do well. Those who own the asset.

Naganath, your favourite sectors?

S NAGANATH: I agree with what Ridham said.

Is there a chance of earnings upgrade in the next 1-2 quarters?

ANOOP BHASKAR: I expect that earning cuts will continue. I think FY15-16 will end up at around 10% (earnings) growth. So earning cuts will continue.

So what would be the consensus for earnings estimate for FY16?

NEELKANTH MISHRA: I think FY15 is right now at about 14% and FY16 is at about 17-18%. But I expect both to be below estimates. I would expect that this year we settle at about 8-10%.

What about the Sensex and the Nifty target?

NEELKANTH MISHRA: I would expect the PE multiples can go up to about 18 times and I think EPS growth about 10%. Depends on whether it happens in 12 months or six months. S NAGANATH: I think this year it will be like 5 to 5 and ½% GDP, and earnings growth at about 13-14%. The next year is what I see the big impact on GDP when it could go up to 7% and earnings growth to 20%.

RIDHAM DESAI: I'm not very differently positioned than Neelkanth. I think it could be 8% earnings growth for the broader marker (BSE 500) for the next 12 months. I have greater confidence in broader market numbers than I have in the Sensex and the Nifty. Both are very concentrated and 1-2 companies can make a huge difference. The share of global-related stocks is much higher than in the broader market. For FY16, the number accelerates to 1314% and up to 20% earnings growth by FY17. We have a Sensex forecast which is a lot higher and it is 19% for FY16.

So, actually it is higher than the consensus. It is driven by belief that larger companies will benefit first from the revival of the economic cycle than the broader market.

In the second year, the broader market will overtake the large-cap companies in earnings growth. So, in FY16, the Sensex to have 19% earnings growth but broader market at 13%.

In FY17, both of them are estimated to go to 20% earnings growth.

My printed Sensex target is 26,300, which looks conservative now, but it's a bit dated. It was for March next year, but it was published a while back. But I have a bull case of 31,000 Sensex, which was based on a very simple model. In 2009 May, the market was trading at 18 times earnings and by October 2010 the price-to-earnings multiple went to 24. It was primarily driven by very strong global revival and very surprising election results. Though we had such a big multiple revision, we did not get such a big earnings cycle. But the markets went up a lot because of that. So why would that not happen now? So in the bull case, the market in my view is 31,000 Sensex by March 2015, which is another decent upside from here. But we will wait for the budget and see what kind of policy action we get before we take any action.

SAURABH MUKHERJEA: In Indian market case, neither forward PE nor EPS has any predictive bar in terms of calling the market. So con sensus revision to EPS, as my counterparts are pointing out, often tends to go in opposite direction of the market. So, we will all like to have crystal balls and predict the market, but unfortunately we can't.

What is your number for Sensex?

SAURABH MUKHERJEA: My number is 30,000 for the Sensex, but I haven't based it on EPS and PE multiples because there doesn't seem to be any logical way to use PEs to arrive at the Sensex targets. The best that we have been able to do is use historical experience to say that the first three years of recovery tend to be roughly 30% return. But giving out Sensex target is the most difficult part of the job.

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निनानब्वे फीसद जन गण पर घात लगाकर हमला बाजार का

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निनानब्वे फीसद जन गण पर घात लगाकर हमला बाजार का

पलाश विश्वास


हमने इस बीच सरकारी महकमों और उपक्रमों के अफसरान और कर्मचारियों से कोलकाता,दिल्ली और मुंबई में बात की है।लिख तो रहे हैं लगातार।


मुंबई में रेलवे वालों से रेल बजट पेश होने के बाद रेलवे के निजीकरण के बारे में पूछा तो उनका कहना है कि मुंबई में निजीकरण की कोई चर्चा नहीं है।यही हाल कोलकाता और दिल्ली का है। हम सिर्फ अपने लिक्खाड़ प्रतिबद्ध मित्रों से बाकी गौण मुद्दों को छोड़ आर्थिक नरसंहार के मुद्दों पर फोकस करने का निवेदन कर रहे हैं।


इससे जन जागरण हो या नहीं,किसी एक अंबेडकर,गांधी,नेल्सन मंडेला या मार्टिन लूथर किंग की दृष्टि के बंद दरवाजे खुलें तो भी हालात बदलने की पहल हो सकती है।


इस उम्मीद के सिवाय जो हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं,उनमें किसी तरह का हस्तक्षेप अस्मिताओं के घटाटोप में असंभव है।


रेल मंत्री ने जहां अहमदाबाद-मुंबई रूट पर बुलेट ट्रेन चलाने का ऐलान किया, वहीं रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने के लिए टेक्नोलॉजी और एफडीआई के भरपूर इस्तेमाल की इच्छा भी जाहिर कर दी।रेल बजट आने के बाद आज के अहम ऐलानों पर रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने न सिर्फ रेलवे में उम्मीद से ज्यादा निवेश आने की बात कही, बल्कि जल्द से जल्द एफडीआई पर फैसला होने का भरोसा भी जताया।


रेलवे में एफडीआई पर रेल मंत्री ने कैबिनेट से मंजूरी मांगी है। लेकिन, रेलवे ऑपरेशंस में सरकार की विदेशी निवेश लाने की योजना नहीं है। रेलवे के बड़े प्रोजेक्ट पीपीपी के जरिए पूरे किए जाएंगे।रेल मंत्री ने पीपीपी के जरिए बड़े प्रोजेक्ट लाने पर जोर दिया है। साथ ही रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में एफडीआई लाने के लिए कैबिनेट से मंजूरी मांगी है। पोर्ट को रेलवे से जोड़ा जाएगा और सब्जियों-फलों के लिए स्पेशल स्टोरेज होगा। कोयला खानों के लिए अलग लाइन बनाई जाएगी। यही नहीं अब ट्रेनों में ब्रांडेड खाना मिलेगा और खराब खाने की शिकायत के लिए हेल्पलाइन बनाई जाएगी।


बुलेट ट्रेनों का डायमंड चतुर्भुज बनाया जाएगा और मुंबई-अहमदाबाद के बीच पहली बुलेट ट्रेन चलेगी। बुलेट ट्रेन के लिए 9 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। आरपीएफ में 17,000 नई भर्तियां होंगी, तो महिला बोगी में महिला सिपाही की तैनाती होगी। रेलवे की ओर से 4,000 महिला कांस्टेबलों की भर्ती की जाएगी।


हालांकि रेलवे की हकीकत पर भा एक नजर डालने की जरूरत है। बुलेट ट्रेन के लिए 9 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है, लेकिन इस साल रेलवे को 1.49 लाख करोड़ रुपये की आमदनी की उम्मीद है। पैसे की कमी के रेलवे के 359 प्रोजेक्ट लटके हैं और 9 साल में 99 योजनाओं का ऐलान हुआ है।



रेल राज्यमंत्री के मुताबिक रेलवे में एफडीआई पर वाणिज्य मंत्रालय को प्रस्ताव दिया है और जल्द एफडीआई पर फैसला होगा। साथ ही बुलेट ट्रेन सपना नहीं बल्कि इसे हकीकत बनाएंगे। फ्रेट कॉरिडोर की हर महीने मॉनिटरिंग होगी और जल्द से जल्द फ्रेट कॉरिडोर का काम पूरा होगा।



नमोमय देश के नई सरकार के रेल बजट से बहरहाल यह भी साफ हो ही गया  कि रेलवे के अलावा इस पूरे देश का किस हद तक निजीकरण किया जाएगा और कहां तक आर्थिक सुधार लागू किए जाएंगे। लेकिन यह संपूर्ण निषिद्ध विषय है और इसी स्थायी गपनीयता प्रयोजन से सूचना निषेदध की गरज से रेलबजट जरिये निजीकरण का ऐलान धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री ने कश्मीर से ही किया है।


नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया से तस्वीर भले ही कुछ साफ नजर आती है लेकिन दृष्टि्ंध धर्माध देश के पढ़े लिखे लोग आयकर छूट का कयास लगा रहे हैं या मरणासम्ण ब्राजील फुटबाल के लिए मरसियापढ़ रहे हैं।बहरहाल पूर्व रेलमंत्री का यह बया दलचस्प है कि रेलवे का हेल्थ सही कर दो फिर बुलेट ट्रेन लाओ। अहमदाबाद और मुंबई के बीच क्या कमी है? वहां पहले से ट्रेनें उपलब्ध हैं, तो बुलेट ट्रेन का मतलब क्या? जो इलाके पहले से पिछड़े हैं जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश वहां के बारे में रेल बजटमें कुछ नहीं है।


मोदी सरकार के पहले रेल बजटमें उम्मीद के मुताबिक यात्री सुविधाओं पर काफी जोर दिया गया है। केंद्रीय रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने मंगलवार को लोकसभा में बजट पेश करते हुए लोगों के लिए नई सुविधाओं के साथ ही पुरानी सुविधाओं को बेहतर बनाए जाने की घोषणा की। इसमें ट्रेनों में लोगों के लिए पेड वर्कस्टेशन से लेकर ब्रैंडेड खाने जैसी सुविधाएं शामिल हैं। बजट में स्टेशनों पर कई बेहतर सुविधाओं की घोषणा की गई। यात्री अब रिटायरिंग रूम की ऑनलाइन बुकिंग करा सकेंगे। बजट में दी गई मुख्य यात्री सुविधाएं- - इंटरनेट के जरिए प्लैटफॉर्म टिकट बुक हो सकेंगे।

दरअसल ये सहूलियते निजीकरऩ की सार्थक दलीलें हैं और निजीकरण मार्फत ही प्राप्त होनी है ये सुविधाएं।इसीके तहत हाल में ही किराए भाड़े में अच्छी खासी बढोतरी के बाद रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने अपने पहले रेल बजटमें किराये-भाड़े का बोझ और नहीं बढाया है। बजट में रेलवे की हालत दुरूस्त करने के लिये सुधारवादी कदमों पर जोर देते हुए निजी तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रस्ताव किए गए हैं ताकि परियोजनाओं के लिए धन की कमी से निपटा जा सके। लोकसभा में 2014-15 का बजट पेश करते हुए गौड़ा ने यात्री सेवाओं में सुधार, बुलेट ट्रेन की शुरुआत, रेलवे के बुनियादी ढांचे में विदेशी और निजी पूंजी निवेश आकर्षित करने की कई अभिनव पहल की घोषणा की।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इस बार का रेल बजट देश की ग्रोथ बढ़ाने वाला रेल बजट है। नए बजट से यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ेगी और रेल बजट से यात्रा और सुखद बनेगी। अब तक रेलवे पर ध्यान नहीं दिया गया जिसका खामियाजा रेलवे भुगत रहा है।


इस योगाभ्यास का मतलब भी वही पीपी माडल।


अब प्रचार सुनामी यह है कि यह रेलवे बजटभविष्यवादी, वृद्धि आधारित और आम आदमी के लिए है। प्रधानमंत्री के अनुसार रेल बजटमें बेहतर सेवा, गति और सुरक्षा को ध्यान में रखा गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि रेल बजटनई सोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत को प्रस्‍तुत करता है। ये बजट रेलवे को आधुनिक बनाने वाला और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। इसमें नए विजन का समावेश है। उन्‍होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद से रेलवे पर समुचित ध्‍यान नहीं दिया गया। जबकि देश के विकास में रेलवे अहम भूमिका निभाता है। पीएम ने कहा कि ये 21वीं सदी का बजट है। इस बजट में जो पहल की गई हैं, उससे विकास की अलग रुपरेखा सामने आएगी।


वहीं विपक्ष ने मोदी सरकार के रेल बजट को बहुत अव्यावहारिक बताया है। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने मोदी सरकार ने सीधा सवाल करते हुए कहा कि योजनाएं तो बहुत बना ली हैं, लेकिन पैसे कहां हैं। कांग्रेस ने मोदी सरकार के पहले बजट की ये कहते हुए आलोचना की है कि इसमें नया कुछ नहीं है। पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल ने कहा कि एफडीआई, आईटी के अधिक से अधिक इस्तेमाल की बात पहले से ही चल रही है।


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने हाईस्पीड ट्रेन का तो स्वागत किया है लेकिन साथ ही ये भी पूछा है कि खराब पटरियों को सरकार कैसे ठीक करेगी।


हांलाकि रेल बजट के उम्मीदों पर फेल होने से बाजार में 2 फीसदी की गिरावट आई। सेंसेक्स 518 अंक टूटकर 25582 और निफ्टी 164 अंक टूटकर 7623 पर बंद हुए। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर 3.6-4.2 फीसदी लुढ़के।रियल्टी शेयर 7 फीसदी और पावर शेयर 6.5 फीसदी लुढ़के। कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, मेटल, ऑयल एंड गैस शेयर 5-3 फीसदी टूटे। ऑटो, बैंक, हेल्थकेयर, तकनीकी, आईटी शेयर 2.2-1 फीसदी गिरे। एफएमसीजी शेयर 0.5 फीसदी फिसले।


जबकि बाजार ने आज शुरुआत तेजी के साथ की। बाजार लगातार चौथे दिन नई रिकॉर्ड ऊंचाई पर खुले। निफ्टी ने पहली बार 7800 का स्तर पार किया। सेंसेक्स ने भी तेजी का नया रिकॉर्ड बनाया।सेंसेक्स ने 26190.4 और निफ्टी ने 7808.8 के नए लाइफ हाई बनाए। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी मजबूती दिखी।रेल बजट के बाद बाजार में गिरावट हावी हुई। सेंसेक्स 250 अंक से ज्यादा टूटकर 25900 के नीचे पहुंचा। निफ्टी करीब 100 अंक गिरकर 7700 के नीचे फिसल गया। मिडकैप-स्मॉलकैप शेयर भी टूटे।


दोपहर 2 बजे के बाद बाजार लड़खड़ा गए। कारोबार खत्म होने तक बाजार में गिरावट गहराती चली गई। सेंसेक्स 605 अंक टूटकर 25500 के नीचे पहुंचा। निफ्टी 191 अंक टूटकर 7600 के नीचे फिसला।



कितने लोगों की नौकरियां छिनी जा रही हैं और कितनों की आजीविका ,पिछले तेइस सालों में इसका कोई हिसाब किताब मिला नहीं है।


कितने लोग जल जमीन जंगल आजीविका नागरिकता मनावाधिकार और नागरिक अधिकारों से बेदखल हो गये,किसी के पास यह हिसाब नहीं है।


ममता दीदी ने करोड़ नौकरियां  देने का वायदा किया था। क्या हुआ सबको मालूम है।

रेल बजट में नई रेलगाड़ियों,नई परियोजनाओं,बुलेट ट्रेनों के साथ रेलवे में इक्कीस हजार नौकरियों का झुनझुना बजाने के अलावा विनिवेश,निवेश,विनियंत्रण,विनियमन और निजीकरण की कोई चर्ची कहीं नहीं है।


आम जनाता को तो यह मालूम नहीं है कि यह पीपीपी माडल किस सौंदर्य प्रसादन का नाम है और इसे लगाना है .खाना है या पीना है।


बहरहाल यह गुजरात माडल है।मुक्त बाजार का माडल यानी निनानब्वे फीसद जनता पर घात लगाकर बाजार का हमला।


मुक्त बाजार की एंबुश मार्केटिंग है यह और पूंजी का राजसूयवैदिकी महायज्ञ।


धर्म राजनीति और पूंजी के त्रिभुज से रसायनिक युद्ध है यह जन गण और गणतंत्र के विरुद्ध।


जबकि खबर कुछ इसतरह लिखी जा रही है कि रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने मोदी सरकार का पहला रेल बजट बुलेट ट्रेन और सेमी बुलेट ट्रेन की सौगात से किया। साथ ही भारतीय रेलवे की स्थिति को सुधारने के लिए निजी निवेश को आमंत्रित करने की बात की।


नरेंद्र मोदी ने चुनाव में भारतीय रेलवे का जो ब्लू प्रिंट देश के सामने रखा था, कुछ वैसा ही रेल बजट रेल मंत्री ने पेश किया। मोदी सरकार यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने और सुरक्षा पर ध्यान दिया है। रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए सरकार पीपीपी मॉडल पर जोर देगी।


यानी पीपीपी माडल महाअमृत है और इसे चाखने से ही श्रद्धालु जनता को मोक्ष मिल जायेगा और सारी भव बाधाें दूर हो जायेंगी।


श्रमकानूनों में सुधार के बारे में किसी की कोई धारणा नहीं है।


मीडिया के मित्रों ने श्रमसुधारों के बारे में आज एक बड़े अंग्रेजी अखबार में लीड छपने के बाद इस पर अभी आपस में चर्चा शुरु की है,कब लिखेंगे,बता नहीं सकते।


सरकारी उपक्रम ओएनजीसी के सेल आफ पर 35 हजार करोड़ का सौदा फाइनल है।कोल इंडिया को बेचने की पूरी तैयारी है।दूसरी कंपनियों और सस्थानों का सौदा भी तय समझिये।तेल गैस,कोयला,इस्पात,खनन, ऊर्जी,औषधि,बैंकिंग,रेलवे,पोर्ट में आगजनी के बाद रक्षा और आंतरिक सुरक्षा से राष्ट्रद्रोह के  बाद यह जंगल की आग खेतों, खलिहानों, घाटियों, नदियों और समुंदर को भी जलाकर खाक करने वाली है।


लेकिन देश के लोग आंखों पर पट्टी डाले,कानों में रुई ठूंसे बुलेट ट्रेन की धर्मोन्मादी अनंत शपर के ख्वाबगाह में है और कत्लगाहों की कोई खबर उन्हें है नहीं।श्मशान और कब्रिस्तान का दायरा बेहिसाब बढ़ता जा रहा है और हमें सिर्प अपनी सहूलियतों की चिंता है।


इसी बीच सरकार ने सरकारी उपक्रमों की पूंजी का चालीस फीसद हिस्सा म्युच्यल फंड में डालना तय कर लिया है।


सेबी के नियम ऐसे बन रहे हैं कि विदेशी पूंजी विनियमन और विनियत्रण के मारफत पूरा देश और देश के सारे संसाधन विदेशी लूटेरों के हवाले कर दिये जाये।


रेलमंत्री ने एक पंक्ति में बता दिया है कि परिचालन को छोड़कर रेलवे में सर्वत्र निजी पूंजी का स्वागत है।


इसके बावजूद खुद रेलवे वालों को माजरा समझ में नहीं आ रहा है।रेलवे के परिचालन में कितने लोग लगे हैं और बाकी रेलवे में कितने लोग,इसका भी अंदाजा किसी को नही है।


यह बजट इस मायने में अभूतपूर्व है कि बजट सीधे प्रधानमंत्री की निगरानी में बन रहा है और उसमें योजना आयोग की कोई भूमिका नहीं है।


वित्त मंत्री की भूमिका कितनी है और कारपोरेट लाबििंग की कितनी बदली परिभाषाओं, आंकड़ों,रेटिंग और साढ़ों की उछलकूद में उसका भी सही सही अंदाजा लगाना मुश्किल है।


नई सरकार का कोई मुख्य आर्थिक सलाहकार भी नहीं है।


पहलीबार व्यय सचिव और राजस्व सचिव बजट तैयार में खास भूमिका निभार रहे हैं और आर्थिक समीक्षा भी खानापूरी है।


जिस अंदाज में रेलवे के निजीकरण को अंजाम दिया गया और ओएनजीसी का बंटाधार पाइनल हो गया,जनता को सूचना हो या नहीं,शेयर बाजार में हड़कंप मच गया।


सरकारी उपक्रमों और कंपनियों के तमाम शेयरों का सफाया शुरु हो गया है क्योंकि बाजार में उनके शेयर खरीदने वाले लोगों को मालूम हो गया कि बजट अब बूम बूम प्राइवेटाइजेशन है और विनिवेश की बुलेट ट्रेन चल पड़ी है।


हम शुरु से कह रहे हैं कि दाम और भाड़ा बढ़ना कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं है।


परिवर्तन है विनियमन और विनियंत्रण का।


परिवर्तन है रक्षा समेत सारे संवेदनशील सेकटरों में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का।


परिवर्तन है निजीकरण और श्रम कानूनों को खत्म करके श्रमिक तबके की आजीविका छीनने और निजी पूंजी के जरिये पीपीपी माडल मार्फत कृषि जीवी जनगण का नरसंहार का।


बुलेट ट्रेन इसका जीता जागता प्रतीक है।


एक बुलेट ट्रेन पर साठ हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं।


विमानभाड़े से दोगुणी रकम का भाड़ा चुकाने वाले देश के एक फीसद मलाईदार सत्ता वर्ग के अलावा कौन है,किसी को नहीं मालूम।


मुकम्मल रेलबजट में कुल राशि अंतरिम चुनावी रेल बजट से कम है और तमाम पुरानी योजनाएं शुरु न होने के बहाने खारिज है।


मेट्रो और बुलेट ट्रेन परियोजनाओं पर जिसका वर्चस्व होगा,ओएनजीसी की हत्या से फायदा उसीको होगा।


रेलवे निर्माण विनिर्माण कंपनियों में हड़कंप इस भावी एकाधिकार से भी मचा है।


रेलवे की पुरानी परियोजनाएं नई बेशकीमती बुलेट ट्रेन सरीखी परियोजनाओं में निजी देशी विदेशी पूंजी के इंतजार में खारिज की जा रही हैं तो विकास के लंबित लाखों करोड़ की परियोजनाओं को तमाम कायदा कानून के निजी पूंजी के हक में हरी झंडी दे दी जा रही है।


जल जंगल जमीन आजीविका और नागरिकता,मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों से बेदखली के लिए राष्य्र की युद्ध घोषणा भी निजी पूंजी के हक में है।


बजट सत्र की पूरी प्राविधि और प्रक्रिया,संसदीय राजनीति कुल मिलाकर नब्वे फीसद जनता के खिलाफ घात लगाकर हमला है।क्योंकि जनता को इस एकाधिकारवादी जसंहारक हमले के बारे में कोई खबर ही नहीं है।अब जनांदोलन से बड़ा कार्यभार तो मूक वधिर बहुसंख्य जनगण को हकीकत बता देने की है, जिसकी हिम्मत पढ़ा लिखा तबका कर नहीं रहा है।


लोग प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,विनियमन और विनियंत्रण का विरोध नहीं कर रहे हैं।


विनिवेश के खिलाफ कोई आवाज बुलंद नहीं हो रही है।


रेलवे भाड़े को फ्यूल सरचार्ज से जोड़ दिया गया है और तेल गैस की कीमतें विनिंत्रित हैं, जो बाजार दरों से संबध्द होने के कारण बिना सरकारी हस्तक्षेप के बदलती रहती हैं।


इस तरह बिना रेलवे भाड़े को विनियंत्रित किये फ्यूल चार्ज के जरिये रेलभाड़े को भी डीरेगुलेट डीकंट्रोल कर दिया।


जैसे मुंबई मेट्रों के किराये रिलायंस ने तय किये हैं,उसीतरह रेलभाड़ा और तमाम सेवाओं की कीमतें निजी पूंजी के पीपीपी माडल जरिये देशी विदेशी निजी कंपनियां करेंगी।


रेल भाड़ा के खिलाफ राजनीतिक नौटंकी में ये मुद्दे सिरे से अनुपस्थित हैं।


जबकि भारतीय रेल नेटवर्क को विश्वस्तरीय बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन आज के रेल बजट में साफ दिखा। रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने बजट भाषण में कई ऐसे ऐलान किए जो मोदी विजन को पुख्ता करते हैं। इनमें पहला ऐलान है- देश में बुलेट ट्रेन चलाने का। रेल मंत्री ने बताया कि मुंबई-अहमदाबाद रूट पर बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी। यही नहीं, हाई स्पीड ट्रेनों का एक डायमंड चतुर्भुज भी बनाने का ऐलान हुआ है, जो देश के चार महानगरों को एक-दूसरे से जोड़ेगा। इस प्रोजेक्ट पर 9 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। रेलवे की योजना 9 चुनिंदा सेक्टरों में ट्रेनों की स्पीड को 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा तक करने की भी है।


नरेंद्र मोदी के विजन के मुताबिक कई स्टेशनों को इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के मुताबिक विकसित किया जाएगा। साथ ही, पूरे देश में रेलवे की सर्विस को विश्वस्तरीय बनाने के लिए जिन सुविधाओं की बात की जा रही है, उनके लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों की जरूरत है। इसके लिए सरकार पीपीपी मॉडल को बढ़ावा देने के अलावा रेलवे के आंतरिक संसाधनों और एफडीआई का भी सहारा लेगी। रेल मंत्री ने साफ किया कि रेलवे के जो भी नए प्रोजेक्ट आएंगे, उनके लिए संसाधन पीपीपी मॉडल के जरिए ही जुटाए जाएंगे।


रेल मंत्री ने इस बजट में ज्यादा नई ट्रेनों का ऐलान नहीं किया। कुल 58 नई ट्रेनों का ऐलान किया गया जिनमें बुलेट ट्रेन के अलावा 5 जनसाधारण, 5 प्रीमियम और 6 एसी एक्सप्रेस ट्रेन और 27 नई एक्सप्रेस ट्रेन चलाने की घोषणा की गई है। इसके अलावा 8 नई पैसेंजर ट्रेनें चलाई जाएंगी और 11 ट्रेनों के दायरे बढ़ाए जाएंगे। कुल मिलाकर इस रेल बजट के जरिए मोदी सरकार ने ये संकेत दे दिए कि रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने के उसके फॉर्मूले में तीन चीजों- स्पीड, सिक्योरिटी और सर्विस पर ही सबसे ज्यादा जोर रहेगा।



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मंगलवार को संसद में पेश रेल बजट में पारदर्शिता और ईमानदारी पर ध्यान दिया गया है। उन्‍होंने कहा कि रेलवे बजट भारत के विकास को जहन में रखता है।

यह रेलवे बजट भविष्यवादी, वृद्धि आधारित और आम आदमी के लिए है। प्रधानमंत्री के अनुसार रेल बजट में बेहतर सेवा, गति और सुरक्षा को ध्यान में रखा गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि रेल बजट नई सोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत को प्रस्‍तुत करता है। ये बजट रेलवे को आधुनिक बनाने वाला और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। इसमें नए विजन का समावेश है।

उन्‍होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद से रेलवे पर समुचित ध्‍यान नहीं दिया गया। जबकि देश के विकास में रेलवे अहम भूमिका निभाता है।   

पीएम ने कहा कि ये 21वीं सदी का बजट है। इस बजट में जो पहल की गई हैं, उससे विकास की अलग रुपरेखा सामने आएगी। हमने बहुत कम समय में ज्‍यादा काम किया है और पहली बार रेलवे के लिए विकास वाला बजट पेश किया गया। उन्‍होंने कहा कि रेल के माध्‍यम से देश को ऊंचाइयों पर पहुंचाने का हमारा मकसद है। इसमें विकास के साथ विस्‍तार पर भी ध्‍यान दिया गया है। विकास की गति को, विकास की ऊंचाई को आरंभ किया गया है। इससे देश के विकास को काफी तेज गति मिलेगी।

उन्होंने बाद में अपने एक वक्तव्य में कहा, '----लंबे समय के बाद देश अनुभव करेगा कि हमारी रेलवे वाकई भारतीय रेलवे है।'उन्होंने कहा कि रेलवे सिर्फ परिवहन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह 'विकास का इंजन'है और यह बजट साबित करेगा कि रेलवे देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मोदी ने कहा, '2014 से हमने विकास को नई ऊंचाई पर ले जाने की प्रक्रिया शुरू की है। मुझे विश्वास है कि रेल यात्रियों को सुखद अनुभव होगा।'उन्होंने कहा कि यह बजट आम आदमी के लिए है क्योंकि इसमें देश के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ बेहतर सेवा, गति और सुरक्षा प्रदान करने की आकांक्षा है।

उन्होंने कहा कि यह बजट दर्शाता है कि सरकार रेलवे के लिए भारत को आगे ले जाना चाहती है क्योंकि इसमें सांस्थानिक तंत्र, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि बजट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर ध्यान देता है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रेलवे जैसी संस्थाओं को तदर्थ तरीके से नहीं चलाया जा सकता। उन्होंने कहा, 'फैसला करने, दृष्टि और पहल के लिए सांस्थानिक तंत्र की आवश्यकता है।'



PRIVATE Railway

The BSE Sensex and Nifty slumped more than 2 percent on Tuesday, marking their biggest single-day fall in over 10 months and retreating from record highs hit earlier in the session, after the railway budget raised worries the government would slash spending.

The railways budget has revised up the plan outlay to 654.45 billion rupees for 2014/15, up 1.8 percent compared with the interim budget's estimate of 643.05 billion rupees, but lower than market's expectations, traders said.

Analysts also said the plan in the railway budget to seek private funding for new projects did not provide enough details on how it would attract investors.

The railway plans set up expectations the government would slash spending when it unveils its federal budget on Thursday. Although equity investors are keen to see fiscal discipline, analysts also warn that big cuts in spending could hurt earnings in sectors such as railways that depend on state investments.

Finance Minister Arun Jaitley reiterated his message of fiscal discipline on Tuesday by separately saying a "judicious balance" should be struck between expenditure and tax collections.

Profit-taking after a string of record highs in previous sessions coupled with overseas institutional investors' sales of 14.87 billion rupees ($248.45 million) in equity derivatives on Monday, also aided risk aversion.

"The budgeted outlay in railway is just in line with the inflation rate. One should expect the federal budget to be even tighter on spending as situation for broader economy is much worse than for railways," said G. Chokkalingam, founder of Equinomics, a research and fund advisory firm.



India says private funds will help rail system, but details unavailable

BY TOMMY WILKES

NEW DELHI Tue Jul 8, 2014 4:07pm IST

Railway Minister Sadananda Gowda (C) poses after giving the final touches to the railway budget for the 2014/15 fiscal year, in New Delhi July 7, 2014. REUTERS/Adnan Abidi

Railway Minister Sadananda Gowda (C) poses after giving the final touches to the railway budget for the 2014/15 fiscal year, in New Delhi July 7, 2014.

CREDIT: REUTERS/ADNAN ABIDI

(Reuters) - Prime Minister Narendra Modi's new government has nudged up spending on India's wobbly railways and will seek private funding for new projects, the rail minister said without giving details on how he will attract investors.

Markets reacted negatively to the railways budget presented on Tuesday, after high expectations that Modi's government would use its first major economic policy statement to detail widespread reform.

The state-owned railway, the world's fourth-largest, has suffered from years of low investment and populist policies that have kept fares low. This has turned a once-mighty system into a slow, badly-congested network that crimps economic growth.

The railway costs the government's public finances around 300 billion rupees ($5 billion) a year in subsidies.

"The bulk of our future projects will be... by the PPP model," Railway Minister Sadananda Gowda told the parliament in his first budget, referring to public-private partnerships.Gowda's speech promised to get the railway's finances in order, complete long-delayed projects and jumpstart ambitious plans for high-speed rail, but was short on details of how these goals would be met and how foreign direct investment (FDI) would be attracted.

The government revised up planned spending to 654.45 billion rupees ($10.95 billion) for the year ending in March 2015, up 1.8 percent from an interim budget made in February by the last government.

It calculates investment in the network through public-private partnerships in 2014/15 to total 60.05 billion rupees, more than in the interim budget, but a fraction of the cash needed to overhaul the network.

RELIC FROM BRITISH RULE

The use of a railway budget separate from the national one is a relic of British rule, when the network was the country's major industrial asset and a major revenue earner. Finance Minister Arun Jaitley presents the full federal budget on Thursday.

"There is nothing in this entire budget which tells you how they will make it attractive for private sector," said Manish R. Sharma, executive director of capital projects and infrastructure at PwC India.

"Given that in the past PPP has not taken off in railways...it would be very important to see how they come up with implementable mechanisms which the private sector will buy," he said.

Stock investors also expressed doubts about the prospects for PPPs, with shares in railway-related stocks falling after the speech. Texmaco Rail & Engineering fell 8 percent and was down 20 percent by 0940 GMT while Titagarh Wagons dropped 5 percent.

"Budgeted outlay is looking below expectations as the government is looking for more private partnerships now than in previous occasions," said Deven Choksey, managing director at KR Choksey securities.

Reform of the railways has long proven politically sensitive. Successive governments have backed away from modernization, preferring instead to use the system to provide cheap transport for voters, and jobs for 1.3 million people.

($1 = 59.7400 Indian Rupees)

(Additional reporting by Malini Menon, Manoj Kumar, Aditya Kalra, Suvashree Dey Choudhury and Abhishek Vishnoi; Editing by Frank Jack Daniel and Richard Borsuk)



Sensex slumps in late trade

Capital Market  

July 8, 2014 Last Updated at 15:45 IST

Key benchmark indices tumbled in late trade. The barometer index, the S&P BSESensex, fell below 26,000 level after hitting record high in early trade. The Sensex hit one-week low. The 50-unit CNX Nifty hit its lowest level in more than a week. The Sensex was provisionally down 578.32 points or 2.22%, off close to 670 points from the day's high and up about 25 points from the day's low. The market breadth indicating the overall health of the market was weak, with more than two losers for every gainer on BSE. The BSE Mid-Cap index dropped almost 4%. The BSE Small-Cap index plunged over 4%. The sharp decline on the bourses came after Railway Budget 2014-15 was tabled by Railway Minister Sadananda Gowda in Lok Sabha. The sharp slide on the bourses comes just two days ahead of the Presention of the Union Budget for 2014-15 on Thursday, 10 July 2014.

Bank stocks dropped. Rail stocks plunged after the announcement of Railway Budget 2014-15.

Major announcements in Railway Budget 2014-15 include prioritizing completion of the ongoing projects, proposal to mobilise resources for Railways through surplus of Railway PSUs, FDI and PPP, periodic revision in passenger fare and freight rates which is linked to revisions in fuel prices, proposal to launch bullet trains starting with Mumbai-Ahmedabad sector and a Diamond Quadrilateral Network of High Speed Rail connecting major metros and growth centers of the country. To help mobilization of resources for the railways, the Ministry of Railways is seeking Cabinet approval to allow FDI in rail sector. The bulk of the future projects of the Railways will be financed through PPP mode, including the high-speed rail which requires huge investments. With an increase in both passenger fare and freight rate already announced last month, there was no change in passenger fare and freight rates in the Rail Budget.

As per provisional figures, the S&P BSE Sensex was down 578.32 points or 2.22% to 25,521.76. The index dropped 605.04 points at the day's low of 25,495.04 in late trade, its lowest level since 1 July 2014. The index rose 90.36 points at the day's high of 26,190.44 in early trade, a lifetime high of the index.

The CNX Nifty was down 184.30 points or 2.37% to 7,602.85, as per provisional figures. The index hit a low of 7,595.90 in intraday trade, its lowest level since 30 June 2014. The index hit a high of 7,808.85 in intraday trade, a lifetime high of the index.

The total turnover on BSE amounted to Rs 4279 crore, higher than Rs 4205.06 crore on Monday, 7 July 2014.

The market breadth indicating the overall health of the market was weak, with more than two losers for every gainer on BSE. On BSE, 2,230 shares declined and 769 shares rose. A total of 97 shares were unchanged.

The BSE Mid-Cap index was down 346.93 points or 3.63% at 9,210.21. The BSE Small-Cap index was down 442.77 points or 4.19% at 10,128.01. Both these indices underperformed the Sensex.

Among the 30 Sensex shares, 27 fell and only three shares rose. Bharat Heavy Electricals (Bhel) (down 7.84%), NTPC (down 5.33%) and Tata Power Company (down 5.27%) edged lower from the Sensex pack.

Bank stocks dropped. Among PSU bank stocks, State Bank of India (SBI) (down 3.94%), Canara Bank (down 4.64%), Union Bank of India (down 8.86%), Bank of India (down 5.74%), Bank of Baroda (down 3.97%) and Punjab National Bank (down 3.98%) declined.

Among private sector banks, ICICI Bank (down 3.58%), Yes Bank (down 3.42%), Federal Bank (down 6.24%), HDFC Bank (down 1.18%), Kotak Mahindra Bank (down 0.65%) and Axis Bank (down 2.95%), declined.

IndusInd Bank dropped 1.47%. The bank announces Q4 results tomorrow, 9 July 2014.

Shares of companies whose fortunes are linked to orders from Indian Railways edged lower after the presentation of Railway Budget. Texmaco Rail & Engineering (down 19.84%), Titagarh Wagons (down 4.99%), Kernex Microsystems (India) (down 4.94%), BEML (down 5%), Kalindee Rail Nirman (Engineers) (down 4.99%), Stone India (down 4.92%), NELCO (down 4.99%), Simplex Casting (down 8.45%), Zicom Electronic Security Systems (down 4.96%) and Container Corporation of India (down 7.12%) edged lower.

A bout of volatility was witnessed as key benchmark indices trimmed gains after opening on a firm note. The barometer index, the S&P BSE Sensex, and the 50-unit CNX Nifty, both scaled record high. Volatility continued as key benchmark indices reversed initial gains in morning trade. Volatility continued as key benchmark indices weakened once again after cutting entire intraday losses in early afternoon trade as Railway Minister Sadananda Gowda started presenting the final Railway Budget for 2014-15 in Lok Sabha today, 8 July 2014. Key benchmark indices extended losses in afternoon trade. The Sensex extended losses and hit fresh intraday lows in mid-afternoon trade. The Sensex slumped in late trade.

With Railway Budget over, the focus will shift to final Union Budget for 2014-15 due on Thursday, 10 July 2014. Finance Minister Arun Jaitley will present the final Union Budget for 2014-15 in Lok Sabha at 11:00 IST on Thursday, 10 July 2014. Before that, the Finance Ministry will table Economic Survey for 2013-14 tomorrow, 9 July 2014.

There are expectations that the finance minster will announce measures in the Budget aimed at bolstering economic growth. Increase in outlay on infrastructure sector with focus on stricter and time-bound implementation of projects, initiatives towards investments in agriculture and irrigation aimed at easing supply bottlenecks for food-grains, fiscal prudence with roadmap to reduce the fiscal deficit, a roadmap for reducing the subsidy burden and timeline for implementation of the Goods and Services Tax are some of the expectations from the Budget.

In the foreign exchange market, the rupee edged higher against the dollar. The partially convertible rupee was hovering at 59.865, compared with its close of 60.0125/0225 on Monday, 7 July 2014.

European shares were trading lower on Tuesday, 8 July 2014, before earnings announcements. Key benchmark indices in UK, France and Germany were down by 0.42% to 0.78%.

Most Asian stocks edged higher in choppy trade on Tuesday, 8 July 2014. Key benchmark indices in China, South Korea, Taiwan and Indonesia rose 0.08% to 0.72%. Hong Kong's Hang Seng was flat. Key benchmark indices in Singapore and Japan were off 0.25% to 0.42%.

Trading in US index futures indicated that the Dow could fall 21 points at the opening bell on Tuesday, 8 July 2014. US stocks fell Monday, 7 July 2014, on profit booking after Dow Jones Industrial Avergae and the S&P 500 index hit record high last week.




রেল বাজেটে পশ্চিমবঙ্গের ঝুলি কার্যত শূন্য

নরেন্দ্র মোদী সরকারের প্রথম রেল বাজেটে প্রাপ্তির ঝুলি কার্যত শূন্যই রইল মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের পশ্চিমবঙ্গে। রেল বাজেট নিয়ে আপামর বাঙালির প্রত্যাশা ছিল রেলমন্ত্রীর কাছে। দেশ জুড়ে রেলের উন্নয়ন, যাত্রী সুরক্ষা, নতুন ট্রেন চালু করার মতো বিষয়গুলি বাজেটে থাকলেও পশ্চিমবঙ্গ কিন্তু পারতপক্ষে বঞ্চিতই। প্রাথমিক ভাবে হাওড়া-বেলদা মেমু সম্প্রসারণ ও শালিমার-চেন্নাই প্রিমিয়াম ট্রেন চালু করার কথা বলা হয়েছে রেল বাজেটে।

০৮ জুলাই, ২০১৪

পদ খালিই, বাজেট তৈরিতে উদ্যোগী মোদী

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ইলা পট্টনায়ক


প্রেমাংশু চৌধুরী

নয়াদিল্লি, ৮ জুলাই, ২০১৪, ০৩:২৩:২২

অর্থ মন্ত্রকে কোনও মুখ্য অর্থনৈতিক উপদেষ্টা নেই। প্রধানমন্ত্রীর আর্থিক উপদেষ্টা পরিষদ বলেও কিছু নেই। নেই পরিষদের চেয়ারম্যানও। যোজনা কমিশনের উপাধ্যক্ষ হিসেবেও কাউকে নিয়োগ করা হয়নি।

কেন্দ্রীয় সরকারেরই বিভিন্ন মন্ত্রকের অন্দরমহলের আড্ডার অন্যতম বিষয়, এ বার তা হলে বাজেট তৈরি করছেন কারা?

প্রশ্ন ওঠা স্বাভাবিক। কারণ প্রতি বছর বাজেটের সময় উপরে বলা তিন চরিত্রই গুরুত্বপূর্ণ ভূমিকা পালন করেন। অথচ নরেন্দ্র মোদী সরকারের প্রথম বাজেট তৈরির সময় এই পদগুলিতে কেউই নেই। বাজেটের ক্ষেত্রে চিরাচরিত নীতি হচ্ছে, যোজনা কমিশনের উপাধ্যক্ষ ও প্রধানমন্ত্রীর আর্থিক উপদেষ্টা পরিষদের চেয়ারম্যান বাজেট তৈরির সময় অভিভাবকের ভূমিকা পালন করেন। অর্থ মন্ত্রকের মুখ্য অর্থনৈতিক উপদেষ্টা অর্থমন্ত্রীকে নীতি সংক্রান্ত পরামর্শ দিয়ে থাকেন। তিনিই অর্থনৈতিক সমীক্ষা তৈরির দায়িত্বে থাকেন। ১০ জুলাই বাজেট পেশের আগের দিন সংসদে অর্থনৈতিক সমীক্ষা পেশ হবে। যাতে দেশের অর্থনীতির হালহকিকত ফুটে উঠবে।

মন্টেক সিংহ অহলুওয়ালিয়ার ছেড়ে যাওয়া পদে নরেন্দ্র মোদী সরকার এখনও কাউকে যোজনা কমিশনের উপাধ্যক্ষ হিসেবে নিয়োগ করেনি। মনমোহন সিংহের আর্থিক উপদেষ্টা পরিষদের চেয়ারম্যান সি রঙ্গরাজনও পদত্যাগ করেছেন। সেখানেও কাউকে নিয়োগ করা হয়নি। তা হলে বাজেট তৈরিতে এ বার মুখ্য ভূমিকায় রয়েছেন কারা? অর্থ মন্ত্রক সূত্রের খবর, বাজেট তৈরির প্রস্তুতিতে মূলত তিনটি দল কাজ করছে। প্রথম সারিতে রয়েছেন প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী নিজে। তাঁর সঙ্গে রয়েছেন অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি এবং প্রতিমন্ত্রী নির্মলা সীতারামন। দ্বিতীয় দলে রয়েছেন অর্থসচিব অরবিন্দ মায়ারাম, রাজস্বসচিব শক্তিকান্ত দাস, ব্যয়সচিব রতন ওয়াতাল ও অন্যান্য সচিব। এঁদের মধ্যে সব থেকে গুরুত্বপূর্ণ ভূমিকা নিচ্ছেন রাজস্বসচিব ও ব্যয়সচিব। কারণ তাঁদেরকেই আয় বাড়ানো, করের নতুন উৎস সন্ধান এবং ব্যয় ছাঁটাই নিয়ে মাথা ঘামাতে হচ্ছে। তৃতীয় দলটিতে রয়েছেন প্রধান আর্থিক উপদেষ্টা ইলা পট্টনায়ক। তিনিই সমীক্ষা তৈরির কাজটি দেখাশোনা করছেন। কেন্দ্রীয় মন্ত্রীদের পাশাপাশি ইলা পট্টনায়ক ও শক্তিকান্ত দাস বাজেটে কী ভূমিকা নেন, তা দেখার অপেক্ষায় রয়েছে শিল্পমহল।

ইলা পট্টনায়ক দিল্লির 'ন্যাশনাল ইনস্টিটিউট অব পাবলিক ফিনান্স'-এর অধ্যাপক। তাঁকে প্রধান অর্থনৈতিক উপদেষ্টার পদে নিয়োগ করা হলেও মুখ্য অর্থনৈতিক উপদেষ্টার পদে কাউকে বসানো হয়নি। বস্তুত ইউপিএ জমানার শেষ পর্বেও ওই পদটি খালি ছিল। আসলে রঘুরাম রাজন রিজার্ভ ব্যাঙ্কের গভর্নরের দায়িত্বে চলে যাওয়ার পর থেকেই পদটি ফাঁকা। ইলা অর্থ মন্ত্রকে যোগ দেওয়ার আগে পর্যন্ত রঘুরামের নেতৃত্বে রিজার্ভ ব্যাঙ্কের নীতি নিয়ে সমালোচনায় মুখর ছিলেন। তিনিই এ বার প্রধান অর্থনৈতিক উপদেষ্টা হিসেবেই অর্থনৈতিক সমীক্ষা তৈরির কাজ দেখছেন।

এ বারের বাজেটে রাজস্বসচিব শক্তিকান্ত দাসের ভূমিকা যথেষ্ট তাৎপর্যপূর্ণ। মোদী ক্ষমতায় আসার পরেই রাজস্বসচিবের পদ থেকে রাজীব টাকরুকে সরিয়ে তামিলনাড়ু ক্যাডারের আইএএস অফিসার শক্তিকান্ত দাসকে নিয়ে আসা হয়। তিনি তামিলনাড়ুতে শিল্পসচিব হিসেবে এসইজেড তৈরিতে অগ্রদূতের ভূমিকায় ছিলেন। মোদী সরকার যখন দেশের এসইজেড-গুলিকে চাঙ্গা করার চেষ্টা করছেন, সে সময় শক্তিকান্তর অভিজ্ঞতা গুরুত্বপূর্ণ হয়ে উঠবে। শক্তিকান্ত থেকে শুরু করে অর্থ মন্ত্রকের শ'খানেক আমলা অবশ্য এখন নর্থ ব্লকে বন্দি। কারণ ২ জুলাই থেকে বাজেট নথি ছাপানোর কাজ শুরু হয়ে গিয়েছে। বাজেট পেশের পরেই তাঁরা পরিবারের সঙ্গে দেখা করতে পারবেন।

http://www.anandabazar.com/national/%E0%A6%AA%E0%A6%A6-%E0%A6%96-%E0%A6%B2-%E0%A6%87-%E0%A6%AC-%E0%A6%9C-%E0%A6%9F-%E0%A6%A4-%E0%A6%B0-%E0%A6%A4-%E0%A6%89%E0%A6%A6-%E0%A6%AF-%E0%A6%97-%E0%A6%AE-%E0%A6%A6-1.48431


লাইভ খবর

08 Jul, 2014 , 11.38AM IST

LIVE: রেল বাজেট ২০১৪

03:20 PM'বাংলা বঞ্চিত হলে চুপ করে থাকব না।' রেল বাজেটের পর এমনই প্রতিক্রিয়া দিলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।

02:06 PM'সদানন্দ গৌড়াকে যা লিখে দেওয়া হয়েছিল, তা তিনি তাড়াতাড়ি পড়ে শুনিয়েছেন।' -- আরজেডি সু্প্রিমো লালু প্রসাদ যাদব

02:05 PM'এই বাজেট ভারতের জন্য অত্যন্ত লাভবান প্রমাণিত হবে।' -- কেন্দ্রীয় মন্ত্রী রবিশঙ্কর প্রসাদ

02:04 PM'কয়েক জন হজম করতে পারছে না যে, অসাধারণ রেল বাজেট পেশ করা হয়েছে।' - কেন্দ্রীয় মন্ত্রী বেঙ্কাইয়া নায়ডু

02:03 PMরেল বাজেটে প্রতিক্রিয়া দিতে গিয়ে রাহুল গান্ধী বললেন, 'রেলবাজেট দিশাহীন, বাস্তবসম্মত নয়। কংগ্রেসশাসিত রাজ্যগুলি কিছুই পায়নি। কেরালা, পশ্চিমবঙ্গ বঞ্চিত।'

01:43 PMএটি একবিংশ শতাব্দীর বাজেট। এটি আধুনিক বাজেট, যেখানে বিজ্ঞান এবং তথ্য-প্রযুক্তির ওপর জোর দেওয়া হয়েছে- প্রধানমন্ত্রী

01:43 PM'দের আয়ে দুরুস্ত আয়ে'-- রেল বাজেটের পর নিজের প্রতিক্রিয়ায় এমনই মন্তব্য প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদীর। বললেন, '২০১৪ থেকে রেলের উন্নতির যাত্রা শুরু হবে। এই বাজেট স্বচ্ছতা এবং উন্নয়নে জোর দিয়েছে। বহু দিন পর ভারতবাসী অনুভব করবেন যে এটি ভারতীয় রেল বাজেট। নাগরিককে অধিক সুরক্ষা এবং পরিষেবা দেবে এই রেল বাজেট।'

01:20 PMরেলমন্ত্রীর বাজেট ভাষণ শেষের পর সংসদে হাঙ্গামা। ২টো পর্যন্ত সংসদের কাজকর্ম স্থগিত।

01:18 PMবাংলার ঝুলিতে মাত্র ২টি এক্সপ্রেস ট্রেন। হাওড়া-পারাদ্বীপ সাপ্তাহিক এক্সপ্রেস এবং শালিমার-চেন্নাই এসি এক্সপ্রেস।

01:15 PM৩০ সেপ্টেম্বরের পর এক্সপ্রেস ট্রেনের সমস্ত অপ্রয়োজনীয় স্টপেজ বন্ধ করা হবে। বেশি স্টেশনে দাঁড়াবে না এক্সপ্রেস ট্রেন।

01:14 PMবেঙ্গালুরুতেও লোকাল ট্রেন চালুর কথা বললেন সদানন্দ গৌড়া।

01:13 PMচালু হবে ৫টি জনসাধারণ ট্রেন।

01:12 PMরেলমন্ত্রীর ভাষণের মাধপথেই সংসদে হাঙ্গামা।

01:12 PM

01:10 PM১৮টি নতুন লাইনের জন্য সার্ভে করা হবে। কেদারনাথ এবং বদ্রীনাথের জন্যও রেললাইনের সার্ভে করা হবে।

01:09 PMরেলের কাজে ডিজিটাইজেশন। ৫ বছর কোনও কাগজ ব্যবহার করা হবে না। যাত্রীদের জন্য এসএমএস পরিষেবা। সমস্ত তথ্য পাওয়া যাবে এখানে। এসএমএস-এ রেলের ওয়েক-আপ কল।

01:08 PMউত্তর-পূর্বাঞ্চলের জন্য প্রকল্প। ৫ হাজার কোটি টাকা ব্যয় বরাদ্দ।

01:07 PMমুম্বইয়ের জন্য ২ বছরে বাড়তি ৮৬৪টি ইএমইউ।

01:04 PMরেল বিশ্ববিদ্যালয় গড়ে তোলা হবে।

01:04 PMবিশেষ মিল্ক ট্যাঙ্কার ট্রেন আনা হবে।

01:03 PMসবজি এবং ফলের জন্য তাপনিয়ন্ত্রিত স্টোরেজ ব্যবস্থা।

01:03 PMই-টিকিট বুকিংয়ের গতি মিনিটে ৭২০০ করা হবে। এক সঙ্গে ১ লক্ষ ২০ হাদার জন লগ-ইন করতে পারবেন।

01:00 PMবিশ্বস্তরীয় সুবিধার জন্য প্রাইভেট সেক্টরের সাহায্য নেওয়া হবে। বিমানবন্দরের জন্য ১০টি বড় স্টেশনের দেখাশোনা পিপিপি মডেলে করা হবে।

12:56 PMএবার রেল ১.৪৯ লক্ষ কোটি টাকা আয় করতে পারে। যাত্রীসংখ্যাও ২ শতাংশ বাড়বে।

12:55 PMA-1 এবং A ক্যাটাগরির স্টেশনে এবং কয়েকটি ট্রেনে ওয়াই-ফাই সুবিধা থাকবে।

12:53 PMতীর্থস্থানের জন্য বিশেষ ট্রেন শুরু করার পরিকল্পনা।

12:53 PMটিকিট বুকিংয়ের সুবিদা বাড়ানো হবে। পোস্ট অফিসেও রেল টিকিট পাওয়া যাবে।

12:52 PMমুম্বই-আমেদাবাদে চালানো হবে বুলেট ট্রেন।

12:52 PM৯টি রুটে চালানো হবে হাই স্পিড ট্রেন। দিল্লি-চণ্ডীগড়, দিল্লি-আগরা, দিল্লি-কানপুর রুট এর মধ্যে সামিল। ১৬০-২০০ কিমি প্রতিঘণ্টার স্পিড থাকবে।

12:50 PMরেলে হবে হীরক চতুর্ভূজ প্রকল্প। ১০০ কোটি টাকা ঘোষণা এই প্রকল্পের জন্য।

12:47 PMশিক্ষা-ক্রীড়ায় নজির গড়লে রেলকর্মীদের বাড়ত সুবিধা। রেলকর্মীদের জন্য স্বাস্থ্য যোজনা।

12:45 PMপরিচ্ছন্নতায় নজর রাখতে সিসিটিভি ব্যবস্থা।

12:44 PM১৩ লক্ষ ১০ হাজার রেল কর্মীর উন্নতির জন্য, কর্মী প্রতি ৮০০ টাকা ব্যয় করা হবে।

12:42 PMপরীক্ষামূলক ভাবে অটোমেটিক টিকিট ভেন্ডিং মেশিন চালু করা হবে।

12:42 PMআরপিএফের রেসকিউ টিম তৈরি করা হবে। তাঁদের মোবাইল নম্বর দেওয়া থাকবে। যাতে যাত্রীরা যোগাযোগ করতে পারেন।

12:41 PMজ্বালানির দাম বাড়লে ভাড়া বাড়বে, জানালেন সদানন্দ গৌড়া।

12:41 PMক্রসিংগুলিকে আল্ট্রাসনিক গেট বসবে।

12:40 PMনিরাপত্তার খাতিরে আরপিএফ-এ ১৭ হাজার পুরুষ এবং ৪০০০ মহিলা কনস্টেবলও নিযুক্ত করা হবে।

12:39 PM১১,৫৬৬টি রক্ষিবিহীন লেভেল ক্রসিংয়ে রক্ষী দেওয়া হবে।

12:38 PM৫০টি স্টেশনে পরিচ্ছন্নতার কাজ আউটসোর্স করা হবে। লাগানো হবে সিসিটিভি।

12:37 PMবেডরোলের পরিচ্ছন্নতার জন্য মেকানাইজড লন্ড্রির ব্যবস্থা।

12:36 PMভাড়াবৃদ্ধিতে রেলের ৮ কোটি টাকা অতিরিক্ত আয় হয়েছে।

12:36 PMপরিচ্ছন্নতার বিষয়ে রেলের কাছে বড় চ্যালেঞ্জ।

12:35 PMপরিষেবা এবং সুবিধার জন্য প্রাইভেট সেক্টরের সাহায্য নেওয়া হবে। বড় ব্র্যান্ডের প্যাকড রেডি টু ইট খাবার পাওয়া যাবে। খাদ্যের গুণমান বৃদ্ধির প্রস্তাব। স্টেশনে ফুডকোর্ট স্থাপনের প্রস্তাব। এ জন্য নয়াদিল্লি-অমৃতসর এবং নয়াদিল্লি-জম্মু তাওয়াই স্টেশনগুলিতে পাইলট প্রোজেক্ট।

12:34 PMঅফিস-অন-হুইলস: বিশেষ ট্রেনে ইন্টাপনেট এবং ওয়ার্ক স্টেশনের ব্যবস্থা। চালানো হবে পাইলট প্রোজেক্ট।

12:33 PMযাত্রী সুবিধার জন্য এক্সকেলেটর এবং ব্যাটারি চালিত গাড়ি।

12:33 PMরেল প্রকল্পের জন্য বিদেশি বিনিয়োগ দরকার। এফডিআই-র জন্য ক্যাবিনেটের মঞ্জুরি নেওয়া হবে-- রেলমন্ত্রী

12:31 PMরেলের আয় লক্ষ্যমাত্রা থেকে ৪২০০ কোটি টাকা কম-- রেলমন্ত্রী

12:31 PMপুরনো প্রকল্প শেষ করতে ৫ লক্ষ কোটি টাকা খরচ হবে।

12:30 PMআয়ের ৯৪ শতাংশ অর্থ খরচ হয়েছে, শুধু ৬ শতাংশ উদ্বৃত্ত রয়েছে, জানানলেন রেলমন্ত্রী।

12:30 PMভাড়া পুনর্বিন্যাস সত্ত্বেও বিশেষ লাভ হয়নি।

12:26 PMস্ট্র্যাটেজিক পার্টনারশিপ এবং নিরাপদ যাত্রায় জোর।

12:24 PMপিপিপি মডেলে বিনিয়োগ হবে। দ্রুতগতি সম্পন্ন রেল চালানোর ক্ষেত্রেও এই মডেল কাজে লাগানো যাবে।

12:24 PMপরিকাঠামো গড়ে তোলার জন্য আরও মূলধন বিনিয়োগের প্রয়োজন রয়েছে।

12:23 PMযাত্রী সুরক্ষার ক্ষেত্রে কোনও আপস নয়। জানালেন সদানন্দ গৌড়া।

12:20 PMনতুন প্রকল্পের জন্য ৫০ হাজার কোটি টাকা দরকার।

12:18 PMনতুন প্রকল্প চালুর পরিবর্তে অসম্পূর্ণ প্রকল্প পুরো করায়ে বেশি জোর।

12:16 PMপ্রস্তাবে থাকছে নতুন রেললাইন। চ্যালেঞ্জ অতিক্রম করতে সক্ষম হবে ভারতীয় রেল। জানালেন রেলমন্ত্রী।

12:13 PM'নরেন্দ্র মোদীর প্রতি কৃতজ্ঞ'-- বাজেট ভাষণে জানালেন রেলমন্ত্রী।

12:10 PMরেল বাজেট পেশ করছেন সদানন্দ গৌড়া।

11:57 AMআর কিছু ক্ষণের মধ্যেই মোদী সরকারের প্রথম রেল বাজেট পেশ করবেন মন্ত্রী সদানন্দ গৌড়া।

11:57 AMরেল বাজেট প্রসঙ্গে সদানন্দ গৌড়ার স্ত্রী দত্তি সদানন্দ বললেন, 'রেল বাজেটে মহিলা নিরাপত্তা এবং পরিচ্ছন্নতার ওপর বিশেষ নজর দেওয়া হোক।'

11:45 AMরেল বাজেট পেশ করার জন্য প্রতিমন্ত্রী মনোজ সিন্‌হার সঙ্গে সংসদে রেলমন্ত্রী সদানন্দ গৌড়া।

http://eisamay.indiatimes.com/rail-budget-2014/liveblog/38002667.cms




Jul 08 2014 : The Times of India (Ahmedabad)

Factories Act revamp signals labour reforms


New Delhi

TIMES NEWS NETWORK





Just days before the 2014-15 Union Budget, the government on Monday said it plans to amend the archaic Factories Act, 1948 — the first move in more than a decade to revamp labour laws.

Companies have cited obsolete labour laws as a key hurdle for doing business. The government's move is expected to send positive signals as it gets down to the business of attracting investment. It also fits in with its pledge to ease the processes of doing business and make India an attractive destination, revive the manufacturing sector and create jobs.

Minister of state for mines, steel and labour Vishnu Deo told the Lok Sabha in a written reply that the proposed major amendments would include relaxing restrictions on night

ubject to certain conditions nd increase in the limit of vertime to 100 hours (existing 0 hours) in a quarter.

It would also include proviion of protective equipment or the safety of workers and more precautions against umes and gases. The Central government would be empowered to make rules, a departure from the current practice where states frame the rules.

Experts said the proposed changes to the Factories Act would benefit workers and employers and ensure health safeguards for employees.

The plan to allow women to work in night shifts would also benefit several sectors such as textiles and garments. They, however, said adequate safeguards need to be put in place to ensure security of women workers.

"Changes to the Factories Act will help reduce red tape, end inspector raj and also bring in transparency for workers and employers," said Sanjay Bhatia, president, Ficci confederation of micro, small and medium enterprises.

The intention to amend the obsolete Factories Act, 1948 comes shortly after the Vasundhara Raje government in Rajasthan moved to amend four Central laws. Current rules stipulate that the Factories Act would be applicable to manufacturing units employing 10 workers and operating on power and 20 employees for those units without power.

Industry experts said the intention to move ahead with labour reforms augured well for the manufacturing sector but cautioned that it would take some time before the reforms kick in.

"It sends a strong signal to global investors to come and invest and set up manufacturing units to create jobs," said Rituparna Chakraborty , senior VP at staffing firm Teamlease. TNN For full report , log on to http://www.timesofindia.com



Jul 08 2014 : The Economic Times (Kolkata)

India Gets a Money Order

DHEERAJ TIWARI & RACHITA PRASAD

NEW DELHI MUMBAI





Rise & Shine Already on a high, Sensex may get more reasons to scale new peaks with the govt planning to offload 10% in blue-chip PSU ONGC and top hedge funds taking an avid interest in share sales by desi firms Selloff Furnace to be Rekindled with Rs35kcr ONGC Sale `

With the government expected to announce a big-bang privatisation programme in the July 10 budget, the loudest pop could come from the sale of a 5-10% stake in ONGC that would raise as much as ` . 35,000 crore at current market prices, a record for stake sales in stateowned companies.

This would make it much bigger than the Coal India initial public offering of 2010, in which the government raised . 15,500 crore.

` An inter-ministerial cabinet note has been floated in this regard, according to two government officials. In 2012, the sale of a 5% stake in the firm had fetched the government around Rs 12,000 crore. It's not clear however what amount of stake the government will eventually put on sale.

"We will go ahead with ONGC in this year itself. The process of appointing merchant bankers will soon be initiated," said one of the officials. The government currently holds a 68.94% stake in the explorer.

A draft proposal of the finance ministry's Department of Divestment to the cabinet committee on economic affairs has suggested a 5% divestment. The proposal, of which ET has a copy, suggests offering another 0.25% of equity to employees at a possible discount of 5%. The offer for sale based on this plan would raise Rs 18,000 crore.

"Keeping in view the number of disinvestment cases in the pipeline, the market appetite and the present shareholding of the government, it is proposed that 5% paid up capital of ONGC may be divested in the domestic market as per Sebi Rules and Regulations," the note said.

The 2012 share sale took place at a time when the government badly needed the money to plug the holes in revenue but market sentiment was poor.

The country's largest insurer, stateowned Life In surance Corp. (LIC) of India, had to bail out the government at the time, picking up 88% of the offer for sale (OFS).

"LIC had picked up shares at around Rs 304, now the shares are trading at above Rs 400, so that proves that PSU stocks have good standing in the long term. We expect good participation from both financial institutions and retail investors," said the second official.

There has been a turnabout in market sentiment.









Jul 08 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ET EXCLUSIVE Q&A - Modi's Started Well... Right Policy Choices will Bring in Fresh Funds

PIYUSH GUPTA CHIEF EXECUTIVE, DBS






It is a flying start for Narendra Modi in the eyes of international investors, says Piyush Gupta, chief executive, DBS Bank, Singapore. Doubts about his ability to execute at the national level should be buried, Gupta tells in an interview with ET's MC Govardhana Rangan.

Fiscal consolidation, privatisation should top agenda, says Gupta. Edited excerpts: There is a sudden burst of optimism about India? What has changed?

India is a long-term play and I am pretty optimistic about it over the long term.

There are many things. First is to do with the sentiment. If you think about business opportunities, particularly investment, a lot of it is confidence-driven. Confidence will feed optimism. You will see investment picking up and that in itself will generate growth. The big challenge facing the country is purely related to implementation and execution. If you can get 20 big projects going.... the last mile done, and execute, you will start creating a big source of demand, and that will also address some supply infrastructure bottleneck issues.

Nothing much has changed on the ground. So, is the market running ahead of itself?

The Modi administration, and Modi himself, has demonstrated a capacity to execute. You can argue that it is only one state, Gujarat. But it is still 60-70 million people, and that is not small. That is bigger than many countries. It is bigger than many countries in Asia. Once you have done it with 60-70 million people, demonstrated you can execute, it is good enough.

What should be the priority for him?

There are legislative challenges. Whether tax code reform, land reform, or labour reform. He has got a majority, and there is no coalition. He has got the capacity to do that as well. I am positive about that. What is in him that has been impressive in the first few days?

He has made a fantastic start. The whole approach has been inclusive. It is not about the right noises and calling the countries' neighbours. All that is helpful.

His agenda has been not vindictive. He believes: "I need to include and bring in all the chief ministers." To me, in India, states are crucial. Everything he has done so far, aligning to get non-BJP states on board, is good. He is going to try to create a coalition of chief ministers. That is a fantastic way to operate. India can only work on a federal structure with a lot of decentralised stuff. Modi knows it, and is comfortable doing that. He was a chief minister for 12 years. He knows the pulse.

After a bitter fight during the elections, he seems to be turning friendly to the likes of Jayalalithaa?

That is really pragmatic politics. Getting Jayalalithaa, getting Mamata, getting others on board for a common economic agenda is a great move. That is the way forward, and he is doing that. Many things are politically right, but a the economy is still in a mess. The L government finances are a wreck. How s can he deliver?

The economic situation is challenging. i Two things which are not helpful -mon e soon which has been slow, and oil, which is near $110-115 a barrel. God forbid, if Iraq-Syria blows up, those will be major headwinds. It is to be accepted. If you for a get the cyclical issues on a secular basis, what is India's challenge? It is the supply side. All of these headwinds are there, but a if you get infrastructure and investments c going, cycles will come and go. That is what needs to be done.

Who would invest in creating infrastructure? All those who did in the t previous cycle are debt-laden.

There is a lot of money in the world. The a pools of savings even in Asia are huge. The r thing about Asian savings is they are cycli e cal to the US treasuries right now. China has $4 trillion, of that $2 trillion is lying in t US treasuries now. They hate the idea. Sin e gapore and all of these surplus countries i in Asia can invest. Leave alone the surpluses in the world, the US corporates are s sitting on trillion dollars of cash. There is no shortfall of money. You need to build t confidence. You need to have stability, T getting like consistency in tax policy.

What are the two or three things that c you want to see this government do? l The budget is important. You have got to have credible budget which recognises I the fiscal issues. It should lay a very clear c pathway which consolidates the fiscal. e Getting 10 or 20 projects up and running I will create a visible change. You create a massive confidence that the government is working. The other things you can do to t address the fiscal situation are -subsidy on fertilisers and fuel. Those are not easy c things. They are politically tough to do.

T But these have to be done. How do you go c about actually taking on those challenges?

Labour policy reform. They have already started addressing it. Politically, it is always a hot potato. If you need investment into the country, you have got to create an environment of active labour policy.

How does it fix its finances with expenditure far outpacing revenue?

Privatisation programme is helpful. Look at the banking sector in India. With state banks controlling 60-70%, you can continue to drive significant amount of state agenda with a lot lesser stake. You can come down to 25%. That is a massive state disinvestment programme that can work.

You can do that in several of the government enterprises. That is the other thing that you crucially need. China did that. Zhu Rongji (Chinese premier between 1998 and 2003) did that 15 years ago. They got rid of a lot of people. They changed the orientation of state enterprises. It was not without resistance, lot of push back. Even the British did it. The previous NDA government did it. In the last 10 years, nothing happened.

The Indian banking system is capital starved and is troubled with bad loans.

Why would investors buy? How could they fund an economic recovery?

That is one of the challenges. China has bad loans problem as well. The issue is capitalisation gap. That is one of the challenges for the government. That is why divestment in banks is crucial to me. The Indian government will find it difficult to capitalise the banks if you recognise the extent of the problem. China can do it, but India can't. For the Indian government, disinvestment may be the best way to recognise the problem than putting capital into banks.

Even the interest regime is not conducive for banks in India.

Tight monetary policy is always a challenge to businesses. The RBI governor is clear that you need to take care of inflationary expectations. With (poor) monsoon, it will not be easy to lower rates. Structural, supply-side adjustments are what will help create scope for an easy monetary policy.

Sooner or later, you will start seeing interest rates climb across the world. It will be even more difficult for India to drop interest rates if there is a general rise in rates.








Jul 08 2014 : The Economic Times (Kolkata)

BUDGET 2014-15 LOOKING AHEAD - Sebi Wants Safe Harbour for Foreign Inflows

JWALIT VYAS & REENA ZACHARIAH

ET INTELLIGENCE GROUP





Wants to segregate fund & its manager

Capital markets regulator Sebi has sought a clear distinction between a fund and its fund manager, asking the finance ministry to introduce `safe harbour' rules in the upcoming budget to overcome anomalies in the existing tax provisions.

Sebi has written to the government saying that the existing provisions are driving away most foreign portfolio investors (FPI) to places such as Singapore and Hong Kong which is proving detrimental to the domestic asset management industry , a senior official told ET.

If a foreign fund is managed by somebody residing in India, the FPI can be exposed to a number of taxes in the country irrespective of where it is based. This is not the case if the fund manager resides outside India. Global funds prefer to have asset managers based in locations that are not under India's jurisdiction so as to avoid their worldwide income being subject to taxes in the country.

Sebi has sought a level playing field for FPIs irrespective of the residential status of their fund managers.

"If the income of the fund is characterised as business income, the fund manager's presence may constitute a business connection or a permanent establishment of the fund in India, thus subjecting the fund to tax exposure in India because of the presence of the manager in India," said Gautam Mehra, executive director, PricewaterhouseCoopers.

Mehra said that introduction of a `safe harbour' rule which will not expose the fund to taxes in India merely because of the presence of the manager in the country could significantly contribute to promoting India as a global asset management hub.

"In such a case, taxation of fund's profits by reasons other than that of the manager's Indian presence would continue as per the normal provisions of Indian tax laws," he added.

In Hong Kong, for example, the asset management industry flourished after similar tax changes were made in 2006 and assets under management swelled by 57% within a year.

According to fund managers, the government can help generate billions of dollars by way of asset management fees annually, besides contributing handsomely to direct taxes and providing an indirect multiplier effect on economic activity .

Foreign institutional investors have pumped in nearly $300 billion in India, for which management fees is $3 billion or 1% of assets under management, said an Indian fund manager of a leading global investment bank who had to move to Singapore last year on the request of his clients. "If the portfolio managers operate from India, the government can earn at least up to $1 billion or . 6,000 crore ` as tax," said the fund manager, who did not wish to be named.

Sebi has said that allowing portfolio managers and their teams to be physically based in India will increase job opportunities and reverse the talent drain seen in the past. Besides, it will provide additional avenues for asset managers in India to earn fees and manage a more global pool of funds investing in India and other countries.

"Presence of fund manager in India could potentially expose foreign funds to taxation in India either on the grounds that such fund manager is regarded as private equity of the fund in India or the fund manager being regarded as `controlling and managing' the foreign fund out of India. A careful structuring is required to avoid such a situation by taking certain appropriate measures," said Sanjay Sanghvi, partner, Khaitan & Co.



अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन। हर तरह से अब साफ है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।

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अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।

हर तरह से अब साफ है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।

पलाश विश्वास


Narendra Modi's confidant Amit Shah replaces Rajnath Singh as BJP president; marks a new beginning for party

Narendra Modi's confidant Amit Shah replaces Rajnath Singh as BJP president; marks a new beginning for party


अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।मुंहदिखायी की रस्म के साथ गाली गीतों का अलाप जारी है।कल खुलेगा नये सपेरे का पिटारा।सपेरों और जादूगरों के देश में तमाशबीन जनता है।हालांकि लोकसभा में विपक्ष ने महंगाई, नेता प्रतिपक्ष जैसे मुद्दों पर खूब शोरशराबा किया। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नारे लगाए तो दूसरी ओर संसद के बाहर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। विपक्ष ने सरकार पर जनता से वादाखिलाफी का आरोप लगाया। वहीं बीजेपी ने बढ़ती कीमतों के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने आरोप लगाया कि चुनाव में बीजेपी के लिए व्यापारी वर्ग ने पैसा लगाया और अब दाम बढ़ाकर बीजेपी वो पैसा ब्याज समेत वापस कर रही है।


अच्छे दिनों का सपना दिखाकर सत्ता में आई मोदी सरकार का कल कड़ा इम्तिहान है। एक तरफ करोड़ों उम्मीदों का दबाव है तो दूसरी तरफ खस्ताहाल इकोनॉमी। आज आए आथिर्क सर्वे में इकोनॉमी की डर्टी पिक्चर ही पेश की गई है। अब सवाल उठता है कि मोदी के पहले बजट में चौंकाने वाले एलान होंगे या वो दूर की सोच वाला होगा। वैसे रेल बजट के बाद ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी बैलेंस्ड बजट पर ही फोकस रखेंगे। कुछ बोल्ड फैसले भी होंगे और कुछ मलहम लगाने ऐलान।


माना जा रहा है कि बजट में मौजूदा 2 लाख के बजाए 2.5 लाख रुपये की आय टैक्स फ्री हो सकती है। टैक्स छूट सीमा को महंगाई दर से जोड़ सकते हैं। 80सी के तहत 1 लाख रुपये की छूट की सीमा बढ़ सकती है। इंफ्रा बॉन्ड को 80सी में शामिल किया जा सकता है। इंफ्रा बॉन्ड में 30,000 रुपये तक के निवेश पर छूट मिल सकती है। होम लोन के ब्याज पर छूट की सीमा बढ़कर 2.5 रुपये लाख संभव  है। होम लोन के ब्याज छूट बढ़ाने से सरकार के खर्चे पर दबाव नहीं आएगा।


शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा हो गयी रस्म अदायगी के लिए,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।दरअसल आने वाले वर्ष में 7 से 8% की उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिये मुद्रास्फीति पर अंकुश, कर वसूली और व्यय क्षेत्र में सुधार तथा बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के लिये कानूनी एवं नियामकीय ढांचा सहित तीन स्तरीय रणनीति अपनाये जाने का सुझाव दिया गया है।

संसद में आज पेश 2013-14 की आर्थिक समीक्षा में सरकार को यह सुझाव देते हुये कहा गया है, भारत की दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि संभावनाओं की बेहतरी के लिये रोजगार और आय के अवसर बढ़ाने और निवेश गतिविधियों में फिर से तेजी लाने के लिये तीन स्तरीय रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।



गौरतलब है कि धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण माध्यमे पूरे देश को गुजरात बनाने के आधार बतौर  लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सीट दिलाकर संघ परिवार का दिल जीतनेवाले गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को आज पार्टी का नया अध्यक्ष बना दिया गया।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह के नाम पर भाजपा संसदीय बोर्ड ने आज मुहर लगाई। अमित शाह, जावड़ेकर और राममाधव की तिकड़ी के जरिये राजकाज को अंजाम देंगे धर्मयोद्धा नरेंद्र मोदी।


जारी है धर्म युद्ध प्रलयंकर तो जारी है जनसंहारी ग्लोबीकरण कारपोरेट राजनीति के साथ और छिनाल पूंजी छइया छइया बुलेट बूम बूम है नागपुर और नई दिल्ली के केसरिया एक्सप्रेसवे पर एफडीआई प्राइवेटाइजेशन की बुलेट धूम है।


आर्थिक समीक्षा से पहले रेल बजट ने समां बांध दिया है।जनसंहार समर्थने निनानब्वे फीसद जनगण और गणतंत्र के विरुद्ध मोर्चाबंद है क्रयशक्ति संपन्न एक फीसद सत्ता वर्ग की नस्ली व्चस्ववादी अस्मिता धारक वाहक कारपोरेट राजनीति की जाति स्थाई व्यवस्था।


समीक्षा का यह वैदिकी कर्मकांड संस्कृत कूट मंत्रों से भी कठिन है।ओंग बोंग धूम धड़ाका है आंकड़ों का,संख्याओं और ग्राफिक के स्पेशल एफेक्ट है और अवतार क परिवेश है।


समीक्षा में कहा गया है कि पहले कदम के तौर पर सरकार को मौद्रिक नीति के लिये खाका तैयार कर, राजकोषीय मजबूती और खाद्य बाजार में सुधार लाकर मुद्रास्फीति को नीचे लाना होगा। दूसरे कदम के तौर पर समीक्षा में कर और व्यय क्षेत्र में सुधार पर जोर दिया गया है। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करते हुये लोक वित्त को सतत् मजबूती के रास्ते पर लाने को कहा गया है।

व्यय क्षेत्र के सुधार में सार्वजनिक वस्तुओं और सब्सिडी कार्यक्रम के लिये नये तौर तरीके अपनाने पर जोर दिया गया है। समीक्षा के अनुसार बाजार अर्थव्यवस्था के लिये भारत में कानूनी और नियामकीय ढांचे की भी आवश्यकता है। इसके लिये पुराने कानूनों को निरस्त करने और बाजार असफलता के समय स्थिति संभालने के लिये सरकारी क्षमता मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि के 5.4 से 5.9% के दायरे में रहने का अनुमान है। इससे पहले लगातार दो वर्ष आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत से नीचे रही।



मीडिया नीति निर्धारण पर खामोश है।रेल बजट को तो शास्त्रीय तक बता दिया गया है और लंबी रेस के गौड़ा के रेलवे पथ पर पलक पांवड़े बिछा दिये गये हैं।


अर्थ और प्रतिरक्षा मंत्रालय का नदी जोड़ों अभियान प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत एफडीआई को न्यूटन के गति नियमों के मुताबिक त्वरा देने के प्रयोजन से है तो भारत अमेरिकी परमाणु शंधि के कार्यान्वयन के लिए भी।


साथ ही अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में प्रतिरक्षा आंतरिक सुरक्षा के जायनवादी कायाकल्प के लिए भी।


मोदी और अमित शाह के निर्देशन में विनिवेश की तरह किस रिफाइंड ब्रांड के धीमे मारक जहरीला रसायन से ङमारी सांसें चुराने की भोपाल गैस त्रासदी की रचना हो रही है, सिख संहार और बाबरी विध्वंस के रसायन से अनजान आम जनता के लिए कार्निवाल मध्ये मुखौटा नृत्य और कबंधों के सांबा के वातावरण में समझ पाना असंभव है।


पढ़े लिखे डिग्रीधारी मलाईदार तबका इस कयामती अर्थव्यवस्था के ज्वालामुखी मुहाने आशियाना बनाये बकरे की अम्मा की खैर मना रहे हैं।


बजट से आर्थिक समीक्षा का संबंध जाहिर है उतना होना जरुरी भी नहीं है।


संसद के प्रति जिम्मेदार अल्पमत सरकारों ने पिछले तेईस साल में नीति निर्धारण से भारत की संसद और संविधान को अप्रासंगिक बना दिया है।


मसलन जेटली अपने मिशन इंपासिबल को अंजाम देने के लिए आयकर छूट की परिधि पांच लाख कर दें तो सारी सब्सिडी खत्म कर दिये जाने के बाद भी,सारे सरकारी विभागों, सेवाओं और उपक्रमों का विनिवेश कर देने के बाद भी,कर सुधार से आम जनता पर अर्थव्यवस्था का सारा बोझ लादकर पांच लाख छह लाख करोड़ के सालाना करराहत के बजाय एकमुश्त पूंजी को कर मुक्त कर देने,रोजगार और आजीविका प्रत्यक्ष विनिवेश हवाले करने और कृषि की शवयात्रा निकालने के बावजूद क्रिकेट फुटबाल से ग्लोबल हुई यह मलाईदार तबका आह तक नहीं करेगा।


जल जंगल जमान नदी समुंदर और अंतरिक्ष तक को आग के हवाले करने पर भी उसकी आंच मलाईदार गैंडा तबके की घनी गोरियायी फेयर एंड लवली हैंडसम डियोड्रेंट महकी खाल को किसी भी स्तर तक नहीं छुयेगी और विडंबना है कि हम इसी तबके की क्रांतिधर्मिता,मुक्ति कामना,गणतांत्रिक अस्मिता स्वतंत्रता पावक चेतना और प्रतिबद्धता पर इस ग्लोबल कयामत से आजादी के लिए दांव लगाये हुए हैं और आम जनता को बुरबकै मानकर उन्हें संबोधित करने का कोई प्रयास अब भी नहीं कर रहे हैं।


मनोरंजन मीडिया के वर्चुअल सेक्स की तो कहिये मत,बाकी कवायद भी आत्मरति तक सीमाबद्ध है।


एफडीआई और निजीकरण के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी की खुमारी सेल पर है जैसे वे तरणहार हैं और जैसे वे दस साल क जैसे जनता का उद्धार कर रहे हैं,उसीतरह इस विपर्यय से भी बचा लेंगे उनके जैसे तमाम अवतार और फरिश्ते और बोधिसत्व।ईश्वर का कोई वरद पुत्र नहीं है और सरस्वती की सारी संतानें सारस्वत विशुद्ध वैदिकी है,जिनके लिए वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।लेकिन मीडिया का फोकस देखें।


लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बावजूद कांग्रेस इन नतीजों से कोई सबक सीखती नजर नहीं आ रही। आज लोकसभा में महंगाई के मुद्दे पर बहस के दौरान राहुल गांधी झपकी लेते नजर आए। महंगाई से पूरे देश की जनता परेशान है और इस अहम मुद्दे पर देश की जनता का ध्यान देने के लिए कांग्रेस इसे लगातार उठा रही है। लेकिन आज जब लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, तब राहुल गांधी सदन में झपकी लेते देखे गए।


पहले भी राहुल पर अहम मसलों पर बहस में हिस्सा नहीं लेने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन इस बार सदन में सोने की तस्वीर कैद होने से उनके विरोधियों को आलोचना का मौका मिल गया है। राहुल को सदन में जम्हाई लेते भी देखा गया। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने इसपर ट्वीट कर चुटकी ली।



अमेरिकी विध्वंस के इतिहास के संदर्भ में कई दिनों से धर्म राजनीति और पूंजी के संहारक त्रिभुज का चित्रायन कर रहा हूं।


उस त्रिभुज का वृत्त अब तीन सौ साठ है।बीच में नागपुर नई दिल्ली का घना आलंब है और बाकी बचा गुजरात माडल है।


ब्राजील का विलाप लेकिन विश्वकप फाइनल में सात सात गोल हजम करने का कतई नहीं है।


चमकदार वैश्विक बंदोबस्त का रंग रोगन धुल जाने के बाद बेपरदा नंगा टाट खुल जाने की रुदाली है वह,जिसके मुखातिब हम अब भी नहीं है।


अब भी महाद्वीपों के आर पार मध्ययुग के धर्मयुद्ध से अविराम जारी ग्लोबीकरण मार्फत विकास के अश्वमेधी विध्वंस के भूगोल इतिहास से हमारा वास्ता नहीं है।


तकनीक, शोध और अंतरिक्ष तलक आविस्कारों और अनुसंधान की धूम, इस ब्रह्मंड की रचना प्रक्रिया की पुनर्रचना के बिग बैंग के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टि उपभोग उपकरण, तकनीक संचार माध्यम,कंप्यू रोबो वीडियो गेम गेजेट विजेट साप्टवेयर टेंप्लेट की आभासी दुनिया तक सीमाबद्ध है।विज्ञान और समाज वास्तव के सरोकार अब अलग थलग परस्परविरोधी हैं।डिग्रियां है लेकिन ज्ञान की तरफ पीठ है।ज्ञानपीठ है।अकादमी और संस्थान हैं वर्चस्व और एकाधिकार के, न विवेक है और न साहस।


केशरिया अश्वमेधी राजसूय के कर्म कांड के मध्य अपने देश का ब्राजील भी हार रहा है।


एकाधिकारी आक्रमण के मुकाबले ब्राजीली रक्षण है ही नहीं कहीं।


बंजरंगियों की अंधी दौड़ में पूंछ उठाने की कवायद में आत्मरक्षा और वजूद की फिक्र ब्राजीली उन्मुक्त सेक्स की कार्निवाली संस्कृति के विरुद्ध है।


हम उसी कार्निवाल के मध्य हैं।


ब्राजील का कार्निवाल तिलिस्म को बेनकाब भी करने लगा है।


लेकिन हमारे कार्निवाल में तिलिस्म अभी चक्रव्यूह है।


आखिर ब्राजीली कार्निवाल के लिए तीस करोड़ कंडोम भारत से ही भेजे गये थे।


कंडोम संस्कृति में अर्थशास्त्र की चर्चा निषिद्ध है।


वैदिकी मंत्र की तरह अबूझ हैं परिभाषाएं,आंकड़े,तत्व और तथ्य।


हम विकास कामसूत्र के अनंत आसन का अभ्यास करते रहेंगे बहरहाल।


दुल्हन की घुंघट उठाये बिना सुहागरात से पहले भागे दूल्हों के हवाले है राजकाज और दुल्हन अभी भी घुंघट में हैं सिर्फ हवाओं में कंडोम गुब्बारे हैं सुगंधित।


इसी के मध्य बजट और उससे पहले आर्थिक समीक्षा के कर्मकांड अबूझ।


आथिर्क सर्वे में बड़ी चुनौतियां सामने आई हैं। वित्त वर्ष 2015 में 5.4-5.9 फीसदी ग्रोथ का अनुमान है। वित्तीय घाटे को लेकर चिंता बरकरार है, महंगाई में कमी आई, लेकिन अब भी ज्यादा है। महंगाई की वजह से दरें घटाने की गुंजाइश कम है। इसके अलावा खराब मॉनसून दिक्कतें बढ़ा सकता है। इराक संकट से देश की इकोनॉमी में दबाव की आशंका है।


आथिर्क सर्वे में बड़ी चुनौतियों के रूप में सुस्त ग्रोथ, कमजोर मॉनसून, महंगाई, वित्तीय घाटा हैं। वहीं सब्सिडी घटाना, ऊंची ब्याज दरें और कमजोर मैन्यूफैक्चरिंग और इंडस्ट्रियल ग्रोथ के मुद्दे पर सरकार को कोशिश करनी है।


बजट में उम्मीद है कि आगे की अच्छी तस्वीर सामने आएगी। माना जा रहा है कि वित्त वर्ष 2015 में मैन्युफैक्चरिंग में सुधार की उम्मीद है और साथ ही करेंट अकाउंट घाटे में सुधार की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2015 में करेंट अकाउंट घाटा जीडीपी का 2.1 फीसदी रहने का अनुमान है।


इंडस्ट्री जानकारों का मानना है कि बजट में सब्सिडी कम करने पर जोर होना चाहिए और वित्तीय घाटे के लिए एफआरबीएम कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिए। वित्तीय घाटे पर लगाम के लिए कड़े फैसले लिए जाने चाहिए।


वहीं आर्थिक जानकारों का मानना है कि बजट में पीडीएस सिस्टम में सुधार होना चाहिए। डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम के कारगर इस्तेमाल की कोशिश होनी चाहिए। सरकार को महंगाई कम करने पर जोर देना चाहिए और आय बढ़ाने के लिए टैक्स सिस्टम में सुधार करना चाहिए। बजट में विनिवेश का रोडमैप, जीएसटी का ठोस रोडमैप आना चाहिए। टैक्स नियमों की दुविधा खत्म की जानी चाहिए और पावर, माइनिंग, इंफ्रा सेक्टर के लिए बड़े ऐलान होने चाहिए। रोजगार बढ़ाने के लिए छोटे उद्योगों पर फोकस किया जाना चाहिए।



2014-15 में देश की विकास दर 5.4-5.9 फीसदी रहने की संभावना है।

विकास दर की यह भविष्यवाणी का खुलासा उसीतरह नहीं हुआ है जैसे कि 63 करोड़ की लागत से पूर देश को बुलेट हीरक चतुर्भुज बनाकर निजी और विदेशी निवेश,विनिवेश और बेसरकारी करणसे भारत के कायाकल्प का असली बनिया कार्यक्रम का खुलासा नहीं किया गया है।

इसी के साथ महंगाई चिंता का विषय बना रहेगा।रेलभाड़ा और तेल गैस बिजली की कीमतें विनियंत्रित करके बाजार और समाज को छुट्टा सांढ़ों के हवाला करके विकास दर,मुद्रा स्फीति,वित्तीय घाटा, भुगतान संतुलन पर नियंत्रण की अबाध पूंजी करिश्मा के मुखातिब होकर बाजारों में पल पल झुलस रही निनानब्वे फीसद के लिए इस रहस्य का खुलासा जाहिर है कभी होना नहीं है।

संसद में बुधवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 2013-14 के लिए पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि नकद सब्सिडी भुगतान उर्वरकों पर सब्सिडी देने का सही तरीका है और ईंधन की कीमतें बाजार पर आधारित होनी चाहिए। पहले आधार परियोजना थी तो अब सिटिजन कार्ड।मकसद एकमेव,सब्सिडी का खात्मा।

इस सर्वेक्षण में वित्तीय घाटा कम किए जाने के लिए सिर्फ खर्च-जीडीपी अनुपात घटाने की जगह अधिक कर-जीडीपी अनुपात का सुझाव दिया गया है। 2013-14 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 4.5 फीसदी रहा तथा आक्रामक नीतिगत पहल ने 2013-14 में सरकार को वित्तीय घाटा कम करने में मदद की।परिभाषाओं और आंकड़ों की कलाबाजी का नायाब कर्मकांड है।

दावों पर यकीन करें तो वर्ष 2013-14 में देश के बकाया-भुगतान की स्थिति काफी सुधरी है। चालू खाता घाटा 32.4 अरब डॉलर, जीडीपी का 1.7 फीसदी रहा, जो 2012-13 में 88.2 अरब डॉलर, जीडीपी का 4.7 फीसदी था।

इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि रुपये की वार्षिक औसत विनिमय दर 2013-14 में प्रति डॉलर 60.50 रुपये रही, जो 2012-13 में 54.41 रुपये थी और जो 2011-12 में 47.92 रुपये थी। देश का विदेशी पूंजी भंडार मार्च 2014 के आखिर में बढ़कर 304.2 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च 2013 के आखिर में 292 अरब डॉलर था।

देश में योजना एवं पूंजी खर्च में कटौती के जरिए वित्त वर्ष 2013-14 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 4.5 प्रतिशत पर किसी तरह रोका गया, जो कि अपने आप में अस्थिर है। यह बात सरकार द्वारा बुधवार को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 में कही गई है. इसमें कहा गया है कि देश की राजकोषीय स्थिति जितनी बुरी दिख रही है, वाकई में उससे भी अधिक बुरी है।


अब इस अर्थ संकट और वित्तीय घाटा के अविरम अलाप के मध्य आर्थिक सुधारों के महायज्ञ में शामिल रंग बिरगे पुरोहितों के विरुद्ध जनमोरच पर खड़े होने की हिम्मत करें कौन।

इस वक्तव्य का आशय कल के बजट में स्पष्ट होने के आसार कतई नहीं है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक मजबूती आवश्यक है, मौजूदा संदर्भ में और आगामी वर्षो के संदर्भ में भी।

वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार इला पटनायक द्वारा तैयार वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी के जोखिम से निपटना जरूरी है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, "एक अन्य चुनौती कर आधिक्य को सुधारने की है, और गैर-डेट प्राप्तियां में गिरावट को धन उगाही और सुधारों में अधिक प्रयासों के जरिए रोका जा सकता है।"


अमेरिकी राष्ट्रपति के इस अमृत वचन को याद रखेंःलोग कम टैक्स नहीं चुकाते, दरअसल सरकारें खर्च बहुत करती हैं।



हमारे आदरणीय साहित्यकार उदय प्रकाश ने बेहतर लिखा है।पहले उनको पढ़ लें।



Status Update

By Uday Prakash

रेलवे बजट के बाद ।

अब यह स्पष्ट है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।

ब्रिटिश राज के दौर से यह विकास मार्ग किस रूप में भिन्न है ?


दूसरा, है 'पीपीपी' यानी पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर की साझेदारी ।

(यह नेहरू युग के 'मिक्स्ड एकानमिक पॉलिसी ' (मिश्रित अर्थ व्यवस्था) से कैसे अलग है ? )


रहा 'भ्रष्टाचार', तो प्राइवेट या कार्पोरेट सेक्टर का भ्रष्टाचार रिश्वत या ग़बन से नहीं, जबरिया भूमि-अधिग्रहण, किसानों के विस्थापन और खनिज उत्कर्षण के लिए नदियों, जंगलों के विनाश, आदिवासियों के दमन के पैमाने से नापी जाती है ।

क्या यह रेलवे बजट जनता के लिए कम और उपभोक्ता वर्ग को ध्यान में रख कर बनाया नहीं गया है ?

फिर तेज़ रफ़्तार रेलगाड़ी को ' बुलेट ट्रेन' (गोली गाड़ी) ही क्यों कहा जा रहा है? 'भारतीय संस्कृति की परंपरानुसार' इन्हें 'पवन गाड़ी' क्यों नहीं कहा गया ? 'गोली-बारूद' तो विदेशी लेकर आये थे । अगर हमारे पास बुलेट- बंदूक़, तोप-तमंचे रहे होते, तो पानीपत की पहली लड़ाई हम क्यों हारते ?


फिर, रेल का विदेशीकरण क्या भारत के ' भारतीयकरण' का प्रतिलोम नहीं है ?

यही तो पहले संघ का नारा हुआ करता था ।


आगे हमारे युवा तुर्क अभिषेक को भी पढ़ लें।अभिषेक और रियाज को कई दिनों से रिंग कर रहा हूं और हमारे रिंगते रहने के जवाब में उनकी आवाज का इंतजार भी है।बहरहाल अभिषेक के ताजा अपडेट और उदयजी के कथन को आर्थिक समीक्षा के परिप्रेक्ष्य में संदर्भित कीजै तो बजट का आशय समझ में आवै।अभी दुल्हन घुंघट की ओट में है।



Abhishek Srivastava

5 hrs·

देखिए भाई, कुछ बातें अभी समझ ली जाएं तो जीवन से तनाव कम किया जा सकेगा। पहली बात, भाजपा हमारी पार्टी नहीं है इसलिए उसका अध्‍यक्ष कोई हत्‍यारा हो, उठाईगीर हो, गुंडा हो या संत, यह हमारा मुद्दा नहीं है। दूसरी बात, चूंकि न हमने अच्‍छे दिन मांगे थे और न ही उसके लिए भाजपा को वोट दिया था, इसलिए केंद्र सरकार के कड़े या मुलायम फैसले पर कोई भी बहस हमारी अपनी बहस नहीं हो सकती। तीसरे, हम लोग सनातन स्‍लीपर क्‍लास से चलने वाले लोग रहे हैं इसलिए बुलेट ट्रेन आदि के रेटॉरिक पर हमारे भड़कने का कोई अर्थ नहीं है।

दरअसल, भाजपा का बहुमत आने पर हमें इसलिए सदमा लगा था क्‍योंकि पिछले साल भर से बिछाई जा रही चुनावी बिसात में हमें जबरन खींच लिया गया था। हम लोग एक ऐसी लड़ाई का हिस्‍सा चाहे-अनचाहे बना लिए गए थे जो हमारी थी ही नहीं। चूंकि नकली लड़ाई का नतीजा हमारी असली अपेक्षाओं से उलट रहा, तो तनाव होना ही था।

प्रचार के जाल से बचें, दोबारा वही गलती न दुहराएं। अपनी असली लड़ाई को पहचानें। अगर अपनी लड़ाई समाज में मौजूद न हो, यहां अपना स्‍टेक न दिखता हो तो चैन से बैठ कर पढ़ें-लिखें। टीवी मत देखें। अखबार एकाध दिन में देख लें। इस अनचाहे पांच साल की लंबी अवधि का इस्‍तेमाल बुरे दिनों से लड़ने की तैयारी में लगाएं।


बहरहाल वित्त मंत्री अरूण जेटली कल अपना पहला बजट पेश करेंगे। मध्यम वर्ग व उद्योग जगत को नई सरकार के इस पहले बजट से काफी उम्मीदें हैं। माना जा रहा है कि बजट में वेतनभोगी वर्ग के लिए कुछ रियायतों की घोषणा हो सकती है। इसके अलावा इसमें विवादास्पद पिछली तारीख से कर को समाप्त किया जा सकता है तथा वृद्धि के लिए निवेश व विनिर्माण में नई जान फूंकने के उपायों की घोषणा हो सकती है।

वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आज कहा कि कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण में तथा देश के सामाजिक बुनियादी ढांचे को गति देने के लिए भारी निवेश की जरूरत है।

इसी बीच बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 137 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ। आर्थिक समीक्षा में जतायी गयी चिंता तथा नरेंद्र मोदी सरकार के कल पेश होने वाले बजट से उम्मीद घटने से बाजार में गिरावट दर्ज की गयी। वैश्विक शेयर बाजारों में कमजोर रूख से भी धारणा प्रभावित हुई। शुरूआती कारोबार में सेंसेक्स मजबूती के साथ खुला और 25,683.97 अंक तक चला गया। हालांकि आईटी, वाहन, बिजली, रीयल्टी तथा पूंजीगत वस्तुओं में मुनाफावसूली से सूचकांक एक समय दिन के निम्नतम स्तर 25,364.77 अंक तक चला गया।

संसद में पेश किए जाने वाले 2014-15 के बजट को लेकर काफी उम्मीदें जताई जा रही हैं। हालांकि इसमें कर स्लैब या आयकर छूट की सीमा बढ़ने की संभावना नहीं है, लेकिन चर्चा है कि इसमें बचत को प्रोत्साहन के जरिये लोगों को राहत दी जा सकती है। निवेश को प्रोत्साहन को जेटली उद्योग के लिए कर राहत की घोषणा कर सकते हैं। इसी के तहत सरकार वाहन व टिकाउ उपभोक्ता उद्योग के लिए उत्पाद शुल्क रियायत की समयसीमा को पहले ही दिसंबर तक बढ़ा चुकी है।

इसके अलावा वित्त मंत्री सोने के आयात पर शुल्क घटाने का भी प्रस्ताव कर सकते हैं। पिछले साल बढ़त चालू खाते के घाटे पर अंकुश के लिए सरकार ने सोने पर आयात शुल्क बढ़ाया था।

इसके अलावा वित्त मंत्री मानसून की कमी के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को राहत प्रदान कर सकते हैं। भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में मूल्य स्थिरीकरण कोष का वादा किया है। बजट में इसकी घोषणा हो सकती है। जारी भाषा अजय वित्त मंत्री वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लिए रूपरेखा भी पेश कर सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) पर उनका रख क्या रहेगा। आर्थिक समीक्षा में इसका उल्लेख है।

घरेलू व विदेशी निवेशकों का भरोसा बहाल करने के लिए जेटली कारपोरेट विलय व अधिग्रहण के लिए पिछली तारीख से कर के प्रावधान को समाप्त कर सकते हैं। आज प्रस्तुत 2013-14 की आर्थिक समीक्षा में मुद्रास्फीति पर अंकुश रखने और राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने पर बल दिया गया है ताकि देश को उच्च आर्थिक वृद्धि की राह पर ले जाया जा सके।


फिर जानिए, किन पांच बड़े सुधारों पर है इकोनॉमी में अच्छे दिन लाने का दारोमदार


क्या होना चाहिए

  • जीएसटी लागू के लिए अंतिम तिथि निश्चित हो और जीएसटी को लागू करने का रोड़मैप।

बजट में संभावना

  • केंद्र सरकार सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को लागू करने की घोषणा कर  सकती है। जो जीएसटी की शुरुआत होगी।  

ये पड़ेगा असर

  • उत्पादन की लागत में कमी आएगी जिससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा।

  • देश को सरल और पारदर्शी टैक्स ढांचा मिल सकेगा।

2.सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी की बिक्री

क्या होना चाहिए

  • अगले तीन सालों में सभी सरकारी कंपनियों में सरकारी की हिस्सेदारी 75 फीसदी करने का रोडमैप।

  • पिछले साल के मुकाबले विनिवेश लक्ष्य 36 हजार करोड़ से बढ़ाया जाए। पिछले साल कुल विनिवेश लक्ष्य 54000 करोड़ का था।

बजट से संभावना

  • सेबी के प्रस्ताव के मद्देनजर सरकार बड़े विनिवेश लक्ष्य कर सकती है और तकरीबन 2 दर्जन कंपनियों में हिस्सा बिक्री की घोषणा कर सकती है।

ये पड़ेगा असर

  • शेयर बाजार में निवेशकों को बेशकीमती सरकारी कंपनियों में निवेश का मौका मिलेगा।

  • वित्तीय घाटा कंट्रोल करने में सरकार को मदद मिलेगी।

  • शेयर बाजार में बड़ी मात्रा में पूंजी आ सकेगी जिससे बाजार में बड़ी तेजी की उम्मीद बनती है।

3.विदेशी निवेश बढ़ाने के नए प्रस्ताव

क्या होना चाहिए

  • देश में बड़ी मात्रा में निवेश लाने के लिए विभिनन क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाना और नए क्षेत्र खोलना।

बजट में संभावना

  • डिफेंस सेक्टर में एफडीआई सीमा 49 फीसदी हो सकती है।

  • बीमा और बैंकिंग में विदेशी निवेश का उदारीकरण

  • रेलवे, इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल्टी, नगर विकास, तेल-गैस और पावर में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।

ये पड़ेगा असर

  • घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा

  • रुके हुए प्रोजेक्ट जल्द शुरू हो जाएंगे

  • इंपोर्ट कम हो जाएगा और ट्रेड बैलेंस बनेगा

  • नौकरियां बढ़ाने में मदद मिलेगी

4. सब्सिडी में कटौती

क्या होना चाहिए

  • एलपीजी और कैरोसिन सब्सिडी में कमी।

  • फर्टिलाइजर सब्सिडी को कम करने की कार्ययोजना

  • फूड सिक्योरिटी बिल पर संतुलित आवंटन

बजट में संभावना

  • फर्टीलाइजर सब्सिडी को कम करने की योजना लाई जा सकती है।

  • फ्यूल सब्सिडी कम करने के लक्ष्य तय किए जा सकते हैं।

ये होगा असर

  • सब्सिडी का बोझ कम होने से सरकार की वित्तीय सेहत में सुधार होगा।

  • वित्तीय घाटे में कमी आएगी।

5. टैक्स में बदलाव होना चाहिए

क्या होना चाहिए

  • 80 सी के तहत टैक्स छूट सीमा बढ़नी चाहिए

  • होम लोन, मेडिकल और बच्चों की पढ़ाई पर टैक्स छूट बढ़े

  • नया डायरेक्ट टैक्स कानून लागू करने का रोडमैप

बजट में संभावना

  • आयकर में छोटी रियायत संभव। बचत बढ़ाने को मिल सकता है प्रोत्साहन।

  • वेल्थ टैक्स की दर बढ़ सकती है।

क्या पड़ेगा असर

  • बड़ी संख्या में टैक्स देने वाले लोगों को राहत मिलेगी

  • खर्च को प्रोत्साहन मिलेगा।

http://money.bhaskar.com/article/MARK-STMF-five-top-reform-initiative-to-be-taken-by-modi-government-in-budget-4674791-NOR.html?google_editors_picks=true



Economic Survey: Inflation expected to moderate by end 2014


WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May due to higher prices of food items. (Reuters)WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May due to higher prices of food items. (Reuters)


As the new government battles stubbornly high food inflation, the pre-budget economic survey today predicted that the headline inflation would ease by year end, providing room to the RBI to cut interest rates.

"Headline WPI (wholesale price index) inflation is expected to moderate by the end of 2014. However, risks to the outlook stems from possible sub-normal monsoon and higher crude oil prices (on account of the crisis in Iraq)," the Economic Survey 2013-14 tabled in Parliament by Finance Minister Arun Jaitley said.

As inflation eases, it is expected that the RBI would adopt a more accommodative stance and bring down interest rate.

"The monetary management challenge will also be helped by fiscal consolidation and addressing of supply side constraints that exacerbate food inflation. All these factors, in tandem, are expected to create room for monetary easing later this fiscal year," it said.

However, WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May from 5.20 per cent in the previous month mainly driven by higher prices of food items.

Talking about the challenges, the Survey said, the Meteorological Department has predicted below-normal rainfall at 93 per cent of the long period average with 70 per cent probability of an El Nino occurring.

The odds of a drought are 60 per cent now, compared with 25 per cent in April, Skymet, a private forecaster said.

Besides, the other most prominent risk (to price rise) is the impact on oil prices on account of the crisis in Iraq.

Crude oil prices are hovering around USD 110 per barrel. Two-thirds of India's oil needs are met through imports. Iraq is the second-largest oil supplier after Saudi Arabia.

The survey said inflation showed signs of receding with average wholesale price index (WPI) inflation falling to a three-year low of 5.98 per cent during 2013-14 compared to 7 and 9 per cent over the previous two years.

Consumer price inflation, though higher than the WPI, has also exhibited signs of moderation with CPI (new-series) inflation declining from 10.21 per cent during 2013-14 to about 9.49 per cent in 2013-14, the survey said.

Food inflation, however, remained stubbornly high during 2013-14, reaching a peak of 11.95 per cent in third quarter.

Highlighting reasons, the survey said, high inflation, particularly food inflation, was the result of structural as well as seasonal factors.

Contribution of the commodity sub-groups, fruits and vegetables, as well as egg, meat and fish to the food inflation has been very high, it said.

However, inflation in Non Food Manufactured Product (WPI core) has remained benign throughout the year, with average inflation moderated to four year low of 2.9 per cent in 2013-14, which indicates that underlying pressures of broad-based inflation have somewhat eased, it said.

IMF has projected that most global commodity prices are expected to remain flat during 2014-15, which augurs well for inflation in emerging market, including India.

The survey noted that the course of gradual monetary easing that had started alongside some moderation of inflationary pressures at the beginning of the financial year 2013-14 was disrupted in May 2013, following indications of possible tapering of the US Fed's quantitative easing.

Following the ebbing of volatility in the foreign exchange market, it said, RBI initiated normalisation of the exceptional measures in a calibrated manner since its mid-quarter review (MQR) of September 20, 2013.

The interest rate corridor was realigned to normal monetary policy operations with the MSF rate being reduced in three steps to 8.75 per cent between September 20, 2013 and October 29, 2013, it said.

RBI in its Third Quarter Review of Monetary Policy on January 28, 2014, hiked the repo rate by 25 basis points to 8 per cent on account of upside risks to inflation, to anchor inflation expectations and to contain second round effects, it said.

The move was intended to set the economy securely on the disinflationary path, it added.









धर्म, राजनीति और पूंजी के बरमुडा त्रिभुज में कत्ल की इस रात की कोई सुबह नहीं!

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धर्म, राजनीति और पूंजी के बरमुडा त्रिभुज में कत्ल की इस रात की कोई सुबह नहीं!


पलाश विश्वास

7700 के पार निफ्टी, सेंसेक्स 440 अंक उछला

मोदी सरकार का पहला बजट बाजार को खुश कर गया है। सेंसेक्स-निफ्टी 1.75 फीसदी चढ़े हैं।


फिर वही विकास का कामसूत्र।फिर वही योगाभ्यास।फिर वही वैदिकी मंत्र।इस कूटिल सेक्सी तंत्र यंत्र मंत्र के कूट रहस्य का खुलासा रियल टाइम में असंभव है।खास बात यह है कि मलाईदार तबके की सेहत और जेबों का खास ख्याल रखा गया है और चादर से बाहर पैर न फैलाने के ऐलान के बावजूद नौकरीपेशा,कारोबारी लोगों को ढाई लाख तक की आय पर कोई इनकाम टैक्स न देना पड़े,इसका इंतजाम कर दिया गया है।अपढ़,अदक्ष जनगण के विकास के मंत्रोच्चार के लिए देशी विदेशी पूंजी प्रवाह को निर्बाध निरंकुश बनाने और छिनाल संस्कृति को छइया छइया करके कार्निवाल का माहौल जमजमाट कर दिया गया है।ब्राजील के हारने से दुःखी और अर्जेंटीना के लिए प्रार्थनारत क्रयशक्ति संपन्न जनगण और कारपोरेट मीडिया के लिए यह बजट नमोमय भारत का भूदान यज्ञ है।


इस भूदान यज्ञ के तहत बजट में सौ स्मार्ट नगरों के लिए 7060 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया है जो शैतानी औद्योगिक गलियारों और हीरक बुलेटी चतुर्भुज के मुताबिक है।यानी देहात के सर्वनाश को सर्वोच्च प्रथमिकता दी गयी है और कृषिजीवी भारत के मृत्यु परवाने पर दस्तखत है यह केसरिया कारपोरेटबजट।


गौरतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संकल्प व्यक्त करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने आज अपने पहले बजट में विदेशी निवेश को सरल बनाने की अनेक घोषणाएं की और कालेधन को वापस लाने के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई।


विनिवेश का रोडमैप चूंकि पहले से तैयार है और उस पर तेजी से अमल भी हो रहा है,इस सिलसिले में खास खुलासा नहीं हुआ,जिससे प्रतिकूल असर होता और इस सिलसिले में वित्तमंत्री ने तथ्यों और सूचनाओं को सार्वजनिक करने से परहेज किया है।

लेकिन पीपीपी गुजरात माडल को महिमामंडित करते हुए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के राष्ट्रवाद का आवाहन पूरी वैदिकी रस्मअदायगी के साथ हो गया है। जैसा कि आर्थिक समीक्षा में संकेत दिया गया था।

इस रामवाण के बाद राजनीतिक बाध्यताओं की आंच से जले छाछ भी फूंककर पीने वाले बाजार में जान आ गयी है और बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर देखने को मिल रहा है। वित्त मंत्री के बजट भाषण के बाद लाल निशान में आए बाजार अब बढ़त के साथ आगे बढ़ रहे हैं। सेंसेक्स और निफ्टी हरे निशान में आ गए हैं। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी खरीदारी लौटी है। रियल्टी, मेटल और पावर शेयरों में सबसे ज्यादा खरीदारी नजर आ रही है।

फिलहाल बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 180 अंक यानि 0.7 फीसदी की मजबूती के साथ 25,625 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। वहीं एनएसई का 50 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स निफ्टी 51 अंक यानि 0.7 फीसदी की बढ़त के साथ 7,636 के स्तर पर कारोबार कर रहा है।



बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री तनिक अस्वस्थ भी हो गये।जिसकी वजह से उन्‍हें पांच मिनट का ब्रेक लेना पड़ा। बाद में ब्रेक से लौटने पर उन्‍होंने बाकी का बजट भाषण बैठकर पढ़ने का फैसला किया। हालांकि, बजट स्‍पीच के आखिर में उनकी तबीयत सुधरने के बाद उन्‍होंने दोबारा से खड़े होकर अपना भाषण पूरा किया। जानकार मानते हैं कि संभवत: ऐसा पहली बार हुआ है, जब‍ किसी वित्‍त मंत्रीने बजट स्‍पीच के दौरान ब्रेक लिया हो।  मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जेटली डायबिटिक हैं और उनकी एक बार बायपास सर्जरी भी हो चुकी है। खबरों के मुताबिक, गुरुवार को भाषण पढ़ते वक्‍त जब उन्‍हें सांस लेने में दिक्‍कत होने लगी तो उन्‍होंने दो गिलास पानी पीया। करीब बैठीं विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने उन्‍हें सदन से माफी मांगकर कुछ मिनट का ब्रेक लेने की सलाह दी, लेकिन शुरू में जेटली इसके लिए तैयार नहीं हुए। हालांकि, बाद में वह इसके लिए राजी हो गए।


हम शुरुआती रुझान पर ही आज चर्चा करेंगे और बाकी सूचनाएं जैसे जैसे आयेंगी,उसका कूट तिलिस्म का पासवर्ड निकालने की कोशिश करते रहेंगे।


फिर वही बरमुडा त्रिभुज धर्म,राजनीति और पूंजी का।आज अंग्रेजी और भाषाई अखबारों के मुखपन्नों और संपादकीय में देश को कड़वी दवाई के लिये तैयार रहने की नसीहत देते हुए धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री के पक्ष में फिर जनादेश सुनामी की रचना तो की ही गयी है,इसके साथ ही कारपोरेट लाबिइंग के रास्ते मीडिया  ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।


वाशिंगटन से सैम अंकल ने खबरदार भी किया कि नई सरकार लोक लुभावन तौर तरीकों को तिलांजलि दें तो अमेरिकी कंपनियां भारतीय मुक्त बाजार में अरबों अरबों डालर का निवेश कर सकते हैं।अमेरिकी और वैश्विक निवेशकों की आस्था और कारपोरेटइंडिया के एकमुश्त समर्थन की नींव पर बजट रचना की गयी है।


गौरतलब है कि इससे पहले बजट कू पूर्व संध्या पर इकनॉमिक सर्वे ने अधिकारों से लैस एक नया फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐंड बजट मैनेजमेंट ऐक्ट बनाने, राज्य सरकारों के हस्तक्षेप से मुक्त नैशनल फूड मार्केट बनाने, राशन कार्ड्स के बजाय फूड स्टैंप्स या कैश ट्रांसफर सिस्टम अपनाने और बेहतर डिलीवरी तथा जवाबदेही तय करने के लिए सोशल सेक्टर की स्कीम्स में बदलाव की वकालत की है। आशावादी लोग इसे एक अच्छा रिफॉर्म प्रोग्राम बताएंगे, लेकिन हवाई बातों से परहेज करने वाले लोग साफ और ठोस कदमों की जानकारी मिलने पर ही संतुष्ट होंगे।


बजट प्राविधि,संसदीय प्रक्रिया और अर्थशास्त्र की धज्जियां उधेडने का यह अभूतपूर्व करिश्मा सहलाने और रतिसुख प्राप्त करने की कामकला सिद्धांत के तहत हुआ है।बजट निर्माण प्रक्रिया के सामान्यत: पांच चरण हैं। प्रथम चरण में बजट की रूपरेखा बनाई जाती है। दूसरे में इसका दस्तावेज तैयार किया जाता है। तीसरे चरण में इसे संसद में स्वीकृति के लिए लाया जाता है। चौथे चरण में बजट का क्रियान्वयन तथा पांचवें चरण में वित्त कोषों का लेखांकन तथा परीक्षण होता है।बजट केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों का आईना है। इसके जरिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार का एक कोर ग्रुप आर्थिक नीतियां तय करता है। इस कोर ग्रुप में प्रधानमंत्री के अलावा वित्त मंत्री, वित्त मंत्रालय के अधिकारी और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते हैं। वित्त मंत्रालय की ओर से प्रशासनिक स्तर पर जो अधिकारी होते हैं, उनमें वित्त सचिव के अलावा राजस्व सचिव और व्यय सचिव शामिल होते हैं। यह कोर ग्रुप वित्त मंत्रालय के सलाहकारों के नियमित संपर्क में रहता है। सरकारें अपने हिसाब से इस कोर ग्रुप का ढांचा बदलती भी रहती हैं।


धर्मयोद्धा नमोमहाराज और एकमुश्त वित्त प्रतिरक्षा मंत्री ही बजट प्रक्रिया में मुख्यभूमिका निबाहते रहे ,जाहिर है।इस प्रक्रिया में पहली बार योजना आयोग का उल्लेखनीयभूमिका नहीं है क्योंकि मोंटेक के इस्तीफे के बाद नये उपाध्यक्ष की नियुकति नहीं हुई और न ही नई सरकार के आर्थिक विशेषज्ञों और सलाहकारों का कोई देशी नेटवर्क बना है।गौरतलब है कि  बजट की रूपरेखा बनाने में योजना आयोग, नियंत्रक महालेखा परीक्षक व प्रशासनिक मंत्रालयों की मदद ली जाती है। प्रत्येक मंत्रालय अपनी आवश्यकताओं की जानकारी वित्त मंत्रालय को देता है। योजना आयोग सरकारी योजनाओं की प्राथमिकताओं से वित्त मंत्री को अवगत कराता है और नियंत्रक लेखा परीक्षक लेखा-जोखा उपलब्ध कराता है।


यह बजट अपने आप में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है जो वैश्विक निर्देशन और संघ परिवार मुख्यालय के निर्देशन में तैयार हुआ।


यह बूंबाट डर्टी पिक्चर सिर्फ विकास और एंटरटेनमेंट के लिए है,जहां जनकल्याणकारी राज्य और गणतंत्र की सड़ती लाशों की बदबू विदेशी तेल और गंध से छुपायी गयी है।


और इस धर्म, राजनीति और पूंजी के बरमुडा त्रिभुज में कत्ल की इस रात की कोई सुबह नहीं।


केसरिया जायनवादी धर्मोन्मादी कारपोरेट सरकार और शाही बजरंगियों के पहले बजट में आयकर में छूट के मार्फत मलाईदार तबके को मलहम और सुधार एजंडे का निरमम वास्तव।


खास बात तो यह है,जो केसरिया संहारक बजट की थीमसांग है, विनिवेश ,प्रत्यक्ष निवेश और निजीकरण के जरिये भारत के उनतीस राज्यों को केंद्रीकृत बाजार में तब्दील करने के कार्यभार के संकल्प के साथ लोकसभा चुनावों में पराजित लेकिन नमो सरकार में अमित शाह की शाही सवारी के मुकाबले सबसे अहम कारपोरेट वकील अरुण जेटली,जो वित्तमंत्री के साथ साथ रक्षा मंत्री भी हैं,यानी वैश्विक व्यवस्था के हित साधने का कम्प्लीट पैकेज, न बजट पेश करते हुए पूंजी की तमाम भव बाधाएं दूर करने और निनानब्वे फीसद जनता की गंगाप्राप्ति का भव्य आयोजन कर सुधारों के मार्फत कर दिया है,जैसा कि मध्ययुग से जारी ग्लोबीकरण के अर्थशास्त्र की चर्चा करते हुए हम बार बार लिखते बोलते रहे हैं।


आयकर राहत का हिसाब करते हुए हमारे पढ़ लिखे तबके को यह बात शायद समझ में नहीं आयेगी और आयेगी भी तो उनकी गैंडाई त्वचा में दावानल की आंच महसूस नहीं की जायेगी कि प्रतिरक्षा (इसके साथ आंतरिक सुरक्षा और खुदरा बाजार से लेकर आधारभूत आर्थिक उत्पादन संरचना समवेत भी नत्थी है),और बीमा(इसके साथ बैंकिग और तमाम वित्तीय क्षेत्र,सेवा क्षेत्र) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की हदबंदी तोड़ने की धर्मोन्मादी घोषणा की है।पूरे देश को एकीकृत करने के हिंदुत्व जायनवादी अभियान के नरमेध राजसूय के जरिये कर प्रणाली और वित्तीय सुधार का अंगीकार भी है।


मोदी सरकार के पहले बजट के बाद जूते-चप्पल, छोटे फ्लैट टीवी, स्पोर्ट्स का सामान, साबुन, कंप्यूटर, ब्रांडेड कपड़े, पैकेज्ड फूड और सोलर प्रोडक्ट्स सस्ते हुए हैं।


हालांकि, सरकार ने तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाया है। सिगरेट, तंबाकू, पान मसाला महंगे होंगे। साथ ही कोल्ड ड्रिंक, इंपोर्टेड मोबाइल, रेडियो टैक्सी सेवा महंगे हो गए हैं।

इंडस्ट्री देखना चाहती थी कि बजट में सरकार अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए क्या कदम उठाती है।


एचसीसीकेचेयरमैन, अजीत गुलाबचंदका कहना है कि ये मोदी सरकार का पहला बजट है। इंडस्ट्री की नजर इस पर होगी कि बजट में आर्थिक सुधार के क्या कदम उठाए जाते हैं और देश की तरक्की के रास्ते पर ले जाने के लिए क्या दिशा होगी। इंडस्ट्री को बजट से सिर्फ दिशा की उम्मीद है। सरकार के पास बजट बनाने के लिए वक्त कम था। सरकार नई है, इसलिए विशिष्ट ऐलानों की उम्मीद नहीं है।


फीडबैक इंफ्राकेचेयरमैन, विनायक चटर्जीके मुताबिक बजट में विशिष्ट रोडमैप का उम्मीद नहीं करनी चाहिए। हालांकि, ये देखना जरूरी होगा कि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश बढ़ाए जाने के लिए सरकार की क्या योजना है।


सीआईआईकेडायरेक्टर जनरल, चंद्रजीत बनर्जीका कहना है कि बजट में सरकार की नीतियों में रिफॉर्म के ऐलान की उम्मीद है। लेकिन, अहम है ऐलानों को लागू कैसे किया जाएगा इस पर नजर होगी। वित्तीय अनुशासन की दिशा वाले बजट की उम्मीद है।


प्रभुदास लीलाधरकेज्वाइंट एमडी, दिलीप भट्टका कहना है कि बाजार सिर्फ ये जानना नहीं चाहता है कि सरकार की क्या योजना है। बाजार की नजर ठोस आंकड़ों पर होगी। इकोनॉमी में रिवाइवल, ग्रोथ को बढ़ावा, महंगाई को बढ़ाए बिना निवेश कैसे बढ़ेगा, ये बाजार देखेगा। बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। लेकिन, सभी निवेशक गिरावट पर खरीदारी का मौका तलाश रहे हैं। अगर एसटीटी कम किया जाता है तो बाजार की ओर रिटेल निवेशकों का रुझान बढ़ेगा।


एडेलवाइज फाइनेंशियल सर्विसेजकेसीईओ (होलसेल कैपिटल मार्केट्स), विकास खेमानीके मुताबिक नई सरकार बने हुए अभी कुछ ही वक्त हुआ है, इसलिए बजट से ज्यादा उम्मीद नहीं है। लेकिन जीएसटी, रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स, पीपीपी, डीटीसी को लेकर ऐलानों या सफाई आने की उम्मीद है। बाजार में बजट के बड़ी गिरावट आने की आशंका कम है। निवेशकों के लिए गिरावट पर खरीदारी का मौका होगा। बजट में जीएसटी का रोडमैप साफ होने से बैंकिंग और कैपिटल गुड्स सेक्टर का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिल सकता है।


मोतीलाल ओसवालके चेयरमैन, मोतीलाल ओसवालका कहना है कि मोदी सरकार का पहला बजट लोगों की उम्मीदों पर जरूर खरा उतरेगा। वहीं अगर सरकार ने पॉलिसी को सही तरीके से लागू कर लिया तो फिर 1 लाख करोड़ रुपये तक का विनिवेश लक्ष्य हासिल हो सकता है। रिटेल निवेशकों को वापस बाजार में लाने के लिए सरकार को पीएसयू कंपनियों के विनिवेश में इन्हें ज्यादा छूट देनी चाहिए।


मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंटके मनीष सोंथालियाका कहना है कि अगर बजट उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा तो बाजार में 5 फीसदी की गिरावट संभव है। उम्मीद के मुताबिक बजट नहीं रहने पर निफ्टी 7200 तक गिरने की आशंका है। लेकिन उम्मीद के मुताबिक बजट रहने पर निफ्टी 8000 तक जाने की उम्मीद है।



आइए जानते हैं कि बजट में वित्त मंत्री ने अब तक क्या घोषणाएं की हैं -


वित्त मंत्री: वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत

वित्त मंत्री: महंगाई कम करने पर पूरा जोर

वित्त मंत्री: 7-8 फीसदी की जीडीपी दर हासिल करने की उम्मीद

वित्त मंत्री: इकोनॉमी सुधार के लिए कदम उठाएंगे

वित्त मंत्री: इस बजट में ग्रोथ के लिए प्रतिबद्ध

वित्त मंत्री: कड़े फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगी सरकार

वित्त मंत्री: 4.1% वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करेंगे

वित्त मंत्री: वित्त वर्ष 2016 में 3.6% वित्तीय घाटे का लक्ष्य

वित्त मंत्री: वित्त वर्ष 2017 के लिए 3% वित्तीय घाटे का लक्ष्य

वित्त मंत्री: नई यूरिया पॉलिसी बनाई जाएगी

वित्त मंत्री: फूड और ऑयल सब्सिडी सिर्फ जरूरतमंदो के लिए

वित्त मंत्री: इसी साल जीएसटी का अंतिम फॉर्मूला

वित्त मंत्री: पुरानी तारीख से टैक्स वसूलने का इरादा नहीं

वित्त मंत्री: कड़े कदम उठाने के अलावा विकल्प नहीं

वित्त मंत्री: उच्च स्तरीय कमेटी सभी रेट्रोस्पेक्टिव मामलों की जांच करेगी

वित्त मंत्री: डिफेंस में एफडीआई सीमा बढ़ाकर 49%

वित्त मंत्री: इंश्योरेंस में एफडीआई सीमा बढ़ाकर 49%

वित्त मंत्री: मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इंश्योरेस में 49% एफडीआई

वित्त मंत्री: सस्ते घरों के नियमों में बदलाव किया जाएगा

वित्त मंत्री: सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी बेचेंगे

वित्त मंत्री: 100 स्मार्ट शहरों के लिए 7060 करोड़ रु आवंटित

वित्त मंत्री: देश में रोजगार के मौके बढ़ाने की जरूरत

वित्त मंत्री: इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में सुधार की जरूरत

वित्त मंत्री: 9 एयरपोर्ट पर ई-वीजा लागू करेंगे

वित्त मंत्री: स्किल इंडिया, ग्राम ज्योति योजना शुरू होंगी

वित्त मंत्री: प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के लिए 1000 करोड़ रु

वित्त मंत्री: नए ग्रामीण ऊर्जा योजना को 500 करोड़ रु

वित्त मंत्री: आरईआईटी को टैक्स-पास-थ्रू स्टेटस

वित्त मंत्री: मनरेगा के बजट में बदलाव नहीं

वित्त मंत्री: प्रधानमंत्री सड़क योजना के लिए 14389 करोड़ रु

वित्त मंत्री: ग्रामीण आवास योजना के लिए 8000 करोड़ रु

वित्त मंत्री: रूरल आंत्रप्रनर के लिए 1000 करोड़ रु

वित्त मंत्री: 4 नए एम्स बनाने पर विचार जारी

वित्त मंत्री: नए एम्स के लिए 500 करोड़ रु आवंटित

वित्त मंत्री: 5 नए आईआईटी, आईआईएम बनाए जाएंगे

वित्त मंत्री: ग्रामीण पानी आपूर्ति के लिए 3600 करोड़ रु

वित्त मंत्री: 12 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज

वित्त मंत्री: 600 नए कम्यूनिटी रेडियो शुरू होंगे

वित्त मंत्री: नए आईआईटी, आईआईएम के लिए 500 करोड़ रु



वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने संसदमें मोदी सरकार का पहला आम बजट पेश किया। उन्‍होंने इनकम टैक्‍स छूट की सीमा मौजूदा दो लाख रुपए से बढ़ा कर ढाई लाख करने की घोषणा की। वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए तीन लाख रुपए (मौजूदा से 50 हजार रुपए ज्‍यादा) तक की आय टैक्‍स से मुक्‍त रखी गई है। होम लोन पर अब दो लाख रुपए तक के ब्‍याज पर टैक्‍स छूट मिलेगी। पहले यह सीमा डेढ़ लाख रुपए थी। सेक्‍शन 80 सी के तहत टैक्‍स में छूट पाने के लिए निवेश की सीमा भी एक लाख रुपए से बढ़ा कर डेढ़ लाख कर दी गई है। वित्‍त मंत्री ने टैक्‍स रेट में कोई बदलाव नहीं किया है, बस स्‍लैब बदला है। पीपीएफ स्‍कीम में अब लोग साल में एक लाख के बजाय अधिकतम डेढ़ लाख रुपए निवेश कर सकेंगे। नए टैक्‍स प्रावधानों से 6 लाख रुपए सालाना आय वालों के 5150 रुपए की बचत होगी।


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज अपना पहला बजट पेश कर दिया। बजट पेश करते हुए जेटली ने कहा कि हमारी सरकार को सिर्फ 45 दिन हुए हैं ऐसे में बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद न करें। आम बजट में विदेशी निवेश को सरल बनाने और 100 नए स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान किया गया है। हालांकि बजट पेश होते ही संसेक्स में गिरावट देखी गई।



वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार के पहले बजट को आज लोकसभा में पेश करते हुए कहा कि भारत को विकास के पथ पर ले जाना होगा। उन्होंने कहा पूर्ववर्ती सरकार द्वारा निर्णय लेने की धीमी गति से संभावनाएं कम होती गई और पिछले दो वित्त वर्ष में विकास दर पांच प्रतिशत से नीचे बनी रही।

उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिल रहे हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था को 7 से 8 प्रतिशत के विकास पथ पर लाने के बजट में उपाय किए गए हैं। वर्तमान आर्थिक स्थिति चुनौतीपूर्ण है। इसके मद्देनजर वित्तीय अनुशासन और वित्तीय सुदृढ़ीकरण अपनाने की जरूरत है।



महंगाई पर काबू पाना मुश्किल

जेटली ने कहा कि यह एनडीए का पहला बजट है और महंगाई पर काबू पाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा देश में गरीबों के लिए काफी काम करना है। साथ ही उन्होंने कहा कि विकास दर को दो अंकों में लाना सरकार का लक्ष्य है। जेटली ने कहा कि दुनिया में वित्तीय गिरावट का असर भारत पर भी पड़ा है। उन्होंने कहा कि विकास के लिए बड़ा फंड जरूरी है।


बीमा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई

जेटली ने बीमा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव दिया साथ ही कहा कि सरकार एफडीआई को प्रोत्साहित करेगी। जेटली ने कहा कि सरकार रक्षा क्षेत्र में 26 फीसदी एफडीआई को मंजूरी देगी। टैक्स से जुड़े झगड़े सीबीडीटी कमेटी के जरिए निपटाए जाएंगे। जीएसटी लाने पर भी विचार हो रहा है। बैंकों को जवाबदेह और स्वायत्त बनाया जाएगा।


100 नए स्मार्ट सिटी का प्लान

जेटली ने कहा कि 100 नए स्मार्ट सिटी बनाने का प्लान है जबकि 100 शहरों का आधुनिकीकरण भी किया जाएगा। स्मार्ट शहरों के लिए 7060 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है। पर्यटन बढ़ाने के लिए ई वीजा की जरूरत है। देश के नो हवाई अड्डों पर ई वीजा की सुविधा दी जाएगी।


नई यूरिया नीति लाएंगे

सरकार पेट्रोलियम पर सब्सिडी की समीक्षा करेगी साथ ही नई यूरिया नीति लाएगी। काले धन पर जेटली ने कहा कि ये अर्थव्यवस्था के लिए अभिशाप है। काला धन वापस लाना होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि तीन साल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चुनौती होगा। विकास के लिए बड़े फंड की जरूरत होगी। हमारा लक्ष्य विकास दर को दो अंकों में लाना है।


बाजार में तेजी

नरेंद्र मोदी सरकार का पहले बजट पेश होते ही शुरुआती तेजी के बाद बजट की घोषणाओं से निराश निवेशकों की बिकवाली से बाजार ने गोता लगाना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे जैसे बजट अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ने लगा सेंसेक्स ने भी रफ्तार पकड़ ली। बजट खत्म होने पर सेंसेक्स करीब 300 अंक ऊपर चढ़ गया।


वित्‍त मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीके 'ड्रीम प्रोजेक्‍ट' (सरदार पटेल की विश्‍व की सबसे ऊंची मूर्ति बनाना) के लिए दो सौ करोड़ रुपए देने का प्रस्‍ताव किया है, लेकिन मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए सौ करोड़ रुपए का ही प्रावधान रखा है। उन्‍होंने सरकार का खर्च घटाने के लिए आयोग बनाने का प्रस्‍ताव भी किया है। बजट में घोषित अहम बातेंये हैं-

  • गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा 'स्‍टैट्यू ऑफ यूनिटी' बनाने के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान

  • नौ एयरपोर्ट्स पर ई-वीजा दिए जाने की सुविधा

  • कौशल विकास के लिए 'स्किल इंडिया' नाम से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर योजना चलाई जाएगी।

  • सौ स्‍मार्ट सिटीज बनाने के लिए 7060 करोड़ रुपए का प्रावधान।

  • साफ-सफाई को बढ़ावा देने के लिए स्‍वच्‍छ भारत अभियान चलाया जाएगा।

  • रक्षा क्षेत्र में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 49 फीसदी कर दी गई है।

  • गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए दीन दयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना शुरू की जाएगी।

  • बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ योजना के लिए सौ करोड़

  • दिल्‍ली में क्राइसिस मैनेजमेंट सेंटर खोलने का प्रावधान, इसके लिए पैसा 'निर्भया फंड' से दिया जाएगा।

  • प्रधानमंत्री सड़क योजना के लिए 14389 करोड़ रुपए

  • 500  करोड़ रुपए खर्च कर आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, विदर्भ और पूर्वांचल में एम्‍स खोले जाएंगे। जम्‍मू, छत्‍तीसगढ़, गोवा, आंध्र प्रदेश और केरल में आईआईटी खोले जाने का भी एलान।

  • मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए सौ करोड़ का प्रावधान

  • अहमदाबाद और लखनऊ में पीपीपी मॉडल के जरिए मेट्रो रेल शुरू की जाएगी। इसके लिए सौ करोड़ रुपए रखे गए हैं।

  • चालू वर्ष में ही किसानों को समर्पित टीवी चैनल 'किसान टेलीविजन' लॉन्‍च किया जाएगा।

  • नाबार्ड के जरिए पांच लाख किसानों को कर्ज दिया जाएगा।

  • 'सॉयल हेल्‍थ कार्ड' मुहैया कराने की स्‍कीम शुरू  की जाएगी। इसके लिए सौ करोड़ रुपए रखे गए हैं। 56 करोड़ रुपए की लागत से देश भर में मिट्टी जांचने के लिए प्रयोगशालाएं बनवाई जाएंगी।

बजटपेश करने से पहले वित्‍त मंत्री ने पार्लियामेंट हाउस के कमरा नंबर 9 में कैबिनेट की बैठक में हिस्‍सा लिया। जेटली ने कैबिनेट को बजट का सार बताया। इसके बाद कैबिनेट ने बजट को मंजूरी दे दी।

01:19 PM

प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों पर सर्विस टैक्स नहीं

01:16 PM

सिगरेट पर एक्साइज ड्यूटी 11-72% बढ़ाई

01:16 PM

गुटखा पर एक्साइड ड्यूटी बढ़ाकर 70%

01:16 PM

सर्विस टैक्स का दायरा बढ़ेगा

01:15 PM

मोबाइल, इंटरनेट के विज्ञापनों पर सर्विस टैक्स

01:11 PM

पैकेजिंग मशीनरी पर एक्साइज ड्यूटी घटाकर 6 फीसदी की गई

01:07 PM

तंबाकू पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ी

01:06 PM

फुटवेयर पर एक्साइज ड्यूटी घटेगी

01:05 PM

सोलर पावर इक्विपमेंट पर कस्टम ड्यूटी में छूट से मोजर-बेयर को फायदा

01:05 PM

चुनिंदा सोलर पावर इक्विपमेंट पर कस्टम ड्यूटी में छूट

01:05 PM

सभी तरह के इंपोर्टेड कोल पर 2.5% कस्टम ड्यूटी

01:03 PM

विंड पावर इक्विपमेंट पर कस्टम ड्यूटी घटाकर 6%

01:03 PM

फ्लैट स्टील प्रोडक्ट्स पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर 7.5%

01:01 PM

होम लोन पर ब्याज छूट सीमा बढ़ने से दीवान हाउसिंग, एचडीएफसी जैसी कंपनियों को फायदा

01:00 PM

डायरेक्ट टैक्स कोड की समीक्षा होगी

01:00 PM

19 इंच से छोटे एलसीडी, एलईडी टीवी पर कस्टम ड्यूटी खत्म

12:59 PM

कलर पिक्चर ट्यूब पर बेसिक कस्टम ड्यूटी खत्म

12:59 PM

इथेन, प्रोटेन पर कस्टम ड्यूटी घटाकर 2%

12:59 PM

स्पैंडेक्स यार्न पर कस्टम ड्यूटी खत्म

12:59 PM

आरबीडी, पामोलिन पर कस्टम ड्यूटी खत्म

12:54 PM

वित्त वर्ष 2015 में 17.94 लाख करोड़ रु का कुल सरकारी खर्च

12:53 PM

पावर जेनरेशन कंपनियों को 31 मार्च 2017 तक टैक्स छूट

12:52 PM

पावर जेनरेशन कंपनियों के लिए टैक्स छूट बढ़ाई गई

12:51 PM

डायरेक्ट टैक्स पर लगने वाले सरचार्ज में बदलाव नहीं

12:50 PM

25 करोड़ रु से ज्यादा निवेश करने वाली मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को टैक्स छूट

12:47 PM

होम लोन पर ब्याज छूट सीमा बढ़ाकर 2 लाख रु

12:46 PM

80सी के तहत निवेश सीमा बढ़ाकर 1.5 लाख रु

12:46 PM

सीनियर सिटीजन के लिए आयकर छूट सीमा 3 लाख रु

12:45 PM

आयकर छूट सीमा बढ़ाकर 2.5 लाख रु की गई

12:44 PM

वित्त वर्ष 2015 में योजनागत खर्च 5.7 लाख करोड़ रु

01:20 PM

प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों पर सर्विस टैक्स नहीं लगने से जागरण प्रकाशन, डीबी कॉर्प को फायदा

01:17 PM

सिगरेट पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ने से आईटीसी, गॉडफ्रे फिलिप्स और गोल्डन टोबैको को नुकसान

01:10 PM

सभी तरह के इंपोर्टेड कोल पर 2.5% कस्टम ड्यूटी से कोल इंडिया को फायदा

01:07 PM

तंबाकू पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ने से आईटीसी को नुकसान

01:06 PM

फुटवेयर पर एक्साइज ड्यूटी घटने से मिर्जा इंटरनेशनल, लिबर्टी शूज को फायदा

01:05 PM

सभी तरह के इंपोर्टेड कोल पर 2.5% कस्टम ड्यूटी से बिजली और खाद कंपनियों को नुकसान

01:03 PM

विंड पावर इक्विपमेंट पर कस्टम ड्यूटी घटने से सुजलॉन एनर्जी को फायदा होगा

http://hindi.moneycontrol.com/budget2014/


आर्थिक सर्वे के मुख्य बिंदु

नई दिल्ली।संसद में आज प्रस्तुत आर्थिक सर्वे के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं: - पिछले दो सालों के दौरान पांच फीसदी से नीचे रही विकास दर को पीछे छोड़ते हुए 2014-15 में आर्थिक विकास दर 5.4-5.9 फीसदी रह सकती है।

- बैलेंस ऑफ पेमेंट की स्थिति 2013-14 में, और खास कर पिछली तीन तिमाहियों में काफी सुधरी। निकट भविष्य में इसे बरकरार रख पाना एक चुनौती होगी।

- 2001-2012 के बीच देश के सेवा क्षेत्र की चक्रवृद्धि सालाना विकास दर चीन के बाद सर्वाधिक नौ फीसदी रही। इस दौरान चीन की दर 10.9 फीसदी थी।

- जीडीपी के मामले में दुनिया के शीर्ष 15 देशों में सेवा क्षेत्र के जीडीपी के मामले में 2012 में भारत का स्थान 12वां। इसी दौरान वैश्विक जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 65.9 फीसदी और रोजगार में सेवा क्षेत्र का योगदान सिर्फ 44 फीसदी रहा, जबकि भारत के मामले में यह क्रमश: 56.9 फीसदी और 28.1 फीसदी रहा।

- 2013-14 में फैक्टर लागत (मौजूदा मूल्य) पर जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान 57 फीसदी रहा, जो 2000-01 के मुकाबले छह फीसदी अधिक है।

- 2013-14 में सेवा क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह 37.6 फीसदी गिरावट के साथ 6.4 अरब डॉलर रहा, जबकि एफडीआई में समग्र तौर पर 6.1 फीसदी वृद्धि रही।

- निर्यात: विश्व सेवा निर्यात में भारत का योगदान 1990 के 0.6 फीसदी से बढ़कर 2013 में 3.3 फीसदी हो गया और यह योगदान वस्तु निर्यात के मुकाबले अधिक है। देश के कुल सेवा निर्यात में 46 फीसदी योगदान करने वाले सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात की वृद्धि दर 2013-14 में घटकर 5.4 फीसदी रह गई। करीब 12 फीसदी योगदान करने वाले यात्रा सेक्टर में 0.4 फीसदी गिरावट रही।

- पीएफआरडीए अधिनियम, कमोडिटी वायदा कारोबार को वित्त मंत्रालय के तहत लाना और एफएसएलआरसी रिपोर्ट पेश किया जाना 2013-14 में मील के तीन पत्थर रहे।

- एफएसएलआरसी ने अपनी रिपोर्ट में व्यापक स्तर पर सुझाव दिए हैं। ये मुख्य रूप से शासन व्यवस्था में सुधार के सिद्धांतों की प्रकृति से संबंधित हैं।

- बैंकों की सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में वृद्धि। समग्र तौर पर बैंकिंग सेक्टर का एनपीए मार्च 2011 के कुल ऋण के 2.36 फीसदी से बढ़कर दिसंबर 2013 में 4.40 फीसदी हो गया।

- आरबीआई ने अधोसंरचना, लौह और इस्पात, कपड़ा, उड्डयन और खनन क्षेत्र की पहचान संकटग्रस्त क्षेत्र के रूप में की है।

- नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस), जिसे अब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली कहा जा रहा है, के साथ देश की पेंशन प्रणाली का व्यापक सुधार हुआ है। यह देश में वृद्धावस्था के टिकाऊ समाधान की बुनियाद प्रस्तुत करता है।

- सात मई 2014 तक एनपीएस के तहत 67.11 लाख सदस्य थे और उनकी कुल संपत्ति 51,147 करोड़ रुपये थी।

- असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए 2010 में शुरू की गई स्वावलंबन योजना को 2010-11, 2011-12 और 2012-13 में दाखिला लेने वाले लाभार्थियों के लिए विस्तारित किया गया। सह-योगदान का लाभ 2016-17 तक उपलब्ध होगा।

- दीर्घावधि विदेशी कर्ज दिसंबर 2013 के अंत में कुल विदेशी कर्ज का 78.2 फीसदी था, जो मार्च 2013 के अंत में 76.1 फीसदी। दीर्घावधि कर्ज दिसंबर 2013 के अंत में मार्च 2013 के अंत के मुकाबले 25.1 अरब डॉलर

(8.1 फीसदी) बढ़ा, जबकि लघु-अवधि कर्ज चार अरब डॉलर (4.1 फीसदी) घटा, जिससे आयात घटने का पता चलता है।

- 20113-14 में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर घटकर तीन साल के निचले स्तर 5.98 फीसदी पर आ गई।

- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर में भी गिरावट का रुझान।

- थोक और उपभोक्ता दोनों प्रकार की महंगाई दर में गिरावट की उम्मीद।

- वित्तीय घाटा कम किया जाना देश के लिए जरूरी बना रहा।

- वित्तीय घाटा कम किए जाने के लिए सिर्फ खर्च-जीडीपी अनुपात घटाने की जगह अधिक कर-जीडीपी अनुपात का सुझाव।

- आक्रामक नीतिगत पहल ने 2013-14 में सरकार को वित्तीय घाटा कम करने में मदद की।

- 2013-14 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 4.5 फीसदी।

- केंद्र और राज्य सरकारों की कुल देनदारी जीडीपी के अनुपात में कम हुई।

- वर्ष 2013-14 में देश के बकाया-भुगतान की स्थिति काफी सुधरी है। चालू खाता घाटा 32.4 अरब डॉलर (जीडीपी का 1.7 फीसदी) रहा, जो 2012-13 में 88.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 4.7 फीसदी) था।

- रुपये की वार्षिक औसत विनिमय दर 2013-14 में प्रति डॉलर 60.50 रुपये रही, जो 2012-13 में 54.41 रुपये थी और जो 2011-12 में 47.92 रुपये थी।

-2012-13 में उद्योग का विस्तार सिर्फ एक फीसदी हुआ और 2013-14 में यह दर और कम 0.4 फीसदी हो गई।

- देश का विदेशी पूंजी भंडार मार्च 2014 के आखिर में बढ़कर 304.2 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च 2013 के आखिर में 292 अरब डॉलर था।




नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली मोदी सरकार का पहला बजट पेश कर रहे हैं। जेटली ने बजट पेश करते हुए कहा कि देश में महंगाई को कम करना सबसे बड़ी चुनौती है। पढ़ें-जेटली के आम बजट की मुख्य बिंदु।

-रेडिमेड कपड़े, श्रृंगार का सामान महंगा

-मोबाइल फोन सस्ता

-तंबाकू, पान मसाला, सिगरेट महंगा

-तेल, टीवी और साबुन हुआ सस्ता

-इनकम टैक्स छूट सीमा 2 से बढ़कर 2.5 लाख रुपये

-दिल्ली में बिजली सुधार के लिए 200 करोड़ रुपये

-दिल्ली में जल सुधार के लिए 500 करोड़ रुपये

-एशियाई खेलों के प्रशिक्षण के लिए 100 करोड़ रुपये

-कश्मीरी विस्थापितों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़

-जम्मू-कश्मीर में स्टेडियम के लिए 200 करोड़

-नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी का निर्माण होगा

-सारनाथ, बोधगया सर्किट का विकास

-नए जलमार्ग के लिए 4200 करोड़

-थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए 100 करोड़

-NHAI के लिए 37880 करोड़ का प्रस्ताव

-6 नए टेक्सटाइल क्लस्टर, 200 करोड़ का प्रस्ताव

-पश्मीना संवर्धन के लिए 50 करोड़

-वाराणसी के बुनकरों के विकास के लिए 50 करोड़

-जनता को गरीबी मुक्त बनाना हमारी प्राथमिकता

-हमारा लक्ष्य विकास दर को दो अंकों में लाना है

-विकास के लिए बड़ा फंड जरूरी

-तीन साल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना चुनौती

-काला धन वापस लाना प्राथमिकता

-नई यूरिया नीति लाएंगे

-पेट्रोलियम पर सब्सिडी की समीक्षा होगी

-जीएसटी लाने पर भी विचार हो रहा है

-टैक्स से जुड़े झगड़े सीबीडीटी कमेटी निपटाएगी

-रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी

-एफडीआई को प्रोत्साहित करेगी सरकार

-बीमा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव

-बैंकों को जवाबदेह और स्वायत्त बनाएंगे

-100 स्मार्ट शहरों का विकास करेंगे

-गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए 500 करोड़

-देश में 24 घंटे बिजली सप्लाई की योजना

-सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए 200 करोड़ रुपये

-पीएम सिंचाई योजना के लिए 1 हजार करोड़

-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 9 शहरों में ई-वीजा सुविधा

-स्मार्ट शहरों के लिए 7060 करोड़ रुपये का प्रस्ताव

-बैंकों को जवाबदेह और स्वायत्त बनाएंगे

-राष्ट्रीय पेयजल योजना को 3600 करोड़ रुपये

-राष्ट्रीय बैंक को 8000 करोड़ रुपये

-महिला बैंक को 100 करोड़ रुपये

-पीएम सड़क योजना को 14389 करोड़

-बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को 100 करोड़

-आदिवासी वन बंधु योजना को 100 करोड़

-वरिष्ठ नागरिक पेंशन योजना जारी रहेगी

-गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए 500 करोड़

-नए मेडिकल कॉलेज बनाए जाएंगे

-शहरी गरीबों के सस्ते आवास के लिए 4000 करोड़ रुपये

-लखनऊ, अहमदाबाद में मेट्रो के लिए 100 करोड़ रुपये

-सर्व शिक्षा अभियान के लिए 28635 करोड़ रुपये

-नए एम्स के लिए 500 करोड़ रुपये

-5 ग्रामीण हेल्थ रिसर्च सेंटर खोलने का प्रस्ताव

-मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपये

-5 नए IIT, 5 नए IIM खोलने का प्रस्ताव

-आंध्र प्रदेश, राजस्थान में कृषि यूनिवर्सिटी

-कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन के लिए 100 करोड़ रुपये

-कृषि ऋण के लिए 8 लाख करोड़

-भूमिहीन किसानों के लिए 5 लाख का कर्ज

-कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए 5 हजार करोड़ रुपये

-सौर ऊर्जा के लिए 500 करोड़


Finance Minister Arun Jaitley wasted no time on preambles or poetry as he presented his first Union Budget, stressing on fiscal prudence and making it clear that "we cannot spend beyond our means." (Budget 2014: Highlights)


To encourage savings, Mr Jaitley said as he reached his tax proposals, he announced some relief for individual tax payers, though he left tax rates and slabs unchanged. Mr Jaitley has raised the exemption limit by Rs. 50,000 to Rs. 2.5 lakh a year. This means that anyone who earns less than 2.5 lakh will not be taxed; those earning more than that will save Rs. 5,150 a year.


The finance minister also raised the exemption limit for senior citizens to Rs. 3 lakh; he hiked the exemption limit on long-term financial savings by Rs. 50,000 to Rs. 1.5 lakh a year and raised the tax-free cap on home loan interest from Rs. 1.5 to Rs. 2 lakh. (Arun Jaitley Provides Big Relief to Income Tax Payers)


Mr Jaitley also enhanced the Public Provident Fund (PPF) ceiling from the current Rs. 1 lakh to Rs. 1.5 lakh in a financial year.   


Earlier in his speech, the minister underscored the challenges the government faces to revive a rundown economy and said he had "no option but to take bold steps to spur growth." He said his government was bound to usher in policies for higher growth and to lower inflation. (Rs. 1000 Crore Set Aside to Improve Irrigation Facilities)


The only break in his brisk reading came when the Lok Sabha saw an unprecedented five-minute adjournment at his request as he reportedly had a severe backache. He resumed his speech sitting. (Finance Minister Arun Jaitley Takes Break During Budget Speech)


The markets, that had been flat since morning as they held their breath, cheered when the Finance Minister announced that he was retaining the fiscal deficit target at 4.1 per cent and that he saw the fiscal deficit for the next year at 3.6 per cent and down to 3 per cent by 2016-17. (Budget 2014: 5 New IITs and IIMs, Says Finance Minister)


They plummeted when he indicated that the controversial retrospective tax was not being scrapped, but recovered some time later.  On most other counts Mr Jaitley seemed to meet market expectations. As of 1.15 p.m., the Sensex traded with over 300 points gain.


He promised more clarity on the goods and services tax (GsT) before the year end. The GST is seen as the single-biggest fiscal reform in the country - it aims to widen the tax base, improve tax compliance and reduce transaction costs of businesses. It can add as much as 2 per cent of GDP to India's economy, analysts say.


Mr Jaitley also made announcements on foreign direct investment in several sectors noting it would help manufacturing and employment. In bold steps, Mr Jaitley has proposed that FDI be raised from 26 per cent to 49 per cent in both defence and insurance. He announced FDI and an outlay of Rs. 7000 crore for the Prime Minister's vision of 100 smart cities, saying that the new middle class needed new cities.


He proposed setting up five more IITs, five more IIMs, allotting Rs. 500 crore for this. He also resolved to ensure an AIIMS in every state soon, allocating Rs. 500 crore more to set up four such hospitals for now.  


Mr Jaitley also reiterated his government's commitment to providing 24x7 electricity in all homes and sanitation in all house by 2019 when India celebrates Mahatma Gandhi's 150th birth anniversary.

http://profit.ndtv.com/news/budget/article-budget-2014-arun-jaitley-targets-fiscal-consolidation-announces-income-tax-sops-586406



Finance Minister Arun Jaitley (C) poses as he leaves his office to present the federal budget for the 2014-15 fiscal year, in New Delhi July 10, 2014. REUTERS-Stringer

Indian security personnel stand guard near sacks containing the papers of the budget for the 2014-15 fiscal year, at the parliament in New Delhi July 10, 2014. REUTERS-Adnan Abidi-Files

Security personnel stand guard near sacks containing the papers of the federal budget for the 2014-15 fiscal year, at the parliament in New Delhi July 10, 2014.  REUTERS-Adnan Abidi

1 OF 3. Finance Minister Arun Jaitley (C) poses as he leaves his office to present the federal budget for the 2014/15 fiscal year, in New Delhi July 10, 2014.

CREDIT: REUTERS/STRINGER



Modi's first budget targets growth, curbs deficit

BY MANOJ KUMAR

NEW DELHI Thu Jul 10, 2014 12:41pm IST


(Reuters) - Prime Minister Narendra Modi's new government on Thursday unveiled a budget it said can revive growth after the longest slowdown in a quarter of a century even while curbing borrowing.

Modi's government, in office for less than two months, said it would raise caps on foreign investment in the defence and insurance sectors, and launch a tax reform to unify India's 29 states into a common market.

Delivering his maiden budget, Finance Minister Arun Jaitley told parliament that India's 1.2 billion people were "exasperated" after two years of economic growth below 5 percent.

He vowed that Asia's third largest economy would expand at an annual rate of 7-8 percent within three to four years.

"We shall leave no stone unturned in creating a vibrant and strong India," Jaitley, 61, told lawmakers after climbing the steps of parliament and showing his budget briefcase to TV cameras.

Modi, 63, won a landslide general election victory in May with a pledge to create jobs for the 1 million people who enter India's workforce every month.

He has since warned that "bitter medicine" is needed to nurse the economy back to health from high inflation and the worst slowdown since free-market reforms in the early 1990s unleashed an era of rapid growth.

At the same time, Jaitley vowed to adhere to the "daunting" budget deficit target - of 4.1 percent of gross domestic product for the fiscal year ending March 2015 - that the government inherited from its predecessor.

"I have decided to accept this challenge - one fails when one stops trying," Jaitley told a hushed lower house of parliament. He said the budget deficit would be reduced to 3.6 percent in the following two fiscal years.

'PARAMOUNT IMPORTANCE'

Jaitley's commitment to fiscal discipline was stronger than many independent economists had expected. With the deficit already approaching half of the annual target just three months into the fiscal year, they expected him to raise the borrowing target to 4.4 percent for the current fiscal year.

"Fiscal prudence is of paramount importance," Jaitley said. "We cannot leave behind a legacy of debt for our future generations."

The government's other major policy initiatives had been broadly flagged in advance.

Jaitley said he wants a solution by December on how India would impose a national Goods and Services Tax (GST), promising that the government would be "more than fair" in its dealings with the country's states on how revenue would be allocated.

He also said he would set up a high-level committee to review retrospective tax claims blamed for choking off foreign investment after companies such as Britain's Vodafone (VOD.L) were hit with massive demands.

Jaitley raised limits on foreign investment in defence and insurance ventures to 49 percent from 26 percent. Foreign defence contractors had sought a higher threshold to justify sharing technology when they site operations in India, a major arms buyer.

The budget for the fiscal year to March 2015 was delayed by this year's general election, which handed Modi's Bharatiya Janata Party (BJP) the strongest electoral mandate in India in three decades.

(Writing by Douglas Busvine; Editing by Richard Borsuk)

Budget 2014: Highlights of Finance Minister Arun Jaitley's Budget speech

Express News Service | July 10, 2014 1:32 pm

Finance Minister Arun Jaitley presents the Narendra Modi government's first budget. Here are the highlights:

1. Two years of sub-five per cent growth has led to challenges to the economy

2. Green shoots of recovery seen in global economy

3. Slow decision making has resulted in loss of opportunity

4. We look forward lower level of inflation

5. Will usher in policy regime that will usher in higher growth, low inflation

6. Aim to achieve 7-8 per cent economic growth rate in next 3-4 years

7. Will leave no stone unturned to create a vibrant India

8. Budget proposes Plan expenditure of Rs 5,75,000 crore for current ficsal

9. Anti-poverty programmes will be targeted well.

10. We need to revive growth particularly in manufacturing sector and infrastructure

11. There is urgent need to generate more resources

12. Should we allow economy to suffer because of indecisiveness and populism

13. Task before us is challenging

14: We must continue to be watchful of CAD

15. Target of 4.1 per cent fiscal deficit is daunting but accepting it as a challenge

16. Finance Minister emphasizes on fiscal prudence, need to generate more resources.

17. Iraq crisis having impact on oil prices

18. We must address the problem of black money fully

19. We must take bold steps to enhance economic activity

20. Expenditure Management Commission will be constituted to look at expenditure reforms

21. We are for minimum government, maximum governance

22. Overall subsidy regime will be reviewed, especially food and oil. Marginalised sections and SC/ST to be protected

23. New urea policy will be formulated

24. We have no option but to take some bold steps to spurt economy; these are only the first steps and are directional

25. This govt will not ordinarily change policies retrospectively which creates a fresh liability

26. All future indirect transfers under the retro tax regime will be scrutinised by a high level committee of CBDT before action is taken

27. We are committed to providing stable tax regime which is investor friendly

28. Govt to set up a high-level Committee to interact with industry to bring about changes in tax laws if required

29. FM Proposes to enhance the scope of income tax settlement commission.

30. Govt proposes to strengthen authority for advance ruling in tax, set up more benches

31. Transfer pricing regulations for residents and non-residents being done

32. FDI in Defence sector raised to 49 per cent

33. Finance Minister Arun Jaitley takes 5-minute break; Lok Sabha adjourned for 5 minutes

34. Financial stability is foundation of rapid recovery

35. Our domestic manufacturing is still at nascent stage

36. Manufacturing units will be allowed to sell their products through retail and e-commerce

37. Budget proposes 49 per cent FDI in insurance through FIPB route.

38. Our Banking system needs to be further strengthened. Need to infuse rs 2.40 lakh crore in our banks

39.Bank capital to be raised through retail sale of shares; Govt to continue to hold majority in PSU banks

40. Govt proposes to provide finance to 5 lakh landless farmers through NABARD

41. Will examine proposal to give additional autonomy to banks and make them more responsible

42. E-visa to be introduced at 9 airports in the country

43. Govt proposes to set up 100 smart cities. Govt to provide Rs 7,060 crore for development of such cities

44. Public sector banks need Rs 2.40 lakh crore equity to conform with Basel-III norms by 2018

45. Rs 50 cr set aside for indigenous cattle breed and blue revolution for inland fisheries

46. We expect PSUs to invest Rs 2,47941 crore this fiscal

47. Infrastructre Investment Trust being set up to finance infra projects and reduce burden on banks

48. Total sanitation by 2019

49. Budget proposes Rs 1,000 crore for Pradhanmantri Krishi Seechai Yojana to improve irrigation facility

50. National multi-scale programme 'Skill India' to be introduced to provide training and support for employment

51. Rs 200 cr set aside for the Sardar Patel statue project in Gujarat

52. Deen Dayal Upadhaya Gram Jyoti Yojana to be launched to augment power supply in rural areas

53. Pension scheme for senior citizens being revived

54. Govt committed to providing 24×7 power supply to all homes

55. Rs 50,548 cr proposed for SC development

56. EPFO will launch a unified account scheme for portability of Provident Fund accounts

57. Govt proposes to set up committee to examine how to utilise large funds lying unused in postal schemes

58. Govt approves minimum monthly pension of Rs 1,000 per month under EPS-95 scheme run by EPFO

59. Committee will be set up to examine how unused money in postal schemes can be utilised

60. Govt announces schemes for disabled persons; to set up 15 new Braille press and revive 10 existing ones

61. Rs 14,389 crore provided for Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana.

62. Govt to launch 'Beti Bachao, Beti Padhao' scheme; sets aside Rs 100 crore for it

63. Crisis Management Centres for women to be set up at all government hospitals in NCR region

64. Govt increases wage ceiling for EPFO schemes to Rs 15,000 from existing Rs 6,500 per month

65. Rs 3,600 crore provided for safe drinking water in 20,000 habitations in villages facing problem of impure drinking water

66. Budget proposes National Housing Banking programme; sets aside Rs 8,000 crore

67. Rs 2.29 lakh crore allocated for Defence budget.

68. 4 more AIIMS in Andhra Pradesh, West Bengal, Vidharba and Purvanchal are under consideration; Rs 500 cr provided

69.  Each state where there is no AIIMS will be added in the coming years

70. Govt proposes to add 12 more medical government colleges

71. 5 new IIMs and 5 new IITs proposed to be set up

72. 'Kisan' TV channel to be launched by DD at cost of Rs 100 crore: Rs 100 crore for Community radio stations proposed

73. FM proposes National Rural Internet and Technology Mission; Rs 500 crore set aside.

74. Metro rail services to be launched in Lucknow and Ahmedabad; Rs 100 crore set aside for it

75. Budget proposes to set up agri-infrastructure fund at a cost of Rs 100 crore; two more agri-research intitutes in

Jharkhand and Assam

76. FM announces Rs 100 crore for modernisation of madrasas

77. Govt sets aside Rs 200 cr for setting up of agriculture university in AP and Rajasthan, and horticulture university in Haryana, Telangana

78. Rs 100 crore provided for providing soil card to every farmer

79. Govt committed to achieve 4 per cent farm growth; to use new technologies to boost crop yields

80. Rs 500 crore price stabilisation fund to be set up

http://indianexpress.com/article/india/politics/budget-2014-highlights-of-finance-minister-arun-jaitleys-budget-speech/3/







Full Speech: Arun Jaitley’s maiden Union Budget

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Full Speech: Arun Jaitley's maiden Union Budget

Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)

Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)

Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)
Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)Union Finance Minister Arun Jaitley with MOS for Finance Nirmala Sitharaman and officials outside Finance Ministry. (Source: PTI)

Finance Minister Arun Jaitley presented his maiden budget of the BJP-led NDA government amid high expectations from common man to macro business players of the country. Jailetly in his budget left income tax rates unchanged while promising not to bring tax changes with retrospective effect.

Here's the full text of the speech:

Madam Speaker,
I rise to present the Budget for the year 2014-15.

I. STATE OF THE ECONOMY

2. The people of India have decisively voted for a change. The verdict represents the exasperation of the people with the status-quo. India  unhesitatingly desires to grow. Those living below the poverty line are anxious to free themselves from the curse of poverty. Those who have got an opportunity to emerge from the difficult challenges have become aspirational. They now want to be a part of the neo middle class. Their next generation has the hunger to use the opportunity that society provides for them. Slow decision making has resulted in a  loss of opportunity. Two years of sub five per cent growth in the Indian economy has resulted in a challenging situation. We look forward to lower levels of inflation as compared to the days of double digit rates of food inflation in the last two years. The country is in no mood to suffer unemployment, inadequate basic amenities, lack of infrastructure and apathetic governance.

CLICK HERE FOR FULL SPEECH

http://pib.nic.in/archieve/others/2014/jul/gbEngSpeech.pdf

बजट 2014: कितना बचेगा आपका टैक्स

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बजट 2014: कितना बचेगा आपका टैक्स


सिगरेट महंगी, टीवी सस्ताः जानिए, मोदी के पहले बजट से आपको क्‍या मिला
प्रकाशित Thu, जुलाई 10, 2014 पर 20:24  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

मोदी सरकार के पहले बजट से सभी बड़ी उम्मीदें लगाएं बैठे थे, ऐसे में सरकार ने आम आदमी को टैक्स छूट के रूप में बड़ा तोहफा दिया है। बजट 2014 में जहां टैक्स छूट 2.5 लाख रुपये तक की आमदनी टैक्स फ्री कर दी गई है, वहीं 80 सी के तहत मिलने वाली टैक्स छूट की सीमा को भी बढ़ा दिया है।


वहीं अलग-अलग योजनाओं में 80 सी के तहत अब 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स छूट का फायदा मिलेगा। हालांकि टैक्स दरों में कोई बदलाव नहीं किए गए हैं। वित्त मंत्री के इन चंद कदमों से क्या वाकई बचत करने वालों के अच्छे दिन आ गए, टैक्स छूट में दी गई ये रियायत कितनी बड़ी है, इन मुद्दों पर लेंगे एक्सपर्ट्स की राय।


मोदी सरकार के पहले बजट में आम आदमी को राहत देने की कोशिश की गई है। अब 2.5 लाख रुपये तक की सालाना आय पर आयकर नहीं लगेगा। इसके अलावा वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) के लिए आयकर छूट सीमा 3 लाख रुपये की गई है। आयकर छूट की सीमा बढ़ने से टैक्स बोझ में 5000 रुपये की कमी आएगी। 

सेक्शन 80सी के तहत निवेश पर टैक्स छूट सीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दी है। साथ ही होमलोन के ब्याज पर बड़ी छूट भी दी है। अब 1.5 लाख रुपये के बजाए 2 लाख रुपये तक के होमलोन के ब्याज पर टैक्स छूट मिलेगी। पीपीएफ में निवेश की सीमा बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये हुई है।


फाइनेंशियल प्लानर अर्णव पंड्या का कहना है कि फाइनेंशियल प्लानिंग के नजरिए से देखा जाएं तो इन छोटे छूट से कोई ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है। आम जनता पर महंगाई का इतना बोझ पड़ता है कि वो बचत नहीं कर पाते हैं। अतिरिक्त बचत करना आम जनता के लिए मुश्किल होता जा रहा है।


80 सी लिमिट को पूरा करने के लिए जरूरी नहीं कि लोग ज्यादा बचत कर पाएंगे। क्योंकि अब भी महंगाई बहुत ज्यादा है और लोगों के लिए बचत करना मुश्किल है। दूसरी तरफ ब्याज दरें भी काफी ज्यादा है। पीपीपएफ में निवेश की सीमा 1 लाख रुपये बढ़ाकर से 1.5 लाख रुपये कर दी गई है। लिहाजा जिनका लंबी अवधि के लिए निवेश करने का नजरिया हो और लंबी अवधि का फायदा उठाना हो तो पीपीएफ अच्छा विकल्प होगा। फाइनेंशियल प्लानिंग के हिसाब से आपको अपनी बचत का एलोकेशन करना चाहिए।


टैक्स गुरु सुभाष लखोटिया के मुताबिक आयकर पर टैक्स छूट की सीमा 2 लाख रुपये से बढ़कर 2.5 लाख रुपये हुई, 80सी के निवेश पर छूट 1 लाख रुपये से 1.5 लाख रुपये हो गई और होमलोन ब्याज पर छूट 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये की गई है जिससे सभी वर्ग के करदाताओं को फायदा देगा। जिन लोगों की इनकम 30 फीसदी से ज्यादा के स्लैब में आती है उनके लिए करीब 30-35,000 रुपये की टैक्स की बचत होगी। इन सबको देखते हुए अच्छे दिन आने की आशा तो पूरी हो गई है लेकिन वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए कोई भी अतिरिक्त फायदा नहीं हुआ है।


वित्त मंत्री चाहते तो आम आदमी को और राहत दे सकते थे। टैक्स में कमी, विदेशों से भारत के पैसों को लाना, ब्लैक मनी, टैक्स चोरी करने वाले लोगों के खिलाफ कोई कड़े कदम उठाएं जाते तो ज्यादा फायदेमंद हो सकता था।


अब होम लोन, सेविंग्‍स के साथ 6 लाख रु. तक की इनकम होगी टैक्‍स फ्री

  • होम लोन के ब्‍याज पर कर छूट बढ़ी
इस बजट में इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 24 के तहत होम लोन के ब्याज की अदायगी पर टैक्स से छूट की अधिकतम सीमा दो लाख रुपए की गई। इस प्रावधान से लोगों को कर बचाने में मदद मिलेगी। पहले यह सीमा 1.5 लाख रुपए थी। 
  • सेक्शन 80 सी के तहत विभिन्‍न बचत पर भी बढ़ी छूट की सीमा
इस बजट में पीपीएफ में निवेश की अधिकतम सीमा को एक लाख रुपए से बढ़ा कर डेढ़ लाख रुपए कर दिया गया है। अब इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 सी के तहत 1.5 लाख रुपए की बचत पर कर छूट मिलेगी। इसकी वजह से लोग और अधिक बचत कर सकेंगे। इस सेक्शन के तहत ईएलएसएस, एनएससी, यूलिप, ईपीएफ, पीपीएफ, जीपीएफ, एनपीएस आदि में बचत को शामिल किया जाता है। इसका मतलब यह है कि लोग इन विकल्पों में अधिक बचत कर सकेंगे। पहले सेक्शन 80 सी के तहत छूट की सीमा एक लाख रुपए होगी।
 
छह लाख तक की आमदनी पर कोई टैक्स नहीं
 
अगर किसी व्यक्ति की आमदनी छह लाख रुपए है और वह ऊपर बताई गई तीनों रियायतों का पूरा इस्तेमाल करता है, तो उसे कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
 
बजट से कितना बचेगा आपका टैक्स 
 
अगर आपकी सालाना आमदनी तीन लाख रुपए है-
 
 पूर्व स्थितिअब क्या होगा
टैक्सेबल इनकम
एक लाख रुपए50,000 रुपए
टैक्स 10,000 रुपए5,000 रुपए
सेस 300 रुपए150 रुपए
कुल टैक्स 10,300 रुपए5,150 रुपए
 
अगर आपकी सालाना आमदनी छह लाख रुपए है-
 
 पूर्व स्थितिअब क्या होगा
टैक्सेबल इनकमचार लाख रुपए 3.50 लाख रुपए
टैक्स
50,000 रुपए45,000 रुपए
सेस 1500 रुपए1350 रुपए
कुल टैक्स 51,500 रुपए46,350 रुपए
अगर आपकी सालाना आमदनी 11 लाख रुपए है-
 
 पूर्व स्थितिअब क्या होगा
टैक्सेबल इनकम 9 लाख रुपए8.5 लाख रुपए
टैक्स 1.6 लाख रुपए1.55 लाख रुपए
सेस 4,800 रुपए4,650 रुपए
कुल टैक्स 1,64,800 रुपए1,59,650 रुपए
 
यानि आप देख सकते हैं कि बजट की नई रियायतों से हर टैक्स स्लैब में आने वाले टैक्सपेयर को 5,150 रुपए की बचत होगी।
 
ये हैं आयकर के नए स्लैब
 
आय टैक्‍स दर 
Upto Rs.2,50,000 Nil
Rs. 2,50,001 to Rs. 5,00,000 10%
Rs. 5,00,001 to Rs. 10,00,00020%
Above Rs. 10,00,000  30%
 
सीनियर सिटीजन: 60 वर्ष से अ‍धिक 
 
Upto Rs.3,00,000 Nil
Rs. 3,00,001 to Rs. 5,00,000 10%
Rs. 5,00,001 to Rs.10,00,00020%
Above Rs. 10,00,000  30%
 
 
सीनियर सिटीजन - 80 वर्ष से अधिक 
Upto Rs. 5,00,000  Nil
Rs. 5,00,001 to Rs. 10,00,00020%
Above Rs. 10,00,000 30%
 

अब विदेशी निवेश से पूरा होगा सस्‍ते घर का सपना

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नेशनल हाउसिंग बैंक को 12 हजार करोड़ रुपए

बजट में नेशनल हाउसिंग बैंक को 12 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसकी वजह से भावी ग्राहकों को कम कीमत के घर के लिए सस्ते कर्ज मिल सकेंगे। इसका व्‍यापक असर आने वाले दिनों में रियल एस्‍टेट सेक्‍टर पर देखने को मिलेगा। कम ब्‍याज दर पर लोन मिलने से घर खरीददारों की संख्‍या में इजाफा होगा। हालांकि, यह रकम बहुत ही कम है। 125 करोड़ की आबादी के इस देश में शहरी जनसंख्‍या काफी तेजी से बढ़ रही है। शहरों में घर की मांग भी उसी तेजी से बढ़ रही है। उसको देखते हुए यह रकम काफी नहीं है।
 
पीपीपी मॉडल से 500 आदर्श सिटी का निर्माण

शहरी नवीनीकरण कार्यक्रम के तहत पीपीपी मॉडल के जरिए काम किया जाएगा। बजट में पीपीपी मॉडल के जरिए कम से कम 500 आदर्श सिटी बनाने की बात कही गयी है। लेकिन, ये घोषणा यह नहीं बताती कि इस लक्ष्य को कैसे पूरा किया जाएगा। पीपीपी मॉडल के साथ पिछला अनुभव कुछ खास नहीं रहा है। ऐसे में इस घोषणा का क्रियान्वयन संदेह के घेरे में है।

आरआईटीएस ट्रस्ट पर टैक्स छूट

सरकार ने आरआईटीएस ट्रस्‍ट पर टैक्‍स छूट देने को कहा है। यह रियल एस्‍टेट सेक्‍टर को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए सबसे कारगर उपाय सिद्ध होगा। फंड की कमी से जूझ रहे इस सेक्‍टर को सरकार ने बड़ी राहत दी है। इस ट्रस्‍ट पर टैक्स छूट मिलने से छोटे निवेशक भी रियल एस्टेट में निवेश का मौका पा सकेंगे। विदेशी निवेश्‍ाक भी इस ट्रस्‍ट के माध्‍यम से रियल एस्‍टेट सेक्‍टर में निवेश कर पाएंगे। इसका फायदा डेवलपर्स के साथ घर खरीददार को भी मिलेगा। प्रोजेक्‍ट को तय समय पर पूरा करने में मदद मिलेगी। वहीं घर खरीददार को समय पर उनका घर मिलेगा।

होम लोन पर टैक्स छूट

बजट में होम लोन पर मिलने वाली छूट की सीमा बढ़ा दी गई है। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 24 के तहत पहले 1.5 लाख रुपए पर ब्‍याज छूट को बढ़ा कर 2 लाख रुपए कर दिया गया है। इसके अलावा ग्रामीण आवास की जरूतर को पूरा करने के लिए 8000 करोड़ रुपए और शहरी आवास की जरूरत को पूरा के लिए 4000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए है। कम कीमत के घरों के निर्माण में एफडीआई की अनुमति और 100 नए स्‍मार्ट शहरों के लिए 7060 करोड़ रुपए भी बजट में आवंटित किए गए है। 

हवाई अड्डों का निर्माण

पीपीपी मॉडल से टियर टू और थ्री शहरों में हवाई अड्डों का निर्माण होगा। अभी यह कहना जल्‍दबाजी होगा कि यह मॉडल कितना सफल होगा है क्योंकि निवेशक छोटे शहरों में पैसा लगाने से कतराएंगे। यदि योजना सफल हुई तो इसका बड़ा व्‍यापक असर देखने को मिलेगा। छोटे शहरों में निवेश आने से विकास तेजी से होगा। कनेक्टिवटी अच्‍छी होने से शहर की तस्वीर बदलेगी। डेवलप हो रहे एयरपोर्ट के आसपास नए शहर डेवलप हो सकते हैं। इससे इन छोटे शहरों में प्रॉपर्टी की कीमत में इजाफा होगा।

22 हजार करोड़ की रियायतों के साथ वोटरों का आभार, रिफॉर्म के लिए करें इंतजार

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22 हजार करोड़ की रियायतों के साथ वोटरों का आभार, रिफॉर्म के लिए करें इंतजार


22 हजार करोड़ की रियायतों के साथ वोटरों का आभार, रिफॉर्म के लिए करें इंतजार
नई दिल्‍ली
मोदी सरकार ने 22,200 करोड़ रुपये की कर रियायतों के साथ मध्‍यवर्गीय वोटरों को धन्‍यवाद दिया है। बजट में कोई कड़वी दवा नहीं है। बड़े आर्थिक सुधारों का इंतजार करना होगा। अलबत्‍ता महंगाई से जूझने और करने की इच्‍छा बहुत कुछ है लेकिन अभी ब्‍योरा तैयार नहीं है। पूरे बजट भाषण में बमुश्किल 8 ऐसी बड़ी घोषणाएं मिलती हैं जिनमें दूर की कुछ सूझ नजर आती है अलबत्‍ता इनमें बिग बैंग रिफॉर्म, कोई गेम चेंजर आइडिया नहीं है। 
 
बजट की अाठ बड़ी घोषणायें
 
1. आयकर में  रि‍यायत
  • इनकम टैक्स से छूट की सीमा दो लाख रुपए से बढ़ा कर 2.5 लाख रुपए की गई। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80 सी के तहत छूट की सीमा 1.5 लाख रुपए की गइ और होम लोन ब्‍याज पर कर छूट सीमा 1.5 लाख रुपये 2 लाख रुपये कर दी गई है।  
असर : महंगाई के मारे मध्‍य वर्ग को राहत मिलेगी। बचत पर रियायत के जरिेये  ईएलएसएस, एनएससी, यूलिप, ईपीएफ, पीपीएफ, जीपीएफ, एनपीएस आदि में बचत बढ़ेगी। होम लोन लेने को प्रोत्‍साहन मिलेगा।  
 
2. कृषि क्षेत्र के लिए पैकेज   
  • 1000 करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना, नेशनल कॉमन मार्केट, महंगाई रोकने के लिए 500 करोड़ रुपये का मूल्य स्थिरीकरण कोष, किसानों को 100 करोड़ रुपए का हेल्थ कार्ड और कृषि भंडारण के लिए 5000 करोड़ रुपये के साथ बजट में एक मजबूत एग्री पैकेज दिखता है। 
असर 
सिंचाई पर खर्च की वापसी हुई है अलबत्‍ता सिंचाई सुविधायें राज्‍यों  के हाथ हैं। नेशनल कॉमन मार्केट से बिचौलियों को खत्‍म करके नेशनल मंडी को बढ़ावा मिलेगा। मूल्य स्थिरीकरण कोष की मदद से राज्य सरकारें जरूरी सामान बाजार से खरीदकर उन्हे रियायती दरों पर उपभोक्ताओं को बेचेंगी। उन्हे इस फंड के तहत सब्सिडी दी जाएगी।
 
3.. 10,000 करोड़ रुपये का स्‍टार्ट अप  फंड  
छोटे कारोबारि‍यों और युवा उद्य‍मियों को मिलेगा अपने कारोबार श्‍ुारु करने के लिए वेंचर कैपिटल, इक्विटी और सस्‍ते कर्ज, रिस्‍क कैपिटल मिलेगी। 
असर 
रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और युवा उद्यमि‍यों को कारोबार करने के लि‍ए प्रोत्‍साहन मि‍लेगा। अलबत्‍ता सीड कैपिटल व वेंचर कैपिटल देने वाली अन्‍य सरकारी संस्‍थायें भी सक्रिय हैं। 
 
4- शहरों के वि‍कास पर फोकस 
  • सात शहरों में स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी शहरी नवीनीकरण कार्यक्रम के तहत पीपीपी मॉडल के जरिए काम किया जाएगा। पीपीपी मॉडल के जरिए कम से कम 500 आदर्श शहर बनाए जाएंगे। टियर टू और थ्री सिटी में पीपीपी मॉडल से हवाई अड्डों का निर्माण होगा
असर
रियलिटी उद्योग और कंस्‍ट्रक्‍शन को बढ़ावा। स्मार्ट औद्योगिक सिटी में वे सारी सुविधा मिलेंगी जो किसी भी उद्योग को जरूरत होती है। रोजगार सृजन करने में भी ये शहर योगदान करेंगे। हालांकि शहरों के नि‍र्माण में पीपीपी मॉडल के साथ पिछला अनुभव कुछ खास बेहतर नहीं रहा है। ऐसे में इस घोषणा का क्रियान्वयन संदेह के घेरे में है। टियर टू और थ्री सिटी में हवाई अड्डों के निर्माण की योजना सफल हुई तो इसका असर देखने को मिलेगा।
 
5. सस्‍ते मकानों के लिए 4000 करोड़ रुपये 
  • ससते मकानों के लिए 4000 करेाड़ रुपए रखे गए हैं। यह पैसा कैसे मिलेगा यह स्‍पष्‍ट नहीं है। नेशनल हाउसिंग बैंक को 12000 करोड़ रुपये मिलेंगे। 
असर :
देश में करीब 2.5 लाख घरों की कमी है, जिसमें से 90 फीसदी घर कम कीमत आय वर्ग को चाहिए। ऐसे में 4000 करोड़ की रकम बहुत ही कम है। इस रकम से मोदी सरकार सभी को घर देने के सपने को पूरा नहीं कर सकती है।

6. बीमा व डिफेंस में विदेशी निवेश 
  • डिफेंस में 49 प्रतिशत तक एफडीआई लाया जाएगा। बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी हुआ।
असर : रक्षा क्षेत्र के लिए विदेशी निवेश खोला जाना बड़ा फैसला है। इससे देश में ज्यादा विदेशी मुद्रा आ सकेगी। देश की रक्षा क्षेत्र के लिए आयात पर निर्भरता कम होगी। बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ने से विदेशी कंपनियां का रुझान देश में बढ़ सकेगा। इससे पहले 26 फीसदी से ज्यादा निवेश नहीं कर सकती थी कंपनियां। बीमा क्षेत्र में कंपटीशन बढ़ेगा जिससे ग्राहकों के लिए बेहतर प्रोडेक्ट बाजार में आ सकेंगे। बीमा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां जैसे रिलायंस कैपिटल, आदित्य बिरला नुवो, मैक्स इंडिया को फायदा होगा।
 
7- लघु उद्योगों के लिए पैकेज 
  • एमएसएमई की परिभाषा बदलेगी और निवेश सीमा बढ़ेगी। छह नए टेक्सटाइल क्लस्टर्स बनाने की भी बात कही गई। छोटे कारोबारि‍यों के लि‍ए पेमेंट बैंकों को शुरू कि‍या जाएगा। एसएमई के लिए कारोबार से आसानी से निकलने के लिए नया बैंकरप्सी फ्रेमवर्क डेवलप किया जाएगा।
असर 
एमएसएमई की परिभाषा बदलने मौजूदा 2.6 करोड़ एमएसएमई की संख्या में इजाफा होगा। साथ ही देश में निर्माण गतिविधियां भी तेजी से बढ़ेंगी। रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे। देश में माइक्रो इंडस्ट्री के लिए मौजूदा सीमा 25 लाख, लघु उद्योग के लिए 5 करोड़, मध्यम उद्योग के लिए 10 करोड़ है।

8; राष्‍ट्रीयकृत बैंकों के लिए  8000 करोड़ रुपए की पूंजी 
  • सरकारी बैंकों को वि‍त्‍तीय जरूरतें पूरी करने के लि‍ए सरकार की ओर से 8,000 करोड़ रुपए मि‍लेंगे। इसके अलावा, सरकारी बैंकों के शेयरों को बेचने की बात कही गई है।
असर 
पीएसयू बैंकों की एसेट क्‍वालि‍टी में सुधार आएगा। वहीं, उनकी वि‍त्‍तीय हालत भी बेहद होगी। बैकों के विनिवेश का रासता भी खुला है हालांकि सरकार इन पर स्‍वामित्‍व में बड़ी कमी नहीं करेगी। 

सब्सिडी बोझ घटाना होगा: सी रंगराजन,बजट से कितने खुश बाजार और इंडस्ट्री

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सरकार ने वित्त वर्ष 2015 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 4.1 फीसदी रखा है। लेकिन सरकार के लिए इसे हासिल करने के लिए सब्सिडी बोझ घटाना होगा, ये कहना है कि प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति के चेयरमैन सी रंगराजन का। उन्होंने ने वित्तीय घाटे के लक्ष्य का स्वागत किया है। उनके मुताबिक वित्तीय घाटे का लक्ष्य आय पर निर्भर करेगा और आय को लेकर चिंताजनक स्थिति नहीं है।

बजटः कॉरपोरेट जगत की उम्मीदें कितनी पूरी

प्रकाशित Thu, जुलाई 10, 2014 पर 18:35  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

वित्तमंत्री ने आज उम्मीदों का बजट पेश किया। कोई बड़ा ऐलान तो नहीं हुआ लेकिन सभी वर्गों को खुश करने की कोशिश की गई। किसी को ज्यादा मिला तो किसी के पकवान में मीठा थोड़ा कम था- लेकिन कोई मायूस नहीं हुआ। अच्छे दिन का वादा करनेवाले मोदी के बजट में कुछ ठोस ऐलान हैं तो आगे इकोनॉमी को सुधारने का रोड मैप भी है।  इंफ्रा सेक्टर पर बड़ा फोकस किया गया है। रियल इस्टेट, हाउसिंग, पावर, और एग्रीकल्चर जैसे अहम सेक्टर को भी तवज्जो दी गई है। मोदी को सिंहासन में बिठाने वाले मिडिल क्लास को भी टैक्स छूट देकर बड़ी राहत देने की कोशिश की गई है। मोदी सरकार का बजट क्या इंडस्ट्री की उम्मीदों पर खरा उतरा है, इस पर सीएनबीसी आवाज़ की खास पेशकश।


एचएसबीसी इंडिया की चेयरपर्सन नैना लाल किदवई का मानना है कि रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पर सरकार का फैसला अनुमानित ही था। इन मामलों को जल्दी से सुलझाना संभव नहीं है लेकिन सरकार ने इसपर जांच की बात कही है जो अच्छा ही है। बजट में विनिवेश के ऊपर कोई ऐलान ना होने से थोड़ी निराशा है क्योंकि इसके लिए काफी ऐलान की उम्मीद थी और बाजार भी इसके लिए अनुकूल है। देश को नए बैंकों की जरूरत है और सरकारी पीएसयू बैंकों को मिलाने पर सैद्धांतिक मंजूरी मिलने से बैंकों के लिए अच्छा होगा। वित्त वर्ष 2017 से अकाउंटिंग के नए नियम जारी होने से भी सरकारी काम में पारदर्शिता आएगी।


बजट में कंपनी एक्ट पर तो नहीं लेकिन डीटीसी के ऊपर आश्वासन जरूर दिए गए हैं कि इसकी समीक्षा होगी। वहीं जीएसटी के ऊपर भी राज्यों के बीच सहमति बनाने की बात कही गई है जो सकारात्मक है। हालांकि ऐलान करने से ज्यादा इन कामों को पूरा करना ज्यादा मुश्किल है।


महिंद्रा एंड महिंद्रा के डायरेक्टर अरुण नंदा का कहना है कि बजट से काफी सारी उम्मीदें पूरी हुई हैं और आगे भी इस दिशा में काम होने की उम्मीद है। अपने पहले बजट में सरकार ने अच्छे दिनों का वादा पूरा करने की पूरी कोशिश की है। मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को टैक्स छूट बढ़ाने से देश का इंडस्ट्रियल प्रोडेक्शन बढ़ेगा लेकिन इसमें काफी वक्त लगेगा। बजट की दिशा तो ठीक है तो लेकिन तुरंत ही देश की तस्वीर बदल जाएगी ऐसा नहीं है। डिफेंस में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी करना बहुत बड़ा कदम है। डिफेंस में नीचे से शुरू करके ऊपर तक जाएंगे और बहुत सी बड़ी कंपनियां आकर यहां निवेश करेंगी। सालोंसाल मामले पेंडिंग रहने की कार्यपद्धति में बदलाव आएगा और इससे सेक्टर की हालत सुधरेगी। इसके अलावा डिफेंस में आगे चलकर और एफडीआई को मंजूरी दी जा सकती है।


आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ चंदा कोचर का कहना है कि बजट में काफी सकारात्मक ऐलान हुए हैं। रोड, पोर्ट, शिपिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अच्छी पूंजी दी गई है। डिफेंस और इंश्योंरेंस में एफडीआई बढ़ाया गया है जो काफी समय से अपेक्षित था। इसके अलावा बैंकों को सीनियर बॉन्ड जारी करने की मंजूरी दी गई है जिससे बैंक पूंजी जुटा पाएंगे। बजट में सरकार का फोकस साफ है और ग्रोथ पर फोकस करना पॉजिटिव है। इस बजट को 10 में से 9 अंक दिए जा सकते हैं।


बीसीजी के एशिया पैसेफिक के चेयरमैन जन्मेजय सिन्हा का कहना है कि देश में संस्थागत और विदेशी निवेश नहीं आ रहा है जिसे आकर्षित करने के लिए इस बजट में कोशिश की गई है। डिफेंस और बीमा में 49 फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी देना इसी दिशा में बड़ा कदम है। इसके अलावा इस साल वित्तीय घाटे को 4.1 फीसदी के लक्ष्य हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है जो सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है। रोड, पोर्ट, स्मार्ट सिटी, आईआईएम खोलने, आईआईटी खोलने और एजुकेशन पर खर्चा बढ़ाने की बात कहकर रोजगार को पैदा करने की भी कोशिश की है। रेलवे बजट से पहले ही रेल किराए बढ़ाकर सरकार ने अपना विजन साफ कर दिया था और इसे ही बजट में दिखाने की कोशिश की गई है।


बजट 2014: बाजार को क्या लगा अच्छा

प्रकाशित Thu, जुलाई 10, 2014 पर 15:47  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

मोदी सरकार का पहला बजट आम टैक्स पेयर के लिए अच्छी खबर लेकर आया है। अब सालाना 2.5 लाख तक की आमदनी पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। 80सी के तहत टैक्स छूट की सीमा भी 1 लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख कर दी गई है। साथ ही होम लोन पर मिलने वाली ब्याज छूट भी 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी गई है।


लगता है बाजार को भी बजट काफी पसंद आया था क्योंकि बजट भाषण के वक्त 300 अंको तक लुढ़क चुके सेंसेक्स ने 400 अंक की जोरदार मजबूती दिखाई थी। तो इंडस्ट्री और बाजार को वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट में क्या बातें अच्छी लगी और कौन सी उम्मीदें पूरी नहीं हो पाईं, आइए जानते हैं।


आनंद राठी फाइनेंशियल सर्विसेज के चेयरमैन आनंद राठी का कहना है कि इस बजट में बडी बारीकीयों से हर सेक्टर पर ध्यान दिया गया है। रियल एस्टेट, इंफ्रा और पावर सेक्टर को बढ़ावा दिया गया है। वहीं ट्रांसपोर्ट टुरिज्म सेक्टर के बारे में बात की गई है। एज्यूकेशन के मामले में स्कील डेवलपमेंट को भी बढ़ावा दिया गया है।   

इस बजट में कुछ प्रतिबंधों के कारण निवेश भले कम हो लेकिन बड़ी बात यह थी कि फिस्कल कंसोलिडेशन की तरफ वित्तमंत्री का शुरु से फोकस था। इसके अलावा महंगाई काबू में लाने की भी कोशिश की गई है और टैक्स छूट की सीमा बढ़ाकर आम जनता को भी राहत पहुंचाई है। जीएसटी इस साल के अंत तक नीचे लाने की कोशिश की जाएगी। एफडीआई बढ़ने और फंडफ्लो आने पर भारतीय बाजारों में ग्रोथ दिखाई देगी। मौजूदा बजट सभी स्तर पर बाजार के उम्मीदों पर खरा उतरा है।


मार्केट एक्सपर्ट संदीप सभरवाल का कहना है कि इस बजट में काफी सकारात्मक एलान किए गए है और इससे ग्रोथ बढ़ने और महंगाई मे कमी आने कि उम्मीद है। टैक्सपेयर्स को जो रियायते दी गई है उससे आम जनता को भी राहत मिली है। हाउसिंग और 80सी में जो रियायत दी गई है इससे सेविंग बढ़ेगी।


इक्विटीरश के कुणाल सरावगी का कहना है कि निफ्टी का चार्ट काफी अच्छा लग रहा है और इसमें ऊपरी रुझान बना हुआ है। जबतक निफ्टी 7500 के नीचे नहीं जाता तबतक मंदी आने की उम्मीद नहीं है। ऊपर में 7800 का स्तर पार होने पर बाजार दोबारा तेजी दिखाएगा।


बजट से कितने खुश बाजार और इंडस्ट्री


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सबकी उम्मीदों का बजट पेश कर दिया है और बाजार के साथ साथ इंडस्ट्री के जानकारों का मानना भी यही है कि ये बजट आगे की सोच को दिखाने वाला है। आइये इंडस्ट्री और बाजार के जानकारों से जानते हैं कि उनके मुताबिक इस बजट से क्या मिला है।


आईडीएफसी के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव लाल का कहना है कि इस बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर सेगमेंट को काफी तवज्जो दी गई है जो अभी तक नजरंदाज किया जा रहा था। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भू जलमार्ग के लिए पूंजी, एनएचएआई का 8000 किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य इन सब बातों से इंफ्रा सेक्टर के लिए काफी अच्छे संकेत निकलकर सामने आ रहे हैं।


इन सब कदमों से इंफ्रास्ट्रक्चर सेगमेंट के लिए निवेश अवश्य आएगा। इसमें कुछ समय लग सकता है लेकिन घरेलू निवेश के साथ साथ विदेशी निवेश भी अवश्य बढ़ेगा। राजीव लाल ने इस बजट को 10 में से 8 अंक दिए हैं।


ब्लू ओशन कैपिटल एडवाइजर्स के निपुण मेहता का कहना है कि बाजार को जिस बजट का इंतजार था वो आ चुका है और बाजार की उम्मीदों के अनुरूप ही आया है। आज बाजार ने इससे तेजी की दिशा भी ली है। सरकार ने हाउसिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए काफी कदम उठाए हैं। सेविंग्स बढ़ाने के लिए जो कदम लिए हैं उनसे भी कुछ खास सेगमेंट जैसे हाउसिंग और रियल सेक्टर के लिए काफी अच्छी शुरुआत हो सकती है।


एमएंडएम के ऑटोमोटिव डिवीजन के ईडी और प्रेसिडेंट पवन गोयनका का कहना है कि बाजार में कोई बहुत बड़ा ऐलान ना होने के बावजूद सभी वर्गों के लिए काफी कुछ कहा गया है। डायरेक्ट टैक्स में कटौती की उम्मीद ना होने के बाद भी इनमें कमी की गई है जो काबिलेतरीफ है। इसके अलावा वित्तीय घाटा को भी काबू करने की बात कही गई है जिससे निवेशकों का भरोसा बाजार में बनेगा। इस बजट से ग्रोथ के लिए एक दिशा मिल रही है और सरकार की निवेशक को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता नजर आ रही है।


पवन गोयनका के मुताबिक इस बजट से इंडस्ट्री को अच्छे संकेत मिल रहे हैं और भरोसा है कि ज्यादा से ज्यादा निवेशक इंडस्ट्री में निवेश करने के लिए आगे आएंगे।


बीएसई के मेंबर दीपेन मेहता का कहना है कि बजट में कोई बहुत बड़ी घोषणा नहीं हुई है और कोई नए स्कीम, प्रोग्राम का ऐलान नहीं किया है। सब्सिडी के मोर्चे पर भी कुछ खास निकलकर नहीं आया है। सरकार अपने खर्चे और वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए कहां से पैसा लाएगी इस पर स्पष्टता नहीं आई है। बजट में सभी सेक्टर के लिए कुछ ना कुछ देने की असफल कोशिश की गई है और किसी खास सेक्टर को उबारने के लिए कुछ नया नहीं है। मोदी बजट का जितना इंतजार था उसके विपरीत इस बजट को कुल मिलाकर बस ठीकठीक कहा जा सकता है।


सबसे ज्यादा फायदा एफआईआई को हुआ है और घरेलू निवेशकों के लिए कोई साफ ऐलान नहीं किया गया है। एफआईआई को पूरी छूट दी गई है कि वो जो भी निवेश करेंगे वो कैपिटल गेन्स में जाएंगे। लेकिन 80सी के तहत निवेश सीमा बढ़ाने को एक अच्छा कदम माना जा सकता है।


भारतीय बाजार विदेशी बाजारों के मुकाबले आकर्षक लग रहे हैं और इस बजट में एफआईआई को ही आकर्षित करने की कोशिश की गई है। बजट के बाद भी कोई नए स्टॉक और सेक्टर आकर्षक नहीं लग रहे हैं। हां तंबाकू इंडस्ट्री को थोड़ा धक्का जरूर लगा है जिससे इस सेक्टर में गिरावट देखी जा सकती है।


हीरानंदानी ग्रुप के निरंजन हीरानंदानी का कहना है कि हालांकि सरकार ने हाउसिंग सेक्टर और रियल एस्टेट सेक्टर के लिए काफी कुछ ऐलान किए हैं लेकिन इसके बावजूद कुछ कमियां रह गई हैं। चीन से हाउसिंग सेक्टर से मुकाबला करने के लिए अभी भी कुछ कदम उठाने की जरूरत है। सरकार ने इसके लिए शुरुआत जरूर की है और दिशा देने की कोशिश की है। 2.5 करोड़ घर बनाने के लिए काफी पूंजी की जरूरत है जिसकी उपलब्धता कहां से होगी इसके बारे में अभी स्पष्टता नहीं है।


हालांकि आरईआईटी का ऐलान होने से रियल्टी सेक्टर के लिए भारी पूंजी आएगी और बैंकों को भी रियल एस्टेट सेक्टर में पूंजी लगाने के लिए भरोसा मिलेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस बजट को 10 में से 7 अंक दिए जा सकते हैं।


प्रभुदास लीलाधर की अमीषा वोरा का कहना है कि सरकार ने कई सेक्टर पर ध्यान देने की कोशिश की है। जैसे रियल एस्टेट सेक्टर के लिए आरईआईटी की बात कही है तो उससे रियल्टी सेक्टर को फायदा होगा और उसके कर्ज कम होंगे। रियल्टी सेक्टर के कर्ज कम होने से बैकों के एनपीए भी घटेंगे। सरकार ने इंफ्रा, हाउसिंग, रियल एस्टेट, पावर, एग्रीकल्चर जैसे कई महत्वपूर्ण सेक्टर के लिए अच्छे ऐलान किए हैं और इनका फायदा इकोनॉमी की ग्रोथ बढ़ने के रूप में आगे चलकर मिलेगा।

गांवों को इंटरनेट से जोडऩे के लिए 500 करोड़ रूपए का आवंटन

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गांवों को इंटरनेट से जोडऩे के लिए 500 करोड़ रूपए का आवंटन

गांवों को इंटरनेट से जोडऩे के लिए 500 करोड़ रूपए का आवंटन

नई दिल्ली : सरकार ने 'डिजिटल भारत'पहल के तहत 500 करोड़ रूपए  का आवंटन करने की घोषणा की है। इसके तहत गांवों में ब्रॉडबैंड नेटवर्क लगाया जाएगा और हार्डवेयर तथा भारतीय साफ्टवेयर उत्पादों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा। 
 

 'डिजिटल भारत'पहल के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण इंटरनेट एवं प्रौद्योगिकी मिशन, सरकार गांवों में ब्रॉडबैंड की स्थापना पर ध्यान केंद्रित करेगी। हार्डवेयर व भारतीय साफ्टवेयर उत्पादों के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देगी। 

 जेटली ने संसद को सूचित किया ''साफ्टवेयर क्षेत्र के स्टार्टअप पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। गांवों में राष्ट्रीय ग्रामीण इंटरनेट एवं प्रौद्योगिकी मिशन सेवा तथा आईटी में प्रशिक्षण के लिए मैं 500 करोड़ रूपए आवंटित करने का प्रस्ताव करता हूं।'' 

एक अन्य कदम जिससे प्रौद्योगिकी फमो'को ज्यादा अवसर उपलब्ध होगा, वित्त मंत्री ने 100 स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव किया है। इसके लिए सरकार 7,060 करोड़ रपये प्रदान करेगी। लघु व मझोले उपक्रमों की आमदनी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने कहा कि विनिर्माण इकाइयों को अपने उत्पाद रिटेल व ई कामर्स प्लेटफार्म के जरिये बेचने की अनुमति होगी।

बकरे की अम्मा खैर मनाओ की कयामत जारी है।गुप्त तंत्रविधि के बजट में बोले खूब,कहा कुछ नहीं और जनता मस्त,भारत ध्वस्त,अमेरिका स्वस्थ।

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बकरे की अम्मा खैर मनाओ की कयामत जारी है।गुप्त तंत्रविधि के बजट में बोले खूब,कहा कुछ नहीं और जनता मस्त,भारत ध्वस्त,अमेरिका स्वस्थ।

पलाश विश्वास


एक अत्यावश्यक सूचनाः

जब यह आलेख लिख रहा हूं और समूचे बजट डाक्यूमेंट की पड़ताल करते हुए प्रासंगिक तथ्य आलेख से पहले अपने ब्लागों में पोस्ट करने में लगा हूं,इसके मध्य मेरठ के एसएसपी का फोन आया कि उन्हें मेरा कोई मेल मिला होगा,उसे दुबारा भेजने के लिए उन्होंने कहा है।मैंने निवेदन किया कि मुझे जो मेल आते हैं,मैं फारवर्ड करके डिलीट कर देता हूं।तब उन्होने कहा कि किसी को भी मेरठ मंडल से संबंधित कोई शिकायत हो तो वे सीधे उन्हें,यानी एसएस मेरठ को सीधे फोन कर सकते हैं इस नंबर परः911212660548

जनहित में यह सूचना जारी की जा रही है।

एसएसपी मेरठ का आभार इस पहल के लिए।


विशुद्ध गुप्त तंत्र विधि है भारत सरकार का मुक्ताबाजारी बजट।इसका कूट रहस्य खोलना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है।डान के मुखातिब है पूरा देश,लेकिन डान की शिनाख्त असंभव।अपराध के प्रत्यक्षदर्शी है सारा जहां।कत्ल हो गया।लेकिन लहू का कोई सूराग नहीं।कातिल हाथों में महबूब की मेंहदी है।


गुप्त तंत्रविधि के बजट में बोले खूब,कहा कुछ नहीं और जनता मस्त,भारत ध्वस्त,अमेरिका स्वस्थ।


गौरतलब है कि अमेरिकी विशेषज्ञों व कारपोरेट जगत के लोगों ने भारत की मोदी सरकार के पहले बजट का स्वागत किया है और कहा है कि यह सही दिशा में है तथा इससे रोजगार एवं आर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी। भारतीय अर्थ नीतियों पर निगाह रखने वाले इंडिया फस्र्ट ग्रुप के रोन सोमर्स ने वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा कल पेश बजट को मोदी सरकार का पहला शानदार बजट बताते हुए कहा कि  'यह संतुलित, नपा-तुला और सूझबूझ वाला बजट है।'


सोमर्स ने कहा, 'इससे अमेरिकी निवेशक भारत में हो रहे सकारात्मक बदलाव से फिर से उत्साहित हुए हैं।Ó उल्लेखनीय है कि नई सरकार ने बीमा और रक्षा क्षेत्र में विदेशी हिस्सेदारी सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी तक ले जाने की अनुमति दी है। सोमर्स ने कहा कि रक्षा क्षेत्र को खोलने से ही प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में सुविधा होगी। सेंटर फार स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के रिक रोसो ने कहा कि सरकार को इस अवसर का फायदा उठाकर रक्षा क्षेत्र में विदेशी भागीदारी को और ऊपर करना चाहिए था तथा आयकर धिनियम में 2012 में किए गए उस संशोधन को रद्द करना चाहिए था जो पिछली तारीख से प्रभावी बनाया गया है।


लेकिन उन्होंने कहा कि इस बजट से निश्चित रूप से कुछ सुखद आश्चर्य मिले हैं जिसमें विदेशी निवेश की शर्तों में दी गई ढील शामिल है। 'मुझे लगता है कि इससे आने वाले वर्षों में भारत की विकास योजनाओं में अमेरिकी निवेश के लिए राह और चौड़ी हुई है।'  यूएस-इंडिया चैंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष करूण रिशी ने कहा, 'यह बजट रोजगार सृजन एवं वृद्धि दर में तेजी लाने की दिशा में उठाया गया सही कदम है।'



कारोबारी जगत की दृष्टि से किसी नई सरकार के पहले बजटको उससे इकनॉमी को मिलने वाली दिशा के आधारपर आंका जाता है, न कि आंकड़ेबाजी के आधारपर। 2014-15 के लिए अरुण जेटली के बजटमें एक साफ विजन है कि नई सरकार आने वाले वर्षों में इकनॉमी में इनवेस्टमेंट को बढ़ावा कितना मिलेगा,मुनाफा कितना गुणा बढ़ेगा,उसके नजरिये से राष्ट्रहित यह है।


कारपोरेट केसरिया बजट में इसका पूरा ख्याल रखा गया है।


पीपीमाडल का लोकलुभावन जलवाःआम बजटपेश करते हुए वित्त मंत्री ने भारत के सभी राज्यों में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे संस्थान खोले जाने की घोषणा की। जेटली ने कहा कि चार नए एम्‍स (आंध्र प्रदेश, पूर्वांचल, पश्चिम बंगाल और विदर्भ के लिए) की स्‍थापना की जाएगी. हर साल बिना एम्‍स वाले राज्‍यों में नए एम्‍स खोले जाएंगे। 12 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे. 12 मेडिकल कॉलेजों में डेंटल सुविधा मुहैया कराई जाएगी। पांच नए आईआईटी, पांच नए आईआईएम की स्‍थापना होगी। इसके अलावा, मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रस्‍ताव है।


इनमें दाखिले के लिए और बाकी नालेज इकोनामी में अपने वजूद के लिए लाखों की फीस और डोनेशन निनानब्वे फीसद की औकात से बाहर है,जाहिर है।


लोकलुभावन जलवाःभोग संस्कृति के मुताबिककोल्ड ड्रिंक्स और पान मसाला महंगे होंगे। तंबाकू उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई। सिगेरट, सिगार महंगी। विदेश से 45 हजार रुपये तक का सामान लेने पर कोई टैक्स नहीं। कंप्यूटर्स पार्ट्स और 1000 रुपए तक के जूते सस्ते होंगे। स्टील के सामान सस्ते होंगे। सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरण सस्ते होंगे। सभी तरह के टीवी सस्ते होंगे, 19 इंच से कम के एलसीडी में कस्टम ड्यूटी शून्य करने का प्रस्ताव। म्यूचुअल फंड्स पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स 10% से बढ़कर 20% होगा।


मीडिया के मुताबिक दरअसल, वित्त मंत्री ने मुश्किल दौर में बजटपेश किया है। इसके बावजूद उन्होंने ऐसे कदमों की घोषणा की है, जो अगले दो-तीन साल के दौरान विकास दर में रफ्तार का आधारबन सकती हैं।


मीडिया के मुताबिक वर्ष 2014-15 के बजटमें वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अर्थव्यवस्था की मरम्मत काआधारतैयार किया है। भारतीय अर्थतंत्र के हर संबद्ध क्षेत्र के भरोसे को मजबूत करने के लिए बजटप्रस्तावों में लघु और दीर्घकालिक उपायों का समावेश है।समग्र आर्थिक विकास यात्रा के प्रारंभ की आधारशिला है इस सत्र का आम बजट। हानिकारक वस्तुओं पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर खाद्य एवं अन्य वस्तुओं पर एक्साईज घटाकर कल्याण समाज की संरचना को सुदृढ़ीकरण का संकेत प्राप्त हुआ है।लोकसभा चुनावों के परिणाम सामने आते ही मोदी सरकार के आम बजटकी प्रतीक्षा शुरू हो गई थी। ... ये अतिरिक्त प्रयास योजनाओंऔर सुधार के उपायों के क्रियान्वयन में दिखने चाहिए।


अल्पमती नवउदारवादी धारा की सरकारों के मुकाबले जनादेश सुनामी मार्फत सत्ता में आयी गुजरात माडल की सरकार के चरित्र में केसरिया रंग के सिवाय कुछ भी बदलाव नहीं है,यह वाकई सत्तावर्ग के वर्णवर्चस्वी नस्ली संहारक चरित्र का रंगबदल है।बाकी जादू टोना टोटका टोटेम हुबहू वही।


जैसे मनमोहिनी ,प्रणवीय,चिदंबरमी बजटसुंदरी के होंठें में केसरिया रंगरोगन।


बंगाल में दो सदियों की भूमि सुधार आंदोलन की फसल बतौर बनी कृषक प्रजा पार्टी के स्थाई बंदोबस्त और जाति वर्ण नस्ल एकाधिकार के विरुद्ध जनविद्रोह से देशव्यापी राष्ट्रीय आंदोलन के गर्भपात हेतु जिन  महामना श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के अल्पसंख्यकों को बंगाल की खाड़ी में फेंक देने और भारत विभाजन हो या नहीं,बंगाल का विभाजन जरुर होगा,की सिंह गर्जना की थी और विभाजन एजंडा पूरा होने के बाद भारतीयजनसंघ के जरिये भारतीयकरण मार्फते हिंदू राष्ट्र की नींव डाली थीं,यबह कारपोरेट केसरिया बजट पहली बार गांधी,नेहरु और अंबेडकर के साथ साथ समूचे वाम पर उन्हीं श्यामाप्रसाद का ब्राजीली गोल पर जर्मन धावा है।


जाहिर है नमो महाराज से बड़ा कोई रंगरेज नहीं है भारतीय इतिहास में जो सबकुछ इसतरह केसरिया बना दें।अपनी दीदी भी बंगाल को सफेद नील अर्जेंटीना बनाने की मुहिम में हैं और उन्हें लोहे के चने चबान पड़ रहे हैं।


कल्कि का जलवा इतना जानलेवा,इतना कातिलाना कि सावन भी केसरिया हुआ जाये रे।घुमड़ घुमड़कर मेघ बरसै केसरिया।


जैसे कि उम्मीद थी,वोटरों को संबोधित करने की रघुकुल रीति का पालन हुआ है एकमुश्त वित्तीय प्रतिरक्षामंत्री के एफडीआई विनिवेश प्राइवेटाइजेशन बजट में।


गला रेंत दिया और बकरे को मरते दम चारा चबाने से फुरसत नहीं।


हमने पहले ही लिखा है कि मध्य वर्ग और निम्नमध्यवर्ग के साथ उच्चवित्तीय नवधनाढ्य मलाईदार तबके को खुश रखिये और मुक्तबाजारी जनसंहार नीतियों की अविरल गंगाधारा की निरंतरता निरंकुश छिनाल छइया छइया पूंजी का निखालिश कत्लेआम जारी रखिये,बजट के जरिये रणनीति यही अपनायी गयी है।इसी मुताबिक  वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को नरेंद्र मोदी सरकार का पहला बजटपेश किया। बजटमें जेटली ने नौकरीपेशा लोगों को थोड़ी राहत पहुंचाने की कोशिश की। आयकर में छूट की सीमा 50 हजार रुपये बढ़ा दी यानी अब ढाई लाख रुपये तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। हालांकि टैक्स की दरों में वित्त मंत्री ने कोई बदलाव नहीं किया है। इसी तरह 80C के तहत निवेश पर छूट की सीमा एक लाख रुपये से बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपये कर दी है। कर्ज पर घर खरीदने वालों को राहत पहुंचाते हुए वित्त मंत्री ने ब्याज पर छूट की सीमा डेढ़ लाख रुपये से दो लाख रुपये तक कर दी है।वहीं निवेश पर छूट की सीमा में भी इजाफा किया गया है। महिलाओं और बच्चों को सुविधाओं पर विशेष जोर, विश्वस्तर के शहरों का निर्माण, वरिष्ठ नागरिकों का कल्याण तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना गंगा की धारा को अविरल बनाने के लिए बजटमें विशेष प्रावधान किया गया है।


हमने लिखा था कि आर्थिक समीक्षा का आइना हो बजट,कोई जरुरी नहीं है।यह सिर्फ संसद और जनता के प्रति उत्तरदायित्व के निर्वाह की वैदिकी विधि है और बाकी बचा वही गुप्त तंत्र विधि।


बोले तो बहुत,लेकिन कहा कुछ भी नहीं।वैसे कहने बोलने को रहा क्या है,देश में लोकतंत्र और संविधान का तो सत्यानाश कर दिया है।हालांकि वित्त मंत्री ने रोजगार के अवसर और आर्थिक वृद्धि बढ़ाने तथा निवेशकों का विश्वास बहाल करने के लिए अनेक उपायों की घोषणा की है। महिलाओं और बच्चों को सुविधाओं पर विशेष जोर, विश्वस्तर के शहरों का निर्माण, वरिष्ठ नागरिकों का कल्याण तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना गंगा की धारा को अविरल बनाने के लिए बजटमें विशेष प्रावधान किया गया है।इसी सिलसिले में आवास ऋण पर ब्याज की कटौती की सीमा डेढ़ लाख से बढ़कर दो लाख रुपए। ---छोटे उद्यमों को प्रोत्साहन के लिए वर्ष में 25 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश पर 15 प्रतिशत निवेश भत्ते का प्रस्ताव। ---स्मार्ट सिटी के लिए 7,060 करोड़ रुपए का आवंटन। ---धार्मिक शहरों के लिए प्रसाद व विरासत वाले शहरों के लिए ह्दय का शुभारंभ।


जनता खुश कि बजटमें 7060 करोड़ रुपये नए शहरों के लिए। 1,000 करोड़ रुपये से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरूआत। 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान के तहत सभी घरों में शौचालय सुविधा। दीनदयाल ग्रामीण ज्योति योजना के तहत बिजली उपलब्ध कराने के लिए 500 करोड़ रुपये के साथ शुरूआत होगी। 100 करोड़ रुपये के साथ आदिवासियों के लिए वनबंधु कल्याण योजना। सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए 200 करोड़ रुपये। बीमा क्षेत्र में एफडीआई 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने का प्रस्ताव। ईपीएफ योजना के तहत श्रमिकों के लिए न्यूनतम 1000 रुपये की पेंशन। 2014-15 में वित्तीय घाटा कम करके 3 फीसदी पर लाएंगे।


देहात और कृषिजीवी बहुसंख्य मूक भारत के चौतरफा सत्यानाश का जो एजंडा आया है,वह अंध भक्त बजरंगी पैदल भेड़ सेनाओं की निर्विकल्प समाधि और सत्ता वर्ग से नत्थी चेतस तेजस केसरिया मलाईदार तबके के चरवाहों और गड़ेरियों के चाकचौबंद इंतजामात के मद्देनजर निर्विरोध है।


वोटबैंक समीकरपण साधने के लिए लेकिन  दिल्ली में पानी क्षेत्र में सुधार के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। जेटली ने कहा कि दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिए बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए 200 करोड़ रुपये और पानी क्षेत्र में सुधार के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। अरुण जेटली ने आम बजट 2013-14 प्रस्तुत करते हुए अहमदाबाद और लखनऊ की मेट्रो परियोजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने की भी घोषणा की।


उम्‍मीदों की इस बजटमें अरुण जेटली ने उत्‍तर प्रदेश का ध्‍यान रखा और करते हुए लखनऊ की मेट्रो परियोजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने की घोषणा की। हालांकि ये पूरी राशि अहमदाबाद और लखनऊ में मेट्रो कार्य के लिए दी गई है। बजटपेश करने के दौरान अरुण जेटली ने कहा कि मैं सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) के अंतर्गत अहमदाबाद और लखनऊ की मेट्रो रेल परियोजनाओं के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि आवंटित किए जाने की घोषणा करता हूं।


बजट में आपका टैक्स कितना बचेगा,मीडिया का थीमसांग यही है। आज के तमाम अखबारों में कड़वी दवा न मिलने का विश्वकप वंचित ब्राजीली हाहाकार है।


अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए सब्सिडी असुरों का एकमुश्त वध ने होने का क्रंदन है।बाजार की सारी उछलकूद है।


मजा देखिये,जनता बचे हुए नोटों का हिसाब लगाकर मस्त,असली भारत ध्वस्त और अमेरिका स्वस्थ।


गौरतलब है कि अमेरिका जब राजनीतिक बाध्यताओं के बहाने पूर्ववर्ती गुलामवंशीय सरकार की नीतिगत विकलांगकता के बहाने केसरिया कारपोरेट सुनामी की पहल कर रहा था,तब भी अमेरिका और उसके सहयोगी देश में अवांछित था गुजरात माडल।


आज उसी गुजरात माडल से समूचा पश्चिम बल्ले बल्ले है।


इस बजट में श्यामाप्रसाद मुखर्जी के युद्धविजय की खुशबू जितनी है,भारत अमेरिकी परमाणु संधि,आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका और इजराइल के वैश्विक युद्ध में महाबलि गौरिक भारत की भागेदारी से नियत अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था की जमानत पर रिहा होने का नशा उससे कहीं ज्यादा है।


भारतीय उद्योग,वाणिज्य,कारपोरेट के सुधार सांढ़ों के उतावलेपन के मुकाबले में अंकल सैम की गुलमोहर हुई मुस्कान को समझिये।


बजट में जो निर्विरोध सत्ता जाति वर्चस्वी नस्ल वर्चस्वी वर्ग वर्चस्वी बुनियादी एजंडा पास हो गया,वह प्रतिरक्षा बीमा समेत सारे क्षेत्रों,महकमों और सेवाओं में निरंकुश विदेशी पूंजी प्रवाह की सहस्रधारा है,जिसे संभव न बना पाने की सजा बतौर मुक्तबाजार के ईश्वर से स्वर्ग का सिंहासन छीन लिया गया।


इस पर अब सर्वानुमति है।


बजट में जो निर्विरोध सत्ता जाति वर्चस्वी नस्ल वर्चस्वी वर्ग वर्चस्वी बुनियादी एजंडा पास हो गया,वह गुजरात का पीपीपी माडल है जो बिना बजट के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश माध्यमे कृषिजीवी भारत के महाश्मशान कब्रिस्तान रेगिस्तान पर अंधाधुंध शहरीकरण का लक्ष्य हासिल करेगा।


इसीलिए एक साथ स्मार्ट सिटीज की सेंचुरी तेंदुलकरी।1930 तक दस लखिया पचास शहर बनेंगे इसीतरह।


इन्ही उन्मुक्त कत्लगाहों को जोड़ने के लिए एफडीआई प्लस पीपीपी माडल,जिसका कोई खुलासा किसी बजट में होना नहीं है और अरबों की कारपोरेट राजनीतिक कमाई की कोई कैग रपट जारी नहीं होनी है और न किसी घोटाले और न किसी घपले का झमेला है।


इसीलिए  इन्फ्रास्ट्रक्चर ... इन परियोजनाओं को मंजूरी के लिए अब योजनाआयोग के दरवाजे पर दस्तक देने की जरूरत नहीं होगी। ... वही धन आवंटन की सिफारिश करता था, जिसके आधारपर वित्त मंत्रालय की ओर से धन का आवंटन होता था


इस पर भी सर्वानुमति हो गयी।


पहले जमाने का बजट याद करें,अखबारों के पेज रंगे होते थे कि क्या सस्ता होगा,क्या महंगा।आज के अखबारों को देखें,बमुश्किल ग्राफिक समेत दो पैराग्राफ।


बजट में जो निर्विरोध सत्ता जाति वर्चस्वी नस्ल वर्चस्वी वर्ग वर्चस्वी बुनियादी एजंडा पास हो गया,वह मूल्यों,शुल्कों,किरायों पर सरकारी हस्तक्षेप निषेध है।


शत प्रतिशत विनियंत्रण,शत प्रतिशत विनियमन।हंड्रेड पर्सेंट लव लव लव कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज के लिए।


करछूट के लाखों अरबों करोड़ का किस्सा अब बेमतलब है।


करछूट धाराप्रवाह है।


मुनाफा धाराप्रवाह है।


कालाधन धारा प्रवाह है।


साकी भी है और शराब भी।


हुश्न भी है और नशा भी।


एफडीआई भी है और पीपीपी भी है।


तेल गैस, कोयला, उर्वरक, बिजली, रेलभाड़ा,स्कूली फीस, चिकित्सा व्यय,परिवहन खर्च,चीनी,राशन से लेकर मूल्यों,शुल्कों और किराया सरकार का सरदर्द नहीं है,बाजार की मर्जी है।


तो नवधनाढ्यों को गदगदायमान कर देने के अलावा वित्तमंत्री को बजट में कहना क्या था आखिर।


लोकगण राज्य के असान पर जश्नी कार्निवाल के शोर शराबे में सन्नाटा बहुत है।


विनिवेश की दिशा पहले से तय है।


गोपनीय तंत्र प्राविधि का सबसे संवेदनशील कर्मकांड,जो अटल जमाने की शौरी विरासत है।बचे हुए सरकारी उपक्रमों जैसे स्टेट बैंक आफ इंडिया समेत तमाम बैंकों,कोल इंडिया,जीवन बीमा निगम की पूंजी को बाकी सरकारी उपक्रमों के विनिवेश में खपाने की रणनीति है,उन्हें फिनिश करने चाकचौबंद इंतजाम है।


सबसे माफिक सहूलियत यह है कि सरकारी उपक्रमों,विभागों के कर्मचारी अफसरान और यहां तक कि ट्रेड यूनियनों को भी यह मारक तंत्रविधी समझ में नहीं आ रही।


सेल आफ हो रहा है,पता नहीं।


2000 में ही भारत पेट्रोलियम का सेल आफ तय हो गया।आयल इंडिया और ओएनजीसी,कोल इंडिया,सेल,एसबीआई,एलआईसी,एअर इंडिया,रेलवे,डाक तार,सरकारी बिजली कंपनियों का विनिवेश जारी है,खुदै शिवजी के बाप को नहीं मालूम।


घात लगाकर कत्ल कर देने का नायाब तरीका है यह।


जाने माने कारपोरेट वकील हैं मान्यवर अरुण जेटली और आप उम्मीद कर रहे हैं कि वे विनिवेश और निजीकरण के रोडमैप खोलकर नाम पुकार पुकार कर कह देंगे कि कब किसका कत्ल होना है।


इसीतरह सब्सिडी खत्म करने का मामला है।


विनियंत्रण और विनियमन,एफडीआई और पीपीपी गुजरात माडल के बावजूद जो लोग अब भी सब्सिडी जारी रहने की खुशफहमी में हैं,वे फौरी करछूट से बल्ले बल्ले निम्न मध्यवर्गीय मौकापरस्त मानसिकता के लोगों से भी बुरी हालत में है कि किसी को नहीं मालूम कि इस मुक्त बाजार के तिलिस्म में जान माल इज्जत की गारंटी है ही नहीं।


रोजगार, आजीविका, नागरिकता, जल जंगल जमीन, नागरिक अधिकार मानवाधिकार के बदले हम सिर्फ भोग के लिए मरे जा रहे हैं।यह भोग पल पल कैसे दुर्भोग में तब्दील हो रहा है,उसका अंदाजा नहीं है।


टैक्स बचाने के फिराक में आप भी निवेशक बनने का विकल्प चुनते हुए सेनसेक्सी बाजार के आत्मगाती दुश्चक्र में फंसने वाले हैं और हश्र वहीं बीमा प्रीमियम का होना है।


मर गये तो वाह वाह,हो सकता है कि कवरेज का भुगतान हो गया,वरना क्या होता है,बीमा ग्राहक भुक्तभोगी जानते हैं।


यह जीरो बैलेंस मेडिकल इंश्योरेंश माध्यमे किडनी दान .या बिना प्रयोजने जांच पड़ताल डायगनोसिस और मेजर आपरेशन का खुल्ला खेल है।


कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज में आम आदमी की औकात क्या जो धेला भी जेब में बचा लें।


जेबकटी कला का यह चरमोत्कर्ष है।


हम शुरु से नागरिकता संशोधन कानून को मुक्त बाजार का टूल बता रहे हैं।यह समझने वाली है कि अंधाधुंध शहरीकरण,निरंकुश विस्थापन और जनसंख्या सफाये की इस आटोमेशन क्रांति से न कृषि उत्पादन बढ़ सकता है ,न औद्योगिक उत्पादन और न ही श्रमआधारित मैन्युफैक्चरिंग।


गधा भी समझता होगा कि फालतू घास का मतलब है बहुत ज्यादा कमरतोड़ बोझ।

टिइंसान की बुद्धि गधे से तेज है।


लेकिन गधा मौकापरस्त नहीं होता।इसीलिए पिटता है।गधा घोड़ा भी नहीं हो सकता।लेकिन इंसानों की मौजूदा नस्ल घोड़ा बनने की फिराक में है।


जिंदगी अब रेस है।इस रेस में जो आगे निकल जाये वही सिकंदर बाकी चुकंदर।


हम पहले ही लिख चुके हैं कि औद्योगिक क्रांति की उत्पादन प्रणाली में श्रम अनिवार्य है।मानवसंसाधन प्राकृतिक संसाधनों के बराबर है।इसीलिए औद्योगिक क्रांति के दरम्यान श्रमिक हितों की परवाह पूंजीवाद ने खूब की और इतनी की कि मजूर आंदोलनों को बदलाव का कोई मौका हाथ ही न लगे।


अब आटोमेशन तकनीनी क्रांति है।


मनुष्य फालतू है।


कंप्यूटर, तकनीक, मशीन,रोबोट ही आटोमेशन के आधार।


निजीकरण और एफडीआई,विनेवेश और पीपीपी की प्रासंगिकता यही है।


उद्योग और पूंजी में अच्छी मुद्रा के प्रचलन से बाहर हो जाने का समय है यह।


भारी विदेशी देशी पूंजी के आगे मंझोली और छोटी पूंजी का असहाय आत्मसमर्पण का समय है यह।


अभी बनिया पार्टी की धर्मोन्मादी सरकार छोटे कारोबारियों को केसरिया बनाने के बाद कभी भी खुदरा कारोबार में शत प्रतिशत एफडीआई का ऐसान कर सकती है कभी भी।


बहुमती स्थाई सरकार है।


विधानसभाओं के आसण्ण चुनावों में जनादेश लूटने के बाद खुल्ला मैदान है,फिर देखें कि सुधारो की सुनामी को कौन माई का लाल रोक लेता है।


इस आटोमेशल तकनीकी क्रांति में उद्योग कारोबार में लगे फालतू मनुष्यों के सफाये का एजंडा सबसे अहम है और इसीलिए औद्योगिक क्रांति के परिदृश्य में श्रमिक हितों के मद्देनजर पास तमाम कायदे कानून खत्म किये जाना है ताकि स्थाई सुरक्षित नौकरियों के बजाय असुरक्षित हायर फायर की तकनीकी क्रांति को मुकम्मल बानाया जा सकें।


अरुण जेटली ने कृषि उत्पादन,औद्योगिक उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के उपाय किये हैं,मीडिया का यह प्रचार मिथ्या है।


शैतानी गलियारों और स्मार्ट सिटीज ही नहीं, सेज को भी पुन्जीवित किया गया है।


उद्यम के लिए तीन तीन साल की कर छूट,लेकिन छोटे उद्यमियों के लिए नहीं,कम से कम पच्चीस हजार करोड़ का निवेश कीजिये तब।


सेज के बारे में बहुत लिखा कहा गया है।उन्हें दोहराने की जरुरत नहीं है।


तो समझ लीजिये,खेतों,खलिहानों,वनों,नदियों,घाटियों यानि की शिखरों से लेकर समुंदर तक इस मिसाइली शहरीकरण के पीपीपी एफडीआई चाकचौबंद इंतजाम में कृषि का विकास कितना संभव है।


तो समझ लीजिये कि श्रम और मनावसंसाधनं के सफाये के साथ प्राकृतिक संशाधनों को एक मुशत् छिनाल विदेशी पूंजी और गुजरात माडल के हवाले करके आटोमेशन,अंग्रेजी और तकनीक बजरिये कैसे औद्योगीकरण होगा।


मैन्युफैक्चरिंग की तो कहिये ही मत।


सब्सिडी खत्म करने के लिए आधार असंवैधानिक योजना ऩागरिकता का पर्याय बना दिया गया और अब नई सरकार भगवा डिजिटल देश बनाने चली है और फिर वही बायोमेट्रिक डिजिटल अनिवार्यता से जुड़ी नागरिकता और अनिवार्य सेवाएं,जान माल की गारंटी।आधार योजना को खत्म करने के बजाय उसे बहुआयामी बनाया जा रहा है।


ठंडे बस्ते जाती दिखाई दे रही यूपीए सरकार की महत्वकांशी योजना 'आधार कार्ड'प्रॉजेक्ट को नई सरकार ने जारी रखने का फैसला किया है। चालू वित्त वर्ष में यूआईडी प्रॉजेक्ट के लिए 2,039 करोड़ रुपये दिए गए हैं।

बुधवार को संसद में पेश बजट दस्तावेज में कहा गया है, 'यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा चलाए जा रहे यूनीक आइडेंटिटी प्रॉजेक्ट के लिए 2014-15 में 2,039.64 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।'पिछले फाइनैंशल इयर में इस प्रॉजेक्ट के लिए 1,550 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।

यूआईडीएआई का गठन साल 2009 में किया गया था। इसका चेयरमैन नंदन नीलेकणि को बनाया गया था। यह अथॉरिटी प्लानिंग कमिशन के तहत आती है।



बकरे की अम्मा खैर मनाओ की कयामत जारी है।


बीबीसी के मुताबिक गुरुवार को पेश किए गए आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 28 योजनाओं के लिए सौ करोड़ रुपए की राशि देने का प्रस्ताव दिया. पेश है इन सौ करोड़ी योजनाओं की सूची.


1. जनजातियों के लिए 'वन बंधु कल्याण योजना'


2. 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना

3. 'स्टार्ट अप विलेज आंतरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम'

4. संचार संबद्ध संपर्क तथा ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के रूप में वास्तविक कक्षाएं स्थापित करने के लिए सौ करोड़ की राशि का प्रस्ताव

5. 'सुशासन' के संवर्धन के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा जिसके लिए 100 करोड़ रुपए राशि अलग से रखने का प्रस्ताव

6. सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए 100 करोड़ रुपए आबंटन का प्रस्ताव

स्कूली छात्रा

7. लखनऊ-अहमदाबाद में पीपीपी के तहत मेट्रो रेल स्थापित करने के लिए 100-100 करोड़ रुपए की राशि अलग से रखने का प्रस्ताव.

8. मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपए अतिरिक्त राशि स्कूली शिक्षा विभाग को.

9. सौ करोड़ रुपए की राशि से असम और झारखंड में कृषि अनुसंधान संस्थानस्थापित किए जाएंगे.

10. कृषि प्रौद्योगिकी अवसरंचना निधि स्थापित करने के लिए 100 करोड़ रुपए अलग से रखने का प्रस्ताव.

11. किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड देने की योजना के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रस्ताव.

मदरसे की छात्रा

12. राष्ट्रीय अनुकूलन निधि स्थापित करने के लिए 100 करोड़ की राशि देने का प्रस्ताव.

13. किसान टीवी शुरू करने के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

14. राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा प्राधिकरण के लिए 100 करोड़ की प्रारंभिक निधि देने का प्रस्ताव.

15. अल्ट्रा मॉडर्न सुपर क्रिटिकल कोल आधारित ताप विद्युत प्रौद्योगिकी के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

16. नहरों के किनारे एक मेगावाट सौर पार्कों के विकास के लिए अतिरिक्त 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

17. प्रिंसेज पार्क में युद्ध स्मारक स्थापित करने के लिए 100 करोड़.

पवित्र गंगा

18. रक्षा प्रणाली के अनुसंधान और विकास में सहायक शैक्षिक और वैज्ञानिक संस्थाओं के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

19. राष्ट्रीय तीर्थस्थल पुनरोद्धार और अध्यात्मिक परिवर्धन कार्यक्रम शुरू करने के लिए 100 करोड़.

20. पुरातात्विक स्थलों के परिरक्षण के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

21. नदियों को जोड़ने की परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

22. नदियों के घाटों के विकास और केदारनाथ, हरिद्वार, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, पटना और दिल्ली में घाटों के सैन्दर्यीकरण के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

23. मणिपुर में खेल विश्वविद्याल स्थापित करने के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

24. आगामी एशियाई खेलों में भारत की पुरुष और महिला खिलाड़ियों के प्रशिक्षणके लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

25. युवा रोजगार कार्यालयों को करियर केंद्रों के रूप में पुनर्गठित करने के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

26. युवाओं में नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए युवा नेतृत्व कार्यक्रम के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

27. हिमालय अध्यन के लिए उत्तराखंड में राष्ट्रीय केंद्र खोलने के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.

28. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में ऑर्गेनिक खेती के विकास के लिए 100 करोड़ देने का प्रस्ताव.



युवा पीढ़ियों के साथ गद्दारी,छीन लिया रोजगार! मित्रों मुझे इस निर्मम,अमोघ भविष्यवाणी के लिए माफ करना कि चायबागानों, कारखानों,खनन परियोजनाओं .खुदरा कारोबार,खेतों खलिहानों के साथ साथ अबकी दफा मृत्यु जुलूस का सिलसिला आईटी सेक्टर में भी शुरु होने ही वाला है।यही है दूसरे चरण का आर्थिक सुधार।

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युवा पीढ़ियों के साथ गद्दारी,छीन लिया रोजगार!

मित्रों मुझे इस निर्मम,अमोघ भविष्यवाणी के लिए माफ करना कि चायबागानों, कारखानों,खनन परियोजनाओं .खुदरा कारोबार,खेतों खलिहानों के साथ साथ अबकी दफा मृत्यु जुलूस का सिलसिला आईटी सेक्टर में भी शुरु होने ही वाला है।यही है दूसरे चरण का आर्थिक सुधार।


पलाश विश्वास

युवाजनों का कोई वर्गहित नहीं होता। सत्ता और सत्तावर्ग के विरुद्ध सबेस तेजी से लामबंद होते हैं युवाजन।


इस देश में किसानों और मजदूरों के साथ युवाजनों के मोर्चाबंद हो जाने का इतिहास भी है। औपनिवेशिक शासन के खिलाफ जनविद्रोह में युवाजनों के बलिदान की गौरवगाथाओं का शायद कोई अंत नहीं है।


आजादी के बाद सत्ता की राजनीति से सबसे पहले मोहभंग हुआ तो युवाजनों का ही।सत्तर के दशक में युवा चेतना के विविध आयाम खुले।


लेकिन हर हाल में युवापीढ़ियों के साथ विस्ऴासघात की परंपरा है।

इस बार में हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं।


ताजा विश्वासघात केसरिया समनामी की उपज हैं।


युवा हाथों को रोजगार बना देने के वायदे के साथ विकास का कामसूत्र थमा दिया है सत्तावर्ग ने और उपभोक्ता संस्कृति में निष्णात करने के हर इंतजाम कर दिये।


तो धर्मन्मादी राष्ट्रवाद की पैदल सेना में भी हीरावल दस्ता वहीं  युवापीढ़िया है ,जिन्हें लामबंद करने के लिए रोजगार कार्ड का हर कदम पर इस्तेमाल होता रहा।


जैसा कि हमने पहले ही लिखा है और साठ के दशक से अबतक अपने प्रत्यक्षदर्शी ब्यौरा पेश किया है,तकनीक ने रोजगार छीन लिए हैं।


क्योंकि तकनीक के जादू ताबूत में कैद है उत्पादन और उत्पादन प्रणाली तकनीकी क्रांति ने खत्म कर दी है।


विकास के कामसूत्र में तकनीकी दक्षता के बदले युवा पीढ़ियों को ज्ञान से वंचित कर दिया गया है।


नौलेज इकोनामी ने रोजगार दफ्तरों का सफाया कर दिया है।


कैंपस रिक्रूटिंग से आम युवाजनों की नियुक्ति असंभव है जबकि ग्लोबल मुक्त बाजार में नियुक्ति दरअसल होती नही है।जो है फायर हायर है।


भोग के दुश्टक्र में सांढ़ संस्कृति की पैदल सेनाओं में तब्दील है युवा पीढ़ियां।


आज हमारी लंबे अरसे बाद प्रेमचंद के बाद हमारे नजरिये से सबसे बड़े भारतीय कहानीकार शेखर जोशी से बात हुई।


उनकी विख्यात कहानी बदबू है।


बदबू का अहसास मर जाना ख्वाबों के मर जाने से भी ज्यादा खतरनाक है।


इंद्रियों से मुक्त युवापीढ़ियों के लिए शेखर जोशी को पढ़ना इसलिए अनिवार्य है कि वे पचास के दशक से अविराम कहानी विधा में भारतीय उत्पादन प्रणाली की समग्र तस्वीर आंकते रहे हैं।


उनकी कहानी दाज्यू नवधनाढ्य वर्ग की सांढ़ संसकृति की पदचाप है भयंकर तो उनकी प्रेम कहानी समझी जाने वाली कोसी के घटवार का विशुद्ध देशी उत्पादन अब सिरे से ब्रांडेड है और पहाड़ों में भी पनचक्कियों का दर्शन मिलना मुश्किल है।


ज्ञान कभी फेल नहीं होता।


ज्ञान तकनीकी दक्षता में बाधक नहीं है।


लेकिन तकनीकी दक्षता ने मुक्तबाजार भारत में निषिद्ध कर दिया है ज्ञान की खोज,उच्चशिक्षा और शोध।


निषिद्ध हो गया है मुल्यबोध और विवेक।


जोड़ घटाव की अनिवार्यशिक्षा।


डिग्रियां इफरात बंट रही है आब्जेक्टिव,बिना डिटेल,बिना समग्रता,बिना टेक्स्ट,बिना गहराई कीय़सतही भ्रामक सूचनाओं के साथ तकनीकी दक्षता के साथ बंद गली में कैद हैं युवापीढ़ियां।


जिन्हें भारतीय उत्पादन प्रणाली के बारे में कुछ भी नहीं मलूम और इसके महाविनाश का कोई अंदाजा उन्हें न हो,इसका पूरा इंतजाम है।


शेखर जी बहुत मतव्ययी कथाकार हैं और भारतीयलेखकों में बांग्ला के नवारुण भट्टाचार्य के अलावा मितव्ययी शब्दशिल्पी उनकी टक्कर का कोई है ही नहीं।


हमें सत्तर के दशक से उनका अभिभावकत्व मिला,लेकिन शब्दों को बांदने की उनकी विरासत में मैं कहीं नहीं हूं।मेरा वृत्तांत लंबा से बेहद लंबा है  और शायद इसलिए भी मुझे उनके किफायती लेखन का अमोल मोल मालूम है।


गौरतलब है कि यह लेख कतई शेखर जोशी के कृत्त्व व्यक्तित्व पर  नहीं है।रोजगार के सिलसिले में उत्पादन प्रणाली में आये बदलाव को चिन्हित करने के लिए उनकी कहानियां मददगार हैं,विनम्र निवेदन यही है।


तकनीक हर दस साल में बदलती है।


कंप्यूटर को रोजगार का पर्याय बना देने का नतीजा यह है कि आईआईटी में गणित से लेकर इंजीनियरंग के छात्र भी हर दूसरी कैंपस रिक्रूटिंग के बाद आईटी में घुसे चले जाते हैं।


आर्थिक सुधारों के पहले चरण में कृषि की हत्या करके विकास कामसूत्र के तहत विनियंत्रित विनियमित सेवाक्षेत्र और नालेज इकोनामी का विस्तार हुआ।


आउटसोर्सिंग और ब्रेन ड्रेन को युवा पीढ़ी के अंतिम हश्र में तब्दील कर दिया गया।


आईटी क्रांति के डिजिटल देश में अब सेल्स एजंट,शेयर दलाल,मार्केटिंग और कालसेंटर को छोड़ कहीं रोजगार के अवसर नहीं हैं।


केसरिया कारपोरेट राज जो युवा पीढ़ियों की पीठ पर सवार होकर सत्ता में आयी,वह इन सीमाबद्ध बाड़ाबंदी में भी रोजगार खत्म करने का पुख्ता इंतजाम कर रही है।


कंप्यूटर आटोमेशन के जरिये उत्पादन प्रणाली से फालतू श्रमशक्ति के सफाये का पर्याय रहा है अब तक के ग्लोबीकरण में।


लेकिन कंप्यूटर के लिए भी मानव संसाधन जरुरी है और छिनाल पूंजी मानव संसाधनों का उसीतरह कत्लेआम कर रही है,जैसे प्राकृतिक संसाधनों का।


आईटी भी अब रोबोटिक हुई जा रही है,जहां मनुष्य गैर जरुरी है।


ममता बनर्जी ने एक करोड़ रोजगार सृजन के अवसरों के वायदे के साथ वामासुर वध किया तो नमोमहाराज ने हर चुनावी सभा में समस्त युवा पीढ़ियों को रोजगार देने का सब्जबाद दिखाकर वोट लूटे हैं।


ममता भी पीपीपी माडल है और गुजरात का माडल भी पीपीपी है।


पीपीपी में रोजगार नहीं होते ,हायर फायर से चलता है पीपीपी माडल ।


एफडीआई में भारत को हीरक चतुर्भुज बनाया जा रहा है।


हर सेक्टर में एफडीआई और हर क्षेत्र में विनिवेश।


औद्योगीकरण के नाम पर शहरीकरण।


बहुराष्ट्रीय कंपनियां और देशी विदेशी कंपनियां रोजगार बांटने के लिए पूंजी लगायेगी और निवेशकों की अटल आस्था रोजगार के धर्मस्थल बनायेंगे,केसरिया कारपोरेट कायाकल्प का बुनियादी सिद्धांत यही है।


विकास का कामसूत्र भी यही।


यह बिना रक्तपात गुजरात नरसंहार है,जिसके खिलाफ मानवाधिकार का कोई मामला बनता नहीं है।


इस मामले में आगे खुलासा के लिए आज के इकानामिक टाइम्स की लीड खबर पहले पढ़ लें,जिसमें साफ लिखा है कि बाकी सेक्टरों की तरह आईटी में भी आटोमेशन हो रहा है।आउटसोसर्सिंग आधारित आईटी उद्योग में भी आटोमेशन।


डालर कमाने की अंधी दौड़ में महज अति दक्ष आईटी विशेषज्ञों की प्रासंगिकता है।


गली मोहल्लों में नालेज इकानामी के निजी विश्वविद्यालयों,कोचिंग के विनियमित विनियमित मशरूम उद्योग से नेकलने वाली आईटी फौज की फिर वही हालत है जो अदक्ष,अपढ़,अर्धपढ़,देशी गैरअंग्रेजी जनता की नैसर्गिक आजीविका का हश्र हुआ है।


बूम बूम आईटी से लाखों कमाने,अमेरिका सिंगापुर हांगकांग दुबई में डालरों की कमाई आम युवाजनों के साथ आम कंप्यूटर आपरेटरों औप आईटी इंजीनियरों के लिए भी अब मृगमरीचिका है।


मनुष्य का हर काम करने के लिए रोबोटिक्स पेश है जो इंडिया के डिजिटल होते न होते कंप्यटरों के इलेक्ट्रानिक वेस्ट महामारी में तब्दील कर देगी।


डिजिटल इंडिया ईकामर्स के लिए हैं।बिना एफडीआई एफडीआई डायरेक्च टू होम।

जो नौकरियों के साथ साथ कारोबार और खेतों में भी रोजगार खत्म करेगा।


नियोक्ताओं की नीति है हायर स्किल्ड मिनिमम जैसे गवर्नेंस मिनिमम है।


इकनामिक टाइम्से ने खोलकर आईटी महाविस्फोट के कामसूत्र का खुलासा किया है कि कैसे कम से कम मानवसंसाधन से अधिक से अधिक डालर कमाये जा सकें और इस खातिर अधिक से अधिक प्रोत्साहन और रियायतें हासिल की जा सकें।


इस सिलसिले में शेखर जोशी प्रसंग महज संजोग है जो संजोक से बेहद प्रासंगिक भी है।

कल रात राजीव के यहां ठहरे।राजीव वैसे बहुत कम बोलते हैं।


कल उसने कोई ज्यादा बातें की नहीं।


बाते नहीं हुईं तो हमने अनहद का शेखर जोशी अंक पढ़ लिया।शेकर जी के समकालीन लोगों में से ज्यादातर अब नहीं हैं और जिन्हें मैं भी जानता रहा हूं सिर्फ शेखर जी के परिवार में शामिल होने की वजह से।सतीश जमाली जी का लेख है और बाकी युवा लोग हैं। प्रणयकृष्ण ने उनकी कविताओं पर लिखा है।


लेकिन इसमें प्रतुल ने जो 100 लूकर गंज का भूगोल इतिहास रच दिया,वह मुझे 1979 में ले गया जब मैं ईजा के संसार में शामिल ता और पूरा इलाहाबाद हमारा था।


बाकी राजीव का लेख कोसी का जोशी,जयपुर का कौल अद्भुत आख्यान है जिसमें सिनेमा और साहित्य एकाकार है।


देर रात तक हम डीएसबी जमाने की तरह शेकर जी की कहानियों पर बातें करते रहें तो सुबह ही संजू से फोन नंबर लेकर शेखर जी से बात की।उन्होंने छूटते ही कहा कि प्रतुल तुम्हारे बेहद पास है,शिलांग होकर आओ।वह अकेला है।


वे बोले कि ईजा के निधन के बाद साल भर उन्होंने कुछ लिखा पढ़ा नहीं है और अब फिर कुमांऊनी में लिख रहे हैं।उन्हींसे पता चला कि प्रयाग जोशी अब हल्दवानी बस गये हैं।


राजीव और मीान भाभी आज ही समान समेटकर दिल्ली भेजने की कवायद में लगे हैं और बच्चे दिल्ली जाने से पहले अपने स्कूल गये हैं तो जल्दी जल्दी घर लौट आया।सीधे लौट नहीं पाया बायपास पर विकास कारनामे की वजह से ।घूमकर ट्रेन से आया और आते ही इकानामिक टाइम्स लेकर बैठा।

लीडखबर पढ़ते ही सबसे पहले सेकर जी की कहानियां याद आ गयी और अकस्मात महसूस हुआ कि किसी भारतीय रचनाकार ने पचास के दशक से अबतक लगातार उत्पादन प्रणाली,रोजगार और श्रम पर अविराम लिखा ही नहीं है।


रुक रुक कर जरुर लिखा होगा ।


अलग अलग विधाओं में लिखा होगा।लेकिन एक ही विधा में उत्पादन प्रणाली की मुकम्मल तस्वीर शेखर जी की कहानियों में ही है।


हमारे तमाम मित्र मोदी के मुकाबले उतरे अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लिख रहे थे तो मेरी नजर में अरविंद कहीं थे ही नहीं।


हम उनके साथ खड़े युवाजनों को देख रहे थे,जिन्हें हम संबोधित नहीं कर पाये और अंततः ग्लोबीकरण के केसरिया ईश्वर ने उन्हें रोजगार और उज्जवल भविष्य के सब्जबाग दिखाकर धर्मोन्मादी पैदल सेनाओं में तब्दील कर दिया।


विडंबना यह है कि मोदी और केजरीवाल की युद्धक सेनाओं मे आईटी विशेषज्ञों का ही वर्चस्व रहा।पद्मसुनामी के लिए केसरिया ब्रिगेड ने इस आईटीवाहिनियों के जरिये केजरीवाल आईटी सेना को जंगेमैदान में ध्वस्त कर दिया।और अब उसी आईटी में रोजगार के बजाय बेरोजगारी का महाविस्फोट तय है।


मित्रों मुझे माफ करना कि हमने अपने बच्चों को सबकुढ छोड़कर आईटी विशेषज्ञ बनाकर अब तक मौत का सामान जुटाया है।


सुरसम्राज्ञी लता जी की बहन आशाजी ने पहले ही चेताया है कि अब युवा पीढ़िया वर्चुअल पीढ़ियां हैं और वे कुछ भी करने लायक नहीं है।


मित्रों मुझे इस निर्मम,अमोघ भविष्यवाणी के लिए माफ करना कि चायबागानों, कारखानों,खनन परियोजनाओं .खुदरा कारोबार,खेतों खलिहानों के साथ साथ अबकी दफा मृत्यु जुलूस का सिलसिला आईटी सेक्टर में भी शुरु होने ही वाला है।यही है दूसरे चरण का आर्थिक सुधार।


अभी बहुत लिखना बाकी है।सिलसिलेवार लिखना बाकी है।मेरे पिता दिवंगत हैं लेकिन मेरे अभिभावक शेखर जोशी अब भी लिख रहे हैं।


बीच में घंटेभर के लिए बिजली चली गयी।

आज इतना ही।


Jul 16 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Jobs Being Squeezed Out on Conveyor Belt of Technology

NEHA ALAWADHI & JOCHELLE MENDONCA

NEW DELHI | MUMBAI





Boom Days Over? As IT cos embrace automation and move up the value chain -earning more dollars for every hour of work -firms are sharpening their focus on skills and employing fewer people

Software companies dramatically improved their ability last year to earn more revenue while employing fewer people, reflecting the major transformation underway in a sector that has created a new middle class in India.

While the development is good news for information technology companies, it is also a warning sign for employees in the software industry and for students looking to make a career in an industry that used to hire tens of thousands of employees every year.

Between April 2013 and March 2014, the IT industry added only 13,000 employees for every billion dollar of revenue, according to data from software industry grouping Nasscom. During the year to March 2013, it needed 26,500 employees.

"We are moving up the value chain, getting more dollar for every hour of work. And more automation of existing work means we are hiring less and less to achieve the same growth," said Achyuta Ghosh, head of research at Nasscom.

From about 4 lakh employees in 2000, the Indian IT industry has grown to some 3 million professionals and become the career of choice for graduates in search of lucrative salaries and overseas posting.

While revenue has increased from $8 billion at the turn of the century to of $118 billion (Rs 7 lakh crore) now, the pace of change in technology and processes has accelerated in the recent past. Info sys and US-headquartered Cognizant have partnered with automation specialists such as IPSoft while Tata Consultancy Services and HCL Technologies have built automation tools inhouse.

Business process outsourcing firms are also increasingly moving to automate their back-end processes.









শালিমার পেইন্টসে আচমকা বন্ধের নোটিস! ক্ষুব্ধ শ্রমিকরা शालीमार पेंट्स में काम स्थगित

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শালিমার পেইন্টসে আচমকা বন্ধের নোটিস! ক্ষুব্ধ শ্রমিকরা

शालीमार पेंट्स में काम स्थगित

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बंगाल में बंद कल कारखानों को खुलवाने के संकल्प के साथ मां मानुष माटी की सरकार सत्ता में आया।बंद कल कारखाने तो खुल नहीं रहे हैं,लेकिन चालू औद्योगिक इकाइयां बंद होने लगी हैं।इसी सिलसिले में नया नाम जुड़ा है शालीमार पेंट्स का।बाजार में रंग बनाने वाली नयी कंपनियों के मुकाबले शालीमार लगातार बेरंग होता रहा और अब उसके बंद हो जाने से एक सदी पुरानी इस कंपनी के शानदार इतिहास का लगभग पटाक्षेप हो गया।कर्मचारी सदमे में हैं और राज्य सरकार की तरफ से कोई पहल अभी हो नहीं पायी है जबकि प्रबंधन का कहना है कि लगातार चार महीने से कारखाना चालू रखने की कवायद के बावजूद,कर्मचारियों को वेतन भुगतान जारी रखने के बावजूद वे आगे काम जारी रखने में असमर्थ है।प्रबंधन के इस आकस्मिक निर्णय से गुस्से में हैं कर्मचारी।


शालीमार पेंट्स लिमिटेड ने बुधवार को हावड़ा में अपनी फैक्ट्री में काम स्थगित कर दिया जिससे करीब 350 कामगारों के प्रभावित होने की आशंका है। आज सुबह जब कामगार काम करने फैक्ट्री पहुंचे तो उन्हें दरवाजे पर यह नोटिस चिपका हुआ मिला। कंपनी ने एक बयान में कहा गया है, 'मार्च 2014 में हावड़ा फैक्ट्री में आग लग गई थी, हमने पचिालन शुरू करने की सारी कोशिश कीं इस दौरान हमने अपने कामगारों को पूरा वेतन दिया।


हालांकि संयंत्र चालू करने में अनिश्चितकालीन देरी के कारण हम परिचालन स्थगित करने के लिए बाध्य हैं। कर्मचारियों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए हमने उन्हें देश में अपने दूसरे संयंत्रों और डिपो में रोजगार देने की पेशकश की है। यह कहने की जरूरत नहीं कि शालीमार पश्चिम बंगाल के प्रति प्रतिबद्ध है और हमारे सभी कदम राज्य में उपस्थिति बढ़ाने को लेकर है। हाल के समय में पश्चिम बंगाल में कई कंपनियों को अपना परिचालन रोकना पड़ा है।


শালিমার পেইন্টসে আচমকা বন্ধের নোটিস! ক্ষুব্ধ শ্রমিকরা

প্রিয়দর্শী বন্দ্যোপাধ্যায়: হাওড়ার দানেশ শেখ লেনের শতাব্দী প্রাচীন শালিমার রঙের কারখানা বন্ধ হয়ে গেল৷‌ বুধবার সকাল থেকেই হাওড়ার নাজিরগঞ্জের দানেশ শেখ লেন এলাকায় 'শালিমার পেইন্টস লিমিটেড'নামের ঐতিহ্যশালী এই রঙের কারখানায় তালা ঝুলিয়ে দেওয়া হয়৷‌ এর ফলে কর্মহীন হয়ে পড়লেন এখানকার প্রায় ৩০০ জন কর্মচারী৷‌ এদিন সকালের শিফটে কাজে যোগ দিতে আসা শ্রমিকেরা কারখানার গেটে 'সাসপেনশন অফ ওয়ার্ক'-এর নোটিস টাঙানো দেখে ক্ষোভে ফেটে পড়েন৷‌ কারখানা চত্বরে তুমুল বিক্ষোভ শুরু করেন তাঁরা৷‌ কারখানার সামনের রাস্তা অবরোধেরও চেষ্টা করেন তাঁরা৷‌ এদিকে শালিমার পেইন্টস কর্তৃপক্ষের তরফে এদিন বলা হয়েছে, অগ্নিকাণ্ডের পর গত ৪ মাস ধরে সবরকম চেষ্টা চলছে কারখানা সচল রাখার৷‌ শ্রমিক-কর্মচারীদের সমর্থন পেয়ে আমরাও বেতন দিয়েছি নিয়মিত৷‌ কিন্তু প্লান্ট চালু করতে অনির্দিষ্টকাল দেরি হওয়ায় বন্ধ করার সিদ্ধাম্ত নেওয়া হল৷‌ পৌঁছে যায় পুলিস৷‌ শ্রমিকদের অভিযোগ, গত ১২ মার্চ বিধ্বংসী এক অগ্নিকাণ্ডে এই কারখানার অনেকটা অংশই ভস্মীভূত হয়ে যায়৷‌ তার পর থেকে কারখানার উৎপাদন বন্ধ থাকলেও অন্যান্য কাজ চালু ছিল৷‌ কাঁচামাল নিয়ে গিয়ে অন্যত্র রঙ তৈরি করে এখানে প্যাকেজিং করে তা বাজারজাত করা হচ্ছিল৷‌ শ্রমিক, কর্মচারীরাও নিয়মিতই কাজে আসতেন৷‌ কিন্তু হঠাৎই আগাম কোনও কিছু না জানিয়েই কর্তৃপক্ষের তরফে দমকল দপ্তর তথা রাজ্য সরকারের পক্ষ থেকে কারখানায় উৎপাদন চালু করার বিষয়ে ছাড়পত্র না দেওয়ার কারণ দেখিয়ে এদিন থেকে কারখানায় একতরফাভাবে 'সাসপেনশন অফ ওয়ার্ক'নোটিস ঝুলিয়ে দিলেন কারখানা কর্তৃপক্ষ৷‌ এ ব্যাপারে আই এন টি টি ইউ সি-র (তৃণমূল ইনটাক) কারখানা ইউনিটের সহ-সভাপতি দেবাশিস সেন জানান, 'রাজ্য সরকারকে হেয় করতে কর্তৃপক্ষ পরিকল্পিতভাবে কারখানাটি বন্ধ করেছেন৷‌ আমরা সাহায্যের জন্য কর্তৃপক্ষের কাছে একাধিকবার আবেদন করেছি৷‌ কিন্তু আমাদের সঙ্গে কোনও আলোচনাই করা হয়নি৷‌ সমস্ত ঘটনা আমরা দলের নেতৃত্বকে জানিয়েছি৷‌ ইউনিয়নের পক্ষ থেকে আমরা পুলিসেও অভিযোগ দায়ের করছি৷‌'তৃণমূলের হাওড়া (শহর) সভাপতি ও রাজ্যের কৃষি বিপণন মন্ত্রী অরূপ রায় বলেন, 'পুরো বিষয়টি নিয়ে শ্রমমন্ত্রী মলয় ঘটকের সঙ্গে কথা বলছি৷‌ সম্প্রতি কর্তৃপক্ষের তরফে কোনও ব্যাপারেই আমার সঙ্গে যোগাযোগ করা হয়নি৷‌ যাই হোক কারখানা যাতে দ্রুত খোলা যায় তার জন্য আমরা চেষ্টা করছি৷‌ প্রয়োজনে এই নিয়ে কর্তৃপক্ষের সঙ্গে আমরা আলোচনা করব৷‌'এদিকে শ্রমিকদের বক্তব্য, কারখানায় কোনও শ্রমিক অসম্তোষ ছিল না৷‌ কর্তৃপক্ষের সঙ্গে সব ধরনের সহযোগিতা করছিলেন শ্রমিক, কর্মচারীরা৷‌ তা সত্ত্বেও শ্রমিকদের সম্পূর্ণ অন্ধকারে রেখে রাজ্য প্রশাসনের তরফে কারখানা ফের চালু করার বিষয়ে ছাড়পত্র দেওয়া হচ্ছে না কারণ দেখিয়ে হঠাৎই কারখানা বন্ধ করে দিলেন কর্তৃপক্ষ৷‌ এর নেপথ্যে চক্রাম্ত রয়েছে বলে অভিযোগ তুলে সরব হয়েছেন শ্রমিকেরা৷‌ ছাড়পত্র পেয়ে শতাব্দীপ্রাচীন এই রঙের কারখানাটি ফের কবে খোলে সেটাই এখন দেখার৷‌


শিল্পের ছবি আরও মলিন, বন্ধ হল হাওড়ার শতাব্দীপ্রাচীন রং কারখানা

নিজস্ব সংবাদদাতা

কলকাতা, ১৭ জুলাই, ২০১৪, ০৩:২১:১২


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কাজ বন্ধের নোটিস দেখছেন শ্রমিকরা। বুধবার হাওড়ার কারখানায়। ছবি: দীপঙ্কর মজুমদার।



রাজ্যে শিল্পের রংচটা ছবিটাকে আরও বেআব্রু করে দিয়ে বন্ধ হয়ে গেল দক্ষিণ-পশ্চিম এশিয়ার প্রাচীনতম রং কারখানা শালিমার পেন্টসের দরজা। বুধবার সকালে হাওড়ায় ১১৩ বছরের পুরনো কারখানার দরজায় কাজ বন্ধের (সাসপেনশন অব ওয়ার্ক) নোটিস ঝুলিয়ে দেন কর্তৃপক্ষ। যার ফলে কর্মহীন হয়ে পড়লেন স্থায়ী-অস্থায়ী মিলিয়ে প্রায় আড়াইশো শ্রমিক-কর্মচারী। একই সঙ্গে নোকিয়া-সিমেন্স, হিন্দ মোটর, জেসপ, ডানলপের পরে এ রাজ্যে সম্প্রতি বন্ধ হওয়া কারখানার তালিকায় যুক্ত হল আরও একটা নাম।

গত ১২ মার্চ আগুন লেগেছিল শালিমারের হাওড়ার কারখানায়। তার পর থেকেই বন্ধ ছিল উৎপাদন। প্রয়োজনীয় মেরামত করে রাজ্য সরকারের বিভিন্ন দফতরের কাছ থেকে 'নো অবজেকশন সার্টিফিকেট'নেওয়ার আগে উৎপাদন চালু করা সম্ভবও ছিল না। সংস্থার দেওয়া কাজ বন্ধের নোটিসে অপারেশন বিভাগের প্রধান প্রবীণ আস্থানা লিখেছেন, মেরামতি করার জন্য যে পরিমাণ অর্থ লগ্নি প্রয়োজন, তা এখনই করা অসম্ভব। আর সেই কারণেই কাজ বন্ধ করার সিদ্ধান্ত নিতে হচ্ছে।

কিন্তু রাজ্যের শিল্পমহলের একটা বড় অংশ মনে করছে, আসল সমস্যা আরও গভীরে। সেটা হল, রঙের, বিশেষত দামি রঙের বাজারে পূর্ব ভারতের গুরুত্ব লাগাতার কমতে থাকা। এ দেশে ৩০ হাজার কোটি টাকার রঙের বাজারের ৩২%-ই পশ্চিম ভারতে। উত্তর ও দক্ষিণ ভারতে যথাক্রমে ২৬ ও ২৮%। সেই তুলনায় পূর্ব ভারতের বাজার মাত্র ১৪%।

এর প্রধান কারণ শিল্পের অভাব। রং লাগে শিল্পে আর বাড়িতে। শিল্প না থাকলে সেখানে রঙের চাহিদা যেমন কমে, তেমনই ধাক্কা লাগে সাধারণ মানুষের রোজগারেও। ফলে বাড়িতে লাগানোর রঙের চাহিদাও কমে। এই বিষাক্ত চক্রেই বন্দি হয়ে পড়েছে এ রাজ্যের রং শিল্প।

বিশেষজ্ঞদের মতে, এক দিকে পূর্ব ভারতের বাজার ছোট, তার উপর সেই বাজারের বড় অংশই কব্জা করে রয়েছে অন্য চার সংস্থা। সেই কারণেই খরচাপাতি করে নতুন প্রযুক্তি এনে এ রাজ্যে কারখানা চালানোর উৎসাহ পাচ্ছে না শালিমার। সংস্থা সূত্রে খবর, হাওড়ার কারখানা নতুন করে চালু করতে খরচ হবে প্রায় ১২ কোটি টাকা। শুধু অগ্নি নির্বাপণের উপযুক্ত ব্যবস্থা তৈরি করতেই লাগবে ৪৫ লক্ষ টাকা। এই পরিমাণ টাকা খরচ করার চেয়ে নাসিক ও দিল্লির কাছের সিকান্দারাবাদের কারখানা থেকে রং এনে এখানে বিক্রি করাই তুলনায় লাভজনক হবে বলে মনে করছেন সংস্থার কর্তারা।

এ রাজ্যে হাওড়া ব্রিজ থেকে দ্বিতীয় হুগলি সেতু বা যুবভারতী ক্রীড়াঙ্গন রাঙিয়ে তোলার গৌরব আছে শালিমারের। এক সময় মেরিন পেন্টের (জাহাজের রং) বেতাজ বাদশাও ছিল তারা। কিন্তু এ রাজ্যের বন্দরে জাহাজ ভেড়ার অবস্থা মোটে আশাব্যঞ্জক নয়। ফলে সেই রঙের চাহিদাও নেই। তার উপর নতুন করে বড় শিল্প প্রায় আসছে না বললেই চলে। তা হলে আর চাহিদা তৈরি হবে কোথা থেকে?

শিল্পমহলের কর্ণধাররা বলছেন, বড় শিল্প না এলে শিল্পচিত্র যে বদলাবে না, সেটা এ রাজ্যের প্রশাসনিক কর্ণধাররা কিছুতেই বুঝে উঠতে পারছেন না। মুখ্যমন্ত্রী মুম্বইয়ে মুকেশ অম্বানী-সহ দেশের শীর্ষস্থানীয় শিল্পপতিদের সঙ্গে বৈঠক করার পরে কিছুটা আশার সঞ্চার হয়েছিল। কিন্তু এ রাজ্য সম্পর্কে শিল্পমহলের যে ঐতিহাসিক অনীহা, তা দূর করার কোনও চেষ্টা তৃণমূল সরকার করেনি।

এ রাজ্য থেকে পাততাড়ি গোটানোর তোড়জোড় করলেও অন্যত্র কিন্তু নতুন কারখানা খুলছে শালিমার। এ বছরই চেন্নাইয়ে চালু হবে তাদের নতুন কারখানা। ঘটনাচক্রে পশ্চিমবঙ্গে বন্ধ হয়ে যাওয়া আরও দুই সংস্থা নোকিয়া-সিমেন্স এবং হিন্দ মোটরও চেন্নাইয়ে নতুন কারখানা খুলছে।

শালিমার পেন্টসের দরজা বন্ধ হওয়ার জন্য সংস্থার কর্তৃপক্ষকেই দুষছেন শ্রমিকরা। শ্রমিক আন্দোলনের জন্য এক দিনও কাজ বন্ধ হয়নি হাওড়ায়, এই দাবি করে তাঁদের অভিযোগ, কারখানা গোটাতেই চক্রান্ত করে আগুন লাগানো হয়েছিল গত মার্চে। বামপন্থী শ্রমিক ইউনিয়ন এআইটিইউসি নেতা পরিতোষ মুখোপাধ্যায়ের কথায়, "১২ মার্চ আগুন লাগানো যে চক্রান্ত ছিল, তা এ দিনের নোটিস ঝোলানোয় স্পষ্ট।"

শ্রমিকদের অবশ্য অভিযোগ, আগুন লাগার দিন কারখানার ৪৫ হাজার লিটারের ট্যাঙ্কে জল ছিল না।

গঙ্গা থেকে পাইপে জল আনার ব্যবস্থাও কাজে লাগানো যায়নি। হাওড়া দমকল দফতরের অভিযোগ, অগ্নিকাণ্ডের পরই জানা গিয়েছিল দাহ্য পদার্থে ঠাসা ওই কারখানার ফায়ার লাইসেন্স নেই। এ নিয়ে কর্তৃপক্ষকে ব্যবস্থা নিতে বলা হলেও তারা আজ পর্যন্ত কিছু জানায়নি। কারখানার তৃণমূল কর্মী ইউনিয়নের নেতা দেবাশিস সেন বলেন, "রাজ্যকে হেয় করতেই এই সিদ্ধান্ত। ওই সব এনওসি নেওয়ার কথা আসলে অজুহাত।"

হাওড়ার অতিরিক্ত শ্রম কমিশনার বিপ্লব মজুমদার বলেন, "পুরো ঘটনা শ্রম দফতরে জানানো হয়েছে। তারা বলেছে, খুব শীঘ্রই কর্তৃপক্ষ ও শ্রমিক সংগঠনগুলিকে আলোচনায় ডাকা হবে।"আজ, বৃহস্পতিবার সংশ্লিষ্ট সব পক্ষকে নিয়ে তিনি বৈঠকে বসবেন বলে জানিয়েছেন শ্রমমন্ত্রী মলয় ঘটক। তাঁর কথায়, "যত শীঘ্র সম্ভব সমস্যা সমাধানের চেষ্টা করা হবে।"

শ্রমিক সংগঠনগুলির নেতাদের অভিযোগ, কারখানা বন্ধের ভাবনা ছিল বলেই দু'দিন আগে স্থায়ী শ্রমিকদের নাসিক বা সিকান্দারাবাদে বদলির প্রস্তাব দেওয়া হয়। স্থানীয় সূত্রেও খবর, সপ্তাহখানেক আগে অস্থায়ী শ্রমিকদের ছাঁটাই করার

কথা বলা হয়েছিল ঠিকাদারদের।

শালিমার কর্তৃপক্ষের অবশ্য বক্তব্য, কারখানা ফের চালু করার চেষ্টা চলছে। এ রাজ্যের প্রতি তারা দায়বদ্ধ। আগুনে অ্যালুমিনিয়াম পেন্ট তৈরির যন্ত্রপাতি বিশেষ ক্ষতিগ্রস্ত হয়নি। তাই অগস্ট-সেপ্টেম্বরেই কিছু দক্ষ কর্মীকে নিয়ে এই রং উৎপাদন ফের চালু করার পরিকল্পনা রয়েছে। কিন্তু শিল্পমহলের চোখে এ সব নেহাতই সব দিক সামলানো কূটনৈতিক বয়ান।

"এ রাজ্যের শিল্পচিত্র অনেক দিনই বিবর্ণ। সে দিক থেকে দেখলে রং কারখানা বন্ধ হওয়াটা রীতিমতো প্রতীকী,"মন্তব্য এক প্রবীণ শিল্পপতির।




सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा!

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सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा!

पलाश विश्वास

सेज महासेज खुलने लगे,बिखरने लगा पर्यावरण और अब देखिये दावानल का जलवा।

गौरतलब है कि दुनिया के बेहद गरीब लोगों में से एक तिहाई भारत में रहते हैं और यहां पांच साल से कम उम्र में मौत के मामले सबसे अधिक होते हैं। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने यहां यह रिपोर्ट जारी की। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट के तथ्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए चुनौती हैं और वह इससे निपटने में सफल रहेगी। नजमा ने कहा, ''अच्छे दिन आएंगे।''

अच्छे दिनों की आहट दरअसल छापामार हमलों में तब्दील होने जा रही है।सेज को रिवाइव हीं नहीं कर दिया गया,निजीकरण को विनिवेश परिभाषित करने वाले लोगों ने सेज को औद्योगिक गलियारा और महासेज को अब स्मार्ट सिटी में कायाकल्पित कर दिया है।सेज का विकराल विदेशी चरित्र अब विकास के कामसूत्र मुताबिक दिलफरेब दिमागपलटू है।इसके साथ ही जबरन बेदखली के खिलाफ जनविद्रोह को सिरे से राष्ट्रद्रोह घोषित करते हुए धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता के आवाहन के साथ भारतीय जनता के विरुद्ध नयी युद्ध प्रस्तुतियां घनघोर हैं।


अब सलवा जुड़ुम का मायने आदिवासी के विरुद्ध लामबंद आदिवासी ही नहीं है,बल्कि ग्लोबीकरण और मुक्तबाजार का मलाई मक्खन खोर एक प्रतिशत के खिलाफ अर्तव्यवस्था से लेकर समाज में जाति व्यवस्था,नस्ली भेदभाव और भौगोलिक अस्पृश्यता के मार्फत बहिस्कृत निनानब्वे फीसद जनगण का अतीत भविष्य और वर्तमान है और इस निनानब्वे फीसद में ध्वस्त उत्पादन प्रणाल की पूरी श्रमशक्ति,सारी की सारी कृषि जीवी जनता के अलावा ज्यादातर स्त्रियां,युवाजन,बुजुर्ग और बच्चे शामिल है जिनक लिए कारपोरेट केसरिया सब्जबाग के अच्छे दिनों के बहाने मूसलाधार दूसर चरण के आर्थिक सुधार हैं।


बजट पर वैदिकी सभ्यता अभी भारी है।भारत सरकार और सत्तादल के साफ इंकार के बीच सहयोगी शिवसेना की रणहुंकार के मध्य और वैदिकी के खिलाफ केंद्रीयएजंसियों की कवायद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मजबूती के साथ वैदिकी के साथ है और इससे स्वयं सिद्ध है कि जैसे मैंने पहले ही लिखा है कि बजट पर चर्चा न होने देने के लिए यह मामला वैदिकी अंब्रेला है।उधर ट्राई संशोधन पास करने में मोदी के साथ खड़ी वामासुरमर्दिनी ममता बनर्जी का भगवाकरण भी तेज हुआ है जो अब जनहित में मोदी के राजकाज का समर्थन करेगी।जाहिर है कि रंग बिरंगी अस्मिताओं के साथ कांग्रेस के जनहिते के सेज महासेज प्रतिमान भी समानधर्मी हैं।

गाजा में इजरायली नरसंहार के खिलाफ जब विश्व जनमत हर रोज इजरायली हमले के खिलाफ तेज से तेज स्वर में प्रतिरोध दर्ज करा रहा है,तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करने वाले हम आधिकारिक तौर पर भारत की ओर से इसकी निंदा भी नहीं कर पा रहे हैं।इससे समझ लीजिये कि विदेशी छिनाल पूंजी,युद्धक जायनवाद और अमेरिकी हितों का यह रसायन भोपाल गैस त्रासदी से कितना ज्यादा मारक होनेवाला है।


दूसरी ओर,बजट पर वैदिकी सभ्यता अभी भारी है।भारत सरकार और सत्तादल के साफ इंकार के बीच सहयोगी शिवसेना की रणहुंकार के मध्य और वैदिकी के खिलाफ केंद्रीयएजंसियों की कवायद के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मजबूती के साथ वैदिकी के साथ है और इससे स्वयं सिद्ध है कि जैसे मैंने पहले ही लिखा है कि बजट पर चर्चा न होने देने के लिए यह मामला वैदिकी अंब्रेला है।उधर ट्राई संशोधन पास करने में मोदी के साथ खड़ी वामासुरमर्दिनी ममता बनर्जी का भगवाकरण भी तेज हुआ है जो अब जनहित में मोदी के राजकाज का समर्थन करेगी।

जाहिर है कि रंग बिरंगी अस्मिताओं के साथ कांग्रेस के जनहिते के सेज महासेज प्रतिमान भी समानधर्मी हैं।



सेज पर पिछले दस सालों में शायद सबसे ज्यादा बोला लिखा गया है।नंदीग्राम सिंगुर सेजविरोधी आंदोलनों के कारण बंगाल में पैंतीस साला वामशासन का ही अंत नहीं हो गया,बाकी देश में भी वाम जनाधार तितर बितर हो गया।यह आंदोलन जबरन जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संगठित हुआ और इसका असर महाराष्ट्र से लेकर पंजाब और यूपी के भट्टा परसौल में भी हुआ।


सेज विरोधी आंदोलन की वजह से ही भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून पास करके 1884 के एकतरफा कानून को बदल दिया गया।


कारपोरेट केसरिया सरकार ने सेज को पुनर्जीवित ही नहीं किया है,बल्कि भूमि सुधार कानून के कारपोरेट हितों के विरोध वाले प्रावधान हटाने की भी पूरी तैयारी कर दी है।


भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन की वजह से आबंटित कोयला ब्लाकों को अभीतक विकसित नहीं किया जा सका है। तो पर्यावरण हरीझंडी न मिलने के कारण अरबों डालर की विदेशी पूंजी का निवेश निलंबित है। नियमागिरि में अपढ़ आदिवासी पंचायतों ने महाबलि वेदांत की परियोजना रोक दी।


जाहिर है कि संविधान के तहत प्राकृतिक संसाधनों पर राष्ट्र और जनगण के अधिकारों के संरक्षण हेतु जो संवैधानिक प्रावधान हैं,उनको खत्म करना करोड़पति अरबपति रीजनीतिक कारपोरेट तबके का मुख्य कार्यभार है और अमेरिकी जायनी हितों के मुताबिक इसे बखूब अंजाम दिया जा रहा है।


अदाणी पोट्र्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) को हरी झंडी पर्यावरण और समुद्रतट संरक्षण कानून के विपरीत मिली है,जो जबर्दस्त ब्रेकथ्रू है लंबित परियोजनाओं के लिए।


नमो सुनामी में जाहिर है कि अदाणी समूह की भी किंचित भूमिका की चर्चा हो चुकी है और इसका दोहराव उसी तरह जरुरी नहीं है,जैसे रिलायंस का।


खास बात तो यह है कि तमाम सरकारी बंदरगाहों को बेसरकारी बना देने की भी योजना है। विमानन,रेलवे,मेट्रो,भूतल परिवहन के बाद अब समुद्र पर भी विदेशी पूंजी का शिकंजा कसने ही वाला है।


इसी सिलसिले में अदाणी समूह की विजयगाथा पठनीय है।


तेल गैस के भंडार तो ओएनजीसी से लेकर रिलायंस समूह को भेंट में दे ही दिये गये हैं और अब ओएनजीसी के सेल आफ के बाद सामुद्रिक संसाधनों पर मुकम्मल कब्जा हो जाना है।


इसी सिलसिले में हाल में बांग्लादेश के साथ हुए समुद्र समझौते का उल्लेख करना जरूरी है।दक्षिण चीन सागर के तेलक्षेत्र को लेकर आंतरजातिक विवाद में फंसने वाले भारत ने जिसतरह 19 हजार वर्गकिमी तेलक्षेत्र बांग्लादेश को सौंप देने के लिए तुरत फुरत राजी हो गया,उसके पीछे हुए खेल का खुलासा बाकी है।


क्षेत्रीय शांति की परवाह अगर भारत के वर्चस्ववादी सत्तावर्ग को होती तो पड़ोसियों से संबंध इतने बुरे भी नहीं होते।दरअसल बांग्लादेश में सबसे बड़े दाता जापान है तो हाल में मोदी के राज्याभिषेक के मध्य चीन से भी आर्थिक सहयोग और जलसंधि के समझौते कर चुकी हैं हसीना वाजेद।


इसी सिलसिले में गौरतलब है कि मोदी सरकार ने बांग्लादेश को यूपीए सरकार के जमाने के अनुदान में भी कटौती कर दी है।


तो यह समझने वाली बात है कि भारत में तेल गैस की एकमात्र सक्षम सराकारी कपनी ओएनजीसी जब सेलआफ  पर है तो किस कंपनी को हिंद महासागर के अब तक भारत के कब्जे में रहे 19 हजार वर्गकिलोमीटर बांग्लादेशी तेल गैस क्षेत्र भेंट में मिलने वाली है।


इस सिलसिले में यह भी गौरतलब है कि भारत में रिलायंस को गैस आपूर्ति के लिए करीब नौ डालर का भाव मिलना तलवार की धार की तरह अर्तव्यवस्था का बोझ है तो बांग्लादेश में यही गैस रिलायंस की ओर से दो डालर के भाव से बेची जाती है।


तो समझ में आने वाली बात है कि इस 19हाजार वर्ग किमी तेल गैस क्षेत्र पर किसकी दावेदारी सबसे मजबूत रहनी है।


अब देखें कि अदाणी पोट्र्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) ने कहा है कि उसके 8, 481 हेक्टेयर विशेष आर्थिक क्षेत्र को पर्यावरण के साथ-साथ अन्य दूसरी मंजूरियां भी मिली हैं।


दावा यह किया जा रहा है कि इस कदम से निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ विलवणीकरण (समुद्र के पानी से नमक को हटाना) और गंदे पानी को शुद्ध करने के लिए संयंत्र स्थापित करने की राह भी सुगम हो जाएगी। कंपनी ने एक बयान में कहा, 'अदाणी समूह के एपीएसईजेड को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मुंद्रा के 8, 481 हेक्टेयर विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए पर्यावरण और तटीय नियमन क्षेत्र से जुड़ी मंजूरी मिली है।'


गौरतलब है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लाने और निर्यात आधारित वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास पर जोर दिया जा रहा है।


सेज में औद्योगिक इकाइयों को पूंजीगत वस्तुओं और खरीदे गए कच्चे माल के आयात शुल्क/उत्पाद शुल्क/सेवा कर पर पूरी छूट का फायदा मिलेगा।


बयान में कहा गया है कि सेज कई उद्योगों को बढ़ावा देगा।मंजूरी मिलने से देश के एकमात्र बंदरगाह आधारित एपीएसईजेड को एक बड़ा विलवणीकरण संयंत्र और गंदे पानी के शुद्धीकरण करने से जुड़ा संयंत्र स्थापित करने और समुद्री पानी लेने का अधिकार मिल जाएगा।


गौरतलब है कि  किसी विशेष आर्थिक क्षेत्र में कोई कारोबारी इकाई की स्थापना करने के लिए कंपनियों के लिए यह प्राथमिक बुनियादी ढांचा होता है।


अदाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अदाणी ने कहा, 'मुंद्रा सेज को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से मिली पर्यावरण मंजूरी से सेज में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और वहां विकास भी तेज रफ्तार के साथ होने की उम्मीद है क्योंकि यहां समुद्र, रेल और सड़क के जरिये बाधारहित संपर्क की गुंजाइश है।'


कल ही मैंने आईटी सेक्टर के सिमटने की छेतावनी दी थी और आज खबरे बता रही हैं कि इस सर्वनाश में बहुत देरी भी नहीं है।


मसलन, प्रोद्योगिकी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने अब तक की सबसे बड़ी छंटनी की घोषणा की योजना बनाई है और यह भारतीय मूल के कार्यकारी सत्य नडेला के पद-भार ग्रहण के बाद से कर्मचारियों की छंटनी का पहला मौका होगा। नडेला ने पिछले सप्ताह कर्मचारियों के लिए जारी चिट्ठी में सांगठनिक बदलाव का संकेत दिया था। न्यूयार्क टाइम्स की खबर के मुताबिक माइक्रोसाफ्ट की गुरूवार को छंटनी की घोषणा करने की योजना है और यह अब तक की सबसे बड़ी छंटनी होगी। इससे पहले 2009 में सबसे अधिक संख्या में कर्मचारियों की छंटनी हुई थी जबकि 5,800 लोग इससे प्रभवित हुए थे।


इलेक्ट्रानिक कयामत की दूसरी बड़ी सूचना यह है कि सॉफ्टवेयर क्षेत्र की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट फिनलैंड में अपनी मोबाइल फोन इकाई से एक हजार नौकरियों की कटौती की योजना बना रही है। सूत्रों के हवाले से फिनलैंड के समाचार पत्र हेलसिनजिन सैनोमैट ने यह खबर प्रकाशित की है।

नोकिया के अधिग्रहण के साथ हाल ही में इसके 25 हजार कर्मचारियों को माइक्रोसॉफ्ट में भेजा गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माइक्रोसॉफ्ट के अब 1,27,000 कर्मचारी हैं। यह संख्या उसके प्रतिद्वंद्वियों एपल और गूगल से कहीं ज्यादा है। लिहाजा, उम्मीद की जा रही है कि कंपनी में बड़े स्तर पर छंटनी होगी। न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने सोमवार को कहा था कि नौकरियों में कुल कटौती माइक्रोसॉफ्ट के इतिहास में सबसे बड़ी हो सकती है। सीईओ सत्य नडेला जल्द ही इस बाबत एलान कर सकते हैं। यह 2009 में की गई 5,800 नौकरियों की कटौती को भी पीछे छोड़ देगी।

हेलसिनजिन सैनोमैन के अनुसार, माइक्रोसॉफ्ट उत्तरी फिनलैंड में स्थित नोकिया की अनुसंधान एवं विकास इकाई को बंद करने की योजना बना रही है। वर्तमान में फिनलैंड गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इसके और बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।


इसी के मध्य अमेरिका में नमो प्रशस्ति क स्वर तेज होने लगे हैं।वहां भी अब भारत की तरह ही नमो मंत्र की अखंड जाप है।

हमारी धर्मोन्मादी पढी लिखी जनता के लिए अपार हर्षोल्लास का सबब है गुजरात माडल के यह अभिनव ग्लोबीकरण।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर पड़ोसी मुल्कों से रिश्तों में सुधार की जो नई शुरुआत की थी अब उसकी अमेरिका में भी तारीफ हो रही है। अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों, विशेषज्ञों एवं सांसदों ने दक्षेस देशों के साथ रिश्तों में सुधार के लिए उनके कदमों की तारीफ करते हुए कहा कि मोदी ने पाकिस्तान सहित अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में ठोस प्रतिबद्धता दिखाई है।


उधर, पेट्रोलियम मंत्रालय रिलायंस इंडस्ट्रीज को बंगाल की खाड़ी में गैस के तीन ज्ञात भंडारों को अपने पास रखने की छूट देने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सामने रखेगा। तकनीकी विवाद के कारण अपतटीय केजी बेसिन क्षेत्र में खोजे गए इन भंडारों के विकास की समय-सीमा बीत चुकी है जबकि इनमें 1.45 अरब डॉलर की गैस का अनुमान है।


आरआईएल डी-20, 30 और 31 नाम से चिह्नित इन खोजों के लिए विकास योजना नहीं सौंप सकी है। इनमें अनुमानित 34.5 अरब घन फुट का गैस भंडार है। इन भंडारों की पुष्टि को लेकर परीक्षणों के बारे में उत्खनन नियामक हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) के साथ कंपनी के विवाद के चलते विकास प्रकल्प प्रस्तुत करने का समय पार हो गया।


इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि पेट्रोलियम मंत्रालय का मानना है कि उक्त खोजों को वापस लेने और इनके लिए फिर से बोली लगाने की प्रक्रिया से इसके विकास में देरी हो सकती है। पेट्रोलियम मंत्रालय का मानना है कि ये गैस क्षेत्र रिलायंस से ले लेने पर कंपनी उसके खिलाफ पंच निर्णय का मुकदमा लगा सकती है। इससे वहां से उत्पादन में और देरी होगी तथा खर्च भी बढ़ेगा। आरआईएल इस अपतटीय क्षेत्र में अपने मौजूदा बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर के उक्त तीनों जगहों से गैस उत्पादन जल्दी करने की स्थिति में है।


मौजूदा दर 4.2 एमएमबीटीयू के भाव पर वहां के भंडार का मूल्य 1.45 अरब डॉलर आंका गया है। सूत्रों ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय इस मामले में उत्पादन में भागीदारी के अनुबंध (पीएससी) में ढील देने के लिए आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) के समक्ष प्रस्ताव रखने जा रहा है। इसके मसौदे पर वित्त एवं कानून मंत्रालय और योजना आयोग से टिप्पणी मांगी जा रही है।


आम बजट पेश होने के बाद बाजार की उम्मीदों और लोकलुभावन नीतियों के बीच बेहतर संतुलन न रख पाने को लेकर आलोचनाओं से घिरे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह यात्रा की शुरुआत भर है और उन्होंने वही किया जो मौजूदा हालात में किया जा सकता था। वित्तमंत्री ने कहा, 'यह हमारी यात्रा की शुरुआत है न कि अंत। अभी हम जितना कर सकते थे, हमने उतना किया। पहले ही दिन सभी फैसले नहीं किए जाते हैं।'


जेटली ने 10 जुलाई को अपना पहला बजट पेश किया। रेटिंग एजेंसियां विशेषतौर पर पिछली तारीख से किए गए कर संशोधन को वापस नहीं लेेने और उद्योगों को पर्याप्त रियायत प्रदान नहीं करने की आलोचना कर रही हैं। उन्होंने हालांकि वेतनभोगियों को राहत देते हुए 22,200 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष कर को छोड़ दिया। जेटली ने इस आलोचना को खारिज करते हुए कि सरकार ने कई एसे महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं जो जरूरी थे और पिछले 10 साल में इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए। जेटली ने कहा 'इनमें सभी मुद्दे बीमा, रियल एस्टेट, रक्षा, पिछली तारीख से कर संशोधन, कराधान का सरलीकरण आदि महत्वपूर्ण थे। इसलिए 45 दिन में हमने इन सब पर ध्यान देने की कोशिश की है और फिर हमने विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान दिया है।'


उन्होंने कहा 'ये महत्वपूर्ण फैसले हैं। हमारी सरकार का नजरिया उन क्षेत्रों के बारे में बिल्कुल साफ है जिन्हें और राहत देनी है। आम आदमी पर आप कितना बोझ देंगे। यही वजह है कि हमने व्यक्तिगत कराधान को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की है। हमने उल्टे कर ढांचे को भी समाप्त किया है।' बजट में वेतनभोगियों को राहत देते हुए आयकर छूट सीमा 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये करने और बचत योजनाओं में निवेश की सीमा 1 लाख रुपये सालाना से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने कहा राजकोषीय घाटा कम करने के दो तरीके हैं - या तो आप कम खर्च करें या फिर ज्यादा कमाई करें। उन्होंने कहा 'आदर्श स्थिति यह है कि आपको ज्यादा आय अर्जित करनी चाहिए क्योंकि कम खर्च करते हैं तो व्यय कम होने लगता है और हो सकता है कि अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्से में संकुचन पैदा हो जाए।'


बजट की संसदीय भूमिका पर बिजनेस स्टैंडर्ड की यह रपट मौजूं हैः

एक वरिष्ठï केंद्रीय मंत्री से जब यह पूछा गया कि इस बजट से उनके मंत्रालय के ढांचे में क्या बदलाव होगा तो उन्होंने मजाकिया लहजे में यही कहा, 'सच कहूं तो मुझे इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता।'

ज्यादातर सांसदों का मानना है कि अगली सरकार बजट में फेरबदल जरूर करेगी। सांसदों ने इस बजट के राजनीतिक इस्तेमाल पर भी सवाल खड़े किए, उनका मानना है कि इससे न तो चुनावों में किसी दल को फायदा मिलेगा और न ही इससे कोई नुकसान होगा।

उम्मीद के मुताबिक अंतरिम बजट को लेकर सबसे अधिक उत्साह कांग्रेस के सांसदों के बीच ही देखने को मिला। पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल ने कहा, 'वित्त मंत्री ने क्या शानदार काम किया है। उन्होंने दिखा दिया कि वैश्विक मंदी के बावजूद हर साल तरक्की हुई है। पांच सालों के दौरान औसतन 6.2 फीसदी की वृद्घि दर देखने को मिली जो राजग सरकार के कार्यकाल के मुकाबले कहीं अधिक है।'

दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कुछ अलग ही अंदाज में बजट की खूबियों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, 'सभी मानकों के मुताबिक यह एक अच्छा बजट है। पिछले पांच सालों के संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान करीब 14 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से ऊपर उठे हैं। कृषि क्षेत्र की औसत विकास दर 4 फीसदी रही।' अच्छी खाद्यान्न पैदावार का श्रेय मॉनसून को देने के बजाय उन्होंने कहा, 'सरकार ने किसानों के हाथों में अधिक धन दिया। करीब 7 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण दिया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया। इन सभी चीजों की वजह से विकास हुआ है। दुनिया में कौन सी ऐसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था है जो पांच फीसदी की दर से विकास कर रही है।' उन्होंने कहा कि शिक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास को देखते हुए साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से कोई भी नीतिगत जड़ता नहीं है।

सांसदों ने संक्षिप्त बजट दस्तावेज का अच्छी तरह से इस्तेमाल किया। लोकसभा में चंडीगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले बंसल ने कहा, 'मैं काफी लंबे समय से एक रैंक-एक पेंशन के लिए कोशिश कर रहा था और मैं इस बात से काफी खुश हूं कि इसे बजट में शामिल किया गया क्योंकि अब मैं अपने क्षेत्र में जाकर लोगों से कुछ कह सकूंगा।' भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने से रोकने के लिए अगले चुनावों में कांग्रेस के संभावित साथी दलों ने वित्त मंत्री की ओर नरम रुख अपनाया। बीजू जनता दल से राज्यसभा सदस्य भतृहरि महताब ने पूछा, 'बजट में दिखाया गया है कि अब ज्यादा पैसा राज्यों की ओर जाएगा। राज्यों और केंद्र शासित राज्यों की योजनाओं को केंद्र की ओर से दी जाने वाली मदद वर्ष 2013-14 के 1,36,245 करोड़ रुपये बजट अनुमान से बढ़ाकर वर्ष 2014-15 के लिए 3,38,562 रुपये कर दिया गया। तो मैं यह कैसे कह सकता हूं कि यह अच्छा बजट नहीं है।' हालांकि उन्होंने योजनागत खर्च में कटौती पर अपनी चिंता भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि गैर-योजनागत खर्च में इजाफा भी खतरे की घंटी है। उन्होंने कहा, 'राजकोषीय घाटा कम कैसे हो सकता है जबकि रुझान ऐसा है। यह व्यावहारिक नहीं है।'

उन्होंने कहा कि बिहार और ओडिशा जैसे विकासशील राज्य इस बात से निराश जरूर हैं कि आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन द्वारा विकासशील राज्यों पर पेश की गई रिपोर्ट का कोई प्रभाव बजट में देखने को नहीं मिला। विकास को बढ़ावा देने का यह भी एक तरीका हो सकता है।

बजट पर तीखी टिप्पणी करते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ से कहा, 'अब तो आप स्प्रे भी इस्तेमाल कर चुके हैं, करने के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है।' इस त्वरित टिप्पणी का जवाब देते हुए कमलनाथ ने अंतरिम बजट की ओर इशारा करते हुए कहा, 'हम जहां जाते हैं, अपनी छाप छोड़ ही आते हैं। यही हमारी आदत है।'

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आंकड़े दुरुस्त करने का सिलसिला जारी है और अब कहा जा रहा है कि आधार और सुधार से व्यापार घाटा भी घटने लगा है।जून महीने में वाणिज्यिक निर्यात 10.22 प्रतिशत बढ़कर 26.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले साल के समान महीने में 24.02 अरब डॉलर था। इंजीनियरिंग सामानों, तैयार परिधान और पेट्रोलियम उत्पाद की मांग बढऩे से निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि मई 2014 में निर्यात में 14.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जो जून की तुलना में ज्यादा है।

वहीं दूसरी ओर करीब 13 महीने के अंतराल के बाद आयात में 8.33 प्रतिशत की दर से सकारात्मक बढ़ोतरी दर्ज की गई। मई 2014 में यह 38.24 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल के समान महीने में 35.3 अरब डॉलर था। इसके परिणामस्वरूप जून में कारोबारी घाटा बढ़कर 11.76 अरब डॉलर हो गया, जो मई 2014 में 11.24 अरब डॉलर था।

इस साल की अप्रैल-जून की पहली तिमाही में कुल निर्यात 80.11 अरब डॉलर का रहा, जो पिछले साल की समाम अवधि के 73.28 अरब डॉलर की तुलना में 9.31 प्रतिशत ज्यादा है। बहरहाल वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आज जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल जून के दौरान संचयी आयात 113.19 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान 121.61 अरब डॉलर था।

विशेषज्ञों के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और आधार के प्रभाव के चलते यह परिणाम सामने आए हैं। इस दौरान इंजीनियरिंग के सामानों के निर्यात मेंं 21.57 प्रतिशत, पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में 38.37 प्रतिशत और तैयार परिधानों के निर्यात में 14.39 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

आधार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से नत्थी किया गया है।सेज महासेज और स्मार्टसिटी समय में नागरिकता निलंबित रहेंगे।वर्जित क्षेत्रों में निजता का कोई अधिकार होने का सवाल ही नहीं है और इन घोषित फारेन टेरीटेरी  यानी वर्जित क्षेत्रों में न भारतीयदंडविधि लागू होगा और न भारतीय संविधान।


इसी सिलसिले का खुलासा बतौर बिजनेस स्टैंडर्ड में सुरभि अग्रवाल और अदिति दिवेकर ने स्मार्ट सिटी पर अपने आलेख में विकास के साथ निजता के सवाल भी उठाये हैं,जो गौरतलब है।खासकर ये स्मार्टसिटी भी सेज महासेज के शहरी आकार ही होंगे और वर्जित क्षेत्र भी। इस रपट पर जरुर ध्यान देने की जरुरत हैः

सरकार ने आम बजट में 100 स्मार्ट सिटी के लिए 7,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। इससे विशेषकर प्रौद्योगिकी केंद्रित कंपनियों के लिए तमाम अवसर पैदा होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ समय बाद सरकार को इस तरह की परियोजनाओं के कारण उठने वाले निजता के मुद्दे का समाधान करना पड़ सकता है। भारत में अभी तक इस तरह का निजता कानून नहीं है, जिनमें सरकार के लिए निगरानी के वास्ते वर्जित क्षेत्रों का ब्योरा दिया गया हो।

प्रौद्योगिकी से संबंधित मसलों को देखने वाले थिंकटैंक आईटी फॉर चेंज के कार्यकारी निदेशक परमिंदर जीत सिंह ने कहा, 'प्रौद्योगिकी के मसले पर हम खुश हैं, लेकिन इन मसलों को उठाने के लिए यही अच्छा वक्त है।' एक स्मार्ट सिटी की सड़कें, यातायात, बिजली, पानी और निकासी व्यवस्था एक प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म से संबद्ध होती हैं। इन सभी पर एकीकृत केंद्र के माध्यम से नियंत्रण होता है। इससे न सिर्फ बेहतर शहरी नियोजन में मदद मिलती है, बल्कि संसाधनों के इस्तेमाल में भी सुधार होता है। हालांकि इन शहरों की बात करें तो यहां पर घरों में क्लोज्ड सर्किट कैमरों और तमाम उपकरणों के माध्यम से पैनी निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ ही कार्यालयों में जानकारियां भेजने के लिए चिप लगानी होंगी, हालांकि इससे निजता से संबंधित चिंता हो सकती है। सरकार नागरिकों के बारे में ज्यादा जानकारियां संग्रहित करना बंद कर सकती हैं, सुरक्षित नहीं रखने की स्थिति में इनका दुरुपयोग हो सकता है।

सूचना प्रौद्यगिकी क्षेत्र के उद्योग संगठन नैसकॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा, 'हमें जानकारी हासिल करने का अधिकार है, लेकिन अगर सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करें तो यहां निजता का अधिकार खत्म हो जाता है।' पूर्व संचार एवं आईटी सचिव निजता विधेयक पर हुई चर्चाओं का हिस्सा रहे थे, नई सरकार के अंतर्गत इसका भविष्य फिलहाल स्पष्ट नहीं है। इस विधेयक को पहली बार 2010 में तैयार किया गया था और तब से इसके मसौदे में कई बार बदलाव किया जा चुका है। बीते साल दिल्ली मेट्रो में यात्रा कर रहे एक युगल की कैमरा फुटेज इंटरनेट पर लीक हो गई थी, जिससे काफी हायतौबा मची थी। सरकार कितनी जानकारियां रिकॉर्ड कर सकती है, ऐसे डाटा तक किनकी पहुंच हो सकती है, कौन इनका इस्तेमाल कर सकता है और इसके दुरुपयोग पर कितना जुर्माना लगाया जाएगा, ऐसे कई मुद्दे हैं जिनकी व्याख्या होनी जरूरी है।

हालांकि भारत के पास एक सूचना प्रौद्योगिकी कानून है और ऐसे मुद्दों का निबटारा इसके माध्यम से ही किया जाता है, लेकिन चंद्रशेखर ने कहा कि इस क्षेत्र के लिए एक व्यापक कानून की जरूरत है जो सरकारी अधिकारियों और हर किसी पर लागू हो। सिंह ने कहा कि हमें निजता को लेकर स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए, जिसके आधार पर व्यापक निगरानी की दिशा में सरकार फैसला कर सके। उन्होंने बताया, 'ये शहर व्यापक स्तर पर इंटरनेट से जुड़े होंगे, इसलिए ग्रिड पर मौजूद व्यक्तिगत जानकारियों के संबंध में बेहद सतर्कता से काम करना होगा।'

हालांकि स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में निवेश के मौके देखने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों का रुख इस पर अलग है। वीडियो इंटेलिजेंस सॉल्युशंस कंपनी वेरिंट सिस्टम के कंट्री प्रबंधक आनंद नवानी ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों को निगरानी के दायरे में रखना नागरिकों के हित में है और इसे निजता के हनन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कंपनी सूरत सेफ सिटी परियोजना में भागीदार रही थी। नवानी ने कहा, 'सूरत में परियोजना को अमल में लाते हुए हमने शहर में ऐसे सार्वजनिक स्थलों की पहचान की, जिनकी निगरानी की जरूरत थी। ये स्थान स्कूल या कॉलेज कैंपस या विनिर्माण या औद्योगिक क्षेत्र नहीं है जिन्हें निजता का हनन माना जा सके।' एनईसी इंडिया के प्रमुख (जन सुरक्षा समाधान) ऐंड्र्यू ची ने कहा कि सुरक्षित शहरों के सभी संसाधनों का सरकारी एजेंसियां इस्तेमाल करती हैं, जिससे उन्हें रहने के योग्य बनाया जा सके।

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Green Nod for Adani SEZ







Adani Ports and SEZ, India's largest port operator, has received environment and coastal regulation zone clearance for its special economic zone at Mundra Port in Gujarat, reports Our Bureau. In January, Gujarat High Court had ordered a shutdown of 12 out of 21 units in Mundra SEZ. 18


Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Adani's Mundra SEZ Gets Environment Clearance


NEW DELHI

PRESS TRUST OF INDIA





Will allow it to set up mega desalination plant, effluent treatment plant & intake of sea water

Adani Ports and Special Ec onomic Zone (APSEZ) on Wednesday said it has received environment and other nods for its 8,481 hectares special economic zone, a move that will pave way for setting up facilities like desalination and effluent treatment plants besides boosting exports.

"APSEZ, part of the Adani Group ... has received the environment and coastal regulation zone clearance from the Union Ministry for Environment and Forests, for its 8,481 hectares special economic zone in Mundra," the company said in a statement.

The clearance will now allow APSEZ, which operates India's only port-based SEZ, to set up a mega desalination plant, an effluent treatment plant and intake of sea water, all of which constitute primary infrastructure to be provided for companies setting up business units in the special economic zone.

"The grant of the environmental clearance to Mundra SEZ by MoEF will encourage investment in SEZ and the development is expected to be at a much faster pace as it provides seamless connectivity through sea, rail and road," said Gautam Adani, chairman, Adani Group.

Special Economic Zones have been promoted from the point of view of attracting FDI as well as to promote export led growth.

Industrial units in the SEZ benefit from complete waiver on import duty / excise duty / service tax for capital goods or raw materials procured.

The statement said the SEZ will host industries which will generate additional cargo volumes for the Mundra Port.

The SEZ includes the Mundra port which handles cargo volumes of 100 million tonnes (MT) per annum, the company said.

It is located close to major towns of Bhuj and Gandhidham in Gujarat. "With the grant of environmental and CRZ clearance, all issues related to the same now stand resolved," the company said.

Adani Port shares closed at Rs 281.10 apiece, up 6.82 per cent from the previous close on the BSE.

Adani owns and operates five ports Mundra, Dahej, Hazira, Goa and Visakhapatnam.

Adani recently acquired Dhamra Port in Odisha, thereby marking its entry into the east coast of the country. It is also setting up ports in Tuna Tekra, Mormugao, Kandla and Ennore.




Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

`Real' Forests Half of What Green Ministry Claims

M RAJSHEKHAR

NEW DELHI





The divergence has come to light due to a new methodology adopted by Forest Survey of India

India has no more than 3.3 lakh sq kms of land under real forests, less than half the number claimed by the Ministry of Environment and Forest (MoEF) in the 2013 forest survey released last week.

Among other impacts, low forest cover might be a contributing factor for poor rains as is the case so far this year.

The divergence has come to light due to a new methodology adopted by the Dehradun-based Forest Survey of India (FSI) this year. Till now, the FSI was following a very expansive international definition for calculating forest cover: all lands over a hectare in size, with tree canopies over at least 10% of that area, irrespective of tree species and land ownership are counted as forest cover.

It is a definition which incorporates coffee plantations, orchards and even urban parks – like Delhi's Lodhi Gardens – into a country's land under forests. Another definition, recorded forest area, gets closer to the popular understanding of a forest. Pertaining to all areas recorded as forests in government

records, these largely consist of reserved forests and protected forests.

These fall under the jurisdiction of the forest department and provide ecological security to India –rivers originate from them, for one.

It is important to not mix up these two definitions. As a paper titled "Forest area estimation and reporting: implications for conservation, management and REDD+", published in Current Science's 10 May, 2014, issue noted, if a forest is cut down and a plantation goes up elsewhere, "it will be recorded as a net gain in forest cover." A plantation cannot perform all the functions of a forest.

And yet, for years now, mix them up is what the FSI did. Its reports presented forest cover data but were silent on how recorded forest areas were doing.

That was because while the FSI was getting satellite images chronicling the distribution of trees and forests across the country, it did not have digitised forest boundaries it could use to isolate recorded forests for closer study.

It is this problem that has now been fixed. The FSI, says Rajesh Kumar, senior deputy director at the institution, turned to the Survey Of India's topographic maps. While being prepared, these maps highlighted forest boundaries. Even today, says the FSI report, these boundaries "by and large" correspond to recorded forest area of the country.

"This is not the perfect answer," says a former director-general of forests. Even so, the 2013 FSI report is a step towards understanding how India's forests are doing. While the Forest Department has 771,821 sq km under its jurisdiction, we now know forests cover just 530,779 sq km of that land.

Seed forests, originating from seeds that naturally germinated in that area, account for 63% (or 334,390.77 sq km) of the land under the FD's command. In other words, natural forests account for just 43% of the land under the forest department.

GREEN COVER IN CHHATTISGARH With 49,922 sq km of forests in greenwash areas, the state shows a net increase of 1 sq km.







প্রবন্ধ

সব সংস্কার নিয়ে ঢাক পেটাতে হবে কেন

বাজেটে ঘোষণা না করেও বহু পরিবর্তন আনা যায়। হয়তো সরকার 'অলক্ষ্যে সংস্কার'-এর পথ বেছে নিতে চায়। আমাদের শোরগোলপ্রবণ গণতন্ত্রে সেটা বিচক্ষণতার কাজ হতে পারে। আলোক রায়

১৭ জুলাই, ২০১৪, ০০:০০:০০


কেন্দ্রীয় বাজেটে 'আর্থিক সংস্কার'-এর কী রূপরেখা অর্থমন্ত্রী পেশ করেন, তা নিয়ে বিনিয়োগকারীদের মধ্যে স্বভাবতই একটা উত্‌সাহ তৈরি হয়েছিল। বাজেট যদিও মূলত সরকারি আয়ব্যয়ের হিসেবনিকেশ, কিন্তু আমাদের দেশে বাজেট থেকে সরকারি নীতির গতিপ্রকৃতি সম্পর্কে অনেক সময় কিছুটা ধারণা করা যায়। যেহেতু অনেক দিন পরে কেন্দ্রে নতুন সরকার এসেছে এবং প্রধানমন্ত্রীর ভাবমূর্তি শিল্পবাণিজ্যের অনুকূল বলে সুপরিচিত, সুতরাং এ বারে প্রত্যাশা কিছুটা বেশিই ছিল।

মূল্যস্ফীতির হার যদি নিয়ন্ত্রণ করা যায়, একটা সুস্থিত কর ও শুল্ক নীতি চালু করা হয় এবং সরকারি জমাখরচের খাতায় কিছুটা শৃঙ্খলা আনা যায়, তবে বিনিয়োগ উত্‌সাহিত হতে পারে। বস্তুত, কেন্দ্রীয় সরকারের অর্থনৈতিক সমীক্ষায় ২০১৪-১৫ সালে ৫.৫ শতাংশ আয়বৃদ্ধির প্রত্যাশা করা হয়েছে। এই পরিপ্রেক্ষিতে এ বারের বাজেটের এবং বৃহত্তর অর্থনৈতিক কর্মসূচির কয়েকটি দিক নিয়ে আলোচনা করব।

ভূতপূর্ব ইউপিএ সরকারের অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরম ২০১৪-১৫'র অন্তর্বর্তী বাজেটে ফিসকাল ডেফিসিট বা রাজকোষ ঘাটতির হার জিডিপির ৪.১ শতাংশে বেঁধে রাখতে চেয়েছিলেন। নতুন এনডিএ সরকারের অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি সেই লক্ষ্যমাত্রাই বজায় রেখেছেন। এটা একটু আশ্চর্যেরই বটে, কারণ বেশির ভাগ বিশেষজ্ঞের এবং জেটলির নিজেরও ধারণা যে, এই লক্ষ্য পূরণ করা কঠিন হবে। তবে আমার মনে হয়, শেষ পর্যন্ত ঘাটতি বেঁধে রাখতে জেটলি হয়তো সক্ষম হবেন। তার একটা কারণ হল, ইতিমধ্যেই অর্থবর্ষের সাড়ে তিন মাস চলে গেছে, বিভিন্ন মন্ত্রক নানা প্রকল্প তৈরি করতে করতে আরও কয়েক মাস কেটে যাবে, সুতরাং বরাদ্দ অর্থের অনেকটাই সম্ভবত বছরের শেষে অব্যবহৃত থাকবে। তা ছাড়া, শেয়ার বাজার যে রকম তেজী, তাতে বিলগ্নিকরণ বাবদ অর্থমন্ত্রী তাঁর প্রস্তাবিত প্রায় ৬৫০০০ কোটি টাকা তুলে ফেলতে পারবেন বলেই মনে হয়, এমনকী প্রাপ্তি তার বেশিই হতে পারে। লাভজনক রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থাগুলি থেকে লভ্যাংশও তাঁর অনেকটা প্রয়োজন মেটাতে পারে।

আরও বড় দুশ্চিন্তা হল রেভিনিউ ডেফিসিট বা রাজস্ব খাতে ঘাটতি নিয়ে। বাজেটে ধরে নেওয়া হয়েছে, চলতি অর্থবর্ষে রাজস্ব ঘাটতি হবে জিডিপির ২.৯ শতাংশ। রাজস্ব ঘাটতি মানে এই যে, সরকারের ভোগব্যয়ই তার আয়ের চেয়ে বেশি, অর্থাত্‌ সে ব্যয়ের কিছুটা তাকে পুঁজি ভেঙে বা ধার করে মেটাতে হচ্ছে। সুতরাং রাজস্ব খাতে ঘাটতির বদলে উদ্বৃত্ত থাকা বা অন্তত ঘাটতি শূন্য হওয়া দরকার। সরকার ঋণ নেবে, তাতে কোনও ক্ষতি নেই, কিন্তু সেই ঋণের টাকায় ভোগব্যয় করা উচিত নয়, তা দিয়ে নতুন বিনিয়োগ করা বিধেয়। অর্থমন্ত্রীকে রাজস্ব ঘাটতি ক্রমশ কমিয়ে আনার চেষ্টা করতেই হবে, সেটা কঠিন কাজ। এই সূত্রেই ব্যয়সংকোচের, বিশেষ করে ভর্তুকি নিয়ন্ত্রণের প্রশ্ন উঠবে। অরুণ জেটলির বাজেট ভাষণে এ বিষয়ে বিশদ কিছু বলা হয়নি, কেবল জানানো হয়েছে, ভর্তুকি সহ সব রকমের সরকারি ব্যয় খতিয়ে দেখার জন্য একটি কমিটি নিয়োগ করা হবে। তবে ভর্তুকি যাঁদের প্রাপ্য তাঁদের চিহ্নিত করার জন্য সরকার তত্‌পর হতে পারে, সে ক্ষেত্রে অপাত্রে দানের মাত্রা কমবে, খরচেরও সাশ্রয় হবে। সেটা বাজেটে বলার ব্যাপার নয়, যদিও তার সুফল বাজেটের ওপর পড়বে।

বাজেটে বিভিন্ন শিল্প-উপকরণের ওপর আমদানি শুল্ক রদ করে শিল্পকে উত্‌সাহ দেওয়া হয়েছে। বিশেষ অর্থনৈতিক অঞ্চল (সেজ) এবং বড় আকারের শিল্প-গুচ্ছকে নতুন করে উত্‌সাহিত করার কথাও বলেছেন অর্থমন্ত্রী। এ-সবই শিল্পের অনুকূল। সরকার নাকি কিছু কিছু রাজ্যে শিল্প-পার্ক নির্মাণে চিনা বিনিয়োগে উত্‌সাহ দিতে চায়।

অর্থমন্ত্রী প্রতিরক্ষা ও বিমায় বিদেশি বিনিয়োগের সর্বোচ্চ সীমা বাড়িয়ে ২৬ থেকে ৪৯ শতাংশ করার প্রস্তাব দিয়েছেন। অস্ত্র আমদানিতে ভারত পৃথিবীতে সবার আগে। প্রতিরক্ষার সরঞ্জাম দেশে তৈরি করতে পারলে বিদেশি মুদ্রার খরচ কমবে, কর্মসংস্থানও বাড়বে, বাড়বে সরকারি রাজস্বও। কিন্তু প্রতিরক্ষা শিল্পের নিয়ন্ত্রণ সরকারের হাতে রেখে দিলে বিদেশি বিনিয়োগ এবং প্রযুক্তি কতটা সত্যিই আসবে, সে বিষয়ে সংশয় আছে। অর্থমন্ত্রী এ বিষয়ে সচেতন, কিন্তু তিনি বিভিন্ন সাক্ষাত্‌কারে জানিয়েছেন, ভারতের বর্তমান রাজনৈতিক পরিবেশে প্রতিরক্ষা ক্ষেত্রে বিদেশি উদ্যোগীকে সংখ্যাগরিষ্ঠ মালিকানা বা পরিচালনার নিয়ন্ত্রণ ছেড়ে দেওয়া কঠিন। মনে রাখতে হবে, সঙ্ঘ পরিবারের মধ্যেই 'স্বদেশি'র প্রবক্তারা প্রবল। অন্য দিকে, রাষ্ট্রায়ত্ত ব্যাঙ্ক, বিমা কোম্পানি এবং কোল ইন্ডিয়ার মতো সংস্থাগুলিতে সরকারি মালিকানার অনুপাত ৫১ শতাংশের নীচে নামাতে গেলে সংসদে বিল পাশ করাতে হবে। সেটা এখন কঠিন কাজ, কারণ রাজ্যসভায় এনডিএ-র সংখ্যার জোর নেই। প্রসঙ্গত, রেল বাজেটেও বিদেশি বিনিয়োগের প্রস্তাব আছে, যদিও এ বিষয়ে বিশদ করে কিছু বলা হয়নি।

বিনিয়োগ এবং শিল্পপ্রসারের পথে সমস্ত বাধা শুধু বাজেট দিয়েই দূর করা যাবে, এটা অবশ্যই কেউ আশা করেন না। যেমন, সাম্প্রতিক জমি অধিগ্রহণ আইন সম্পর্কে শিল্পোদ্যোগীদের নানা আপত্তি আছে। তাঁরা মনে করেন, এই আইন জমি অধিগ্রহণের প্রক্রিয়াকে অস্বাভাবিক বিলম্বিত করে তুলবে। তা ছাড়া, অরণ্য আইন এবং পরিবেশ সংক্রান্ত ছাড়পত্র পেতে দেরি হওয়ার ফলেও অনেক প্রকল্প দীর্ঘ দিন আটকে আছে। শ্রম আইনের জটিলতা ও ঠিকা শ্রমিক নিয়োগের ক্ষেত্রে নানা বিধিনিষেধও শিল্পের একটা সমস্যা। কিন্তু এ সবের সমাধান অর্থ মন্ত্রকের হাতে নেই। পরিকাঠামোর সমস্যাও বিস্তর, যথা, খারাপ রাস্তা, বন্দরে মাল খালাসে দেরি, রেল ওয়াগনের অভাব, কয়লা ও বিদ্যুত্‌ সরবরাহে অনিশ্চয়তা। পরিকাঠামোর উন্নতিসাধনে অর্থ বরাদ্দ অর্থমন্ত্রীর কাজ, বস্তুত এই বাজেটে পরিকাঠামোর বিভিন্ন খাতে, বিশেষ করে সেচ বা হিমঘরের মতো কৃষি-পরিকাঠামোয় অনেকটা অর্থই বরাদ্দ করা হয়েছে, কিন্তু অর্থ বরাদ্দ হলেই পরিকাঠামো হয় না।

সব কিছু বাজেটে ঘোষণা না করে বা বেশি ঢাকঢোল না পিটিয়ে সরকার অনেক পরিবর্তন আনতে পারে। যেমন, চিদম্বরম উত্‌পাদন শুল্কে যে সব ছাড় দিয়েছিলেন, সেগুলির মেয়াদ চুপচাপ ডিসেম্বর অবধি বাড়িয়ে দেওয়া হয়েছে। আবার, রেল বাজেটের আগেই যাত্রিভাড়া ও পণ্য-মাসুল বাড়ানো হয়েছে। শোনা যাচ্ছে, ডিজেলের মতোই রান্নার গ্যাসের ক্ষেত্রেও নিয়মিত অল্প অল্প করে দাম বাড়িয়ে ভর্তুকি কমানো হতে পারে। রাজস্থানে বিজেপি সরকার রাজনৈতিক বিরোধিতা সত্ত্বেও শ্রম আইন সংশোধনে উদ্যোগী হয়েছে। তারা সফল হলে অন্য রাজেও এমন উদ্যোগ দেখা যেতে পারে। আইন মন্ত্রক জমি অধিগ্রহণ আইন সংশোধনের চেষ্টা শুরু করতে পারে। আধার কার্ড সম্পর্কে মোদী সরকারের প্রাথমিক আপত্তি থাকলেও এখন শোনা যাচ্ছে, খাদ্য, সার, রান্নার গ্যাস এবং কেরোসিনের ক্ষেত্রে প্রাপকের হাতে ভর্তুকির টাকা সরাসরি তুলে দেওয়ার জন্য সরকার আধার কার্ড বা অনুরূপ কোনও পরিচয়পত্রের সাহায্য নিতে পারে। এমনকী খুচরো ব্যবসায় বিদেশি বিনিয়োগে অনুমতি দেওয়ার সম্ভাবনাও অর্থমন্ত্রী পুরোপুরি নাকচ করেননি, তিনি আপাতত বলেছেন, আগে অন্য সহজতর ক্ষেত্রে সংস্কারের কাজ হোক, তার পর জটিল ব্যাপারগুলি নিয়ে ভাবা যাবে। বস্তুত, কোনও বিদেশি কোম্পানি ভারতে কিছুটা উত্‌পাদন করলে তাকে এ দেশে মাল্টিব্র্যান্ড ই-রিটেলিংয়ের অনুমোদন দেওয়া হয়েছে, এর পরিধি ক্রমশ প্রসারিত হতে পারে।

হয়তো বলা চলে, সরকার 'অলক্ষ্যে সংস্কার'-এর পথ বেছে নিতে চায়। আমাদের মতো শোরগোলপ্রবণ অস্থির গণতন্ত্রে সেটা বিচক্ষণতার পরিচায়ক হতে পারে।

ইন্ডিয়ান ইনস্টিটিউট অব ম্যানেজমেন্ট কলকাতা'য় অর্থনীতির ভূতপূর্ব শিক্ষক।

Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Just a Month of Modi Dispels Years of Gloom


NEW DELHI

OUR BUREAU





Are Good Days Here? Exports are up, inflation is cooling, and factory production and services activity have gathered pace. The man on Dalal St is also celebrating

The first full month under the Narendra Modi government's watch turned out to be a good one for the economy with macro indicators looking up and inflation lower despite lingering monsoon doubts, suggesting that growth could have finally bottomed out.

Exports rose 10.2% in June from a year ago, the government said on Wednesday , marking yet another positive development following a series of good numbers in recent days that suggest the economy is picking up from decade-low growth rates in the past two years. Industrial production rose to a 19-month high of 4.7% in May while car sales rose at their fastest pace in 10 months in June, clearly indicating that the consumer was more confident of the new government shaping recovery .

Services activity rose to a 17-month high in June on the strength of robust order flow, according to the HSBC Purchasing Managers' Index, indicating rising optimism in the sector that has a share of more than 60% in the economy .

Imports rose for the first time in a year, at around 8.3%, confirming some sort of recovery in the domes tic economy even after discounting for higher gold imports, which rose nearly 65% in June after the Reserve Bank of India eased rules by allowing more entities to import gold.

India's other big concern, retail inflation, dropped to 7.31% in June, the lowest since the government started reporting consumer price index inflation in January 2012, although the monsoon fears loom large.

And to top it all, the trade deficit was $11.78 billion in June, the highest in a year, but only marginally more than $11.28 billion in May .









Jul 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)

ON SELLING SPREE - Big Exits by D-St's Small Investors

RAJESH MASCARENHAS

MUMBAI





As shares surge, retail investors book profits

In the stock market surge over the past few months — through the run-up to the elections that the Narendra Modi-led BJP won and subsequently — overseas investors have clearly been buying big time.

So who's been selling? Domestic retail investors, looking to book profit as shares surged, some of them exiting after having entered as far back as seven years ago. Experts suggested they may have been in too much of a rush to get out.

Data for the 1,000 or so companies that have published shareholding patterns for the quarter ended June show small investors have reduced their stake in more than two-thirds of them, irrespective of sectors or size. Though they exited substantially from high beta midcap stocks, some large cap stocks such as SBI, Tata Steel, Reliance Capital and JSW Steel also saw retail shareholders moving out.



भारतीय स्टेट बैंक बिकने चला बाजार,सबसे पहले सबसे कीमती कंपनी ओएनजीसी में विनिवेश करने का फैसला।

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भारतीय स्टेट बैंकबिकने चला बाजार,सबसे पहले सबसे कीमती कंपनी ओएनजीसीमें विनिवेश करने का फैसला।

पलाश विश्वास

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) अगले 2 साल में शेयरबेचकर 20,000 करोड़ रुपये जुटा सकता है।बैंक शेटर बेचकर यह रकम जुटायेगा और इस प्रक्रिया में बैंक के सरकारी शेटर जो पहले ही घचा दिये गये हैं,58.6 प्रतिशत से 51 प्रतिशत तक सिमटा देने की विनिवेश योजना है।कम से कम 53 परतिशत तक सरकारी शेयर घटा देने का टार्गेट है।दरअसल शेयर बाजार में सांढ़ों के धमाल का असली रहस्य यही केसरिया विनिवेश कार्यक्रम है।


देश बेचो अभियान के तहत विनिवेश पर फिर से काम तेज हो गया है। मोदी सरकार ने सबसे पहले अपनी सबसे कीमती कंपनी ओएनजीसीमें विनिवेश करने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) का रास्ता अपनाएगी।ओएफएस के जरिए सरकार ओएनजीसी में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी। सरकार ने इसके लिए मर्चेंट बैंकर्स से बोलियां भी मंगवाई है और मर्चेंट बैंकरों के पास इसमें हिस्सा लेने के लिए 6 अगस्त तक का वक्त है।


दरअसल, गैस मूल्य के साथ ही सरकारी कंपनी ओएनजीसी के विनिवेशका मुद्दा भी जुड़ा हुआ है। गैस कीमत बढ़ने के फैसले के बाद ही ओएनजीसी में विनिवेश कार्यक्रम को लागू करने का फायदा होगा।गैस कीमते बढ़ने से किसे पायदा होना है,सारा देश जानता है।


भारत सरकार के फाइनेंशियल सर्विस सचिव जी एस संधू के मुताबिक सभी पीएसयू बैंकों के विनिवेश का काम 4-5 साल में पूरा होगा। बैंकों का विनिवेश एफपीओ की बजाय राइट्स इश्यू या एफपीओ के जरिए किया जाएगा। साथ ही बैंकों के विनिवेश में पहली प्राथमिकता रिटेल निवेशकों को दी जाएगी। एफपीओ में रिटेल निवेशकों का हिस्सा बढ़ाने पर बातचीत चल रही है।


केसरिया बजट पेश करने के बाद सरकार बड़े पैमाने पर विनिवेश की भी तैयारी कर रही है। कोल इंडियामें 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने और ओएनजीसीमें 5 फीसदी विनिवेश के लिए ड्राफ्ट नोट तैयार कर लिया गया है। माना जा रहा है कि सितंबर-अक्टूबर में इन दोनों कंपनियों का विनिवेश हो सकता है।


कोल इंडिया में हिस्सा बेचकर सरकार 25000 करोड़ रुपये जुटाने वाली है। वहीं, ओएनजीसी विनिवेश के जरिए सरकार को 15000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। इन दोनों कंपनियों में हिस्सा बेचकर सरकार वित्त वर्ष 2015 का विनिवेश लक्ष्य हासिल करगी।


वैसे सरकार के विनिवेश प्लान में सेलऔर एनएचपीसीभी शामिल हैं। सेल में 5 फीसदी और एनएचपीसी में 11.4 फीसदी हिस्सा बिकने की उम्मीद है।



गौरतलब है कि निजी बैंको को लाइसेंस देने से पहले केसरिया कारपोरेट सरकार बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास पलट देने की जुगत में है और सारे सरकारी बैंकों के सरकारी शेयर 51 फीसद तक घटा दिये जाने की योजना है ताकि जरुरत और मौके के हिसाब से स्ट्रेटिजिक सेल के जरिये इन बैंको का एक के बाद एक सेल आफ हो जाये।


मुनाफा,नेटवर्क और पूंजी के हिसाब से एसबीआई चूंकि अव्वल नंबर पर है और उसकी इस हैसियत से बैंकिंग में एफडीआई का खास असर नहीं हो रहा है और न ही निजी कंपनियों को एसबीआई की मौजूदगी में कोई बाजार मिल सकता है ,इसलिए इसे मरघट तक पहुंचाकर एअरइंडिया और ओएनजीसी का अंजाम दिया जाना है।


अटल शौरी जमाने की डिसइंवेस्टमेंट कौंसिल की रपटमुताबिक जो विनिवेश रोड मैप है,उसके तहत  सबसे ज्यादा फायदे में चलने वाले सराकारी उपक्रमों को सबसे पहले  बेच डालने की यजना है।जिसके तहत बीएसएलएन,बाल्को,नेल्को और एअर इंडिया का बंटाढार हो चुका है।


रिलायंस एकाधिकार के जरिये ओएनजीसी और दूसरी सरकारी तेल कंपनियों को बेच डालने की पूरी तैयारी है।


जाहिर है कि टेलीकाम, बिजली, चिकित्सा, शिक्षा, सूचना, इस्पात, बंदरगाह, विमानन, डाकतार,माइंनिंग,रेलवे,विमानन,बीमा,निर्माण,विनिर्माण,परिवहन जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों की सांढ़ संस्कृति के वर्चस्व के बावजूद भारत में बेसरकारीकरण के रास्ते पर सबसे बड़ा अवरोध एसबीआई है,जिसका देहात नेटव्रक कृषि जीवी अधिसंख्य भारतीयों की आर्थिक गतिविधियों का मूलाधार है।


निजी बीमा कंपनियों को परमिशन और बीमा में एफडीआई से भारतीय जीवनबीमा निगम की निर्विरोध हत्या के बाद अब बारी एसबीआई की है।पंजाब नेशनल बैंक इसके साथ ही सिधार जायेगा।एकीकरण के बहाने जो बैंक और वित्तीयसंस्थान एसबीआई में समाहित कर दिये गये,एसबीआई के साथ जाहिर है कि उन्हें भी तिलांजलि दे दी जायेगी।


अभूतपूर्व कोयलासंकट के जरिये ब्लैकआउट मध्ये कोल इंडिया का देर सवेर सेल आफ भी तय है।तो सरकार ने हिंदुस्तान जिंकऔर बाल्को के विनिवेश प्रक्रिया को तेज कर दिया है। इसी साल दोनों कंपिनयों का विनिवेश कर दिया जाएगा। विनिवेश सचिव रवि माथुर ने सीएनबीसी आवाज़ के साथ खास बातचीत में कहा कि हिंदुस्तान जिंक के लिए मूल्यांकन करने वालों की नियुक्ति हो चुकी है और अगले 6-8 हफ्ते में इसकी रिपोर्ट मिल जाएगी।


आजतक के मुताबिक नई सरकार अपने बड़े विनिवेश कार्यक्रम की शुरुआत सितंबर में इस्पात कंपनी सेल की 5 फीसद हिस्सेदारी बिक्री से करेगी।


उसके बाद  नई सरकार  के देश बेचो अभियान के तहत ओएनजीसी व सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली कंपनियों मसलन ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी), पावर फाइनेंस कारपोरेशन (पीएफसी) व एनएचपीसी का विनिवेश किया जाएगा।


सेल की शेयर ब्रिकी के लिए विनिवेश विभाग इस माह के अंत तक सिंगापुर, हांगकांग, अमेरिका, ब्रिटेन व यूरोप में रोड शो की शुरुआत करेगा।


एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि विदेशी की भांति घरेलू रोड शो भी महत्वपूर्ण हैं. इनको पूरा होने में सामान्य तौर पर एक माह का समय लगता है।


गौरतलब है कि  वित्त वर्ष 2014-15 के बजट में विनिवेश से 43,425 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से 30 प्रतिशत विनिवेश (18,000 करोड़ रुपये) ओएनजीसी की 5 फीसद हिस्सेदारी बिक्री से आने की उम्मीद है। इसके अलावा कोल इंडिया में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी का विनिवेश हो सकता है। इससे सरकार को 23,000 करोड़ रुपये तक मिल सकते है।


मौजूदा 85 रुपये प्रति शेयर के मूल्य पर सेल के 5 प्रतिशत विनिवेश यानी 20.65 करोड़ शेयरों की बिक्री से सरकार को 1,800 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।



यह अभूतपूर्व कोयला संकट दरअसल कोलइंडिया के विनिवेश की रंगीन बहुआयामी पृष्ठभूमि रचना है,जिसके तहत पूरे देश में पावर की सप्लाई गड़बड़ा सकती है। एनटीपीसीने सरकार से कहा है कि कोयले की कमी की वजह से कंपनी के 17000 मेगावॉट के 6 प्लांट कभी भी बंद हो सकते हैं। एनटीपीसी के सीएमडी अरुप चौधरी ने ऊर्जा मंत्रालय को चिट्टी लिखकर जानकारी दी है कि कंपनी के पास कोयले का मुश्किल से 2 दिन का कोयला बचा है।


एनटीपीसी को मॉनसून की वजह से कोयले को दोबारा भरने में भारी दिक्कतें आ रही हैं। सप्लाई में थोड़ी गड़बड़ी से पूरी क्षमता पर असर पड़ने की आशंका है। कंपनी के 6 में से 3 प्लांट के पास 1 दिन से भी कम की सप्लाई बाकी है। ऊर्जा मंत्रालय ने कोयला और ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से हस्तक्षेप की मांग की है। हालांकि, भारतीय रेलवे ने कोयले के ट्रांसपोर्ट के लिए अतिरिक्त रेक देने से इनकार किया है।



कहा जा रहा है कि  बैंक यह पैसा फंडिंग की जरूरतें पूरी करने और एक्सपेंशन के लिए जुटाएगा। शेयरबाजार में हालिया तेजी के बाद एसबीआईका शेयरभी काफी चढ़ा है।दूसरी ओर बाजार विशेषज्ञ इक्विटीरश के कुणाल सरावगी के मुताबिक जबतक एसबीआई2700 रुपये के ऊपर नहीं जाता तबतक दोबारा तेजी बनते नहीं दिखेगी। अगर बाजार में नरमी आती है तो उसको बैंकिंग शेयर लीड कर सकते हैं। एसबीआई को 2700-2680 रुपये का स्टॉपलॉस लगाकर शॉर्ट किया जा सकता है। एसबीआई 2500 रुपये तक नीचे आ सकता है।


गौरतलब है किस्टेट बैंक आफ इंडिया (State bank of India / SBI) भारतका सबसे बड़ी एवं सबसे पुरानीबैंकएवं वित्तीय संस्था है। इसका मुख्यालय मुंबईमें है। यह एक अनुसूचित बैंक (scheduled bank) है।दस हज़ार शाखाओं और 8,500 एटीएम के नेटवर्क वाला भारतीय स्टेट बैंक सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों में सबसे बड़ा बैंक है।

गौरतलब है कि बजट पेश होते ही 14 जुलाई को फाइनेंशियल सर्विस सचिव जी एस संधूका कहना था कि इस साल 3-4 बैंकों का इश्यू आ सकता है। वहीं बैंकों के विनिवेश की प्रक्रिया इस साल शुरू करने वाले हैं। इस साल एसबीआई, पीएनबीऔर बैंक ऑफ बड़ौदामें विनिवेश किया जा सकता है। सरकार ने एसबीआई कैपिटल को विनिवेश के रोडमैप का काम सौंपा गया है।


यह विडंबना ही है कि एसबीआई कैपिटल विनिवेश का रोडमैप बना रहा है जबकि एसबीआई का विनिवेश इस पूरी योजना का सबस बड़ा लक्ष्य है।


जी एस संधू का कहना है कि  इस साल पीएसयू बैंकों में 11,200 करोड़ रुपये की पूंजी डाली जाएगी। पीएसयू बैंकों को 2.4 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी की जरूरत है। इस साल एसबीआई की कम से कम 1 सब्सिडियरी बैंक का विलय हो सकता है। साथ ही कुछ और बैंकों का भी विलय संभव है।


सिद्धांत तौर पर अगर पब्लिक सेक्टर के बैंकों में सरकार का स्टेक 51 पर्सेंट तक बना रहता है तो उन्हें शेयर बाजार से पैसा जुटाने की इजाजत देने में कोई दिक्कत नहीं है। अगर एसबीआई के फंड जुटाने के इस प्रपोजल को मंजूरी मिली तो उसमें सरकार की हिस्सेदारी 58.6 पर्सेंट से घटकर 53 पर्सेंट पर आ सकती है। हालांकि इस मामले में बैंक की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्या ने कॉमेंट करने से इनकार कर दिया।


बाजल 3 नॉर्म्स पूरा करने के लिए सरकारी बैंकों को 2019 तक 2.4 लाख करोड़ की जरूरत है। हालांकि, इस फाइनैंशल ईयर में केंद्र ने उनके लिए सिर्फ 11,200 करोड़ रुपये ही अलग रखे हैं।


पिछले हफ्ते फाइनैंशल सर्विसेज सेक्रेटरी जी. एस. संधू ने कहा था कि सरकार एक रोडमैप बना रही है, जिसमें पब्लिक सेक्टर के बैंकों को शेयर बाजार से फंड जुटाने की इजाजत दी जा सकती है। उन्होंने कहा था, 'हम एक स्ट्रैटेजी बना रहे हैं। इसमें बताया जाएगा कि सरकारी बैंकों में हम अपनी होल्डिंग कितनी कम कर सकते हैं। यह रोडमैप अगले 5 साल के लिए हो सकता है।'


10 जुलाई को बजट स्पीच में फाइनैंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार पब्लिक सेक्टर बैंकों में कंट्रोलिंग स्टेक रखते हुए उन्हें शेयर बेचकर फंड जुटाने की इजाजत देगी। इसमें ख्याल रखा जाएगा कि इससे सरकारी बैंकों में रिटेल इनवेस्टर्स का स्टेक बढ़े। इस फाइनैंशल ईयर में एसबीआई एक सहयोगी बैंक का अपने साथ मर्जर कर सकता है।


शेयर बेचकर जो पैसा जुटाया जाएगा, उसका एक हिस्सा इस पर खर्च हो सकता है। एसबीआई के एक ऑफिशल ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि हम लंबे समय में फंडिंग जरूरतों को पूरा करने का प्लान बना रहे हैं। अगर हमें इसके लिए पहले से मंजूरी मिल जाती है तो सही समय पर इश्यू लाए जा सकते हैं। इस साल जनवरी में एसबीआई ने क्वॉलिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्रोग्राम के जरिये शेयर बेचकर 8,032 करोड़ रुपये जुटाए थे। हालांकि, इसमें से ज्यादातर शेयर सरकारी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी ने खरीदे थे। तब शेयर बाजार दबाव में था और अब हालात पूरी तरह बदले हुए हैं।


२ जून, १८०६ को कलकत्तामें 'बैंक ऑफ़ कलकत्ता' की स्थापना हुई थी। तीन वर्षों के पश्चात इसको चार्टरमिला तथा इसका पुनर्गठन बैंक ऑफ़ बंगाल के रूप में २ जनवरी, १८०९ को हुआ। यह अपने तरह का अनोखा बैंक था जो साझा स्टॉक पर ब्रिटिश इंडियातथा बंगाल सरकार द्वारा चलाया जाता था। बैंक ऑफ़ बॉम्बे तथा बैंक ऑफ़ मद्रास की शुरुआत बाद में हुई। ये तीनों बैंक आधुनिक भारतके प्रमुख बैंक तब तक बने रहे जब तक कि इनका विलय इंपिरियल बैंक ऑफ़ इंडिया (हिन्दी अनुवाद - भारतीय शाही बैंक) में २७ जनवरी १९२१ को नहीं कर दिया गया। सन १९५१ में पहली पंचवर्षीय योजनाकी नींव डाली गई जिसमें गांवों के विकास पर जोर डाला गया था। इस समय तक इंपिरियल बैंक ऑफ़ इंडिया का कारोबार सिर्फ़ शहरों तक सीमित था। अतः ग्रामीण विकास के मद्देनजर एक ऐसे बैंक की कल्पना की गई जिसकी पहुंच गांवों तक हो तथा ग्रामीण जनता को जिसका लाभ हो सके । इसके फलस्वरूप १ जुलाई १९५५ को स्टेट बैंक आफ़ इंडिया की स्थापना की गई। अपने स्थापना काल में स्टेट बैंक के कुल ४८० कार्यालय थे जिसमें शाखाएं, उप शाखाएं तथा तीन स्थानीय मुख्यालय शामिल थे, जो इम्पीरियल बैंकों के मुख्यालयों को बनाया गया था ।


राष्ट्रीयकरण

भारतीय स्टेट बैंक के राष्ट्रीयकरण के समय भारतीय स्टेट बैंक साथ संसदमें वर्ष 1959 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (सब्सिडियरी बैंक) अधिनियम पारित कर एसबीआई को 8 पूर्व सहयोगी बैकों (वर्तमान में केवल 7) के अधिग्रहण का अधिकार दिया गया, जिससे ये बैंक एसबीआई के सहायक बैंकबन गये और इसे स्टेट बैंक समूह का नाम दिया गया।

कारोबार (बिज़नेस)

कारोबारी साल 2008 - 09 में बैंक का शुद्ध लाभ 35.5% बढ़ कर 9,120.9 करोड़ रुपये रहा। इस दौरान इसकी ब्याज से होने वाली आय में 22.6 % की वृद्धि दर्ज की गयी और यह 20,873 करोड़ रुपये हो गयी। साल 2008 - 09 में एसबीआई के कुल कर्जों में 29.8% की बढ़त आयी, जबकि इसकी जमाराशियाँ 38% की दर से बढ़ीं।[1]भारतीय स्टेट बैंक को 2009 - 10 की दूसरी तिमाही में 2,490.04 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है। एसबीआई कैपिटल मार्केट्स लिमिटेड भारतीय स्टेट बैंक की सब्सिडियरी है, जो इनवेस्टमेंट बैंकिंग का कारोबार देखती है। साथ ही बैंक ने साधारण बीमा के लिए इंश्योरेंस ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के साथ करार किया है। इसके अलावा बैंक प्राइवेट इक्विटी, वेंचर कैपिटल, म्युचुअल फंड्स जैसे क्षेत्रों में भी कार्यरत है। एसबीआई ने अपने सभी सहयोगी बैंकों के अपने साथ विलय की योजना बनायी है। सात सहयोगी बैंकों में से स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में एसबीआई की 100 % हिस्सेदारी है। जबकि शेष चार बैंको - स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ ट्रैवेनकोर और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में इसकी 75 % से 98 % तक हिस्सेदारी है।[1]

भारतीय स्टेट बैंक के सहयोगी बैंक

  • स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपुर

  • स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद

  • स्टेट बैंक ऑफ़ मैसूर

  • स्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला

  • स्टेट बैंक ऑफ़ त्रावणकोर



विनिवेश को रफ्तार देने में जुटी सरकार

इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली July 13, 2014





सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की इस्पात निर्माता कंपनी सेल में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है। इसके तहत सरकार इस माह विदेशी निवेशकों को कंपनी में इक्विटी खरीद के प्रति आकर्षित करने के लिए रोड शो शुरू कर सकती है। एक अधिकारी ने बताया कि सिंगापुर ओर हॉन्ग कॉन्ग के अलावा अन्य जगहों पर विनिवेश के लिए रोड शो आयोजित किए जा सकते हैं। विनिवेश की खबरों से सेल का शेयर शुक्रवार को बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर 6.06 फीसदी गिरकर 82.15 रुपये पर आ गया। मौजूदा शेयर भाव के हिसाब से सरकार को 5 फीसदी हिस्सेदारी के विनिवेश से करीब 1,700 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील सरकार के कैबिनेट से पहले ही सेल के विनिवेश को मंजूरी मिल चुकी है।

मोदी सरकार ने बजट में विनिवेश के जरिये 43,425 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है, वहीं हिंदुस्तान जिंक और भारत एल्युमीनियम कंपनी (बालको) की शेष हिस्सेदारी बेचकर 15,000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना है। विनिवेश के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार कोल इंडिया में 10 फीसदी और ओएनजीसी में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की संभावना तलाश रही है। इन दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी बेचकर सरकार विनिवेश लक्ष्य का बड़ा हिस्सा जुटा सकती है। शुक्रवार को कोल इंडिया का शेयर 2.34 फीसदी गिरकर 362.45 रुपये पर बंद हुआ। इस भाव पर विनिवेश से सरकार को करीब 22,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। इसके साथ ही ओएनजीसी की 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए पहले ही कैबिनेट प्रस्ताव जारी किया जा चुका है। इससे सरकार को करीब 17,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। ऐसे में मौजूदा शेयर भाव पर कोल इंडिया और ओएनजीसी के विनिवेश ही सरकार को करीब 39,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। हालांकि विनिवेश के समय शेयर भाव में बदलाव संभव है।

एक अधिकारी ने कहा, 'विनिवेश लक्ष्य का बड़ा हिस्सा कोल इंडिया और ओएनजीसी से आएगी।' हालांकि कोल इंडिया के विनिवेश को लेकर पूर्ववर्ती सरकार को कर्मचारी संगठन के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। केपीएमजी के भारत में पार्टनर और प्रमुख (बुनियादी ढांचा और सरकारी सेवा) अरविंद महाजन ने कहा, 'विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने में कोल इंडिया की अहम भूमिका होगी। हालांकि कर्मचारी संगठनों को विनिवेश का उचित तर्क समझाना होगा और यह बताना होगा कि प्रबंधन सरकार के हाथों में ही रहेगा।' कंपनी में विनिवेेश के बावजूद सरकार के पास करीब 80 फीसदी हिस्सेदारी होगी। अधिकारी ने बताया कि इन दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने को लेकर कोई समयसीमा तय नहीं की गई है। विनिवेश को लेकर पूरा खाका दो माह के अंदर तैयार हो सकता है।

महाजन का मानना है कि 43,450 करोड़ रुपये के लक्ष्य का हासिल किया जा सकता है लेकिन सरकार को इसके लिए जल्द निर्णय लेना होगा ताकि बाजार में तेजी का फायदा उठाया जा सके। सरकार इसके अलावा, एनएचपीसी, राष्टï्रीय इस्पात निगम और मॉयल में भी विनिवेश की संभावना तलाश सकती है। अधिकारी ने बताया कि दो अन्य बिजली कंपनियों में भी सरकार अपनी हिस्सेदारी घटा सकती है। हालांकि उन कंपनियों के नाम का जिक्र नहीं किया गया। सेल, एनएचपीसी, मॉयल और कोल इंडिया के विनिवेश के जरिये सरकार को सेबी के न्यूनतम 25 फीसदी सार्वजनिक शेयरधारिता के नियम को भी पूरा करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा कई अन्य कंपनियां हैं जहां अगले तीन साल में सरकार को अपनी हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी करनी है।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=89205



Jul 18 2014 : The Economic Times (Kolkata)

COMING SOON TO DALAL STREET - A HUMDINGER . Rs 20,000-Crore ` Share Sale by SBI

DHEERAJ TIWARI

NEW DELHI





Largest lender in talks with finance r ministry; govt may pare stake to 53%

State Bank of India may raise about `. 20,000 crore by selling shares over two years to fund capital requirements and expansion plans as it looks to take advantage of the surge in stock prices, driven by optimism about the Narendra Modi government putting economic growth back on track.

India's largest bank is in discussions with the finance ministry over its financial requirements. The government is expected to support the plan as it's open to lowering its stake in state-run banks to 51%, besides which it doesn't have anywhere near the money needed to infuse the capital they require.

"We are in talks," said a government official aware of the deliberations. "In principle, our stand is that banks can explore the markets provided the government retains majority stake."

The government's stake will drop to around 53% from 58.6% if it approves SBI's capitalraising proposal.

SBI Chairman Arundhati Bhattacharya declined comment.

Public sector banks require additional common equity of Rs 2.4 lakh crore by 2018 to meet Basel III norms.

But the government has allocated just a relatively paltry Rs 11,200 crore for bank capitalisation in this fiscal.

Last week, Financial Services Secretary GS Sandhu had said the government was drawing up a road map for state-run banks to raise resources from the market.

"We are devising a strategy on how much stake dilution can be done in state-run banks.

This will be staggered over five years," he had said.

In his budget speech on July 10, Finance Minister Arun Jaitley had said the government proposes to raise capital through the sale of shares largely through the retail route while retaining a majority stake in state-run banks.

SBI is also looking to absorb at least one of its associate banks in this fiscal year and some of the money raised through the public offer will go toward this.







भारतीय स्टेट बैंक

http://hi.wikipedia.org/s/nho

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

Sbi logo.gif


प्रकार

सार्वजनिक (BSE, NSE:SBI) & (एलएसई: SBID)

उद्योग

बैंकिंग

बीमा

पूंजी बाजारऔर संबद्ध उद्योग

स्थापना

Flag of भारतकलकत्ता, १८०६ (बैंक ऑफ़ कैलकटा के रूप मे)

मुख्यालय

कोर्पोरेट सेंटर,

मैडम कामा रोड,

मुंबई४०० ०२१ भारत

प्रमुख व्यक्ति

अरुंधति भट्टाचार्य, अध्यक्षा (चेयरपर्सन) (७ अक्टूबर २०१३ से [1] -)

उत्पाद

ऋण, क्रेडिट कार्ड, बचत, निवेश के साधन, एस बी आई लाइफ (बीमा) आदि

राजस्व

Green Arrow Up Darker.svgरु 200559.83 करोड़ (2013)

प्रबंधन आधीन परिसंपत्तियां

Green Arrow Up Darker.svgशुद्ध लाभ रु 18322.99 करोड़ (2013) [2]

कुल संपत्ति

रु 2136133 करोड़ (2013)

मुंबई में भारतीय स्टेट बैंक का आँचलिक कार्यालय

स्टेट बैंक आफ इंडिया (State bank of India / SBI) भारतका सबसे बड़ी एवं सबसे पुरानीबैंकएवं वित्तीय संस्था है। इसका मुख्यालय मुंबईमें है। यह एक अनुसूचित बैंक (scheduled bank) है।

२ जून, १८०६ को कलकत्तामें 'बैंक ऑफ़ कलकत्ता' की स्थापना हुई थी। तीन वर्षों के पश्चात इसको चार्टरमिला तथा इसका पुनर्गठन बैंक ऑफ़ बंगाल के रूप में २ जनवरी, १८०९ को हुआ। यह अपने तरह का अनोखा बैंक था जो साझा स्टॉक पर ब्रिटिश इंडियातथा बंगाल सरकार द्वारा चलाया जाता था। बैंक ऑफ़ बॉम्बे तथा बैंक ऑफ़ मद्रास की शुरुआत बाद में हुई। ये तीनों बैंक आधुनिक भारतके प्रमुख बैंक तब तक बने रहे जब तक कि इनका विलय इंपिरियल बैंक ऑफ़ इंडिया (हिन्दी अनुवाद - भारतीय शाही बैंक) में २७ जनवरी १९२१ को नहीं कर दिया गया। सन १९५१ में पहली पंचवर्षीय योजनाकी नींव डाली गई जिसमें गांवों के विकास पर जोर डाला गया था। इस समय तक इंपिरियल बैंक ऑफ़ इंडिया का कारोबार सिर्फ़ शहरों तक सीमित था। अतः ग्रामीण विकास के मद्देनजर एक ऐसे बैंक की कल्पना की गई जिसकी पहुंच गांवों तक हो तथा ग्रामीण जनता को जिसका लाभ हो सके । इसके फलस्वरूप १ जुलाई १९५५ को स्टेट बैंक आफ़ इंडिया की स्थापना की गई। अपने स्थापना काल में स्टेट बैंक के कुल ४८० कार्यालय थे जिसमें शाखाएं, उप शाखाएं तथा तीन स्थानीय मुख्यालय शामिल थे, जो इम्पीरियल बैंकों के मुख्यालयों को बनाया गया था ।

अनुक्रम

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इतिहास[संपादित करें]

भारतीय स्टेट बैंक का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में 2 जून 1806 कोबैंक ऑफ कलकत्ताकी स्थापना के साथ हुआ। तीन साल बाद बैंक को अपना चार्टर प्राप्त हुआ और इसे 2 जनवरी 1809 को बैंक ऑफ बंगालके रुप में पुनगर्ठित किया गया। यह एक अद्वितीय संस्था और ब्रिटेन शासित भारत का प्रथम संयुक्त पूंजी बैंक था जिसे बंगाल सरकार द्वारा प्रायोजित किया गया था। बैंक ऑफ बंगाल के बाद बैंक ऑफ बॉम्बे की स्थापना 15 अप्रैल 1840 को तथा बैंक ऑफ मद्रास की स्थापना 1 जुलाई 1843 को की गई। ये तीनो बैंक 27 जनवरी 1921 को उनका इंपीरियल बैंक ऑफ इंडियाके रुप में समामेलन होने तक भारत में आधुनिक बैंकिंग के शिखर पर रहे।

मूलत: एंग्लो-इंडियनों द्वारा सृजित तीनों प्रसिडेंसी बैंक सरकार को वित्त उपलब्ध कराने की बाध्यता अथवा स्थानीय यूरोपीय वाणिज्यिक आवश्यकताओं के चलते अस्तित्व में आए न कि किसी बाहरी दबाव के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए इनकी स्थापना की गई। परंतु उनका प्रादुर्भाव यूरोपतथा इंग्लैंडमें हुए इस प्रकार के परिवर्तनों के परिणामस्वरुप उभरे विचारों तथा स्थानीय व्यापारिक परिवेश व यूरोपीय अर्थव्यवस्था के भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ने एवं विश्व-अर्थव्यवस्था के ढांचे में हो रहे परिवर्तनों से प्रभावित था।

स्थापना[संपादित करें]

बैंक ऑफ बंगाल की स्थापना के साथ ही भारत में सीमित दायित्व व संयुक्त-पूंजी बैंकिंग का आगमन हुआ। बैंकिंग क्षेत्र में भी इसी प्रकार का नया प्रयोग किया गया। बैंक ऑफ बंगाल को मुद्रा जारी करने की अनुमति देने का निर्णय किया गया। ये नोट कुछ सीमित भौगोलिक क्षेत्र में सार्वजनिक राजस्व के भुगतान के लिए स्वीकार किए जाते थे। नोट जारी करने का यह अधिकार न केवल बैंक ऑफ बंगाल के लिए महत्त्वपूर्ण था अपितु उसके सहयोगी बैंक, बैंक ऑफ बाम्बे तथा मद्रास के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण था अर्थात इससे बैंकों की पूंजी बढ़ी, ऐसी पूंजी जिसपर मालिकों को किसी प्रकार का ब्याज नहीं देना पड़ता था। जमा बैंकिंग अवधारणा भी एक नया कदम था क्योंकि देशी बैंकरों द्वारा भारत के अधिकांश प्रांतों में सुरक्षित अभिरक्षा हेतु राशि (कुछ मामलों में ग्राहकों की ओर से निवेश के लिए) स्वीकार करने का प्रचलन एक आम आदमी की आदत नहीं बन पाई थी। परंतु एक लंबे समय तक, विशेषकर उस समय जब तक कि तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को नोट जारी करने का अधिकार नहीं था बैंक नोट तथा सरकारी जमा-राशियाँ ही अधिकांशत: बैंकों के निवेश योग्य साधन थे।

तीनों बैंक रायल चार्टर के दायरे में कार्य करते थे, जिन्हें समय समय पर संशोधित किया जाता था। प्रत्येक चार्टर में शेयर-पूंजी का प्रावधान था जिसमें से पाँच-चौथाई निजी तौर पर दी जाती थी और शेष पर प्रांतीय सरकार का स्वामित्व होता था। प्रत्येक बैंक के कामकाज की देख-रेख करने वाले बोर्ड के सदस्य, ज्यादातर स्वत्वधारी-निदेशक हुआ करते थे जो भारत में स्थित बड़ी यूरोपीय प्रबंध एजेंसी गृहों का प्रतिनिधित्व करते थे। शेष सदस्य सरकार द्वारा नामित प्राय: सरकारी कर्मचारी होते थे जिनमें से एक का बोर्ड के अध्यक्ष के रुप में चयन किया जाता था।

व्यवसाय[संपादित करें]

प्रारंभ में बैंकों का व्यवसाय बट्टे पर विनिमय बिल अथवा अन्य परक्राम्य निजी प्रतिभूतियों को भुनाना, रोकड़ खातों का रख-रखाव तथा जमाराशियाँ प्राप्त करना व नकदी नोट जारी व परिचालित करना था। एक लाख रूपए तक ही ऋण दिए जाते थे तथा निभाव अवधि केवल 3 माह तक होती थी। ऐसे ऋणों के लिए जमानत सार्वजनिक प्रतिभूतियाँ थीं जिन्हें सामान्यतया कंपनी पेपर, बुलियन, कोष, प्लेट, हीरे-जवाहरात अथवा "नष्ट न होने वाली वस्तु" कहा जाता था तथा बारह प्रतिशत से अधिक ब्याज नहीं लगाया जा सकता था। अफीम, नील, नमक, ऊनी कपड़े, सूत, सूत से बनी वस्तुएँ, सूत कातने की मशीन तथा रेशमी सामान आदि के बदले ऋण दिए जाते थे परंतु नकदी ऋण के माध्यम से वित्त में तेजी केवल उन्नीसवीं सदी के तीसरे दशक से प्रारंभ हुई। सभी वस्तुएँ जिनमें चाय, चीनी तथा पटसन बैंक में गिरवी अथवा Òष्टिबंधक रखा जाता था जिनका वित्त-पोषण बाद में प्रारंभ हुआ। मांग-वचन पत्र उधारकर्ता द्वारा गारंटीकर्ता के पक्ष में जारी किए जाते थे जो बाद में बैंक को पृष्ठांकित कर दिए जाते थे। बैंको के शेयरों पर अथवा बंधक बनाए गए गृहों, भूमि अथवा वास्तविक संपत्ति पर उधार देना वर्जित था।

कंपनी पेपर जमा करके उधार लेने वालों में उधारकर्ता मुख्यतया भारतीय थे जबकि निजी एवं वेतन बिलों पर बट्टे के व्यवसाय पर मूल रुप से यूरोपीय नागरिकों तथा उनकी भागीदारी संस्थाओं का लगभग एकाधिकार था। परंतु जहाँ तक सरकार का संबंध है इन तीनों बैंको का मुख्य कार्य समय-समय पर ऋण जुटाने में सरकार की सहायता करना व सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्यों को स्थिरता प्रदान करना था।

स्थितियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन[संपादित करें]

बैंक आफ बंगाल, बॉम्बे तथा मद्रास के परिचालन की शर्तों में 1860 के बाद महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। 1861 के पेपर करेंसी एक्ट के पारित हो जाने से प्रेसिडेंसी बैंकों का मुद्रा जारी करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया तथा 1 मार्च 1862 से ब्रिटेन शासित भारत में कागज़ी मुद्रा जारी करने का मूल अधिकार भारत सरकार को प्राप्त हो गया। नई कागजी मुद्रा के प्रबंधन एवं परिचालन का दायित्व प्रेसिडेंसी बैंको को दिया गया तथा भारत सरकार ने राजकोष में जमाराशियों का अंतरण बैंकों को उन स्थानों पर करने का दायित्व लिया जहाँ बैंक अपनी शाखाएँ खोलने वाले हों। तब तक तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों की कोई शाखा नहीं थी (सिवाय बैंक आफ बंगाल द्वारा 1839 में मिरजापुर में शाखा खोलने के लिए किया गया एक मात्र छोटा सा प्रयास ) जबकि उनके संविधान के अंतर्गत उन्हें यह अधिकार प्राप्त था। परंतु जैसे ही तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को राजकोष में जमाराशियों का बिना रोक-टोक उपयोग करने का आश्वासन मिला तो उनके द्वारा तेजी से उन स्थानों पर बैंक की शाखाएँ खोलना प्रारंभ कर दिया गया। सन् 1876 तक तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों की शाखाएँ, अभिकरण व उप-अभिकरणों ने देश के प्रमुख क्षेत्रों तथा भारत के भीतरी भागों में स्थित व्यापार केंद्रो में अपना विस्तार कर लिया। बैंक ऑफ बंगाल की 18 शाखाएँ थीं जिसमें उसका मुख्यालय, अस्थायी शाखाएँ, तथा उप-अभिकरण शामिल हैं जबकि बैंक ऑफ बॉम्बे एवं मद्रास प्रत्येक की 15 शाखाएँ थीं।

प्रेसिडेंसी बैंक्स एक्ट[संपादित करें]

1 मई 1876 से लागू प्रेसिडेंसी बैंक्स एक्ट के द्वारा व्यवसाय पर एकसमान प्रतिबंधों के साथ तीन प्रेसिडेंसी बैंकों को एक समान कानून के अंतर्गत लाया गया। तथापि, तीन प्रेसिडेंसी नगरों में लोक ऋण कार्यालयों तथा सरकार की जमाराशियों के एक भाग की अभिरक्षा का कार्य बैंकों के पास होने के बावजूद सरकार का मालिकाना संबंध समाप्त कर दिया गया। इस एक्ट द्वारा कलकत्ता, बंबई एवं मद्रास में तीन आरक्षित कोषों के सृजन का प्रावधान किया गया जहाँ प्रेसिडेंसी बैंकों को केवल उनके प्रधान कार्यालयों में रखने के लिए निर्धारित न्यूनतम राशि से अधिक की जमाराशियाँ रखी जाती थीं। सरकार इन आरक्षित कोषों से प्रेसिडेंसी बैंकों को ऋण दे सकती थी परंतु ये बैंक उसे अधिकार के बजाय अनुग्रह के रुप में देखते थे।

प्रेसिडेंसी बैंकों के सामान्य नियंत्रण के बाहर आरक्षित कोषों में अतिरिक्त जमाराशियों को रखने के सरकार के निर्णय तथा उन नए स्थानों पर जहाँ शाखाएँ खोली जानी थी, सरकार की न्यूनतम जमाराशियों की गारंटी न देने के उससे जुड़े निर्णय से वर्ष 1876 के बाद नई शाखाओं की वृद्धि काफी बाधित हुई। पिछले दशक में हुए विस्तार की गति बहुत धीमी पड़ जाने के बावजूद बैंक ऑफ मद्रास के मामले में निरंतर मामली वृद्धि होती रही, क्योंकि इस बैंक को मुख्यतया प्रेसिडेंसी के बंदरगाह से लगे कई शहरों एवं देश के भीतरी केंद्रों के बीच होने वाले व्यापार से ही लाभ होता था।

भारत का रेल नेटवर्क देश के सभी प्रमुख क्षेत्रों तक विस्तारित होने के कारण 19वीं सदी के अंतिम 25 वर्षों में यहॉ पर तेजी से वाणिज्यीकरण हुआ। मद्रास, पंजाब तथा सिंध में नए सिंचाई नेटवर्कों के कारण निर्वाह फसलों को नकदी फसलों के रुप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया ने जोर पकड़ा। इन नकदी फसलों में से कुछ हिस्से को विदेशी बाजारों को भेजा जाने लगा। चाय तथा कॉफी के बागानों के कारण पूवी तराई के बड़े क्षेत्र, असम एवं नीलगिरी के पर्वत उत्कृष्ट स्थावर कृषि क्षेत्र के रुप में रुपांतरित हो गए। इन सभी के परिणामस्वरुप, भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में छह गुना विस्तार हुआ। तीनों प्रेसिडेंसी बैंक उप-महाद्वीप के प्रत्येक व्यापार, विनिर्माण एवं उत्खनन की गतिविधि के वित्तपोषण में व्यावहारिक रुप से सम्मिलित हो जाने के कारण ये बैंक वाणिज्यिकरण की इस प्रक्रिया के लाभाथी एवं प्रवर्तक दोनों रहे। बंगाल एवं बंबई के बैंक बड़े आधुनिक विनिर्माण उद्योगों के वित्तपोषण में लगे थे, जबकि बैंक ऑफ मद्रास लघु उद्योगों का वित्तपोषण करने लगा जैसे अन्यत्र कहीं भी होता नहीं था। परंतु इन तीनों बैंकों को विदेशी मुद्रा से जुड़े किसी भी व्यवसाय से अलग रखा गया। सरकारी जमाराशियों को रखने वाले इन बैंकों के लिए ऐसा व्यवसाय जोखिम माना गया साथ ही यह भय भी महसूस किया गया कि सरकारी संरक्षण प्राप्त इन बैंकों से उस समय भारत में आए विनिमय बैंकों के लिए एक अनुचित प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होगी। वर्ष 1935 में भारतीय रिज़र्व बैंक का गठन होने तक इन बैंकों को इस व्यवसाय से अलग रखा गया।

बंगाल के प्रेसिडेंसी बैंक[संपादित करें]

बंगाल, बंबई एवं मद्रास के प्रेसिडेंसी बैंकों को उनकी 70 शाखाओं के साथ वर्ष 1921 में विलयन कर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। इन तीनों बैंकों को एक संयुक्त संस्था के रुप में रुपांतरित किया गया तथा भारतीय वाणिज्यिक बैंकों के बीच एक विशाल बैंक का प्रादुर्भाव हुआ। इस नए बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों, बैंकरों के बैंक एवं सरकार के बैंक की तिहरी भूमिकाएँ निभाना स्वीकार किया।

परंतु इस गठन के पीछे भारतीय स्टेट बैंक की आवश्यकता पर वर्षों पहले किया गया विचार-विमर्श शामिल था। अंत में एक मिली-जुली संस्था उभर कर सामने आई जो वाणिज्यिक बैंक एवं अर्ध-केंद्रीय बैंक के कार्य निष्पादित करती थी।

वर्ष 1935 में भारत के केंद्रीय बैंक के रुप में भारतीय रिज़र्व बैंक के गठन के साथ इंपीरियल बैंक की अर्ध-केंद्रीय बैंक की भूमिका समाप्त हो गई। इंपीरियल बैंक भारत सरकार का बैंक न रहकर ऐसे केंद्रों में जहाँ केंद्रीय बैंक नहीं है, सरकारी व्यवसाय के निष्पादन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का एजेंट बन गया।

परंतु वह करेंसी चेस्ट एवं छोटे सिक्कों के डिपो का तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित शर्तों पर अन्य बैंकों एवं जनता के लिए विप्रेषण सुविधा योजना परिचालित करने का कार्य निरंतर करता रहा। वह बैंकरों का अतिरिक्त नकद अपने पास रखकर तथा प्राधिकृत प्रतिभूति पर उन्हें ऋण देकर उनके बैंक के रुप में भी कार्य करने लगा। ऐसे कई स्थानों पर बैंक समाशोधन गृहों का प्रबंधन भी करता रहा जहाँ पर भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यालय नहीं थे। यह बैंक सरकार की तरफ से रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित राजकोषीय बिल नीलामियों में सबसे बड़ा निविदाकर्ता भी रहा।

रिज़र्व बैंक की स्थापना के बाद इंपीरियल बैंक को एक वाणिज्यिक बैंक के रुप में परिवर्तित करने के लिए उसके संविधान में महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए। उसके व्यवसाय पर पूर्व में लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया गया तथा पहली बार बैंक को विदेशी मुद्रा व्यवसाय करने तथा निष्पादक एवं न्यासी व्यवसाय करने की अनुमति दी गई।

इंपीरियल बैंक[संपादित करें]

इंपीरियल बैंक ने अपने अस्तित्व के बाद से साढ़े तीन दशकों के दौरान कार्यालयों, आरक्षित निधियों, जमाराशियों, निवेशों एवं अग्रिमों के रुप में बहुत ही प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की। कुछ मामलों में यह वृद्धि छह गुना से भी अधिक रही।

पूर्ववर्तियों से विरासत में प्राप्त वित्तीय स्थिति और सुरक्षा व्यवस्था ने असंदिग्ध रुप से बैंक को एक ठोस और मजबूत प्लेटफार्म प्रदान किया। इंपीरियल बैंक ने बैंकिंग की जिस गौरवपूर्ण परंपरा का नियमित रुप से पालन किया तथा अपने परिचालनों में जिस प्रकार की उच्च स्तरीय सत्यनिष्ठा का प्रदर्शन किया उससे जमाकर्ताओं में, जिस तरह का आत्मविश्वास था उसकी बराबरी उस समय के किसी भी भारतीय बैंक के लिए संभव नहीं थी। इन सबके कारण इंपीरियल बैंक ने भारतीय बैंकिंग उद्योग में अति विशिष्ट स्थिति प्राप्त की तथा देश के आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान भी प्राप्त किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय इंपीरियल बैंक का पूंजी-आधार आरक्षितियों सहित 11.85 करोड़ रूपए था। जमाराशियाँ और अग्रिम क्रमश: 275.14 करोड़ रूपए और 72.94 करोड़ रूपए थे तथा पूरे देश में फैला 172 शाखाओं और 200 उप कार्यालयों का नेटवर्क था।

प्रथम पंचवषीय योजना[संपादित करें]

वर्ष 1951 में जब प्रथम पंचवषीय योजना शुरु हुई तो देश के ग्रामीण क्षेत्र के विकास को इसमें सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। उस समय तक इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया सहित देश के वाणिज्यिक बैंकों का कार्य-क्षेत्र शहरी क्षेत्र तक ही सीमित था तथा वे ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक पुनर्निर्माण की भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे। अत: सामान्यत: देश की समग्र आर्थिक स्थिति और विशेषत: ग्रामीण क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सवóक्षण समिति ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण कर उसमें सरकार की भागीदारी वाले और सरकार द्वारा प्रायोजित एक बैंक की स्थापना करने की सिफारिश की जिसमें पूर्ववती राज्यों के स्वामित्व वाले या राज्य के सहयोगी बैंकों का एकीकरण करने का भी प्रस्ताव किया गया। तदनुसार मई 1955 में संसद में एक अधिनियम पारित किया गया तथा 1 जुलाई 1955 को भारतीय स्टेट बैंक का गठन किया गया। इस प्रकार भारतीय बैंकिंग प्रणाली का एक चौथाई से भी अधिक संसाधन सरकार के सीधे नियंत्रण में आ गया। बाद में, 1959 में भारतीय स्टेट बैंक (अनुषंगी बैंक) अधिनियम पारित किया गया जिसके फलस्वरुप भारतीय स्टेट बैंक ने पूर्ववती राज्यों के आठ सहयोगी बैंकों का अनुषंगी के रुप में अधिग्रहण किया (बाद में इन्हें सहयोगी बैंक का नाम दिया गया) इस प्रकार भारतीय स्टेट बैंक का प्रादुर्भाव सामाजिक उद्देश्य के नए दायित्व के साथ हुआ। बैंक के कुल 480 कार्यालय थे, जिनमें शाखाएं, उप कार्यालय तथा इंपीरियल बैंक से विरासत में प्राप्त तीन स्थानीय प्रधान कार्यालय भी थे। जनता की बचत को जमा करना और ऋण के लिए सुपात्र लोगों को ऋण देने की परंपरागत बैंकिंग की जगह प्रयोजनपूर्ण बैंकिंग की नई अवधारणा विकसित हो रही थी जिसके तहत योजनाबद्ध आर्थिक विकास की बढ़ती हुई और विविध आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करना था। भारतीय स्टेट बैंक को इस क्षेत्र में अग्रदूत होना था तथा उसे भारतीय बैंकिंग उद्योग को राष्ट्रीय विकास के रोमांचक मैदान तक ले जाना था।

सहयोगी बैंक[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. ऊपर जायें↑http://www.nseindia.com/marketinfo/companyTracker/announceDetails.jsp?symbol=SBIN&desc=Change+in+Director%28s%29&tstamp=071020131736

  2. ऊपर जायें↑http://www.bseindia.com/corporates/Results.aspx?Code=500112&Company=STATE%20BANK%20OF%20INDIA&qtr=77.50&RType=

वाह्य सूत्र[संपादित करें]


जल आजीविका भयंकर खतरे में,बोनस में आपदाएं!

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जल आजीविका भयंकर खतरे में,बोनस में आपदाएं!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


पहाड़ों में भारी वर्षा हो रही है एक बार फिर।शुक्र है कि कम से कम इस बार मौसम की भविष्यवाणी के मद्देनजर उत्तराखंड में चार धाम यात्रा स्थगित कर दी गयी।फिर भी बाबा रामदेव चार सौ बच्चों के साथ फंसे हुए हैं।किसी धर्म यात्रा या धर्मस्थल में आपदाओं के शिकार आम लोगों के हुजूम के बीच खास चेहरे दिखते नहीं है।कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान भूस्खलन की शिकार नृत्यांगना प्रोतिमा बैदी शायद विरल अपवाद हैं।घायब घाटियों,गांवों और मनुष्यों का लेखा जोखा राजकाज में शामिल नहीं है।सालभर बाद केदार अंचल में मिले नरककाल इसके ज्लत सबूत हैं।


अभी साल भर ही होने को है केदार जल प्रलय को।इससे पहले आयी सुनामी का विध्वंस देश ने उसीतरह भुला दिया है जैसे भोपाल गैस त्रासदी को।


इस उपमहाद्वीप में इस वक्त जल युद्ध के हालात बन रहे हैं।


नदियां बिक चुकी हैं और नदिया बंध चुकी है।


अविरल जलधारा कहीं है नहीं।


झीलों की लाशों पर बन रहे हैं नगर महानगर उपनगर।


समुंदर भी बिकने लगा है।बेदखल होने लगा है।


ग्लोबल वार्मिंग ने ऋतुचक्र और मौसम में,जलवायु में भारी तब्दीली कर दी है।


ग्लेशियरों की सेहत बेहद खराब है।


मानसून राह भटकने लगा है।


सिर्फ प्राकृतिक आपदाएं फिर फिर लौट रही हैं कहर बरपाती हुई।


समुद्रतटवर्ती भूगोल में क्या खलबली है और पहाड़ों में क्या हो रहा है,बाकी देश को मालूम नहीं होता।हादसे की चपेट में जब बाकी देश भी जख्मी होता है,तभी जल जीवन का ख्याल होता है।


जल जीवनहै तो जल मृत्यु भी है।


इस वक्त बांग्लादेश के समुद्रतट पर भारी आपदा आयी हुई है।लाखों लोग जल बंदी है।लहरों के प्रबल जलोच्छास ने जनजीवन अस्त व्यस्त कर दिया है।


भारत में मानसून और अलनिनो की चर्चा खूब हो रही है और उसी हिसाब से सूखे के मद्देनजर योजनाएं तमाम बन जाने का भारी हो हल्ला है।लेकिन गगन घटा गहरानी का ख्याल किसी को नहीं है।


समुद्री तूफान,सुनामी,जल प्रलय,बाढ़,भूस्खलन का भूगोल स्थानांतरित होने में देऱ लगती नहीं है।


बांग्लादेश में नजारा कैसा है,उसका अंदाजा मुंबई के सड़कों के घेर लेने वाले समुंदर के दर्शन से हो भी सकता है और नहीं भी।


हमारे होश तो ठिकाने पर तब आते हैं,जब तबाही का मंजर हमें घेर लेता है।


हिंद महासागर,अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की कोई वैदिकी विशुद्धता का इतिहास नहीं है।कावेरी,नर्मदा,यमुना जैसी नदियों के पवित्रता के आख्यान भी हैं लेकिन मुक्त बाजार में महज गंगा परियोजनाओं की गुंजाइश है जो तमाम जलस्रोतों को एक मुश्त बेच डालने के कार्यक्रम के लिए जरुरी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का आवाहन करने के लिए पर्याप्त हैं।


पर्यावरण के अलावा आर्थिक मुद्दे भी संगीन हैं।


गुजरात में समुंदर पर तो सेजमाध्यमे अब अदाणी का राज हो गया है।


तेल गैस के लिए हिंद महासागर और अरब सागर में रिलायंस का मुकम्मल साम्राज्य है।


लेकिन सुंदरवन जैसे रक्षा कवच और हिमालय जैसे संजीवनी क्षेत्र के चप्पे चप्पे पर जो विकास कामसूत्र का अभ्यास हो रहा है,उससे पर्यावरण बंधु पर्यावरण का सत्यानाश हुआ जा रहा है तो नदियों और समुंदरं से जुड़े जनसमुदायों के जीवन आजीविका पर संकट निरंतर गहराता जा रहा है।


समझने वाली बात है कि जैसे आदिवासी जंगल और जमीन से बेदखल हो रहे हैं देश भर में,उसी तरह अलग अलग आजीविकाओं में जाति व्यवस्था के मुताबिक खंडित बहुसंख्या भारतीय कृषिजीवी जनता अपनी नदियों और समुंदर से बेदखल होकर गहरे रोजगार संकट में फंस गये हैं।


हमें नहीं मालूम कि कितने लोगों ने बंगाल के बाहर तितास के जल जीवन और आजीविका पर केंद्रित अद्वैत मल्ल बर्मन के महाकाव्यिक उपन्यास पढ़ा है या उसकी चर्चा सुनी है।


किंवदंती फिल्मकार ऋत्विक घटक ने इसी तितास पर एक फिल्म भी बनायी है और शायद उसके बारे में भी कम से कम आज की मुक्तबाजारी जनता को मालूम कम है।


नदियों की सुरक्षा के लिए पर्यावरण कानून पर्याप्त होते तो गंगा का यह हाल नहीं होता और हिमालय से बहने वाली नदियों की कानूनी सुरक्षा मिली होती तो केदार जलप्रलय नहीं आता। लेकिन समुद्रतट सुरक्षा कानून है जो अंतरराष्ट्रीय कानून की जद में आता है,जिसके तहत समुद्र तटवर्ती इलाकों के लैंड स्कैप बदलना देना भी अपराध है।ऐसी किसी गतिविधि की कोई इजाजत नहीं है जिससे जीवनचक्र में फेरबदल हो जाने की आसंका है।


दरअसल पूरे इस भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्रजीवी खासकर मत्स्यजीवी मनुष्यों को बेदखल बनाकर समुद्रतीरे कारपोरेट राज कायम करने का खेल जारी है विकास कामसूत्र के मुताबिक।


मसलन मुंबई में अरब सागर के आसपास का भूगाल बदल दिया गया है।


यही नहीं,पश्चिम उपकूल पर तमाम मैनग्रोव फारेस्ट का सफाया करके समूचे महाराष्ट्र को दुष्काल के शिकंजे में फंसा दिया गया है।


हरित क्रांति के जरिये देशज कृषि विधि में क्रातिकारी परिवर्तन और पर्यावरण के सत्यानाश से मौसम चक्र के अनियमित हो जाने से महाराष्ट्र के आर पार पश्चिम भारत,मध्य भारत और दक्षिण भारत में कृषिजीवी जनता के लिए आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है।


मछुआरे तो देश भर में नदियों,झीलों और समुंदर से बेदखल हो गये हैं।


ब्रह्मपुत्र हो या चिल्का झील या मुंबई चेन्नै का समुद्रतट या बंगाल का सुंदरवन क्षेत्र सर्वत्र मछुआरे संकट में हैं।


इसीलिए अद्वैत मल्लबर्मन का तितास उपन्यास पढ़ना जरुरी है,जो अब शायद बंगाल में भी पढ़ा नहीं जाता।


मीठे पानी की तमाम मत्स्य प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं और खारा पानी में भी मछलियां सुरक्षित नही हैं।


पूर बंगाली भूगोल में जो मछली सबसे ज्यादा स्वादिष्ट है, वह हिलसा मछलियां अब बांग्लादेश की नदियों में भी उपलब्ध नहीं हैं।


इस संकट को कुछ इस तरह समझें कि ओड़ीशा में समुद्रतटवर्ती भीतरकणिका अभयारण्य  इलाके में कषिजीवी जनता की गतिविधिायां समुंदर और जमीन पर नियंत्रित है और मछली शिकार की आजादी भी उन्हें नहीं है,लेकिन एकमुश्त वनाधिकार कानून,पर्यावरण कानून और समुद्रतट सुरक्षा कानून की धज्जियां उड़ाकर इस पूरे इलाके को टाटा,पास्को और वेदंत का आखेटगाह बना दिया गया है।


गुजरात के समुद्रतीरे पहले ही आदिवासियों को उजाड़कर संविधान के पांचवीं और छठीं अनुसूचियों,स्थानीय निकायों के जनसुनवाई अधिकार और पेसा के साथ साथ भूमि अधिग्रहण कानून की धज्जियां उड़ाकर कांधला महासेज 184 कंपनियों को भेंट दिया गया है और नर्मदा की जलधारा सरदार सरोवर मार्फत मोड़ दी गयी है।


अब अदालती निषेध के बावजूद गुजरात के पीपीपी विकास माडल के तहत अदाणी के महासेज को भी पर्यावरण कानून और समुद्रतट सुरक्षा कानून हाशिये पर रखकर केसरिया कारपोरेट कंपनी ने हरी झंडी दे दी है।


देश भर में इसीतरह सेज महासेज औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट शहरों के जरिये विकास की बुलेट ट्रेन से कृषिजीवी जनता को कुचला जा रहा है।


मुंबई को तो जैतापुर परमाणु क्लस्टर से घेर दिया गया है।


चेन्नै कलपक्कम परमामु बिजलीघर की जद में है तो तीन सागरों के महापवित्र संगम कलन्याकुमारी के सीने पर कुड़नकुलम टांक दिया गया है।


समुद्र से भारी पैमाने पर बेदखल हो रहे हैं लोग तो नदीकिनारे भी डूब में शामिल हो रही है आबादी और जमीन और आजीविका से विस्थापित लोगों का पुनर्वास एक छलावा के अलावा कुछ नहीं है।


आदिम  बिजली बांध परियोजना डीवीसी से लेकर सरदारसरोवर,टिहरी से लेकर पोलावरम तक की यह यंत्रणा कथा अनंत है।


निर्माण विनिर्माण अब रियल्टी है और सरकारे भी रियल्टी कपनियां।


सुंदरवन के कोर इलाकों में भी कंपनियों की जयडंक बज रही है। जल क्षेत्रों में चप्पे चप्पे पर सेज,बिजली,परमाणु बिजली परियोनाएं है तो बाकी जगह रिसार्ट हैं कदम कदम पर।


पहाडो़ं में पनचक्की अब कहीं नहीं है और सारा पहाड़ अब  चिपको हो जाने के बावजूद जंगल की अंधाधुंध कटान के बाद कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है।


बेदखल लोगों की आजीविका की चिंता करोड़पति अरबपति विकास पुरुषों,विकासमाताओं को नहीं है।


मसलन सुंदरवन इलाके में जल परिवहन आजीविका का सबसे बड़ा साधन रहा है मत्स्य  और वनोउपज के अलावा।


मत्स्य और वनोपज से तो सुंदरवन वासी बेदखल है ही।बाघों के अभयारण्य में उनकी हैसियत बाघों के चारा से बेहतर नहीं है।


अब द्वीपों को जोड़कर सेतु और राजमार्गों से जो रिसार्ट अरण्य का सृजन मैंगग्रोव फारेस्ट की कीमत पर हो रहा है,वहा जलपिरवहन खत्म है।


सुंदरवन के कोर इलाकों से जुड़ने वाली नदियों पर नावें और लांच चलाकर अब तक जो जी रहे थे,मछुआरो की तरह वे लोग भी बेरोजगार हैं।


विकास की धूम में इस विशाल जनसमूह की कोई चिंता आयला राहत बांटने और नदी तटबंध का केंद्रीय आबंटन हासिल करते रहने के अलावा मां माटी मानुष की सरकार को है,इसका सबूत फिलहाल मिला नहीं है।


বিপর্যস্ত জল জীবিকা,দুর্যোগই ভবিতব্য!

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বিপর্যস্ত জল জীবিকা,দুর্যোগই ভবিতব্য!

जल आजीविका भयंकर खतरे में,बोनस में आपदाएं!

এক্সকেলিবার স্টিভেন্স বিশ্বাস

জলপ্লাবিত সারা বালাদেশ

ভারতে উত্তরাখন্ডে প্রবল বর্ষণের ফলে চার ধাম যাত্রা স্থগিত গতবারের কেদার জলপ্রলয়েল অভিজ্ঞতার পর।কেদার জলপ্রলয়ের স্মৃতি তবু মরেনি,কিন্ত মানুষ ভুলে গেছে সুনামীর ইতিবৃত্ত।মানুষ বার বার ভূলে যায় হর সালের রোজনামচা সাইক্লোন।

সব নদী বিক্রী হয়ে গেল।সব নদী বাঁধা হয়ে গেছে।সমুদ্রে করপোরেট সাম্রাজ্য রিলােন্স আদানীদের।জলক্ষেত্রের মানুষজনের জীবন জীবিকা নিয়ে মাথাব্যথা কারও আছি বলে মনে হয় না।

উন্নয়ণের কামসূত্রে হিমালয়,সুন্দরবন ও সমুদ্র ধ্বংস এই মহাদেষের সাম্প্রতিক ইতিহাস।

চিপকো আন্দোলন সত্বেও পাহাড়ে জঙ্গল শেষ,সর্বত্র গজিয়ে উঠেছে কংক্রীটের জঙ্গল।বিদ্যুতের বজ্রপাতে উন্নয়নের সুনামিতে হিমালয় মরণাসণ্ণ।

সমুদ্রতট সংরক্ষণ আইন, ফরেস্ট ল, পরিবেশ আইন ও সংবিধানের তোয়াক্কা না করে করপোরেট সাম্রাজ্য নদী সমুদ্রতীরের সত্সজীবিদের বেদখল করে চলেছে।গ্রাম উপত্যকা বসতি সবকিছু মুক্ত বাজারের আওতায়।

সরকার এখন রিয়েল্টি কম্পানি।

সুন্দরবনেল কোর এরিয়াতেও করপোরেট একটেটিয়া আগ্রাসন।রিসর্ট বাণিজ্যে সেতু সড়ক নির্মাণে জল পরিবহনে যুক্ত মানুষের আজীবিকা ছিনিয়ে নেওয়া হচ্ছে সর্বত্র।


ব্যাঘ্র সংরক্ষণে অগ্রাধিকার এবং মানুষ এখন বাঘের খাদ্য।

ভারতের সমুদ্রে আম্বানি আদানিদের সাম্রাজ্য।

সমুদ্রতীরে গড়ে উঠছে পাস্কো,টাটা ,বেদান্তদের স্বর্ণমহল,সেজ মহাসেজ,পরমাণু বিদ্যুত কেন্দ্র।

ম্যানগ্রোভ ফরেস্ট ধ্বংস করা হচ্ছে সর্বত্র।


অদ্বৈত মল্লবর্মমের তিতাস মনে পড়ে বা ঋত্বিকের তিতাস,নিদেনপক্ষে প্রফুল্ল রায়ের কেয়া পাতার নৌকো বা অতীন বন্দোপধ্যায়ের জস উপাখ্যান,এ প্রশ্ন করাই যাচ্ছে না।


পশ্চিম বঙ্গে মা মাটি মানুষেরসরকার।

সুন্দরবন উন্নয়ণের ডল্কাধ্বনিতে কান পাতা দায়।

সুন্দরবনের মনুষ্যজীবন ও জল জীবিকা বালাদেশের মতোই সমান উপেক্ষিত।

দুর্যোগ কোনো বিশিষ্ট ভূগোল ও রাজনৈতিক সীমানায সীমাবদ্ধ থাকে না বার বার প্রমাণিত।

বিলুপ্ত প্রায় ঈলিশের মতই বিপর্যস্ত জল ভূগোলের বাঙালি।


বাংলাদেশি দৈনিক জনকন্ঠে শাহীন রহমান ঠিকই লিখেছেন,পানি উন্নয়ন বোর্ডের গাফলতি, অবহেলা ও সুষ্ঠু তদারকির অভাবে প্রতিবছর হাজার হাজার কিলোমিটার বেড়িবাঁধ ভেঙ্গে উপকূলীয় এলাকা প্লাবিত হচ্ছে। প্রচ- জোয়ারের তোড়ের কথা বলা হলেও এবারে লাখ লাখ লোকের অবর্ণনীয় দুর্দশার কারণ হলো বেড়িবাঁধের যথাযথ রক্ষণাবেক্ষণের অভাব। নিয়ম থাকলেও প্রতিবছরে বেড়িবাঁধগুলো মেরামত করা হয় না। পানি উন্নয়ন বোর্ডের প্রকৌশলীরা শুধু টাকা বরাদ্দের অভাব বলে পার পেয়ে যাওয়ার চেষ্টা করেন। আবার কখনও দেখা যায় সঠিক সময়ে টাকা বরাদ্দ না দেয়া কারণে বাঁধগুলো নির্মাণ করা যায় না। বাঁধ মেরামতে জন্য টেন্ডার দেয়া হলে আমলাতান্ত্রিক জটিলতার কারণে সঠিক সময়ে বাঁধ নির্মাণের কাজ থেমে যায়। জানা গেছে স্থানীয় সরকার দলের নেতাকর্মীরা সাধারণ টেন্ডার নিয়ে জটিলতা সৃষ্টি করার কারণে এটি হয়ে থাকে। আবার বেড়িবাঁধের অভ্যন্তরে হাজার একর জমিতে ম্যানগ্রোভ ফরেস্ট করা হলেও প্রতিবছর নির্বিচারে এসব কেটে নেয়ার ফলে উপকূলের বেড়িবাঁধগুলো অরক্ষিত হয়ে পড়ছে।


এ ছাড়া রয়েছে স্থানীয় চিংড়ি চাষীরা। জানা গেছে বাঁধের কোন কোন অংশে বিশেষ করে যেসব এলাকায় চিংড়ি ঘের রয়েছে সেসব এলাকায় ঘের মালিকরাও বাঁধের অভ্যন্তরে বিভিন্ন স্থানে ক্ষতিগ্রস্ত করে থাকে। মানুষ্য সৃষ্ট এসব অপকর্মের কারণে উপকূলে লাখ লাখ মানুষ মানবেতন জীবনযাপন করতে বাধ্য হচ্ছে। স্থানীয়ভাবে খোঁজ নিয়ে জানা গেছে, এবারের বাঁধ ভাঙ্গনে অস্বাভাবিক জোয়ারের কথা বলা হলেও মূলত তা মানুষ্য সৃষ্ট। স্থানীয় জানিয়েছে প্রতিবছরই জোয়ারের পানির আঘাতে বাঁধ কিছুটা ক্ষতিগ্রস্ত হয়। কিন্তু স্থানীয়দের দাবি অনুযায়ী ক্ষতিগ্রস্ত বাঁধ প্রতিবছর মেরামত করা হয় না। আবার যদি কখনও মেরামতের কাজ নেয়া হয় তা সঠিক সময়ে সম্পন্ন করা হয় না। নির্মাণের আগেই জোয়ারের পানির তোড়ে ভেসে যায়। আবার কখনও কখনও বাঁধের নিচ থেকেই মাটি তুলে মেরামত করা হয়। এতে বাঁধ শক্ত হওয়ার পরিবর্তে আর নড়বড়ে হয় উঠছে। পানি উন্নয়ন বোর্ডের গাফলতি ও আমলতান্ত্রিক জটিলতার কারণে শুষ্ক মৌসুমে বাঁধ মেরামত না করে জুন মাসে এসে বাঁধ মেরামতে কাজে হাত দেয়া হয়। ফলে মেরামত কাজ সম্পূর্ণ করার আগেই জোয়ারের পানিতে সম্পূর্ণরূপে ভেসে যাচ্ছে। এবারের এ ধরনের একাধিক ঘটনার কারণে বাঁধ ভেঙ্গে হাজার হাজার ঘরবাড়ি প্লাবিত হয়। যার সঙ্গে সরাসরি দায়ী রয়েছে পানি উন্নয়ন বোর্ডের নির্বাহী প্রকৌশলী ও স্থানীয় সরকার দলীয় নেতাকর্মীরা।


গত এক সপ্তাহে জোয়ারের পানি তোড়ে উপকূলীয় জেলা পটুয়াখালীর শহরসহ সদর উপজেলা, মির্জাগঞ্জ, দুমকী উপজেলার ২০ গ্রাম পানির তোড়ে ভেসে গেছে। মুলত জোয়ারের কথা বলা হলে খোঁজ নিয়ে জানা গেছে পটুয়াখালীতে বাঁধ ভেঙ্গে যাওয়া অন্যমত কারণে এ এলাকার পানি উন্নয়ন বোর্ডের নির্বাহী প্রকৌশলী একক স্বেচ্ছাচারিতা। তিনি সাবেক পানিসম্পদ প্রতিমন্ত্রী মাহবুবুর রহমানের নিজের লোক হওয়া এবং এলাকায় বাড়ি হওয়ার কারণে কাউকে পরোয়া করে না। অথচ তার এমন স্বেচ্ছাচারিতার কারণে এ এলাকায় এখন হাজার হাজার মানুষ পানিবন্দী। জানা গেছে, প্রতিবছর বাঁধ মেরামতের কথা বলা হলেও কোন বছরই পরিকল্পনা মতো কাজ করা হয়নি। এমনকি এলাকায় সরকারী দলের নেতাকর্মীরা এলাকার ম্যানগ্রোভ ফরেস্টর হাজার হাজার গাছ কেটে নিয়ে যাওয়ারও অভিযোগ রয়েছে। বাঁধ মেরামতের নামে লুটপাটসহ যা ইচ্ছে তাই করছেন পানি উন্নয়ন বোর্ডের নির্বাহী প্রকৌশলী শফিউদ্দিন। এ এলাকায় বাঁধ মেরামতে জন্য কলাপাড়া উপজেলায় এ বছর ৩শ'কোটি টাকা বরাদ্দ দেয়া হয়েছে। এ ছাড়া আয়লা ও সিডরের ক্ষতি মোকাবেলায় বরাদ্দ আগেই দেয়া হয়েছে ৭শ'কোটি টাকা। অথচ খোঁজ নিয়ে জানা গেছে বাঁধ মেরামতে এ পর্যন্ত ১শ'কোটি টাকাও ব্যয় হয়নি। যাও হয়েছে তা নিয়ে লুটপাট কম হয়নি। অথচ সাংবাদিক প্রশ্নের জবাবে নির্বাহী প্রকৌশলী সাধ্যমতো বাঁধ মেরামতের চেষ্টা চলছে বলে উল্লেখ করেন।


এ ছাড়া জানা গেছে, যেভাবে বাঁধ নির্মাণ করার কথা সেভাবে করা হচ্ছে না। সরকারী বরাদ্দে যেনতেন মেরামতের কাজ করা হচ্ছে। অথচ এলাকাবাসীর দাবির সময়ের সঙ্গে তাল মিলিয়ে বাঁধ উঁচু ও শক্ত করার জন্য মাটি বালু ও কাদা মিশ্রিত করে বাঁধ প্রয়োজন। অথচ এর বিপরীতে সেখানে বাঁধ তৈরি করা হচ্ছে বাঁধে নিচ থেকে মাটি তুলে। এ কারণে জোয়ারের পানিতে বাঁধে গোড়া নড়বড়ে হয়ে ভেঙ্গে যাচ্ছে। জোয়ারে বাঁধ ভেঙ্গে প্লাবিত হচ্ছে হাজার হাজার ঘরবাড়ি। জানা গেছে, কলাপাড়া ১৬০ কিলোমিটারসহ জেলায় মোট ৪শ'কিলোমিটার বাঁধ অরক্ষিত হয়েছে পানি উন্নয়ন বোর্ডের স্বেচ্ছাচারিতা ও গাফলতির কারণে। এলাকায় লাখ লাখ মানুষ এমনিতেই আয়লা ও সিডরে আতঙ্কগ্রস্ত। তার ওপর এভাবে বাঁধ অরক্ষিত হওয়ায় তাদের মধ্যে শঙ্কা দিন দিন বেড়েই চলেছে। স্থানীয়রা জানিয়েছে আয়লা ও সিডরের মতো এমন দুর্যোগ আর একটি হলে এ এলাকায় মানুষজনের চিহ্নও খুঁজে পাওয়া যাবে না। আবার এ এলাকায় অনেক জায়গায় চিংড়ি চাষীরা বাঁধ ক্ষতিগ্রস্ত করে থাকে মাছ চাষের কারণে।

জোয়ারের পানির কারণে ভোলাতে লাখ লাখ মানুষ অবর্ণনীয় দুর্দশার মধ্যে রয়েছে। অথচ খোঁজ নিয়ে জানা গেছে জোয়ারের তোড়ের চেয়ে পানি উন্নয়ন বোর্ডের বিরুদ্ধে বিস্তর অভিযোগ রয়েছে এলাকার মানুষের। তারা জানিয়েছে সঠিক সময়ে বাঁধ নির্মাণ করা হলে আজ এ অবস্থার মধ্যে পড়তে হতো না। গত বছর নিয়ম থাকলেও ভোলা সদরে বাঁধ মেরামত করা হয়নি। এ বছর বাঁধ নির্মাণে দেখা দেয় চরম আমলান্ত্রিক জটিলতা। এলাকার নির্বাহী প্রকৌশলী আবুল হেকিম জানিয়েছেন বাঁধ নির্মাণে জটিলতার কারণেই মূলত এবার সঠিক সময়ে বাঁধ নির্মাণ করা সম্ভব হয়নি। জানা গেছে, বাঁধ নির্মাণের জন্য গত মার্চের প্রথম টেন্ডার দেয়া হয়। কিন্তু আমলাতান্ত্রিক জটিলতার কারণে মার্চে বাঁধ নির্মাণ করা সম্ভব হয়নি। ফলে জুন মাসে এসে রিটেন্ডার করা হয়। এ টেন্ডারে মাধ্যমে মাত্র মনপুরায় এক কিলোমিটার বাঁধ নির্মাণ কাজ শেষ হয়েছিল। চরফ্যাশনের বাঁধ নির্মাণে কাজ শুরুই করা হয়নি। ফলে যেটুকু কাজ হয়েছিল তা জোয়ারের পানির ওভার ফ্লো হওয়ায় নির্মাণের সঙ্গে সঙ্গে তা সম্পূর্ণ বিলীন হয়ে গেছে। স্থানীয় সরকার দলীয় নেতকর্মীদের বাধার মুখে প্রথমে টেন্ডার দিয়ে কাজ শুরু করা যায়নি। ফলে রিটেন্ডার করা হলেও নির্মাণে আগেই তা পানির তোড়ে ভেসে গেছে। ফলে ভেঙ্গে গেছে বাঁধ নির্মাণে বরাদ্দের সবটুকুই।

জোয়ারের পানিতে বাঁধ ভেঙ্গে যাওয়ার কারণে ভোলার লাখ লাখ মানুষ পানিবন্দী হয়ে অবর্ণনীয় দুর্দশার মধ্যে রয়েছে। দেখা দিয়েছে বিশুদ্ধ পানির সঙ্কট। বসবাসের অনপোযোগী হয়ে পড়েছে এলাকার ঘরবাড়িগুলো। জোয়ারের পানিতে ২০ কিলোমিটার বেড়িবাঁধ ভেঙ্গে গেছে। কোটি কোটি টাকার ক্ষেতের ফসল নষ্ট হয়ে গেছে। পুকুর ও চিংড়ির ঘের ভেসে যাওয়ায় চাষীরা ব্যাপক ক্ষতির সম্মুখীন।

খোঁজ নিয়ে জানা গেছে, বেড়িবাঁধ নির্মাণ ত্রুটির কারণেই মূলত বাগেরহাটের ৩ উপজেলায় ৮০ গ্রামে লক্ষাধিক মানুষ পানিবন্দী হয়ে পড়েছে। প্রতিবছর বাঁধ মেরামতের নিয়ম থাকলেও যথাযথ গুরুত্ব না দিয়ে নামকাওয়াস্তে বাঁধ নির্মাণ করা হয়েছে। ফলে সামান্য পানির তোড়ে এসব বাঁধ ভেঙ্গে একাকার হয়ে গেছে। এমনকি প্রতিবছর জোয়ারের কারণে বাঁধের অনেক ক্ষতি হয়। কিন্তু জোয়ারের পানিতে যে পরিমাণ ক্ষতি হয় মেরামতের সময় তা বিবেচনায় আনা হয় না। এ ছাড়া এলাকার মাছ চাষীরা বাঁধ ক্ষতিগ্রস্তের জন্য অনেকটা দায়ী। পানি উন্নয়ন বোর্ডের গাফলতির কারণে ক্ষতি বেশি হচ্ছে। বেড়িবাঁধ সংস্কারে অভাবে এবার মোড়লগঞ্জের কুমারখালী, সন্ন্যাসী, খাউলিয়া, গাবতল, কাঠালতলা, পাঠামারা, বদনীভাঙ্গা, সানকিভাঙ্গা, বড়বাদুরা, বরাইখালীসহ ও কেওড়া নদীর দুই পাড়ে ১০ কিলোমিটার ধরে বেড়িবাঁধ না থাকায় এসব এলাকার গ্রামগুলো এখন পানির নিচে।


पहाड़ों में भारी वर्षा हो रही है एक बार फिर।शुक्र है कि कम से कम इस बार मौसम की भविष्यवाणी के मद्देनजर उत्तराखंड में चार धाम यात्रा स्थगित कर दी गयी।फिर भी बाबा रामदेव चार सौ बच्चों के साथ फंसे हुए हैं।किसी धर्म यात्रा या धर्मस्थल में आपदाओं के शिकार आम लोगों के हुजूम के बीच खास चेहरे दिखते नहीं है।कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान भूस्खलन की शिकार नृत्यांगना प्रोतिमा बैदी शायद विरल अपवाद हैं।घायब घाटियों,गांवों और मनुष्यों का लेखा जोखा राजकाज में शामिल नहीं है।सालभर बाद केदार अंचल में मिले नरककाल इसके ज्लत सबूत हैं।


अभी साल भर ही होने को है केदार जल प्रलय को।इससे पहले आयी सुनामी का विध्वंस देश ने उसीतरह भुला दिया है जैसे भोपाल गैस त्रासदी को।


इस उपमहाद्वीप में इस वक्त जल युद्ध के हालात बन रहे हैं।


नदियां बिक चुकी हैं और नदिया बंध चुकी है।


अविरल जलधारा कहीं है नहीं।


झीलों की लाशों पर बन रहे हैं नगर महानगर उपनगर।


समुंदर भी बिकने लगा है।बेदखल होने लगा है।


ग्लोबल वार्मिंग ने ऋतुचक्र और मौसम में,जलवायु में भारी तब्दीली कर दी है।


ग्लेशियरों की सेहत बेहद खराब है।


मानसून राह भटकने लगा है।


सिर्फ प्राकृतिक आपदाएं फिर फिर लौट रही हैं कहर बरपाती हुई।


समुद्रतटवर्ती भूगोल में क्या खलबली है और पहाड़ों में क्या हो रहा है,बाकी देश को मालूम नहीं होता।हादसे की चपेट में जब बाकी देश भी जख्मी होता है,तभी जल जीवन का ख्याल होता है।


जल जीवनहै तो जल मृत्यु भी है।


इस वक्त बांग्लादेश के समुद्रतट पर भारी आपदा आयी हुई है।लाखों लोग जल बंदी है।लहरों के प्रबल जलोच्छास ने जनजीवन अस्त व्यस्त कर दिया है।


भारत में मानसून और अलनिनो की चर्चा खूब हो रही है और उसी हिसाब से सूखे के मद्देनजर योजनाएं तमाम बन जाने का भारी हो हल्ला है।लेकिन गगन घटा गहरानी का ख्याल किसी को नहीं है।


समुद्री तूफान,सुनामी,जल प्रलय,बाढ़,भूस्खलन का भूगोल स्थानांतरित होने में देऱ लगती नहीं है।


बांग्लादेश में नजारा कैसा है,उसका अंदाजा मुंबई के सड़कों के घेर लेने वाले समुंदर के दर्शन से हो भी सकता है और नहीं भी।


हमारे होश तो ठिकाने पर तब आते हैं,जब तबाही का मंजर हमें घेर लेता है।


हिंद महासागर,अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की कोई वैदिकी विशुद्धता का इतिहास नहीं है।कावेरी,नर्मदा,यमुना जैसी नदियों के पवित्रता के आख्यान भी हैं लेकिन मुक्त बाजार में महज गंगा परियोजनाओं की गुंजाइश है जो तमाम जलस्रोतों को एक मुश्त बेच डालने के कार्यक्रम के लिए जरुरी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का आवाहन करने के लिए पर्याप्त हैं।


पर्यावरण के अलावा आर्थिक मुद्दे भी संगीन हैं।


गुजरात में समुंदर पर तो सेजमाध्यमे अब अदाणी का राज हो गया है।


तेल गैस के लिए हिंद महासागर और अरब सागर में रिलायंस का मुकम्मल साम्राज्य है।


लेकिन सुंदरवन जैसे रक्षा कवच और हिमालय जैसे संजीवनी क्षेत्र के चप्पे चप्पे पर जो विकास कामसूत्र का अभ्यास हो रहा है,उससे पर्यावरण बंधु पर्यावरण का सत्यानाश हुआ जा रहा है तो नदियों और समुंदरं से जुड़े जनसमुदायों के जीवन आजीविका पर संकट निरंतर गहराता जा रहा है।


समझने वाली बात है कि जैसे आदिवासी जंगल और जमीन से बेदखल हो रहे हैं देश भर में,उसी तरह अलग अलग आजीविकाओं में जाति व्यवस्था के मुताबिक खंडित बहुसंख्या भारतीय कृषिजीवी जनता अपनी नदियों और समुंदर से बेदखल होकर गहरे रोजगार संकट में फंस गये हैं।


हमें नहीं मालूम कि कितने लोगों ने बंगाल के बाहर तितास के जल जीवन और आजीविका पर केंद्रित अद्वैत मल्ल बर्मन के महाकाव्यिक उपन्यास पढ़ा है या उसकी चर्चा सुनी है।


किंवदंती फिल्मकार ऋत्विक घटक ने इसी तितास पर एक फिल्म भी बनायी है और शायद उसके बारे में भी कम से कम आज की मुक्तबाजारी जनता को मालूम कम है।


नदियों की सुरक्षा के लिए पर्यावरण कानून पर्याप्त होते तो गंगा का यह हाल नहीं होता और हिमालय से बहने वाली नदियों की कानूनी सुरक्षा मिली होती तो केदार जलप्रलय नहीं आता। लेकिन समुद्रतट सुरक्षा कानून है जो अंतरराष्ट्रीय कानून की जद में आता है,जिसके तहत समुद्र तटवर्ती इलाकों के लैंड स्कैप बदलना देना भी अपराध है।ऐसी किसी गतिविधि की कोई इजाजत नहीं है जिससे जीवनचक्र में फेरबदल हो जाने की आसंका है।


दरअसल पूरे इस भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्रजीवी खासकर मत्स्यजीवी मनुष्यों को बेदखल बनाकर समुद्रतीरे कारपोरेट राज कायम करने का खेल जारी है विकास कामसूत्र के मुताबिक।


मसलन मुंबई में अरब सागर के आसपास का भूगाल बदल दिया गया है।


यही नहीं,पश्चिम उपकूल पर तमाम मैनग्रोव फारेस्ट का सफाया करके समूचे महाराष्ट्र को दुष्काल के शिकंजे में फंसा दिया गया है।


हरित क्रांति के जरिये देशज कृषि विधि में क्रातिकारी परिवर्तन और पर्यावरण के सत्यानाश से मौसम चक्र के अनियमित हो जाने से महाराष्ट्र के आर पार पश्चिम भारत,मध्य भारत और दक्षिण भारत में कृषिजीवी जनता के लिए आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा है।


मछुआरे तो देश भर में नदियों,झीलों और समुंदर से बेदखल हो गये हैं।


ब्रह्मपुत्र हो या चिल्का झील या मुंबई चेन्नै का समुद्रतट या बंगाल का सुंदरवन क्षेत्र सर्वत्र मछुआरे संकट में हैं।


इसीलिए अद्वैत मल्लबर्मन का तितास उपन्यास पढ़ना जरुरी है,जो अब शायद बंगाल में भी पढ़ा नहीं जाता।


मीठे पानी की तमाम मत्स्य प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं और खारा पानी में भी मछलियां सुरक्षित नही हैं।


पूर बंगाली भूगोल में जो मछली सबसे ज्यादा स्वादिष्ट है, वह हिलसा मछलियां अब बांग्लादेश की नदियों में भी उपलब्ध नहीं हैं।


इस संकट को कुछ इस तरह समझें कि ओड़ीशा में समुद्रतटवर्ती भीतरकणिका अभयारण्य  इलाके में कषिजीवी जनता की गतिविधिायां समुंदर और जमीन पर नियंत्रित है और मछली शिकार की आजादी भी उन्हें नहीं है,लेकिन एकमुश्त वनाधिकार कानून,पर्यावरण कानून और समुद्रतट सुरक्षा कानून की धज्जियां उड़ाकर इस पूरे इलाके को टाटा,पास्को और वेदंत का आखेटगाह बना दिया गया है।


गुजरात के समुद्रतीरे पहले ही आदिवासियों को उजाड़कर संविधान के पांचवीं और छठीं अनुसूचियों,स्थानीय निकायों के जनसुनवाई अधिकार और पेसा के साथ साथ भूमि अधिग्रहण कानून की धज्जियां उड़ाकर कांधला महासेज 184 कंपनियों को भेंट दिया गया है और नर्मदा की जलधारा सरदार सरोवर मार्फत मोड़ दी गयी है।


अब अदालती निषेध के बावजूद गुजरात के पीपीपी विकास माडल के तहत अदाणी के महासेज को भी पर्यावरण कानून और समुद्रतट सुरक्षा कानून हाशिये पर रखकर केसरिया कारपोरेट कंपनी ने हरी झंडी दे दी है।


देश भर में इसीतरह सेज महासेज औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट शहरों के जरिये विकास की बुलेट ट्रेन से कृषिजीवी जनता को कुचला जा रहा है।


मुंबई को तो जैतापुर परमाणु क्लस्टर से घेर दिया गया है।


चेन्नै कलपक्कम परमामु बिजलीघर की जद में है तो तीन सागरों के महापवित्र संगम कलन्याकुमारी के सीने पर कुड़नकुलम टांक दिया गया है।


समुद्र से भारी पैमाने पर बेदखल हो रहे हैं लोग तो नदीकिनारे भी डूब में शामिल हो रही है आबादी और जमीन और आजीविका से विस्थापित लोगों का पुनर्वास एक छलावा के अलावा कुछ नहीं है।


आदिम  बिजली बांध परियोजना डीवीसी से लेकर सरदारसरोवर,टिहरी से लेकर पोलावरम तक की यह यंत्रणा कथा अनंत है।


निर्माण विनिर्माण अब रियल्टी है और सरकारे भी रियल्टी कपनियां।


सुंदरवन के कोर इलाकों में भी कंपनियों की जयडंक बज रही है। जल क्षेत्रों में चप्पे चप्पे पर सेज,बिजली,परमाणु बिजली परियोनाएं है तो बाकी जगह रिसार्ट हैं कदम कदम पर।


पहाडो़ं में पनचक्की अब कहीं नहीं है और सारा पहाड़ अब  चिपको हो जाने के बावजूद जंगल की अंधाधुंध कटान के बाद कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है।


बेदखल लोगों की आजीविका की चिंता करोड़पति अरबपति विकास पुरुषों,विकासमाताओं को नहीं है।


मसलन सुंदरवन इलाके में जल परिवहन आजीविका का सबसे बड़ा साधन रहा है मत्स्य  और वनोउपज के अलावा।


मत्स्य और वनोपज से तो सुंदरवन वासी बेदखल है ही।बाघों के अभयारण्य में उनकी हैसियत बाघों के चारा से बेहतर नहीं है।


अब द्वीपों को जोड़कर सेतु और राजमार्गों से जो रिसार्ट अरण्य का सृजन मैंगग्रोव फारेस्ट की कीमत पर हो रहा है,वहा जलपिरवहन खत्म है।


सुंदरवन के कोर इलाकों से जुड़ने वाली नदियों पर नावें और लांच चलाकर अब तक जो जी रहे थे,मछुआरो की तरह वे लोग भी बेरोजगार हैं।


विकास की धूम में इस विशाल जनसमूह की कोई चिंता आयला राहत बांटने और नदी तटबंध का केंद्रीय आबंटन हासिल करते रहने के अलावा मां माटी मानुष की सरकार को है,इसका सबूत फिलहाल मिला नहीं है।


विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

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विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व

एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

पलाश विश्वास

बाजार के लिए जैसे वैश्विक इशारे पर निर्भर है सांढ़ संस्कृति,उसी तरह अर्थव्यवस्था भी विश्वबाजार का उपनिवेश है।सुधारों के लिए रिमोट नियंत्रण का कोड समजझने कातिर इन वैश्विक इसारों की समझ अनिवार्य है।भारतीय अर्थव्यवस्था का बुनियादी आधार अब उत्पादन प्रणाली नहीं है,वह मुक्त बाजार है और इसमें भी  विनियंत्रित विनियमित ईंधन और तेल युद्ध के हित ही सुधार एजंडा के बुनियादी तत्व।तेल गैस  कीमतों पर कैग रपट से भारत के मध्य पनप रहे अमेरिकी भूगोल बेनकाब है।ईंधन की कीमतें विनियमित विनियंत्रित कर देने के तंत्र के मध्य मूल्यवृद्धि, मुद्रास्फीति और विकास दर, वित्तीयघाटा के आंकड़ों की नये सिरे से पड़ताल जरुरी है।


पहले बाजार के ये आंकड़ेः


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीजका मुनाफा 0.5 फीसदी बढ़कर 5379 करोड़ रुपये हो सकता है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का मुनाफा 5352 करोड़ रुपये रहा था।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज की बिक्री 13.5 फीसदी बढ़कर 99448 करोड़ रुपये हो सकती है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज की बिक्री 87645 करोड़ रुपये रही थी।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का एबिटडा 7,95 फीसदी हो सकता है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज का एबिटडा 8.07 फीसदी रहा था।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 8.5 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 8.4 डॉलर प्रति बैरल रहे थे। वहीं वित्त वर्ष 2014 की चौथी तिमाही में रिलायंस इंडस्ट्रीज के जीआरएम 9.3 डॉलर प्रति बैरल रहे थे।


वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्राका मुनाफा 10.2 फीसदी बढ़कर 457.6 करोड़ रुपये हो गया है। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा का मुनाफा 415.2 करोड़ रुपये रहा था।


हालांकि वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा की आय 23.9 फीसदी घटकर 4,151 करोड़ रुपये रही। वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में रिलायंस इंफ्रा की आय 5,452 करोड़ रुपये रही थी।


रिलायंस इंफ्रा का कहना है कि पहली तिमाही में एमईआरसी की ओर से मंजूर 745 करोड़ रुपये का बकाया हासिल हुआ है।




फिर कैग रपटःनियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग)ने ईंधन खरीद नीति पर सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि उसकी इस नीति से एस्सार ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज को 667 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचा है। कैग ने सरकार को निजी रिफाइनिंग कंपनियों से डीजल खरीद मूल्य पर नए सिरे से बातचीत करने की जरूरत बताई है।


गौरतलब है कि सत्ता संभालने के तुरंत बाद अंबानी का कर्जा उतारने की कवायद में जुट गयी कारपोरेट केसरिया सरकार।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 जून रविवार को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ बैठक की जिसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली भी शामिल थे।


समझा जाता है कि गैस कीमतों की वृद्धि के बारे में कोई स्वीकार्य फार्मूला निकालने को लेकर इसमें चर्चा हुई। तीन दिनों में इस तरह की यह दूसरी बैठक थी। इससे पहले शुक्रवार को ऊर्जा क्षेत्र पर करीब पांच घंटे की मैराथन चर्चा हुई थी। इसके बाद मोदी ने प्रधान को रविवार को एक और बैठक के लिए बुलाया था जिसमें वित्त मंत्री अरुण जटेली भी शामिल थे।


जाहिर है कि यह कवायद जारी है।


इसी के मध्यआज इकनामिक टाइम्स की रपट में लिखा हैः


UNDER LENS National auditor says people paid for imaginary charges while some private firms got undue benefit

The national auditor CAG has observed that state oil firms have overcharged customers and collected additional ` . 26,626 crore in five years by making people pay for imaginary charges such as customs duty on domestic sales, while they gave "undue benefit" to Essar Oil and Reliance Industries by buying their fuel at high rates.

The report is on the pricing mechanism followed by IndianOil, HPCL and BPCL in case of three products -petrol, diesel and LPG.


अब खबर आ गयी है कि सरकारी पेट्रोलियम कंपनियां निजी रिफाइनिंग कंपनियों से डीजल की खरीदारी करती  हैं क्योंकि उनका अपना उत्पादन घरेलू मांग को पूरा नहीं कर पाता। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां व्यापार समान दाम पर डीजल खरीदती हैं जिसमें आयात और निर्यात मूल्य का 80:20 का अनुपात लिया जाता है। कैग ने संसद में शुक्रवार को पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि निजी रिफाइनिंग कंपनियां अपने बचे पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करतीं हैं। यह निर्यात जिस दाम पर किया जाता है वह व्यापार समान मूल्य (टीपीपी) और आयात समान मूल्य (आईपीपी) के मुकाबले कम रहता है। निजी कंपनियों से टीपीपी आधार पर डीजल की खरीदारी से इन कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचता है। वर्ष 2011-12 में यह लाभ 667 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। कैग ने कहा है कि इसी मानदंड के तहत मैंगलूर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड से भी खरीदारी की जाती है।


सार्वजनिक क्षेत्र की इस रिफाइनरी को 2011-12 में 1,428 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचा है। कैग ने अनुचित लाभ के दावे को स्पष्ट करते हुए कहा है कि 2011-12 में जामनगर में स्थित निजी रिफाइनिंग कंपनियों की व्यापार समान मूल्य यानी टीपीपी 40,031 रुपये प्रति एक हजार लीटर रहा जबकि इसी स्थान पर औसत निर्यात समान मूल्य 38,625 रुपये प्रति हजार लीटर रहा। कैग ने कहा कि रिलायंस और एमआरपीएल के मामले में भी दाम में इसी तरह का फर्क रहा है।




भारतीयकृषि समाज की नब्ज हमारे परम आदरणीय मित्र हिंदू के पूर्व रुरल एडीटर पी साई नाथ से ज्यादा कोई समझते हैं, हमें इसकी जानकारी नहीं है।आउटलूक में अपने ताजा आलेख में उन्होंने लिखा हैः


The TV anchor asked eagerly of Arun Jaitley whether he would take hard decisions or, in the case of a bad drought, revert to loan waivers and (obviously wasteful) subsidies. The finance minister replied that it depended on the situation as it unfolded but he hoped he wouldn't have to return to such steps. "We hope so too," said the anchor fervently. Which was cute, coming from someone pushing a wish list of the corporate world as hard-hitting journalism. A corporate world which has on average received Rs 7 crore every hour (or Rs 168 crore every day) in write-offs on just direct corporate income tax alone. And that for nine years running. (Longer, but we only have data for those nine years.)


And that's if we look only at corporate income tax. Cast your gaze across write-offs on customs and excise duties and the amount quadruples. The provisional figure written off for the corporate needy and the and the belly-aching better off is Rs 5,72,923 crore. Or Rs 5.32 lakh-crore if you leave out something like personal income tax, which covers a relatively wider group of people.

साईनाथ का आलेख पढ़ लें तो अरुण जेयली के मुखारविंद पर खिलते कमल का असली चाहरा खुलेगा।


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज बजट पर बहस के बाद लोकसभा में अपना जवाब दिया। वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले 3-4 साल से देश की इकोनॉमी को लेकर निराशा है और अस्थिर नीतियों के चलते निवेशकों का भरोसा घट गया है। यूपीए कार्यकाल पर भी वित्त मंत्री ने निशाना साधा और कहा कि किसी भी सरकार में प्रधानमंत्री की ही चलनी चाहिए।


वित्त मंत्री ने एक बार फिर से दोहराया कि पिछली तारीख से टैक्स के चलते बिजनेस का माहौल खराब हुआ है। साथ ही उन्होंने जोर दिया कि सब्सिडी सिर्फ जरूरतमंदों को ही मिलनी चाहिए। वित्त मंत्री ने बताया कि महंगाई काबू में करने के लिए बजट के बाहर कदम उठाए जाएंगे। साथ ही उन्होंने ये भी भरोसा दिलाया कि जीएसटी के लिए माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।


वित्त मंत्री ने रक्षा उपकरण देश में बनाने पर भी जोर दिया। इसके अलावा इकोनॉमी की मजबूती के लिए पावर और रियल एस्टेट सेक्टर पर फोकस बढ़ाने के भी संकेत दिए। आयकर छूट का दायरा बढ़ाने के मसले पर उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार के पास और पैसा नहीं था।


वित्तमंत्री ने डिफेंस और इंश्योरेंस में एफडीआई को भी सही ठहराया। उन्होंने बताया कि दोनों सेक्टरों में 49 फीसदी एफडीआई और भारतीय नियंत्रण अच्छा होने से सभी तरह की आशंकाएं खत्म हो पाएंगी।


वित्तमंत्री ने बजट पर जवाब देते हुए कांग्रेस पर भी चुटकी ली। उन्होंने कहा कियूपीए सरकार के पूर्व मंत्री कहते हैं कि ये उनके बजट की कॉपी है अगर ऐसा है तो इसका इतना विरोध क्यों।



कुल मिलाकर कारपोरेटजगतको तमाम प्रत्क्ष कर छूट के अलावा राजस्व छूट के मद में सालाना औसतन पांच छह सात लाख तक का जो छोड़ दिया जाता है,मुद्रास्फीति,मूल्यवृद्दि,विकास दर और वित्तायगाटे में उसका उल्लेख भी नहीं होता।इसी तरह प्रत्यक्ष विदेशी  निवेश और विनिवेश के आधार पर रेटिंग दी जाती है और इसे ही सुधार कहा जाता है।


यह मुकम्मल जायनी युद्धक मानवता विरोधी विश्व व्यवस्था का तैल चित्र है।

चार्ल डिकेंस ने टेल आफ टू सिटीज में फ्रांसीसी क्रांति परिदृश्य में जमान पर बह निकली खून की नदियों को साहित्य में चित्रार्पित किया है और आज अगर वैश्विक कुरुक्षेत्र का फिल्मांकन करना हो तो तेल की धार का पीछा करना जरुरी होगा।


गौरतलब है कि अटल शौरी जमाने में जीपी गोयंका,चंद्रशेखर और नुस्ली वाडिया की जिस डिसइनवेस्टमेंट काउंसिल की रपट मुक्तबाजारी विनिवेश विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पीपीपी माडल की भागवत गीता है,उसने अपनी रपट में वित्तीय घाटे के संदर्भ में ईंधन प्रबंधन और प्रतिरक्षा व्यय आंतरिक सुरक्षा व्यय की भूले से चर्चा नहीं की है।टैक्स पेयर्स की जेबों से निकाली गयी रकम का ज्यादातर हिस्सा इन्हीं दो मदों में खर्च होता है। ध्वस्त कर दी गयी उत्पादन प्रणाली का ठीकरा निजी घरानों ने सार्वजनिक उपक्रमों पर फोड़ा और यही विनिवेशतंत्र और निरंकुश विदेशी पूंजी की तेल की धार का प्रस्थानबिंदू है।


बजट भारत सरकार की आर्थिक दिशा दशा बताने वाला संसदीय उत्तरदायित्व नहीं है।

बजट सिर्फ एक रस्मअदायगी है।नवउदारवादी तैईस साल के कालखंड में अ्पमती सरकारों के जनसंहारी बंदोबस्त गैर संसदीय गैर लोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक रहे हैं तो गुजरात माडल के नयेबहुमती बंदोबस्त का भूगोल इतिहास बदले नहीं है।जनसंहार का वह सनातन सौंदर्यशास्त्र है।


वित्तमंत्री तमाम मंत्रालयों के मुखपात्र बने हुए हैं संसद में और तमाम मुद्दों को कारपोरेट वकील की तरह संबोधित कर रहे हैं जैसा कि सुधार कार्यक्रम अधूरा छोड़ देने के अमेरिका के अपराधी चिदंबरम भी करते रहे हैं। जेटली बड़े गर्व के साथ अपनी सरकार को बिजनेस फ्रेंडली बता रहे हैं और प्रो पूअर भी।हरित क्रांति का फंडा भी प्रोपूअर कारपोरेट उत्तदायित्व का एनजीओ फंडा जैसा ही रहा है जो बाद में सामाजिक योजनाोओं की आड़ में रियल्टी का कारोबार बन गया है।


गाजा पट्टी पर इजराइली हमला तेज होने के मध्य,भारत सरकार की राजनयिक नपुंसकता के मध्य चीन के खिलाफ मीडिया का छायायुद्ध जारी है लेकिन इजराइल और अमेरिकी हितों पर मीडिया में सन्नाटा है,उसे समझना बेहद जरुरी है।यह विशुद्ध आर्थिक मामला है,राजनयया विदेशनीति का मामला होकर भी नहीं है।


फिर रपट आयी है ब्रिक्स शिखर वार्ता और ब्रिक्स बैंक की खबरों के मध्य कि भारतीय भूमि को ललचाई नजरों से देखने वाला चीन, अभी भी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।


इसी ब्रिक्स उपाख्यान में चीन,ऱूस,ब्राजील,भारत और दक्षिण अफ्रीका के साथ लातिन अमेरिकी देशों का जो नया समीकरण विश्व बैंक अंतरराष्ट्रीयमुद्रा कोष विश्वव्यापार संघ और संयुक्त राष्ट्र के समांतर  बन रहा है,उसीके मध्य पुतिन को युद्ध अपराधी बनाने के उपक्रम और भारत चीन छायायुद्ध का परिवेश संदिग्ध है तो गाजा संकट पर खामोशी बरतने वाले मोदी से तीसरी दुनिया के देशों को साथ लेकर चलने की कैसे उम्मीद की जाये,यहभी विचारणीय है।


गौर करें कि मलेशियाई विमान एमएच-17 में सवार 283 मुसाफिरों की मौत का जिम्मेदार कौन है इस बात का अभी भी पता नहीं चल पाया है। अब 2 दिन बाद भी ये सवाल कायम है कि आखिर प्लेन पर मिसाइल हमला किया तो किसने कया। इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच के लिए यूक्रेन में रूस समर्थक विद्रोहियों ने अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं को घटनास्थल पर जाने की इजाजत तो दी थी, लेकिन जब ये दल वहां पहुंचा तो उन्हें कुछ बंदूकधारियों ने रोक दिया। जांच दल का आरोप है कि 75 मिनट की जांच के बाद उन्हें रोका गया।


वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि जिस इलाके से मिसाइल दागी गई वो इलाका रूस के नियंत्रण में है। ओबामा का कहना है कि ये मानना कठिन है कि विद्रोहियों के जिस इलाके से मिसाइल दागी गई वो रूस की सहायता के बिना संभव हो। ओबामा ने साफ कहा कि उस इलाके में हिंसा को रूस का समर्थन प्राप्त है।


वहीं मिसाइल से मार गिराए गए मलेशियाई विमान के मलबे से अबतक 180 शव बरामद किए जा चुके हैं। इस हादसे में 173 डच और 44 मलेशियाई नागरिकों समेत 298 लोगों की जान गई है। इस हादसे में 80 बच्चों समेत कई बड़े वैज्ञानिकों की भी मौत हुई है। ये वैज्ञानिक मेलबर्न के एड्स कॉन्फ्रेंस में शामिल होने जा रहे थे। इस हादसे से एड्स रिसर्च को बड़ा झटका लगा है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दर्दनाक हादसे के स्वतंत्र जांच की बात कही है। इधर रुस ने हादसे के लिए यूक्रेन सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।



खास बात तो यह है कि सद्दाम हुसैन भी अमेरिका को उतने ही प्रिय थे जितने कि ओसामा बिन लादेन।अफगानिस्तान को सोवियत दखल मुक्त करके ही तालिबान के जरिये तेलयुद्ध की बुनियाद रखी गयी थी और उसी तेल कारोबार का माध्यम डालर के बदले यूरो बनाने की पेशकश के साथ ही सद्दाम भस्मासुर बन गये।


इराक युद्ध खत्म होते न होते नाइन एलेवेन के बहाने अमेरिका का आंतकविरोधी युद्ध शुरु हो गया।


सोवियत संघ के विखंडन से पहले ही तेल युद्ध के मार्फत भारत अमेरिका से नत्थी हो गया जिसका चरमत्कर्ष भारत अमेरिका परमाणु संधि तेलयुद्ध के मानवता विरोधी युद्धअपराधी अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के नेतृत्व में संपन्ना हुआ और उन्हीं की अगुवाई में अमेरिका के आतंकविरोधी युद्ध में पार्टनर बन गया भारत इजराइल के साथ।


अपने बेड पार्टनर के खिलाफ बोलने की प्रथा जाहिर है,दुनियाभर में कहीं नहीं है।इसलिए गाजा पर भारतीयसत्तावर्ग का अखंड मौन समझा जा सकता है।


लेकिन एक बडा पेंच यह भी है कि यूरोपीय संगठन और डालर को यूरो की चुनौती के परिप्रेक्ष्य में भारत के साथ साझेदारी अमेरिका की राजनयिक मजबूरी भी है,जो तेलयुद्ध में उसके हितों के लिए और एशिया को मुक्त बाजार में तब्दील करने के उसके आत्मरक्षा के डालर एजंडे के लिए अनिवार्य भी है।


नाइन एलेवेन और मलेशियाी विमानों के रहस्य में कई न कोई तार अवश्य है। अभी सबूत मिले नहीं है कि रूस ने ही यह महमला कराया है लेकिन रूस को युद्ध अपराधी बनाया जा रहा है और अमेरिकी कठपुतली यूक्रेन को संदेह के दायरे से बाहर रखा जा रहा है जो आपराधिक वारदातों के तहकीकात के वसूलों के खिलाफ है कि शक के दायरे से बाहर कोई नहीं होता।


अब मीडिया का यह तर्क कि 1962 के युद्ध ने इस बात को साबित भी किया है कि चीन भारतीय भूमि पर कब्जा जमाना चाहता हैऔर इसीतर्क के तहत निष्कर्ष कि  अपनी इस मंशा को पूरा करने के लिए वह भारत के अरुणाचल प्रदेश अपना हिस्सा बताने से भी बाज नहीं आता है।जीहिर है कि  चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने की हिमाकत की है। चीनी सरकार ने अपनी सेना को लाखों ऐसे नक्शे बांटे हैं जिसमें अरुणाचल को चीन का हिस्सा दिखाया गया है।


हकीकत चाहे जो हो ऱूस और चीन को  एकमुश्त अपराधी बतौर पेश करके ब्रिक्स की चुनौती खत्म करने का कार्यक्रम है यह,इसे भी समझना जरुरी है।


एक जानकारी सरकार के रियल्टी कंपनियों में तब्दील हो जाने के बारे मेंः


मानसून खत्म होते ही राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन की गतिविधियां जोर पकड़ने वाली हैं। इन चारों राज्यों ने हाल ही में पेश अपने बजट में ग्रोथ के मॉडल को बदल दिया है। इन चारों राज्यों के बजट सड़क, नए शहर और शहरी यातायात पर निवेश करने जा रहे हैं। इन सभी राज्यों के बजट की गहरी पड़ताल बताती है कि आने वाले समय में राज्यों का बड़ा बजट सड़कों के निर्माण पर खर्च होगा। राजस्थान, मध्यप्रदेश और पंजाब सड़कों के निर्माण पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करेंगे, जबकि राजस्थान, पंजाब और मध्यप्रदेश की सरकारें नए शहरों पर भी फोकस करेंगी। इन राज्यों में इस बजट के कारण मानसून खत्म होते ही बड़े पैमाना पर कंस्ट्रक्शन का काम शुरू होगा, जो स्टील और सीमेंंट की मांग को नई ऊंचाई दे सकता है और प्राॉपर्टी बाजार में सक्रियता बढ़ा सकता है।


रिलायंस से तेल के कुएं वापस ले सरकार : आप

Monday, 23 June 2014

नई दिल्ली। गैस के दाम बढ़ाने के फॉर्मूले पर सरकारी जद्दोजहद के बीच आम आदमी पार्टी ने गैस उत्पादक कंपनी रिलायंस इंस्ट्रीज लिमिटेड (आरआइएल) के काम-काज पर भारत के महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट जारी कर संसद में पेश करने की मांग की है। कैग की रिपोर्ट में रिलायंस पर कई अनियमितताएं बरतने का आरोप है। रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में आप नेता प्रशांत भूषण और सुप्रीम कोर्ट के वकील कोलिन गोंजाल्विस ने इस रिपोर्ट के तथ्य लीक करते हुए कहा कि रिलायंस की खुली लूट के लिए उससे कुएं वापस लेने के बजाए सरकार गैस के दाम बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकार को कंपनी से गैस निकालने का काम वापस ले लेना चाहिए। वहीं, कंपनी ने आप के आरोपों को बेबुनियाद बताया है।

प्रशांत ने कहा कि कैग ने रिपोर्ट के शुरू में ही कहा है कि रिलायंस ने लेखा जांच में आनाकानी का रवैया रखा। जरूरी तथ्य छिपाने की कोशिश कर गलत जानकारी दी। सरकार के साथ कंपनी के हुए करार के मुताबिक कंपनी की लेखा जांच होनी चाहिए। कैग ने छह अहम बिंदुओं पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाया है। इसके मुताबिक, रिलायंस ने न केवल पेट्रोलियम पदार्थों व प्राकृतिक गैस की खुली लूट मचाई है बल्कि इसके बारे में देश को धोखे में रखा है। अपने भंडार को बढ़ा-चढ़ा कर बताया और उत्पादन कम किया। पहले रिलायंस ने गैस भंडारण क्षेत्र अधिक बता कर इसे निकालने के नाम पर भारी खर्चा दिखाया। बाद में उसका क्षेत्र कम बता कर अधिक उत्पादन से बचने की कोशिश की। पहले रिलायंस ने कहा कि गैस 14.16 टीसीएफ है और इस आधार पर दो बिलियन डालर से अधिक का खर्चा दिखाया। इसके बाद वह कहने लगी कि भंडार केवल 3.6 टीसीएफ ही है। उसने करार के मुताबिक, उत्पादन नहीं दिखाया। साथ ही कंपनी ने पेट्रोलियम के पूरे मुनाफे को सरकारी खजाने में नहीं पहुंचाया। इसी तरह कंपनी ने संयंत्र मशीनें मंगवाने में अनियमितता बरती। निविदा के नियमों क ी अनदेखी करके एक ही कंपनी को दस में से आठ ठेका दे दिया। अलग-अलग अनियमितताओं का जिक्र करते हुए प्रशांत भूषण ने मांग की कि इस रपट को संसद में पेश किया जाए और इस पर बहस कराई जाए।

दूसरी ओर, आरआइएल ने कहा कि आप राजनीतिक विलुप्तता का सामना कर रही है। इसलिए मसौदा को लेना और बिना दिमाग लगाए या उत्पादन साझेदारी के संदर्भ को देखे बिना उसे प्रसारित करना कोई अचरज नहीं है।

पिछली यूपीए सरकार के समय में रंगराजन समिति के सुझाए फार्मूले के आधार पर भारत में उत्पादित गैस की कीमत को प्रति इकाई (एमएमबीटीयू) 4.2 डालर से बढ़ाकर 8.4 डालर करने का फैसला किया गया था। तेल वगैस उत्पादकों का कहना है कि मौजूदा 4.2 डालर प्रति यूनिट की दर गहरे समुद्र में गैस के उत्खनन और निकासी के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन दुविधा यह है कि खनिज गैस की कीमत बढ़ने से गैस आधारित बिजलीघरों, यूरिया कारखानों, सीएनजी व पाइप के जरिए घरों में जाने वाली रसोई गैस की लागत बढ़ जाएगी। इस समय मुद्रास्फीति के दबाव को देखते हुए नई सरकार को यह तय करना है कि वह इस मुद्दे पर क्या फैसला करे कि महंगाई का दबाव और न बढ़े। विशेषज्ञों के मुताबिक, गैस की दर में प्रति डालर की वृद्धि से यूरिया उत्पादन लागत प्रति टन 1,370 रुपए बढ़ जाएगी। इसी तरह बिजली की उत्पादन लागत पर प्रति यूनिट 45 पैसे का असर पड़ेगा और सीएनजी 2.81 रुपए किलो व पाइप वाली रसोई गैस 1.89 रुपए प्रति घन मीटर महंगी हो जाएगी।


नई सरकार रंगराजन फार्मूले में संशोधन या उसके क्रियान्वयन के तरीके में कुछ फेरबदल की संभावनाओं पर विचार कर रही है। इस फार्मूले में घरेलू गैस की कीमतों को अमेरिका और ब्रिटेन के गैस व्यापार केंद्रों में प्रचलित कीमत और जापान में आयातित गैस कीमत की औसत के आधार पर रखने का सुझाव दिया था। जिसे पिछली यूपीए सरकार ने पिछले साल दिसंबर में स्वीकार कर लिया था और उसे पहली अप्रैल से लागू किया जाना था। पिछली सरकार आम चुनावों की अधिसूचना के बीच इस फैसले को लागू नहीं कर सकी थी।


OPINION

How Much Can We Forgo To India Inc?

To the social subsidy whiners, please check corporate write-offs column

P. SAINATH

http://www.outlookindia.com/article/How-Much-Can-We-Forgo-To-India-Inc/291424


The TV anchor asked eagerly of Arun Jaitley whether he would take hard decisions or, in the case of a bad drought, revert to loan waivers and (obviously wasteful) subsidies. The finance minister replied that it depended on the situation as it unfolded but he hoped he wouldn't have to return to such steps. "We hope so too," said the anchor fervently. Which was cute, coming from someone pushing a wish list of the corporate world as hard-hitting journalism. A corporate world which has on average received Rs 7 crore every hour (or Rs 168 crore every day) in write-offs on just direct corporate income tax alone. And that for nine years running. (Longer, but we only have data for those nine years.)

And that's if we look only at corporate income tax. Cast your gaze across write-offs on customs and excise duties and the amount quadruples. The provisional figure written off for the corporate needy and the and the belly-aching better off is Rs 5,72,923 crore. Or Rs 5.32 lakh-crore if you leave out something like personal income tax, which covers a relatively wider group of people.

It's close to three times the amount said to have been lost in the 2G scam.  About four times what the oil marketing companies claim to have lost in so-called "under-recoveries" in 2012-13. Almost five times what this year's budget earmarks for the public distribution system. And over 15 times what's been allocated for the MNREGS. It's the biggest giveaway, an unending free lunch that's renewed every year. Gee, it's legal, too. It is government policy. It's in the Union Budget. And it is the largest conceivable transfer of wealth and resources to the wealthy and the corporate world that the media almost never look at.

It's tucked away at the very rear of the budget document. A seemingly innocuous annexure. It's title, though, is disarmingly honest. 'Statement of Revenue Foregone.' (see:http://indiabudget.nic.in/ub2014-15/statrevfor/annex12.pdf) There are those who point out that this should more correctly read 'forgone' and not 'foregone'. The former actually des­cribes the process of relinquishing or abstaining from something. In this case, from collecting taxes that are legitimately due. The  budget document says 'revenue foregone'. However, the write-offs are anything but semantic.

So it totalled Rs 5.32 lakh-crore in 2013-14. But budgets only started carrying that annexure a few years ago, and we only have the data from 2005-06 to 2013-14. In those nine years, the corporate karza maafi amounted to Rs 36.5 lakh-crore. That, in case you like the sound of the word, is Rs 36.5 trillion. (Okay, so for the record, these were all NDA years. But let's see next year if the NDA proves even slightly different).




the provisional figure written off for the corporate needy and belly-aching better-offs is Rs 5,72,923 crore.




For those stricken by number-crunchitis: that works out, on average, to Rs 1,110 crore every day—for nine years. That's one hell of a free lunch. Sure, there are elements that benefit wider groups. Like personal income tax concessions (which is why they're excluded from the calculations here across those nine years). But do look at some of the big items.

In more than one year since 2005-06, the item hogging the biggest write-offs in customs duty was 'gold, diamonds & jewellery'. Not quite the province of the aam aadmi or aam aurat. In 2013-14, the amount was Rs 48,635 crore. That was more than the amount written-off on machinery. Greater than what was written off on vegetables, fru­­its, cereals and vegetable oils. In  36 months between 2011-14, duty write-offs on gold, dia­­m­onds and jewellery totalled Rs 1.67 lakh crore.

Yet, the concern is over a one-time loan waiver to  millions and millions of farmers (which never touched the most needy of them). Or 'food subsidy' worth less than ten rupees a day per person below the poverty line in the hungriest nation on earth. Not over giveaways to the corporate world and the better off that cross 1,100 crore a day on average in nine years. There is hand-wringing over a rural employment guarantee programme that, at its very best, cannot  give Rs 15,000 in an entire year to a family of five. Not over corporate karza maafi that works out across those nine years to Rs 1.28 lakh per second.

We could have used that Rs 36.5 trillion a bit differently. You see, with that sum, you could:

  • Fund the Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme for some 105 years, at present levels. That is a hell of a lot more than any agricultural labourer would expect to live. You could, in fact, run the MNREGS on that sum, across the working lives of two generations of such labourers. Current allocation for the scheme is around Rs 34,000 crore.

  • Fund PDS for 31 years (current allocation Rs 1,15,000 crore).

By the way, if these revenues had been realised, around 30 per cent of their value would have devolved to the states. So their fiscal health is affected by the Centre's massive corporatekarza maafi. Even just the amount foregone in 2013-14 can fund the rural jobs scheme for three decades. Or the PDS for four-and-a-half years.

Here's a media full of market televangelists who preach every night about the need to trim subsidies. Why not start with those above? Well, because so many media outlets are part of corporations locked in the feeding frenzy at the subsidy trough. But to return briefly to the semantics of loot and grab (versus crumbs off the table). Give the poor and hungry assistance worth less than Rs 10 a day to help them have just a tad more food—that's a subsidy. Give trillions of rupees to the rich—that's an 'incentive' or at best a 'deduction'. Even the otherwise frank 'Statement of Revenue Foregone' titles many giveaways as  'incentive/deduction' or, at best 'concessions'.

It's not as if governments or officialdom are unaware of how regressive all this is. The 2009-10 budget said in so many words: "The amount of revenue foregone continues to inc­r­e­ase year after year. As a percentage of aggregate tax collection, revenue foregone remains high and shows an increasing trend as far as corporate income tax is considered for the fin­ancial year 2008-09. In case of indirect taxes, the trend shows a significant increase for the financial years 2009-10 due to a reduction in customs and excise duties. Therefore, to reverse this trend, an expansion in tax base is called for."

I wrote about this at the time. And the language and tone changed from the next year. No more calls for reversal. I won­der why? Yet, the budget still notes a rising trend in plu­tocrat plunder. Even this year, it notes: "The total revenue foregone from central taxes is showing an upward trend." Now remember, the same class of 'subsidy ben­eficiaries' loot public sector banks of countless thousands of crores. By the time this piece is out, the All-India Bank Employees Ass­o­ciation will have revealed the names of wan­ton defaulters who currently owe the banks tens of tho­u­sands of crores. These are names governments have ref­used to reveal even to Parliament on the plea of the RBI Act and banking secrecy.

Who says industry has been doing badly?  The amounts recorded as written-off in the Statement of Revenue Foregone for 2013-14 are 132 per cent higher than they were in 2005-06. (Even with the budget document gently, sometimes silently, clucking its tongue at the trend). Corporate karza maafi is a growth industry. And an efficient one.


(Magsaysay Award-winner Palagummi Sainath is the country's foremost chronicler of the travails of farmers. A shorter version of this piece appeared on his blog, www.psainath.org)


मोदी सरकार के PPP एयरपोर्ट पर लगे दांव पर भारी पड़ सकती है कैग की रि‍पोर्ट

POLICY TEAM|Jul 19, 2014, 13:49PM IST

http://money.bhaskar.com/article/NR-PAP-cag-report-shows-how-gvk-made-fliers-foot-their-airport-bills-4685399-NOR.html?google_editors_picks=true

नई दि‍ल्‍ली। मोदी सरकार ने सार्वजनि‍क नि‍जी भागीदारी (पीपीपी) के जरि‍ए देश भर एयरपोर्ट बनाने का बड़ा दांव खेला है। लेकि‍न सरकार के इस दांव पर ऑडिटर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रि‍पोर्ट भारी पड़ सकती है। कैग ने मुंबई हवाई अड्डे की परिचालक मायल के प्रदर्शन की समीक्षा करने व इसके वित्तीय कामकाज की निरंतर आधार पर निगरानी को कहा है। कैग ने कहा है कि परियोजना की लागत दोगुनी हो गई है और इस अंतर को यात्रियों से विकास शुल्क वसूलकर पूरा किया जा रहा है। इसी तरह की परेशानी दि‍ल्‍ली और हैदराबाद के एयरपोर्ट साथ देखी गई है। ऐसे में एक बार फि‍र देश में सार्वजनि‍क नि‍जी भागीदारी (पीपीपी) पर सवाल खड़े हो गए हैं।


कैग का आरोप

  • कैग ने मुंबई हवाईअड्डा के लिए पीपीपी मॉडल की यह कहते हुए आलोचना की है कि जोखिम को उचित ढंग से निजी पक्ष को हस्तांतरित नहीं किया।

  • इससे परियोजना की लागत दोगुनी हो गई और इसके अंतर की भरपाई विकास शुल्क के जरिए यात्रियों से की जा रही है।

  • कैग ने कहा है कि परियोजना के वित्तपोषण के लिए संसाधन जुटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

  • इसमें यह भी कहा गया है कि मायल में निजी क्षेत्र की ढांचागत कंपनी जीवीके की भागीदार सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) का राजस्व हिस्सा घटेगा, क्योंकि कई गतिविधियों की आउटसोर्सिंग की जा रही है।

  • 2006 से 2013 के दौरान एएआई को मायल से सकल राजस्व हिस्से के रूप में 2,857 करोड़ रुपए मिले हैं। कैग ने कहा है कि वहीं दूसरी ओर निजी भागीदारी को इस दौरान 888 करोड़ रुपए के निवेश पर सकल रूप से 4,526 करोड़ रुपए का राजस्व मिला है।

  • परियोजना की लागत 5,826 करोड़ रुपए के दोगुने से भी अधिक बढ़कर 12,380 करोड रुपए पहुंच गई।

निजी कंपनी को नहीं हुआ कोई नुकसान

अनुबंध हासिल करने वाली कंपनी के सामने कोई वित्तीय खतरा उत्पन्न नहीं हुआ क्योंकि पैसे की कमी यात्रियों पर विकास शुल्क बढ़ा कर पूरी कर ली जा रही है जबकि इस परियोजना के परिचालन, प्रबंध एवं विकास समझौते में इसका प्रावधान नहीं था।

पीपीपी की वजह से एयरलाइंस की लागत बड़ी

  • नि‍जी कंपनि‍यों द्वारा बनाए गए एयरपोर्ट्स पर शुल्‍क बढ़ता जा रहा है जो एयरलाइंस के लि‍ए चिंता का सबब बन गई है।

  • कुछ घरेलू एयरलाइंस के औसत टि‍कट कि‍राए में टैक्‍स और फीस की हि‍स्‍सेदारी 17 फीसदी तक रहती है।

  • इसके अलावा, एयरपोर्ट शुल्‍कों से संबंधि‍त चार्ज की हि‍स्‍सेदारी 10 से 12 फीसदी रहती है।

इन एयरपोर्ट्स का क्‍या होगा

  • सि‍डनी स्‍थि‍त है एक एवि‍एशन कंसलटेंसी कंपनी सीएपीए ने अपनी रि‍पोर्ट में कहा गया है कि‍ पहले चार पीपीपी एयरपोर्ट की सफलता के बावजूद कुछ परेशानि‍यों पर नजर डालना जरूरी है। इसमें इकोनॉमि‍क रेगुलेशन, जमीन अधि‍ग्रहण और प्रोजेक्‍ट लागत का प्रबंधन शामि‍ल है।

  • एएआई ने पीपीपी के जरि‍ए चैन्‍न्‍ई, कोलकाता, अहमदाबाद, गुवहाटी, जयपुर और लखनऊ एयरपोर्ट के नि‍र्माण का ठेका दि‍या है।

  • इसके अलावा, नौ अन्‍य एयरपोर्ट का नि‍र्माण कि‍या जाना है।



Jul 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Govt Gets Ready With Reforms, May Bring Many Bills to House

VIKAS DHOOT

NEW DELHI





With finance minister Arun Jaitley stressing on Friday that things will be done outside the Budget to revive the economy, it is likely to be a winter of reforms this year.

The NDA government is drawing up changes to several laws in critical sectors such as mining, labour, transport and possibly even the contentious land acquisition regime recently put in place by the UPA that has become the biggest plaint deterring new investments and infrastructure development projects.

In line with prime minister Narendra Modi's call to purge all outdated laws that are holding back the country's development, line ministries have initiated consultations and deliberations on such laws in their domains with an eye on introducing them in the Parliament's winter session. "In the current session, our priority is to discuss and get the Budget passed and we could bring a few other Bills for Parliament's nod following that," said parliamentary affairs minister Prakash Javadekar.

The government hopes to amend the Prevention of Corruption Act and the Insurance Act in this session that ends on August 12. Another bill to grant national importance status to the Film and Television Institute in Pune has also been proposed and is likely to be taken up by the Modi Cabi

net soon, Javadekar said.

"We have begun discussions on changing all the nine transport-related laws in the country that have become very outdated. I intend to fast-track these deliberations and introduce the bills in Parliament's winter session," said road transport, rural development and shipping minister Nitin Gadkari.

The transport sector laws, such as Motor Vehicles Act of 1988, are being revisited and will be put on par with international best practices. The 1988 law, for instance, would include a provision that allows monitoring traffic violations by e-governance systems. "If you break a traffic light, whoever you may be, you will be sent a challan on your mobile phone within three hours of the incident through an automated system. If you choose to contest the case in court, the fine levied on you could be three times more," Javadekar said.

On the land acquisition law, he said: "I can't say much… we don't want to change the law. But all state governments, including UPA ministers, have told us it has problems. We are trying to take everyone's views and would firm up the government's position." The labour ministry has put up draft laws to replace the Factories Act of 1947, the Apprenticeship Act of 1961 and the Contract Labour Act of 1971, for which stakeholder comments have come in.



Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

CAG Flays Fuel Pricing Policy, Says Customers Overcharged


NEW DELHI

OUR BUREAU





UNDER LENS National auditor says people paid for imaginary charges while some private firms got undue benefit

The national auditor CAG has observed that state oil firms have overcharged customers and collected additional ` . 26,626 crore in five years by making people pay for imaginary charges such as customs duty on domestic sales, while they gave "undue benefit" to Essar Oil and Reliance Industries by buying their fuel at high rates.

The report is on the pricing mechanism followed by IndianOil, HPCL and BPCL in case of three products -petrol, diesel and LPG.

The auditor questioned various components of the retail price and said inefficiency in marketing resulted in higher than necessary expenditure on several items, because of which consumers were forced to pay a higher price than necessary.

The Comptroller and Auditor General of India observed that the notional charges such as insurance, freight, wharfage and ocean loss amounted to ` . 50,513 crore in five years up to March 2012, but the actual cost that was paid on imported crude was only ` . 23,887 crore.

"This even after deduction of relevant expenses incurred in the import of crude oil during 2007-2012, OMCs ought to have benefited by . 26,626 crore," the CAG said. The no` tional charges are added for the entire quantum of fuel sold although more than 20% of the oil they refine is sourced domestically .

The CAG also said state firms were buying fuel from private refiners at a price equivalent to the landed price of the fuel if it was imported after paying freight charges, insurance and customs duty. If state firms do not make the purchase, the private refiners would export them at a lower rate called the export-parity price. The CAG observed that state firms had made no effort to negotiate and bring down the price.

CAG's report on the mechanism for oil pricing, tabled in parliament on Friday, said oil marketing companies (OMCs) should renegotiate prices with private refiners. The current prices paid by state firms "afford an undue benefit to private refiners (Reliance Industries and Essar Oil), which was estimated at . 667 crore on HDS (diesel) in only ` one year," it said.

Oil marketing companies also pay a similar price to stand-alone refineries, which do not have retail outlets.

The price is also used to calculate the "under-recovery" or revenue loss, which means that the contribution of upstream firms and government's subsidy to compensate the OMCs is also higher than what it should be.

CAG said standalone state-run refiners such as CPCL, NRL and MRPL gained by over ` . 1,400 crore per year because of the pricing system. The report said that the oil ministry sought to justify the pricing system on the ground that state firms needed the additional money to modernise, but the CAG had doubts. " OMCs would be expected to derive a price advantage. However, this advantage does not appear to have been translated adequately in terms of efficiency improvement in refining margins, optimization of costs of production and improvements of yields," it said.

The auditor brushed aside companies' justification that they made huge investments of ` . 38,800 crore in auto fuel upgradation and refinery modernization projects. "While it is acknowledged that OMCs have invested in auto fuel upgradation projects, it may be noted that a higher return is also guaranteed in the price structure for such upgradaded fuels which would address the need for investment in such projects to some extent," it said.

Jul 19 2014 : The Economic Times (Kolkata)

Govt to Clear GST Hurdles This Year


NEW DELHI

OUR BUREAU





FM SPEAK Goods and services tax to be introduced after consultation with states

Government will try to resolve issues hampering the roll out of the goods and services tax (GST) within this year, Finance Minister Arun Jaitley informed the Lok Sabha on Friday.

"The government targets to find a solution in the course of this year and approve the legislative scheme which enables the introduction of GST (Goods and Services Tax)," he said during Question Hour.

Jaitley said government is "willing to take a pragmatic view", but did not want a "token GST, but a substantial GST." The Economic Survey had suggested the government could start with a central GST. "There should be consensus" finance minister said adding that GST will be introduced after consulting

the states.

"Government has also assured states that it will compensate for any revenue loss incurred by them, from the date of introduction of GST, for a period of three years," he said.

"Time has come for pragmatic approach...one or two exceptions the government can consider" Jaitley said adding that GST would spur growth.

"GST is likely to bring about a fundamental change in the tax structure by redistributing the burden of taxation equitably between goods and services," Jaitley said.

loss incurred by them, from the date of introduction of GST, for a period of three years," he said.

"Time has come for pragmatic approach...one or two exceptions the government can consider" Jaitley said adding that GST would spur growth.

"GST is likely to bring about a fundamental change in the tax structure by redistributing the burden of taxation the burden of taxation equitably between goods and services," Jaitley said. However, finance minister cautioned that GST should include most indirect taxes. "If too many taxes are excluded, the objectives of GST will not succeed...It (GST) is a good cause that everybody fall in line," he noted. GST was to be originally rolled out from April 1, 2010 but has been delayed because of concerns of states.

"States' concerns with regard to the GST mainly relate to loss of revenue, fiscal autonomy, compensation, keeping certain items out of GST, subsuming of certain taxes in GST etc," Jaitley said.

He cited the case of Punjab and Gujarat. While the former was worried about purchase tax, the latter has expressed concerns over loss of manufacturing revenues. "Certain states may face problems in initial stages of implementation of goods and services tax...Those will be discussed," he said.




Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Jaitley Bats for Four Ministries

CL MANOJ

NEW DELHI





FIGHTING FIT FM answered all questions from members regarding four different ministries and then moves on to present the Delhi state budget

FOR all those skeptics who wondered at Arun Jaitley's fitness level during the presentation of Union budget a fortnight ago, the finance minister gave a reply by carrying the bat through Friday, earning a word of praise from Lok Sabha Speaker Sumitra Mahajan.

Sample this: From 11 AM to 12 noon during the Question Hour, he was the only minister who answered all questions from members regarding four different ministries. He then moved on to present the Delhi state budget – the state Assembly is currently under suspended animation. After lunch break, Jaitley returned to give an hour-long reply to the discussion on Union budget. In between, he also laid on table papers regarding the ministries he is handling.

The question hour saw Jaitley replying to queries regarding

the Finance and Defence ministries as well questions meant for Commerce & Industry Ministry plus Corporate & Company Affairs for which he was standing-by since minister Nirmala Seetharaman is abroad. This meant Jaitley answering, one by one, mem bers' questions on a wide range of questions ­ from efforts to track black money , India's efforts with Switzerland regarding the disclosure of illegal bank accounts of Indians to steps being contemplated to phase out overused and crash-prone defence aircrafts to steps being taken to enhance price and export of coffee produced in South India, tea in Assam and natural rubber in Kerala.

At the end of the Question Hour, Speaker Sumitra Mahajan made it a point to place her appreciation on record. "I want to congratulate the Minister who single handedly fielded queries during the entire Question Hour like lifting of the Govardhan hill (by Lord Krishna)".

Many members­ both from ruling and Opposition side thumped the desks to cheer Jaitley. Soon after, Jaitley presented to the House the Delhi state budget, a requirement given there is no government in the state currently with Assembly placed under suspended animation.

Some Opposition members tried to score a brownie point by asking why Jaitley is presenting the state budget at a time when media reports said the state BJP was trying to engineer defections from AAP and Congress to prop up a government in Delhi. The politician in Jaitley chose to deftly ignore the googlies.











Jul 19 2014 : The Economic Times (Mumbai)

We're Pro-Business as well as Pro-Poor, Insists FM Jaitley


NEW DELHI

OUR BUREAU





Slams UPA's tax terror, vows pro-growth steps

Finance Minister Arun Jaitley as serted that the Narendra Modi government was pro-business but also pro-poor and roundly criticised the previous UPA administration for indulging in "tax terrorism" and being beset by "policy paralysis" that discouraged investors, while promising further steps to revive India's economy and get it out of a prolonged slump. Jaitley also said he had kept a lid on taxes in his budget and hoped that a moderation in in flation would bring in terest rates down, be sides pointing to what he said were early signs of recovery.

"Someone said we are pro-business. We are pro-business. There is no contradiction in bess and being pro-poor," he ing pro-business and being pro-poor," he said, replying to the debate on the new government's first budget in the Lok Sabha on Friday . "In fact, if you stop business activity , then you would not have enough resources to service the poor as far as this country is concerned."

The Union Budget was later approved by the House, marking the completion of the first stage of consideration by Parliament. The second stage consideration will involve a discussion on the demands for grants followed by the approval of the Finance Bill. The finance minister said the new government is trying to restore the confidence of domestic and foreign investors by bringing "civility" to the taxation system. He said investors had developed "doubts" over the India Story in the past few years in the backdrop of unpredictable tax regime, thanks to retrospective changes in the law. Any relaxation on tax changes for investors in short-term debt mutual funds is only expected in Jaitley's reply to the discussion on the Finance Bill.

Jaitley said the government would take several measures to revive growth apart from those announced in the Budget, suggesting that the disappointment in some quarters with the latter wasn't justified.

"There are a series of steps that we have to take. The budget was only some of those steps. It was directional. It only shows direction. There will be many steps which will be taken outside the budget. It is not necessary that everything is announced in the Budget," he said.

The minister justified measures unveiled in the Budget to attract private investments, including allowing foreign direct investment up to 49% in defence and insurance, saying this was necessary to boost industry and manufacturing, which in turn would lead to job creation.

"There are those who oppose the idea of FDI in defence at 49%. I cannot understand the contradiction... Today , the situation is that we are buying from foreign companies and foreign governments...

Our `defence' is in their hands. They can stop supplies. We have to build capacities," he said. Similarly , investments are needed in the fund-starved insurance sector, particularly health insurance, he said.

Defending the budget, he said the approach was radically different from that of the previous government in many ways.

"The difference in the approach is that consistently across the board, this is a budget where we have not increased taxes," he said. "If you put higher taxes on products, people will buy products from outside. Lower taxes will increase economic activities," he said.

Jaitley also expressed the hope that interest rates will soften with the moderation in inflation. "Interest rates have gone up because inflation is high. I hope the interest rate comes down," he added. Inflation declined in June, but that may not be enough for the RBI to ease interest rates at its August 5 monetary policy meet .

The finance minister pointed to signs of optimism -a marginal improvement in various economic parameters such as exports, capital inflows and the industrial sector as per recent data. This, he said, could not be termed as a "trend" but early signs of recovery . A modest improvement in the growth rate is likely in the current fiscal, he said, adding that an acceleration in economic expansion to 7-8% and subsequent buoyancy in tax collections would help him allocate more resources for social sector. Growth slowed to sub-5% levels in the past two financial years.

During the course of his reply , Jaitley announced a ` . 2,000 crore special fund under the National Bank for Agriculture and Rural Development for food parks, ` . 50 crore for setting up drug de-addiction centres in Punjab and restoring accelerated depreciation to encourage the wind energy sector. There had been some uncertainty over the latter as it wasn't included in the English version of the budget speech.

He also promised more funds for resettlement of Kashmiri Pandits over and above the `. 500 crore earmarked in the budget.

Referring to the housing sector, the minister said he would endeavour to bring about a situation in which buying a house would be cheaper than renting it.

In the Budget, Jaitley had raised the annual tax exemption on home loan repayments to ` . 2 lakh from ` . 1.5 lakh. Following the initiatives taken by the government, RBI provided incentives to banks to extend loans for affordable housing at cheaper rates.




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