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इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : यूपी के नौकरशाहों के बच्चे पढ़ेंगे सरकारी स्कूलों मे

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फ़ैसला सुनाते राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि सभी नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के लिए उनके बच्चों को सरकारी प्राथमिक...

बार बार एक झूठ दोहराते रहेते है कि, 40% में आरक्षित सिट पर प्रवेश मिल जाता है. गोबेल्स प्रचार की भी कोई हद होती है. जातिवादीओ ने कुप्रचार की सारी सरहद तोड़ दि है. सच्चाई आप के सामने है,

Next: Shrawan Kumar Paswan added 4 new photos. 18 hrs · # स्मारक_ लक्ष्मणपुर# के दलितों का है -जहां रणवीर सेना ने कुरुर हत्या का खेल खेला था दलित_ नितीश ,लालू# को कैसे वोट करे ,जिसके हत्यारे को नितीश कुमार ने बरी करा दिया - जाँच के लिए बना# जस्टिस आमिर दस आयोग# को भी भंग कर दिया - विनोद पासवान बाथे कांड के सूचक हैं. सबसे अधिक नौ लोग इनके ही परिवार से मारे गये थे नितीश सरकार उनकी सुरक्षा हटा ली है. विनोद अपने बच्चों को गांव में नहीं रखते. डर है कि फिर कुछ न हो जाये. उनके घर के बाहर ही पत्थर का एक स्मारक लगा है. लक्ष्मणपुर बाथे में मारे गये 58 लोगों के नाम हैं..
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टीवी चेनल पर टोक में कणबी पटेल जाति के प्रवक्ता बार बार एक झूठ दोहराते रहेते है कि, 40% में आरक्षित सिट पर प्रवेश मिल जाता है. गोबेल्स प्रचार की भी कोई हद होती है. जातिवादीओ ने कुप्रचार की सारी सरहद तोड़ दि है. सच्चाई आप के सामने है, देखिये..http://www.medadmbjmc.in/GBCLSVAC_080815.html

टीवी चेनल पर टोक में कणबी पटेल जाति के प्रवक्ता बार बार एक झूठ दोहराते रहेते है कि, 40% में आरक्षित सिट पर प्रवेश मिल जाता है. गोबेल्स प्रचार की भी कोई हद होती है. जातिवादीओ ने कुप्रचार की सारी सरहद तोड़ दि है. सच्चाई आप के सामने है, देखिये..

Jayantibhai Manani's photo.
Jayantibhai Manani's photo.

Shrawan Kumar Paswan added 4 new photos. 18 hrs · # स्मारक_ लक्ष्मणपुर# के दलितों का है -जहां रणवीर सेना ने कुरुर हत्या का खेल खेला था दलित_ नितीश ,लालू# को कैसे वोट करे ,जिसके हत्यारे को नितीश कुमार ने बरी करा दिया - जाँच के लिए बना# जस्टिस आमिर दस आयोग# को भी भंग कर दिया - विनोद पासवान बाथे कांड के सूचक हैं. सबसे अधिक नौ लोग इनके ही परिवार से मारे गये थे नितीश सरकार उनकी सुरक्षा हटा ली है. विनोद अपने बच्चों को गांव में नहीं रखते. डर है कि फिर कुछ न हो जाये. उनके घर के बाहर ही पत्थर का एक स्मारक लगा है. लक्ष्मणपुर बाथे में मारे गये 58 लोगों के नाम हैं..

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# स्मारक_ लक्ष्मणपुर# के दलितों का है -जहां रणवीर सेना ने कुरुर हत्या का खेल खेला था 
दलित_ नितीश ,लालू# को कैसे वोट करे ,जिसके हत्यारे को नितीश कुमार ने बरी करा दिया -
जाँच के लिए बना# जस्टिस आमिर दस आयोग# को भी भंग कर दिया -
विनोद पासवान बाथे कांड के सूचक हैं. सबसे अधिक नौ लोग इनके ही परिवार से मारे गये थे नितीश सरकार उनकी सुरक्षा हटा ली है. विनोद अपने बच्चों को गांव में नहीं रखते. डर है कि फिर कुछ न हो जाये. उनके घर के बाहर ही पत्थर का एक स्मारक लगा है.
लक्ष्मणपुर बाथे में मारे गये 58 लोगों के नाम हैं..
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‘जब तक जीवन है लड़ेंगे’ (सोनी सोरी) – देवेश त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट

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'जब तक जीवन है लड़ेंगे' (सोनी सोरी) – देवेश त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट

दिल्ली में जिस वक्त एक सरकार आ गई है और वो देश की तकदीर बदल देने का दावा कर रही है, उसी समय देश की एक महिला और उसके समर्थन में तमाम एक्टिविस्ट, लेखक, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता फासीवाद को चुनौती देने के लिए एकजुट हो रहे हैं। सोनी सोरी दिल्ली में थी, और अरुंधति राय, प्रशांत भूषण तथा हिमांशु कुमार के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस कर रही थी। हिल्ले ले की ओर से देवेश त्रिपाठी ने इस प्रेस कांफ्रेंस को कवर किया और यह आलेख भेजा। हालांकि इस रिपोर्ट का प्रारूप थोड़ा आलेख जैसा है और थोड़ा भावुक सा भी। लेकिन फिर भी समय की मांग है कि इसे ऐसे ही छापा जाए और इसमें हेर-फेर और सम्पादन न किया जाए। हम इस आलेख को स्पेशल रिपोर्ट कह रहे हैं, आप इसे सच कह सकते हैं।

  • मॉडरेटर

NM…यह आलेख तैयार करते वक़्त तक दिल्ली से लेकर दुबई तक देश के अगली महाशक्ति होने सपने देखे-दिखाए जा रहे हैं। भारत की महान परम्पराओं, संस्कृति आदि का सस्वर गान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पूरा देश कर रहा है। इन सबके बीच मज़े की बात ये है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का ढिंढोरा पीटने वाला यही महान देश अपने मूल निवासियों यानी आदिवासियों की हत्याएँ प्रायोजित करता रहा है। इससे भी ज्यादा मज़े की बात ये है कि हम यानी देश के 'द्वितीय निवासी'आदिवासियों के खुले कत्लेआम पर आँख मूंदे 'नमो'का जाप करने में व्यस्त हैं।ऐसी व्यवस्था जो आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के नाम पर उनकी ज़मीनें हड़प रही है, उनकी हत्याएँ प्रायोजित कर रही है, आदिवासी महिलाओं का बलात्कार कर रही है, विरोध जताने या असहमत भर होने पर नक्सली/माओवादी करार दे रही है, कहीं से लोकतंत्र कहलाने का अधिकार रखती है? आदिवासी तो देश के मूल निवासी हैं, संसाधनों पर पहला हक उन्हीं का बनता है फिर सरकारें उनका दमन कैसे कर सकती है? लोकतान्त्रिक देश में तो अपने अधिकारों के लिए लड़ना तो संवैधानिक अधिकार है, फिर ये हक आदिवासियों के लिए क्यों नहीं काम कर रहा? ध्यान रखिये कि हर तरफ चल रहे इतने क्रूर दमन के बाद अगर पीड़ित आदिवासी हथियार उठा लेते हैं तो उन्हें आतंकवादी या देश के लिए खतरा बताने का अधिकार किसी को भी नहीं है।

दिल्ली प्रेस क्लब में आज बस्तर सहित समूचे छत्तीसगढ़ में जारी आदिवासियों के दमन को लेकर हिमांशु कुमार, सोनी सोरी, लिंगा कोडोपी के नेतृत्व में प्रेस कांफ्रेस आयोजित की गयी थी। बताते चलूँ कि हिमांशु कुमार पिछले दो दशकों से आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने उन पर फर्जी मामले दर्ज कर उनका छत्तीसगढ़ में प्रवेश बंद करा दिया है। वहीं सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी जो खुद भी राज्य सरकार और पुलिस के दमन का शिकार रहे हैं, वो अब बस्तर और उसके आसपास के आदिवासियों के साथ अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहाँ यह कहने की जरूरत नहीं कि इन पर भी फर्जी केस दर्ज किये गए हैं। प्रेस कांफ्रेंस में अरुंधती रॉय, प्रशांत भूषण, वृंदा करात भी मौजूद थी।

soniकांफ्रेंस की शुरुआत करते हुए हिमांशु कुमार ने बताया कि पिछले एक साल में बस्तर के हालात और भी ज्यादा बिगड़ गए हैं। आई.जी. के तौर पर उन एस आर पी कल्लूरी को बुला लिया गया है जिन्होंने सलवा जुडूम का बखूबी सहयोग किया था। इन्हीं कल्लूरी के कहने पर सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी को अवैध ढंग से लम्बे समय तक थाने में रखा गया था। अब कल्लूरी के निर्देश पर सोनी सोरी के घर पर हमला किया जा रहा है, धमकाया जा रहा है। सबसे दुखद ये है कि सबकुछ राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित है। बस्तर की ज़मीनों के लिये आदिवासियों का दमन किया जा रहा है। आदिवासियों का दमन करने वाले अंकित गर्ग जैसे पुलिस अधिकारियों को सम्मान दिया जा रहा है। बस्तर के एस.पी. तक का घर आदिवासियों के लिए 'टॉर्चर सेंटर'बन गया है। हिमांशु कुमार ने आदिवासियों के हो रहे दमन को यूरोपियों द्वारा हुए नेटिव अमेरिकियों के दमन से जोड़ते हुए कहा कि विकास के शोर में आदिवासियों की कोई बात नहीं कर रहा है। देश की जनसंख्या की 8% आबादी को इस तरह चुपचाप मारकर सभ्य होने का ढोंग बंद करना होगा।

Arundhati Royअरुंधती रॉय ने आदिवासियों के दमन के चरित्र को समझाते हुए कहा कि "बस्तर में हो रहे दमन को समझने की जरुरत है। गरीब और मुख्यधारा से कटे हुए लोग तो पूरे देश में है फिर बस्तर व उसके आस-पास ही क्यों ऐसा दमन जारी है। जाहिर-सी बात है कि सरकार की नज़र उनकी ज़मीनों पर है। सरकारों को पता है कि आदिवासियों के दमन के लिए केवल फौजें काफी नहीं हैं इसलिए उनको पूंजी व भौतिक वस्तुओं का लालच भी दिया जा रहा है। पिछली सरकार के वक़्त पी. चिदंबरम ने ऑपरेशन ग्रीन हंट की घोषणा की थी जिसका उद्देश्य आदिवासियों का दमन था, साथ-ही-साथ उनको देश की नज़र में आतंकवाद का पर्याय भी घोषित करना था। मगर जब ऑपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में राष्ट्र-व्यापी आन्दोलन होने लगे तो इसे वापस लेने का नाटक किया गया और अन्दर ही अन्दर ये काम करता रहा। अरुंधती रॉय के अनुसार "'ऑफिशियल', संस्थागत ढंग से हो रहे इस दमन के खिलाफ जो भी बोलता है उसे माओवादी बोल दिया जाता है, अत: मीडिया की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है कि वह आदिवासियों के दमन को नज़रंदाज न करे और दुनिया के सामने लाने में अपनी अहम भूमिका निभाये।"

PRASHANT_BHUSHANप्रशांत भूषण ने सरकारों के रवैये और व्यवस्था के चरित्र पर कई सवाल खड़े किये। उन्होंने हैरत जताई कि सलवा जुडूम चलाने वालों को कैसे व्यवस्था में शामिल किया जा सकता है?आईजी कल्लूरी का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि "कल्लूरी पर आदिवासियों के हत्याओं के तमाम केस दर्ज हैं, अभी जांच चल रही है फिर उसे दोबारा नियुक्त करना बेहद खतरनाक है। झूठे केस दर्ज कर आदिवासियों को अनिश्चित काल के लिए जेलों में डाला जा रहा है, मारा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट सहित साड़ी जुडीसरी फेल हो गयी है। आदिवासियों पर दर्ज होने वाले 97% से 99% केस झूठे पाए जाते हैं। छूटने वाले आदिवासियों को कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता है न हीं उनका बलात्कार करने वाली, मारने वाली पुलिस पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। स्थानीय निवासियों से लेकर स्थानीय मीडिया में इतना डर भर गया दिया है कि ये सब मामले दबे रह जाते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ से बाहर की जनता, मीडिया व सिविल सोसाइटी की जिम्मेदारी है कि वो आदिवासियों के लिए आवाज़ उठाये। जहाँ-जहाँ आदिवासी रहते हैं, केवल वहीं पर्यावरण का अस्तित्व बचा हुआ। अत: आदिवासी देश की पूंजी हैं और उनको ख़त्म करना, देश की पूंजी को ख़त्म करना है। "

vrindaवृंदा ग्रोवर ने स्पष्ट किया कि कैसे व्यवस्था का कोई भी अंग आदिवासियों के लिए नहीं काम करता है।  कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका सभी आदिवासियों के दमन में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। बस्तर व उसके आस-पास के जेलों पर किये अपने अध्ययन के आधार पर वृंदा ग्रोवर ने बताया कि छत्तीसगढ़ की जेलें सलवा जुडूम का काम रही हैं। 'नक्सल केस'के नाम आदिवासियों पर अवैध ढंग से अत्याचार किये जा रहे हैं। सन 2009 से अबतक का उनका अध्ययन बताता है कि दक्षिण छत्तीसगढ़ की जेलें देश भर की अन्य जेलों की तुलना में सबसे ज्यादा भरी हुई हैं, 'ओवरक्राउडेड'हैं। मसलन कांकेर की जेल की क्षमता 67 कैदियों की है जबकि वहां लगभग 400 आदिवासियों को भरा गया है। पूरे दक्षिण छत्तीसगढ़ की जेलों में आदिवासियों की संख्या में 269% की बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गयी है। होता यह आया है कि आदिवासियों को अवैध ढंग से जेल में जाता है, यहाँ तक कि लगभग सभी मामलों में आरोप तक नहीं तय किये जाते और वर्षों तक उन्हें जेल के भीतर रखा जाता है। अध्ययन के अनुसार जगदलपुर सेन्ट्रल जेल में ठूंसे गए आदिवासियों में से केवल 3% पर आरोप तय किये गए हैं। आदिवासियों के दमन के इतने मामलों में केवल उन मामलों का खुलासा हो पता है जिनमें कोई सामाजिक संगठन सक्रीय भूमिका निभाकर न्यायिक प्रक्रिया पूरी करवाता है। इन सबके अतिरिक्त यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि दक्षिण छत्तीसगढ़ की जेलें दुनिया में ऐसी अकेली जेलें हैं जहाँ मीडिया को जाने की अनुमति नहीं है।

Soniदमन के इस खूनी कुचक्र में आदिवासी महिलाओं की स्थिति सबसे ख़राब बनी हुई है। इसे ऐसे समझिये कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में नियुक्त किये जाने सरकारी कर्मचारी साथ में अपने परिवार को नहीं ले आते। उनके लिए ये इलाका भारत के बैंकाक जैसा है। आदिवासी महिलाओं को पुलिस या वहां मौजूद फौज उठा लेती है, फर्जी केस के नाम पर जेल में डालती है, बलात्कार करती है। कोई भी मामला ऐसा नहीं होता जिसमें किसी आदिवासी महिला का बलात्कार न किया गया हो। सोनी सोरी को, जिनके पति को छत्तीसगढ़ पुलिस ने पहले ही मार दिया है, पुलिस ने अवैध ढंग से लगभग 2 साल जेल में रखा। वो बताती हैं कि इस दौरान कई बार उनका बलात्कार किया गया, उनके गुप्तांगों में पत्थर भर दिए गए। सोनी के अनुसार हर आदिवासी महिला के साथ यही सुलूक किया जा रहा है। जिन-जिन मामलों को लेकर सोनी सोरी, लिंग कोडोपी संघर्ष कर रहे हैं, उनमें से एक मामला है बोरगुडा गाँव की हिडमे का। सन 2008 में हिडमे को, जब वो 15 साल की थी, मेले से उठाया गया।  पुलिस ने उन पर 302 का केस दर्ज किया। भांसी पुलिस थाने में उनका बलात्कार किया गया, तमाम तरह से उनको प्रताड़ित गया। फिर उनको कभी सुकमा जेल तो कभी रायपुर जेल तो कभी फिर वापस दंतेवाड़ा भेजा जाता रहा। इस दौरान हिडमे को कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतें रही मगर उनको चिकित्सा की सुविधा से वंचित रखा गया। पुलिस ने केस दर्ज करने का आधार बताया था कि माओवादियों के साथ हुए एक मुठभेड़ के वक़्त उन्होंने माओवादियों के मुंह से हिडमे शब्द सुना था। केस दर्ज करने लिहाज़ से पुलिस की यह दलील कहीं से भी विश्वसनीय नहीं लगती। सोनी सोरी बताती हैं कि यह नाम आदिवासियों महिलाओं के बीच बहुत प्रचलित है।  लगभग 8 साल बाद 2015 में जाकर शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी 23 वर्षीय हिडमे को अदालत ने बरी किया है। सोनी सोरी कहती हैं ऐसी स्थिति में किसी भी आदिवासी महिला के पास केवल एक ही चारा होता है कि वो जाकर हथियार उठा ले या सरकार से लोक तांत्रिक ढंग से संघर्ष करे क्योंकि इतनी प्रताड़ना, बलात्कार के बाद कोई भी महिला परिवार चलाने के काबिल नहीं रह जाती है। अरुंधती रॉय के अनुसार नक्सल/माओवादी कैम्पों में आधी से अधिक महिलाओं की संख्या होने का कारण ऐसे ही मामले है।

Soni policeसोनी सोरी बताती हैं कि आदिवासियों का दमन उनकी ज़मीनें हड़पने के लिए ही किया जा रहा है बाकी देश को बताया जाता है कि नक्सलवादी आन्दोलन ख़त्म किया जा रहा है। आई.जी. कल्लूरी के आने के बाद से आदिवासियों का फर्जी आत्मसमर्पण  करवाया जा रहा है। पिछले एक साल में हुए लगभग 400 आत्मसमर्पण का सच यह है कि ये हुए ही नहीं, मुश्किल से 10 हुए जो डरा धमका कर करवाया गया। आदिवासियों पर झूठे केस का डर बैठाया जाता है, जेल में डालने की धमकी दी जाती है जिसके डर से ही वो सरेंडर करते हैं। यह भी राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित है जिसके लिये पुलिस अधिकारियों को बाकायदा इनाम दिया जाता है। लिंडा कोडोपी बताते हैं कि ऐसे ही फर्जी एनकाउन्टर भी किये जाते हैं। लिंगा के अनुसार हाल ही में ऐसा एक मामला कुकनार थाने के अंतर्गत हुआ है। रेवाली गाँव के नक्को भीमा को, जब वो केकड़ा पकड़ रहा था, पुलिस ने गोली मारी और एनकाउंटर का रूप दे दिया। कई मामलों ऐसे भी आते हैं जिनमें आदिवासियों के मार रही पुलिस या सीआरपीऍफ़ कह देती है कि इन्हें नक्सलियों ने गोली मारी है। लिंगा बताते हैं कि नक्सलवादी किसी को ऐसे नहीं मारते, वो जनादालत लगाकर ही किसी को मारते हैं। इस तरह हर तरह आदिवासी इस तरह के फर्जी मामलों को देख रहा है और आक्रोशित हो रहा है। रेवाली गाँव के मामले के बाद बड़ी संख्या में आदिवासी अपने परम्परागत हथियारों को लेकर निकल पड़े जिन्हें बहुत से मुश्किल लोकतंत्र में भरोसा रखने का हवाला देकर लिंगा कोडोपी और उनके साथियों ने शांत किया। लिंगा कोडोपी कहते हैं कि हम शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखना चाहते हैं, मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं पर ऐसा नहीं होने दिया जा रहा है। पहले से ही आदिवासियों के लिए पुलिस एक डर का नाम है। अब सलवा जुडूम-2 आ रहा है जिसके कारण बहुत-से आदिवासी गाँव छोड़ कर अभी से भागने लगे हैं।

उपर्युक्त सभी कथन बेहद विचलित करने वाले हैं। क्या विकास का मतलब यही होता है कि आदिवासियों, किसानों, मजदूरों की बलि चढ़ती रहे? ऐसा विकास किसे चाहिए? और ऐसे विकास के सपने बेचने वाले लोग कौन है? दुनिया को दिखाने के लिए 26 जनवरी व 15 अगस्त को जब आदिवासी समुदायों की झांकी प्रस्तुत की जाती है, जब प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में पर्यावरण प्रेमी होने का दावा कर आता है तो कौन लोग हैं वो जो थूकने के बजाय तालियाँ पीटते हैं? जब हिंदी का एक कलमघसीट जो कहता है कि 'संसद से सब कुछ हजारों प्रकाशवर्ष की दूरी पर है'तो क्यों उसकी बात की काट नहीं दिखाई देती ? तमाम ऐसे सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं। क्या कोई हिमांशु कुमार की वह चिंता दूर कर सकता है जब वह कहते हैं कि लोकतंत्र, सुप्रीम कोर्ट ऐसे ही चलते रहेंगे और हम या सोनी सोरी या लिंगा कोडोपी कब गायब कर दिए जाएँ कोई पता नहीं।

'निराशावादी'कौम का सदस्य 'मैं'जब कांफ्रेंस से बाहर निकलने वाला था तो मन में गुस्से के अलावा उम्मीद की एक किरण जाते-जाते सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी ने दे दी। दोनों ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि जब तक जीवन है, लड़ेंगे! मैं तब बस मुस्कुरा ही सका। अब कहने की बारी है तो कह रहा हूँ, साथ में आप भी कहिये आमीन! सोनी सोरी, लिंगा कोडोपी, हिमांशु कुमार हम आपके साथ हैं, आमीन!

Deveshदेवेश त्रिपाठी, मूलतः हिंदी साहित्य के छात्र थे, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर, सिर्फ पढ़ने लगे , कविताएं , कहानियां और रिपोर्ट्स भी लिखते हैं, सब आक्रोश से भरे हुए। पत्रकारिता में उम्मीद दिखती है तो छोड़ कर साहित्य में रम जाते हैं और जब लगता है कि लेखक बन जाएंगे तो पता चलता है कि सब छोड़ यायावरी कर रहे हैं। देवेश, मौके-बेमौके अब हमारे लिए रिपोर्ट्स भेजते रहेंगे, ऐसा अविश्वसनीय सा वादा किया है। सनद रहे कि हम अपने संवाददाताओं को कोई भुगतान नहीं करते हैं। 

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Hille Le

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साहित्य में जनपक्षधरता के सिवाय किसी भी हरकत से मुझे सख्त नफरत है।‪#‎MakeLifeBetterIn3Words‬ ‪#‎Gulzar‬

This single-shot short film by Rohit Joshi is so simple and yet so powerful

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This single-shot short film by Rohit Joshi is so simple and yet so powerful: https://www.youtube.com/watch?v=U3mLrUrFHCg …‪#‎FilmsOfSubstance‬ @Patrakarpraxis

युवा पत्रकार-फ़िल्मकार रोहित जोशी की एक-शौटी डौक्युमेण्टरी

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This is a documentary film from Rohit Joshi's 'Single Shot Documentaries' project. In this project he is trying to make a series of documentary films, with j...

Himanshu Kumar 4 hrs · Edited · लक्खे एक आदिवासी लड़की है लक्खे छत्तीसगढ़ के एड्समेट्टा गाँव मे रहती थी लक्खे की तेरह साल की उम्र मे लखमा से शादी हुई पुलिस वाले इनाम और के लालच मे आदिवासियों को जेल मे डालते रहते हैं लक्खे जंगल मे लकडियाँ लेने गयी थी पुलिस पार्टी उधर से गुज़र रही थी पुलिस वाले लक्खे को पकड़ कर थाने ले गए लक्खे को थाने मे बहुत बुरी तरह मारा उसके बाद लक्खे को जेल मे डाल दिया गया लक्खे पर पुलिस ने नक्सलवादी होने के चार फर्ज़ी मामले बनाए तीन मामलों मे लक्खे को अदालत ने निर्दोष घोषित कर के बरी कर दिया है लेकिन इस सब मे दस साल गुज़र गए लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे बंद है शुरू के कुछ साल तक तो लक्खे को उम्मीद थी कि मैं जेल से जल्द ही निकल कर घर चली जाऊंगी जेल मे आने के चार साल तक लक्खे का पति जेल मे लक्खे से मिलने आता रहा लेकिन चार साल बाद लक्खे ने अपने पति लखमा से जेल की सलाखों के पीछे से कहा लखमा अब शायद मैं कभी भी बाहर ना निकल सकूं जा तू किसी दूसरी लड़की से शादी कर ले जेल से अपने पति के वापिस जाने के बाद उस रात लक्खे बहुत रोई सोनी सोरी भी तब जेल मे ही थी लक्खे का रोना सुन कर जेल

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लक्खे एक आदिवासी लड़की है

लक्खे छत्तीसगढ़ के एड्समेट्टा गाँव मे रहती थी

लक्खे की तेरह साल की उम्र मे लखमा से शादी हुई

पुलिस वाले इनाम और के लालच मे आदिवासियों को जेल मे डालते रहते हैं

लक्खे जंगल मे लकडियाँ लेने गयी थी

पुलिस पार्टी उधर से गुज़र रही थी

पुलिस वाले लक्खे को पकड़ कर थाने ले गए

लक्खे को थाने मे बहुत बुरी तरह मारा

उसके बाद लक्खे को जेल मे डाल दिया गया

लक्खे पर पुलिस ने नक्सलवादी होने के चार फर्ज़ी मामले बनाए

तीन मामलों मे लक्खे को अदालत ने निर्दोष घोषित कर के बरी कर दिया है

लेकिन इस सब मे दस साल गुज़र गए

लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे बंद है

शुरू के कुछ साल तक तो लक्खे को उम्मीद थी

कि मैं जेल से जल्द ही निकल कर घर चली जाऊंगी

जेल मे आने के चार साल तक लक्खे का पति जेल मे लक्खे से मिलने आता रहा

लेकिन चार साल बाद लक्खे ने अपने पति लखमा से जेल की सलाखों के पीछे से कहा

लखमा अब शायद मैं कभी भी बाहर ना निकल सकूं

जा तू किसी दूसरी लड़की से शादी कर ले

जेल से अपने पति के वापिस जाने के बाद

उस रात लक्खे बहुत रोई

सोनी सोरी भी तब जेल मे ही थी

लक्खे का रोना सुन कर

जेल मे दूसरी महिलाओं को लगा शायद लक्खे के परिवार मे किसी की मौत हो गयी है

इसलिए लक्खे रो रही है

लेकिन असल मे उस रात लक्खे के सपनों और उम्मीदों की मौत हुई थी

लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे है

पूरी उम्मीद है लक्खे आख़िरी मुकदमे मे भी बरी हो जायेगी

लेकिन लक्खे के जीवन के इतने साल कौन वापिस देगा ?

लक्खे के सपनों की मौत भारत के लोकतंत्र की मौत नहीं है क्या ?

Urmilesh Urmil 2 hrs · मितरों, अब से हर राज्य को उसके विधानसभा चुनाव से ऐन पहले विशेष पैकेज मिला करेगा। चुनाव बाद अगर मनपसंद सरकार नहीं बनी तो ये विशेष पैकेज 'चुनावी-जुमले'में तब्दील हो जायेंगे।

Previous: Himanshu Kumar 4 hrs · Edited · लक्खे एक आदिवासी लड़की है लक्खे छत्तीसगढ़ के एड्समेट्टा गाँव मे रहती थी लक्खे की तेरह साल की उम्र मे लखमा से शादी हुई पुलिस वाले इनाम और के लालच मे आदिवासियों को जेल मे डालते रहते हैं लक्खे जंगल मे लकडियाँ लेने गयी थी पुलिस पार्टी उधर से गुज़र रही थी पुलिस वाले लक्खे को पकड़ कर थाने ले गए लक्खे को थाने मे बहुत बुरी तरह मारा उसके बाद लक्खे को जेल मे डाल दिया गया लक्खे पर पुलिस ने नक्सलवादी होने के चार फर्ज़ी मामले बनाए तीन मामलों मे लक्खे को अदालत ने निर्दोष घोषित कर के बरी कर दिया है लेकिन इस सब मे दस साल गुज़र गए लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे बंद है शुरू के कुछ साल तक तो लक्खे को उम्मीद थी कि मैं जेल से जल्द ही निकल कर घर चली जाऊंगी जेल मे आने के चार साल तक लक्खे का पति जेल मे लक्खे से मिलने आता रहा लेकिन चार साल बाद लक्खे ने अपने पति लखमा से जेल की सलाखों के पीछे से कहा लखमा अब शायद मैं कभी भी बाहर ना निकल सकूं जा तू किसी दूसरी लड़की से शादी कर ले जेल से अपने पति के वापिस जाने के बाद उस रात लक्खे बहुत रोई सोनी सोरी भी तब जेल मे ही थी लक्खे का रोना सुन कर जेल
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मितरों, अब से हर राज्य को उसके विधानसभा चुनाव से ऐन पहले विशेष पैकेज मिला करेगा। चुनाव बाद अगर मनपसंद सरकार नहीं बनी तो ये विशेष पैकेज 'चुनावी-जुमले' में तब्दील हो जायेंगे।



Vishnu Rajgadia 11 hrs · बिहार को सवा लाख करोड़। झारखण्ड को?

लाल किले पर गोयबल्स मोड लाल किले पर गोयबल्स मोड - तीस्ता को जेल और असीमानंद को बेल के लिए किसने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है?

Arundhati Roy’s Note in Solidarity with Soni Sori & Linga Kodopi and the People of Bastar

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Arundhati Roy's Note in Solidarity with Soni Sori & Linga Kodopi and the People of Bastar

Following is the text of a note by writer-activist, Arundhati Roy, which she read out during a press conference at Press Club of India, Delhi, today to express solidarity with Soni Sori & Linga Kodopi and the People of Bastar. Adv. Prashant Bhushan, Adv. Vrinda Grover,Annie Raja and Himanshu Kumar also addressed the Press Conference.

The Mining companies are getting restless. The MOUs that were signed handing over Adivasi land to them have not been actualized because of the resistance from local people. Operation Green Hunt continues as Operation No-Name. The Salwa Judum is being re-constituted. Once again SPOs are beginning to kill villagers and call them Naxalites. Anybody who criticizes or impedes the implementation of State policy is called a Maoist. Thousands of Dalits and Adivasis, thus labeled, are in jail absurdly charged with crimes like Sedition and Waging War against the State under the Unlawful Activities Prevention Act (UAPA. While villagers languish for years in prison, with no legal help and no hope of justice, often not even sure what crime they have been accused of, the State has turned its attention to what it calls 'OGWs'—Overground Workers.

Arundhati

The Ministry of Home Affairs spelled out its intentions clearly in its 2013 affidavit filed in the Supreme Court. It said: "The ideologues and supporters of the CPI(Maoist) in cities and towns have undertaken a concerted and systematic propaganda against the State to project it in a poor light…it is these ideologues who have kept the Maoist movement alive and are in many ways more dangerous than the cadres of the People's Liberation Guerilla Army."

The harassment of Soni Sori, Linga who have already spent many years in jail, the arrest of Professor G.N. Saibaba who was recently released on bail and is still in hospital, the harassment of Himanshu Kumar who has been hounded out of Bastar, are all part of this Operation. I have just heard that the Odisha Police in Malkangiri District are hunting down a documentary filmmaker and human rights activist Deba Ranjan. I know Deba Ranjan very well. He has made excellent films on the communal violence I Kandhamal and the assault on adivasi homelands in Malkangiri. He has worked with K, Balagopal on several fact-finding missions. He is in Malkangiri, in South Odisha, the district abutting Sukma in Bastar—so roughly the same area. The police have filed seven criminal cases against him. He is underground now, fearing for his life. Either way, whether they arrest him or they do not, they have stopped his work.

The last time Soni Sori and Linga came to Delhi, addressed tribunals and Press conferences, we were unable to save them. Soni was arrested and despite pleading with the magistrate in a Delhi Court to not be sent back to Jagdalpur for fear of torture, she was sent back. And both she and Linga were brutally tortured. They have spent years in prison, both of them came close to death. The media did play a part in managing to get them released. And now they are here again. Hounded by the same terror that is backed by the same commercial interests.

Ankit Garg, the policeman who Soni Sori says supervised her torture—which included, among other things, pushing stones up her vagina—in police custody, was awarded a Police Gallantry Award by the President of India, on Republic Day in 2012. Many people were outraged and condemned this. Personally, given the state of affairs in this country, I thought it was an honest declaration of intent by the Indian State. I only wish the award citation had been honest too. In cases like this one, the citation could have said: "This Award is hereby conferred on Officer XYZ for bravely supervising the torture and sexual molestation of a dangerous Adivasi school teacher."

    Arundhati Roy speaks out!

    Next: कोबरापोस्ट स्टिंग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करो । भाजपा-पोषित रणवीर सेना कमाण्डरों को गिरफ्तार करो । बाथे, बथानी, शंकरबीघा, एकबारी, सरथुआ, मियांपुर जनसंहारों का जुर्म कबूल करने वाले रणवीर सेना के कमाण्डर अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं? नीतिश कुमार जवाब दो ! अमीरदास आयोग की रिपोर्ट में आये तथ्‍यों पर कार्यवाही करो ! अमीरदास आयोग भंग कर भाजपा नेताओं को बचाने वाले नीतिश कुमार शर्म करो !
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    कोबरापोस्ट स्टिंग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करो । भाजपा-पोषित रणवीर सेना कमाण्डरों को गिरफ्तार करो । बाथे, बथानी, शंकरबीघा, एकबारी, सरथुआ, मियांपुर जनसंहारों का जुर्म कबूल करने वाले रणवीर सेना के कमाण्डर अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं? नीतिश कुमार जवाब दो ! अमीरदास आयोग की रिपोर्ट में आये तथ्‍यों पर कार्यवाही करो ! अमीरदास आयोग भंग कर भाजपा नेताओं को बचाने वाले नीतिश कुमार शर्म करो !

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    Kailash Pandey
    August 19 at 10:10am
     
    कोबरापोस्ट स्टिंग की रिपोर्ट पर कार्यवाही करो । 

    भाजपा-पोषित रणवीर सेना कमाण्डरों को गिरफ्तार करो । 

    बाथे, बथानी, शंकरबीघा, एकबारी, सरथुआ, मियांपुर जनसंहारों का जुर्म कबूल करने वाले रणवीर सेना के कमाण्डर अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं? नीतिश कुमार जवाब दो ! 
    अमीरदास आयोग की रिपोर्ट में आये तथ्‍यों पर कार्यवाही करो ! 

    अमीरदास आयोग भंग कर भाजपा नेताओं को बचाने वाले नीतिश कुमार शर्म करो ! 

    आतंकवादी, जनसंहारी रणवीर सेना के संरक्षक भाजपा नेताओं को अविलम्ब गिरफ्तार करो ! 

    दिल्ली में 17 अगस्त को 'कोबरापोस्ट'ने उस कड़वी सच्चाई को पूरे देश के सामने उजागर किया है जिसे बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है। कि रणवीर सेना ने दलितों और गरीब महिलाओं व बच्चों की जघन्य हत्यायें इसलिए कीं क्योंकि वे 'माले'के समर्थक थे और अपने सम्मान व अधिकारों की मांग कर रहे थे। कि रणवीर सेना को भाजपा के ऊंचे-ऊंचे नेताओं ने राजनीतिक संरक्षण दिया और हथियार खरीदने व नरसंहार करने के लिए धन भी दिया। 

    'कोबरापोस्ट'की स्टिंग में रणवीर सेना के 6 कमाण्डरों ने बड़ी बेशर्मी और सामंती अहंकार के साथ बताया है कि कैसे उन्होंने बथानी टोला, लक्ष्मणपुर-बाथे, शंकरबीघा, मियंापुर, एकबारी और सरथुआ में दलित और दमित मेहनतकश गरीबों के जनसंहार किये। सोती हुई महिलाओं और बच्चों को भी बर्बरता से मार दिया। इन आतंकवादियों ने खुद कहा है कि कई ताकतवर नेताओं ने उन्हें हथियार मुहैया कराने और सेना में काम कर रहे एवं रिटायर्ड जवानों से हथियारों की ट्रेनिंग दिलवाने में खूब मदद की। वे खुले आम कह रहे हैं कि उन्हें मुरली मनोहर जोशी, सुशील मोदी और सीपी ठाकुर जैसे टाॅप के भाजपा नेताओं ने भी मदद की, और जद(यू) के शिवानन्द तिवारी ने भी। और कि इन नेताओं के साथ लोजपा के नेताओं ने भी उन्हें बचाने में मदद की। 

    पुलिस से लेकर कोर्ट-कचहरी तक, लालू-राबड़ी के राज से लेकर नीतिश के राज तक, और इन सबसे आगे भाजपा - सभी गरीबों के जनसंहारों और न्याय की हत्या में भागीदार हैं। बिहार में 'जंगल राज'की बातें करने वाले नरेन्द्र मोदी को क्या नहीं मालूम कि इस जंगल का सबसे खतरनाक नरभक्षी भाजपा संरक्षित-पोषित रणवीर सेना ही है? कोबरापोस्ट के इस खुलासे पर बोलने की हिम्मत नरेन्द्र मोदी और सुशील मोदी में है? रणवीर सेना के कमाण्डरों ने कोबरापोस्ट को बताया है कि दलितों, महिलाओं और बच्चों के सभी बर्बर नरसंहारों का मास्टरमाइण्ड ब्रहृमेश्‍वर मुखिया ही था। क्या अब भाजपा के गिरिराज सिंह बतायेंगे कि क्यों इस बर्बर आतंकवादी ब्रहृमेश्‍वर को उन्होंने बिहार का गांधी कहा था? 

    क्या नीतिश कुमार बिहार की जनता को समझा सकते हैं कि भाजपा को बचाने के लिए 2005 में उन्होंने अमीरदास आयोग को क्यों भंग किया? ताकि कोई यह न पूछ ले कि वे दलितों, महिलाओं और बच्चों का जनसंहार करने वाले बिहार के इतिहास के बर्बरतम हत्यारों से क्यों हाथ मिलाये हुए थे? ब्रहृमेश्‍वर की हत्या के बाद नीतिश कुमार ने रणवीर सेना के गुण्डों को पटना व आरा में तोड़फोड़, आतंक और दलित हाॅस्टलों पर हमले की खुली छूट क्यों दी थी? आज वही नीतिश कुमार अपने आप को 'धर्मनिरपेक्ष'और साम्प्रदायिक भाजपा के विरोध में बताते नहीं थक रहे ! लेकिन यही नीतिश कुमार हैं जो शर्मनाक तरीके से न्याय की हत्या और जनसंहारों के पीडि़तों एवं उनके परिवारों से गद्दारी के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने ही अमीरदास आयोग को भंग कर साम्प्रदायिक-जातिवादी भाजपा को बचाया और उसके नेताओं को संरक्षण दिया। 

    आज भाजपा की गोदी में जा बैठे दलितों और महादलितों के उन तथाकथित नेताओं को भी जवाब देना होगा कि क्यों बिहार के गरीबों का अपमान करने वाले हत्यारों के साथ वे जा मिले हैं। 

    पटना उच्च न्यायालय ने जनसंहारों के अपराधियों को छोड़ दिया। कहा कि 'सबूत नहीं मिले', चश्मदीद गवाहों को झूठा बता दिया। आज खुद हत्यारे ही पूरे सामंती दंभ के साथ कोबरापोस्ट के खुलासे में इन गवाहों की गवाहियों को सच ठहरा रहे हैं। क्‍या अदालत को अब सच को स्वीकार कर और हत्यारों को दण्ड दे अपनी गलती को सुधरना नहीं चाहिए ? 

    भाकपा(माले) ने पटना उच्च न्यायालय द्वारा हत्यारों को बरी करने के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की है। बिहार के जनसंहारों के पीडि़तों और उनके परिजनों को न्याय दिलाने के लिए भाकपा(माले) निरंतर संघर्ष कर रही है। रणवीर सेना के कमाण्डरों ने पार्टी के समर्थकों और आम गरीब दलितों का जनसंहार कर भाकपा(माले) को 'खत्म'करने का 'ख्वाब'देखा था, लेकिन वे नहीं जानते कि मेहनतकशों, दलितों, और गरीबों की बराबरी और सम्मान की सच्ची लड़ाई लड़ने वाली ताकतें हमेशा आगे बढ़ती ही रहती हैं, और एक सुन्दर भविष्य और नये इतिहास का निर्माण करती हैं। ऐसे इतिहास का जिसमें रणवीर सेनाओं और उन्हें संरक्षण-पोषण देने वाली राजनीतिक ताकतों का दफन होना तय है। 

    दोस्तो, भाकपा(माले) की आप से अपील है कि निम्नलिखित मांगों को बुलंदी के साथ उठा कर जनसंहारों के पीडि़तों व परिजनों के न्याय के लिए संघर्ष को मजबूती दें- 

    रणवीर सेना के आजाद घूम रहे जनसंहारी 'कमाण्डरों'को तत्काल गिरफ्तार किया जाय। 
    अमीरदास आयोग की रिपोर्ट में जाहिर रणवीर सेना को संरक्षण व मदद देने वाले भाजपा के उच्च नेताओं समेत सभी नेता गिरफ्तार हों।
    प्रतिबंधित रणवीर सेना के आतंकियों को ट्रेनिंग देने में शामिल सेना में कार्यरत व पूर्व सैनिकों की छानबीन कर उन्हें गिरफ्तार किया जाय। 
    अमीरदास आयोग क्यों भंग किया? नीतिश कुमार जवाब दें। 
    आज भी बिहार में जमीनी स्तर पर भाजपा-जद(यू) गठजोड़ सक्रिय है, यह हाल ही में परबत्ता (खगडि़या) में दलित महिलाओं पर हुये हमले में उजागर हुआ है। इस गठजोड़ को शिकस्त दें।

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    मुंबई में पास हुई तो उत्तराखंड में फिर फेल हुई मैगी, कई और उत्पाद भी खाने-पीने योग्य नहीं

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    मुंबई में पास हुई तो उत्तराखंड में फिर फेल हुई मैगी, कई और उत्पाद भी खाने-पीने योग्य नहीं


    -मुंबई हाईकोर्ट ने मैगी पर लगे प्रतिबंध के आदेश को पिछले दिनों रद्द कर दिया था, लेकिन उत्तराखंड में हुए टेस्ट में मैगी एक बार फिर फेल हो गई है। खाद्य विभाग ने पिछले महीने हल्द्वानी के अलग-अलग मॉल और दुकानों से खाद्य पदार्थों के नौ सैंपल लिए थे। इनमें से मैगी, दूध, पनीर और नमकीन के 6 सैंपल फेल हो गए।
    मैगी में आर्टिफिशियल फ्लेवर और कलर पाए गए। सैंपल फेल होने पर खाद्य विभाग ने उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मांगी है। फूड इंस्पेक्टर कैलाश चंद्र के मुताबिक हल्द्वानी से लिए गए सभी नौ सैंपल जांच के लिए राजकीय खाद्य एवं औषधीय परीक्षण प्रयोगशाला रुद्रपुर भेजे गए थे।

    लैब की रिपोर्ट चौंकाने वाली है नौ में छह सैंपल फेल हो गए हैं। कैलाश चंद्र के मुताबिक कालाढूंगी रोड मुखानी स्थित ईजी-डे से नेस्ले की मैगी का सैंपल लिया था। मैगी में आर्टिफिशियल कलर और फ्लेवर मिला है, जिसका उल्लेख मैगी की पैकिंग में नहीं है। हालांकि, मैगी में लेड की मात्रा नहीं मिली है। दूध के दो सैंपल भी फेल हुए हैं।

    इनमें मुखानी स्थित संतोष डेयरी से लिए सैंपल में डिटर्जेंट पाउडर और स्कीमड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की मिलावट मिली, जबकि दूसरा सैंपल डोर टू डोर दूध बांटने वाले दूधिये से लिया था, जिसमें पानी की अत्यधिक मिलावट मिली है।

    बरेली रोड अलकनंदा कॉलोनी स्थित नमकीन फैक्ट्री से लिए दो सैंपल भी फेल हो गए हैं। फूड इंस्पेक्टर कैलाश चंद्र के मुताबिक नमकीन के दो सैंपल लिए थे। दोनों सैंपल मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए।

    पैकिंग में एक्सपायरी डेट तक अंकित नहीं थी। नैनीताल रोड स्थित ईजी-डे से लिया गया पनीर का काठी रोल का सैंपल भी फेल हो गया। इसमें भी एक्सपायरी डेट अंकित नहीं थी और यह खराब था। खाद्य विभाग ने उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए सरकार से अनुमति मांगी है।-



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    এটা মুখ না পো...?

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       BONGASAMAJ-বঙ্গ দিশম
     
       
       
     
     
       
    Nagraj Chandal
    August 19 at 8:28am
     
    এটা মুখ না পো...? 
    ট্যাংরার বোমাবাজিতে আবার প্রমানিত হল যে সারদা দিদি মুখ দিয়ে কথা বলেন না। শুধু পো... দিয়ে আওয়াজ করেন। আর সে আওয়াজে তাঁর নেতা কর্মীরা বা ...র মত গ্রাহ্য করে। 
    অথবা ঠিক উল্টোও হতে পারে ! তাঁর এই জল্লাদের ভাষা যাদের বোঝা তারা ঠিক বুঝে নেয়! সাধারণ মানুষ আহম্মক ! বোঝেনা ! তাদের শুধু ভোট আছে, ভিটে নেই। তারা পো... এর আওয়াজকে সত্যি ভেবে ধরে নেয়।

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    MAN NOT ALLOWED in ladies special! So Women also unwanted in Local Trains! Full Scale War between Men and Women in Bengal with flavour of political muscles thanks to Matribhumi Ladies special trains! ১২ কামরাই চাই, মাতৃভূমি স্পেশাল ট্রেনের দাবিতে অবরোধে মাথা ফাটল মহিলা যাত্রীর It is the latest war field of political supremacy as Indian Railway dares to dilute DIDI special Matribhumi with three Male Dabba! Palash Biswas

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    MAN NOT ALLOWED in ladies special!

    So Women also unwanted in Local Trains!

    Full Scale War between Men and Women in Bengal with flavour of political muscles thanks to Matribhumi Ladies special trains!

    ১২ কামরাই চাই, মাতৃভূমি স্পেশাল ট্রেনের দাবিতে অবরোধে মাথা ফাটল মহিলা যাত্রীর

    It is the latest war field of political supremacy as Indian Railway dares to dilute DIDI special Matribhumi with three Male Dabba!

    Palash Biswas

    TV network ZEE Bangla reports:

    ১২ কামরাই চাই, মাতৃভূমি স্পেশাল ট্রেনের দাবিতে অবরোধে মাথা ফাটল মহিলা যাত্রীর

    MAN NOT ALLOWED in ladies special!

    So Women also unwanted in Local Trains!


    Women would not allow the men in ladies special and in return the men would not allow any woman in a local train.


    It is the latest war field of political supremacy as Indian Railway dares to dilute DIDI special Matribhumi with three Male Dabba!


    If you are in Bengal,be a Bengali and skip the trains as much as possible.If you are a man,you might be the next victim of new find women power unprecedented.If you happen to be a woman,you might be the target of angry male crowd.


    Peak hours meant to be super buy office hour has become full scale war  in Bengal.You have to win the war and then if you lucky enough to survive,would perhaps get a safer train tp help you to land at your workplace.


    Never care for a damned late mark or biometric attendence! First save your life.


    Railway has become the next corridor of KURUKSHETRA so familiar these days in every sphere of life.


    Empowered ladies would ever allow any Mard ka Baccha in a ladies special what if the Railway declared to replace three general Dabbas in otherwise FANKA,lonely trains,those Matribhumi local to avoid revenue loss and at the same time to help the office bound humanity!


    What if those who accompany their family could get a place in the same train in which their fair parts travel!


    It is a BIG BIG NO,Big Big Never!


    The women folk would not allow any train to run on tracks.In return,Manpower invoked as frocious it could have become.


    Women in protest are being thrashed on stations and women stopping the trains are not the domestic lot,they seem to have incarnated in Durga Avtaar and every man is a Mahishasur who must be meant for a vedic VADH.


    Every part of Sealdah section already inflicted,it seems to be Howrah next.


    The latest,Women passengers today blocked tracks in five railway stations demanding reconverting a modified ladies special train for women only.


    The rail tracks were blocked for 1-2 hours from 10 AM at Madhyamgram, Duttapukur, Birati, Bamangachhi and Hridaypur railway stations on the Sealdah-Krishnagar section of Eastern Railway, Railway spokesman Rabi Mahapatra said.


    Later GRP persuaded the agitators to withdraw the blockade, he said, adding, protests were still continuing in Birati railway station.


    The Railways had on August 15 notified three coaches as 'General' in the Barasat-Sealdah Matribhumi Ladies Special for inadequate number of women passengers for the entire train.


    This had triggered brickbatting by two groups of passengers at Kharda railway station which left six GRP and policemen injured when they tried to intervene on August 17.


    ১২ কামরাই চাই, মাতৃভূমি স্পেশাল ট্রেনের দাবিতে অবরোধে মাথা ফাটল মহিলা যাত্রীর

    ঘণ্টাখানেকেরও বেশি সময় পড়ে বামনগাছির অবরোধ উঠে যায়। নয় কামরার বদলে বারো কামরার মাতৃভূমি স্পেশাল করার দাবিতে অবরোধ চলে হৃদয়পুর এবং দত্তপুকুর স্টেশনেও। হৃদয়পুরে স্টেশনে ইটের আঘাতে মাথা ফাটে মহিলা যাত্রীর। এবার অবরোধ চলছে বিরাটি স্টেশনে। অবরোধের জেরে নাকাল হন নিত্যযাত্রীরা। গত সোমবার মাতৃভূমিতে তিনটি কামরা সাধারণ করে দেওয়ার সিদ্ধান্ত নেয় রেল। তারই প্রতিবাদে মহিলা যাত্রীরা বিক্ষোভের জেরে কার্যত রণক্ষেত্রের চেহারা নেয় খড়দহ স্টেশন চত্বরে। তার দুদিন কাটতে না কাটতেই এবার বারো কামরার দাবিতে বিক্ষোভ।

    শিয়ালদহ  শাখায় মাতৃভূমি স্পেশালকে নয় থেকে বারো কামরার কাজ ইতিমধ্যেই শুরু করা হয়েছে। জানিয়েছেন পূর্ব রেলের সিপিআরও রবি মহাপাত্র।

    http://zeenews.india.com/bengali/zila/matribhumi-local_130703.html

    বনগাঁ ও হাসনাবাদ শাখায় সকাল থেকে দফায় দফায় অবরোধ, ব্যাহত ট্রেন চলাচল

    ওয়েব ডেস্ক, এবিপি আনন্দ

    Wednesday, 19 August 2015 11:09 AM

    কলকাতাঃ বামনগাছি, হৃদয়পুর, বিরাটি, দত্তপুকুর, মধ্যমগ্রাম, অশোকনগরে, সকাল থেকে দফায় দফায় রেল অবরোধ। শিয়ালদা-বনগাঁ ও শিয়ালদা-হাসনাবাদ শাখায় ট্রেন চলাচল ব্যাহত।

    চূড়ান্ত দুর্ভোগের শিকার যাত্রীরা। সকাল সাড়ে ৮টা নাগাদ প্রথমে বামনগাছি স্টেশনে ডাউন মাতৃভূমি বনগাঁ লোকালে ১২ বগির দাবিতে মহিলা যাত্রীরা রেললাইন অবরোধ করেন। অভিযোগ, এক মহিলা যাত্রীকে মারধর করেন পুরুষ যাত্রীরা। জখম হন ওই মহিলা। এরপর হৃদয়পুর স্টেশনেও মহিলা যাত্রীদের অবরোধ শুরু হয়। পরে দুটি স্টেশনেই অবরোধ উঠে যায়। এরপর মহিলা স্পেশ্যাল থেকে তিন পুরুষ যাত্রীকে ঠেলে ফেলে দেওয়ার অভিযোগে বিরাটি স্টেশনে পুরুষ যাত্রীরা অবরোধ করেন। এই ঘটনায় এক মহিলাকে আটক করা হয়েছে। পরে দত্তপুকুর ও মধ্যমগ্রাম ও অশোকনগরে রেল অবরোধ হয়।

    http://abpananda.abplive.in/state/2015/08/19/article688642.ece/again-train-blocked-at-Bamangachi-Hridaypur-and-in-Birati



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    सोशल मीडिया पर पीएमओ के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट घूम रहा है, जो अब पीएमओ के ट्विटर हैंडिल पर दिखाई नहीं दे रहा। http://www.hastakshep.com/…/…/19/pmo-tweet-which-was-deleted ‪#‎FTII‬ ‪#‎PointKyaHai‬ ‪#‎HelpTheFarmer‬... See More

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    सोशल मीडिया पर पीएमओ के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट घूम रहा है, जो अब पीएमओ के ट्विटर हैंडिल पर दिखाई नहीं दे रहा।
    http://www.hastakshep.com/…/…/19/pmo-tweet-which-was-deleted
    ‪#‎FTII‬
    ‪#‎PointKyaHai‬
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    जी हाँ, सोशल मीडिया पर पीएमओ के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट घूम रहा है, जो अब पीएमओ के ट्विटर हैंडिल पर दिखाई नहीं दे रहा। स्क्रीनशॉट के मुताबिक PMO India @PMOIndia के ट्विटर हैंडिल से 18 अगस्त 2015 को 12.45P.M. पर एक ट्वीट किया गया, जो इस तरह था- 1.25 crore +...

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    नेताजी के बोल निराले .... एक महिला से चार पुरुष नहीं कर सकते दुष्कर्म: मुलायम ‪#‎FTII‬ ‪#‎PointKyaHai‬ ‪#‎TeachToTransformDay6‬ का नेताजी एक्सपर्ट हैं इस सबके ?

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    नेताजी के बोल निराले .... 
    एक महिला से चार पुरुष नहीं कर सकते दुष्कर्म: मुलायम
    ‪#‎FTII‬
    ‪#‎PointKyaHai‬
    ‪#‎TeachToTransformDay6‬ का नेताजी एक्सपर्ट हैं इस सबके ?

    लखनऊ। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का कहना कि एक महिला के साथ चार पुरुष दुष्कर्म कर ही नहीं सकते। दुष्कर्म एक व्यक्ति करता है लेकिन मुकदमा तीन और के खिलाफ दर्ज होता है। रिक्शा चालकों को मुफ्त ई-रिक्शा वितरण समारोह में मुलायम सिंह ने जोर देकर कहा कि भाजपा...

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    प्रजातंत्र को अपनी ज़रूरतों के अनुरूप ढालने की महारत पूंजीवाद ने जाहिर रूप से हासिल कर रखी है। ‪#‎dna‬ ‪#‎AADHAR‬ ‪#‎Gulzar‬

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    प्रजातंत्र को अपनी ज़रूरतों के अनुरूप ढालने की महारत पूंजीवाद ने जाहिर रूप से हासिल कर रखी है। ‪#‎dna‬ ‪#‎AADHAR‬ ‪#‎Gulzar‬ 

    दो ध्रुवीय सियासत की चुनौतियाँ और डीएनए का सच पटना, 18 अगस्त, 2015। शिक्षाविद एवं भूमि अधिकार आन्दोलन से जुड़े अनिल चौधर...

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    उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से- झूठ तो बोले, मगर झूठ का सौदा न करे http://www.hastakshep.com/…/…/modi-in-dubai-modi-tells-a-lie ‪#‎ModiInDubai‬ ‪#‎Modi‬ ‪#‎Jumlababu‬

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    उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से- झूठ तो बोले, मगर झूठ का सौदा न करे
    http://www.hastakshep.com/…/…/modi-in-dubai-modi-tells-a-lie
    ‪#‎ModiInDubai‬ ‪#‎Modi‬ ‪#‎Jumlababu‬


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