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মুখ্যমন্ত্রী শিভরাজ সিংহ চৌহানের বিরুদ্ধে অনেক কিছু বলা হচ্ছিলো, ইস্তফা চাওয়া হচ্ছিলো আর উনি বারবার বলছিলেন যে তদন্ত করে সব সত্য বের করা হোক তারপর সব মেনে নেবেন, কিন্তু বিরোধীরা সেটা না মেনে ঝামেলা করছিলো, মানুষ তাদের আবার বুঝিয়ে দিলো যে দেশবিরোধীদের দেশের উন্নয়ন রোখার কুপ্রচেষ্টাকে তারা মেনে নেবেনা এবং জাতীয়তাবাদী ভাজপার পাশেই থাকবে এবং এই নির্বাচন যেখানে যেখানে হয়েছে সেখানে সেখানে কংগ্রেসের শক্ত ঘাঁটি ছিল সেখানেই কংগ্রেস ধুয়েমুছে সাফ হয়ে গেছে অর্থাৎ আবারো বলছি যে মানুষ বিশ্বাস করছে যে ভাজপা কাজ করছে এবং করবে এবং সাংসদে ভাজপার উন্নয়নের চেষ্টার আর উন্নয়নের রাজনীতির বিরোধীদের বাস্তবের জমিতে ধুয়ে মুছে সাফ করে দিচ্ছে, মানুষের এই অসন্তোষের প্রভাব আগামি সব নির্বাচনেই পরবে, বিহার নির্বাচনেও মানুষের এই অসন্তোষের আঁচ পরবে, সাংসদে ভাজপার উন্নয়নের প্রচেষ্টার বিরোধীদের মধ্যে সমাজবাদী দল, বাম, কংগ্রেসরাষ্ট্রীয় জনতা দল, ঐক্যবদ্ধ জনতা দল অর্থাৎ এক কথায় জনতা পরিবার আছে যারা বিহারে ভাজপার মোকাবিলায় চরম শত্রুদের সাথে স্বার্থবাদী জোট করেছে তারা সবাই জনতার এই অসন্তোষের আঁচে পুড়বে, মানুষ জাতিবাদি বিভেদের রাজনীতি চায়না, ভণ্ড ধর্মনিরপেক্ষতার রাজনীতি চায়না সেটা বুঝিয়ে দিচ্ছে কিন্তু বিরোধীদের তো বিরোধ করার কোন যুক্তিযুক্ত বিষয় নেই তাই ধ্বংস হবে জেনেও তাদের এই আত্মঘাতী রাজনীতি করতে হবে, তা কিছুজন এই প্রসঙ্গে বলল যে পশ্চিমবঙ্গেও একদা দীর্ঘ ৩৪ বছর দলতন্ত্র চলেছে, একের পর এক নির্বাচন বিরোধী শুন্য করে নির্বাচনে জিতেছে তাই নির্বাচনে জেতাটাই কি বড় কথা সেই প্রসঙ্গে বলি পশ্চিমবঙ্গে ক্ষমতায় যে যে দল ছিল সবাই Scientific Rigging করেছে, আর বিশেষ করে পশ্চিমবঙ্গ, বিহার, উত্তরপ্রদেশ, কেরালা ইত্যাদি রাজ্যেই নির্বাচনের জন্য খুনের সংস্কৃতি আছে, কিন্তু এটা মানতেই হবে যে জাতীয় দল ভাজপা, কংগ্রেস শাসিত রাজ্যে সেই সংস্কৃতি নেই, কংগ্রেস যাও বা করেছে পশ্চিমবঙ্গে, ভাজপার সেরকম কোন অতীত নেই, মধ্যপ্রদেশ, গুজরাট ইত্যাদি ভাজপা শাসিত রাজ্যে ভাজপার সবচেয়ে বড় শত্রু কংগ্রেসও ভাজপা চোট্টামি করে জেতে এই বদনাম দিতে পারেনা, নির্বাচন দপ্তরও এই অপবাদ দিতে পারেনি জে ভাজপা চোট্টামি করে জেতে । তাই ধরে নেওয়া যেতেই পারে যে মানুষ নির্বিঘ্নে ভাজপার পক্ষে নিজের মত প্রকাশ করেছেন । নরেন্দ্র মোদী ঠিকই বলেছিলেন যে তার সবচেয়ে বড় প্রচারক রাহুল গান্ধী, যেখানে রাহুল গান্ধী প্রচারে যাবেন সেখানে কংগ্রেসের হার নিশ্চিত । grin emoticon
http://thenamopatrika.com/voters-slapped-fake-vyapam-alleg…/
http://www.ndtv.com/…/amid-vyapam-heat-bjp-sweeps-madhya-pr…
http://www.india.com/…/madhya-pradesh-civic-body-polls-bjp…/
http://timesofindia.indiatimes.com/…/articlesh…/48501303.cms
http://www.news18.com/…/mp-civic-polls-results-bjp-register…
http://www.hindustantimes.com/…/bjp-s…/article1-1294416.aspx
http://www.dailymail.co.uk/…/QUICK-EDIT-Rahul-s-tactics-hel…
#SundayReading - WOMANCIPATORS- Their fight is not only of gender, but a universal community...
सरहदों पर फिजां जब कयामत हो,दिशाओं में नफरत की आग हो
समुंदर जब शरणार्थी सैलाब हो और सारे पहाड़ नंगे हो सिरे से
मुल्कों पर दहशतगर्दों का जब राज हो सरहदों के आर पार
यूं समझ लेना हालात बेहद मुश्किल है,बेहद मुश्किल हालात
न इंसानियत की कोई खैर है और न कायनात की कोई खैर
फिर ये ही समझ लो भाइयों कि निशाने पर काश्मीर है
कायनात कोई मजहबी मुल्क नहीं है यारो कि उसे मजहब से खारिज कर दो या फतवा कोई जारी कर दो उसके खिलाफ!
पलाश विश्वास
वे हर हाल में 2020 तक असनी सियासती बाजीगरी से,सुनामियों से और मुक्त बाजार की ताकतों के दम पर मजहबू मुल्क बना लेंगे।चूंकि हम दरअसल किसी मजहब के हक में खड़े नहाों होते तो उसीतरह हम किसी मजहब के खिलाफ भी नहीं है।तन्हा तन्ही इंसान के हक में जो खड़ा है मजहब,तन्हा तन्हा इंसान खीखातिर है अमन चैन का वास्ता जो मजहब,उस मजहब से कोई बैर भी नहीं है।न हुआ बुतपरस्त तो क्या,नहीं है यकीन किसी रब पर तो क्या,इंसानियत के यकीन से हमारी भी दुश्मनी कोई नहीं है।
वे हर हाल में 2030 तक मजहबी दुनिया बना लेगे।बना भी लें।हमें कोई हर्ज नहीं।एतराज तो बस इसी का है कि जो ऐलान कर रहे हैं ऐसे जिहादी उनके न दिल हैं कहीं और न इरादे उनके कोई मजहबू हैं।मुक्त बाजार के फरिश्ते वे सारे शैतान की आलमी हुकूमत के कारिंदे हैं और नफरत की जंग में वे दुनिया फतह करना चाहते हैं।
फतह कर भी लें कोई दुनिया,हमारा भी क्या।हम तो भइये, कारोबारी हैं और न सियासती हैं हम और न मजहबू हैं हम।
किसी के जुनून का कोई इलाज बी नहीं है हमारे यहां।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर गैर मजहबी लोगों के सफाया का इंतजाम करने लगे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर इंसानियत का नामोनिशान मिटाने में लगे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर कायनात की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर दिलो में जो मुहब्बत है लबाबलब,मुहब्बत की उन घाटियों को तबाह करने लगे हैं और जहां भी खिला हो कोई फूल,उसे बेरहमी से रौदने लगे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर वे इंसानी हसरतों,ख्वाहिशों और ख्वाबों के कत्ल का कारोबार चला रहे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर रंजिशों के सौदागर हैं और सरहदों के आर पार मिल जुलकर अमन चैन के खिलाफ कत्लेआम का चाक चौबंद इंतजाम कर रहे हैं।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर आसमान को अब आसमान न रहने देंगे और जमीन को भी जमीन बने रहने की इजाजत नहीं है।जमीन हो या इंसान,सबको वे बधिय़ा बैल बनाने में लगे हैं ताकि शैतानी हुकूमत सही सलामत रहे।
सबसे खतरनाक बात तो असल में यह है कि वे आखिर किसी नदी को खिलकर बहने की इजाजत भी नहीं है और न झरनों में संगीत की इजाजत है और न ग्लेशियरों को जस का तस रहने की इजाजत है और वे जमीन इंच इंच या तो तेलकुंआ बना रहे हैं या डूब में शामिल कर रहे हैं सारी कायनात या चप्पे चप्पे लगा रहे हैं एटमी धमाके,हवाओं को जहरीला भी वे बनावै और पानियों को रेडियोएक्टिव बनाने का कारनामा बी उन्हीं का,सारी आपदाएं और सारी महामारियां और सारे अकाल दुष्काल उनका कारोबार।
ऐसे लोग किसी मुल्क के नहीं होते।वे रोज सरहद बनाते हैं और रोज सहदों को आग में झोंक देते हैं और न उन्हें परिंदों की उड़ान की परवाह है और न उन्हें तितलियां पसंद हैं।इंद्र धनुष के सारे रंगों को वे मिटाने चले हैं,दुनिया के सारे मजहबों को वे मिटाने चले हैं अपने मजहब के सिवाय।सारे रबों के खिलाफ उनका जिहाद है,अपने रब के सिवाय।हमारे लिए सबसे खतरनाक खतरा यहींच।यहींच।
वरना वे तिजारत में कहीं भी इबादत के मोड में दीख जायेंगे।अमन चैन की सेल्फी में उन्हीं के चेहरे चमकते नजर आयेंगे और विज्ञापनों में तब्दील तमाम सुर्खियों में उन्ही का जलवा और मंकी बातें भी उनकी जलेबियां,वे कही भी सजदे में खड़े पाये जायेंगे।
दोनों हाथ दिशाओं में फैलाये वे दरअसल तबाही का आवाहन कर रहे हैं।वे महाप्रभू हैैं ऐसे,जो नफरतों के बीज बो रहे हैं और उनकी जुबां से मुहब्बतों की बारेशें हो रही हैं।
क्योंकि 2020 तक मजहबी मुल्क बनाने का इरादा पक्का है।
क्योंकि 2030 तक मजहब दुनिया बनाने का इरादा पक्का है।
वे सारे मजहबों का सफाया भी कर देंगे,मजहब बचेगा नहीं।
वे सारे रबों का सफाया भी कर देंगे,कि रब कहीं बचेगा नहीं।
कि दसों दिशाएं शैतानी हुकूमत के कब्जे में होगी यकीनन,
इंसानियत या कायनात की खैरियत हो न हो,यकीनन।
सरहदों पर फिजां जब कयामत हो,दिशाओं में नफरत की आग हो
समुंदर जब शरणार्थी सैलाब हो और सारे पहाड़ नंगे हो सिरे से
मुल्कों पर दहशतगर्दों का जब राज हो सरहदों के आर पार
यूं समझ लेना हालात बेहद मुश्किल है,बेहद मुश्किल हालात
न इंसानियत की कोई खैर है और न कायनात की कोई खैर
फिर ये ही समझ लो भाइयों कि निशाने पर काश्मीर है।
हम बार बार कह रहे थे कि आधार कोइ प्राइवेसी का मामला नहीं है हरगिज।न यह सिर्फ निगरानी है या कोई सब्सिडी है।हम बार बा कह रहे ते और लिख भी रहे थे कि यह जंग है मुकम्मल इंसानियत के खिलाफ कि खून की नदियां बहाने का रिवाज अब कहीं नहीं है।
फौजी हमलों का का दस्तूर अब कहीं भी नहीं है और न कहीं फौजी जीतते हैं कोई जंग।
तेलकुओं की जंग को हम जंग समझ रहे थे अबतलक।
हम पानियों के फसाद को भी जंग समझ रहे ते अब तलक।
जंग तो दिलोदिमाग के सफाये से शुरु होता है।जंग शुरु से आखिर तक नस्ली है जैसे नस्ली है जात पांत,इकोनामी भी नस्ली है।
नस्ली है सियासत हर मुल्क में जिसे हम मजहबी समझते हैं। मजहब के खिलाफ मजहब को खड़ा करना सियासत है असल।
रब के खिलाफ रबों को खड़ा करना मजहब नहीं,सियासत असल।
हिटलर के पास तकनीक नहीं थी मुकम्मल कि बच गये यहूदी कत्लेआम के बावजूद।कोलबंस भी नहीं था हिटलर कोई और न यूरोप उन दिनों कोई तरबूज थाया कि खरबूज कि अमेरिकाओं की तरह काटकर हजम कर लिया या मोहंजोदोड़ो और हड़प्पा में दफना दिया हमेशा हमेशा के लिए या इनका या माया बना दिया।
अब जंग आसमान और अंतरिक्ष से लड़ा जाता है और समुंदर की गहराइयों से भी शुरु हो जाती है जंग।जंग जीतने के लिए सरहदों पर फौज भी हो,कोई जरुरी नहीं।मिसाइलें हैं।परमाणु बम भी हैं।
मिसाइलों और परमाणु बमों से खतरनाक है दहशतगर्दी,जिसपर किसी मजहब या मुल्क का ठप्पा लगा होता नहीं है यकीनन।
सबसे खतरनाक तो यह है कि हुकूमत अब दहशतगर्दी है।
सबसे खतरनाक बात यह कि सियासत भी दहशत गर्दी है।
दहशतगर्द सारा कारोबार,यह सारा मुक्त बाजार।
उसका जो हथियार है,वह हुआ आदार निराधार।
कत्लेआम के लिए,दीगर आबादी के सफाये के लिए नाटो का यह चाकचौबंद इंतजाम है आदार निराधार।हम कह रहे हैं बार बार।
अब सबूत भी हैं कि श्रीलंका में कत्लेआम तमिलों का जो हुआ,वह आधार का करिश्मा है।नरसंहार का सबसे नफीस अंदाज है आधार।
बायोमैट्रिक डाटा,एकबार किसी के हवाले हो गया,तो जब चाहे मार दें।फिंगर प्रिंट के बायोमैट्रिक डाटा से तमिलों का सफाया हो गया।
डीएनए प्रोफाइलिंग से किसकिसका सफाया नहीं होगा,रब जाने।
पूरा किस्सा अंग्रेजी में हस्तक्षेप पर चाप दिया है ,पढ़ लें।
सरहदों पर फिजां जब कयामत हो,दिशाओं में नफरत की आग हो
समुंदर जब शरणार्थी सैलाब हो और सारे पहाड़ नंगे हो सिरे से
मुल्कों पर दहशतगर्दों का जब राज हो सरहदों के आर पार
यूं समझ लेना हालात बेहद मुश्किल है,बेहद मुश्किल हालात
न इंसानियत की कोई खैर है और न कायनात की कोई खैर
फिर ये ही समझ लो भाइयों कि निशाने पर काश्मीर है
काश्मीर के लोगों,बाकी मुल्क के लोगों,समझ लो कि बहुत खतरनाक कोई खेल हो रहा है मजहबी मुल्क की खातिर।
कश्मीर को अलग कर दो तो फिर मुल्क मजहबी है।
मजहबी सियासत के कारिंदे मुल्क से कश्मीर को अलहदा करने में लगे हैं।कश्मीर को बांग्लादेश बनाने लगी है मजहबी सियासत।
मजहबी सियासत के कारिंदे खूब हरकत में हैं कश्मीर में।
मुल्कों पर दहशतगर्दों का जब राज हो सरहदों के आर पार
यूं समझ लेना हालात बेहद मुश्किल है,बेहद मुश्किल हालात
न इंसानियत की कोई खैर है और न कायनात की कोई खैर
फिर ये ही समझ लो भाइयों कि निशाने पर काश्मीर है।
फिरभी गनीमत है और शुक्रिया भी है कि हकीकत जो असल है कि
कायनात कोई मजहबी मुल्क नहीं है यारो कि उसे मजहब से खारिज कर दो या फतवा कोई जारी कर दो उसके खिलाफ!
हमारी औकात पर मत जाइये जनाब कि सौदा मंहगा भी हो सकता है।यूं तो न पिद्दी हूं और न पिद्दी का शोरबा हूं लेकिन दूसरों की तरह अकेला हूं नहीं हूं।
जब भी बोलता हूं ,लिखता हूं,पांव अपने खेतो में कीटड़गोबर में धंसे होते हैं और घाटियों के सारे इंद्रधनुष से लेकर आसमां की सारी महजबिंयां साथ साथ,मेरी हर चीख में कायनात की आवाज है और चीखें भी कोई ताजा लाशे नहीं हैं।हर चीख के पीछे कोई नकोई मोहनजोदोड़ो यापिर हड़प्पा है या इनका या माया है जहां न मजहब है कोई और न सियासत कोई।
आत्ममैथून का भी शौकीन नहीं हूं और न शीमेल हूं कि आगा पीछा खुल्ला ताला।सारी दीवारें हम गिराते रहे हैं और तहस नहस करते रहे हैं सारे तिलिस्म हमीं तो हजारों हजार सालों से।
इंसान की उम्र न देखे हुजूर।हो कें तो इंसानियत की उम्र का अंदाजा
लगाइये।हो सकें तो कायनात की उम्र का अंदाजा भी लगाकर देख लें।बरकतें नियामते रहे न रहे, रहे न रहे बूतों और बूतपरस्तों का सिलिसिला,कारवां न कभी थमा है और न थामने वाला है।
कुछ यू ही शमझ लें कि बेहतर कि इस कारवां का पहला इंसान भी मैं तो इस कारवां का आखिरी इंसान भी मैं ही तो हूं।
जिसका दिल बंटवारे पर तड़पे हैं,वो टोबा टेकसिंह मैं ही ठहरा।
रब की सौं,गल भी कर लो कि बंटावारा खत्म हुआ नहीं है अभी।
न कत्ल का सिलसिला खत्म हुआ है कभी,न जख्मों की इंतहा।
मुहब्बत और नफरत के बीच दो इंच का फासला आग का दरिया।
उसी आग के दरिया में डूब हूं यारों,सीने में जमाने का गम है।
जो तपिश है,वह मेरे तन्हा तन्हा जख्म हरगिज नहीं है।
मेरा वजूद मेरे लोगों का सिलसिलेवार सारा जख्म है।
कि पानियों में लगी आग,पानियों का राख वजूद है।
यूं तो न पिद्दी हूं और न पिद्दी का शोरबा हूं लेकिन दूसरों की तरह अकेला हूं नहीं हूं।चीखें भी हरगिज इकलौती हरगिज नहीं होती।
न कोई चीख कहीं कभी दम तोड़ रही होती,चीख भी चीख है।
जुल्मोसितम की औकात बहुत है,सत्ता जुल्मोसितम है
सितम जो ढा रहे हैं,नफरत जो बो रहे हैं,उन्हें नहीं मालूम
कायनात कोई मजहबी मुल्क नहीं है यारो कि उसे मजहब से खारिज कर दो या फतवा कोई जारी कर दो उसके खिलाफ!
उसी कायनाक की वारिश कह लो,चाहे विरासत कह लो
चीखें हजारों साल की वे वारिशान,विरासतें भी वहीं।
मेरे वजूद की कोई उम्र होन हो,इतिहास मेरी उम्र है।
मैं कोई महाकवि वाल्तेयर नहीं हूं।फिरभी वाल्तेयर के डीएनए शायद हमें भी संक्रमित है कि अपना लिखा हमें दो कौड़ी का नहीं लगता।
कायनात कोई मजहबी मुल्क नहीं है यारो कि उसे मजहब से खारिज कर दो या फतवा कोई जारी कर दो उसके खिलाफ!
हमें फिर उसी अहसास का इंतजार है
कि इंसान आखिर आजाद है
आजाद है इंसान आखिर!
हम तो बस,दिलों में आग लगाने की फिराक में हैं!
बाकी उस माई के लाल का नाम भी बता देना यारो,जो मां के दूध का कर्जुतार सकै है।जो कर्ज उतार सकै पिताके बोझ का।जो कर्ज उतार सके वीरानगी और तन्हाईकी विरासतों का।जो दोस्तों की नियामतों का कर्ज भी उतार सकै है और मुहब्बत का कर्ज भी।वह रब कौई नहीं है कहीं जो वतन का कर्जउतार सकै है या फिर इंसानियत का कर्ज भी उतारे सके वह और कायनात का भी।कर्जतारु शख्स तो बताइये।
कल ही मैंने बंगाल में बैठकर बंगाली भद्रलोक वर्चस्व के सीनें पर कीलें ठोंकते हुए बराबर लिख दिया हैः
হিন্দূরাষ্ট্রে হিন্দু হয়ে জন্মেছি,তাই বুঝি বেঁচে আছি
শরণাগত,শরণার্থী,বেনাগরিক. বেদখল
জীবন্ত দেশভাগের ফসল,তাই বুঝি বেঁচে আছি
ওপার বাংলায় লিখলেই মৃত্যু পরোয়ানা হাতে হাতে
এপার বাংলায় লেখাটাই আত্মমৈথুন নিবিড় নিমগ্ণ
বাপ ঠাকুর্দা দেশভাগের সেই প্রজন্মও চেয়েছিল
শেষদিন পর্যন্ত শুধু হিন্দু হয়ে বেঁচে থাকার তাকীদে
দেশভাগ মাথা পেতে নিয়ে তাঁরা সীমান্তের কাঁটাতার
ডিঙ্গিয়ে হতে চেয়েছিল হিন্দুতবের নাগরিক
আজও সেই নাগরিকত্ব থেকে বন্চিত আমরা বহিরাগত
বাংলার ইতিহাসে ভূগোলে চিরকালের বহিরাগত
শরণাগত,শরণার্থী,বেনাগরিক. বেদখল
দেশভাগ তবু শেষ হল না আজও,আজও দেশ ভাগ
হিন্দুরাষ্ট্রে হিন্দুত্বের নামে দেশভাগ,আজও অশ্পৃশ্য
অশ্পৃশ্য ছিল দেশভাগের সময় যারা
যাদের কাঁটাতারের সীমান্ত আজও তাঁদের
জীবন জীবিকায় মিলে মিশে একাকার
অরণ্যে দন্ডকারণ্যে আন্দামানে হিমালয়ে
সেই কাঁচাতার আজ গোটা হিন্দুত্বের রাজত্ব
যারা ধর্মান্তরণের ভয়ে দেশভাগ মেনে নিয়েছিল
আজ তাঁরা এই হিন্দু রাষ্ট্রেও ধর্মান্তরিত
অন্তরিণ জীবনে মাতৃভাষা মাতৃদুগ্ধ বন্চিত
দেশভাগের পরিচয়ে মৃত জীবিত আজও অশ্পৃশ্য
आत्ममैथुन का मैं शौकीन नहीं हूं।हालात बदलने के खातिर अगर हमारा लिखा बेमतलब है,तो उसे पढ़ना तो क्या,उसपर थूकना भी नहीं।हम न किसी संपादक के कहे मुकताबिक विज्ञापनों के दरम्यान फीलर बतौर माल सप्लाी करते हैं और न हमें किन्हीं दौ कौड़ी के आलोचकों और फूटी कौड़ी के प्रकाशकों की कोई परवाह है।
हम तो आपके दिलों में आग लगाने की फिराक में है ताकि आपके वजूद को भी सनद हो कि कहीं न कहीं कोई दिल भी धड़का करै है।
हमने प्रभाष जोशी से कहा था,जब उनने मुझसे पूछा था कि क्यों कोलकाता जाना चाहते हो,तो जवाब में हमने कहा था कि हमें हिसाब बराबर करने हैं।
जोशी जी ने न तब और न कभी पलटकर पूछा था कि कौन सा हिसाब,कैसा हिसाब ,किससे बराबर करने हैं हिसाब।
वे मेरे संपादक थे।
अजब गजब रिशता था हमारा भी उनसे।थोड़ी सी मुहब्बत थी,थोड़ी सी इज्जत थी ,नफरत भी थी,दोस्ती हो न हो,दुश्मनी बहुत थी।
हम हुए दो कौड़ी के उपसंपादक और वे हुए हिंदी पत्रकारिता के सर्वे सर्वा,वे रग रग पहचानते थे हम सभी को।हम भी उन्हे चीन्ह रहे थे।
हाईस्कूल पास करते ही 1973 में नैनीताल जीआईसी में दाखिला लेते ही मालरो़ड पर लाइब्रेरी के ठीक ऊपर दैनिक पर्वतीय में रोज कविता के बहाने टिप्पणियां छपवाने से लेकर नैनीताल समाचार और पिर दिनमान होकर रघुवीर सहाय जी की कृपा से पत्रकार बनते हुए एकदिन प्रभाष जोशी की रियासत के कारिंदे बन जाने की कोी ख्वाहिश नहीं थी हमारी।
मुकाबला हार गया हूंं।बुरी तरह मैदान से बाहर हो गया हूं।जिंदगी फिर नये सिरे से शुरु भी नहीं कर सकता।फिर भी अबभी शेक्सपीअर और वाल्तेअर,ह्युगो,दास्तावस्की काफका और प्रेमचंद और मुक्तिबोध से मुकाबला है हमारा। यकीन करें।
हम पत्रकारिता में भले ही रोज गू मूत छानते परोसते हों,लेकिन साहित्य में जायका हमरी फितरत है अबभी।मौत के बावजूद।
साहित्य में जनपक्षधरता के सिवाय आत्ममैथून की किसी भी हरकत से मुझे सख्त नफरत है।
पंगा मैं न ले रहा होता जिंदगीभर कौड़ी दो कौड़ी के समझौते बी कर लेता,तो शायद जिंदगी कुछ आसान भी होती।
हमारी मजबूरी यह रही कि नैनीताल में हमें गजानन माधव मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस ने दबोच लिया और दीक्षा देने के बाद भी वे ऐसे ब्रह्मराक्षस निकले जो पल चिन पल चिन मेरी हरकतों पर नजर रखते हैं।
किस्मत मैं नहीं मानता और न किसी लकीर का मैं फकीर हूं लेकिन किस्मत कोई चीज होती होगी तो देश के बंटवारे की संतान होने के साथ साथ मेरी किस्मत में उस ब्रह्मराक्षस की दीक्षा लिखी थी कि मं दिलों में आग लगाने वाला जल्लाद बनने की कोशिश में हूं।
उन्हीं ब्रह्मराक्षस,हमारे उन्हीं गुरुजी ने लिखा हैः
१५ अगस्त १९४७ को देश आजाद हुआ था. इन ६८ सालों में हम अजाद (अजाद या किसी की न सुनने वाला और मनमानी करने वाला कुमाउनी ) हो गये हैं. हमारी संसद हुड़्दंगियों के जमावड़े में बदल गयी है. और इसका कारण है हमारी मूल्यहीन राजनीति. हमारी मूल्यहीन न्याय व्यवस्था. मौका देख कर निर्णय लेने की आदत. कुल मिला कर 'अपने सय्याँ से नयना लडइहैं हमार कोई का करिहै कि मनोवृत्ति. जब अढ़्सठ साल में यह हाल है तो शताब्दी तक क्या होगा? देश विदेशी सत्ता से तो मुक्त हुआ पर अपने ही दादाओं ने उसे जकड़ लिया. सत्ता का मोह देशबोध पर हावी हो गया.
ওপার বাংলার ফুফুর চিঠি এপার বাংলার চিত্রকর সুমিত গুহকে
পলাশ বিশ্বাস
তেমন প্রাণ যদি হয় কারো,যদি সেই প্রাণে থাকে ভালোবাসা টান টান,ত সীমান্তের কাঁটাতার বাংলা ভাগ করতে পারে না.
দেশভাগের বলি হয়ে আজীবন শরণার্থী জীবন ও জীবিকার টানাপোড়েনে ঔ কাঁটাতারের বেড়াকেই চোখে চোখে রেখেছি.যেহেতু আমার মৃত বাবা কোনোদিন ঔ সীমান্তরেখা মেনে নিতে পারেন নি.
বাবা তাই নদিয়ার জনসভায় যোগেন মন্ডলের সঙ্গে তর্কাতর্কি করে রাগে সীমান্ত পেরিয়ে ওপার বাংলার ভাষা আন্দোলনের মিছিলে অংশ নিয়ে জেলে যেতে পারতেন.
তুষারকান্তি ঘোষের মত বন্ধুও ছিল যার,যিনি তাঁকে জেল থেকে ছাড়িয়েও আনতে পারতেন.
বাংলাদেশ স্বাধীন হওয়ার পর ঔ সীমান্ত উড়িয়ে দেওয়ার দাবিও তুলেছিলেন আমার বাবা সারা ভারতে উলুখাগড়াম শবের মত ছড়িয়ে থাকা উদ্বাস্তুদের পুলিনবাবু.জেলেও ছিলেন.ভারতের চর অভিযোগে.
যিনি আবার পশ্চিম বঙ্গের প্রতি কোনো টান কোনোদিন নিজের প্রাণে বোধ করেছেন কিনা,আমার জানা ছিল না.
দন্ডকারণ্যের উদ্বাস্তুদের মরিচঝাঁপির বলি হতে তিনি নিষেধ করেছিলেন.তাঁরা শোনেননি.বাংলার বুকে তাঁদের নিধনযজ্ঞ এখন ইতিহাস.
বাবা কিন্তু উত্তর ও পূর্বোত্তর ভারতের উদ্বাস্তুদের বোঝাতে পেরেছিলেন যে বাংলার ইতিহাস ও ভাগোলে আমরা চিরতরে বহিরাগত.
বাবা সীমান্ত পেরোতে পাখিদের মতই স্বাধীন ছিলেন.
সোদপুরে বউমাকে চা তৈরি করতে অবলীলায় তিনি ঢাকা,ফরিদপুর খুলনা বরিশাল ঘুরে এসে বলতে পারতেন,দেখে এলাম আমাদের সেই হারানো দ্যাশ.
ঔ দ্যাশের টান হিন্দু রাষ্ট্রে হিন্দু হয়ে জন্মানোর পরও রক্তে এখনো ভেসে বেড়ায়.
বাবা পাসপোর্ট করাননি.
বাবা ভিসার ধার ধারেননি.
কিন্তু যখনই সেই টান চেনেছিল তাঁকে,ছুটে চলে গিয়েছেন দ্যাশে অবলীলায় সীমান্তের কাঁটাতার ডিঙ্গিয়ে.
অথচ আমার একবারও বাংলাদ্যাশ দেখা হল না.
অথচ আমারা একবারও দ্যাশ দেখা হল না.
ভারতবর্ষ বাবা পায়ে পায়ে ঘুরেছেন.
আমি উড়ে উড়ে ভারতবর্ষ দেখেছি.
হয়ত বাবার চাইতে বেশি দেখেছি.
হয়ত সীমান্তের বাঁধন ছিড়ে দেশে দেশে বন্ধুও আমার অনেক বেশি.কিন্তু পাসপোর্ট ছাড়া,ভিসা ছাড়া সীমান্ত পেরিয়ে পাখি হওয়ার ডানা আমার কখনো হল না.
বা সত্যি বলতে, শিকড়ের সেই টান নেই,যা মুড়ো ধরে টেনে নেবে ভালোবাসার বুকে আমাকে.
ঔ বাবার ছেলে হয়ে সীমান্ত পার হওযার জন্য পাসপোর্ট বা ভিসার অনুসন্ধান করিনি কখনো.
যদি সীমান্ত ডিঙ্গিয়ে যাওয়ার মন্ত্র কোনোদিন মনে পড়ে বাবার স্মৃতিতে তবে হয়ত আমিও কোনো দিন সেই দ্যাশ দেখতে যাব.সেই আমাদের হারানো দ্যাশ.
সেই মধুমতি,পদ্মা,মেঘনা ও ভরা বরষায় ঈলিশ গন্ধে,গানে ও সুরে মম আমাদের হারানো দ্যাশ.নদীর দ্যাশ.গানের দ্যাশ.আমাদের বাপ ঠাকুরদা ঠাকুমাদের প্রাণের দ্যাশ.
জন্মান্তরে বিশ্বাস করিনা,তাই বলতে পারবো না শঙ্খচিল হয়ে ফিরে যাব সেই ধানক্ষেতের আলে,যেখানে লেখা আছে নক্শীকাঁথা.
তবু নক্সীকাঁথা দেখা হয়ে গেল অকস্মাত.
মরমে মরে যাই,যে বাবার প্রাণে এত ভালোবাসা ছিল,সেই বাবা ও তাঁর প্রজন্ম কেন যে দেশভাগ মেনে নিয়েছিল,যা আসলে তাঁরা কোনোদিন,কোনোদিন মনে প্রাণে মেনে নিতে পারেননি,তাঁদের রক্তনদীতে স্নান করে বড় হয়েছি,তাই আজও আমি রক্তাক্ত.
লিখতে বসলেই রক্ত.
কথা বলেই রক্ত.
এত রক্ত ,রাখি কোথায়.
ফুফুর ঔ চিঠি আমার দেখার কথা নয়.
সুমিত গুহ ভালো চিত্রকর.
দেশে বিদেশে তাঁকে লোকে চেনে.
আমি কলা চিত্রকলার কিছুই বুঝি না.
ঘটনাচক্রে সুমিত গত পচিশ বছর যাবত ইন্ডিয়ান এক্সপ্রেসে আমার সহকর্মী.বন্ধু ত বটেই.
কালই হাতে করে নিয়ে এসে বলল ,চিঠিখানি পড়.
পড়েই বুঝলাম,কাঁটাতারে সবকিছু আটকানো যায়,ভালোবাসা আটকানো যায়না.
পড়েই বুঝলাম,না জানি কত শত শত শত ফুফুদের ভালোবাসা থেকে আমাদের বন্চিত করেছে ঔ দেশ ভাগ.
তবু কেন মেনে নিতে হয় দেশ ভাগ,কে বোঝাবে,জানিনা.
ফুফুর চিঠি প্রকাশিত করার অধিকার হয়ত নেই.
তবু ভালোবাসা ছড়ানো দরকার.
ভালোবাসার আকালে স্মৃতিতে বিষবৃক্ষ রোপণ হয়েছে এত এত গভীরে যে এই চিঠির ভালোবাসা বিলিয়ে দেওয়া দরকার.
ফুফু মাফ করবেন.
ফুফু আপনি ত দেশভাগে হারিয়ে যাওয়া আমাদের সবার ফুফু.আপনার এই ভালোবাসা পাব বলেই,বেঁচে ছিলাম.
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Masdar City, Abu Dhabi: Prime Minister Narendra Modi on Monday urged top businesses in the United Arab Emirates or UAE to invest in India, promising them immediate investment opportunities worth a trillion dollars.
1. He promised to erase the deficit of prime ministerial interactions of the past 34 years. He said though there are 700 flights between India and the UAE, it took 34 years for an Indian prime minister to visit and added, "I promise this will not happen again." Indira Gandhi was the last prime minister to visit in 1981.
2. He said he was well aware that US $1 trillion is a big amount but added that such investments can come to India now as it has a decisive and stable government.
3. In a comment that has rankled the Congress party, which led the previous UPA government, the PM said his immediate priority would be to kickstart things which were stalled by the "indecisiveness and lethargy" of past governments.
4. PM Modi said India's agriculture sector needs, "a cold storage network and warehousing a network where UAE businesses have an advantage."
5. "Infrastructure development and real estate offer tremendous opportunities for UAE businesses in India," the Prime Minister said.
6. The Prime Minster said he had been informed about problems being faced by businesses from UAE and promised, "I want to assure we are solving these problems."
7. He said he would send India's commerce minister to try and find solutions to the problems being faced by some investors.
8. PM Modi promised solutions to problems like the lack of a single window clearance and cumbersome and complex processes to do business in India, raised by businessmen at the meeting.
9. "It is now commonly believed that India is one of the fastest growing economies. There are several opportunities of development in India. I feel India is a land of many opportunities. The 125 crore people of India are not a market but they are a source of great strength," PM Modi said.
10. "On one hand India is growing fast and on the other hand, the world is looking at Asia. But is Asia complete without UAE? I can clearly see that the UAE should be at the centre of the mainstream of things in Asia. UAE's power and India's potential can make it Asia's century," PM Modi said.
ऐहसान मेरे दिल पै तुम्हारा है दोस्तो।
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो।।
कोबरा पोस्ट के अॉपरेशन ब्लैक रेन को अभी पूरा देखकर खत्म किया। रणवीर सेना के मुखिया के जिस तरह के बयान हम उस दौर में पढते थे उसी तरह की बातें इसके कमांडरों ने कोबरा पोस्ट के सामने की। सोये हुए लोगों, बच्चों और महिलाओं की हत्या करने वाले इन कायरों का दंभ गजब का है! क्या इनकी स्वीकारोक्ति के बाद इस देश की कोई न्यायालय इन्हें दंडित करेगी? क्या वे लोग अपनी गलती कबूल करेंगे जो ब्रह्मेश्वर को साधु-महात्मा बताने पर तुले हुए थे? वे पार्टियां, वे सरकारें, वे नेता जो इन हत्यारों के साथ खडे रहे, उन सबके गुनाहों का फैसला अंतत: जनता को ही करना है। भाकपा(माले) हमेशा जनसंहार पीडितों के न्याय की लडाई के साथ रही, आज भी वही मुखर है। देखना है कि अब तक जो हत्यारों के पक्ष में चुप रहे, अमीरदास आयोग को भंग किया, वे क्या बोलते हैं? मीडिया के पैंतरे भी देखने हैं।
"গণমাধ্যম, প্রশাসন তথা রাজনৈতিক দলগুলির দ্বৈত অবস্থান "
গত 15 ই আগষ্ট দমদমের মতিলাল কলোনিতে বিস্ফোরণ এর ঘটনায় তথাকথিত সার্বজনীন গণমাধ্যম গুলি আশ্চর্যজনক নীরবতা পালন করল। অথচ এরাই ঐ একই রকম একটি ঘটনা খাগড়াগড় নিয়ে মশলা মাখিয়ে কি সুন্দর ভাবেই না পরিবেশন করেছিল! সমাজের বিভিন্ন স্তরে স্পষ্ট বিভাজন প্রকট করছিল ।
দুটি ঘটনা প্রায় একই রকম। আসুন মিল/অমিল গুলি খুঁজে দেখি !
# খাগড়াগড়ে এবং দমদমে উভয় ক্ষেত্রেই বাড়িটি ছিল দোতলা। দমদমে বিস্ফোরণ হয় নীচু তলায় যেখানে প্রমাণ লোপাটের কাজটি খুব সহজ। খাগড়াগড়ে বিস্ফোরণ হয়েছিল দোতলায়। যেখানে প্রমাণ লোপাট করা তুলনায় কঠিন।
# উভয় ক্ষেত্রেই বাড়ি গুলি ভাড়া দেওয়া হয়েছিল।
# উভয় ক্ষেত্রেই দূর্ঘটনাবশত বিস্ফোরণ হয় এবং মৃত্যু হয়। খাগড়াগড়ে 2 জন দমদমে 1 জন যদিও একটি সুত্রের খবর সেখানেও 2 জনের মৃত্যু হয়।
# উভয় ক্ষেত্রেই প্রচুর বিস্ফোরক উদ্ধার করা হয়।
# খাগড়াগড়ে মৃতদের একজন অমুসলিম ছিল স্বপন মন্ডল। যদিও তার মৃত্যুর পর তাকে মুসলিম বানিয়ে দেওয়া হয়। যা নিয়ে সর্বভারতীয় স্তরের সাহসী সাংবাদিক অজিত শাহী বিস্তারিত লিখেছেন। কিন্তু দমদমে কোনও মুসলিমের সরাসরি জড়িত থাকার কোনও খবর নেই। অর্থাৎ দমদম সম্পূর্ণ একটি সম্প্রদায়িক ঘটনা হতে পারে অথচ খাগড়াগড় অসাম্প্রদায়িক ছিল।
# খাগড়াগড়ের বাড়িটির নিচের তলায় তৃণমূল কার্যালয় ছিল বলে দাবি করা হয় কিন্তু দমদমের বাড়িটির মালিক স্থানীয় বিজেপির অতি সক্রিয় নেতা এবং ঐ বাড়ির বাসিন্দা।
# খাগড়াগড়ের বিস্ফোরণের পর আশ্চর্যজনক ভাবে বিজেপির নেতা কর্মী জমায়েত হয়ে আবহাওয়া উত্তপ্ত করে তুলে এবং মূহুর্তের মধ্যে সমস্ত গণমাধ্যমকে এনে হাজির করায়। অথচ দমদমে নিয়ে বিজেপি সাফাই দেওয়ার চেষ্টা করেছে কিন্তু বিরোধিতা বা নিন্দা করেনি। এছাড়া কোনও রাজনৈতিক দল এ নিয়ে টু শব্দটি করল না। অতি আশ্চর্যের বিষয় গণমাধ্যম বিষয়টিকে অতীব তুচ্ছ বিষয় প্রতিপন্ন করল।
# খাগড়াগড়ে তৃণমূলের সরাসরি কোনও যোগ না থাকলেও বিজেপি তথা এবপি গ্রুপ তৃণমূলেকে দায়ী করে বেগম মমতা বলে প্রচার চালায় । কিন্তু দমদমে সরাসরি বিজেপি জড়িত অথচ তৃণমূল সহ অন্যান্য দল গুলি নীরব।
# সর্বোপরি খাগড়াগড় নিয়ে হিন্দুত্ববাদীরা সমাজে সাম্প্রদায়িক বিষ ছড়িয়ে সামাজিক বিভাজন নিশ্চিত করেছিলেন অথচ তথাকথিত মুসলিম সংগঠন গুলি যারা নিজেদের 'হনু' ভেবে থাকেন তাঁরা এখনও হয়ত খবরটি পাননি । পেলেও গুরুত্ব দেননি।
নাহ.... কোনও অসৎ উদ্দেশ্য নিয়ে লেখা নয়। আমাদের দাবি, দ্বিচারিতা না করে প্রকৃত সংবাদটি প্রকাশিত হোক । কোনও ধর্ম বা সমাজকে নিশানা করে নয় , আইন প্রয়োগকারী সংস্থাগুলি নিরপেক্ষ পদক্ষেপ গ্রহণ করুক।
লিখেছেনঃ M.m. Islam