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म्हारा देश केसरिया, संघरामराज आयो! लेकिन हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है, पाश जो कह गये! ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस साहिर लुधियानवी

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म्हारा देश केसरिया, संघरामराज आयो!

लेकिन हम लड़ेंगे जब तक

दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है, पाश जो कह गये!


ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है

नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस

हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं

ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस

साहिर लुधियानवी



पलाश विश्वास

भाई रियाज ने साहिर की इन पंक्तियों से मौजूदा हालात का बेहतरीन बिंब संयोडन किया है।आप भी गौर करें।


ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं, तमाशा है

नए लिबास में निकला है रहजनों का जुलूस

हजार शम्ए अखूवत बुझा के चमके हैं

ये तीरगी के उभरते हुए नए फानूस

साहिर लुधियानवी

भारत विभाजन के बाद विभाजन की बलि हो गये लोगों की कीमत पर अबतक वंशवादी सत्तासुख के चरमोत्कर्ष भोगते अरबपतियों की पार्टी के अरबों के घोटालों के खिलाफ भारतीय जनता के जनादेश हमारे सर माथे।कांग्रेस के जनविरोधी राजकाज के खिलाफ है यह जनादेश और वामपक्ष के निरंतर विचलन और विश्वासघात,बहुजन राजनीति के केसरियाकरण का संघी उत्पादन है यह आसण्ण रामराज और उसका यह सीतायण शूद्रायन।


कल्कि अवतार को संघ परिवार ने नहीं,बल्कि जनपश्क्षधर मोर्चे की मौकापरस्ती और पाखंड ने पैदा किया।


ग्लोबीकरण की साझेदार दोनो पार्टियों के हवाले है यह देश अब।


भाजपा बनाम कांग्रेस खेल में तमिलनाडु में जयललिता और बंगाल में ममता ने एकतरफा अभूतपूर्व जीत हासिल जरुर की है,लेकिन सर्वभारतीय राजनीति में उसका कोई महत्व है नहीं।


नतीजा आने से एक दिन पहले धर्मनिरपेक्ष मोर्चा के प्रधानमंत्री बतौर कांग्रेस ने जो खेल रचने की कोशिश की,चुनाव नतीजे ने उसे गुड़ गोबर कर दिया।


संघी शुंगी सरकार फिरभी बेहतर है क्योंकि उसका अमित शाहीएजंडा और उसके नस्ली पराक्रम से सारी दुनिया वाकिफ है।


वाम बहुजन छलावे का विस्तार धर्मनिरपेक्ष मोर्चे की प्रधानमंत्री बतौर जयललिता या ममता की भूमिका फिर वही केजरीवाल परिदृश्य तैयार करता और बिना केसरिया सरार फिर मध्यावधि चुनाव मार्फत विश्वबैंकीय कांग्रेस सरकार की वापसी सुनिश्चित करती।


जनविरोधी कांग्रेस को पचास के आसपास सीमाबद्ध करके भारतीय जनता ने करारा जवाब दिया है जनसंहारी संस्कृति को लेकिन वि़ंबना यह कि फिर उसने सिक्के के दूसरे पहलू को ही अपनी किस्मत सौंप दी।इसके सिवाय कोई दूसरा विकल्प है नहीं।


कांग्रेस के पराभव,वाम सफाये और बहुजन पटाक्षेप पर आठ आठ आंसू बहाते हुए हम अपनी दृष्टि इतनी भी धूमिल न कर दें कि एक मुश्त  सत्य,त्रेता द्वापर के इस अभूतपूर्व संक्रमणकालीन महातिलिस्म में फंसकर रह जाये हम।वैदिकी हिसा के सत्ययुगीन परिदृश्य में त्रेता का रामराज समय है यह तो सारा देश द्वापर का कुरुक्षेत्र भी है,जहां मूसलपर्व में जनसंख्या महाविनाश तय है।


रामराज में सामाजिक न्याय के सीतायन,शूद्रायन शंबूकगाथा का पारायण करने को वक्त बहुत बचा है लेकिन इससे पहले समझ लें कि आम आदमी पार्टी का विकल्प किस हद तक कामयाबी के साथ पूरे उत्तरभहारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हाथ मजबूत करता रहा है।कांग्रेस विरोधी आम जनता के गुस्से को डायल्यूट ही नहीं किया केजरीवाल ने,बल्कि कांग्रेस भाजपा विरोधी जनता जनार्दन के वोट को केसरिया बना देने में उसने महती भूमिका निभायी।भाजपा के वोट काटने में केजरीवाल की कोई भूमिका नहीं थी।


अब विडंबना यह भी कि वामदलों और बहुजनराजनीति से मोहभंग के बादभारतीय राजनीति में प्रतिरोध के नेतृत्व के लिए फिर वही एनजीओ नेतृत्व का ही विकल्प बचता है।केजरीवाल अगर ईमानदार होते तो सड़क पर मुद्दे उठाकर उन मुद्दों को अंजाम तक पहुंचाने में ईमानदार कोशिश भी करते।असंभव लोकपाल बिल पास कराने की जिद न करके सरकार में रहकर अंबानी जैसे कारपोरेटआकाओं को घेरने और उन्हें जल तक पहुंचाने की दिसा में वे कुछ कर पाते तो यह केसरिया क्रांति ही होती नहीं।लेकिन यह मकसद उनका हरगिज नहीं था।


अब खतरा यह है कि कांग्रेस राजकाज के खिलाफ जैसे भाजपा खामोश सहयोिता में थी,वहीं भूमिका अब कांग्रेस की होगी मुकम्मल दो दलीय अमेरिकी लोकतांत्रिक प्रणालीबद्ध।वामदलों और बहुजन राजनीति की वह ताकत नहीं है,जिसको उन्होंने सत्ता शेयर पर दांवबद्ध करने का प्रगतिशील संशोधनवादी मौकापरस्त कारोबार किया।अब उनके पाखंड से जनता का पूरा मोहबंग हो चुका है।


अब जनांदोलन के ठेकेदारों की एनजीओ शरण गच्छामि के तहत सड़क पर उतरी केजरी केसरी सेना के साथ खड़े होने के अलावा कोई विकल्प दीख नहीं रहा है।संपूर्ण क्रांति पर्व समाप्त होने के बावजूद वह पलटे जाते पन्नों की तरह फिर फिर लौट आता है क्योंकि सही दिशा में सोचनेवाले,सही जनप्रतिबद्धता की समामाजिक उत्पादक शक्तियों को गोलबंद करने के कार्यभार से हम निरंतर मुंह चुराते रहे हैं और चुराते रहेंगे।


कांग्रेस,वामदलोंऔर बहुजन राजनीति के नाम विलाप करने के बजाय इस सत्यद्वापर त्रेता समन्वय समय के प्रतिरोध के लिए हम क्या कर सकते हैं,इसपर सोचें और राष्ट्रव्यापी जनपक्षधर एअकता की मुहिम अभी से शुरु करें तो शायद बात कुछ बन भी जाये।


फारवर्ड प्रेस के प्रमोद रंजन और हमारे डायवर्सिटी मित्र एच एल दुसाध,झारखंडी शालपत्र के उत्तर आधुनिक वीर भारत तलवार मतादान प्रक्रिया के दौरान हरियाणा में भगाना में दलित कन्याओं से हुए अमानुषिक बलात्कार कांड के खिलाफ लगातार सक्रिय रहे।वीर भारत फेसबुक पर उपलब्ध नहीं हैं और वे हम लोगों की तरह तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले कभी नहीं थे।लेकिन प्रमोद रंजन और डायवर्सिटी मैन एचएल दुसाध जो कल तक उदित राज,राम विलास पासवान और रामदास अठावले की अगुवाी में भाजपा एजंडे में डायवर्सिटी तत्व सामजित करने का सपना पाल रहे थे,आधिपात्यवात्यवादी सवर्ण हिंदुत्व के केसरिया लहर में बहुजन राजनीति के सफाये से बेहद निराश लग रहे हैं।


वामपक्ष का सफाया हो रहा है,बंगाल में केसरिया होती जमीन पर प्रतिबद्ध विचारधारा और संगठनों के अविराम विश्वासघात और पाखंड से यह हम शुरु से महसूस कर रहे थे और हम संभव तरीके से हम सचेत भी कर रहे थे वाम मित्रों को,मसलन वाम लोकसभा प्रत्याशियों के वाल पर जाकर लगातार पोस्ट कर रहे थे कि हालात संगीन हैं और आत्मसमर्पणी बलिदान से कुछ बदलने वाला नहीं है।


लेकिन बहुजन राजनीति के गढ़ों महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बहुजन राजनीति और अंबेडकरी झंडेवरदारों के ऐसे सफाये की आशंका हमें भी नहीं थी।


उत्तर प्रदेश लंबे अरसे से जाना नहीं हुआ लेकिन महाराष्ट्र से लगातार जुड़ा हूं,केसरिये में नील के इस विलय को हम चिन्हित नहीं कर सकें, माफ करें।


नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए वैदिकी यज्ञ का आयोजन करने वालों ने एकमुशत बाम बहुजन असुरों महिषासुरों का वध करने में बेमिसाल कामयाबी हासिल की है।


यह चुनाव किसी भी सूरत में न अप्रत्याशित है और न देश के मौजूदा हाल हकीकत के खिलाफ।हम शुरु से ही हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्ष विभाजन के खिलाफ लिखते बोलते रहे हैं।


ध्रूवीकरण का फायदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कारपोरेट पूंजी और कारपोरेट मीडिया भगवा सोशल मीडिया के मार्फत बेशक उठाया है,लेकिन संघ की रणनीति के प्रतिरोध में 1984 से अबतक लगातार हिंदुओं को गरियाने और मुसलिम सांप्रदायिकता को हवा देने के सिवाय जनपक्षधर मोर्चे ने कुछ भी नहीं किया जनसंहारी कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों को जबरन धर्मनिरपेक्ष साबित करने और उसके हक में जनता को खड़ा करने की वाहियात मुहिम चलाने के सिवाय।



हम 1984 में राजीव गांधी को हिंदुत्व सुनामी से जिताने वाले संघ परिवार की रणनीतिक दक्षता और अपने एजंडे को अंजाम तक पहुंचाने की निर्मम सक्षमता को फिर एकबार राष्ट्रीय राजनीति के कारपोरेटीकरण एनजीओकरण और केसरियाकरण के मार्फत अभिव्यक्त होते देख रहे हैं।


लेकिन तब भी वाम राजनीति का वजूद कायम था और बहुजन राजनीति मुकाबले में खड़ी हो ही रही थी।


संघ परिवार ने अबकी दफा भारतीय जनता पार्टी को एकक बहुमत दिलाकर 1984 के वाद देश की सत्ता पर कब्जा ही नहीं दिलाया,बल्कि हिंदू राष्ट्र के दो सबसे बड़े परस्परविरोधी एक दूसरे के खून के प्यासे वाम और बहुजनपक्ष का हिसाब भी हमेशा के लिए बराबर कर दिया।


विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रपट लागू करके जो भस्मासुर पैदा कर दिया अस्मिता राजकरण का,उसका कमंडली केसरिया कायाकल्प से कल्कि अवतार का राज्याभिषेक निर्बाध संपन्न हो गया।


भारत मुक्ति मोर्चा के मंच से रंग बिरंगे केसरिया जमावड़ा जो ओबीसी की गिनती की मांग कर रहा था,वह ओबीसी गिनती के लिए कम,ओबीसी के भगवेकरण के लिए कहीं ज्यादा साबित हुआ,जिसका चरमोत्कर्ष ओबीसी प्रधानमंत्रित्व हुआ।


कम से कम उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में,कुछ हद तक समूची गायपट्टी में इस ओबीसी बाहुबल के केसरियाकरण का नतीजा वाम पक्ष के साथ साथ बहुजन राजनीति के सफाये के जरिये संघ परिवार की निरंकुश सत्ता में निकला।गुजरात नरसंहार के बाद असम दंगों से लेकर यूपी के मुजप्फरनगर दंगों और शरणार्थी घुसपैठिया मुद्दे पर ममता मोदी वाक्युद्ध ने इस महती ध्रूवीकरण को राष्ट्रवायापी बना दिया,जिससे केसरियासर्वत्र अस्मिताओं के टूटने का भ्रम पैदा कर रहा है।


जो सरकार मनुस्मृति अनुशासन पर राजकाज चलाने को संकल्पबद्ध है और संस्थागत महाविनाश की सर्वोच्च संस्था जो नस्ली भेदभाव और जाति व्यवस्था के तहत देश बांटने का काम करती रही है,वह अस्मिताओं और पहचान को तोड़ने में कामयाब है,वाम बहुजन पराभव का यह मीडिया नतीजा सचमुच हैरतअंगेज है।


नस्लभेद और जीति व्यवस्था के खात्मे के बिना अस्पृश्यता को समरसता में बदलने के छलावा ,बहिस्कार को डायवर्सिटी में तब्दील करने के पाखंड से न समता संभव है और न सामाजिक न्याय जो रामराज के वर्णवर्चस्व में मूल लक्ष्य हैं।


संसाधनों और अवसरों के न्यायपूर्ण बंटवारा तो एकलव्य का कटा हुआ अंगूठा है या फिर शंबूक के तपस्यारत मस्तकदिके मर्यादा पुरुषोत्तम का शरसंधान है है या सीता का अग्निपरीक्षा के बाद भी वनवास और अंततः पाताल प्रवेश।


जो बहुजन पार्टियां इस चुनाव में केसरिया एजंडा को लागू करने की सहयोगी इकाइयां बनकर सक्रिय रहीं, उन्हींकी कमरतोड़ मेहनत का नतीजा, बहुजन समाज पार्टी का यह सफाया।जिसका मर्सिया पढ़ते पांच साल और गुजारने की तैयारियां कर रहे हैं प्रगतिशील और बहुजन शिविर के तमाम सिपाहसालार प्रतिबद्धजन और अब भी अंतरराष्ट्रीय पूंजी के प्रायोजित जनसंघर्ष के महामसीहा अरविंद केजरीवाल के मुकाबले सड़क पर जनता के मुद्दे लेकर संघर्ष का संकल्प लेने की उनकी कोई योजना भी नहीं है।

अपने परमोद रंजन ने लिखा हैः


ओबीसी जीत कर भी हार गया। यह हार उसके अगुवों की विचारधारा की है। कुछ समय के लिए ही सही उनकी विरोधी विचारधारा ने बडी चुनावी जीत हासिल की है। लेकिन, यह ओबीसी राजनीति का ही का आगाज है। यह शुरूआत भर है, जिसके नतीजे क्‍या होंगे, अभी कहना कठिन है। लेकिन यह शुरूआत तो है ही।


उन पर नजर रखिए, जो यह मानने से इंकार करते हों कि मोदी की यह जीत उनके ओबीसी होने के कारण नहीं हुई है। वे दरअसल, सवर्ण वोटों को ही इस जीत का श्रेय देने की कोशिश करेंगे।

इसपर राकेश श्रीवास्तव की प्रतिक्रिया गोरतलब हैः


अगुवे हारे हैं .. सामाजिक न्‍याय का विचार नहीं हारा है .. राजनीति के अन्‍य यथार्थों के साथ कुछ एकोमोडेशन के साथ वह विचार अब भी खड़ा है .. अंबेडकर का मूल सपना लोकतंत्रवाद और संविधानवाद नहीं हारा है .. सामाजिक न्‍याय में लक्ष्‍य है 'प्रतिनिधित्‍व' .. अारक्षण भी प्रतिनिधित्‍व का एक साधन मात्र है .. हो सकता है आरक्षण के कई विरोधाभासों पर बहस शुरू हो जाए .. पर गतिशील लोकतांत्रिक राजनीति 'प्रतिनिधित्‍व' बढ़ाती जा रही है .. वह बढ़ेगी .. सत्‍ता और शक्ति का सामाजिक अाधार फैलता जा रहा है .. पर हमें भी अपने कई जड़ताओं पर पुनर्विचार करना है ..


हम तो आदिवासियों के बीच काम कर रहे एके पंकज से सहमत हैंः

सांप्रदायिकता विरोधियों और तथाकथित प्रगतिशीलों को नई सरकार मुबारक हो.

हमने पहले ही कहा था नस्लवाद, जातिवाद, लैंगिकवाद और धार्मिक कट्टरता को ध्वस्त किए बिना आप चाहें जितना जोर लगा लें, उनका कुछ भी नहीं उखाड़ सकते.


हम फैसल अनुराग के इस बयान का भी तहेदिल से स्वागत करते हैंः

हम अपनी हार स्वीकार करते हैं. हम इसी के लायक थे क्योंकि हम ने अपने को पुराने मानदंडो से बंधे रखा और नए बदलावों के अनुकूल विचारों को विकसित नहीं किया. इस कारण हमने आम आवाम को अपने से जोड़ में कामयाब नहीं हुए. हमने अपने वसूलों के लिए उन पर भरोसा किया जिन्हें जनसंघर्षों और विकल्प बनाने में कोई यकीन नहीं. किसी ने ठीक कहा है व्यक्ति या विचार जी हर लम्हा खुद को पुनर्नवा नहीं करता वाह वास्तव में मौत का ही इंतज़ार करता है. लेकिन हम संकल्प लेते ह कि अपनी निराशा को प्रचंड आशावाद में बदलेंगें और सेकुलर सामाजिक इन्साफ के साथ आर्थिक बराबरी के संघर्ष को नए मानक के साथ लड़ेंगें . इस हार के लिए मैं अपनी जिम्मेवारी स्वीकार करता हूँ और नए राजनीतिक संघर्ष के लिए संघर्ष ज़ारी रखने का संकल्प व्यक्त करता हूँ.


लेकिन सुधीर सुमन ने लिखा हैः

भेडिया गुर्राता है तुम मशाल जलाओ- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


तो कवि अशोक कुमार पांडेय का यह अभिमतः

संयत होने का समय है। सदमे से बाहर आकर अपनी मुकम्मल हार को स्वीकार करने का। यह किसी कांग्रेस या किसी सी पी एम या सी पी आई वगैरह वगैरह की चुनावी हार का मामला नहीं है। कल को ये फिर जीत सकती हैं।

मामला है एक लेखक के रूप में समाज में निष्प्रभावी होते जाने का। मामला है उन मूल्यों के निष्प्रभावी होते जाने का जो आजादी के बाद से इस देश में स्वीकार किये गए थे। इसीलिए Avinashअपने इंट्रेंस को मौत और ज़िन्दगी की लड़ाई की तरह लो और वहां जाओ क्योंकि वह जगह खतरे में है। इसलिए Sheebaसावधान रहिये लेकिन लड़िये उस तरह जैसे कभी नहीं लड़े। इसलिए अशोक उदासी से बाहर आओ और अब वह खुल के बोलो जो इसलिए नहीं बोलते थे कि वामपंथ को नुक्सान न पहुंचे।

इसलिए दोस्तों आओ साथ चलना सीखें। लड़ते हुए और एक व्यापक एकता बनाते हुए। याद रखो - यूं ही उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क/ न उनकी जीत नई है न अपनी हार नई।

सुरेंद्र ग्रोवर जी का निष्कर्षः

सोशल मीडिया पर पिछले चार बरसों से चल रहे अभियान ने भाजपा को आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया..


मतदाताओं का फैंसला सिर माथे पर.. मगर हम तो सदा सत्ता पक्ष की खामियों पर अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं और यही करते रहेंगे..


चुनाव परिणामों के मिल रहे रुझान साफ़ साफ़ बता रहे हैं कि देश भर में कांग्रेस विरोधी आंधी चल रही है, जिसका नतीजा आम नागरिक को भुगतना पड़ेगा..


गोपालदासगोपा गोपाकी प्रतिक्रियाः


बधाई है सब भारतीयो को इतिहास में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार होगी ।आने वाले 5 वर्ष सबकी परीक्षा के होंगे ।जय प्रभु जी ।


पीके श्रीवास्तवःहम ऐसी हसीन सजा भुगतने को तैयार है ! कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना ही चाहिए !!


हमारे डायवर्सिटी मित्र एचएल दुसाध के वक्तव्य पर सिलसिलेवार गौर करेंः

न चाहते हुए भी कल या परसों मैंने आज के चुनाव परिणाम पर अपनी चाहत का इजहार किया था जो दुर्भाग्य से सामने आ रहा है ..चाहत थी बीजेपी की २७२ प्लस सिट और बहुजन् वादी दलों की सम्मानजनक नहीं ,बेहद शर्मनाक हार.अमेठी से राहुल की हार कांग्रेस की तथा बहुजनवादी दलों की शर्मनाक हार उनके कायांतरण के लिए मिल का पत्थर साबित होगी.अतः सपा -बसपा-आरजेडी-जड़ की हार के लिए आंसू न बहाये.उनका यह हस्र होना ही था. हां आज एनजीओ वाली पार्टी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जायेगा ,इस पर आप चाहें तो आंसू बहा सकते हैं.आप सवर्णवादी दलों का बाप भारतीय राजनीति का बहुजन नजरिये से कैंसर है.


मित्रों!इस चुनाव में अपने तमाम लेखों में ही यह बताने का प्रयास किया थी कि जातिवाद अर्थात् सामाजिक न्याय की राजनीति की दशा सोचनीय है.अब तो खुलकर कह सकता हूँ सामाजिक न्याय की राजनीति का जनाजा निकल गया.अफ़सोस की बात है पर आप दबाव बनायें तो डाइवर्सिटी के जरिये सामाजिक न्याय की राजनीति को उस जगह पहुचाया जा सकता है जहाँ आज मोदी की भाजपा है.अगर इन्होने क न्याय की राजनीति के ताबूत में अंतिम किल ठुक जाएगी.

मित्रों १३ मई को एक पोस्ट में कहा था की आज से ही जातिवाद की राजनीति की हार पर जश्न शुरू हो गया और १६ से जातिव्वाद अर्थात सामाजिक न्याय की राजनीति की हार पर जश्न मनाने वालों की भीड़ ला जायेगी.दुर्भाग्य से वह जश्न शुरू हो गया है.


परमीत छासियाः पूंजीवादी और ब्राह्मणवादी ताकतों से धर्मांध जातिवादी ताकतों ने पूर्णतम भगवा धारण कर लिया है. जय भीम के उद्घोषक चमचे अब जय सियाराम बोल रहे है. दाग साफ़ साफ़ दिखाई देने लगे.



एचएल दुसाधः परमित जी जय भीम के उद्घोषक अर्थात आम अम्बेकर वादियों दोष न देकर अम्बेकर वाद के नाम प र राजनीति करनेवाले का है


परमीत #तीन-राम! इतिहास गवा है की बाबासाहब की विचारधारा से विश्वाश्घात करने वाले मिशन द्रोही तथा कौम के गद्दारो को कभी भी दलित बहुजन मूलनिवासी समुदाय ने माफ़ नहीं किया।

दुसाधः खुलकर कहें कौन मिशन द्रोही हैं!



एचएल दुसाध आगे लिखते हैंः

रतीय राजनीति दो सबसे बड़े सवर्णवादी कांग्रेस और भाजपा के लिए म्यूजिकल चेयर बनकर रह गयी है,उसमे कोटि-कोटि खर्चे करके कभी मोदी,तो कभी प्रियंका गाँधी जैसे चमत्कारिक शख्सियतों को जन्म देकर सवर्णवादी भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस का सामान स्तुपिकृत करते रहेंगे.किन्तु ट्रेडिशनल स्टाइल में राजनीति करनेवाले सवर्णवादी दलों को जिस दिन हमारी बहुजनवादी पार्टियाँ सवर्ण–परस्ती छोड़कर मुक्त गले से शक्ति के तमाम स्रोतों(आर्थिक,राजिनितक,धार्मिक-सांस्कृतिक )में डाइवर्सिटी अर्थात 'जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी'लागु करने की घोषणा कर देंगी उस दिन बहुजन भारत मोदी और प्रियंका इत्यादि जैसे मीडिया निर्मित कथित चमत्कारी वायरस से मुक्त होगा जायेगा.और देर सवेर बहुजनवादी दलों को डाइवर्सिटी का झंडा लहराना ही पड़ेगा नहीं तो ये विलिन हो जायेंगे.किन्तु राज-सत्ता का लुफ्त ले चुके बहुजनवादी भी विलीन होना नहीं चाहेंगे .इसलिए भरोसा रखें उन्हें देर-सवेर डाइवर्सिटी को अपनाना ही पड़ेगा.अतः हम कह सकते हैं देर सवेर मोदी-राहुल-प्रियंका जैसे वायरस से बहुजन भारत मुक्त हो सकता है.

लेकिन जो वायरस आज जन्म लेगा वह शायद लाइलाज होगा.हाँ मित्रों मैं बात एनजीओ गैंग द्वारा परिचालित राजनीतिक संगठन की कर रहा हूँ .आज यह संगठन राष्ट्रीय 'राजनीतिक दल'का चेहरा धारण करने जा रहा है.यही है वह सबसे डेंजरस सवर्णवादी दल है जिसके पीछे सवर्णों का मीडिया,बौद्धिक,कार्पोरेट,एनजीओ,फिल्म,सेलेब्रेटी,शैक्षणिक इत्यादि तमाम क्षेत्र के बेहतरीन टैलेंट तन-मन-धन से लामबंद है.खासकर वह युवा वर्ग जिसने 2011 में भ्रष्टाचार विरोधी तथा 2012 में दिल्ली गैंग रेप में अपनी भयानक गतिविधियों से रष्ट्र को हिलाकर रख दिया था,इसके पीछे सबसे बड़ा न्यूक्लियर बनेगा.यह वायरस धीरे-धीरे भरतीय राजनीति का ट्रेडिशनल चरित्र बदल देगा जिसके कारण बाबा आदम के युग जी रहे बहुजनवादी दल अपंगता के शिकार बन सकते हैं.तो मोदी नहीं, नए वायरस का मुकाबला करने के लिए तैयार रहे.मेरी शुभकामना है कि कुदरत नए वायरस का मुकाबला करने की तरकीब आपको सुझाये.वैसे मेरा मानना है एक मात्र डाइवर्सिटी है जिसका दामन थामकर सभी वायरस को निष्क्रिय किया जा सकता है.


जगदीश्वर चतुर्वेदी को भी पढ़ लेंः

अब मोदी का पीएम बनना तय हो गया है।बढ़त की अधिकांश सीटें कांग्रेस से छीनकर भाजपा ने एनडीए सरकार को सच में बदल दिया है। निश्चित रुप से भाजपा बधाई की हकदार है।

पश्चिम बंगाल में माकपा राजनीतिक इतिहास की सबसे भयानक पराजय के मुहाने पर पहुँच गयी है। पता नहीं माकपा के नेताओं को कब यथार्थ ज्ञान होगा ।


Vidya Bhushan Rawat

This election results proved that voters can not be taken for granted. Congress has paid a price but it has also put India into greater risk. Its hidden communalism and corruption has been rejected. The most disappointing things have emerged from Uttar Pradesh and Bihar. It shows that Modi was able to sale his dream apart from the polarisation. It is a slap on the face on the 'contractors' of social justice. It is they who refused to go to people and took them from granted. At least Modi began his work for over a year. What were our cycle, elephant and lantern doing ? They never tried to reach the people. They became more feudal than the original feudal lords. People want to effective governance and can not just vote for you in the name of identity and secularism. It is time our leaders understand that otherwise we are going to have a long overhaul of Hindutva India.

अशोक कुमार पांडेः

अगर देश की जनता एक तानशाह को ही चाहती है तो उसे तानशाह मुबारक़। हम तो अभिशप्त हैं अपना सच कहते रहने को। कहते रहेंगे।

मुकेश कपिलःदेश के लोग जागरूक है ।


ओम निश्चलः अशोक जी हम सचाई से मुँह मोड़े रहने के आदी हो गए हैं। किन्‍तु जिस तरह कांग्रेस के कारनामे रहे, दूसरी पार्टियों में फिरकापरस्‍ती और शुरु से ही एक अघोषित पस्‍ती रही, ऐसे में इस मीडियाचालित-प्रचारवादी युग में कोई चीज जनता से छिपी नहीं रहती। उसकी आवाज वैसे तो सुनी नहीं जाती, वह ईवीएम के जरिए ही आकार लेती है। सोचिए कि तमाम स्‍तरों पर वाम दलों को कितना आत्‍ममंथन और अपने अपने एकांतवास से बाहर आने की जरूरत है। यह कांग्रेस के शर्मनाक कुशासन का परिणाम है और यही हाल रहा तो अगले चुनाव में वह बस अभिलेख की वस्‍तु रह जाएगी।


अजय शर्माः मुक्ति का उपाय सोचिए बंधुवर।


Deepak Kabir janta tanashaah nahi chahti / bas use pehchaan nahi paati / hum pehchanwa bhi nahi paaye  agli baar sahi.



अविनाश दास का यह मंतव्य भी गौरतलब हैः

हमने रोशनी चाही थी, हमें अंधेरा थमाया गया. भारतीय लोकतंत्र ने सुर लगाया है : अंधेरे हमें रास आने लगे हैं. अगले पांच साल तक जहां रोशनी की कब्रगाह होगी, हम वहां रोज एक दीया जलाने जाते रहेंगे. [बशर्ते हमारे हाथ-पांव तोड़े न गये और जेल न भेजा गया.]

आशीषमेहराः अविनाश जी जब आप अपने पूर्वानुमान, एकतरफा सोच शेयर कर रहे थे तब हमने कहा था कि 16 मई आने दीजिये ! अब परिणाम सामने है !


अफ़सोस के "आप" "वामपंथ" के मोह में सच्चाई , आम जनमानस से इतने दूर निकल गए ! निश्चिन्त रहे जैसे आपके पूर्वानुमान गलत साबित हुवे वैसे आपके हिटलर/ मारपीट जैसे डर भी सब गलत साबित होंगे !


राम विलोचन पासवानः दास बाबु निराश न होइए .. अभी अमेरिका का चुनाव बाकी है ... फिलिस्तीन के हक के लिए भी लड़ना है .. अरब शेखों के हरम से गरीब भारतीय मुस्लिम लड़कियों के हक के लिए भी लड़ना है (लेकिन आप तो अरब शेखों से चंदा लिए बैठे हैं)

वैसे भोपाल कब जा रहे हैं .. बहुत गहरा याराना है आपका वह तो .. जाइये गम गलत कर आइये थोडा उधर से ..


राम विलोचन पासवानः दास बाबु ... रौशनी की कब्रगाह वही है जहाँ 75 CRPF के जवानों को मारा गया था .. या फिर कश्मीर में हैं जहा से हर साल विधवाओं की लिस्ट तैयार होती है .. पर "आप"तो उन्ही को बढ़ावा / टिकेट देते हैं .. माने आप कब्रगाह के दल्ले हैं .


अब यशवंत की भड़ास आखिरकारः

फेकू के कुछ कर गुजरने के दिन आ गए हैं... कांग्रेसी कुशासन और राजनीतिक विकल्पशून्यता के माहौल में आगे आए लफ्फाज फेकू की लंतरानियों ने कांग्रेस की बी टीम भाजपा को पूर्ण बहुमत दिला दिया. इस देश ने कई बार कई प्रदेशों में झूठे वादों-लफ्फाजियों के आधार पर पूर्ण बहुमत की सरकारों को बनते देखा और कुछ ही समय में नाकारा होने के कारण जनता से पिट कर शू्न्य में चले जाते देखा है... सो, भाजपा और मोदी के लिए खुद को साबित करने के दिन हैं... अगर ये धर्म, जाति, संप्रदाय, हिंसा, नस्लवाद जैसी चीजों में फंस गए तो इनका जाना तय है... अगर इन्होंने खुद को उदात्त (जिसकी संभावना कम है) बनाते हुए भारत जैसे विविध संस्कृतियों व अनेक समझ वाले देश के आम जन के हित में सकारात्मक विकास कार्य (रोजगार, शिक्षा, सेहत, प्रति व्यक्ति आय आदि) किया तो आगे भी जनता इन्हें अपना समर्थन देगी. पर ऐसी संभावना इसलिए कम है क्योंकि भाजपा और संघ के मूल स्वभाव में नकारात्मकता और पूंजी परस्ती है. इसलिए कांग्रेसी कुशासन से मुक्ति का जश्न मनाते हुए एक नए किस्म के कुशासन में प्रवेश करने के लिए खुद को तैयार रखिए... मेरी नजर में इस चुनाव ने आम आदमी पार्टी को शानदार मौका दे दिया है. उसे खुद को असली विपक्ष साबित करते हुए जमीनी स्तर पर काम करना चाहिए और अगले लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने की तैयारी करनी चाहिए. इस तरह से देश में आम आदमी पार्टी और भाजपा नामक दो पार्टियां ही रह जाएगी. कांग्रेस सदा के लिए थर्ड नंबर की पार्टी बन जाएगी. कांग्रेस का अंत होना जरूरी है और आम आदमी पार्टी को एक प्रगतिशील जुझारू तेवर लेकर नया विकल्प बनना भी जरूरी है... चुनाव नतीजों का स्वागत करता हूं. ऐतिहासिक जनादेश से गदगद मोदी अब क्या कुछ करते हैं कराते हैं, इस पर पूरे देश ही नहीं, पूरे संसार की गहरी नजर रहेगी. वो कहा जाता है न कि शिखर पर पहुंचना मुश्किल नही होता, शिखर को मेनटेन रख पाना बड़ा कठिन काम होता है. तो शिखर पुरुष बने मोदी कितने दिन तक इस उंचाई को बरकरार रख पाते हैं, यह भी देखा जाएगा. फिलहाल मेरी तरफ से मोदी और भाजपा को जीत की बधाई. आम आदमी पार्टी को असली विपक्ष का रोल निभाने के लिए अग्रिम शुभकामनाएं.

जैजै



Live: Modi in Delhi

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Live: Modi in Delhi | India to emerge as global powerhouse: PM

http://economictimes.indiatimes.com/

ECONOMICTIMES.COM Prime Minister designate Narendra Modi arrived in Delhi to a rousing welcome after massive victory in 2014 Lok Sabha polls.

The story of 71/80: How Amit Shah swept UP for BJP | All about Shah


ET Bureau Uttar Pradesh formed the fulcrum of the BJP's astonishing win with the party winning an eye-popping 71 seats, more than the UPA's overall tally.

    SA Aiyar: How Modi can transform economy in 6 mths | Could it be Priyanka in 2019?


    If Modi creates optimism, consumers will once again start consuming, investors once again start investing & bureaucrats once again start moving files.

      Varanasi prepares to welcome Narendra Modi

      How super Modi pulled BJP back from the brink

      Why Muslim votes did not count in UP & Bihar

      Secret diary of Sonia: Why Rahul took responsibility

      Post emphatic win, Modi to decide cabinet ministers

      What the West want from Modi as PM?

      How Amit Shah swept Uttar Pradesh for BJP

      How Modi can transform economy in 6 months

      Ambani Raj All the Way! Palash Biswas

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      Ambani Raj All the Way!

      Palash Biswas

      http://economictimes.indiatimes.com/

      It is all the way Manusmriti Rule.


      It is zionist  corporate imperialism translated into most aggressive Hindutva Modified OBC branded diluting Mandal,Bahujan and Marxist politics all the way.


      Welcome people's thumping mandate to reject the genetically modified genocide Cong outright.For which the people voted for Modified OBC branded corporate ethnic cleansing and exclusion as the Left betrayed all the way.


      As the Bahujan Politics and identity politics as a whole supported reforms for full twenty three years and stood divided to strengthen the monopolistic hegemony all the way.


      Kanshiram formulation of eighty five percent failed all the way divided into six thousand caste identities,separate OBC and Dalit and ST and Muslim identities.No one addressed the people stranded in war zones of excluded geography and subjecetd to racial apartheid.


      Mandal politics made way for Kamandal politics which hinduised OBC and did the Karishma with scientific Bengali methodology isolating the whole lot of deprived from OBC.OBC headcount movement is cashed in OBC Hindutva Vote Bank and Modified master stroke of Presidential style killed Marxism as well as Ambedkarite movement in India.


      RSS was the mastermind in 1984,when Rajiv Gandhi romped home with landslide mandate shafron as RSS slogan was vote for those who would defend Hindutva.


      Once again Indian Polity is taken over by RSS.In 1984,Mraxist ruled Bengal and had strong bases all over the country beside Kerala and Tripura outside Bengal.To retain power in three states ie Bengal,Kerala and Tripura the Left betrayed the people of India all the way since Indira age and killed people`s resistance since sixties and supported all the genocide acts of the ruling hegemony.On the other hand,full bloom Ambedkarite movement led by Kanshiram reduced to BSP,known for supporting the hegemony all the way and for its brute casteology kiling the Kanshiram formulation of eighty five percent.Mandal politics created strong OBC men and women getting helms in states all these years.The Left and the Bahujan and the Mandal politics were intact in 1984.


      OBC brand equity of Modi now makes OBC ruling class as much as the Caste Hindus are.The tigers smelt the blood and no one,not even the greats in Uttar Pradesh, Bihar,Maharashtra and other parts of India banking on identity politics could survive in RSS Corporate Media combined surgically precise mind control game.


      Here you are! 2014 showcased the death procession of identity icons and Marxists as well.


      Kejriwal represented foreign funded NGO and international financial institution as world bank, IMF, WTO, UNESCO, ADB, european community and so on supported by NGOs at home and worked to dilute and divert people`s resistance all the way declaring jihad against Indian companies including Ambanies and Adani.But Kejriwal ensured outright win of RSS ambushing Cong and Non BJP politics.


      Kejriwal played opposition without entering Parliament as BJP and Left and regional parties indulged in power sharing obliging corporate India,kept silence all the way and supported minority governments working against rule of law,constitution,civil and human rights and engaged in institutionalized corruption all the way and made way for Kjriwal.


      Kejriwal is the only opposition in near future to dilute and divert people`s resistance under manusmriti rule and corporate raj once again.


      It is all the way SITA VANVAS.

      It is all the way Shambuk Hatya.

      It is all the way KURUKSHETRA.

      It is all the way Mushal parva to kill one`s kith and kin.

      It is all the way Ambani Raj.




      New govet needs to identify constraints holding back growth

      New govet needs to identify constraints holding back growth

      As a first task, the government needs to identify and articulate what it considers are the binding constraints to growth.

      AAP fails to move from Delhi to India

      AAP fails to move from Delhi to India

      AAP volunteers seemed more confused than disappointed by the results that emphatically showed up the party's decision to plunge into national politics.

      Five things the government needs to do to revive growth

      Five things the government needs to do to revive growth

      While the biggest task before the new government is to revive growth, high fiscal deficit will not allow it to be too extravagant and interest rates cannot be cut as long as inflation remains high.

      How Amit Shah swept Uttar Pradesh for BJP

      How Amit Shah swept Uttar Pradesh for BJP

      How Amit Shah swept Uttar Pradesh for BJP

      Uttar Pradesh formed the fulcrum of the BJP's astonishing win with the party winning an eye-popping 71 seats, more than the UPA's overall tally.

      Live: Modi in Delhi | India to emerge as global powerhouse: PM

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      2 Hours ago

      ECONOMICTIMES.COM Prime Minister designate Narendra Modi arrived in Delhi to a rousing welcome after massive victory in 2014 Lok Sabha polls.

      The story of 71/80: How Amit Shah swept UP for BJP | All about Shah

      3 Hours ago

      ET Bureau Uttar Pradesh formed the fulcrum of the BJP's astonishing win with the party winning an eye-popping 71 seats, more than the UPA's overall tally.

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      3 Hours ago

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      Defiance to a 'victorious' Mass Murderer. Photos from a protest march called by JNU Students' Union in the night of 16 May.

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      Reyazul Haque


      Defiance to a 'victorious' Mass Murderer.


      Photos from a protest march called by JNU


       Students' Union in the night of 16 May.








      Bihar chief minister Nitish Kumar resigns

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      Nitish Kumar has resigned. He has put tremendous pressure on others including Congress chief ministers as well as Mr Akhilesh Yadav. Though we all know that politicians do not make a decision that easily ( Modi has not yet resigned as chief minister of Gujarat) yet we will have to appreciate it even if we know that he had no other option than to resign.


      PATNA: A day after his party JD(U)'s poor show in the Lok Sabha elections, Bihar chief minister Nitish Kumar resigned on Saturday. The JD (U) had managed to get just 2 seats out of 40 Lok Sabha seats in the state. Kumar has submitted his resignation to governor D Y Patil.

      Kumar's resignation has come amid reports of dissent in the party following the poor show in the general elections.

      "He has taken responsibility for the loss, we decided to seek a fresh mandate," JD(U) leader Ali Anwar said.

      The resignation comes just hours after LJP chief Ramvilas Paswan asserted that the Nitish Kumar government would fall within two to three months and mid-term assembly polls would be held in October-November this year.

      "Nitish Kumar government will not last long," Paswan said had said on Friday after results of general elections were announced.

      "Nitish Kumar should resign soon on moral grounds after the major debacle of his party in the polls," LJP parliamentary board chairman Chirag Paswan had told mediapersons.

      The CM's resignation was on the cards since the reports of his party's near washout started pouring in on Friday. Nitish had remained inside his official residence throughout Friday and in the evening posted a one line post on Facebook: "I respect the people's verdict."

      BJP leaders who were in highly upbeat mood over the unexpected victory had started demanding CM's resignation. Senior BJP leader Sushil Modi had said Nitish should quit on moral grounds.

      प्रगतिशीलता और वाम को केवल साम्प्रदायिकता विरोध पर केन्द्रित या फिर रिड्यूस करने के फायदे अपने हैं तो ख़तरे अपने. फायदा यह कि बुर्जुआ पूँजीवादी पार्टियाँ इसे अपने अनुकूल पाती हैं.

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      By Ashok Kumar Pandey
      प्रगतिशीलता और वाम को केवल साम्प्रदायिकता विरोध पर केन्द्रित या फिर रिड्यूस करने के फायदे अपने हैं तो ख़तरे अपने. फायदा यह कि बुर्जुआ पूँजीवादी पार्टियाँ इसे अपने अनुकूल पाती हैं. जैसे कांग्रेस और सपा सरकारें इस तरह की सांस्कृतिक गतिविधि को अपने मनोनुकूल पाती हैं. इसीलिए अपनी कोई सांस्कृतिक विंग न होने के कारण वाम के नाम पर बनी इस तरह की सांस्कृतिक इकाइयों को संरक्षण और सुविधा देती हैं. आजादी के बाद से लगातार यह हुआ है. परिणाम यह कि कम से कम साहित्य में साम्प्रदायिकता विमर्श लगातार बढ़ता गया और आर्थिक सवाल या तो पीछे छूट गया या फिर अमूर्त कविताओं में ग़रीब के लिए एक कोरी भावुकता तक सिमटता चला गया. साम्प्रदायिकता को लेकर भी विमर्श केवल गांधीवादी सर्वधर्म समभाव तक और फिर अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों पर भावुक उच्छवासों तक सिमटता गया. कुछ अपढ़-कुपढ़ और होशियार लोग और आगे बढ़े तो अल्पसंख्यक समर्थन तक पहुंचें और यह समर्थन अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता के समर्थन में, उन्हें बेचारे विक्टिम में तब्दील कर देने तक पहुँचा. जब बनारस में हमारे आप समर्थक और कांग्रेस समर्थक मुसलामानों के वोट पर बहस कर रहे थे तो मैंने एक स्टेट्स लगाया था. उस समय जो नहीं लिखा वह यह कि क्या यह उसी गति से हिन्दू ध्रुवीकरण में मददगार नहीं? 

      इनको वास्तव में एक करने वाली जो ताक़त हो सकती थी/है वह नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का दुष्प्रभाव जो सभी धर्मों, जातियों और राष्ट्रीयताओं को समान रूप से प्रभावित करती है. लेकिन यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको कांग्रेस, सपा, बसपा और कई बार कम्युनिस्ट पार्टियों की भी निर्मम आलोचना करनी पड़ेगी. जब मैंने गुजरात माडल पर लिखा था तो इसीलिए जानबूझ के खुद को सिर्फ आर्थिक सवाल पर केन्द्रित किया था. 

      आज मुझे लगता है कि हम आर्थिक सवाल को जितना अधिक एड्रेस करेंगे उतना ही अधिक वंचित जनता को गोलबंद कर सकेंगे और साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ भी जंग तेज़ कर सकेंगे. ध्रुवीकरण टूटेगा तो एकता बढ़ेगी.

      आदरणीय येचुरी जी/करात साहब/बर्धन जी/एक्स-वाई-ज़ेड जी, -

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      Palash Biswas इस दो कौड़ी के लेखक के स‌ाथ मैं भी हूं।मैं अपने ब्लागों में इस पत्र को टांग रहा हूं स‌हमति और स‌मर्थन के स‌ाथ।जो स‌हमत हैं वे ्पने ्पने दीवाल पर टांग दें।अंधोंको लालटेन दिखाना मुश्किल है।फिर भी रोशनी में गजब की ताकत होती है क्या पता कि मौकापरस्त जमात की दृष्टि भी लौट आयें।

      आदरणीय येचुरी जी/करात साहब/बर्धन जी/एक्स-वाई-ज़ेड जी, 
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      यह हार नहीं रिजेक्शन है आपका और दुखद यह कि आप अब भी इससे कुछ सीखने की जगह सिखाने और आंगन टेढ़ा होने की बात कर रहे हैं. सीधी बात यह है कि आपके एजेंडे पर क्रान्ति नाम की कोई चीज़ तो खैर वर्षों से नहीं है. एक ढीली ढाली सामाजिक जनवादी पार्टी के रूप में आप लोग वर्षों से साम्प्रदायिकता पर एक वायवीय सी लड़ाई परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से सपा-कांग्रेस जैसी भ्रष्ट पूंजीवादी पार्टियों की रहनुमाई में खेल रहे हैं और इधर उधर करके राज्यसभा के लिए जुगाड़ बनाते हुए अपने प्रोफेसरों तथा कुछेक और लोगों के लिए जोड़-जुगाड़-फेलोशिप-पुरस्कार-विदेश यात्रा जैसी चीजों के लिए जुटा रहे हैं. अब तो वह भी मुश्किल हो गया. तो ये जहाज के पंक्षी पुनि जहाज पर आने की जगह दूसरी जहाज़ पर बैठना शायद बेहतर समझें. 
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      मुझे उम्मीद कभी नहीं थी आपसे. जब उम्र सोचने समझने की हुई तो आप अपने अंत के शिलालेख लिख रहे थे, हाँ खिलाफ़ नंदीग्राम के समय लिखा लेकिन अक्सर अवायड करता रहा कि लगा कुल मिलाके नुक्सान सेकुलर ताक़तों का ही होगा. अब फिलहाल जितना नुकसान हो चुका है, उससे ज़्यादा क्या होगा?
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      संभव है आपके लिए कि ईमानदारी से भारत जैसे देश में अपनी अवस्थिति का आकलन करते हुए खुद को एक फैसलाकुन जंग में झोंक दें? यह लोकतंत्र की ख़ूबी ही जानिये कि दो सीट पाने वाली पार्टी पूर्ण बहुमत भी पा सकती है तो इस ख़ूबी का फ़ायदा आप भी उठा सकते हैं लगभग कांग्रेसहीन विपक्ष के दौर में. कर पायें तो करिए वरना कम से कम अपनी पार्टियों से कम्युनिस्ट नाम हटा दीजिये. सर्टिफिकेट नहीं दे रहा...आपके लोग गालियाँ दे तो वैसे ही सुन लूंगा जैसे संघियों की आज सुन ले रहा हूँ. 
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      एक दो कौड़ी का लेखक

      हत्यारे को अब हत्यारा मत कहना क्योंकि भीड़ ने उसकी जय जय कर दी है इसलिए हत्यारे ने खुद को न्यायप्रिय शासक मान लिया है. ऐसे में अगर हत्यारे को हत्यारा कहा तो न्यायप्रिय शासक तुम्हारी हत्या कराके 'न्याय'के अपने अभियान को आगे बढ़ाना जारी रखेगा... और जनता थपोरी पीटेगी...

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      कृपया इस पाती को हर कहीं टांग दें,ताकि स‌नद रहे।अपने ब्लागों में मैं टांग रहा हूं।हमें ऎसे दिलेर भड़ासियों की स‌ख्त जरुरत है और और
      Yashwant Singh
      5 hrs · 
      हत्यारे को अब हत्यारा मत कहना क्योंकि भीड़ ने उसकी जय जय कर दी है इसलिए हत्यारे ने खुद को न्यायप्रिय शासक मान लिया है. ऐसे में अगर हत्यारे को हत्यारा कहा तो न्यायप्रिय शासक तुम्हारी हत्या कराके 'न्याय' के अपने अभियान को आगे बढ़ाना जारी रखेगा... और जनता थपोरी पीटेगी...

      SENSEX RISES 1470 PTS, BUT FALLS 1200 ON PROFIT-BOOKING Cheery D-St Expects a Wave of NaMo Inflows

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      SENSEX RISES 1470 PTS, BUT FALLS 1200 ON PROFIT-BOOKING Cheery D-St Expects a Wave of NaMo Inflows
      
      
      Investors drove benchmark indices to new highs as the Sensex rose above 25,000 mark for the first time with BJP winning a thumping victory that saw it gain a majority on its own, which means it won't be held hostage to demands of coalition allies and can push forward with a reform agenda that should set the stage for economic revival.

      Languishing in the wilder ness after a shock defeat in 2004, BJP stormed back to power on Monday , winning 282 out of 543 elected seats in the Lok Sabha.
      The BJP-led NDA had won 333 seats till late on Friday and will form the government in the next few days. It's the first time in 30 years that one party has got a majority on its own. Investors, relishing the prospect of a strong government, sent the Nifty to over 7,200. The BJP has the numbers to form the government on its own but the party is expected to rope in its pre-poll allies in a coalition. The Sensex rose 4.9% over the week to a record of 24,121.74 on Friday while the Nifty jumped 5.2% to 7,203. The indices have been among the best performers in emerging markets, rising 13.94% and 14.26%, respectively .

      "Change is indeed sweeping the country ," said Motilal Oswal, chairman of Motilal Oswal Financial Services. "In my view this is the best time to invest in equities for the medium to long term. A portfolio mix of growth and cyclical stocks would yield far bigger returns than debt or for that matter any other asset class."

      Indian stocks have outperformed most emerging market indices so far this year on hopes that elections and a new government headed by BJP's Narendra Modi will end policy uncertainty and revive investment. But the results exceeded expectations and most exit poll projections. Given the margin, the chances of a decisive, reform-oriented government has increased manifold, investors believe.

      "The current bull market to continue with some correction in next few days," said Nirmal Jain, chairman of India Infoline. "Sensex to touch 30,000 by year-end. Though some of the sectors are expensive, many of them including cyclicals, banking, industrial and consumer discretions are way off from their peak and these are the sectors to rally going forward."

      Some of the biggest gainers on Friday include JP Power, up 8.19% to Rs 18.22, Axis Bank, up 7.9% to Rs 1,795. All sectors, except three ended in the green with the BSE Bankex rising 4.39% and the BSE Realty index gaining 5.97%. The consumer goods index fell 1.85% and the IT index slipped 2.22% while the healthcare index fell 1.39%.Sesa Sterlite was the biggest gainer on the Nifty , rising 11.05% on hopes that the new government will push for the lifting of the ban on iron ore mining in force in many parts of the country. Punjab National Bank rose 8.16% to Rs 924.95 on hopes that a Modi-led government will find a way to resolve the bad assets on bank balance sheets. Bharat Petroleum rose 6.85% while DLF rose 6.50% to Rs 170.35. State Bank gained 5.95% to Rs 2,414 while ICICI Bank gained 5.38% to Rs 1,470.15.

      India has been ruled by a series of coalition governments since 1989, with the single largest party dependent on allies for majority and thereby being held hostage to them.
      That era has come to an end.

      "It is interesting that we have such a clear mandate after 30 years," said Rashesh Shah, chairman and CEO, Edelweiss Group. "This is good news for economic growth. We needed a clear verdict to get the economy back on track."

      Rating agency S&P said on Friday that it expects the new government's reform initiatives in economic and fiscal policies in the next two to three months may have significant implications on the sovereign credit rating on India's rating.

      "In our view, NDA's strong showing indicates that it will have a reasonably good political platform to tackle structural issues," it said.

      "What the next government says and does in the coming months is crucial to boosting confidence in the policy settings and the economy ," said Standard & Poor's credit analyst Takahira Ogawa. "If confidence rises, investment and consumption in India could strengthen, after being held back by the uncertainty surrounding the election." Deutsche Bank increased the target for the Sensex to 28,000 for the year-end while Macquarie set a target of 8,200 for the Nifty from 7200. "We draw an analogy with the Japanese market which moved up 80% in six months in anticipation of refor ms ­ in this regard, Modinomics is matching the Abenomics euphoria," said Rakesh Arora, Macquarie Capital in a report titled Eye on India.



      
      

      Modi to be the Only Sarkar in New Govt

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      Modi to be the Only Sarkar in New Govt
      NEW DELHI
      OUR BUREAU
      
      

      Scale of verdict means Modi now has free hand

      Who's going to be in a Modi sarkar has been a matter of furious media speculation aided by many off-record briefings from BJP leaders. After the emphatic verdict for Modi, no one in BJP or even RSS is willing to speculate.

      A Modi sarkar will be decided entirely by Modi, that's the line from the party and the parivar. Modi, a senior RSS leader said, should choose the party president as well, should Rajnath Singh move to the Cabinet.

      A meeting on Saturday between BJP and RSS brass may decide the main contours of the Modi council of ministers, a senior BJP leader said. "But all the main calls will be his," this leader said. The NDA government is expected to take oath on May 21. "We will know about ministries then," another BJP leader said. Whether Arun Jaitley's defeat in Amritsar would be an impediment in his being brought into the Cabinet was also a question that Modi alone can answer, BJP leaders said. "If he wants Jaitley, who will stop him," this leader said.
      However, all BJP leaders were unanimous that after this mandate, leaders known to have opposed Modi at various fora and in various ways will simply have to accept the PM-to-be's decisions.
      "Whether Advani or Joshi will get anything...who knows," a BJP lead er quoted earlier said. "And Sushma Swaraj will have to accept what Modi of fers her".

      " M o d i p l ay s h i s cards close to his chest...there's no way to say what he has got planned," another BJP leader said.
      There has been speculation that a Modi gover nment will have a smaller cabinet and invite a few technocrats to serve under politician-cabinet ministers. There's also been speculation about portfolios for Rajnath Singh, Jaitley and Swaraj.
      But with the scale of the vote for Modi, only Modi will ultimately determine how a Modi sarkar will look like.



      Modi's Magical Brandobast

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      Modi's Magical Brandobast
      PRITHA MITRA DASGUPTA & RAVI TEJA SHARMA
      NEW DELHI
      
      

      CAMPAIGN OF THE YEAR From traditional nukkad sabhas and street plays to well-planned branded rallies, high-tech 3D rallies to Bollywood-style anthems and jingles, Team Modi left no stone unturned to reach out to every nook and corner of India

      Voters queued up at a polling booth in Maharashtra last month were taken aback when an elderly lady hunched over a voting machine and asked aloud, "What the hell! There is no Modi on this damn machine." A bout of laughter followed a moment of stunned silence. She was explained why her hero's mug was missing from the machine and she cast her vote and the line ambled on.

      Sixty-year-old Amlaben had no idea of who the local BJP candidate was. She had walked a kilometre only to vote for Narendra Modi, the BJP's prime ministerial candidate.
      She had watched him on TV , heard his speeches, attended one rally in a nearby village and was bombarded with TV and radio jingles featuring him. Thanks to this deluge of messaging, Amlaben didn't realise that she had to actually vote for the BJP's local candidate while she searched in vain for Modi's face on the EVM.

      And Amlaben isn't alone. Millions of voters across the country have voted for Modi irrespective of who their local candidates were, a fact that is now proven by the scale of the BJP's victory on Friday .

      "The marketing of brand Modi during this election has been quite remarkable--a never seen before effort in Indian history , not just in the realm of product marketing, but any form of marketing. It has been him, him and just him," says branding expert and social commentator Santosh Desai.

      The effort was sweeping, sharp and smart. From traditional nukkad sabhas and street plays to well-planned branded rallies, high-tech 3D rallies to Bollywood-style anthems and jingles and not to speak of the lakhs of in-your-face illuminated hoardings and newspaper adver tisements, Team Modi left no stone unturned to reach out to every nook and corner of India. By the end of a six month campaign, the team had covered most of its six lakh villages, almost every urban and semi urban household, every TV set, radio and cellphone and even the Internet.

      "The trick worked. They wanted to make Modi the centre-piece of the election. He was an effective alternative to an ineffective Manmohan Singh, he was a smarter alternative to Rahul Gandhi, a more reliable alternative to Arvind Kejriwal and a stronger alternative to his own colt leagues in the BJP . He was projected as Shiva, Durga... everything, leaving the voter no choice but him. The t voter had to decide whether to vote l for him and not. The others in the ( fray were irrelevant," saysAbraham Koshy , professor of marketing at the Indian Institute of Management, Ahmedabad.

      The media bombardment was complemented by an equally effective direct marketing strategy aimed at rural areas. In the middle of March, as many 650 Raths built on one-tonne mini-trucks made 138,900 trips into the interior villages of Uttar Pradesh and Bihar, the two most populous and poor states of the country .
      Every village chaupal and nukkad was targeted with a 32-minute message, tailored for a specific audience.
      While in urban areas, the projection was that of a pro-growth reformist leader, in the hinterland Modi was projected as the antidote to rising inflation, corruption and joblessness. Tales about Gujarat's so called economic miracle were told in local dialects. Sometimes, Modi emerged in 3D form.

      "The last mile contact, the doorto-door campaigning, the leg work and social-connect worked," says Dharmendra Pradhan, BJP's campaign manager in Bihar and a key member of the team that executed the plan conceived by Modi's key aide Amit Shah.

      Around the same time, the doorto-door part of the campaign was led by the 'Loha Sangrah Abhiyan' (Iron Collection Campaign for the Sardar Patel statue being planned in Gujarat) and the 'Ek Note, Kamal Par Vote' campaign.

      The 360 degree marketing effort for brand Modi targeted the hinterland and some 12 crore first-time voters (of the total 82 crore voters) with equal alacrity, devising different plans to reach out to them. The young and urban voters were spoken to in a language they understood best and by young, digitally savvy volunteers who leveraged the world of TV, radio and social media websites such as Facebook and Twitter.

      "It was one of the most technologyaided campaigns in recent years.

      It was more tech-savvy than tech brands themselves," says branding expert Harish Bijoor.

      Twitter was abuzz with Modi supporters and trolls alike, and millions of voters received personalised direct messages from Modi's official handle. Nearly 11 million electionrelated tweets between January 1 and May 12, had a mention of Modi, says Raheel Khursh ee d, head of news, politics and government at Twitter India.

      Modi stole the march over others because he started his campaign almost 18 months ago, even before

      he was anointed the PM candidate by his party. Back then it had three motives—to showcase Modi as the 'super achiever' CM of Gujarat, to do internal branding within the BJP to become the party's consensus PM candidate and finally to be the PM candidate of choice among voters.

      The Modi brand building effort started in February 2013 when he met students of the Shri Ram College of Commerce (SRCC) in Delhi and wooed them with his development talk. This was followed by a similar meeting with students of Pune's Fergusson College some four months later.

      The campaign had three layers,

      one controlled by Modi himself through his team of volunteers, the second by party leaders who organised meetings and interactions with small groups and the third by party workers and RSS pracharaks on the ground who were in-charge of lastmile messaging.

      The decision to have Modi as the centre of the campaign was a conscious one, says one senior BJP official. At the end of last year, the publicity committee of BJP saw that different surveys done by media houses showed Modi's popularity, at 55%, was much higher than that of the party. "It made complete strategic sense," he says.

      Using Twitter to Create a Buzz Millions of voters received personalised direct messages from Modi's official Twitter handle. Nearly 11 million election-related tweets between January 1 and May 12 had a mention of Modi
















      
      

      How BJP Cracked Uttar Pradesh How did BJP go from 10 to 71? What did Amit Shah do? What were his crucial strategies? How did caste barriers break down in front of a Modi wave? ET exclusive Shah himself told ET that he had decided to keep his ego aside while working on the UP gameplan.

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      Story of 71 Out of 80
      ROHINI SINGH
      
      

      How BJP Cracked Uttar Pradesh How did BJP go from 10 to 71? What did Amit Shah do? What were his crucial strategies?
      How did caste barriers break down in front of a Modi wave? ET exclusive Shah himself told ET that he had decided to keep his ego aside while working on the UP gameplan.

      Uttar Pradesh formed the fulcrum of the BJP's astonishing win with the party winning an eye popping 71 seats, more than the UPA's overall tally and much higher than the previous peak of 57 seats in the 1998 elections.

      In a possible indication of the growing stature of the man widely seen as the architect of that victory , Amit Shah, 49, was front and centre of the celebrations at party headquarters and was seated next to party President Rajnath Singh at the post-results press conference.

      Despite the sweeping victory, the results were not inevitable, said Shah and others who worked with him. "There was a huge Modi wave in the country but there were some factors that could have limited the impact of the wave in UP­the state is influenced by caste, there are dark zones meaning areas where neither television nor newspapers are read or seen, it was difficult convincing locals to vote for the BJP even if they sympathised with us since most problems of water and electricity are handled by the state government," Shah told ET.

      UP, with its 80 seats, along with neighbouring Bihar, was critical.
      But Shah inherited an almost comatose organisation. "We were not in power in UP for 17 years unlike Bihar," said Shah.

      Another party leader pointed out that there was neither a strong state leadership or a credible local face, unlike Bihar which had Sushil Modi and other strong state-level leaders. Further, almost 42% of the voters comprising Dalits, Yadavs and Muslims tend not to be natural BJP voters. "Our catchment area was only 58% and our vote share had been declining over the years," said Shah.

      In 1998, the BJP had got almost 36% of votes which fell by nearly 9% the following year. In 2004, it got 22% of votes, 17% in 2009 and only 15% in the 2012 assembly elections. Also the party had not contested panchayat or coopera tive elections in the state in nearly two decades and had little to no contact with influential people at the gram pradhan level. After taking charge, Shah decided BJP would have to contest elections at the local level.

      "Even at the district and state

      level, Samajwadi Party and Bahujan Samajwadi Party leaders were more popular and powerful than us," said a close aide of Shah.

      To counter these unpromising initial conditions, a detailed, corporate style plan to maximise the number of seats for the BJP was

      drafted by Shah.

      "In UP, you can't have one homogeneous campaign. It is almost as if seven different states make up Uttar Pradesh. So our strategy had essentially four layers–one at the level of the seat, at the level of clusters, at the level of zones and then at the state

      level," said an aide of Shah.

      Shah divided the seats into 21 clusters comprising of three to five seats each and devised distinctive strategies for these clusters.

      Above the clusters, there were eight zones.

      To reach out to the maximum people in a short time, the party conducted programmes in 13,000 college campuses to register volunteers. "We had 800 full-time volunteers below the age of 30… largely fresh recruits," said the aide quoted earlier.

      More than 450 GPS-installed 'Modi' vans with campaign material and a 16-minute video were dispatched to the so-called dark zone in the state--areas that do not have access to any form of media.

      Shah met initial resistance from state-level leaders. "People would meet him and say you are an outsider and what do you know about the state. He would say, nothing but you can teach me. Being an outsider helped him take decisions objectively and in the best interest of the party," said a leader who has worked with Shah.

      Minor but symbolic changes introduced by Shah include encouraging veteran leaders to access the Internet and changing a hierarchical classroom style seating to a more democratic roundtable style.

      Shah himself told ET that he had decided to keep his ego aside while working on the UP gameplan. "Ego matters when both have it," Shah said. Shortly after taking charge, Shah conducted daylong meetings in groups with the party's MLA and MP candidates who had lost elections previously to know the reasons for their defeat. "It's more important to know why we lost elections," said a close aide of Shah.

      That helped him strengthen systems, whether it was distribution of resources or planning rallies.

      To build crowd strength for Modi's rallies, it was decided these should draw people from a radius of 175 km. Also, one Bolero that could ferry 10 people per booth was the target set by Shah. There are a little over 1 lakh booths in UP. This helped in gathering large crowds that helped consolidate media perceptions of a Modi wave.

      "Every rally, be it of Modiji or other leaders was planned systematically. For every Modi rally, we ensured that three assembly segments were covered. Similarly, other leaders were sent to areas where we weren't very strong," said the leader quoted earlier.

      After every public meeting or a Modi rally, feedback was solicited and the number of attendees was cross checked given the tendency of party workers to exaggerate.
      The cross checking was done through a call centre that was set up at the party's headquarters in Lucknow. "Verifying details was necessary to get an accurate assessment of ground reality so that we could fine tune our campaign along the way," said Shah who spent almost every day, except for a week or so, in the state after elections were announced.

      Shah carried out extensive due diligence on every candidate before finalizing names and was ruthless during ticket distribution. The crite ria was simple -deny tickets to those who had contested but never won elections since lack of success was evidence of their unpopu larity and give tickets to those who belonged to the constitu ency as they would be approachable.

      Social engineering or equations were also taken into account. The party, therefore, gave the largest chunk, 28 out of 80 tickets to OBC candidates, 19 to Brahmins and 17 to Thakurs. Tickets were also given to representatives of backward communities such as Nishad, Bind and Khushwaha who don't dominate a particular constituency but are present in large numbers along the Ganges to help consolidate votes across constituencies.

      Shah is now planning a document that will act as a template as the party expands its base in states where it is yet to make mark, particularly in east and south India.





      
      

      Modi Wave Uproots BSP, SP

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      Modi Wave Uproots BSP, SP
      MAN MOHAN RAI
      LUCKNOW
      
      

      ON THE BACKFOOT SP has though emerged as the preferred choice of the Muslim in most places but squandered away its hold on Other Backward Caste and a section of Extremely Backward Caste in the country's largest state Modi-Amit Shah Magic Works in All Corners of UP BJP's Tie-Up with Kurmi outfit Apna Dal also works in the state for both the partners BJP has swept the state, leaving space only in those places where Gandhis and Mulayam's clan were contesting

      The BSP and SP may have been contemplating a drub bing at the hands of the BJP in the current election, but the results have shown a complete decimation of the BSP with the SP only managing to clutch a few straws in the wind. For decades the SP and BSP had carved out the state between themselves, but the Narendra Modi-Amit Shah gameplan has completely changed the arithmetic, for now, an in all likelihood in the assembly polls only two years from now.

      The BJP has swept all corners of the state leaving space only in those places where members of the Gandhi and Mulayam Singh Yadav clan were contesting.

      Modi's subtle positioning of his OBC credentials in the run up to the Lok Sabah polls, which became a full blown projection after Priyanka Gandhi called him a practitioner of "neechi rajneeti" which was lapped up by Modi to potray an assault on his "neechi jaati" has worked for the party and made deep inroads into the backward caste votebank of Mulayam Singh Yadav. While the SP seems to have managed to secure large number of Muslim votes, it could not hold back the non-Yadav OBC's especially the numerically strong Kurmis, Lodhs, Gujjars etc. The lone tie up that the BJP had with the Kurmi outfit Apna Dal has not only provided the much needed last minute fillip to the BJP, but also helped its two candidates Anupriya Patel and Harbans Singh sail through to Parliament.

      Mulayam and Akhilesh Yadav, may have also seen some of the their Yadav's votes shifting to wherever the BJP put up a strong Yadav, like in Azamgarh where Mu layam himself won by a n o n i m p r e s s i v e margin despite the seat being dominated by Yadavs and Muslims. The S P h a s t hou g h emerge d a s t he pr efer e d choic e of the Muslim in most places but squandered away its hold on OBC's and a section of EBC's in the "Modi wave". Yadav's attempt to consolidate EBCs like Bind, Prajapati, Kashyap have failed and shifted to the BJP, which as per Shah's strategy has been wooing them through the larger Hindutava narrative. IT'S LOST PLOT FOR BIG ONES ARUN JAITLEY, BJP LOSES BY NEARLY 1 LAKH VOTES The senior Bhartiya Janta Party leader Arun Jaitley lost the most talked-about Amritsar Lok Sabha seat to former Punjab chief minister and Congress candidate Amarinder Singh by nearly a lakh votes. This seat became one of the most-talked poll battles between the two national parties after the ruling party fielded Singh. KAPIL SIBAL, CONGRESS COMES 3RD IN CHANDNI CHOWK Union minister Kapil Sibal lost the Chandni Chowk seat by a margin of 1 lakh votes to BJP's Harsh Vardhan. He finished third behind AAP candidate and journalist-turned-politician, Ashutosh. Accepting defeat he tweeted "Congratulations @drharshvardhan on an impressive victory! A big thank you to my party workers. SUSHILKUMAR SHINDE, CONG GETS JUST 3.6 LAKH VOTES Home Minister Sushilkumar Shinde is one of the many Union ministers who lost the elections. He managed to get about 3.6 lakh votes against 5.2 lakh votes Sharad Bansode of BJP secured in Solapur, Maharashtra. Solapur was consdered to be a safe seat for the Congress because of Shinde's votecatching appeal.












      Ambani, Adani lead group Gainers   FIIs were not the only gainers of last week's rally. The market cap of several Indian groups rose sharply with the Tatas, Mukesh Ambani's Reliance and the Adani group among the leading gainers. With many investors predicting a bull market, the figure is only likely to rise

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      May 17 2014 : The Economic Times (Kolkata)
      Ambani, Adani lead group Gainers
      
      
      FIIs were not the only gainers of last week's rally. The market cap of several Indian groups rose sharply with the Tatas, Mukesh Ambani's Reliance and the Adani group among the leading gainers. With many investors predicting a bull market, the figure is only likely to rise


      
      

      রাম রাজত্বে জোড়া অন্তর্জলি যাত্রা,বামপন্থা এবং বহুজন রাজনীতির!জেতার পরেও বিপদে দিদি!

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      রাম রাজত্বে জোড়া অন্তর্জলি যাত্রা,বামপন্থা

      এবং বহুজন রাজনীতির!জেতার পরেও বিপদে দিদি!


      পলাশ বিশ্বাস


      কংগ্রেসকে দেশ প্রত্যাখ্যান করেছে,এর চাইতে শুভ আর কিছু হয়নি বহুদিন

      বামেরা ধর্মনিরপেক্ষতার নামে,এবং প্রবল বামবিরোধী মমতা ব্যানার্জিও ধর্মনিরপেক্ষতার দোহাই দিয়ে কংগ্রেস সমর্থনের জোরে তৃতীয় ফ্রন্টের তোড়জোড় করে মধ্যাবধি নির্বাচনে আবার কংগ্রেসকে ফিরিয়ে আনার ফন্দি আঁটছিলেন,তা বানচান হল,দেশের ও জনগণের পক্ষে সবচাইতে বড় সুখবর


      কিন্তু বাম ও বহুজন রাজনীতির দাযবদ্ধতার অভাবে,তাঁদের জাতপাত ধর্মের রাজনীতিকে ক্যাশ করে তাদের অপ্রত্যক্ষ মদতে বা তাঁদের দৃষ্টিহীনতার কারণে অভূতপূর্ব মেরুকরণে দেশ দখল করল কল্কি অবতার ও রাম রাজত্ব স্থাপিত হযে মনুস্মৃতি শাষনে হিন্দূ রাষ্ট্রের জয় জয়কার,আসলে অশণি সংকেত ইহাই


      শুধু ভারতীয় বহিস্কৃত বহুসংখ্য জনগণের জন্যই নয়,শুধু বর্ণবৈষম্যের শিকার অস্পৃশ্য ভারতীয় অর্ধেক ভূগলের জন্যই নয়,বাংলাদেশেও পাকিস্তানে এবং পৃথীবীর অন্যান্য দেশে বসবাসকারি হিন্দু সংখ্যালঘুদের জন্য এবং সেই সমস্ত দেশে বাস্তবিক ধর্মনিরপেক্ষ আন্দোলনের জন্য সবচেয়ে বড় ক্ষতি এই মীডিয়া করপোরেট মেরুকরণ জনাদেশ


      কিন্তু  কোনো মুল্যে কংগ্রেস প্রত্যাবর্তন প্রত্যাশিত নয়,ভারত ভাগে পার্টিশানের বলে কোটি কোটি মানুষের জীবন জীবিকা নাগরিকত্বের মুল্যে প্রতক্ষ্য অপ্রত্যক্ষ ক্ষমতা দখল করতে অভ্যস্ত বিশ্বব্যান্কীয় কংগ্রেসের


      বিকল্পহীনতার ফসল এই মেরুকরণ

      বাম ও বহুজন রাজনীতির পরস্পরবিরোধী মনোভাব ও সর্বস্বহারা ভারতীয় জনতার প্রতি তাঁদের দায়বদ্ধতার অভাবই এই বিকল্পহীনতার কারণ


      সারা ভারতের ক্ষমতা দখল করা হিন্দুত্ব মরুকরণের বিরুদ্ধে আইডেন্টিটি ও সাম্প্রাদায়িকতার ঝড় তুলে অসম্ভব,আবার প্রমাণ হল।


      প্রেসিডেন্সিয়্যাল শৈলির নির্বাচনী প্রচারে সংঘ পরিবার যাবতীয় জ্বলন্ত ইস্যুক মার্জিনে ঠেলে মোদীপক্ষ বনাম মোদী বিপক্ষ যেমেরুকরণ করতে সমর্থ হল,ধর্মনিরপেক্ষতার জিগির তুলে সেই ফাঁদে পা দিয়ে কংগ্রেস,বাম,বহুজন সব পক্ষই জনগণের কোনো সমস্যাই নির্বাচনী ইস্যু করতে পারেনি,তাই চতুর্দিকে এই পদ্ম বাহার।



      1984 সালেও সংঘ পরিবার জনাদেশ তৈরি করতে লীড করেছিল হিন্দূ স্বার্থ রক্ষার কংগ্রেস সমর্থক ফতোয়া দিয়ে,শেষ যেবার একক সংখ্যাগরিষ্ঠ দল ক্ষমতা দখল করতে পেরেছিল,কিন্তু তখনও বাংলা,কেরল ও ত্রিপুরা ছাড়াও সারা দেশে বাম আন্দোলন ছিল,বাম সগঠন ছিল


      তারপর একের পর এক সৌদাবাজি করে বাংলায় ক্ষমতা দখলের বৈপ্লবিক তাকীদে জাতপাতের রাজনীতির ভরসায়,মুসলিম সাম্প্রদায়িকতাকে লগ্নি করে বামেরা পরের পর জমি হারাতে থাকে


      থেমে যায় ভূমি সংস্কার

      অন্যদিকে কাশীরাম এসটি,ওবিসি,এসসি ও মািনোরিটি সমন্বয়ে পচাশি প্রতিশতের ক্ষমতাদখলের রাজনীতি করছিলেন 1984 র পর পুরো দমে


      এবার কিন্তু একই সঙ্গে অসুর মহিষাসুর বধ সম্পন্ন হল রামরাজত্বে

      মন্ডল রাজনীতি শেষ

      শেষ বাম রাজনীতিও

      মাযাবতী উত্তর প্রদেশে একটি দুটি আসনে নয়,নয় নয় করে তেত্রিশটি আসনে দু নাম্বার,অথছ একটি সীটও পাননি

      মুছে গেছেন লালূ যাদব

      পরিবারের  বাইরে অ্যদের জেতাতে অক্ষম মুলায়ম

      ভোটব্যন্ক রাজনীতি সংঘের মাস্টারস্ট্রোকে শেষ

      এবার বাংলার মতোই সারা দেশে ওবিসি আর বহুজন রাজনীতিতে থাকছে না

      মোদীর প্রধানমন্ত্রিত্বে দেশের সবচেয়ে বড় জনগোষ্ঠি ওবিসির গৌরিকীকরণ সম্পন্ন,সংরক্ষণও শেষ

      যেমন গো বলয়ের নেতারা বোঝেননি,বলদ বুদ্ধিতে বামেরাও এই পরিণতি আঁছই করতে পারেননি



      নরেন্দ্র দামোদর মোদীর ধর্ম কর্ম ধর্মনিরপেক্ষ রাজনীতিকে গো হারা হারিয়ে দিয়ে একযোগে রামরাজত্বে বাম ও বহুজন রাজনীতির অন্তর্জলি যাত্রার ব্যবস্থা করে দিয়েছেন


      শপথ নেওয়ার আগে নির্বাচনী মেরুকরণ আরও এক ধাপ এগিয়ে নিয়ে গেলেন ওবিসি চায়ওয়ালা সংঘ পরিবার এই নির্বাচনে বাংলার বৈজ্ঞানিক পদ্ধতি ধার করে বহুজন আন্দোলনের বাইরে ওবিসিকে নিয়ে এসে জাতপাতের মন্ডল রাজনীতি শেষ করে দিয়েছেন


      উত্তর প্রদেশে ও বিহারে বামপন্থীরা আশা করেচিলেন মায়া,লালূ ও মুলায়ম রামযাত্রা ভঙ্গ করে দেবেন


      সেই হিসাব কষে তৃতীয় ফ্রন্টের তোড় জোড় চলল ভোট গণনার আগের সন্ধ্যা পর্যন্ত,যখন কংগ্রেস তরফে ধর্মনিরপেক্ষ প্রধানমন্ত্রিত্বের টোপ দেওয়া হল বাংলার অগ্নিকন্যাকে


      সংঘ মাস্টার স্ট্রোক বুঝতে পথে হল দেরী


      বাংলায় শ্রীরামপুরে মোদী অনুপ্রবেশকারি বাংলাদেশি হটাও বলে যখন রণহুন্কার দিলেন,দিদিকে টাপে রেখে গুপচুপ সমঝৌতা ওয়াস্তে তড়ি ঘড়ি সিবিআই ভরষায় ধর্মনিরপেক্ষ বামেরা কোনো আক্রমণ মোদিকে করলেন না এই ভেবে যে চতুর্মুখি ভোট কাটাকাটিতে লাভের গুড় তাঁদেরই


      অথচ মমতা যুদ্ধ ঘোষমা করলেন মোদীর বিরুদ্ধে

      পাল্টা মোদী শরণার্থী ও মতুয়া কার্ড খেললেন


      কংগ্রেস যে চারটি সিট জিতেছে,তাঁদের কেরামতি থাকলেও,এই মেরুকরণ প্রথম ও দ্বিতীয় দফায হলে বাংলায় তৃণমুল খাতায় চলে যেত সমস্ত মুসলিম ভোট,যা তৃতীয,চতুর্থ ও পন্চম দফার হাল হকীকত


      কংগ্রেস তৃণমুল কংগ্রেস বোঝাপড়া বাম নেতৃত্ব বুঝতে পারেনি, যখন নির্বাচনকমিশন কেন্দ্রীয় বাহিনীকে বাস্তবে দাঁড় করিয়ে তিন দফায বহু কেন্দ্রে সহিংস একতরফা ছাপ্পা করল



      ধর্ম কর্মর সংঘ নিয়ন্ত্রিত বহার লক্ষ্য করুন,শনিবার দিল্লিতে বিজেপির সংসদীয় বোর্ডের বৈঠকে যোগ দেন নরেন্দ্র মোদী। তাঁকে স্বাগত জানাতে বর্ণাঢ্য রোড শো-এর আয়োজন করা হয়। বৈঠক শেষে বারাণসীর পথে নমো। সেখানে গঙ্গা তীরে বিশেষ প্রার্থনায় যোগ দেন।


      সবে নীতীশ কুমার ইস্তীফা দিয়েছেন,রাজ্যে রাজ্যে পদ্মফসল,বিধানসভা নির্বাচনে আরও স্থাই বন্দোবস্ত করতে এই রামযাত্রা জারি রাখবেন মোদী।


      2016 র বিধানসভা নির্বাচনে আরও বড় শক্তি হয়ে দিদির রাজত্বেও থাবা বসাতে চলেছে গৌরিক শিবির।


      দিদিও অপরাজেযয় নন।

      34 টি লোকসভা আসন দেতার পরেও দিদির কেন্দের ভবানীপুরে বিজেপি প্রত্যাশী তথাগত রায়ের লীড,কোলকাতার দুটো আসনে বিজেপির 25 শতাংশের বেশি ভোট,তৃণমুলি জয়ের ব্যবাধান কমা আগামী বিধানসভা নির্বাচনের নূতন ও অভিনব বিচার্য বিষয়।




      আমি এবং আম্বেডকর আন্দোলনের বিশেষজ্ঞ,স্বয়ং বাবাসাহেবের নিকট আত্মীয় আনন্দ তেলতুম্বড়ে অনেক আগে থেকেই লিখে আসছি ধর্মনিরপেক্ষতা আসলে কোনো ইস্যু নয়,বরং এই ইস্যুতে যে মেরুকরণ হবে,তার ফলে আরএসএসের ক্ষমতা দখলের মুশকিল আসান হবে



      দেরিতে হলেও বাম বুদ্ধিজীবিরা এই সত্য উপলব্ধি করতে পারছেন

      তাঁরা এখন লিখতে শুরু করেছেন বস্তাপচা এই তত্ব দাঁড় করিয়ে বামপন্থীরা ক্রমাগত কংগ্রেসের জনসংহারি সংস্কার নীতির সমর্থন করে জনসমর্থন হারিয়েছেন এবং সারা দেশে বাম আন্দোলনের দফা রফা করতে যা যা করার করেছেন


      মায়াবতী,লালূ,মুলায়ম,নীতীশকে অবিরত সমর্থন দিয়ে সারা ভারতে পার্টির বারোটা বাজিয়েছেন


      মধ্যপ্রদেশের বামপন্থী বিশিষ্ট হিন্দী কবি অশোক কুমার পান্ডে ত রীতিমত খোলা চিঠি লিখেছেন প্রকাশ কারাট,সীতারাম ইয়েচুরি ও তাবত বামনেতাদের লিখে অভিযোগ দায়ের করেছেন যে ধর্মনিরপেক্ষতার নামে মুসলিম সাম্প্রদায়িকতা কে কোলে কাঁখে নিয়ে বাস্তব ধর্মনিরপেক্ষতাকে জলান্জলি দিয়ে 2014 র লোকসভা নির্বাচনে মেরুকরণ উত্কর্ষে জমির শেষ টুকরো ও হারিয়েছেন বামপন্থীরা






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      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!

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      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!

      पलाश विश्वास


      कांशीराम का फार्मूला पूरी तरह फेल हो गया।पचासी फीसद का समीकरण संघी छापामार हमले में ध्वस्त है।संघ परिवार ने ओबीसी मास्टरकार्ड से बहुजन आंदोलन को वामपंथियों के साथ साथ जमींदोज कर दिया है।


      जात पांत अस्मिता की राजनीति करने वाले सारे क्षत्रप धराशायी हो गये और उनका अबतक साथ निभाकर भारतभर में  कम्युनिस्ट विचारधारा और आंदोलन को फर्जी धर्मनिरपेक्षता से सत्तासुख हेतु खत्म करने के लिए हरसंभव जुगत लगाने वाले वामपंथी भी खेत रहे।


      ध्यान रहे कि केसरिया सुनामी के मुकाबले साबुत बचे नवीन पटनायक और ममता बनर्जी की राजनीति अस्मितावाचक नहीं है।


      नवीन कारपोरेटके लिए कारपोरेट दवारा कारपोरेट का राज चलाकर कायम हैं तो ममता वामविरोधी महाचंडिका हैं।


      दक्षिण में जयलिलता अन्नाद्रमुक के जरिये कोई पेरियार का आंदोलन नहीं चला रहीं है।


      तीनों जात पांत से ऊपर ओड़िया,बंगाली और तमिल राजनीति कर रहे हैं।अब संघ ही उनका इलाज करेगा।


      बंगाल में सामाजिक परिदृश्यमें बदलाव इसलिए असंभव है क्योंकि यहां अस्पृश्यता का रसायन अत्यंत वैज्ञानिक है।सत्तावर्ग में ब्राह्मणों के साझेदार कायस्थ और वैद्य हैं तो पिछड़ों की पूरी जमात सत्तावर्ग के साथ नत्थी है।


      बंगाल में दलितों,मुसलमानों और आदिवासियों की दुकानें अलग अलग हैं।बाकी देश में भी संघ परिवार ने ये ही हालात बना दिये हैं।यही राम राजत्व का आधार है।


      संख्या में भारी पिछड़े अगर किसी बदलाव में भाग नहीं लेते तो बदलाव हो नहीं सकता।पिछड़े अगर बदलाव की ठान लें तो बदलाव होकर रहेगा।


      विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रपट लागूकरके पिछड़ों को साधने का नाकाम अभियान चलाकर कुद ऱपेल होकर देश को नवउदारवादी महाविध्वंस के हवाले कर गये तो संघ परिवार ने कमंडल आंदोलन में पिछड़ों को ऐसे जोत लिया कि नतीजा सामने है।


      अब बहुजन सिर्फ नारा है,बहुजनों में पिछड़े हरगिज नहीं है और न होंगे।पिछड़े सत्तावर्ग में शामिल है और सत्ता वे न दलितों के साथ शेयर करेंगे और न मुसलमानों के साथ।


      2014 का सबसे खतरनाक नतीजा यह है।पिछड़ी जमात का सत्तावर्ग में सामूहिक स्थानांतरण।इसीलिए बेहद जतन से ओबीसी ब्राडइक्विटी के साथ नमो मिथक रचकर देश उनके हवाले कर दिया गया।यह सबसे बड़ी सोशल इंजीनियरिंग है।


      इसमें मुद्दे की बात यह है कि उत्तरप्रदेश की तैंतीस सीटों में दूसरे नंबर पर आने के बावजूद खिंसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंचती मायावती के लिए शायद सांत्वना पुरस्कार है कि उनकी सोशल इंजीनियरिंग कोई फेल नहीं हुई है,बस उनके खिलाफ ही इस्तेमाल हो गयी।


      सवर्णों को गुलाम बनाकर बहुजनों के साथ नत्थी करने का बदला सवर्णों ने चुका ही दिया।उत्तरप्रदेश में दशकों बाद संपूर्ण सवर्ण सत्ता के पूरे आसार दीखने के बाद सवर्ण फिरभी मायावती को वोट देते,ऐसा असंभव हुआ नहीं है।


      वोटों के प्रतिशत से चौतरपा हार के बावजूद आज की तारीख में भी मायावती ही दलितों की एकमात्र नेता हैं,इसका उनको आभार मानना चाहिए।


      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!


      नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों!


      अब जाहिर है कि बहुजन राजनीति पहचान के आधार पर हो ही नहीं सकती और वाम आंदोलन भी बहुजन नेतृत्व के बिना असंबव है,इस हकीकत को समझो दोस्तों!


      मायावती में राजनीतिक दृष्टि हो तो पहल करें सबसे पहले वे।

      वामपंती फिर प्रासंगिक होना चाहते हैं तो बहुजननेतृत्व को मानें सबसे पहले।


      जनपक्षधरों की समाजिक बदलाव की चिंता है तो दोनों परस्परविरोधी समूहों को गोलबंद की पहल करें सबसे पहले।


      कांशीराम ने अंबेडकरी आंदोलन को भटकाया अस्मिता राजनीति में तो मायावती ने कांशीराम को उनके जीते जी खारिज करके बहुजन समाज के विस्तार सर्वजनहिताय मार्फत करने की सोशल इंजीनियरंग करके दिखा दी।एकबार पूर्ण बहुमत अकेले दम हासिल करके भी दिखा दिया।


      अब उन्हींकी सोशल इंजीनियरिंग में बंगाली तड़का लगाकर सवर्णों और पिछड़ों को एकसाथ केसरिया बनाकर गायपट्टीके साथ साथ संघ परिवार ने पूरा देश जीत लिया तो कम से कम मायावती को शिकायत नहीं करनी चाहिए।


      कायदे से अंबेडकरी आंदोलन और सर्वस्वहाराओं की लड़ाई में वामपंथियो को बहुजन नेतृत्व में प्रतिरोध की राजनीति करनी चाहिए थी तो इस आत्मघाती सोशल इंजीनियरिंग के फंदे से बच जाते।


      अब भी वक्त है दोस्तों,केसरिया कारपोरेट राज के मुकाबले कांग्रेस कोई विकल्प है नहीं,जाहिर सी बात है।


      उसकी शिकस्त के लिए हमें संघ परिवार काआभार मानना चाहिए।


      कल रात बारह बजे मैं आनलाइन था तो गुगल पर डुडल में बर्थडे केक सजा मिला।यह वर्च्युअल जन्मदिन है।जन्मदिन का केक भी वर्च्युअल।बधाइयां भी थोक भाव से मिली आभासी दुनिया में।


      सुबह से किसी ने आमने सामने जन्म दिन मुबारक नहीं कहा,न फोन पर किसी ने ऐसा कहा।सविता को मैंने दोपहर बाद गुगल का डुडल दर्शन कराया तो बोली,अच्छा आज जन्मदिन है।


      हमारे क्लास में जन्मदिन मरणदिन नाम का कुछ भी नहीं होता।इस देश में किसान परिवारों में जन्म मृत्यु समान है।न खुशी मनाने का मौका होता है और न गम।


      मेरा जन्म शरणार्थी आंदोलनों से लेकर ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के मध्य है।टाइमिंग मालूम है सबको।मेरे गांव बसंतीपुर वालों को बस इतना मालूम है कि 1956 में आंदोलन के बाद बीच जंगल में जो गांव बसा,उसमें मैं,टेक्का और हरि पहले साल की फसल हैं।हममें से किसी की कोई कुंडली नहीं है।


      हमारे सारे सगे,चचेरे तहेरे भाइयों बहनों के यहां एक या दो बच्चे का फार्मुला है,बड़ी दीदी मीरा का विवाह 1960-61 में हुआ तो उनके चार बेटे हुए और उनमें से भी बड़े और मंजले का निधन हो गया।


      संयुक्त परिवार में हमारी तेरह बहनें हैं।मेरे तीन,तहेरे एक और चचेरे दो भाई है।कुनबा अब तीसरी चौथी पीढ़ी में है।वे लोग जिन ग्रामीण समाज में जीते हैं,वहां पैसा बहुत मायने रखता है।औकात पैसे से आंकी जाती है।हम अब रिश्तेदारियों के जाल में फंसे अपने घर जाने से हिचकते हैं इसलिए कि उनकी चाहत की रोशनी में खुद के नंगे हो जाने का डर लगा रहता है।अब नैनीताल समेत तमाम बहनों के यहां आने जाने लेन देन की लागत तीस से पचास हजार है,जो मेरी औकात से बाहर है।


      हम कोलकाता में निपट अकेले हैं।किराये के मकान में रहे हैं।किताबों और कंप्युटर के अलावा कोई आसबाब नहीं है।मेरी कोई महत्वाकांक्षा बची नहीं है।सविता की एक ही आशंका है कि सड़ सड़कर मरना न पड़े।


      मेरे पिता अपढ़ थे।लेकिन पढ़ते रहते थे।पढ़े लिखे की ताकत जानते थे और आजादी का मोल भी खूब समझते थे।उन्होंने हमारी जन्मकुंडली नहीं बनवायी।हमें अच्छी शिक्षा दिलाने की भरसक कोशिश की क्योंकि वे शरणार्थी और किसान के अलावा मतुआ भी थे।


      मतुआ आंदोलन का सार है रोटी से भी बड़ी चीज है शिक्षा।उन्होंने हमें अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने की पूरी छूट दी।


      हम पढ़े लिखे नहीं होते तो अपने खेत खलिहान में धूप पानी में गल रहे होते और शायद ही अपने गांववालों के अलावा किसी के मुखातिब हो पाते।हमारे लोगों के मुकाबले ,इस देश के वंचित करोड़ों लोगों के मुकाबले हमें बहुत ज्यादा मिला है।बोनस में मिला है अथाह प्यार,जो अप्राप्त म्मान,मान्यता और पुरस्कार प्रतिष्ठा से बेशकीमती है।


      कल रात से उस प्यार का हाथ छूट ही नहीं रहा है।गुगल को धन्यवाद।धन्यवाद हमारे प्राइमरी टीचर पीतांबर पंत जी को जिन्होंने यह तिथि हमारे प्लेट में सजाकर रख दी।धन्यवाद फेसबुक का,जिसके जरिये इतने लोगों का देश भर से संदेश आया।


      हम अलग अलग सबको जवाब नहीं दे सकते।


      जिनका संदेश टाइम लाइन पर दिखा,उन्हें आभार कह दिया।


      बाकी मात्र संख्या है संदेश देने वालों की।जो आभासी है।


      सबका आभार।

      बेहद कठिन समय है।डगर मुश्किल, आगे की राह आपदाएं ही आपदाएं सर्वग्रासी।


      हमें उम्मीद है कि शुभकामनाों तक सीमाबद्ध नहीं रहेंगे सारे मित्र।उनमे से दो चार जो हमसे सहमत भी हों,हमारी मुहिम में हमारा साथ भी देंगे,ऐसी उम्मीद का दुस्साहस की इजाजत भी दें।


      जनम मरण तो लगा रहता है लेकिन खेती चौपट नहीं होनी चाहिए,ऐसा हमारे गांव के बुजुर्ग कहते थे।लेकिन हम हैं कि खेती की क्या कहें,गांव देहात,खेत खलिहान से कटे लोग हैं हम,जड़ों तक उड़ान भर ही नहीं सकते।पांख हैं ही नहीं,हजार मजबूरियां काँख में हैं।


      मित्रों, देश में परिवर्तन भी माफ करें,हमारे जन्मदिन की तरह आभासी है।बार बार हम इस आभासी परिवर्तन से ठगे जाते रहे हैं।


      देश अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त रहा तो हम जनगण मन विधायक गाते हुए सावधान मुद्रा में गदगदाये रहे।सात दशक बीतने को चला और आजादी सिरे से लापता है।


      साठ के दशक में राज्यों में कांग्रेस का पतन हुआ तो हमें लगा कि परिवर्तन होने लगा है।


      साठ सत्तर के दशक में भारी उथल पुथल क्रांति के स्वप्न को लेकर मची जिसमें हमारी युवा पीढ़ी मशगुल रही और देखते देखते संपूर्ण क्रांति में निष्णात होते हुए हममें से ज्यादातर जिस व्यवस्था को बदलने की कसम खाकर चले थे,उसीमें समाहित हो गये।


      1975 में आपातकाल आया तो लगा आपातकाल का अंत ही परिवर्तन है।अंत भी हुआ।आम चुनाव में हारीं इंदिरा गांधी। कांग्रेस का देशव्यापी प्रथम पराभव हुआ।सारे रंग एकाकार हो गये।लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।


      फिर हर गैरकांग्रेसी सत्ता को हम बारंबार  परिवर्तन का अग्रदूत मान कर चलते रहे और हर बार मायूस अंगूठा चूसते रहे।


      1984 में हिंदू हितों की सरकार बनी संघी तत्परता से सिखों के नरसंहार के बाबत,लोगों ने उसे भी परिवर्तन माना।


      इसीतरह गुजरात में 2002 के नरसंहार के बाद नमो निरंतराता को भी परिवर्तन मानकर गुजरात माडल अपना लिया है देश ने।


      1991 में आर्थिक सुधारों के नाम पर परिवर्तनों का सैलाब अभी थमा नहीं है और न थमने के आसार हैं।


      कारपोरेट राज अब मुकम्मल हिंदू राष्ट्र है।


      बंगाल में वाम पंथ के अवसान को बंगाली जनता ने हरित क्रांति मान ली तो गाय पट्टी और बाबासाहेब की कर्मभूमि महाराष्ट्र में भी नीली क्रांति का पटाक्षेप हो गया।


      समाजवादी खेमा भी ध्वस्त है।चारों तरफ केसरिया आधिपात्य है।


      ऐसी पृष्ठभूमि में क्या तो जन्मदिन और क्या तो मरणदिन।


      अपनी अपनी अस्मिता का तमगा धारण किये देश के चौतरफा सत्यानाश के एटीएम से नकद लेने की मारामारी है।रातोंरात लोगो की विचारधाराएं और प्रतिबद्धताएं बदल गयीं।वक्तव्य बदल गये।


      सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह सूर्य प्रणाम है।


      रामराज्य में लाल नीले असुरों का वध संपन्न है और शेयर बाजार धायं धायं है।


      इकानोमिक टाइम्स और तमाम अंग्रेजी अखबारों में रोज सिलसिलेवार तरीके से छप रहा है कि कैसे अब तक 22 हजारी से पच्चीस हजारी पार शेयर सूचकांक तीसहजार कैसे और कब होना है,नीफ्टी कैसे डाबल होने जा रही है।कैसे छह महीने में अर्तव्यवस्था का कायाकल्प हो जायेगा।कैसे निवेशकों के हित सुरक्षित किये जाते रहेंगे।विनिवेश निजीकरण की प्राथमिकताएं भी उदात्त घोषणाएं हैं।


      गायपट्टी में सवर्ण अछूतों और पिछड़ों के सत्ताबाहर हो जाने और फिर आर्यावर्त के पुनरूत्थान से बल्ले बल्ले है तो क्रांतिभूमि बंगाल केसरिया है।इतना अधिक केसरिया कि 42 में से 34 लोकसभा सीटें जीतकर जयललिता के 36 के मुकाबले कांग्रेसी शिकस्त की वजह से प्रधानमंत्रित्व की दौड़ में मोदी से चार इंच पिछड़ने वाली ममतादीदी उनको कमर में रस्सी डालकर घुमा कर जेल तो नहीं ही भेज सकी,बल्कि उनके शब्दों में दंगाबाज पार्टी उनके अपने विधानसभा क्षेत्र कोलकाता के भवानीपुर में उनकी पार्टी पर बढ़त बनाकर दूसरे नंबर पर रह गयी।


      कोलकाता की दूसरी सीट पर भी दूसरे नंबर पर।दोनों सीटों पर पच्चीस फीसद से द्यादा केसरिया वोट।राज्य में सर्वत्र लाल नील गायब।


      हरे के मुकाबले केसरिया ही केसरिया।


      विधानसभा चुनावों में भीरी खतरा है दीदी को।


      एक परिवर्तन मुकममल न होते होते दूसरे परिवर्तन की तैयारी।


      कट्टर हिंदुत्ववादी अछूत पिछड़ी बिरादरी के सत्ता बाहर होने से खुश हैं तो पिछड़े आमोखास ओबीसी राजनीति के  केसरियाकरण के चरमोत्कर्ष पर नमोनमो जयगान के साथ गायत्री जाप कर रहे हैं।


      कश्मीर में भी केसरिया तो तमिलनाडु,बंगाल और असम में भी केसरिया,फिर अरुणाचल और अंडमान में भी।केसरिया राष्ट्रवाद की ऐसी बहार ने किसी ने देखी और न सुनी।


      बंगाल में बड़ी संख्या में लोग उत्सुक है कि वायदे के मुताबिक प्राण जाये तो वचन न जाये तर्ज पर नमो कब कैसे मुसल्लों को यानी बांग्लादेशी घुसपैठियों को कैसे भारत बाहर कर देंगे।


      बेचारे शरणार्थी हिंदुत्व की दुहाी देकर विबाजन के बाद भारत आये तो अब भी वहीं हिंदुत्व उनकी रही सही पूंजी है और उम्मीद बांधे हुए हैं कि अब उनका भाग्य परिवर्तन होगा और भारत विभाजन के सातवें दशक में भारतीय नागरिक बतौर उनके हक हकूक बहाल होंगे।


      ज्यादा पढ़े लिखे इंटरनेटी मतवालों को भरोसा है कि छप्पन इंच की छाती की गरज से भारत विभाजन का इतिहास पलट जायेगा और बाबरी विध्वंस की नींव पर भव्य राम मंदिर की तरह अखंड भारत का भूगोल तामीर होगा और चक्रवर्ती सम्राट पुष्यमित्र शुंग की तरह नमो सम्राट भारतभर में एक मुश्त सत्य त्रेता द्वापर का सनातन हिंदुत्व की विजयध्वजा फहराकर भारतीय संविधान को गंगा में बहाकर मनुस्मृतिराज और संस्कृत राष्ट्रभाषा का दिवास्वप्न साकार कर देंगे।


      इस संप्रदाय की इतिहास अर्थशास्त्र में उतनी ही रुचि है जितनी आम जनता की।


      इतिहास उनके लिए उपनिषद पुराण रामायण महाभारत की कथाएं और मिथक हैं।तो अब तक का सबसे बड़ा मिथक तो रच ही दिया गया है।उसी मिथक के मुताबिक हर संभव परिवर्तन की उम्मीद है लोगों की।


      जय हो।जयजयजय हो।जयगाथा गाते चलें कि जनम मरण से आता जाता कुछ भी नहीं।



      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों! नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों! लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।

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      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!

      नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों!

      लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।


      पलाश विश्वास


      कांशीराम का फार्मूला पूरी तरह फेल हो गया।पचासी फीसद का समीकरण संघी छापामार हमले में ध्वस्त है।संघ परिवार ने ओबीसी मास्टरकार्ड से बहुजन आंदोलन को वामपंथियों के साथ साथ जमींदोज कर दिया है।


      जात पांत अस्मिता की राजनीति करने वाले सारे क्षत्रप धराशायी हो गये और उनका अब तक साथ निभाकर भारतभर में  कम्युनिस्ट विचारधारा और आंदोलन को फर्जी धर्मनिरपेक्षता से सत्तासुख हेतु खत्म करने के लिए हरसंभव जुगत लगाने वाले वामपंथी भी खेत रहे।


      ध्यान रहे कि केसरिया सुनामी के मुकाबले साबुत बचे नवीन पटनायक और ममता बनर्जी की राजनीति अस्मितावाचक नहीं है।


      नवीन कारपोरेट के लिए कारपोरेट दवारा कारपोरेट का राज चलाकर कायम हैं तो ममता वामविरोधी महाचंडिका हैं।मुक्त बाजार की महानायिका हैं।


      दक्षिण में जयलिलता अन्नाद्रमुक के जरिये कोई पेरियार का आंदोलन नहीं चला रहीं है।


      तीनों जात पांत से ऊपर ओड़िया,बंगाली और तमिल राजनीति कर रहे हैं।अब संघ ही उनका इलाज करेगा।


      बंगाल में सामाजिक परिदृश्य में बदलाव इसलिए असंभव है क्योंकि यहां अस्पृश्यता का रसायन अत्यंत वैज्ञानिक है।सत्तावर्ग में ब्राह्मणों के साझेदार कायस्थ और वैद्य हैं तो पिछड़ों की पूरी जमात सत्तावर्ग के साथ नत्थी है।


      बंगाल में दलितों,मुसलमानों और आदिवासियों की दुकानें अलग अलग हैं।बाकी देश में भी संघ परिवार ने ये ही हालात बना दिये हैं।


      यही राम राजत्व का आधार है।


      संख्या में भारी पिछड़े अगर किसी बदलाव में भाग नहीं लेते तो बदलाव हो नहीं सकता।पिछड़े अगर बदलाव की ठान लें तो बदलाव होकर रहेगा।


      विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रपट लागू करके पिछड़ों को साधने का नाकाम अभियान चलाकर खुद फेल होकर देश को नवउदारवादी महाविध्वंस के हवाले कर गये तो संघ परिवार ने कमंडल आंदोलन में पिछड़ों को ऐसे जोत लिया कि नतीजा सामने है।


      अब बहुजन सिर्फ नारा है,बहुजनों में पिछड़े हरगिज नहीं है और न होंगे।पिछड़े सत्तावर्ग में शामिल हैं और सत्ता वे न दलितों के साथ शेयर करेंगे और न मुसलमानों के साथ।


      2014 का सबसे खतरनाक नतीजा यह है।


      पिछड़ी जमात का सत्तावर्ग में सामूहिक स्थानांतरण।


      इसीलिए बेहद जतन से ओबीसी ब्रांडइक्विटी के साथ नमो मिथक रचकर देश उनके हवाले कर दिया गया।


      यह सबसे बड़ी सोशल इंजीनियरिंग है।


      इसमें मुद्दे की बात यह है कि उत्तरप्रदेश की तैंतीस सीटों में दूसरे नंबर पर आने के बावजूद खिंसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंचती मायावती के लिए शायद सांत्वना पुरस्कार है कि उनकी सोशल इंजीनियरिंग कोई फेल नहीं हुई है,बस उनके खिलाफ ही इस्तेमाल हो गयी।


      सवर्णों को गुलाम बनाकर बहुजनों के साथ नत्थी करने का बदला सवर्णों ने चुका ही दिया।उत्तरप्रदेश में दशकों बाद संपूर्ण सवर्ण सत्ता के पूरे आसार दीखने के बाद सवर्ण फिरभी मायावती को वोट देते,ऐसा असंभव हुआ नहीं है।


      वोटों के प्रतिशत से चौतरफा हार के बावजूद आज की तारीख में भी मायावती ही दलितों की एकमात्र नेता हैं,इसका उनको आभार मानना चाहिए।


      अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!


      नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों!


      लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।


      अब जाहिर है कि बहुजन राजनीति पहचान के आधार पर हो ही नहीं सकती और वाम आंदोलन भी बहुजन नेतृत्व के बिना असंभव है,इस हकीकत को समझो दोस्तों!


      मायावती में राजनीतिक दृष्टि हो तो पहल करें सबसे पहले वे।


      वामपंथी फिर प्रासंगिक होना चाहते हैं तो बहुजन नेतृत्व को मानें सबसे पहले।


      सवर्म वर्ण  नस्ल  लिंग वर्चस्व को तोड़ें और मुकम्मल परिवर्तन के लिए सड़क पर उतरने से पहले बहिस्कृत जमात को  साथ लेकर चलना सीखें संघ परिवार की तरह ।


      हां,संघ परिवार की तरह।


      जिसने एक तेली को प्रधानमंत्री बनाया अपना अंतिम लक्ष्य हिंदू राष्ट्र को हासिल करने के लिए।


      जनपक्षधरों की समाजिक बदलाव की चिंता है तो दोनों परस्परविरोधी समूहों को गोलबंद की पहल करें सबसे पहले।


      कांशीराम ने अंबेडकरी आंदोलन को भटकाया अस्मिता राजनीति में तो मायावती ने कांशीराम को उनके जीते जी खारिज करके बहुजन समाज के विस्तार सर्वजनहिताय मार्फत करने की सोशल इंजीनियरंग करके दिखा दी।एकबार पूर्ण बहुमत अकेले दम हासिल करके भी दिखा दिया।


      अब उन्हींकी सोशल इंजीनियरिंग में बंगाली तड़का लगाकर सवर्णों और पिछड़ों को एकसाथ केसरिया बनाकर गायपट्टी के साथ साथ संघ परिवार ने पूरा देश जीत लिया तो कम से कम मायावती को शिकायत नहीं करनी चाहिए।


      कायदे से अंबेडकरी आंदोलन और सर्वस्वहाराओं की लड़ाई में वामपंथियों को बहुजन नेतृत्व में प्रतिरोध की राजनीति करनी चाहिए थी तो इस आत्मघाती सोशल इंजीनियरिंग के फंदे से बच जाते।


      अब भी वक्त है दोस्तों,केसरिया कारपोरेट राज के मुकाबले कांग्रेस कोई विकल्प है नहीं,जाहिर सी बात है।


      उसकी शिकस्त के लिए हमें संघ परिवार का आभार मानना चाहिए।


      कल रात बारह बजे मैं आनलाइन था तो गुगल पर डुडल में बर्थडे केक सजा मिला।यह वर्च्युअल जन्मदिन है।जन्मदिन का केक भी वर्च्युअल।बधाइयां भी थोक भाव से मिली आभासी दुनिया में।


      सुबह से किसी ने आमने सामने जन्म दिन मुबारक नहीं कहा,न फोन पर किसी ने ऐसा कहा।सविता को मैंने दोपहर बाद गुगल का डुडल दर्शन कराया तो बोली,अच्छा आज जन्मदिन है।


      हमारे क्लास में जन्मदिन मरणदिन नाम का कुछ भी नहीं होता।


      इस देश में किसान परिवारों में जन्म मृत्यु समान है।


      न खुशी मनाने का मौका होता है और न गम।


      मेरा जन्म शरणार्थी आंदोलनों से लेकर ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के मध्य हुआ है।टाइमिंग मालूम है सबको।मेरे गांव बसंतीपुर वालों को बस इतना मालूम है कि 1956 में आंदोलन के बाद बीच जंगल में जो गांव बसा,उसमें मैं,टेक्का और हरि पहले साल की फसल हैं।हममें से किसी की कोई कुंडली नहीं है।


      हमारे सारे सगे,चचेरे तहेरे भाइयों बहनों के यहां एक या दो बच्चे का फार्मुला है,बड़ी दीदी मीरा का विवाह 1960-61 में हुआ तो उनके चार बेटे हुए और उनमें से भी बड़े और मंझले का निधन हो गया।


      संयुक्त परिवार में हमारी तेरह बहनें हैं।मेरे तीन,तहेरे एक और चचेरे दो भाई है।कुनबा अब तीसरी चौथी पीढ़ी में है।वे लोग जिन ग्रामीण समाज में जीते हैं,वहां पैसा बहुत मायने रखता है।


      औकात पैसे से आंकी जाती है।हम अब रिश्तेदारियों के जाल में फंसे अपने घर जाने से हिचकते हैं इसलिए कि उनकी चाहत की रोशनी में खुद के नंगे हो जाने का डर लगा रहता है।


      अब नैनीताल समेत तमाम बहनों के यहां आने जाने लेन देन की लागत तीस से पचास हजार है,जो मेरी औकात से बाहर है।जाना है तो सबके यहां जाना भी है।बिना लेन देन के वे मानने वाले भी नहीं हैं।


      हम कोलकाता में निपट अकेले हैं।किराये के मकान में रहे हैं।किताबों और कंप्युटर के अलावा कोई आसबाब नहीं है।


      मेरी कोई महत्वाकांक्षा बची नहीं है।

      सविता की एक ही आशंका है कि सड़ सड़कर मरना न पड़े।


      मेरे पिता अपढ़ थे।लेकिन पढ़ते रहते थे।पढ़े लिखे की ताकत जानते थे और आजादी का मोल भी खूब समझते थे।


      उन्होंने हमारी जन्मकुंडली नहीं बनवायी।हमें अच्छी शिक्षा दिलाने की भरसक कोशिश की क्योंकि वे शरणार्थी और किसान के अलावा मतुआ भी थे।


      मतुआ आंदोलन का सार है रोटी से भी बड़ी चीज है शिक्षा।उन्होंने हमें अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने की पूरी छूट दी।


      हम पढ़े लिखे नहीं होते तो अपने खेत खलिहान में धूप पानी में गल रहे होते और शायद ही अपने गांववालों के अलावा किसी के मुखातिब हो पाते।हमारे लोगों के मुकाबले ,इस देश के वंचित करोड़ों लोगों के मुकाबले हमें बहुत ज्यादा मिला है।बोनस में मिला है अथाह प्यार,जो अप्राप्त म्मान,मान्यता और पुरस्कार प्रतिष्ठा से बेशकीमती है।


      कल रात से उस प्यार का हाथ छूट ही नहीं रहा है।गुगल को धन्यवाद।धन्यवाद हमारे प्राइमरी टीचर पीतांबर पंत जी को जिन्होंने यह तिथि हमारे प्लेट में सजाकर रख दी।धन्यवाद फेसबुक का,जिसके जरिये इतने लोगों का देश भर से संदेश आया।


      हम अलग अलग सबको जवाब नहीं दे सकते।


      जिनका संदेश टाइम लाइन पर दिखा,उन्हें आभार कह दिया।


      बाकी मात्र संख्या है संदेश देने वालों की।जो आभासी है।


      सबका आभार।

      बेहद कठिन समय है।डगर मुश्किल, आगे की राह आपदाएं ही आपदाएं सर्वग्रासी।


      हमें उम्मीद है कि शुभकामनाों तक सीमाबद्ध नहीं रहेंगे सारे मित्र।उनमे से दो चार जो हमसे सहमत भी हों,हमारी मुहिम में हमारा साथ भी देंगे,ऐसी उम्मीद का दुस्साहस की इजाजत भी दें।


      जनम मरण तो लगा रहता है लेकिन खेती चौपट नहीं होनी चाहिए,ऐसा हमारे गांव के बुजुर्ग कहते थे।


      लेकिन हम हैं कि खेती की क्या कहें,गांव देहात,खेत खलिहान से कटे लोग हैं हम,जड़ों तक उड़ान भर ही नहीं सकते।


      पांख हैं ही नहीं,हजार मजबूरियां काँख में हैं।


      मित्रों, देश में परिवर्तन भी माफ करें,हमारे जन्मदिन की तरह आभासी है।


      बार बार हम इस आभासी परिवर्तन से ठगे जाते रहे हैं।


      देश अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त हुआ तो हम जनगण मन विधायक गाते हुए सावधान मुद्रा में गदगदाये रहे।


      सात दशक बीतने को चला और आजादी सिरे से लापता है।


      साठ के दशक में राज्यों में कांग्रेस का पतन हुआ तो हमें लगा कि परिवर्तन होने लगा है।


      साठ सत्तर के दशक में भारी उथल पुथल क्रांति के स्वप्न को लेकर मची जिसमें हमारी युवा पीढ़ी मशगुल रही और देखते देखते संपूर्ण क्रांति में निष्णात होते हुए हममें से ज्यादातर जिस व्यवस्था को बदलने की कसम खाकर चले थे,उसीमें समाहित हो गये।


      1975 में आपातकाल आया तो लगा आपातकाल का अंत ही परिवर्तन है।अंत भी हुआ।आम चुनाव में हारीं इंदिरा गांधी। कांग्रेस का देशव्यापी प्रथम पराभव हुआ।सारे रंग एकाकार हो गये।लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।


      फिर हर गैरकांग्रेसी सत्ता को हम बारंबार  परिवर्तन का अग्रदूत मान कर चलते रहे और हर बार मायूस अंगूठा चूसते रहे।


      1984 में हिंदू हितों की सरकार बनी संघी तत्परता से सिखों के नरसंहार के बाबत,लोगों ने उसे भी परिवर्तन माना।


      इसीतरह गुजरात में 2002 के नरसंहार के बाद नमो निरंतराता को भी परिवर्तन मानकर गुजरात माडल अपना लिया है देश ने।


      1991 में आर्थिक सुधारों के नाम पर परिवर्तनों का सैलाब अभी थमा नहीं है और न थमने के आसार हैं।


      कारपोरेट राज अब मुकम्मल हिंदू राष्ट्र है।


      बंगाल में वाम पंथ के अवसान को बंगाली जनता ने हरित क्रांति मान ली तो गाय पट्टी और बाबासाहेब की कर्मभूमि महाराष्ट्र में भी नीली क्रांति का पटाक्षेप हो गया।


      समाजवादी खेमा भी ध्वस्त है।चारों तरफ केसरिया आधिपात्य है।


      ऐसी पृष्ठभूमि में क्या तो जन्मदिन और क्या तो मरणदिन।


      अपनी अपनी अस्मिता का तमगा धारण किये देश के चौतरफा सत्यानाश के एटीएम से नकद लेने की मारामारी है।रातोंरात लोगो की विचारधाराएं और प्रतिबद्धताएं बदल गयीं।वक्तव्य बदल गये।


      सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह सूर्य प्रणाम है।


      रामराज्य में लाल नीले असुरों का वध संपन्न है और शेयर बाजार धायं धायं है।


      इकानोमिक टाइम्स और तमाम अंग्रेजी अखबारों में रोज सिलसिलेवार तरीके से छप रहा है कि कैसे अब तक 22 हजारी से पच्चीस हजारी पार शेयर सूचकांक तीसहजार कैसे और कब होना है,नीफ्टी कैसे डाबल होने जा रही है।कैसे छह महीने में अर्तव्यवस्था का कायाकल्प हो जायेगा।कैसे निवेशकों के हित सुरक्षित किये जाते रहेंगे।विनिवेश निजीकरण की प्राथमिकताएं भी उदात्त घोषणाएं हैं।


      गायपट्टी में सवर्ण अछूतों और पिछड़ों के सत्ताबाहर हो जाने और फिर आर्यावर्त के पुनरूत्थान से बल्ले बल्ले है तो क्रांतिभूमि बंगाल केसरिया है।इतना अधिक केसरिया कि 42 में से 34 लोकसभा सीटें जीतकर जयललिता के 36 के मुकाबले कांग्रेसी शिकस्त की वजह से प्रधानमंत्रित्व की दौड़ में मोदी से चार इंच पिछड़ने वाली ममतादीदी उनको कमर में रस्सी डालकर घुमा कर जेल तो नहीं ही भेज सकीं,बल्कि उनके शब्दों में दंगाबाज पार्टी उनके अपने विधानसभा क्षेत्र कोलकाता के भवानीपुर में उनकी पार्टी पर बढ़त बनाकर दूसरे नंबर पर रह गयी।


      कोलकाता की दूसरी सीट पर भी दूसरे नंबर पर।दोनों सीटों पर पच्चीस फीसद से द्यादा केसरिया वोट।राज्य में सर्वत्र लाल नील गायब।


      हरे के मुकाबले केसरिया ही केसरिया।


      विधानसभा चुनावों में भीरी खतरा है दीदी को।


      एक परिवर्तन मुकम्मल न होते होते दूसरे परिवर्तन की तैयारी।


      कट्टर हिंदुत्ववादी अछूत पिछड़ी बिरादरी के सत्ता बाहर होने से खुश हैं तो पिछड़े आमोखास ओबीसी राजनीति के  केसरियाकरण के चरमोत्कर्ष पर नमोनमो जयगान के साथ गायत्री जाप कर रहे हैं।


      कश्मीर में भी केसरिया तो तमिलनाडु,बंगाल और असम में भी केसरिया,फिर अरुणाचल और अंडमान में भी।केसरिया राष्ट्रवाद की ऐसी बहार ने किसी ने देखी और न सुनी।


      बंगाल में बड़ी संख्या में लोग उत्सुक है कि वायदे के मुताबिक प्राण जाये तो वचन न जाये तर्ज पर नमो कब कैसे मुसल्लों को यानी बांग्लादेशी घुसपैठियों को कैसे भारत बाहर कर देंगे।


      बेचारे शरणार्थी हिंदुत्व की दुहाी देकर विबाजन के बाद भारत आये तो अब भी वहीं हिंदुत्व उनकी रही सही पूंजी है और उम्मीद बांधे हुए हैं कि अब उनका भाग्य परिवर्तन होगा और भारत विभाजन के सातवें दशक में भारतीय नागरिक बतौर उनके हक हकूक बहाल होंगे।


      ज्यादा पढ़े लिखे इंटरनेटी मतवालों को भरोसा है कि छप्पन इंच की छाती की गरज से भारत विभाजन का इतिहास पलट जायेगा और बाबरी विध्वंस की नींव पर भव्य राम मंदिर की तरह अखंड भारत का भूगोल तामीर होगा और चक्रवर्ती सम्राट पुष्यमित्र शुंग की तरह नमो सम्राट भारतभर में एक मुश्त सत्य त्रेता द्वापर का सनातन हिंदुत्व की विजयध्वजा फहराकर भारतीय संविधान को गंगा में बहाकर मनुस्मृतिराज और संस्कृत राष्ट्रभाषा का दिवास्वप्न साकार कर देंगे।


      इस संप्रदाय की इतिहास अर्थशास्त्र में उतनी ही रुचि है जितनी आम जनता की।


      इतिहास उनके लिए उपनिषद पुराण रामायण महाभारत की कथाएं और मिथक हैं।तो अब तक का सबसे बड़ा मिथक तो रच ही दिया गया है।उसी मिथक के मुताबिक हर संभव परिवर्तन की उम्मीद है लोगों की।


      जय हो।जयजयजय हो।जयगाथा गाते चलें कि जनम मरण से आता जाता कुछ भी नहीं।


      বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই, গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন! वाम नपुंसकता के मुकाबले बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है!

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      বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই,

      গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন!

      वाम नपुंसकता के मुकाबले बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है!


      এক্সকেলিবার স্টিভেন্স বিশ্বাস


      বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই,

      গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন!

      শাসকদলের বিরুদ্ধে সন্ত্রাসের অভিযোগ খতিয়ে দেখতে সন্দেশখালি পৌছল বিজেপির কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল। আতঙ্কিত গ্রামবাসীদের সঙ্গে কথা বলেন বিজেপি নেতৃত্ব। গ্রামবাসীরাও তাঁদের অভিজ্ঞতার কথা তুলে ধরেন বিজেপি নেতাদের কাছে। বিজেপি প্রতিনিধি দলে রয়েছেন বাবুল সুপ্রিয়, এস এস আলুওয়ালিয়া, সিদ্ধার্থনাথ সিং, মুখতার আব্বাস নকভি, ও মীণাক্ষি লেখি।


      গত মঙ্গলবার, সন্দেশখালির ধামাখালিতে গুলিবিদ্ধ হন ২১ জন বিজেপি সমর্থক। তৃণমূল কর্মীদের বিরুদ্ধে গুলি চালানোর অভিযোগ ওঠে। ধামাখালি থেকে ফিরে আহত দলীয় সমর্থকদের দেখতে এসএসকেএমে যান বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতারা।


      বার বিজেপি রাজ্যে দুটি লোকসভা আসন দখলের পাশাপাশি ভোটের হার ১৭ শতাংশে তুলে নিয়ে যাওয়ার পর প্রথম থেকেই একেবারে আঁটঘাট বেঁধে তৃণমূলকে টক্কর দিতে নেমেছে৷ তারই প্রমাণ হল, তাদের এই জেলা সফরের কর্মসূচি৷ শুধু তাই নয়, রাজ্যে সংগঠন জোরদার করার লক্ষ্যে রাহুলবাবু শুক্রবার জেলা সভাপতি এবং অন্য কর্মকর্তাদের নিয়ে দীর্ঘ বৈঠক করেন৷ তাতে জুন এবং জুলাই মাস জুড়ে বেশ কিছু কর্মসূচি নেওয়া হয়েছে৷


      তৃণমূল অবশ্য বিজেপির এই সন্দেশখালি সফরকে প্রকাশ্যে খুব একটা গুরুত্ব দিতে চাইছে না৷ মুখে গুরুত্ব না দেওয়ার কথা বললেও তারা আজই সন্দেশখালিতে যাচ্ছে৷ শুক্রবার নেতাজি ইন্ডোর স্টেডিয়ামে নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দলীয় সংগঠনে ব্যাপক রদবদল করেছেন৷ উত্তর ২৪ পরগনা জেলার সভাপতি নির্মল ঘোষকে সরিয়ে নতুন সভাপতি করা হয়েছে খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিককে৷ দায়িত্ব বুঝে নিয়ে এ দিন সন্ধ্যাতেই জ্যোতিপ্রিয় সন্দেশখালিতে সভা করার কথা ঘোষণা করেন৷ এই সভা বিজেপির পাল্টা কি না, জানতে চাওয়া হলে জেলার অন্যতম নেতা ইদ্রিশ আলি বলেন, 'না, এটা পাল্টা কর্মসূচি নয়৷ আমরা বিজেপির প্রতিনিধি দল পাঠানোকে কোনও গুরুত্বই দিচ্ছি না৷' শাসক দল এবং বিজেপির জোড়া কর্মসূচি ঘিরে আজ জেলা প্রশাসনকে কিছুটা উদ্বেগের মধ্যেই থাকতে হবে৷


      সিপিএম নেতৃত্ব যখন জেলায় জেলায় শাসক দলের হাতে আক্রান্ত দলীয় কর্মীদের পাশে পৌঁছতে ইতস্তত করছেন, তখন বিজেপির রাজ্য নেতারা কিন্ত্ত তৃণমূলকে চাপে রাখতে জেলা সফরে নেমে পড়ছেন৷ আজ শনিবার দলীয় সাংসদ মীনাক্ষী লেখি, জাতীয় মুখপাত্র মুখতার আব্বাস নাকভি এবং এ রাজ্যের পর্যবেক্ষক সিদ্ধার্থনাথ সিনহার নেতৃত্বে বিজেপির এক কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল সন্দেশখালিতে পৌছে গেল৷ ওই দলে রাজ্য থেকে নির্বাচিত দুই সাংসদ বাবুল সুপ্রিয় এবং এস এস আলুওয়ালিয়া ছাড়াও রাজ্য সভাপতি রাহুল সিনহা, বসিরহাটের পরাজিত প্রার্থী শমীক ভট্টাচার্য প্রমুখও থাকছেন৷ পাশাপাশি রাজ্য নেতৃত্বের আর একটি দল আজই যাচ্ছেন দক্ষিণ ২৪ পরগনার গোসাবায়৷ রাহুলবাবু শুক্রবার জানান, কাল রবিবার রাজ্য বিজেপির আরও দুটি দল পশ্চিম মেদিনীপুরের নয়াগ্রাম এবং বর্ধমানে দুর্গাপুরের লাউদোহা গ্রামে যাবে৷ নয়াগ্রামে তৃণমূলের কয়েক জন নেতৃস্থানীয় কর্মী বিজেপিতে যোগ দেওয়ার পর তাঁদের উপর তৃণমূল হামলা চালায় বলে অভিযোগ৷ আর লাউদোহায় বৃহস্পতিবার থানা অবরোধ কর্মসূচি সেরে বাড়ি ফেরার পথে কয়েক জন বিজেপি কর্মী আক্রান্ত হন৷ সব মিলিয়ে নরেন্দ্র মোদী প্রধানমন্ত্রী হওয়ার পরই যে ভাবে রাজ্য বিজেপি জেলায় জেলায় তৃণমূলের হাতে আক্রান্তদের পাশে দাঁড়ানোর কর্মসূচি নিয়েছে, তা যে শাসক দলকে চাপে রাখার জন্যই, সেটা বলার অপেক্ষা রাখে না৷


      সন্দেশখালির পরিস্থিতি নিয়ে প্রধানমন্ত্রী এবং কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রীর কাছে রিপোর্ট জমা দিতে চলেছে বিজেপির কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল৷ তাদের অভিযোগ, রাজ্যের আইনশৃঙ্খলা পরিস্থিতি বাম আমলেও থেকেও খারাপ৷ তৃণমূল আশ্রিত দুষ্কৃতীদের দৌরাত্ম্য বন্ধে পুলিশ-প্রশাসন কোনও পদক্ষেপই নিচ্ছে না৷

      শনিবার ধামাখালিতে পা রাখার পরেই বিজেপির প্রতিনিধিদলের হাতে গুলির খোল তুলে দেন গ্রামবাসীরা৷ পাশাপাশি দেন সেদিনের ঘটনার বিবরণ৷ গ্রামবাসীদের অভিযোগ, পুলিশের উপস্থিতিতেই বিজেপি সমর্থকদের ওপর গুলি চালায় তৃণমূল আশ্রিত দুষ্কৃতীরা৷ গ্রামবাসীদের কাছ থেকে অভিযোগ পাওয়ার পর পুলিশি নিষ্ক্রিয়তার অভিযোগ তুলে সরব হয় বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব৷ তাঁদের অভিযোগ, রাজ্যের আইনশৃঙ্খলা পরিস্থিতি বাম আমলের থেকেও খারাপ৷

      আক্রান্তদের সঙ্গে কথা বলার পর ধামাখালির স্কুল মাঠে একটি সভা করেন বিজেপি নেতারা৷ প্রাকৃতিক দুর্যোগের মধ্যেও সেখানে হাজির ছিলেন কয়েকশো মানুষ৷

      সভায় বিজেপি নেতারা অভিযোগ করেন, এই এলাকা তফসিলিদের জন্য সংরক্ষিত হওয়া সত্ত্বেও, রাজ্য তফসিলি কমিশন ঘটনাস্থলে আসেনি, হয়নি তদন্তও৷ এরপরই বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব জানান, দিল্লি থেকে জাতীয় এসসি-এসটি কমিশনের প্রতিনিধিদের পাঠানোর ব্যপারে উদ্যোগী হবেন তাঁরা৷

      পুলিশ ও প্রশাসনের ওপর চাপ বাড়াতে সন্দেশখালি নিয়ে রিপোর্ট জমা দেওয়া হবে প্রধানমন্ত্রী এবং কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রীর কাছে৷ বিজেপি দলীয় প্রতিনিধিদল পাঠালেও বিষয়টি তারা তুলতে চায় কেন্দ্রীয় সরকারের কাছে৷

      সরকার ও পুলিশ প্রশাসনের বিরুদ্ধে নিষ্ক্রিয়তার অভিযোগ তুলেই থেমে থাকেনি বিজেপি নেতৃত্ব৷ একধাপ এগিয়ে তাদের আরও অভিযোগ, প্রশাসনের ছত্রছায়াতেই শাসক দল আশ্রিত দুষ্কৃতীরা সন্ত্রাস চালাচ্ছে৷ এ রাজ্যে গণতান্ত্রিক ব্যবস্থাকে চরম অবমাননা করা হচ্ছে৷ বিষয়টি রাজ্যের মধ্যে আর সীমাবদ্ধ নেই৷ ফলে, জাতীয় স্তরে এই নিয়ে সরব হবে বিজেপির প্রতিনিধি দল৷


      दक्षिण 24 परगना के संदेशखाली में केंद्रीयदल भेजकर भाजपा ने बंगाल में केसरिया फौज का हौसला बुलंद करने में खास पहल की है तो मौके पर पहुंचकर भाजपा सांसदों ने बंगाल में ममता बनर्जी पर तानाशाही ,बंगाल पुलिस को तृणमूल कैडर,बाहुबलि आतंकियों को ममता बनर्जी का संरक्षण और राज्य में गुंडा राज के गंभीर आरोप लगाकर तदनुसार केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को,जो अभ भी भाजपा अध्यक्ष हैं,को रपट देकर केंद्रीय हस्तक्षेप का वायदा किया है।


      गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में अब तक मुख्य धारा से दूर रही भाजपाने अभी अभी संपन्न लोकसभा चुनावों में ... पार्टी ने एक समय पश्चिम बंगाल की बड़ी ताकत वाम मोर्चे के वोट आधार में सेंध लगाकर तीसरा स्थान हासिल किया है। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने वामदलों के ग्यारह फीसद वोट काट लिये।


      तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही हिंसा की जांच करने भाजपा के दल के साथ पहुंचे भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान कानून व्यवस्था को कम्युनिस्ट शासन के समय से भी बदतर बताया है।


      संदेशखाली में भाजपा को वोट देने के अपराध में आदिवासी गांवों को घेरकर तृणमूलियों ने अंधाधुंध फायरिंग की।इस गोलीकांड में जख्मी स्त्री पुरुषों को ही पुलिस ने इस मामले में अभियुक्त बनाया है जबकि चश्मदीद गवाहों के नामजद सारे के सारे अभियुक्त न केवल छुट्टा घूम रहे हैं बल्कि उन्होंने इलाके की नाकेबंदी कर रखी है।


      भाजपा नेताओं ने एसएसकेएम अस्पताल जाकर पीड़ितों से मुलाकात भी की है।भाजपी प्रतिनिधिमंडल में बंगाल से सांसद सुरेंद्र सिंह आहलुवालिया और बाबुल सुप्रिय के अलावा भाजपा के बड़े नेता मुख्तार अब्बास नकवी,मीनाक्षी लेखी,सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे लोग शामिल थे।


      इसके विपरीत वाम शिविर में तूफानी बगावत के बावजूद वामदलों के नेता जनता के मध्य जाने से कतरा रहे हैं।


      ममता बनर्जी तक ने सरकार और पार्टी में भारी फेरबदल करके आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केसरिया फौज के मुकाबले की तैयारी जोर शोर से शुरु कर दी है।


      वहीं,वामदलों में रोज कहीं न कही नेतृत्व के खिलाफ बगावत हो रही है।प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक बदलने की मांग अब आंदोलन है।


      पार्टी नेतृत्व किसी तरह के संगठनात्मक फेरबदल के बजाय एक के बाद एक नेता कार्यकर्ता को बाहर का दरवाजा दिखा रहे हैं तो बंगाल भर में वाम कार्यरकर्ताओं और नेताओं पर जो हमले हो रहे हैं,वहां नेतृत्व का कोई प्रतिनिधि जा ही नहीं रहा है।


      इसके विपरीत लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़े वोट प्रतिशत से नाराज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का गुस्सा अभी थम नहीं रहा। अपने मंत्रियों पर गाज गिराने के बाद उन्होंने जिला स्तर पर भी तृणमूल नेताओं के पर कतर दिए हैं। शुक्रवार को ममता बनर्जी ने प्रदेश की सभी जिला कमेटियों को भंग कर नए सिरे से गठन किए जाने का ऐलान किया। बदलाव के रूप में संगठन में युवा, नए और मुस्लिम चेहरों को अहम जिम्मेदारी सौंपी।

      युवा तृणमूल कांग्रेस का अध्यक्ष सौमित्र खान को बनाया गया है। उन्होंने शुभेंदू अधिकारी की जगह ली है। खान बांकुड़ा के विष्णुपुर से सांसद हैं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल का दामन थामा था।


      तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल राय के बेटे विधायक शुभ्रांशु राय को युवा तृणमूल कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया है।


      मुख्यमंत्री के भतीजे अभिषेक बनर्जी को भी राज्य कमेटी में शामिल किया गया है। हाजी नुरूल इस्लाम को तृणमूल कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल का चेयरमैन बनाया गया है। उन्होंने इदरीश अली की जगह ली है।


      दार्जिलिंग में फुटबॉलर वाईचुंग भूटिया को सांगठनिक जिम्मेदारी सौंपी गई है।


      मुस्लिम वोटों के सहारे बंगाल में अपनी पकड़ कायम रख सकीं ममता

      भाजपा ने दो सीटें जीतकर पश्चिम बंगाल में भले ही राजनीतिक तौर पर अपनी जगह बनाने में कामयाबी हासिल की हो पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी को राज्य में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं आने दी। ममता को मुसलमानों के 28 प्रतिशत वोट शेयर से फायदा मिला जिससे तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 सीटों पर जीत हासिल की।


      तृणमूल कांग्रेस को 39.4 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को चार सीटों और नौ फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा । वाम दलों ने आजादी के बाद अपना अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन किया और 23 फीसदी वोट एवं दो सीटें ही जीत सके।

      चुनाव परिणाम आने तक बंगाल की राजनीति में अप्रासंगिक समझी जा रही भाजपा को 17.06 फीसदी वोट मिले और उसे दो सीटें भी हासिल हुईं। साल 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद राज्य में भाजपा के वोट प्रतिशत में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है। बंगाल में सत्ता की राह समझे जाने वाले 28 फीसदी मुस्लिम वोट शेयर से ममता को फायदा मिला।


      पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान ममता और मोदी के बीच छिड़ी जुबानी जंग से कांग्रेस, माकपा, तृणमूल और भाजपा का चौतरफा मुकाबला मोदी और ममता के बीच दोतरफा जंग में तब्दील हो गया। इससे ममता को दक्षिण बंगाल और उत्तर बंगाल के कुछ हिस्सों में मुस्लिमों के वोट हासिल करने में मदद मिली।

      राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंद्योपाध्याय के मुताबिक, पूरा चुनाव मोदी के समर्थन या मोदी के विरोध पर केंद्रित हो गया। अल्पसंख्यकों सहित बंगाल में जितने मोदी विरोधी थे उन्होंने ममता का पूरा समर्थन किया और ममता के विरोधियों ने इस बार भाजपा को वोट किया।



      भाजपा नेतृत्व ने संदेशखाली पहुंचकर वाम और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संकेत दिया है कि बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है।


      भाजपा ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान कानून व्यवस्था को वामपंथ के शासन के समय से भी बदतर बताया है। भाजपा का एक दल उत्तर 24 परगना के संदेशखालीमें अपने पार्टी कार्यकर्ताओं पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए हमले की स्थिति का आकलन करने पहुंचा है।


      राज्यसभा सांसद और पार्टी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां पार्टी के चार वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ''पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था वाम शासन से भी ज्यादा बुरी हालात में है। जिस तरह से शासन द्वारा आधिकारिक मशीनरी का लोगों को डराने-धमकाने का प्रयोग किया जा रहा है वह बहुत निंदनीय है।''


      नकवी ने कहा, ''हम यहां पार्टी कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों का आकलन करने आए हैं और इस संबंध में एक रिपोर्ट पार्टी के केंद्रीय नेताओं को सौंपेंगे।''


      पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख राहुल सिन्हा ने बताया, ''भाजपा के दल ने उत्तर 24 परगना के संदेशखाली का दौरा किया और कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में संदेशखाली के हमलों में घायल हुए 30 पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की।''


      उन्होंने कहा कि इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव संजय मित्रा से मुलाकात की। उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में 28 मई को 30 भाजपा कार्यकर्ताओं पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से हमला कर दिया था। मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था।


      भाजपा और माकपा ने इस मामले में गुरुवार को 12 घंटे का बंद बुलाया था।



      पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर जारी हमलों के विरोध में पार्टी ने गुरुवार को 12 घंटे के बंद का आह्वान किया। वामदलों ने भी तृणमूल कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस बंद में भाजपा का साथ दिया। बंद के दौरान भी तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने जगह-जगह प्रदर्शनकारियों पर हमले किए। इधर, हमलों की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को मिलने के बाद जल्द ही पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल बंगाल का दौरा करेगा।

      प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के दिन जब भाजपा समर्थक बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में जश्न मना रहे थे, तो तृणमूल समर्थकों ने हमला कर करीब 21 लोगों को घायल कर दिया था। घटना के विरोध में गुरुवार को भाजपा व वाममोर्चा ने बसीरहाट बंद किया। इस दौरान भी तृणमूल कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह हमला किया। पुलिस व प्रशासन पर भी तृणमूल समर्थकों को मदद करने का आरोप है।

      प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने बताया कि राज्य में भाजपाइयों पर हो रहे हमले की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भेजी है। इस पर गृह मंत्री ने पांच सदस्यीय दल बंगाल में भेजने का निर्णय किया।


      प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह पर उल्लास मना रहे भाजपा कार्यकर्ताओं पर संदेशखाली थाना के बेड़मजूर में हुए हमले के प्रतिवाद में भाजपा कार्यकर्ताओं ने गुरुवार बारह घटा बसीरहाट बंद रखा। माकपा ने इस बंद में शामिल न होते हुए अलग से इसका नैतिक समर्थन किया था। पुलिस ने विभिन्न जगहों से नौ अवरोधकारियों को गिरफ्तार किया है।

      बसीरहाट भाजपा महासचिव विश्वजीत दास ने दावा किया कि इस दिन आम जनता स्वत: बंद में शामिल हुई और यह बंद सफल रहा। बंद के दौरान स्कूल, बाजार, दुकान बंद रहे। साथ ही उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह हिंसक घटना घटी है और पूरे मामले में पुलिस निष्क्रिय रही है। उससे यह साबित होता है कि पुलिस सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर काम कर रही है। भाजपा कर्मियों पर हो रहे हमले के खिलाफ उन्होंने गणप्रतिरोध संगठित करने का आह्वान किया। इस दिन सियालदह हासनाबाद रेल शाखा के भाबला, और संडालिया रेल स्टेशनों पर भाजपा समर्थकों ने रेल अवरोध किया। जिसके चलते इस शाखा में रेल यातायात प्रभावित हुआ। अवरोध में फंसे रेल यात्रियों ने संडालिया स्टेशन से अवरोधकारियों को हटा दिया। वहीं बसीरहाट चौमाथा पर भाजपा कर्मियों के अवरोध के चलते टाकी सड़क पर जाम की स्थिति पैदा हो गई। जिसकी सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने चार अवरोधकारियों को गिरफ्तार किया।



      दैनिक जागरण के मुताबिक राज्य में चुनाव बाद जो हिंसा शुरू हुई वह अब टकराव का स्थायी आकार लेने जा रही है। राज्य के विभिन्न भागों में राजनीतिक हिंसा से आतंक का माहौल पैदा हो गया है। अधिकांश हिंसक घटनाओं में तृणमूल कार्यकर्ताओं के हमले का शिकार भाजपा समर्थक हुए हैं। उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में भाजपा समर्थकों पर हमला अब तूल पकड़ने लगा है।


      भाजपा समर्थक आक्रामक हो उठे हैं। भाजपा ने राज्य व्यापी विरोध प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के दिन से राज्य के विभिन्न भागों में भाजपा समर्थकों पर जो हमला शुरू हुआ वह बंद नहीं हुआ है। यह सीधे तौर पर भाजपा के साथ सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक टकराव है। सभी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में तृणमूल कांग्रेस समर्थक लिप्त बताए गए हैं।


      संदेशखाली में राजनीतिक हिंसा के खिलाफ गुरुवार को भाजपा व वाममोर्चा ने अलग-अलग बसीरहाट महकमा बंद रखा। हालांकि बंद के दौरान अधिकांश जगहों पर भाजपा समर्थकों को ही पुलिस से जूझते देखा गया। तृणमूल कांग्रेस को जहां भाजपा की सेंधमारी का डर है, वहीं माकपा को यह भय है कि राज्य में भाजपा कहीं विरोधी पार्टी का स्थान न ले ले। इसलिए विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा एसएसकेएम अस्पातल में भर्ती घायलों को देखने गए, जबकि घायलों में अधिकांश भाजपा समर्थक हैं।


      भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा समर्थकों पर हमले की घटना को गंभीरता से लिया है। राजनाथ सिंह ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का एक प्रतिनिधिमंडल हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में स्थिति का जायजा लेने के लिए बंगाल दौैरा पर भेजने की घोषणा की है। प्रतिनिधि मंडल पहले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के नेतृत्व में आनेवाला था, लेकिन बाद में राजनीतिक प्रतिनिधि मंडल भेजने का निर्णय किया गया ताकि कोई गलत संदेश न जाए। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि के बंगाल का दौरा करने पर सरकार को अनावश्यक केंद्रीय हस्तक्षेप कहने का मौका मिल जाता।


      अब तक तृणमूल कांग्रेस के हिंसा का शिकार माकपा समर्थक होते रहे हैं, लेकिन अचानक लोकसभा चुनाव के बाद उनके निशाने पर भाजपा समर्थक आ गए हैं। इससे साफ है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के दो नेताओं के जीतने के साथ उसका मत प्रतिशत बढ़ कर 17 प्रतिशत तक पहुंचने से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गयी है। कुल 42 लोकसभा सीटों में प्राय: सभी जगह भाजपा उम्मीदवारों को कुछ वोट मिले हैं। अब तो तृणमूल व वाममोर्चा के समर्थक भाजपा में शामिल भी होने लगे हैं। भाजपा बंगाल में अपनी राजनीतिक पैठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उसका लक्ष्य अपने बढ़ते जनाधार को अगले विधानसभा चुनाव में भुनाना है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस यह कभी नहीं चाहेगी कि भाजपा को यहां पांव पसारने में सफलता मिले। वामपंथी समर्थकों की जगह अब भाजपा समर्थक तृणमूल के निशाने पर हैं तो इसका मतलब कोई भी आसानी से समझ सकता है।

      मोदी सरकार पर प्रहार करेगी तृणमूल

      कोलकाता: लोकसभा में 34 सदस्यों वाली तृणमूल कांग्रेस नरेन्द्र मोदी सरकार के कामकाज पर नजर रखेगी और यदि उसने लोगों के हित में काम नहीं किया तो पार्टी उसे इस बारे में अवगत करायेगी और फिर भी कुछ नहीं होने पर वह उस पर प्रहार करेगी.तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा : हम हमेशा से रचनात्मक रहे हैं, नकारात्मक नहीं.


      यदि लोगों के हितों को नुकसान पहुंचा तो हम 'प्रहार'करेंगे. यदि हमने पाया कि यह (नरेंद्र मोदी सरकार) लोगों के भले के लिए काम कर रही है तो हम देखेंगे और विचार करेंगे. पार्टी की बंद कमरे में हुई बैठक के बाद ममता के करीबियों के अनुसार मुख्यमंत्री ने उस दौरान यह बात कही. ममता ने कहा : हम माकपा की तरह नहीं हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की आम चुनाव में प्रचार के दौरान मोदी के साथ कटु वाद विवाद हुआ था. उन्होंने 26 मई को राष्ट्रपति भवन में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी के महासचिव मुकुल राय एवं राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र को भेजा था.


      संप्रग द्वितीय सरकार से कोई राहत नहीं मिल पाने के बाद ममता ने पिछले हफ्ते यह उम्मीद जतायी थी कि केंद्र की भाजपा सरकार राज्य की भारी रिण भुगतान संकट के बारे में सकारात्मक रुख अपनायेगी. राज्य के ऋण की अदायगी में कुछ समय की रोक लगाने के मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ कई बैठकों के बावजूद तृणमूल सरकार कोई भी आश्वासन लेने में विफल रही थी.ममता ने भाजपा के सत्ता में आने के लिए कांग्रेस को दोष दिया.उन्होंने कहा : हमने जब सरकार छोड़ी तो कांग्रेस के बुरे दिन शुरु हो गये. उन्हें किसी (सहयोगी) पर भरोसा नहीं था और किसी को भी विश्वास में नहीं लिया जाता था.


      वाइलेंस की वजह से जीता तृणमूल

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      लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद वामपंथियों के अस्तित्व को लेकर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं. पहले पश्चिम बंगाल में 34 वर्षो से चल रही सरकार का पतन और अब लोकसभा चुनाव में वामपंथी प्रत्याशियों की करारी हार. माकपा सांसदों की स्थिति और बिगड़ी है तथा उनकी संख्या एकल अंक में सिमट कर नौ हो गयी है. सबसे बुरा हाल पश्चिम बंगाल का रहा. पश्चिम बंगाल में फिर से उभरने की कोशिश कर रही वामपंथी पार्टियों की सीटों की संख्या 15 से घट कर दो हो गयी है. वहीं, सत्तारूढ़ दल तृणमूल की सीटों की संख्या 19 से बढ़ कर 34 हो गयी है. जले में नमक का काम भाजपा का बढ़ता प्रभाव ने किया है.


      चुनाव में वामपंथी वोटों में भाजपा ने सेंध लगायी है. इससे वामपंथी और भी तिलमिलाये हुए हैं. हालांकि वामपंथी पार्टियों ने हार के कारणों की समीक्षा व पार्टी को मजबूत बनाने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन कोई भी व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने से कतरा रहा है. पश्चिम बंगाल में हार की वजह चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की धांधली को बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. माकपा नेता वंृदा करात का मानना है कि बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल सरकार को 34 सीटों पर जीत बैलेट से नहीं, बल्कि वायलेंस (धांधली) की बदौलत मिली. रही पूरे देश की बात तो हार के कारणों पर चर्चा हो रही है और सामूहिक चर्चा के बाद ही तय होगी जिम्मेदारी. लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन, वर्तमान स्थिति समेत कई मुद्दों को लेकर माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वंृदा करात से प्रभात खबर के संवाददाता अमित शर्मा से विशेष बातचीत हुई. आइये जानते हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश :

      पूरे देश में माकपा महज नौ सीटों पर सिमट गयी. इतनी बड़ी शिकस्त का क्या कारण मानती हैं?

      इस बार लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा. हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है. विगत 18 मई को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक में प्राथमिक रूप से चर्चा की गयी. चुनाव के दौरान पार्टी के कार्यो की समीक्षा को लेकर छह जून को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक होगी. सांगठनिक ताकत को बढ़ाने पर विचार विमर्श किया जायेगा. इसके बाद केंद्रीय समिति की बैठक सात व आठ जून को होगी. इसके बाद राज्य इकाइयों की बैठक होगी. माकपा सांगठनिक नियमों के अनुरूप चलती है. किसी की व्यक्तिगत राय से फैसले नहीं लिये जाते हैं. सभी मुद्दों पर सामूहिक चर्चा के बाद ही जिम्मेदारी तय होगी.

      विगत लोकसभा चुनाव में बंगाल में माकपा को नौ सीटें मिलीं, लेकिन इस बार महज दो. कहां कमी रह गयी?

      मतदान के पहले से ही राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हिंसा का वातावरण तैयार किया था. रिगिंग, हिंसा के बीच मतदान हुआ. बंगाल में हार के प्रमुख कारणों में यह सबसे प्रमुख है. यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को जीत बैलेट की बदौलत नहीं वायलेंस से मिली. अन्य कारणों को लेकर राज्य इकाई की होनेवाली बैठक में समीक्षा की जायेगी. इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

      आप रिगिंग की बात कह रही हैं. मतदान में चुनाव आयोग की भूमिका के विषय में क्या कहेंगी?

      मतदान के दौरान माकपा द्वारा हिंसा व अन्य मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष 466 से ज्यादा मामले दर्ज कराये गये. यदि आयोग इन शिकायतों पर गौर करता, ठोस कदम उठाये जाते तो बंगाल में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव हो पाते. मतदान के दौरान मतदाताओं व वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमले हुए. महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. आलम यह रहा कि गर्भवती महिला मतदाता पर हमले हुए. कहा जा सकता है कि मतदान निष्पक्ष और शांतिपूर्ण करा पाने में चुनाव आयोग नाकाम रही और उसकी भूमिका पक्षपातपूर्ण, निराशाजनक और उदासीन रही.

      तृणमूल सरकार के कार्यो को 10 में से कितना नंबर देंगी?

      सरकार के रूप में कार्य करने की क्षमता तृणमूल कांग्रेस के पास नहीं है. आम जनता को केवल धोखा देने की कोशिश की जा रही है. बंगाल में हिंसा की राजनीति की जा रही है. महिलाओं की सुरक्षा पर संशय की स्थिति बनी हुई है. विपक्षी दलों पर हमले जारी हैं. मौजूदा सरकार की कोई गुणवत्ता नहीं है. विकास मूलक कार्य नहीं हुए हैं. ऐसे में 10 में एक भी अंक नहीं दे सकती.




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