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জাকাত, ২৭টি লাশ এবং নিম্ন মধ্য আয়ের দেশ শুক্রবার ভোরবেলা। স্থান ময়মনসিংহ শহরের অতুল চক্রবর্তী সড়কের একটি বাড়ি। ৮ থেকে ১০ ফুট উঁচু ফটক। সেই ফটক খুলে দেওয়া হলো জাকাতপ্রার্থীদের জন্য। আর মেঘনার ভয়াল স্রোতের মতো মানুষ সেখানে ঢুকে পড়লেন। কিছুক্ষণ আগেও যাঁরা ছিলেন জীবন্ত মানুষ, মুহূর্তে তাঁরা হয়ে গেলেন লাশ।...

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জাকাত, ২৭টি লাশ এবং নিম্ন মধ্য আয়ের দেশ
www.prothom-alo.com/opinion/article/575350

শুক্রবার ভোরবেলা। স্থান ময়মনসিংহ শহরের অতুল চক্রবর্তী সড়কের একটি বাড়ি। ৮ থেকে ১০ ফুট উঁচু ফটক। সেই ফটক খুলে দেওয়া হলো জাকাতপ্রার্থীদের জন্য। আর মেঘনার ভয়াল স্রোতের মতো মানুষ সেখানে ঢুকে পড়লেন। কিছুক্ষণ আগেও যাঁরা ছিলেন জীবন্ত মানুষ, মুহূর্তে তাঁরা হয়ে গেলেন লাশ।...

Hilary Clinton: In the Next War, I will let Israel Kill 200,000 Gazans

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Hilary Clinton: In the Next War, I will let Israel Kill 200,000 Gazans

Romi Elnagar

Yesterday, I sent you this article about Hilary Clinton.  Today a friend, M, wrote to me and advised me it is from a "fake site," and when I checked, I discovered that to be true.  

This is what I wrote to M, though.  It is something I always think when hearing a rumor.

I will let you decide how much of a a mistake it really was to send the article to you.

.....................

Mac,

It is indeed [a fake site].  I didn't realize that.  Thank you for pointing that out.

Now I will have to tell everyone I sent it to.

I have to say one thing in my own defense, though.

While it is true that it is satire, it would not be mistaken for the truth if Hilary Clinton were not so egregiously pro-Israel.  The reason I could believe it is because it is in line with everything else she has said and done.  While she has not advocated genocide per se, there is this:

 
 
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When Israel attacked Gaza, killing 100 civilians, Hillar...
This Economist review of HRC, a favorable new biography of Hillary Clinton by Jonathan Allen and Amie Parnes, says the superficial account doesn't tell us much abo...
Preview by Yahoo
 

I have found Philip Weiss to be a trustworthy source, and so when I hear a rumor that she has said something in private to a donor about killing more Gazans, I am not inclined to doubt it.  Perhaps I am being unfair, but I really don't think so.  I think she is capable of thinking something like that, and pandering to wealthy Zionist backers to the degree this article suggests.

Anyway, thanks for the heads-up,
Romi




From: Romi Elnagar <montereypinegreen@yahoo.com>
To: 
Sent: Thursday, July 9, 2015 7:42 PM
Subject: Hilary Clinton: In the Next War, I will let Israel Kill 200,000 Gazans

 
 
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Clinton to Donor: In Next War, I Will Let Israel Kill 20...
Democratic presidential front-runner Hillary Clinton has penned a controversial letter to a major Jewish donor vowing to offer Israel "total" support in it
Preview by Yahoo
 

बाकी जनता ओबीसी के साथ,ओबीसी को लेकिन किसकी परवाह? फिर भी हिंदुत्व की इस नर्क को बनाये रखने में सारे बहुजन एक हैं।मनुस्मृति भी जलायेंगे और जात पांत से चिपके भी रहेंगे ,ऐसी होगी क्रांति,वाह। मीडिया हमेशा आधिकारिक वर्सन को छापता है और सरकार या प्राशासन या पुलिस जबतक कनफर्म न कर दे, कोई खबर नहीं हो सकती।मसलन बिना एफआईआर दर्ज हुए किसी वारदात को मीडिया में खबर बनाने की सख्त मनाही है।ऊपर से गोपनीयता भंग न करने की शर्त है।इसी विशेषाधिकार के दम पर मध्य पूर्व एशिया,वियतनाम,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में अमेरिका ने मीडिया की सर्वज्ञ खामोशी की आड़ में सीधे नरंहार अभियान चलाकर करोड़ों लोगों की जान लेते रहने का सिलसिला जारी रखा है।यही है अमेरिका के आतंक के किलाफ युद्ध का आधार। भारत में भुक्तभोगी का एफआईआर दर्ज हो तो करिश्मा समझें तो आधिकारिक खबरें छापने वाले मीडिया की औकात भी समझ लें।चूंकि खंडन नहीं हुआ है अभी तक और हम सच जानना चाहते हैं,इसीलिए वे वीभत्स तस्वीरें फिर ताकि कम से कम आपके दिलोदिमाग में कोई हलचल हो। पलाश विश्वास

Next: ताज महल वास्तव में शिव मन्दिर था और उसका मूल नाम तेजो महालय है । "यह रहस्योद्घाटन करने वाले कृपया अपने बच्चों को यही मूल इतिहास पढ़ायें और फिर देखते हैं कि वे एक चपरासी की प्रतियोगिता परीक्षा भी पास कर पाते हैं या नहीं । मासूम और धर्म भीरु युवकों को स्व निर्मित इतिहास की यह ज़हरीली घुट्टी पिलाने वालों का कौन हवाल ? क्या यह धंधा नकली ज़हरीली शराब के कारोबार से कम घातक है ?
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बाकी जनता ओबीसी के साथ,ओबीसी को लेकिन किसकी परवाह?

फिर भी हिंदुत्व की इस नर्क को बनाये रखने में सारे बहुजन एक हैं।मनुस्मृति भी जलायेंगे और जात पांत से चिपके भी रहेंगे ,ऐसी होगी क्रांति,वाह।

मीडिया हमेशा आधिकारिक वर्सन को छापता है और सरकार या प्राशासन या पुलिस जबतक कनफर्म न कर दे, कोई खबर नहीं हो सकती।मसलन बिना एफआईआर दर्ज हुए किसी वारदात को मीडिया में खबर बनाने की सख्त मनाही है।ऊपर से गोपनीयता भंग न  करने की शर्त है।इसी विशेषाधिकार के दम पर मध्य पूर्व एशिया,वियतनाम,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में अमेरिका ने मीडिया की सर्वज्ञ खामोशी की आड़ में सीधे नरंहार अभियान चलाकर करोड़ों लोगों की जान लेते रहने का सिलसिला जारी रखा है।यही है अमेरिका के आतंक के किलाफ युद्ध का आधार।


भारत में भुक्तभोगी का एफआईआर दर्ज हो तो करिश्मा समझें तो आधिकारिक खबरें छापने वाले मीडिया की औकात भी समझ लें।चूंकि खंडन नहीं हुआ है अभी तक और हम सच जानना चाहते हैं,इसीलिए वे वीभत्स तस्वीरें फिर ताकि कम से कम आपके दिलोदिमाग में कोई हलचल हो।

 पलाश विश्वास

भारत में पिछड़े समुदायों के लोग कुल कितने हैं,जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक न होने के बावजूद यह कोई राज लेकिन है नहीं कि मंडल कमीशन के मुताबिक 54 फीसद न सही,सबसे ज्यादा जनसंख्या उन्हींकी है और इस हिसाब से उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।


बाहुबलि जातियों के दबंगों की सत्ता में सक्रियभागेदारी के बावजूद सच यही है कि निनानब्वे फीसद ओबीसी की हालत दलितों और आदिवासियों और मुसलमानों से कतई बेहतर नहीं है।


सच यह भी है कि ओबीसी गिनती का आंदोलन लेकिन सत्ता में भागीदार और मनसबदार सिपाहसालार लोग नहीं चला रहे थे।जैसा कि मीडिया की हंगामाखेज रपटों से जाहिर है।संसद में जरुर उन लोगं ने इस आंदोलन का समर्थन किया है।


ओबीसी के हक हकूक का मसला सबसे पहले बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर संसद, संविधान और सड़क पर उठा रहे थे,लेकिन ओबीसी जातियां तब उनके साथ खड़ी नहीं थीं।वरना बाबासाहेब सिर्फ महाराष्ट्र के महार और बंगाल के नमोशूद्र जातियों के नेता बने रहकर घुटघुठ कर मधुमेह के शिकार नहीं बन जाते और मौत के बाद उनका आखेट नहीं होता इसतरह बेलगाम।बाबासाहेब भेल हैं वे हम सबके,लेकिन अब भी वे उतने ही अस्पृश्य,दलित हैं।अनाथ हैं बाबासाहेब हमारे।कोई नहीं उनका।


मंडल कमीशन रपट जारी होने के बाद आरक्षण विरोधी आंदोलन के साथ साथ राममंदिर आंदोलन का कमंडल विकल्प सुनामी बनकर देश को हिंदू राष्ट्र बना गया तो इसके तमाम सिपाहसालार ओबीसी के बाहुबलि क्षत्रप हैैं और अपनी जातियों के वर्चस्व कायम रखने में किसी सूबे में किसी क्षत्रप ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।इसके उदाहरण बाद में।


सबसे बड़ा सच यह है कि बामसेफ के मंचों से लगातार लगातार ओबीसी की गिनती की मांग उठती रही है और देश भर में बामसेफ कार्यकर्ता इस सिलसिले में जनजागरण करते रहे हैं लेकिन तब भी बाहुबलि जातियों को बाकी लोगों की परवाह नहीं थी क्योंकि सूबों की सत्ता उनके हाथ में थी।हम इस मुहिम में लगातार शामिल रहे हैं।


सूबे में वे ओबीसी राजकाज क्या कर रहे हैं,विजयराजे सिंधिया से लेकर अखिलेश,नीतीश कुमार तक तमाम ओबीसी नेताओं की क्या कहिये अमित साह के मुताबिक देश के प्रथम ओबीसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजकाज का नजारा देख लीजिये।वैसे अमित के दावे के विपरीत पहले ओबीसी प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे और उनके बाद फिर कर्नाटक के देवगौड़ा।


चौधरी साहेब की जमींदारी पश्चिम उत्तर प्रदेश में तो उनके जीते जी हरिजनों को वोट डालने के अधिकार ही न थे और मुसलमानों के खिलाफ दंगे भी उन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा और लगातार होते रहे हैं।इसीतरह कर्नाटक मे देवगौड़ा का जलवा अभी खत्म हुआ नहीं है।


जिन जातियों को आरक्षण का लाभ सबसे ज्यादा मिला है,वे इसे दूसरे जातियों को देना नहीं चाहतीं और उन जातियों की संख्या कहीं ज्यादा है जिन्हें आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला है।


दलितों और आदिवासियों को मिले आरक्षण की सारी मलाई गिनी चुनी जातियों को मिली और यह भी कोई राज नहीं।कोई भी उन जातियों के नाम उंगली पर गिना सकता है।


भारत में बंगाल से लेकर पंजाब तक कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक गुजरात से लेकर राजस्थान तक महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक और पूर्वोत्तर और सत्ता केंद्र दिल्ली में सत्ता में भागेदारी भी इनी गिनी जातियों को ही मिली और बाकी बहुजन जनता जाति समीकरण में कमतर औकात के कारण ठगी रह गयी।


मध्यबिहार में नरसंहार के करिश्मे में भी ओबीसी जमींदारों की बहुत बड़ी भागीदारी है।


बंगाल में दलितों,आदिवासियों को कही किसी भी क्षेत्र में कोई प्रतिनिधित्व सिर्फ इसलिए नहीं मिलता कि बाबाहसाहेब ने जिन जातियों को शूद्र कहा है,वे सवर्ण आधिपात्य में सत्ता में भागेदारी निभा रहे हैं।


समता और सामाजिक न्याय सिर्फ विचाधारा तक सीमाबद्ध है,हकीकत की जमीन पर कहीं नहीं।क्योंकि बहुजनों की फितरत है कि एक बार अपना हिसाब किताब बराबर हो जाये तो बाकी जनता की सोचो नहीं।


सबसे हैरत अंगेज मामला बिहार का है जहां चुनाव होने वाले हैं और वहां ओबीसी का जलवा इतना प्रलयंकर है कि चुनाव जीतने के लिए संघ परिवार की समरसता जीतन मांझी की डगमगाती नैय्या और पासवान के दलित वोटबैंक के बावजूद ओबीसी पहचान के हवाले हो गयी और अमित साह ने हिंदू ह्रदयसम्राट को देश के नेता के रुतबे से खींचकर ओबीसी का नेता बना दिया।


उस बिहार में लखासराय से कुछ दिल दहलाने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वाइरल हैं।हमने पहले इन तस्वीरों को अंग्रेजी डिसक्लेमर के साथ ग्राफिक फोटो के बतौर सोशल मीडिया के साथ साथ अपने ब्लागों पर साझा किया।लेकिन कहीं कोई प्रतिक्रिया न होने पर हमने इस पर कल रात हिंदी में लिखा।अमलेंदु को फोन किया तो वे बोले कि इन तस्वीरों की क्या प्रामाणिकता है।हो सकता है कि यह कोई दुर्घटना हो।हस्तक्षेप में फिरभी वह आलेख लगा है।तस्वीरों के साथ।


तो बिहार में सरकार तो सामाजिक न्याय और समता के नाम है और इन तस्वीरों की जिम्मेदारी सीधे उसपर है।


इन तस्वीरों में पुलिस की मौजूदगी भी दर्ज है तो यह हरगिज नहीं हो सकता कि पुलिस प्रशासन को इस वाकये के बारे में कुछ भी मालूम न हो।


हमारे पाठक बिना प्रिंट के सोशल मीडिया पर लाखों में हैं,दो दिनों से हम लगातार इस मामले को उटा रहे हैं।लखनऊ की मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर इसे उठा रही है।दूसरे लोग भी सोशल मीडिया पर बेचैन करने वाली टिप्पणियां कर रहे हैं। लेकिन राजनीति और सत्ता के मोर्चे में सिरे से सन्नाटा है।मीडिया खामोश।


खबर और तस्वीरें गलत हैं तो वही बता दें ताकि ज्यादा रायता न फैलें।ऐसा भी नहीं कि सत्ता और राजनीति के लोग सोशल मीडिया पर नहीं है।हम खुद तमाम मंत्रियों,अफसरों और सारे मीडिया संपादकों के साथ जुड़े हैं।


मीडिया हमेशा आधिकारिक वर्सन को छापता है और सरकार या प्राशासन या पुलिस जबतक कनफर्म न कर दे, कोई खबर नहीं हो सकती।मसलन बिना एफआईआर दर्ज हुए किसी वारदात को मीडिया में खबर बनाने की सख्त मनाही है।ऊपर से गोपनीयता भंग न  करने की शर्त है।इसी विशेषाधिकार के दम पर मध्य पूर्व एशिया,वियतनाम,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में अमेरिका ने मीडिया की सर्वज्ञ खामोशी की आड़ में सीधे नरंहार अभियान चलाकर करोड़ों लोगों की जान लेते रहने का सिलसिला जारी रखा है।यही है अमेरिका के आतंक के किलाफ युद्ध का आधार।



अमेरिका और इजराइल के और माफ करें ,अखंड हिंदू राष्ट्र के आतंक के खिलाफ युद्ध का सच भी वहीं है कि मीडिया जनता के खिलाफ जारी चांदमारी पर खामोश आधिकारिक बयान और एफआईआर के इंतजार में होता है और पुलिस और प्रशासन के बयान को वह सौ टका सच मान लेता है,भले ही वह मंत्रियों और राजनेताओं की खूब खिंचाई करें अपने अपने समीकरण के हिसाब से।


भारत में भुक्तभोगी का एफआईआर दर्ज हो तो करिश्मा समझें तो आधिकारिक खबरें छापने वाले मीडिया की औकात भी समझ लें।चूंकि खंडन नहीं हुआ है अभी तक और हम सच जानना चाहते हैं,इसीलिए वे ही वीभत्स तस्वीरें फिर ताकि कम से कम आपके दिलोदिमाग में कोई हलचल हो।


सच सामने आया होता तो कि इराक ने कोई जलसंहारी हथियारों का जखीरा जमा नहीं किया तो यकीनन  न्यूयार्क का ट्विन टावर वहीं बहाल रहता और दुनियाभर में मुसलमानों के कत्लेआम का यह जायनी जश्न भारत में भी मनाया नहीं जा रहा होता।न्यूयर्क से लेकर गुजरात,गुजरात से लेकर यूपी,खस्मीर,मध्यभारत और असम तक सच कब सामने आया है?


मीडिया की सीमा है लेकिन सत्ताविरधी हर आवाज को कुचलने रौंदने और जनपदों से राजधानियों में भी सच बोलने लिखने का साहस कर रहे मडियाकर्मियों के वध महोत्सव के इस परिवेश में जब कश्मीर या मध्यभारत पर लिखा कुछ भी पोस्ट करने से तत्काल चंद सेकंड में ही सारे ईमेल आईडी ब्लाक कर दिये जायें,ब्लाग डिलीट कर दिये जायें,जैसा कि रोज रोज मेरे साथ होता है।जबतक नये सिरे से रिेक्टिवेट हो आईडी या नये सिरे से ब्लाग बहाल हो तब तक डैमेज कंट्रोल हो जाता है।


इतने चाक चौबंद नियंत्रण प्रणाली के बावजूद नीतीश कुमार और लालू प्रसाद तो क्या केंद्र सरकार को अपनी तमाम एजंसियों और अपने डिजिटल इंडिया के सवा अरब लोगों से सीधे इंटरएक्ट करने वाले प्रधानमंत्री तक ये तस्वीरें पहुंची हैं नहीं,ऐसा कमसकम हम मान नहीं सकते।


फिर चुनाव समीकरण पलट देने वाले इस वाकये पर जीतन राम मांझी,दलितों के राम बने हनुमान रामविलास पासवान और उनके चतुर सुजान पुत्र चिराग पासवान क्यों खामोश हैं,यह समझ से परे हैं।


इस देश की इंच इंच जमीन पर संघपिरवार काबिज है और सचमुच उसका हिंदू राष्ट्र अखंड है तो बिहार में ओबीसी राजकाज के इस वाकये पर वह क्यों खामोश है।


इसका लेकिन जवाब है कि दलितों को और मुसलमानों को और आदिवासियों को हमेशा औकात में रखने की रणनीति सवर्ण राजनीति है संघपरिवार की समरसता रस से महमहाती।


चाहे घटना खैराजंलि की हो या नागौर की या बोलांगीर की,या मद्यबारत के आदिवासी भूगोल की या कस्मीर या पूर्वोत्तर के आफ्स्पा आखेटगाहों की ,जब बलात्कार के शिकार हों,कत्लेआम  के शिकार हों,दलित,आदवासी या मुसलमान  तो गोपनीयता की दुहाई देकर उनकी उदात्त घोषणा होती है कि यह नृशंस वारदात मनुष्यता के विरुद्ध अपराध है  किसी दलित,मुसलमान या आदिवासी के खिलाफ नहीं।वारदात की शिकार महिला या वारदात में जिनका कत्लेआम हुआ,उनकी पहचान बताकर अंखड हिंदू राष्ट्र और सनातन वैदिकी हिंदू समाज का विभाजन न करें और खासतौर पर वारदात जब बाहुबली या सवर्णों की ताकत का इजहार हो तो संघपरिवार योगाभ्यासी मौन धारण कर लेता है।


सत्तर दशक के जनांदोलनों की पैदाइश मुलायम,मायावती, लालू प्रसाद,नीतीश कुमार,सुशील मोदी,शरद यादव और रामविलास पासवान इतने मुखर है कि हम उनकी आवाज को ही दलितों और पिछड़ों की आवाज मानते रहे हैं दशकों से ।इनमें से सिर्फ मायावती की कोई भूमिका सत्तर के दशक में नहीं रही हैं और वे मान्यवर कांशीराम के बहुजन आंदोलन की उपज हैं।


सचमुच यकीन नहीं आता कि दिखाने को चेहरे अनेक हैं,संसद और विधानसभाओं में बहुजनों के मनुमाइंदे भी गिनती के लिए अनेक हैं,जिनकी सत्ता में भागेदारी को हम अब तक सामाजिक बदलाव मानते रहे हैं ,लेकिन बाबासाहेब का मूक भारत नसिर्फ मूक है,वधिर और अंधा भी है।


हम इस आलेख के साथ फिर वे ही तस्वीरें नत्थी कर रहे हैं,कृपया संबद्ध लोग बतायें कि ये तस्वीरें सच है या झूठ।


बहरहाल धारणा यही है कि ओबीसी गिनती  जनगणना में ओबीसी सिपाहसालारों की वजह से है,यह सरासर झूठ है। यह आंदोलन बामसेफ का रहा है,ओबीसी सिपाह सालारों और मनसबदारों का नहीं।


बहरहाल धारणा यही है कि सरकार ये आंकड़ें सामने इसलिए नहीं ला रही है कि जनसंख्या के मुताबिक नौकरियों में आरक्षण देना होगा।आरक्षण वोटबैंक के लिए बहुत काम की चीज है रोजी रोजगार और नौकरियों के लिए नहीं।


मान लीजिये कि आंकड़े जग जाहिर हो भी गये और ओबीसी प्रदानमंत्री ने जनसंख्या के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट की बाधादौड़ पूरी करकेजनसंख्या के हिसाब से आरक्षण दे भी दिया तो नौकरियां कहां हैं,उसका जायजा तो ले लीजिये।नौकरियां सार्वजनिक क्षेत्र में रह ही कितनी गयी है?वहां 1991 से स्थाई नौकरियां हैं ही कितनी?1991 से नियुक्तियों के आंकडे तो पहले सार्वजनिक करायें।


दरअसल जाति आधारित जनगणना से पहले संपूर्ण निजाकरण और संपूर्ण विनिवेश के आर्थिक सुधार लागू हैं और नौकरियां भी पीपीपी माडल हैं।एफडीआई में निष्णात हैं नौकरियां,आजीविकाएं,रोजी रोटी ,जल जंगल जमीन नागरिकता,नागरिक और मानवाधिकार।


बहुजनों की सत्ता में भागेदारी की  राजनीति ने इस अश्वमेध अभियान के खिलाफ कभी अपना विरोध दर्ज कराया हो तो ब्यौरा जरुर दें।


गौर करें कि सरकारी नौकरियों में फजीहत इतनी ज्यादा है कि दबंग मेधा समुदायों को उनकी कोई गरज नहीं है क्योंकि निजी क्षेत्र में आदिवासियों, दलितों,पिछड़ों और मुसलमानों के लिए गिनी चुनी  नौकरियां हैं और जिन्हें मिल भी जाती हैं वे नौकरियां ,उनकी कोई तरक्की  नहीं होती।


मीडिया में एकबार दाखिला लेकर तो देखें कि क्या हाल बनता है दो चार जातियों के अलावा बाकी किसी समुदाय से आये लोगों का।उन जातियों का हम नाम नहीं लेंगे बहरहाल।


क्योंकि निजी क्षेत्र में शत प्रतिशत वर्चस्व सिर्फ खास इनी गिनी जातियों का है।


फिरभी बहुजन समाज का झूठ बहुजनों के लिए ख्वाहबी पुलाव है और जाति की पहचान और गिनती के भरोसे वे गौतम बुद्ध की क्रांति दोहराने का ख्वाब देखते हैं जबकि ओबीसी के सबसे ज्यादा लोग राजकाज में हैं केंद्र में भी और राज्यों में भी और उन्हें वाकई दलितों,मुसलमानों और आदिवासियों से कुछ लेना देना नहीं है।


फिर भी हिंदुत्व की इस नर्क को बनाये रखने में सारे बहुजन एक हैं।मनुस्मृति भी जलायेंगे और जात पांत से चिपके भी रहेंगे, ऐसी होगी क्रांति,वाह।


आपको याद होगा कि एक अंग्रेजी अखबार ने बरसों पहले डीएनए रपट के आधार पर खबर निकाली थी कि ब्राह्मण विदेशी हैं।


आज उसी समूह के सबसे बड़े आर्थिक अखबार में फिर खुलासा हुआ है कि सरकार को इस बात का कतई डर नहीं है कि ओबीसी गिनती हुई तो तो बराबर हिसाब करना होगा और नौकरियां देनी होंगी क्योंकि आरक्षण देने लायक नौकरियां हैं ही नहीं और सारी आजीविकाएं,रोजी रोटी और नौकरियां मेकिंग इन पीपीपी है।


खुलासा हुआ है कि अब आरक्षण से मनुस्मृति के वारिसान कतई डरते नहीं है और आर्थिक सुधारों से जो निजी क्षेत्र का देश बना है,उसमें दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और मुसलमानों के लिए कोई जगह दरअसल नहीं है।


फिर वही निष्कर्ष भूलभूलैय्या जिसमें बहुजन जनता की भेड़धंसान है कि जाति जनसंख्या के आंकड़ों से डर इसलिए है कि इनसे साबित होता है कि बहुजनों को किसी भी क्षेत्र में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है और सत्ता में हिस्सेदारी तब देनी ही पड़ेगी।


सत्ता का लालीपाप फिर वही।

अंग्रेजी की वह खबर नत्थी करने से पहले फिर वे तस्वीरे जिनका अभीतक खंडन नहीं हुआ हैः

WARNIG:GRAPHIC PHOTO


Sorry to post these Horrible Photos.Be brave enough to face the Indian reality of Class Caste hegemony role of genocide culure,the BRUTE Apartheid.I am afraid that I have to shock you if you happen to be human enough!However biometric robotic clones have no mind or heart as most of us remain headless chicken as they describe:KABANDH!

साथियो

जाति व्यवस्था का क्रूर परिणाम है जो मन्नू तांती के साथ घटित हुई है. अपने देश में दलितों की दशा एवं दिशा का यह जीता जागता प्रमाण आपके सामने है.

यह घटना बिहार राज्य के जिला लक्खीसराय गांव खररा की है। स्व. मन्नू तांती के साथ यह घटी है. केवल अपने पिछले चार दिनों की मजदूरी मांगने के कारण मन्नू तांती को गेहूं निकालने वाली थ्रेसर में जिन्दा पीस दिया गया. इस जघन्य हत्या का अंजाम उसके गांव के दबंग लोगों  ने दिया.



Jul 12 2015 : The Economic Times (Kolkata)

Look Who is Afraid of the Caste Census

Rajesh Ramachandran






Are numbers being hidden because they could well reveal the upper caste dominance in governance?

Nobody has ever accused former Bi har chief minister Lalu Prasad Ya dav of number crunching. All his life he has milked cows and caste with out ever needing to count. Yet, he is all set to lead a protest march in Patna on July 13 seeking the publica tion of caste data in the socio-eco nomic caste census. If the other big Yadav chieftain, Mulayam Singh Ya dav, rakes it up in Uttar Pradesh too, this issue can assume critical mass forcing the BJP-led central govern ment to act. And if it doesn't act, the refusal to publish caste numbers could become a rallying point against the BJP in the Bihar polls, where castes are the constant fac tors in the poll calculus.

The pundits have insisted that the government is hiding the caste cen sus data fearing a backlash from the backward castes. According to the 1931 census and the 1980 Mandal commission, the backward classes numbered around 54% of the total population and if the new census fig ures are higher than this, the back ward classes could ask for a bigger share in education and jobs.

Denial of caste numbers could be portrayed as an attempt to deny the rightful proportion of jobs and edu cational opportunities and be turned into an emotive issue for Lalu Pras ad's 12% Yadavs who lag behind in education, jobs and upward mobili ty. If Yadav identity and the denial of rights become the big issue, Lalu could hope to get his Yadav brethren to ensure a remarkable comeback after being relegated to the sidelines of Bihar politics.

A Conspiracy Theory

But is that all? Is the government hiding the figures just to deprive the other backward classes (OBCs) of a few seats in government educational institutions or a clutch of jobs in the dwindling government job market? Well, the government circles are abuzz with a conspiracy theory of a different kind. Unlike the pundits who believe that the government has conspired to deny the backward masses a little more of their due, some top bureaucrats believe that the attempt is not to hide the OBC figures but to sup press the more dangerous upper caste numbers.

A large section of the upper castes, particularly the castes that dominated the upper and lower bureaucracy, had a long time ago shifted their focus to the private sector. They now control the wheels of power in the entire pri vate sector where no Dalit or OBC can easily break the invisible glass ceiling. It is not government jobs that would bother the upper castes, but the government itself.The upper castes have been run ning governments at the Centre and the states for so long that they don't want the caste census to fi nally proclaim that the Indian democracy is not really representative.

The only backward caste minister of any consequence in the Narendra Modi cabinet is Modi himself. In the 27-member cabinet, 20 are from upper castes.Roughly 30% or eight of the cabinet ministers are Brahmins, four are from the Kshatriya community and there is Vaishya, Kayastha, Kamma, Maratha and Khatri representation. So, less than 10% of the population is virtually running the government and ruling the masses. If the OBC numbers are about 60% of the total population and the SCST, the only known figures, are 30%, the upper castes can only be 10% of the population. Or if we go by the generous Mandal Commission figures the upper caste numbers ought to be just 16-18% and nothing more.

Now, the strangest aspect of the Indian democracy is that since Independence we have been ruled only by the upper castes: about 50 years by Brahmins, if we count Rajiv Gandhi too, 10 years by a Khatri Sikh and the others have largely been blips on the govern ance radar. Former prime minis ter HD Deve Gowda's Vokkaligas are backward, so he is the first backward caste PM. Though Modi's caste was listed as OBC in 1994, he played the caste card only during the 2014 polls, and now his team is largely upper caste. This is the context in which the BJP government is refusing to announce the exact number of upper castes in the country.

States No Different

The situation is similar in many states. West Bengal, Maharashtra, Tamil Nadu and Goa have Brah min chief minis ters, Rajasthan has a Maratha from a former royal fami ly, Telangana a Ve l a m a l a n d l o rd caste, Andhra a Kamma, Haryana a Khatri, Punjab a Jat Sikh, Kerala an up per caste Chris tian, Himachal a Rajput and so on.

In the 29 states of the Indian Union, there are hardly five or six OBC chief ministers and no Dalit leadership.

According to a story making the rounds, when the caste data was compiled a top official was so startled to see the upper caste numbers (because they were in significantly low in comparison with the rest of the castes) that he immediately jumped into his ve hicle and sped towards Raisina Hill to share the findings with his bosses. They too were convinced that the upper caste numbers are dangerously low to be revealed to the world. Whether the story is true or false, only a disclosure of caste numbers can push adminis trators and people towards pro portionate representation in all walks of life.









ताज महल वास्तव में शिव मन्दिर था और उसका मूल नाम तेजो महालय है । "यह रहस्योद्घाटन करने वाले कृपया अपने बच्चों को यही मूल इतिहास पढ़ायें और फिर देखते हैं कि वे एक चपरासी की प्रतियोगिता परीक्षा भी पास कर पाते हैं या नहीं । मासूम और धर्म भीरु युवकों को स्व निर्मित इतिहास की यह ज़हरीली घुट्टी पिलाने वालों का कौन हवाल ? क्या यह धंधा नकली ज़हरीली शराब के कारोबार से कम घातक है ?

Previous: बाकी जनता ओबीसी के साथ,ओबीसी को लेकिन किसकी परवाह? फिर भी हिंदुत्व की इस नर्क को बनाये रखने में सारे बहुजन एक हैं।मनुस्मृति भी जलायेंगे और जात पांत से चिपके भी रहेंगे ,ऐसी होगी क्रांति,वाह। मीडिया हमेशा आधिकारिक वर्सन को छापता है और सरकार या प्राशासन या पुलिस जबतक कनफर्म न कर दे, कोई खबर नहीं हो सकती।मसलन बिना एफआईआर दर्ज हुए किसी वारदात को मीडिया में खबर बनाने की सख्त मनाही है।ऊपर से गोपनीयता भंग न करने की शर्त है।इसी विशेषाधिकार के दम पर मध्य पूर्व एशिया,वियतनाम,अफ्रीका और लातिन अमेरिका में अमेरिका ने मीडिया की सर्वज्ञ खामोशी की आड़ में सीधे नरंहार अभियान चलाकर करोड़ों लोगों की जान लेते रहने का सिलसिला जारी रखा है।यही है अमेरिका के आतंक के किलाफ युद्ध का आधार। भारत में भुक्तभोगी का एफआईआर दर्ज हो तो करिश्मा समझें तो आधिकारिक खबरें छापने वाले मीडिया की औकात भी समझ लें।चूंकि खंडन नहीं हुआ है अभी तक और हम सच जानना चाहते हैं,इसीलिए वे वीभत्स तस्वीरें फिर ताकि कम से कम आपके दिलोदिमाग में कोई हलचल हो। पलाश विश्वास
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ताज महल वास्तव में शिव मन्दिर था और उसका मूल नाम तेजो महालय है । " यह रहस्योद्घाटन करने वाले कृपया अपने बच्चों को यही मूल इतिहास पढ़ायें और फिर देखते हैं कि वे एक चपरासी की प्रतियोगिता परीक्षा भी पास कर पाते हैं या नहीं । मासूम और धर्म भीरु युवकों को स्व निर्मित इतिहास की यह ज़हरीली घुट्टी पिलाने वालों का कौन हवाल ? क्या यह धंधा नकली ज़हरीली शराब के कारोबार से कम घातक है ?


  • Tabish Siddiqui like emoticon
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  • Manoj Tiwari ताज महल वास्तव में शिव मन्दिर था और उसका मूल नाम तेजो महालय है । " यह रहस्योद्घाटन करने वाले कृपया अपने बच्चों को यही मूल इतिहास पढ़ायें और फिर देखते हैं कि वे एक चपरासी की प्रतियोगिता परीक्षा भी पास कर पाते हैं या नहीं । ...........सत्य कहा आपने दुनिया को मत ग्ल्ब्लाओ अपने बच्चो से शुरुआत करो
    Like · Reply · 5 · 8 hrs
  • Vipul Painuli "इन पर भी दफा ६० एक्साईज एक्ट का मुकद्दमा चलाया जाये ....   
    Like · Reply · 2 · 8 hrs
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  • Rajneesh Khatri गजब यार
    Like · Reply · 1 · 8 hrs
  • Kailash Mina हद हो गई और कितना कबाड़ बनायेगे ये इतिहास का
    Like · Reply · 1 · 8 hrs
  • Arun Pratap Singh You have fantastic imagination Rajiv Bahuguna ji. While nobody will write history about Taj Mahal in the way you have imagined, it remains a fact that our history is already written from the British and leftist perspectives and is not completely truthful. Besides this, it also is an undeniable fact that Muslim invaders in India destroyed innumerable temples and other Hindu buildings and other items.
    Like · Reply · 1 · 8 hrs
  • Rajneesh Agnihotri बिलकुल सही बात
    Like · Reply · 1 · 8 hrs
  • Minhaz Khan ये उलुल जुलूल के बाते कर के पता नही देश को क्या संदेश देना चाहते है,
    Like · Reply · 2 · 8 hrs
  • Ajay Ajey Rawat मजहब का नशा अफीम के नशे से ज्यादा बरबादी देता है
    Like · Reply · 5 · 8 hrs
  • Arvind Råwat गजब का लिखा है आपने।
    Like · Reply · 1 · 7 hrs
  • Kushiram Raturi Very good morning sir wow kya bat hai super. ..
    Like · Reply · 1 · 7 hrs
  • Sudhir Panwar ये तो संविधान है जो लिखा है मानना पडेगा. नही तो जिस गांधी ने भगत सिह को आतंगवादी कहकर फांसी दिलवाने कोइ कसर नही छोडी, वो राष्टपिता कहलाये, नोटो पे फोटो भी, मेरा personal experience है गांधी के बारे में 99% लोग सही नही सोचते, क्यों कि सब political है. लेकिन exam में लिख नही सकते फेल हो जायेंगे
    Like · Reply · 6 · 7 hrs
  • Namrata Semwal Good morning bhai sahaab have a beautiful Sunday 

    What has been written in this post of yours.......... Makes me go round n round.....it just not fit in my wildest of the dream....... From where people get all these ideas is what, surprises me...
    ... I am stunned by this post....... God bless us to do what is right n make us so pure that we think only positive n good......for us.... The mankind, r environment n for all living beings
    Like · Reply · 4 · 7 hrs · Edited
  • Thapliyal Neelash इतिहास बदला जायेगा सविधान बद्दला जायेगा । but बदलेगा कौन?
    Like · Reply · 2 · 7 hrs
  • Anusooya Prasad Ghayal दादा कुछ कहने को नही बन रहा है ।बस इतना कहूंगा -
    "नफरतों की जंग में न जाने क्या - क्या हो गया ।
    सब्जियाँ हिन्दू हुई बकरा मुसलमां हो गया "
    Like · Reply · 6 · 7 hrs
  • Kamlesh Bhatt महत्वपूर्ण जानकारी ।आभार
    Like · Reply · 1 · 7 hrs
  • Narayan Swarup Kukrety Tajmahal ka he Sidhant itihaskaar p.n.oak sahib ki den hai .....1970 me unki iss visay mein bhashan -Mala arya samaj Dehradun me suni thi ,Jo U.S. samaj 19 varsh ki ayu main bhi santust nahi Kat saki thi
    Like · Reply · 2 · 6 hrs
  • Ratan Singh Aswal देश दुनिया के बारे मे तो नहीं कह सकता पर हाँ पहाड़ी का बच्चा जरूर फेल हो जायेगा क्योकि उसका सामान्य ज्ञान कम होता है , 
    धन्य है म्रेरे उत्तराखंड के कर्ता धर्ता ये जानते हुये भी कि पहाड़ी लोगो का सामान्य ज्ञान संसाधनो की कमी के चलते कम होता है बाबजूद उत्तराखंड मे सरकारी नोकरी के लिए सामान्य ज्ञान की भी परीक्षा होती है ।
    अब इससे किसे लाभ है ?

    बल भैजी ??????????
    Like · Reply · 2 · 6 hrs · Edited
  • D.s. Bhandari सही बात है।भरमाने वालों की कमी नहीं है भाईजी।
    Like · Reply · 1 · 6 hrs
  • Dinesh Semwal बहुत सटीक!
    Like · Reply · 1 · 6 hrs
  • Sudhir Panwar कुल मिला के, हो सकता है, ये सत्य हो. हम लिखे को आधार मान रहे है़ं. वो दौर भी शाहजहां का था. लिखा भी उसी ने, सबसे पुरानी तो हिन्दू संस्क्रिति है,
    Like · Reply · 2 · 6 hrs
  • Anurag Singh सटीक तुलना़।।
    Like · Reply · 1 · 6 hrs
  • Praveen Semwal सेकुलर लोगो की में दिल से कदर करता हूँ लेकिन माफ़ी भी मांगता हूँ की मुझे सेकुलर न समझे हाँ जहँ तक तेजो महालय की बात है वो केवल मेने परीक्षा के लिए याद कर रखा था अब वो भी भूल गया हूँ खेर भाड़ में जाये जिस ने भी बनया हो लेकिन है तो तोजो महालय ही
    Like · Reply · 3 · 6 hrs · Edited
  • Anil Kumar पर मुमताज पहले किसी और की बीबी थी बल। ये बी त नि पढाई बल इतिहास म। फिर ताज महल के हाके छो । ये बि हुवे सककदु। अब पढ़े पर बिश्वास करें या सुने पर?
    Like · Reply · 3 · 5 hrs
  • Sudhir Bisht इन्हें fl2 का पाठ पढाएं
    Like · Reply · 2 · 5 hrs
  • Deepak Chand अभी और इतिहास के पन्ने बाकि है जैसे गिजा मै स्फिंकेश्वर का मंदिर , चीन कि दिवार असल मै दिवार नही है एक विशाल मंदिर है Alexandre Gustave Eiffel (आइफल टावर वाला ) हिंदु धर्म वाला था ........
    Like · Reply · 2 · 5 hrs · Edited
  • Deepak Badola ये कच्छा , डंडा धारी गिरोह के लोग हैं, भ्रमित कर , ऐसी जहरीली घुटटी पिलाकर भावना में बहाकर , फिर मानसिक शोषण कर, उन पर राज करते हैं
    Like · Reply · 3 · 4 hrs
  • Praveen Semwal #ABP_news वालो ने आज एक पोस्ट किया है। पढ़ने के बाद मैरे तो आंसू निकल आये। प्रियंका "गांधी" के बेटे रेहान ने अमेठी में मच्छर दानी में रात बिताई। अब ये महान मिडिया को कौन समझाऐ कि भैया प्रियंका अब #गांधी नही रही विवाह पश्चात। और जिस देश में लाखो गरीबो को सोने की जगह ही नही है और इस इटैलियन माता की औलाद की औलाद का प्रचार करने के लिए उसे भी गांधी की औलाद बना दिया। अगर प्रियंका के नाम के पीछे मिडिया गांधी लगाती है तो सोनिया के पीछे भी उसकी शादी से पहले की जाति लगनी चाहिए वो क्यों नहीं लगाती है क्यों भोली भाली जनता को गुमराह करते हो यार। इस देश को पहले ही नकली गांधी की औलादो ने खूब लूट लिया है अब और क्या कटोरे मे भर भर कर खून ही बचा है वो भी पियोगे ? सेकुलर लोग दस कदम दूर रहे गांधी परिवार का नाम आया है आग लगनी लाजमी है।
    Like · Reply · 3 · 4 hrs · Edited
  • Satish Saklani आपको मेरा सादर प्रणाम आदर्णीय बहुगुणा जी ।बहुगुणा जी पढने पढाने का काम तो सदा यूँ ही बदस्तुर चलता रहेगा । पढाया तो यह भी जाता है कि गाँधी जी महात्मा थे राष्ट्रपिता थे . लेकिन माननीय मनमोहन जी की सरकार ने सितम्बर 2012 मे इलाहबाद की 13 साल की सातवीँ क्...See More
    Like · Reply · 4 · 4 hrs
  • Udit Ghildyal Ek kabristan ke liye itni behas !! Khoosurat hai ismain koi shak nahin.
    Like · Reply · 1 · 4 hrs
  • K.c. Dhyani वाकयी सतय तो यही है रूसी चीनी बिचारधारा के उधारी कमयुनिसट बीडी के ठुडडे पीते जूठी दारू के ढककन सूंघते और चाटते कांगरेस के पापी कुकरमी कययास पीएम की नालायकी बिदेशी सोच सिदधांतों के दलाल समरथकों ने भारत की संसकरिति सभयता समाज इतिहास को मलिन ही नहीं कलंकित किया। इनहोने ही भारत का बंटवारा जेके को भारत के अंदर ही एक राजय नहीं धारा ३७०/३७१देकर पाकिसतान जैसा ही एक और मुलक बना डाला। नेहरू और उसके रूसी दलाल कमयनिसटों ने देश की हर अचछी परंपरा चलन हरकुछ को नशट कर डाला तो १९६२की शरम नाक चीन से मिली हार हजारों बरग किमी जमीन चीन ने कबजाई तिबबत नेहरूसने पहले ही छदम धरमनिरपेक्षशता की तरह छदम दोसती मे पलेट मे सजाकर चीन को परोश डाला ।जो भी उलटे तमाम काम हुए कमयुनिसट कांगरेस के .ही दवारा किए गये संयोग देखिए परजातंतर का काला अधयाय इमरजेंसी भी कांगरेस कमयनिसटों की ही साझी सरकार ने ही लागू की। कांगरेस और नेहरू परिवार के उस जहरीली सियासत लूट की आज वारिस बिदेशी फिरंगन
    Like · Reply · 3 · 2 hrs
  • VP Bhatt बहुगुणा जी अब लगता है आप भी कांग्रेस में आने के लिए गंभीर हैं। आप तो जनता के स्तम्भ हैं। पत्रकारिता के वरिष्ठ व्यक्तियों में शुमार हैं, परन्तु कुछ ज्वलंत और सामाजिक मुद्दे ऐसे हैं, जिनपर पत्रकारिता से जुड़े बुद्धिजीवियों द्वारा कटाक्ष किया जाना निश्चित ही पीड़ादायक है। 
    इतिहास तो बाबर से पहले भी लिखा गया था, और अंग्रेजों के बाद भी।
    Like · Reply · 1 · 46 mins
  • Suraj Singh Sarki Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna ji
    Durust likha aapne..
    Aakhir yh bakwaas padh..

    Kis aur jaayenge hum..
    Is tarah ka katu lekhan ki shakti sabke kalam me nahi hoti
    Like · Reply · 32 mins

India records population of 127,42,39,769; growing at a rate of 1.6 per cent a year

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After 'She-Taxi', Kerala now plans all-women 'She-Bus' Under the plan, a set of air-conditioned low-floor buses, with women-friendly features, would be rolled out for service in the city.

Nainital 1966 maliital rickshaw stand

Health minister prtaap bhayaa


It is GHATAK VS JUDHISHTIR!একজনের নাম ঋত্বিক কুমার ঘটক আর একজনের নাম গজেন্দ্র । ছো !!!!!!

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It is GHATAK VS JUDHISHTIR

1 hr · 

একজনের নাম ঋত্বিক কুমার ঘটক আর একজনের নাম গজেন্দ্র । ছো !!!!!!

FTII'র সংগ্রাম কোন বিচ্ছিন্ন ঘটনা নয় । একটা ফ্যাসিস্ট শক্তির বিরুদ্ধে কলরব । যারা ইতিহাস বিভাগের মাথায় চড়াতে চায় মুরলি মনোহর কে । যারা একজন অশিক্ষিত অর্বাচীন 'বহু'কে বসায় মন্ত্রী পদে । যারা মহারাষ্ট্রের মানুষের খাদ্য রুচির উপর খাঁড়া নামিয়ে আনে । এমন কি ডিম খাওয়ার বিরুদ্ধে কথা বলে । যারা একটা হিংসা গ্রন্থ কে জাতীয় গ্রন্থ করতে চায় । যারা গুজরাতে সিংহ পাওয়া যাওয়ার অজুহাতে জাতীয় পশু বানাতে চায় গির অরন্যের পশু কে ।

ারা সারা ভারতবাসীকে সকাল বেলা বলপূর্বক ভাবে ঝাড়ু হাতে ফ্যাসন করতে বলে স্বচ্ছ ভারতের নামে । যারা কথায় কথায় ক্ষুধা নিবারনের মন্ত্র হিসাবে গায়েত্রি জপ করতে বলে । খিধে পেলে ধ্যান বা শবাসন করতে বলে তাদের বিরুদ্ধে চ্যালেঞ্জ । তাদের বিরুদ্ধে চ্যালেঞ্জ যারা আচ্ছে দিনের বদলে পাঞ্জাব, মধ্যপ্রদেশে ডুবে যায় হাড়হিম করা দুর্নীতির পাঁকে ।

যারা সব কিছুতেই গরু দেখতে পায় । গবেষণার (গো+ এষনা) নামে গরু খোঁজে । যাদের প্রত্যক্ষ মদতে শশধর তর্কচূড়ামনি বলেন ব্রাম্ভনদের মাথার টিকি আসলে আধুনিক এন্টেনা । জিওলজিকাল সোসাইটি অফ ইন্দিয়ার চেয়ারম্যান সম্পূর্ণ একটি বৈজ্ঞানিক আলোচনায় দাবী করেন ঋগ বেদে যা কিছু ভৌগলিক বা ভূতাত্ত্বিক নাম আছে তার বাস্তবতা মেনে নিতে হবে । পুসালকর পৌরাণিক কাহানীর ভিত্তিতে বৈদিক মানুষের ইতিহাস ৩১০০ খ্রিস্টপূর্বাব্দ পিছিয়ে নিয়ে এসেছেন যা কিনা ১৫০০এর বেশী পুরানো নয় । এবং জয়পুরের হিস্টোরিকাল রিসার্চে যুক্ত একজন অধ্যপক দাবী করেন মহাকাব্য নায়কদের পুরাতাত্ত্বিক সাক্ষ্য না পেলেও এগুলোই ইতিহাসের নির্ভরযোগ্য উপাদান । আমাদের দেশে এভাবেই ইতিহাস চর্চা হয়ে আসে ।

যারা এতো দিন ইতিহাস কে বিকৃত করেছে, তারাই নাকি আদালতে কেস ঠুকেছে মাদ্রাসা বোর্ড কেন ইসলামিক হিস্ট্রির উপর জোর দিচ্ছে । তুমি রামের যোগ্য 'জারজ সন্তান'যখন ভারতের স্বাধীনতা সংরামে জিন্না ছাড়া কোন 'মুসলমান'সংগ্রামী কে জায়গা দাও না । সমুদ্রগুপ্তের একটি মাত্র বীণা বাদনের মুদ্রা ছাড়া সব কটিই ধ্বংসের চেহারার মুদ্রাকে আস্তিনের তলায় লুকিয়ে রেখে কেবল বীণা বাদনের নেক্যু ছবি প্রচার করো । যখন একজন স্ত্রী নিপীড়ক কে সিংহাসনে বসাও । যখন একজন মুসলমান সম্রাটের ১৮টা ঘোড়া নিয়ে বাংলা জয়ের আষাঢ়ে গল্প ফাঁদো তখন কোথায় যায় তোমায় নিরপেক্ষ ইতিহাস চর্চা ?????

তাই ওমন বালের সদাসত্যচারী, স্ত্রী কে বন্দক রেখে জুয়াড়ি,রাজ্য লিপ্সু রাজার বিরুদ্ধে ছাত্রছাত্রীদের তোপদাগা কে সমর্থন করি । কারন, হু ইস গজেন্দ্র ??? একটা লোকের নাম গজেন্দ্র এখান থেকেই তো তার ডিরেক্টর না হওয়া উচিত । এতো কথার কি আছে ?

একজনের নাম ঋত্বিক কুমার ঘটক আর একজনের নাম গজেন্দ্র । ছো !!!!!!

Chhandak Chatterjee's photo.

The philosopher Kwame Anthony Appiah on how to swing honour away from killing and towards peace

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Sania won aginst hate campaign and Paes represnts the courage. Palash Biswas

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Sania won aginst hate campaign and Paes represnts the courage.

Palash Biswas

I am particularly happy for the lady,the Pakistani Bahu playing for her home Nation India.We should remember the fatwa against her despite her being one of the most prominent faces of Indian sports.

Leander is a real fighter.Considering his age ,we must acknoledge his courage to bear the national flag.

Both Leander Paes and Sania Mirza, our Tennis legends won the their respective Wimbledon Doubles Titles, along with another legend Martina Hingis. 
A Great for Indian Tennis, with also young Sumit Nagal winning ....

Palash Biswas

Feroze Mithiborwala's photo.
Feroze Mithiborwala's photo.

RTI कार्यकर्ता पर हुआ जानलेवा हमला,दलित कार्यकर्ता के बाल काटे और जबरन पिलाया पेशाब,भूमाफियों के खिलाफ लड़ रहा था लड़ाई। ‪#‎पप्पू‬ कुमार बृजवाल

Next: मोदी सरकार की पहली पंचवर्षीय कार्य सूची: १. प्राचीन सरस्वती नदी के प्रवाह पथ की खोज, २ आर्यों को भारतीय मूल का सिद्ध करने के लिए उच्चस्तरीय कमीशन बैठाना, ३. गंगा की सफाई के लिए सतही कार्य कर, इस मुद्दे को अगले चुनावों के लिए बनाये रखना. विदेशों मे बड़्बोलेपन को जारी रखते हुए, स्वदेश में अपने दल के नेताओं द्वारा किये जा रहे घोटालों पर मौन साधे रखना. ग्रामीणों को मन की बात में उलझा कर, उनके तले से जमीन खिसकाना. . हर वर्ष दो चार नौटंकियों का आयोजन. विश्व के सभी देशों का भ्रमण और घरफूँक उजाला देखना. अमीरों के सामने गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए अनुनय करना और किसानों की जमीन उद्योगपतियों को सौंपने के लिए अध्यादेश पर अध्यादेश लाना.
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ताकि सनद रहे ...
RTI कार्यकर्ता पर हुआ जानलेवा हमला,दलित कार्यकर्ता के बाल काटे और जबरन पिलाया पेशाब,भूमाफियों के खिलाफ लड़ रहा था लड़ाई।
‪#‎पप्पू‬ कुमार बृजवाल 
आज शाम को करीब साढ़े चार बजे में अपनी ऑफिस में पाक की नापाक हरकत सीमा पर लगाए गए सीसीटीवी कैमरे की खबर तैयार कर रहा था उस दौरान सोसियल साइट पर मुझे बहुत ही दुखद और शर्मनाक घटना पढ़ने को मिली की जैसलमेर के रामगढ़ में एक जातीय विशेष के लोगो ने बाबुराम चौहान नाम के एक दलित शिक्षक RTI कार्यकर्ता पर भूमाफियों ने जानलेवा हमला कर उसकी टाँगे तोड़ दी साथ ही उसके बाल काट कर उसको जबरन पेशाब भी पिलाया, खबर बहुत शर्मनाक और दुखद थी मेरे लिए मेने सबसे पहले जैसलमेर जिला प्रमुख अंजना जी को पीड़ित बाबुराम की मदद करने की बात कही,जिस पर मुझे जिला प्रमुख जी ने बताया की हम स्वय अस्पताल पीड़ित की कुशलक्षेम पूछने पहुँच गए है और पुलिस अधिकारियो को तत्काल आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाही करने के निर्देश दिए है। जिला प्रमुख जी की सक्रियता देख कर मेरे मन में यही सवाल आया की वास्तव में बड़ा पद मिलने के बाद भी जिला प्रमुख और पीसीसी सचिव रूपाराम जी आज भी अपने समाज के साथ पहले की तरह साथ खड़े है। 
फिर मैने मेरे जैसलमेर पत्रकार साथियो से पूरी घटना के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने कहा की दलित शिक्षक RTI कार्यकर्ता बाबुराम काफी वक़्त से रामगढ़ कस्बे में भूमाफियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था इसी को लेकर भूमाफियो ने उस पर जानलेवा हमला बोला है और यंहा तक की उनके हाथ पांव तोड़ सिर के बाल काटे और पेशाब भी पिलाया गया। इतनी बहुत कुछ जानकारी लेने के बाद मेंने अपने पत्रकार साथियो से एक और सवाल किया की पुलिस ने अब तक इस मामले में क्या किया तो उन्होंने कहा की घटना की गम्भीरत को देखते हुए पुलिस अधीक्षक राजीव पचार खुद अस्पताल पहुंचे और बाबु राम से घटना की जानकारी ली है साथ ही मेरे पत्रकार साथियो ने बाबुराम के जज्बे को सलाम करते हुए कहा घायल अवस्था में होने के बावजूद अभी भी कह रहा है की इस मुहीम को आगे जारी रखूँगा और मैं डरने वाला नहीं हूँ

मोदी सरकार की पहली पंचवर्षीय कार्य सूची: १. प्राचीन सरस्वती नदी के प्रवाह पथ की खोज, २ आर्यों को भारतीय मूल का सिद्ध करने के लिए उच्चस्तरीय कमीशन बैठाना, ३. गंगा की सफाई के लिए सतही कार्य कर, इस मुद्दे को अगले चुनावों के लिए बनाये रखना. विदेशों मे बड़्बोलेपन को जारी रखते हुए, स्वदेश में अपने दल के नेताओं द्वारा किये जा रहे घोटालों पर मौन साधे रखना. ग्रामीणों को मन की बात में उलझा कर, उनके तले से जमीन खिसकाना. . हर वर्ष दो चार नौटंकियों का आयोजन. विश्व के सभी देशों का भ्रमण और घरफूँक उजाला देखना. अमीरों के सामने गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए अनुनय करना और किसानों की जमीन उद्योगपतियों को सौंपने के लिए अध्यादेश पर अध्यादेश लाना.

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मोदी सरकार की पहली पंचवर्षीय कार्य सूची: १. प्राचीन सरस्वती नदी के प्रवाह पथ की खोज, २ आर्यों को भारतीय मूल का सिद्ध करने के लिए उच्चस्तरीय कमीशन बैठाना, ३. गंगा की सफाई के लिए सतही कार्य कर, इस मुद्दे को अगले चुनावों के लिए बनाये रखना. विदेशों मे बड़्बोलेपन को जारी रखते हुए, स्वदेश में अपने दल के नेताओं द्वारा किये जा रहे घोटालों पर मौन साधे रखना. ग्रामीणों को मन की बात में उलझा कर, उनके तले से जमीन खिसकाना. . हर वर्ष दो चार नौटंकियों का आयोजन. विश्व के सभी देशों का भ्रमण और घरफूँक उजाला देखना. अमीरों के सामने गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए अनुनय करना और किसानों की जमीन उद्योगपतियों को सौंपने के लिए अध्यादेश पर अध्यादेश लाना.

मेरी जीत मेरे देश की लड़कियों को प्रेरित करेगी: सानिया

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विंबलडन का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला सानिया मिर्जा को लड़कियों से बहुत हैं उम्मीदें...
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टीम इंडिया के क्रिकेट विश्वकप का एक बड़ा खिलाड़ी उपेक्षा के चलते अब गांव में भैंस चराने को मजबूर है! क्रिकेट का नाम आते ही आपके दिमाग में आजकल ये शट्टेबाजी का खेल खेलने वाले खिलाड़ियों की तस्वीर आ जाती होगी। लेकिन इनका नाम शायद आप जानते भी होंगे। ये भालाजी डामोर है।

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टीम इंडिया के क्रिकेट विश्वकप का एक बड़ा खिलाड़ी उपेक्षा के चलते अब गांव में भैंस चराने को मजबूर है! क्रिकेट का नाम आते ही आपके दिमाग में आजकल ये शट्टेबाजी का खेल खेलने वाले खिलाड़ियों की तस्वीर आ जाती होगी। लेकिन इनका नाम शायद आप जानते भी होंगे। ये भालाजी डामोर है।

भालाजी के नाम भारतीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड है। यही नहीं साल 1988 विश्व कप में इन्होने धमाके दार प्रदर्शन कर टीम इंडिया को सेमीफाइनल में पहुंचाया था। भालाजी डामोर 1988 में नेत्रहीन विश्वकप के पहले मैन ऑफ द सिरीज भी बने थे। 125 मैच में 150 विकेट और 3125 रन बनाने वाले भालाजी उस समय इंडियन क्रिकेट टीम के ऑलराउंडर के तौर पर खेलते थे।

टीम इंडिया को एक के बाद एक कामयाबी दिलाने पर भालाजी को राष्ट्रपति केआर नारायण ने सम्मानित भी किया था। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में भालाजी ने कहा विश्व कप के बाद मुझे उम्मीद थी कि एक नौकरी मिल जाएगी लेकिन कई सालों बाद गुजरात सरकार से केवल प्रशंसा प्रमाण मिला।

विश्व कप के दौरान भालाजी को दूसरा सचिन तेंदुलकर कहा जाता था। अब शारीरिक कमजोरी के चलते उन्हें कहीं काम भी नहीं मिलता है। पत्नी खेतों में मजदूरी कर रही हैं। अब वास्तव में देखा जाए तो सच में भालाजी नेत्रहीन नहीं हैं लेकिन हमारी हरामखोर केंद्र सरकारें औऱ गुजरात की सरकार, खेल मंत्रालय आदि सभी नेत्रहीन जरूर हैं जो देश को इतना सम्मान दिलाने वाले खिलाड़ी को एक छोटा सा रोजगार भी उपलब्ध न करा सकी! मैं अपनी तरफ से भारत की सभी सरकारों लाखों लानत भेजता हूं





दलित अधिकारों के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका

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दलित अधिकारों के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका
जयपुर, 10 जुलाई। आजादी के ६८ साल बाद भी दलित समाज के लोगों को घोड़ी पर बरात नहीं निकालने देने या गांव के मोक्षधाम पर अंतिम संस्कार करने से रोकने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में दलित मानव अधिकार मंच ने राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका पर मुख्य न्यायाधीश सुनील अंबवानी और जस्टिस वी एस सराधना की अदालत में सुनवाई होगी। याचिकाकर्ता के वकील अजयकुमार जैन ने बताया कि गांवों में दलित समाज के बरात घोड़ी पर निकाले पर प्रतिबंध लगाया जाता है, इसी के साथ अंतिम संस्कार भी गांव से बाहर किए जाने को मजबूर किया जाता है। याचिका में बीस गांवों के लोगों के शपथ पत्र लगाया गया है जिसमें दलित अत्याचार की जानकारी दी है। कुछ जागरूक लोगों के मामले ही सामने आते हैं अधिकांश गरीब व अशिक्षित लोग तो भय के चलते पहले ही विवाद से बचने के लिए दूर रहते हैं लेकिन सरकार की ओर से दलित समाज के अधिकार एवं अत्याचार रोकने के लिए पहल नहीं हो रही है। दलित समाज के अधिकार एवं मानवाधिकार की रक्षा के लिए जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका के साथ करीब दो दर्जन शपथ पत्र और दलित अत्याचार के मामले रखे गए हैं।

(न्‍यूज टुडे)

आजादी के ६८ साल बाद भी दलित समाज के लोगों को घोड़ी पर बरात नहीं निकालने देने या गांव के मोक्षधाम पर अंतिम संस्कार करने से रोकने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में दलित मानव अधिकार मंच ने राजस्थान हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। याचिका पर मुख्य...

C/O London West Bengal.........

डगर के नाम ,लोगो ,लेटरपेड का किसी भी रूप में उपयोग नहीं करें ,अगर कोई ऐसा करते हुए पाया गया तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी .

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साथियों 
जय भीम 
वर्ष 2006 में भीलवाड़ा जिले में सुलिया गाँव में दलितों के एक मंदिर प्रवेश आन्दोलन के वक्त 'दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान राजस्थान ' (डगर ) की स्थापना हुयी ,उसके बाद डगर ने उत्पीडित समुदाय पर हो रहे अन्याय अत्याचारों के विरुद्ध सतत संघर्ष करके अपने पहचान बनायीं .इस प्रक्रिया में कई साथी नेतृत्व करने के लिए आगे आये और उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है .डगर की मौजूदगी सदैव ही यथास्थितिवादी तत्वों को चुभती रही है, हालाँकि हमने इसकी कभी परवाह भी नहीं की ,यहाँ तक कि सामाजिक क्षेत्र के लोगों को भी दलित ,आदिवासी और घुमन्तु समुदाय के युवाओं का यह स्वतः स्फूर्त प्रयास कभी अच्छा नहीं लगा .फिर भी हमने अपनी दलित मुक्ति की यात्रा को अनवरत जारी रखा .लोकतान्त्रिक तरीके से डगर में समय समय पर आगेवान भी बदलते रहे ,विगत दो वर्ष से डगर के प्रदेश संयोजक पद को दौलत राज नगोड़ा एडवोकेट सम्भालते रहे है ,मेरी शारीरिक अस्वस्थता के चलते मैंने इसमें कोई नियमित भुमिका निभाना लगभग समाप्त कर दिया था ,बहुत जरुरी मसलों पर राय मश्विरा देने के अलावा मैं अधिक कुछ नहीं कर पा रहा था ,इसका नुकसान यह रहा कि डगर के कुछ साथी पथ विचलित हो गए और हमारे सामाजिक भरोसे और प्रतिष्ठा को उनके कार्यों से ठेस पंहुची .हालाँकि यह वर्तमान नेतृत्व की भी विफलता थी ,मगर डगर का संस्थापक होने के नाते मैंने यह महसूस किया कि जिन उद्देश्यों के लिए इस अभियान को बनाया गया है ,शायद उनकी ओर यह कदम नहीं बढ़ा पा रहा है ,इसलिए एक कठोर निर्णय करते हुए आज डगर को भंग करने और तमाम पदाधिकारियों को पदमुक्त करने कि मैं घोषणा कर रहा हूँ ,साथ ही यह चेतावनी भी देना जरुरी समझ रहा हूँ कि कोई भी साथी भविष्य में डगर के नाम ,लोगो ,लेटरपेड का किसी भी रूप में उपयोग नहीं करें ,अगर कोई ऐसा करते हुए पाया गया तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी .
इसी आशा के साथ 
सादर जय भीम 
भंवर मेघवंशी 
संस्थापक -डगर.

ये तो तीनों ही अभिनेता रहे हैं।

In the 29 states of the Indian Union, there are hardly five or six OBC chief ministers and no Dalit leadership.

Next: सानिया,सुमीत और पेस के मजहब का क्या? दरअसल नफरत के खिलाफ यह हुआ मुहब्बत का कारनामा दरअसल रब से कोई कर लें मुहब्बत तो इबादत करें न करें,इबादत फिर मुकम्मल है फिर इंसानयत के जज्बे से बड़ा कोई रब भी नहीं है यारों और मजहब किसी वतन काा होता नहीं है और इंसानियत के भूगोल का कोई बार्डर कहीं नहीं होता आइये, हमारी बेटियों की जीत का जश्न मनायेंं,बूढ़ापे के जोश को करें सलाम और जवानी को गले लगायें! क्योंकि ख्वाहिशों और ख्वाबों का कोई मजहब होता नहीं है,मजहबी हो जाये सियासत पूरी की पूरी लेकिन वतन कोई मजहबी होता नहीं है। माना कि इन दिनों ख्वाहिशों और ख्वाबों के खिलाफ बेपनाह बेइंतहा फतवे दनादन दस्तूर हुआ है कातिल जमाने का,किसी ख्वाहिश या क्वाब पर मुकम्मल कोई पहरा होता नहीं है और चिड़िया पर न मार सकें,इंसानियत को मजहबू दीवारों में बांटने का कोई बंदोबस्त मुकम्मल हो नहीं सकता। पलाश विश्वास
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