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जै गाँव मा बिजली नि आंदि तो उख रात नि पड़दि क्या ?

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 जै गाँव मा बिजली नि आंदि तो  उख रात नि पड़दि  क्या  ?

                          मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -11
                             अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत - 11                   
                                  
      
                              जत्र्वै - भीष्म कुकरेती 


                       अच्काल मुंबई ह्वेन या निपट दूर दराजो गौं हो टेक्नॉलॉजी बदलण से हर रोज नै नै कहावत बणना छन अर खतम बि हूणा छन।  जन कि हमर गाँ मा पंद्रेक दिन बिटेन ट्रांसफॉर्मर कोटद्वार जोग हुयुं छौ तो गाँव दिन मा बि अन्ध्यर फील करणो छौ। अर यांइ पर एक कहवत एकाक मुखन सूण बल जै गाँव मा बिजली नि आंदि तो क्या उख रात नि हूँदि क्या  ? या जै गाँव मा बिजली नि आंदि तो क्या उख लोगुं तै निंद नि आंदि ? या जै गाँव मा बिजली नि हूंदी वै गां मा कुखुड़ बांग  नि दींदन क्या ? 
  अब कहावतों पर बात आयि तो कुछ हौर नई कहावत (कै पणि बोल ) बि सुणिन अर मि यूँ कहावतों तै यीं जात्रा की महान उपल्ब्धियुं मादे एक उपलब्धि मणदु जन कि -
पैसा दिखावो तो राजधानी मा टीसी तुमकुण दारुका इंतजाम अफिक करलु। 
जै गाँव मा मिलिट्री वाळ नि हून्दन तो उक  लोग दारु नि पींदन ?
नास्ता मा चाउ माउ का मतलब यु नी च कि मेरि कज्याण अळगसि च। 
जा तैंकु झगड़ा बिजली बाबू से ह्वे जैन फिर दिख्दु कन बलब जगान्दि धौं। 
जख ब्वारी , लौड़ी अर गौड़ी नि छन तो अमूल तो छैं च। 
लौंड़ खर्चा पाणी नि द्याल तो बीपीएल कार्ड बणै द्योलु। 
जैक पेंसन पट्टा च वैक लौड़ ब्वारी बि खूब सिवा करदन। 
सरकारी साब अर परधानो दगड़ झगड़ा माने हुक्का पाणि बंद। 
म्यार नौनु बच्युं राल तो मनरेगा से बि खै ल्यालु (म्यार नौनु बच्युं रालु त  हौळ फोडिक खै ल्यालु कहावत से उपजीं नई कहावत ) 
शौचालय से पता लगणु च तैकि कमाई छैं च। 
मनिख मारी द्यावो तो जमानत मिल बि जाली पर सुंगर पर हथ बि उठैल तो  .... 
बानी आणि च तैकि कज्याण परधानी जी बण गे। 
नाक फुंजणो  सवर नी च अर परधानी बण गे। 
इनि ऋषिकेश अर हरिद्वार मा बि भौत सा नई कहावत सुणिन।  चूँकि अधिकतर कहावत अचानक उपजणा छन तो कुछ कहावत वैबरी मर जाणा छन कुछ कहावत कुछ समौ बाद समाप्त हूणा छन अर कुछ कहावत सैत च सार्वभौमिक कहावत बणि जाला। 





এ মুহূর্তে বিশ্বের ২৪টি দেশে প্রায় আড়াই লাখ শিশুকে নানা প্রলোভন দেখিয়ে যুদ্ধে জড়ানো হচ্ছে। এর মধ্যে বেশির ভাগই...

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এ মুহূর্তে বিশ্বের ২৪টি দেশে প্রায় আড়াই লাখ শিশুকে নানা প্রলোভন দেখিয়ে যুদ্ধে জড়ানো হচ্ছে। এর মধ্যে বেশির ভাগই...

'আমি যদি বড় হতাম, তাহলে যুদ্ধ করতাম'—এই অকপট উক্তি এক শিশুর। বয়স মাত্র ১৪ বছর। গভীর জীবনবোধ এখনো তৈরি হয়নি। অথচ সে কালাশনিকভ রাইফেল চালাতে পারে। ডেনিস নামের এই শিশু এখন যুদ্ধের প্রশিক্ষণ নিচ্ছে রুশপন্থী বিদ্রোহীদের কাছে। বন্দুক চালানো আর যুদ্ধে কিছু কলাকৌশল রপ্ত...

प्रफुल्ल बिदवई को आखिरी सलाम वरिष्ठ पत्रकार, एक्टिविस्ट, परमाणु मुद्दे पर जनपषधर लेखनी से अलग मुकाम बनाने वाले प्रफुल्ल बिदवई को आज लोदी रोड के विद्युत शवदाहगृह में दी गई भाव-भीनी श्रद्धांजलि

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वरिष्ठ पत्रकार, एक्टिविस्ट, परमाणु मुद्दे पर जनपषधर लेखनी से अलग मुकाम बनाने वाले प्रफुल्ल बिदवई को आज लोदी रोड के विद्युत शवदाहगृह में दी गई भाव-भीनी श्रद्धांजलि

BJP gains in polls after every riot, says Yale study - The Economic Times

Humanitarian ships trying to peacefully break the illegal and immoral siege on Gaza were intercepted by the Israeli navy. But good people will keep trying to do good things against all odds. See this video for example about a Gaza initiative with colors

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Humanitarian ships trying to peacefully break the illegal and immoral siege
on Gaza were intercepted by the Israeli navy. But good people will keep
trying to do good things against all odds. See this video for example about
a Gaza initiative with colors https://m.youtube.com/watch?v=CX34C2B1nt8

So far my trip to Europe is going great.  And from what I hear from the
volunteers and workers at the museum back in Bethlehem, there are also
great news.  The whirlwind tour of Europe began in Munich and goes through
Leipzig, Berlin, Frankfurt, Heidelberg, Zurich, Dornbrin, Bratislava,
Vienna. Nine cites in in 12 days meant lots of trains and other modes of
transportation. Main two purposes are: signing my book on Sharing the Land
of Canaan (out in German now) and seeking collaborations and partnerships
for our nascent museum of Natural History. this gives one time to read and
reflect. I certainly gathered many books and other literature along the
way. I also reflected how two German people I never met actually influenced
my life. One is Mr. Schneller who founded an orphanage school in Jerusalem
that saved my grandfather (who lost all his immediate family members in
World War I). The other is Rev. Schmitz who collected many animals in
Palestine and also founded a girls' school in Jerusalem. I was a teacher at
that school in 1978-1979. That collection was taken over by Israeli
institutions.

As in previous visit, we got encouraged by the site of remnants of the
Berlin wall. If that wall can fall, then certainly our apartheid wall will
fall. We engaged in amazing conversations with varied people covering areas
ranging from nature conservation, research on biodiversity, early childhood
education, German-Israel relations, apartheid, Nazi-Zionist collaboration,
and much more.

Everywhere I go people are so welcoming and so interested in helping
Palestine and Helping PMNH-BU. Although so far I have been running around
without enough sleep, I feel more energy than ever before. Examples of
collaboration include sending some of our young people to learn things like
taxidermy, museum exhibition design, and modeling nature and artifacts for
exhibition. We also need to send some for acquiring higher degrees and to
return trained in various disciplines (paleontology, arachnology,
entomology, ethnology etc.).   I am always impressed by how much people do
with very limited resources. Many live simpler lives so that they are not
distracted and they can focus on good work. Others have resources and
realize that giving is very enjoyable activity. The national group of
German Palestinian Association (Deutsch-Palaestinensischen Gesellschaft
dpg-netz.de ) is well organized in many German cities and has a beautiful
and highly informative magazine.I could go on and on.

More and more, we realize our priority/challenge is how best to invest in
the young people (especially those who volunteer). This even as we keep the
energy of us older folks. In Europe I met many people of all ages engaged
in BDS and other actions for peace. Kudos to the,. But we also have so many
good young people with great potential. I am sure they/we together can make
miracles. As the great Mahatma Gandhi once said "A small body of determined
spirits fired by an unquenchable faith in their mission can alter the
course of history." This got me to thinking more about the mission of the
museum which includes reshaping ourselves (developing respect for ourselves
first) which brings me to another point Gandhi made: "Our greatness lies
not so much in being able to remake the world, as in being able to remake
ourselves" and similarly "Strength does not come from physical capacity. It
comes from an indomitable will."  But the key question remains in what
direction should we push ourselves and how do we proceed to change
ourselves.

Mazin Qumsiyeh
Professor and Director
Palestine Museum of Natural History (PMNH)
Palestine Institute of Biodiversity and Sustainability (PIBS)
Bethlehem University
Sustainability, Youth Education and Empowerment
http://www.palestinenature.org
info@palestinenature.org
Tel 970-22773553

Chetna Birje 3:23pm Jun 29 हज़ार साल पुराना है उनका गुस्सा हज़ार साल पुरानी है उनकी नफ़रत मैं तो सिर्फ़ उनके बिखरे हुए शब्दों को लय और तुक के साथ लौटा रहा हूँ मगर तुम्हें डर है कि आग भड़का रहा हूँ gorakh pande

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Chetna Birje
Chetna Birje3:23pm Jun 29
हज़ार साल पुराना है उनका गुस्सा
हज़ार साल पुरानी है उनकी नफ़रत
मैं तो सिर्फ़
उनके बिखरे हुए शब्दों को
लय और तुक के साथ लौटा रहा हूँ
मगर तुम्हें डर है कि
आग भड़का रहा हूँ
gorakh pande
Original Post
Palash Biswas
Palash Biswas1:08pm Jun 29
http://palashscape.blogspot.in/2015/06/blog-post_777.html
Palash Scape,the Real India: वैदिकी देवभाषा समय में राजकरण का नग्नता सौंदर्यशास्त्र और अखंड...
palashscape.blogspot.com
कैसे नहीं दोगे जमीन,देखते नहीं कि सड़कों पर उतरने लगे हैं युद्धक विमान कि झीलों और समुंदरों की गहराइ...

Bhadas today:मुलायम सिंह यादव जी, क्या ये यूपी सरकार सिर्फ यादवों की है?

Next: सत्ता के कारिदों से बचें महाराज! चुनाव जीतना हो तो दलितों और मुसलमानों को टोपी पहनाओ,बूमरैंग होगा यह फारमूला। मीडिया के सहारे राजनीति नहीं चलती है और सेसंरशिप से तो बेड़ा गर्क ही समझो। हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी। राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज। पलाश विश्वास
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  • Monday, 29 June 2015 13:46
लखनऊ/ग़ाजियाबाद : अभी कुछ दिन पहले एक शिकायती पत्र उत्तर प्रदेश के यूवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम देखने को मिला....एक मुस्लिम युवक द्वारा विजयनगर थाने के "यादव"एसओ पर अपने पिता के साथ बदतमीज़ी करने के कई गंभीर आरोप लगाते हुए (कुछ आरोप हम लिखने से मजबूर हैं) लिखा था। इस पत्र पर लिखी गई शिकायतों के समर्थन में कई दर्जन लोगों के हस्ताक्षर भी कराए गये थे। बड़ा ही ताज्जुब हुआ.... जब ये पता चला कि शिकायत करने वाला युवक समाजवादी पार्टी का जिले में बड़ा पदाधिकारी है.... और जिसने समाजवादी पार्टी से लोगों को जुड़ने के लिए काफी प्रचार किया है। इतना ही नहीं ग़ाज़ियाबाद के हर चौराहे पर उस युवक के फोटो लगे होर्डिग मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और जिलाध्यक्ष साजिद हुसैन के फोटो के साथ लगे आज भी देखे जा सकते हैं। उफ्फ अपने ही नेता को अपने बूढ़े के पिता के साथ थाने में यादव एसओ के हाथों बदसलूकी के लिए न सिर्फ दर दर की ठोकरें खानी पड़ गईं.... बल्कि सुना तो यहां तक गया है कि वो बेचारा अखिलेश जी और मुलायम जी तक के दरबार में गुहार लगाने लखनऊ के चक्कर काट आया है।

इससे भी दिलचस्प बात ये है कि शहर में हमेशा की तरह एक खास दरबार में दरोगा की मांग पर इस केस की सुनवाई हुई..... और पिता के अपमान के घूंट पी रहे बेचारे नेता जी को इसी पर सबर करना पड़ गया, कि जब लखनऊ में किसी ने नहीं सुना.... और जिलाध्यक्ष तक लाचार था.... यहां तो चलो दरोगा जी ने हाथ तो मिला लिया। चर्चा हुई कि ....जैसी पार्टी वैसा नेता.... और जैसा नेता वैसा ही सलूक। बहरहाल इस बात की चर्चा करके किसी को अपमानित करना या किसी के खिलाफ गलत सोच को बढ़ावा नहीं देना है। हर शहर की तरह, गाजियाबाद में भी चाहे मुलायम सिंह यादव के नाम पर या शिवपाल जी के.... या फिर आज़म ख़ान के नाम पर कुछ स्वंयभू दरबार गठित कर दिये गये हैं। कुछ लोग रिश्तेदार बताए जाते हैं....कुछ पार्टनर तो कुछ खासमखास....सबूत के तौर महीना दो चार में एक आध बार कोई न नेता जी लाव लश्कर के साथ इस दरबार के स्वामी के यहां पधारते रहते हैं....जहां मशीनरी और सरकारी अमले की हाथ जोड़कर हाज़िरी लगाना मजबूरी बन जाती है....और यहीं से दरबार शहर में स्थापित होने की राहें खुल जाती हैं.... जहां न सिर्फ सरकारी मशीनरी लेकर डीएम एसएसपी तक हाजिरी बजाने में शान समझते हैं बल्कि शहर के इसी तरह के मामलों में अपने ही अंदाज़ से फैसले सुनाए जाते रहे हैं। चाहे बीजेपी के एक नेता की पगड़ी एसएसपी के हाथों उछाले जाने का मामला हो या फिर व्यापारी नेता को बंद कराने और छुड़ावाने का खेल। मामले की गूंज दरबार के दीवाने खास से बाहर सुनी तक नहीं गई।

इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने की एक वजह मुलायम सिंह यादव या उनकी टीम के जादू से ज्यादा पिछली सरकार की करतूत से जनता का त्रस्त होना भी माना गया था। लेकिन हाल ही जिस ढंग से उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार में सरकारी मशीनरी के कारनामे उजागर हो रहे हैं उससे लगने यही लगा है पांच साल होने का जो बी समय बचा है वो जनता के लिए राहत भरा नहीं रहेगा। हाल ही में एक पत्रकार की जलने से हुई मौत के मामले में आरोपी मंत्री और दरोगा के खिलाफ जांच कराने के बजाए, मरने वाले पत्रकार को 30 लाख रुपए और परिवार के दो लोगों को नौकरी पेश कर दी गई। सवाल यह उठता है कि अगर कुछ गलत नहीं हुआ था तो इतना मुआवजा क्यों और अगर कुछ गलत हुआ था तो दोषियों के कार्रवाई से परहेज़ क्यों। इससे तो यही लगता है कि ये सरकार न अपने उस नेता के साथ है जिसके पिता को थाने में बेइज्जत किया न किसी पत्रकार की मौत के मामले पर दोषियों की तलाश करेगी।

इसी सबके बीच दो ही दिन पहले एक ऐसा मामला सामने आया जिसने ये सोचने  पर मजबूर कर दिया कि आख़िर सरकार है किसकी और किसके साथ। एक गरीब मुस्लिम परिवार की नाबालिग लड़की दूसरे समुदाय के किसी शख्स के हाथों बेचे जाने की सूचना पर रात को क्षेत्र की जनता गाजियाबाद के विजय थाने में शिकायत लेकर गई। बाद में उसी क्षेत्र में रहने वाले एक पत्रकार भी जा पहुंचे। आरोप है कि उस वक्त दरोगा पूरे मुस्लिम समाज को गरिया रहे थे और कुद को मुलायम सिंह यादव और बलराम यादव के परिवार का बता कर ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन इसी बीच जब एसओ साहब को लगा कि वहां मौजूद पत्रकार उनकी बहादुरी के कारनामों को रिकार्ड कर रहा है तो उन्होने न सिर्फ के साथ मारपीट कर डाली बल्कि पत्रकार का कैमरा तक छीन लिया। पत्रकार तौसीफ हाशमी ने मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति सहित मानवाधिकार आयोग तक को अपने शिकायती पत्र में कई ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं जिनसे इतना तो साफ हो जाता है कि उत्तर प्रदेश में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।

ये वही उत्तर प्रदेश सरकार है जिसने आते ही पिछली सरकार पर पत्रकारों और जनता के उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। और वादा किया था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जितने फर्जी मामले दर्ज हुए उनको समाप्त किया जाएगा। लेकिन जनाब अखिलेश जी आप पिछली सरकार के कितने मामलों को समाप्त कर चुके हैं उनका तो सबूत जनता और हमारे पास मौजूद है ही। मगर आपसे फिलहाल यही गुज़ारिश है कि अपनी सरकार के बचे खुचे कार्यकाल में जनता को नये मामलों से तो बचा लीजिए। माना कि सरकार यादव परिवार के हाथों में है तो स्वाभाविक है कि हर थाना हर बड़ी पोस्ट पर यादव इंपोर्ट किये जाऐंगे ही। मगर इस सभी यादव अधिकारियों को इतना तो समझा दो कि सरकार बनाने में यादवों की वोट का प्रतिशत कितना था। अगर यही हाल रहा और दूसरे समाज के लोग इस बार नेता को सबक सिखाने पर उतर आए तो अगले विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत की तरह पूर्ण सफाया भी नामुमकिन नहीं है।

लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, सहारा समय, इंडिया टी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ और कई चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं.

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सत्ता के कारिदों से बचें महाराज! चुनाव जीतना हो तो दलितों और मुसलमानों को टोपी पहनाओ,बूमरैंग होगा यह फारमूला। मीडिया के सहारे राजनीति नहीं चलती है और सेसंरशिप से तो बेड़ा गर्क ही समझो। हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी। राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज। पलाश विश्वास

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सत्ता के कारिदों से बचें महाराज!

चुनाव जीतना हो तो दलितों और मुसलमानों को टोपी पहनाओ,बूमरैंग होगा यह फारमूला।

मीडिया के सहारे राजनीति नहीं चलती है और सेसंरशिप से तो बेड़ा गर्क ही समझो।

हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी।


राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज।



पलाश विश्वास

अखबारों के संपादक अब राजनीतिक दल तय करते हैं।बंगाल में 34 साल के वाम शासनकाल में डंके की चोट पर यह रिवाज चालू हो गया कि जो उपसंपादक बनने लायक नहीं है,जिसे खबर का अगवाड़ा पिछवाड़ा मालूम नो,न भाषा की तमीज हो और न न्यूजसेंस,ऐसे गदहे संपादक भी हम देखते रहे हैं।


फिर मीडिया में चूजे सप्लाई करने का दस्तूर अलग है।अनके लोग चूजे सप्लाई करते करते किंवदंती में तब्दील हैं तो अनेक संपादक तो बाकायदा चूजों के शौकीन हैं।


इसीलिए राजनीतिक कारिंदों की तरह काम कर रहे संपादकों की किरपा से पब्लिक कहीं ज्यादा बुरबक हैं।


मुसलमान और दलित जरुरत से ज्यादा बुरबक समझे जाते हैं।


शारदा चिटपंड का मामला रफा दफा है और इस प्रकरण में अब तक गिरफ्तार लोगों ने जिन्हें आरोपों की गर्फत में ज्यादा निशाना बनाया,बंगाल का मीडिया उन्हें अब ममता बनर्जी का विकल्प बनाने लगा है।


उनने कुछ नाराज मौलवियों को साथ नत्थी कर लिया है और दीदी से पहले धुंआधार इफ्तार पार्टी भी कर दी है,जिसमें दाढ़ी वाले खूब नजर आये तो जोर शोर से प्रचार होने लगा कि दीदी की जीत आसान नहीं है और टूटने लगा है मुसलमान वोट बैंक।


हम दीदी के कामकाज राजकाज और राजनीति के प्रशंसक नहीं रहे कभी।लेकिन हम जानते हैं कि वामदलों के जड़ों से कट जाने के बाद,संघ परिवार के साथ गुपचुप समझौते की वजह से एक साथ दलितों,हिंदुओ और मुसलमानों के वोट बैंक साधने में फिल वक्त ममता बनर्जी की कोई सानी नहीं है।


गौरतलब है कि करीब दो दशकों तक सड़क की राजनीति करने की वजह से जनता की नब्ज समझने और भवनाएं भड़काने में वे संघ परिवार से कहीं आगे हैं।जिस वजह से बंगाल में कमल की फसल महामारी की शिकार है।


फिल्मी ग्लेमर का इस्तेमाल और बाजार का इस्तेमाल भी दीदी खूब कर रही हैं।


खास बात यह है कि ममता बनर्जी भूमि सुधार के लिए भले कुछ करें या न करें लेकिन जमीन के हक हकूक के बारे में देश भर में सबसे मुखर नेता हैं मुख्यमंत्री बनने के बावजूद और इस मामले में वे निवेशकों की भी परवाह नहीं करतीं।


मसलन,तीस्ता जलविवाद में जिस तरह उत्तर बंगाल के किसानों के हितों के मुताबिक उनने अड़ियल रुख अपनाकर अपनी जड़ें मजबूत की है,वह समझने वाली बात है।


फिर सत्ता का विकेंद्रीकरण राजनीति में ममता बनर्जी करें या न करें,पार्टी में भले ही सारी सत्ता उनमें निहित हो,प्रशासन को जनता की पहुंच में बनाये रखने में वे कामरेड ज्योतिबसु के चरण चिन्हों पर चल रही हैं।


खुद रात दिन दौड़ती हैं और साथ में मंत्रियों और अमलों को बी दूर दराज के इलाकों में हांक कर ले जाती हैं।


काम हो या नहो काम करने का इरादा जताने में उनकी कोई सानी भी नहीं है।


जाहिर है कि हवा हवाई राजनीति और चुनावी मीकरणों के सहारे ममता बनर्जी को हराने की बातें जो कर रहे हैं,उनका कोई जनाधार कहीं नहीं रहा है।


मीडिया को सब मालूम है लेकिन मीडिया के अपने समीकरण हैं,अपने अपने हित अनेक हैं जो साधे जा रहे हैं।


नई दिल्ली में हमारे एक पुराने धर्म निरपेक्ष साथी तो संघ परिवार के नये मुसलमान चेहरा बनते नजर आ रहे हैं।पत्रकारिता से उनने खूब कमा लिया और राजधानी पहुंचकर उनके संपर्क बी खूब सध गये हैं।


कोलकाता से यह करिश्मा एमजे अकबर और राजीव शुक्ला करके रास्ता दिखा चुके हैं।बिहार के चुनावों में उनकी खास भूमिका होनी है।


बिहार में अति दलितों का नया मसीहा पैदा करने का करिश्मा भी इसी मीडिया के होनहार करके दिखा चुके हैं।


हमारे वे साथी मंत्रियों के लेटर पैड लेकर चलने वाले रहे हैं और बहुत संभव है कि जैसे दलितों के सारे रामों का कायाकल्प हो गया ठहरा,वैसे वे भी हनुमान अवतार में बहुत जल्द प्रगट होने वाले हैं और बहुत संभव है कि वे बहुत जल्द केंद्र सरकार में एक और मुसलमान मंत्री बन जायेंगे।


मुसलमानों को ,दलितों कोऔर आदिवासियों को इस तरह मंत्री से संतरी बनाते हुए राजकाज मनुस्मृति का जारी है,लेकिन अब तक भला किसी का हुआ नहीं है और न आगे होने वाला है।पिछड़े फिरबी उतने बुरबक नहीं है और सवर्णों की तरह नेतृत्व में हैं।सत्ता की बागडोर संभाले हुए वे नव ब्राह्मणों में तब्दील हैं और ब्राह्मणों को किनारे किये हुए हैं।पिराने स्वयंसेवको का हाल यह कि खिंसियानी बिल्ली खंभा नोंचे।


सच्चर कमिटी की रपट से मुसलमानों ने बंगाल में वाम शासन का तख्ता पलट कर दिया क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्षता का पाखंड खुला तमाशा है


।दीदी के राजकाज में नमाज अदायगी तो खूब हो रही है और इफ्तार पार्टी की भी धूम है,लेकिन नजरुल इस्लमा जैसे लोग मुसलमानों को खूब बता चुके हैं कि उनके हिस्से में कैसे बाबाजी का ठुल्लू है।


वाम औरकांग्रेस कार्यकर्ता इस हालात से कोई फायदा इसलिए नहीं उठासकते कि इन दलों की जनता के बीच दो कौड़ी की साक नहीं हैं और न उनमें जनता के बीच जाने का जिगरा है।


मुसलमान तो फिर भी समझते हैं और मीडिया के समीकरण के मुताबिक वोटभी नहीं गेरने वाले हैं,यह बार बार वे साबित कर चुके हैं और फतवों का भीउनपर वैसा असर अब होता नही है।लेकिन दलितों का मोहभंग होता नहीं है है और दलित जनता हर हाल में भेड़ धंसान है।फिर बी लोग समझते हैं कि मसलमानों का वोट बैंक दखल संभव है।


महाराष्ट्र में दलितों के सकड़ों किस्म के संगठन,आंदोलन और राजनीतिक अराजनीतिक संगठन का कुल जमा रिजल्ट भीमशक्ति शिवशक्ति एकाकार है तो यूपी में बहन मायावती की बसपा भाजपा के आगे बेबस सी है।


बाकी दलितों के वोट मार कर लेने का भी रिवाज है।यूपी में तो कल तक वोट गेरने का हक ही नहीं था।दलित मार खायेगा,फिर मारने वालों के साथ खड़ा हो जायेगा।मुसलमान और आदिवासी इतने बुरबक भी नहीं है।


बंगाल के दलित तो सत्ता का साथ छोड़ते नहीं हैं कभी वे महज बीस फीसद से कम आबाजदी हैं और आदिवासी महज सात फीसद।दलितों का सबसे बड़ा आंदोलन मतुआ अब हिंदुत्व के शिकंजे में है और उसका एक बड़ा धड़ा अब भी दीदी के साथ है।


वाम दलों और कांगेरस के सात कोई नहीं है और हवा ऐसी बनायी जा रही है कि वाम कांग्रेस गठबंधन से बंगाल में परिवर्तन का रथ उलटा दिया जायेगा।

क्योंकि मीडिया की खबर है कि तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल रॉय अपनी एक अलग पार्टी बनाने की तैयारी में है और इसकी जल्द ही घोषणा करेंगे।


बहरहाल  यह दावा उनने नहीं, दावा उनके सहयोगी और पार्टी से बाहर किए गए नेता दीपक घोष ने किया है।मुकुल ने अपने पत्ते कोले ही नहीं है और बाकी सबकुछ कयास है।अंदेरे में तुक्का लगे तो लगे,हो जाये रामवाण,वरना तुक्का।


इस पूर्व केंद्रीय मंत्री ने इसकी पुष्टि करने से मना कर दिया।


यूं दीपक घोष ने बताया कि मसौदा तैयार हो चुका है और हम ईद के बाद चुनाव आयोग के समक्ष नई पार्टी के गठन के लिए दस्तावेज जमा करा देंगे।


वहीँ जब इस बारे में मुकुल रॉय से बात की गई तो उन्होंने घोष के इस बयान से अपना पल्ला झड़ते हुए कहा कि यह उनकी टिप्पणी निजी है और मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं कहना है।


गैरतलब है कि कभी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में अहम् जगह रखने वाले रॉय को सभी पदों से हटा दिया गया है।


वहीँ करोड़ों रुपयों के चिट-फंड घोटाले में CBI द्वारा पूछताछ किए जाने के बाद से उनकी स्थिति बहुत खराब चल रही है।


CBI द्वारा तृणमूल के नेताओं से पूछताछ को पार्टी ने साजिश करार दिया था वहीँ रॉय ने पार्टी के खिलाफ जाकर जांच एजेंसी का सहयोग करने की बात कही थी।


यह भी समझने वाली बात है कि दीदी मोदी साथ साथ हैं।अलग दुकान खोल लेने पर फिर सीबीआई जांच के तेवर क्या होंगे,समझना मुश्किल है।


जेएनयू पलट जड जमीन से कटे माकपा के नये महासचिव भी अपने वफादार पुराने मीडिया कारिंदों के झांसे में आ गये हैं और उनके परस्परविरोधी बयान से बाकी देश में जो होगा सो होगा,बंगाल के वाम कैडर वापसी के लिए कुछ भी नहीं करेंगे ,यह तय है।



मुकुल राय का सांगठनिक करिश्मा ममता बनर्जी की लड़ाकू सड़की  जमीन की राजनीति के चलते कामयाब रहा है और भरोसे के चलते दीदी ने उन्हें मौका भी खूब दिया है वरना उनकी राजनीतिक हैसियत क्या थी कि वे भारत के रेल मंत्री बन जाते।


ताजा खबर यह है कि बैरकपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक शीलभद्र व हल्दिया की विधायक सिउली साहा इन दिनों पार्टी से अलग-थलग चल रहे राज्यसभा सदस्य मुकुल रायके करीबी हैं।


गौरतलब है कि मुकुल राय की ओर से शनिवार को निजाम पैलेस में आयोजित की गई इफ्तार पार्टी में दोनों शामिल हुए थे।


राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मुकुल राय से निकटता व उनके इफ्तार पार्टी में शामिल होने के कारण दोनों को निलंबित किया गया है।


निलंबन के बारे में पूछने पर शीलभद्र व सिउली साहा ने कहा कि उन्हें मीडिया के मार्फत यह खबर मिली है। पार्टी की ओर से उन्हें कोई चिट्ठी नहीं मिली है।


अब मुसलमान इतने बुरबक तो नहीं ही होगे कि मुकुल की अलग पार्टी बन जाने से यकबयक उन्हें ख्वाब आयेगा कि दीदी की हार तय है और वाम काग्रेस गठबंधन की सत्ता होगी।


कारपोरेट मीडिया को बहुत गुमान है,खासकर कुछ बड़बोले संपदकों और प्तरकारों को कि वे जनमत बदल देंगे।कांग्रेस ने जो उनका भरोसा किया तो बेड़ा उनका कितना गर्क हुआ,वह ताजा इतिहास है।


मीडिया और सोशल मीडिया दखल करके शंघ परिवार भी समझने लगा है कि मीडिया और उसके चमचमाते झूठ के सहारे अश्वमेध जारी रहेगा और शत प्रतिशत हिंदुत्व का का अखंड बारत अब अमेकरिका भी होगा।


अमेरिका से जो खबरे छन छनकर आ रही हैं,हम साजा करते रहेंगे कि कैसे बाबी जिंदल का हाल है और कितने आगे पीछ हैं वे।


फिलहाल सारे दावेदारों के मुकाबले हालत उनकी पतली है।


स्वदेश में भी महाजिन्न के चमत्करा और चौसढ आसनों की कवायद से क्या गुलबहार है,फिर वहींच मीडिया एक अकेले ललित मोदी के हवाले से विशुद्धता के अंदरमहल के सारे परदे उटाने लगा है।


हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी।


राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज।


चप्पुओं के मीडिया साम्राज्य  में दलदासों के राजकाज से जैसे जनता को सच मालूम नहीं है,वैसे भी सच सरकार को भी मालूम नहीं हो सकता।झठ के कारोबार में झूठ सच बन जायें तो सचमुच सच का जो खेल होता है,वह तानासाही के दायरे से बहर कभी भी फटनेवाला ज्वालामुखी होता है।


प्रेस की आजादी छीनकर डां.जगन्नाथ मिश्र का क्या हाल हुआ लोग भले भूल गये हैं , लेकिन कालिख पुते सेंसर किये अखबारी पन्नों में इंदिरागांदी का इतिहास भी लिखा है,बहुत बेहतर हो कि महाजिन्न तो पढें ही,बाकी हमारे कामरेड भी देख लें।समाजवादी तो संभल भी न सकेंगे,यूपी में ऐसा बवाल है।




जमीनौ कार्यकर्ता , जमीनौक कार्यकर्ता अर जमींदस्त राजनीति

Previous: सत्ता के कारिदों से बचें महाराज! चुनाव जीतना हो तो दलितों और मुसलमानों को टोपी पहनाओ,बूमरैंग होगा यह फारमूला। मीडिया के सहारे राजनीति नहीं चलती है और सेसंरशिप से तो बेड़ा गर्क ही समझो। हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी। राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज। पलाश विश्वास
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 जमीनौ कार्यकर्ता , जमीनौक कार्यकर्ता अर जमींदस्त राजनीति   


                        चबोड़ , चखन्यौ , चचराट   :::   भीष्म कुकरेती 


                      उन तो रजनीतिग्य अपण पार्टीक कमियुं बड़ा मा कमि बुल्दन पर अजकाल लालकृष्ण आडवाणी पर यु जौर -च्यार ज्यादा इ लग्युं च।  मुलायम सिंग पर बि यु जौर लगदु च।  पर ब्याळि उत्तरप्रेदसौ मुख्यमंत्रीन एक बात बोली बल जमीनी कार्यकर्ता और जमीनका कार्यकर्ताओं मा भौत फरक हूंद।  

             पर दिखे जावो तो राजनीती तो जमीनी कार्यकर्ताओं का  ना जमीनका दल्ला कार्यकर्ताओं का जिबळु , जाळ  , फंदा मा इ फंसी रौंदी।  दुर्योधनन एक इंच जमीन पांडवुं तै नि दे तो कुरुक्षेत्र ह्वे ग्ये।  कर्ण बि राजनैतिक कार्यकर्ता बणणो आई पर जमीनी हकीकत या छे कि कर्ण माँ जमीन नि छे तो दुर्योधनन डिस्क्रिमिनेसन पावर प्रयोग करिक कर्ण तै लैंड दे दे।  हरियाणा का भूतपूर्व , अभूतपूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा अर रजस्थान का ब्याळो सूबेदार गहलौतन बि डिस्क्रिमिनेसन प्रयोग कर दे अर रॉबर्ट बाड्रा तैं  जमीन अलॉट कर दे।  दुर्योधन कु डिस्क्रिमिनेसन सही माने ग्ये  पर हुड्डा अर गहलौत का डिस्क्रिमिनेसन गलत माने गे।  जमीन का मसला राजनीति मा महत्वपूर्ण हूंदी तबि तो द्रोणाचार्य तै राजकीय युद्धगुरु बणन छौ तो द्रुपद की जमीन छीन  दे या ह्वे सकद च राजकीय युद्ध गुरु बणनो बाद द्रोणाचार्यन  यदुरप्पा पुत्र जन  करतूत कर दे हो।  जमीन ही तो रजनीति की गूंद हूंदी । 

    

             देहरादून मा जावो जरा ! तो आप तै आधा से जादा नेताऊं परिचय इन पैल्या -

    जी यी उत्तराखंड भ्रान्ति दल का नेता छन अर फलैटों दलाली बि करदन। 

     यदि कॉंग्रेस की सरकार हो तो - जी यी भाजपा का भारीभरकम नेता छन अर इस्टेट एजेंसी का काम बि करदन। 

       अर भाजपा की सरकार हो तो - जी यी कॉंग्रेस का भारीभरकम नेता छन अर इस्टेट एजेंसी का काम बि करदन। 

       अब जब कि कॉंग्रेस की सरकार च तो परिचय इन हूंद -  यी कॉंग्रेसी छन अर चुनाव की तयारी करणा छन अर फलण लैंड माफिया का सड्डू भाई छन। 


           गढ़वळि माँ मिसाल च कि बड़ गोर घास खालु अर बछुर थुंतुर चाटल।  अब राजनीति मा छूट पार्टीका नेता दल्ला का नाम से भट्याए जांद तो बड़ी पार्टी का नेता भूमाफिया का समधी या साड्डू भाई से ख्याति पांदु। 

  मुंबई मा यदि ब्वालो कि यी नेता याने सामाजिक कार्यकर्ता छन तो बुलणो  जरूरत नि हूंदी कि यी लैंड ग्रैबरों रिस्तेदार छन।  लैंड ग्रैबिंग/जमीन हथियाओ अर राजनीति अब एक हैंकाक पर्याय ह्वे गे। झूट बुलणु हूँ त बसुन्धरा राजे बौ अर दुष्यंत भतीजो तै पुछि ल्यावदी निथर चचा जी  शरद पवार या भतीजो अजित पंवार नि बताला तो भुजबल का ड्यार पड्यां छापा तो अवश्य ही बताला।  हाँ महराष्ट्र का महान कॉंग्रेसी अशोक चौहाण तो अबि बि बुल्दन कि आदर्श सोसाइटी से म्यार क्वी लीण दीण नी च । 

 अर तब बि सच नि आणि हो तो क्रिकेटर सुरेश रैना , रविन्द्र जडेजा अर वेस्ट इंडियन ब्रावो त  गवाही दे ही द्याला कि इण्डिया मा लैंड ग्रैबिंग अर राजनीती एक हैंकाक पर्याय ह्वे गे । या अलग बात च कि BCCI का मुखिया राजीव शुक्ला , अमित शाह , अरुण जेटली , अनुराह ठाकुर , शरद पवार का बयान तो यो हि ह्वाला  कि सब बकबास च।  क्रिकेट की जमीनी हकीकत बि या ही च कि क्रिकेट की जमीन बि अब भूमाफिया तयार करदो। 


  अर तब बि सच नि आणि हो तो जरा डा रमेश निशंक का पॉलिटिकल ग्राफ देखि ल्यावदी बिचारा जमीन का बदौलत ही  निशंक से राजनैतिक  रंक बणिन । अर जमीन खिसकण से ही तो विजय बहुगुणा की जमीन खिसक ! जमीन राजनीती मा महत्वपूर्ण खेल खेल्दी। 

अर एक जमीनी हकीकत बि या च कि जमीनी राजनितिक कार्यकर्ता कबि बि मंत्री नि बण सकदन।  मंत्री बणनो बाण तुमतै जमीनक सौदागर अवश्य बणन पोड़ल।  झूट बुलणु हो तो जोगेश्वरी , मुंबई का भूतपूर्व जमीनी सौदागर पुरषोत्तम सोलंकी से पुछि ल्यावदी जु अब गुजरात का मंत्री छन। 

mana ki app bahot bada karya kar rahe hai parantu kalparso bharat sarkarne yek pusatak pure desme vitarit ki us kitab ke bare me ap chust baithe hai. jisme babasahab ambedkarji ke bare kuchbhi nahi likha hai jo ki adhunik bhartko aur majbuti pradhan karne ko bahut jaruri hai..... us bare me app q nid le rahe ho...

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Anil Raut
June 30 at 11:29am
 
halo sir jabhim

mana ki app bahot bada karya kar rahe hai parantu kalparso bharat sarkarne yek pusatak pure desme vitarit ki us kitab ke bare me ap chust baithe hai. jisme babasahab ambedkarji ke bare kuchbhi nahi likha hai jo ki adhunik bhartko aur majbuti pradhan karne ko bahut jaruri hai..... us bare me app q nid le rahe ho...

छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला

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छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला

 हिमांशु कुमार

Himanshu

सरकार आदिवासियों को मार कर आदिवासियों की ज़मीनें बड़े उद्योगपतियों के लिए का काम कर रही है

आदिवासियों की हत्याओं और बलात्कारों का काम करने के लिए इस काम में बदमाश पुलिस अधिकारियों को लगाया गया है .

ज़मीनें छीनने के लिए छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रधान मंत्री मोदी दोनों मिलकर आदिवासियों की हत्याओं , आदिवासी औरतों के बलात्कार करवाने वाले पुलिस अधिकारियों को संरक्षण देने और उन्हें बढ़ावा देने में खुले आम लगे हुए हैं .

एक तरफ सरकार कहती है कि वह लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहती है

लेकिन जब भी कोई आदिवासी लोकतान्त्रिक तरीकों से सरकारी बदमाशियों का पर्दाफाश करता है तो ये बदमाश सरकारें उन आदिवासियों के पीछे पड़ जाती हैं .

आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी ने जब सरकार की बदमाशियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तो पुलिस अधीक्षक ने सोनी सोरी को थाने में ले जाकर बिजली के झटके दिए और उसकी योनी में पत्थर भर दिए .

आदिवासी पत्रकार लिंगा कोडोपी ने जब पुलिस द्वारा आदिवासी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले उजागर किये तो पुलिस अधिकारियों ने लिंगा को पकड़ा और एसपी के घर में ले जाकर लिंगा के मलद्वार में मिर्च और तेल से सना डंडा घुसेड़ दिया ,जिससे लिंगा की आंतें फट गयीं ,

लिंगा कोडोपी , और सोनी सोरी को पुलिस ने ढाई साल तक जेल में डाल कर रखा .
सरकार जेल में भी सोनी सोरी को नंगा करके वीडियो बनाती रही . सोनी सोरी को पागल घोषित करने की कोशिश करी गयी .

हम सब ने मिलकर किसी तरह सर्वोच्च न्यायालय से सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी को ज़मानत पर रिहा करवाया .

रिहा होने के बाद से ही सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी आदिवासियों पर होने वाले सरकारी ज़ुल्मों के विरुद्ध लोकतान्त्रिक तरीकों से आवाज़ उठा रहे .

सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी प्रेस वार्ता करते हैं रैली करते हैं , पत्र लिखते हैं अदालती करवाई में आदिवासियों की मदद करते हैं .

यह सब न्याय पाने के लोकतान्त्रिक तरीके हैं जिसे प्रत्येक नागरिक को इस्तेमाल करने का अधिकार है

लेकिन सरकार लोकतान्त्रिक तरीकों से ही डरती है

सरकार लोकतान्त्रिक तरीके इस्तेमाल करने वाले आदिवासियों पर हमला करती है उन्हें डराती है परेशान करती है

कल रात को ही सोनी सोरी ने पुलिस की क्रूरता के विरोध में एक प्रेस वार्ता करी
इसके तुरंत बाद पुलिस के बदमाश आई जी कल्लूरी ने सोनी सोरी के भतीजे और आदिवासी पत्रकार लिंगा कोडोपी और सोनी सोरी के पिता को उठवा लिया .

आधी रात तक पुलिस आईजी कल्लूरी और दंतेवाड़ा का एसपी लिंगा कोडोपी को धमकाते रहे, कि तुम और सोनी सोरी सरकार के विरुद्ध रैली और प्रेस वार्ता करना बंद कर दो नहीं तो बहुत नुकसान उठाओगे

कल्लूरी लिंगा को बार बार पिस्तौल दिखा रहा था

लिंगा ने बिना डरे कहा कि आप लोगों ने आदिवासियों की जिंदगी हराम कर दी है हम आदिवासियों के लिए न्याय की आवाज़ ज़रूर उठाएंगे

लिंगा ने खुद को डराने वाले पुलिस अधिकारियों से यह भी कहा कि आप अगर मुझे यहाँ से नहीं जाने देंगे तो बाहर शोर मच जाएगा क्योंकि मैं यहाँ आने की सूचना सब को देकर आया हूँ

आधी रात के बाद एक बजे लिंगा को पुलिस ने धमकियां देकर अवैध हिरासत से रिहा किया

लिंगा कोडोपी सर्वोच्च नयायालय द्वारा दी गयी ज़मानत पर है

पुलिस उसे परेशान नहीं कर सकती

लेकिन आदिवासी इलाके तो अमीरों की लूट का इलाका हैं

वहाँ कोर्ट , लोकतंत्र और कानून नहीं चलते

वहाँ सरकारी क्रूरता का अन्धकार छाया हुआ है

लेकिन हम यह नहीं होने देंगे

दंतेवाड़ा में होने वाले सरकारी गुनाहों की गूँज सारी दुनिया में होगी

दमनकारी सरकार सावधान रहे

अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति करने वाले सिदू-कान्हू को हूल जोहार।

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Rajan Kumar
June 29 at 5:50pm
 
हूल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति करने वाले सिदू-कान्हू को हूल जोहार। 
जय जयस जय आदिवासी

हूल क्रान्ति दिवस
सिद्धू तथा कान्हू की प्रतिमाएँ
विवरणझारखण्ड राज्य के आदिवासियों द्वाराअंग्रेज़ों के विरुद्ध किये गए विद्रोह को 'हूल क्रान्ति दिवस' के रूप में जाना जाता है। अंग्रेज़ों से लड़ते हुए लगभग 20 हज़ार आदिवासियों ने अपनी जान दी।
राज्यझारखण्ड
स्थानभगनाडीह ग्राम, साहेबगंज ज़िला
क्रांति की शुरुआत30 जून
नायकसिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव
संबंधित लेखसंथालआन्दोलन विप्लव सैनिक विद्रोहऔपनिवेशिक कालभारतीय स्वतंत्रता संग्राम
अन्य जानकारीइतिहासकार हंटर की पुस्तक में लिखा है कि अंग्रेज़ों का कोई भी सिपाही ऐसा नहीं था, जो आदिवासियों के बलिदान को लेकर शर्मिदा न हुआ हो। इसमें करीब 20 हज़ार वनवासियों ने अपनी जान दी थी।

हूल क्रान्ति दिवस प्रत्येक वर्ष 30 जून को मनाया जाता है। भारतीय इतिहास मेंस्वाधीनता संग्राम की पहली लड़ाई वैसे तो सन 1857 में मानी जाती है, किन्तु इसके पहले ही वर्तमान झारखंड राज्य के संथाल परगना में 'संथाल हूल' और 'संथाल विद्रोह' के द्वारा अंग्रेज़ों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। सिद्धू तथा कान्हू दो भाइयों के नेतृत्व में 30 जून, 1855 ई. को वर्तमान साहेबगंज ज़िले के भगनाडीह गांव से प्रारंभ हुए इस विद्रोह के मौके पर सिद्धू ने घोषणा की थी- करो या मरो,अंग्रेज़ों हमारी माटी छोड़ो।

ऐतिहासिक तथ्य[सम्पादन]

इतिहासकारों के अनुसार संथाल परगना के लोग प्रारंभ से ही वनवासी स्वभाव सेधर्म और प्रकृति के प्रेमी और सरल होते हैं। इसका ज़मींदारों और बाद में अंग्रेज़ों ने खूब लाभ उठाया। इतिहासकारों का कहना है कि इस क्षेत्र में अंग्रेज़ों ने राजस्व के लिए संथाल, पहाड़ियों तथा अन्य निवासियों पर मालगुज़ारी लगा दी थी। इसके बाद न केवल यहाँ के लोगों का शोषण होने लगा, बल्कि उन्हें मालगुज़ारी भी देनी पड़ रही थी। इस कारण यहाँ के लोगों में विद्रोह पनप रहा था।[1]

इतिहासकार कथन[सम्पादन]

नागपुरी साहित्य और इतिहासकार वी. पी. केशरी के अनुसार- "यह विद्रोह भले ही 'संथाल हूल' हो, परंतु संथाल परगना के समस्त गरीबों और शोषितों द्वारा शोषकों, अंग्रेज़ों एवं उसके कर्मचारियों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन था। इस जन आंदोलन के नायक भगनाडीह निवासी भूमिहीन किंतु ग्राम प्रधान चुन्नी मांडी के चार पुत्र सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव थे।"

केशरी जी आगे कहते हैं कि इन चारों भाइयों ने लगातार लोगों के असंतोष को एक आंदोलन का रूप दिया। उस समय संथालों को बताया गया कि सिद्धू को स्वप्न में बोंगा, जिनके हाथों में बीस अंगुलियां थीं, ने बताया है कि "जुमीदार, महाजन, पुलिस राजदेन आमला को गुजुकमाड़", अर्थात "जमींदार, महाजन, पुलिस और सरकारी अमलों का नाश हो।" 'बोंगा' की ही संथाल लोग पूजा-अर्चना किया करते थे। इस संदेश को डुगडुगी पिटवाकर स्थानीय मोहल्लों तथा ग्रामों तक पहुंचाया गया। इस दौरान लोगों ने साल वृक्ष की टहनी को लेकर गाँव-गाँव की यात्राएँ की।[1]

आंदोलन की शुरुआत[सम्पादन]

आंदोलन को कार्यरूप देने के लिए परंपरागत शास्त्रों से लैस होकर 30 जून, सन 1855 ई. को 400 गाँवों के लगभग 50,000 आदिवासी लोग भगनाडीह पहुंचे और आंदोलन का सूत्रपात हुआ। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब मालगुज़ारी नहीं देंगे। इसके बाद अंग्रेज़ों ने, सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव- इन चारों भाइयों को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया; परंतु जिस पुलिस दरोगा को वहाँ भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट कर हत्या कर दी। इस दौरान सरकारी अधिकारियों में भी इस आंदोलन को लेकर भय प्राप्त हो गया था।

गिरफ़्तारियाँ[सम्पादन]

भागलपुर की सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी। इस क्रांति के संदेश के कारण संथाल में अंग्रेज़ों का शासन लगभग समाप्त हो गया था। अंग्रेज़ों द्वारा इस आंदोलन को दबाने के लिए इस क्षेत्र में सेना भेज दी गई और जमकर आदिवासियों की गिरफ़्तारियाँ की गईं और विद्रोहियों पर गोलियां बरसने लगीं। आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया गया। आंदोलनकारियों की गिरफ़्तारी के लिए अंग्रेज़ सरकार द्वारा पुरस्कारों की भी घोषणा की गई। बहराइच में अंग्रेज़ों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए। प्रसिद्ध अंग्रेज़ इतिहासकार हंटर ने अपनी पुस्तक 'एनल्स ऑफ़ रूलर बंगाल' में लिखा है कि "संथालों को आत्मसमर्पण की जानकारी नहीं थी, जिस कारण डुगडुगी बजती रही और लोग लड़ते रहे।"

आदिवासियों का बलिदान[सम्पादन]

जब तक एक भी आंदोलनकारी जिंदा रहा, वह लड़ता रहा। इतिहासकार हंटर की पुस्तक में लिखा गया है कि अंग्रेज़ों का कोई भी सिपाही ऐसा नहीं था, जो इस बलिदान को लेकर शर्मिदा न हुआ हो। इस युद्ध में करीब 20 हज़ार वनवासियों ने अपनी जान दी थी। विश्वस्त साथियों को पैसे का लालच देकर सिद्धू और कान्हू को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीहग्राम में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फ़ाँसी की सज़ा दे दी गई। इस प्रकार सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव, ये चारों भाई सदा के लिएभारतीय इतिहास में अपना अमिट स्थान बना गए।[1]

खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं हो पायेगा. मंत्री सरयू राय चाहते हैं एक रुपये किलो मिले अनाज

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खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं हो पायेगा.

मंत्री सरयू राय चाहते हैं एक रुपये किलो मिले अनाज
रांची : झारखंड के आठ जिलों में एक जुलाई से खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं हो पायेगा. खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने व्यापक जनहित में ऐसा करने का निर्णय लिया है. मंत्री चाहते हैं कि अंत्योदय के अलावा शेष लाभुकों को भी तीन रुपये के बजाय एक रुपये किलो अनाज दिया जाये. पूर्व सरकार ने अक्तूबर-2014 में लाभुकों को तीन रुपये किलो अनाज देने संबंधी अधिसूचना निकाली थी.

अधिनियम को अब 15 जुलाई से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है. सूत्रों के अनुसार, मंत्री की राय है कि अनाज की दर में आयी कमी से सभी लाभुकों को एक रुपये किलो अनाज उपलब्ध कराया जा सकता है. पहले केंद्र से 5.65 रुपये प्रति किलो की दर से अनाज मिलता था. इधर, राज्य सरकार अंत्योदय सहित बीपीएल व अतिरिक्त बीपीएल को भी एक रुपये किलो की दर से अनाज दे रही थी.

वहीं खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बाद केंद्र से अनाज तीन रुपये किलो मिलना है. यानी अनाज की दर प्रति किलो 2.65 रुपये कम होगी. इससे अंत्योदय परिवार को तो एक रुपये किलो अनाज मिलेगा ही, शेष लाभुकों को भी इसी दर पर उपलब्ध कराने पर भी सरकार को वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा.

पहले लाभुक परिवारों की कुल संख्या करीब 35 लाख थी, जो अधिनियम की शर्तो के तहत अब करीब 49 लाख हो गयी है. सूत्रों के अनुसार, मंत्री ने एक रुपये किलो अनाज बांटने पर सहमति दे दी है. अब कैबिनेट से इसके अनुमोदन के बाद यह दर लागू हो जायेगी.

विभाग यह भी चाहता है कि अधिनियम लागू होनेवाले जिलों में कोई लाभुक न छूटे. इसलिए अखबारों में विज्ञापन निकाल कर और कैंप लगा कर लाभुकों से सूची में नाम जुड़वाने का आग्रह किया जायेगा.

सूत्रों के अनुसार, कुछ जिलों में चावल के साथ गेहूं भी देने की मांग की गयी है. विभाग इस पर भी विचार कर रहा है. इस तरह अब सभी व्यवस्था हो जाने पर उक्त आठ जिलों में 15 जुलाई से खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू हो सकता है. वहीं शेष जिलों में इसे अगस्त में लागू होना है.

जंगलों की सुरक्षा में लगी सफेद गैंग की महिला सदस्य

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Dalit Adivasi Dunia's photo.

जंगलों की सुरक्षा में लगी सफेद 

गैंग की महिला सदस्य

जंगल की सुरक्षा के लिए माजरी की महिलाएं आगे आई हैं। महिलाओं के डर से माजरी सहित आसपास क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगी है। इसी प्रकार अन्य गांवों के ग्रामीणों को भी वन विभाग का सहयोग करने की समझाइश दी जा रही है। -केएल उइके, रेंजर, दक्षिण वन मंडल मुलताई 
जंगल का महत्व समझा तो बदल गई सोच 
जंगल की रक्षा का संकल्प लेने वाली सफेद गैंग की अध्यक्ष वच्छला बाई मरकाम और सचिव कौशी बाई ने बताया कि पहले जंगल का महत्व नहीं मालूम था। गांव में शराब बंदी कराने पर जिले से आए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सम्मान किया। इस दौरान सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने जल, जंगल और जमीन का महत्व बताया। इसके बाद से पेड़ों को काटने की सोच बदली और रक्षा का संकल्प लिया।

आसपास के गांवों में भी बन रही सफेद गैंग 
गैंग की सदस्य मनोती बाई उइके ने बताया कि गांव में सफेद गैंग बनाकर शराब बंदी की है। आसपास के गांवों में भी शराब बंदी और जंगलों की सुरक्षा के साथ गांव को हराभरा बनाने के लिए सफेद गैंग बना रहे हैं। तुमड़ीढाना और चकोरा गांव में सफेद गैंग बन चुकी है। गारगुड़, कुंदा, रोहणा, इटावा, रैयतवाड़ी में भी महिलाओं को समझाइश देकर गैंग बनाने की तैयारी चल रही है। 
बैतूल िजले के प्रभातपट्‌टन ब्लॉक से लगी महाराष्ट्र सीमा के पास आदिवासी बहुल गांव है माजरी। अवैध शराब, शराबियों और अवैध धंधों के कारण बदनाम था। एक साल पहले इस गांव की महिलाओं ने सफेद साड़ी पहनी और अपनी गैंग बनाई। शराब बेचने और पीने वालों की पिटाई शुरू की तो पूरे गांव का माहौल ही बदल गया। एक साल में गांव में पूरी तरह से शराब बंद हो गई तो झगड़े भी खत्म हो गए। गांव के युवा और पुरुषों ने काम-धंधों पर जाना शुरू कर दिया। अब इसी गांव की महिलाओं ने पिछले चार महीने से जंगल की कटाई को रोकने का बीड़ा उठाया है। दिन में बकायदा लाठियां लेकर जंगल का भ्रमण करती हैं तो रात को कुल्हाड़ी की आवाज सुनते ही डंडा लेकर पहुंच जाती हैं। गांव के ही गुलाबराव वािडया कहते हैं कि आदिवासी महिलाओं की इस पहल के बाद जंगलों में अवैध कटाई करने वाले भाग खड़े हुए हैं। यही कारण है कि अब गांव के पुरुष भी महिलाओं का साथ दे रहे हैं। वन विभाग भी मानता है कि महिलाओं की इस पहल के बाद माजरी सहित आसपास के क्षेत्र में अवैध कटाई पर रोक लगी है। गांव की महिलाएं अब आसपास के गांवों में पौधारोपण करवा रही हैं।

DU admission


Only indians!

The Modi govt is anti-poor and anti-farmer: RSS ideologue KN Govindacharya

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The Modi govt is anti-poor and anti-farmer: RSS ideologue KN Govindacharya



PANINI ANAND@paninianand|30 June 2015



The opinion

  • Narendra Modi came to power promising 'Achhe din'. Former RSS ideologue Govindacharya gives his take on Modi's performance so far.
  • He believes 3 sections supported Modi in the elections: core RSS supporters, those upset with the UPA, and the youth.
  • This is a historic opportunity as it is the first time a non-Congress leader has won such a majority.

The performance

  • Under Modi, the party has become personality centric. Institutions and ideology are being neglected.
  • BJP has compromised on its core issues like Ram Mandir. It isn't doing enough for cow protection and cleaning up Ganga.
  • Why is there a greater urgency in aligning with PDP than on abrogating Article 370?
  • Even on foreign policy there has been little consistency.

The priorities

  • Modi government seems more keen on pushing a pro-corporate agenda than addressing the problems of the poor.
  • It is going against farmers by amending land acquisition Bill and pushing for GM foods.
  • Rather than smart cities and bullet trains, the priority should be on intervening in favour of have-nots.

More in the story

  • Criticism of Modi's policies on land, seeds, environment, labour reforms, rural migration, and foreign policy.

At a time when very few people in the BJP and the larger Sangh Parivar are willing to speak out, former RSS ideologue KN Govindacharya doesn't pull any punches.

He has many critical positions against the Narendra Modi government - especially on land, environment, labour reforms, GM crops, crony capitalism, the Make in India initiative and obsession with first world economies.

Many of the core issues he would like Prime Minister Modi to pursue are themselves contentious and debatable. However, his views are a window into what many in the RSS feel but do not voice.

In an interview, Govindacharya discusses various aspects of the Modi government, offering some criticism, a little praise and a lot of advice.

PA: BJP promised 'Achhe Din' during the election campaign. Now, everybody is evaluating whether this promise has been fulfilled. Congress says the Modi government has failed. Barring a few voices of dissent, BJP and RSS are hailing Narendra Modi. What is your take?
KG: It is the first time since Independence that a non-Congress leader has come to power with such a thumping majority. This landslide victory was a result of three kinds of voters rallying behind Modi. 

Out of roughly 31% vote share of BJP, 10% are hardcore RSS supporters. 

Another 10% were disgruntled with the previous government. These voters were not particularly inclined towards the party. Yet, they saw a ray of hope in Modi. The slogan of 'Achhe Din' found resonance with this voter. 

The third section is the youth. They hoped for better employment opportunities. The issue of black money also attracted them. We can say, the youth too was enticed by this slogan.

This government was formed when these three sections came together to exalt Modi. It is more of a Modi government than a BJP government.

PA: Has the organisation been overshadowed by personalities in the BJP?

KG: See, there are two things here. First, centralisation of power and over-dependence on the bureaucracy. 

Second, organisation taking a backseat in governance. Power comes and goes but the weakening of party institutions is more worrisome. Especially for a party which claims that it doesn't hanker for power. 

Today, one doesn't even know who the BJP's office-bearers are. Only the president of the party is known, that too for obvious reasons.

No one knows who BJP office-bearers are. Only the party chief is known

There is no vigour in party agitations. The constitution of the party has no provision for e-membership. It should have been ratified by the National Council of the party. But that did not happen. Every institution in the BJP - working committees, national council, office-bearers - have been marginalised.

PA: Isn't the BJP president known mainly because of the Prime Minister?

KG: The president has no separate existence. This has been one of the reasons for the marginalisation of the party. The situation has come to such a pass because there are no deliberations on such matters in the party.

As far as the achievements of the government are concerned, I think the intentions are right. However, we need to wait for tangible results. About two-third of BJP supporters still look up to Modi. They still hope for 'Achhe Din'. But about a third of the traditional voters are despondent. 

Take the example of Ram Janmabhoomi. The government does not seem to be as keen on this issue as it is on amending the land acquisition legislation.

BJP was in a hurry to form a government with PDP in Jammu and Kashmir but nobody spares a thought for Article 370.

The matter of cow slaughter is also on the back-burner. If they can't stop it altogether, they can at least ban the export of beef. However, beef exports have increased from Rs 22,000 crore per annum to Rs 26,000 crore per annum.

The Prime Minister stresses on the need for protecting cows. However, what will happen to them if they are not taken to the slaughter houses? There is no clear plan for their rearing.

In countries like US and Brazil, cows are treated as mere milk-producing machines. Dairies and slaughter houses are integrated there and the old cows are meant only for slaughtering. However, this is against Indian values. We do not accept this approach towards cows.

PA: You are saying that BJP has gone back on its core issues. What about the new slogans that have been coined?

KG: The policy of distracting people can't go on for long. Soon, people will begin to call your bluff. Take, for example, the issue of Ganga. Everybody agrees it has to be cleaned. The government has expressed the same sentiment. 

However, if you look at it logically, Ganga can only be clean if its flow is uninterrupted. How can this be achieved if there are big dams? The government must ensure the ecological flow of Ganga.

The government does not have a clear stand on this matter. To work superficially on this issue would be a grave injustice to Ganga. People will not tolerate this attitude towards the holiest river in the country.

Everybody believes that this government wants to make a positive change. But it has no clear direction. People have started viewing it as an anti-poor, anti-people government.

The main purpose of the state is to empower the destitute. However, the opposite is happening now

Detractors say it is working against the farmers and does not believe in communication. The perception is gaining ground that it is pro-rich and pro-US. 

The focus of the government is on smart cities, bullet trains and land acquisition. Its idea of development seems to be copied from the countries like the US, Argentina and Brazil. It wants big farms and slaughter houses.

The World Bank says it wants 40 crore farmers out of agriculture sector by the year 2020. The government seems to agree with this idea.

In fact, they are publicising 'Make in India' for the same purpose. 'Make in India' would be of little use unless it is transformed into 'Made by India' or 'Made for India'. 

As of now, 'Make in India' is nothing more than an open invitation to foreigners to loot the country. The current course would be suicidal for the country. It will not strengthen India's industrial muscle. We need to increase manufacturing capacity on our own.

PA: What about foreign policy? Surely that has been an area of success for the Modi government?

KG: Let us discuss foreign policy now. Narendra Modi can be deemed as the most active prime minister in this regard. However, merely visiting other countries, making speeches, and clicking selfies is of little use. 

This government started its diplomatic charm-offensive by offering an olive branch to Nawaz Sharif. Look, what is the state of Indo-Pak relations today?

Hurriyat and Pakistan flags are being waved in Kashmir. Who knows by next Independence Day, the clamour for Azadi will reach its peak and people would be seen burning the Indian flag in the Valley.

Much is left unsaid in diplomacy. Myanmar saved India's face after the cross-border operation. Otherwise India had come out looking like an aggressor. This can lead to many difficulties in the international arena. 

India risks isolation, if it is seen as a regional bully. India needs finesse in its' foreign policy.

Modi with Chinese President Xi Jinping on the banks of Sabarmati was a great Kodak moment. What was the ultimate result?

India, Japan and Australia are forging a strategic alliance at the behest of the US. However, this could antagonise China, Africa, Islamic countries along with some European nations. India's foreign policy must be centred around its core national interests. We should not ignore the eastern countries.

PA: The Sangh Parivar has always portrayed America as a 'demon', be it in the context of foreign goods or genetically modified seeds. How do you see the government's economic policies in this respect?

KG: There are two schools of thought in this country. One believes in the devolution of power and economy. It says nobody should be compelled to migrate for a living. This is the 'Swadeshi' model.

To uproot 40 crore farmers and compensate them is a model imported from the US and Brazil. Huge farms, dairies and slaughter houses is essentially a foreign idea. Cattle in every village household, an integrated approach towards agriculture and animal husbandry - this is the decentralised Indian approach.

The government has forgotten two basic facts. They believe small farms are not viable. This can be refuted scientifically. 

Second, ending self-reliance in agriculture and hampering food security will have dire consequences.

Framing agriculture policy and acquiring land at the cost of food security would be counter-productive. Providing safe drinking water and empowering the families should be our priority.

However, policy makers seem to cheer rural migration when it should have been a cause of concern to them.

The promotion of GM is ruining the indigenous seed bank and is one of the biggest hurdles in making farming profitable.

The Indian ideology has three basic tenets- Ram, Rashtra and Roti. Ram is a symbol of spiritual values as well as the Ram Temple agitation. He epitomises national sovereignty. The complete silence on the issue of Ram Temple reflects government's priorities.

The government must encourage an environment of dialogue in the country. Monologues aren't going to work

Instead of bullet trains, the government's priority should be providing water in unreserved coaches. 

According to the Indian model of development, smart cities should after the provision of safe-drinking water to 238 arsenic and fluoride affected villages of the country. As of now, rich are reaping the benefits and poor are being lured by empty promises.

The main purpose of the state is to empower the destitute. However, the opposite is happening. 

Forces of anarchy will stand to gain if the state is perceived as ineffective. The democratic process and the path of development would be endangered, if there is no course-correction.

PA: The government has a huge majority so what is the compulsion?

KG: I don't believe that the government has any compulsion. I do not doubt Modi's intentions. However, his priorities smack of neo-colonialism.

PA: What is the cause of disquiet among several MPs, ministers, the Margadarshak Mandal and Sangh-affiliated bodies like Bharatiya Mazdoor Sangh?

KG: Swadeshi Jagran Manch, Bhartiya Mazdoor Sangh and Bhartiya Kisan Sangh represent the economic thought of the RSS.

The Swadeshi Jagran Manch is disappointed because the government is going ahead with FDI in the retail sector.

BMS workers can see how labour reforms are against the interests of the working class. The contract labourers are being exploited. There is no parity between work and the wages. They are miffed at these basic issues.

Similarly, Bhartiya Kisan Sangh is at a loss to explain the haste in bringing an ordinance on land acquisition. Its content is a matter of separate debate. 

The Vishwa Hindu Parishad is asking what has the government done on the Ram Temple? This is the sentiment among the most committed cadres of the BJP. They worked hard for the party's victory and are now finding it hard to give answers in their constituencies. This is not a good sign.

You mentioned the Margadarshak Mandal, all Murli Manohar Joshi ji has said is that the ecological flow of the Ganga must be ensured. He is right in saying so, because Ganga can't be revived unless this happens. The government must not obstruct the flow of the Ganga.

The environment ministry says forget about forests, let there be land for humans first. But five crore landless labourers don't have any shelter. You should have given them the possession of land. Nothing of this sort is happening. If the government's image has taken a beating, then who else is to be blamed?

Most sectors are infested with crony capitalism. It is the responsibility of the government to intervene in favour of the have-nots. However, the government seems to be reneging on this commitment.

PA: Several questions have been raised over the choice of central ministers. The government is neither following the party line, nor the agenda of the Sangh. What is the reason for this?

KG: They are groping in the dark due to lack of ideological commitment. However, trust and dialogue are the fundamental premise of any organisation.

BJP's core supporters are a product of the same organisational culture. Today, they are silent and insecure. Speaking your mind is prohibited in the party. This cannot be good for any government or organisation.

PA: But what has tied the hands of the RSS?

KG: Sangh has its own character. It works for the party in the national interest. They came out in open support during the last general elections. I don't think it was a right thing to do. 

However, their style is to go back to the pavilion after the elections are over. RSS thinks Swayamsevaks working in the party should put the house in order. The onus to reform the party is on them.

Only 15% of the Sangh works actively in the party. Rest of them sit pretty at home after ensuring victory in the elections. But they have to face tough questions from the public. This section is the first one to get frustrated. It can't understand its role after the elections.

The govt is only thinking of taking land. Nobody speaks about distributing it to the needy

The Sangh ideology also says that only a person who has his boots on ground can understand the real situation.

This demands patience from the Sangh Swayamsevaks. Sometimes, this attitude worsens the situation to a point of no-return. Its also affects the election results. 

However, the most important thing is that the ideal of Ram, Rashtra and Roti is damaged. Organisations will come and go but this is the cause of real concern for the nation.

PA: There is no dearth of leaders in the BJP who make communal statements. Doesn't it reflect the hardline Hindutva nature of the party?

KG: Such statements are like the Myanmar faux pas. They remind me of a saying, 'befriend a fool and suffer a thousand falls'. It is always better to speak less in politics. 

Once the Sangh Parivar plays an active role in elections, it cannot escape hard questions. Then, the statements by the Sangh leaders will also be identified with the government. 

Therefore, there is a need to rethink the concept of inter-dependability within the Sangh Parivar.

PA: How can Modi overcome this crisis?

KG: Sometimes it's good to tread slowly. If the direction is right, there is nothing wrong in getting a little lost. Politics is a marathon. More than speed, It requires stamina. 

Therefore, dialogue, trust, decentralisation and participation are paramount. The government must encourage an environment of dialogue in the country. Monologues aren't going to work.

BMS workers can see how the govt's labour reforms are against the interests of the working class

The government still has four years to deliver. It is for the first time after Independence that a non-Congress leader has won such a huge majority. This experiment must not fail. 

It is the responsibility of the whole Sangh Parivar. Within the Sangh Parivar, it is the BJP which has to shoulder this burden and among them, the prime minister has to take the responsibility. 

I bear no ill-will towards Modi. He is an old friend of mine. I want him to succeed but he needs more sagacity.

PA: Is any scope of ideology left in the BJP, especially when they have Ram Vilas Paswan as well as PDP as their allies and nothing stops them from making more political compromises?

KG: With such a huge majority, BJP must come out of this alliance mentality. It should move ahead firmly on its ideological path. The party is still not out of the election mode. Just forming governments is not enough. The need of the hour is to work with the confidence of a government that has a full majority.

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए... WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC...

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हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए...

WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC...

Reyazul Haque's photo.
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इस सारी फेहरिस्त में सोनिया गांधी भी क्यों चुप हैं?

Next: .আদিবাসী সমাজের এই মূল সমস্যাবলী এখনো চরিত্রগতভাবে একই রয়ে গেছে......এখনো পুঁজির সর্বগ্রাসী কর্তৃত্ববাদী আক্রমণ, প্রগতি - উন্নয়ণ - শিল্পায়নের ধুয়ো তুলে, এই মানুষগুলোর উপরেই নেমে আসে.....মুনাফার জাঁতাকলে পিষ্ঠ হয় তাদের অস্তিত্ব....তাই এর বিরুদ্ধে আজও দেশের আনাচে কানাচে প্রাথমিকভাবে এই মানুষগুলোই প্রতিরোধ সংগ্রাম গড়ে তুলছে...
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बताईए भला ललित मोदी की नाव पर सवार हो कर सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे निरंतर डगमगा रही हैं। स्मृति ईरानी भी अपनी डिग्री को ले कर लगातार उलझती जा रही हैं । उधर महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे भी भ्रष्टाचार की लहरों पर सवार हो कर लहरा रही हैं। और तमाम हो -हल्ले के बावजूद नरेंद्र मोदी चुप हैं । नरेंद्र मोदी का नया नामकरण भी कर दिया जयराम रमेश ने कल और मौननेंद्र कहा । यह भी सब गुड है। पर इस सारी फेहरिस्त में सोनिया गांधी भी क्यों चुप हैं। चलिए कांग्रेस पार्टी की कमांडर है, सो ऐन मौके पर ही बोलेंगी। लेकिन राहुल गांधी भी सिरे से क्यों चुप हैं ? कहीं लुक भी नहीं हो रहे हैं । न चीख़-पुकार मचा रहे हैं , न कोई कागज़ पत्तर फाड़-फूड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी से इन मुद्दों पर न बोलने का हिसाब तो लेना लाजिमी है ही पर राहुल गांधी के न बोलने , न लुक होने पर भी हिसाब नहीं मांग लेना चाहिए ? मनो कि पूछ रहे हैं ! कहां हैं कम से कम यह ही बता दिया जाए ! कि यह बार-बार अंतर्ध्यान होने की बीमारी अब नियमित हो गई है ?

.আদিবাসী সমাজের এই মূল সমস্যাবলী এখনো চরিত্রগতভাবে একই রয়ে গেছে......এখনো পুঁজির সর্বগ্রাসী কর্তৃত্ববাদী আক্রমণ, প্রগতি - উন্নয়ণ - শিল্পায়নের ধুয়ো তুলে, এই মানুষগুলোর উপরেই নেমে আসে.....মুনাফার জাঁতাকলে পিষ্ঠ হয় তাদের অস্তিত্ব....তাই এর বিরুদ্ধে আজও দেশের আনাচে কানাচে প্রাথমিকভাবে এই মানুষগুলোই প্রতিরোধ সংগ্রাম গড়ে তুলছে...

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আজ হুল দিবস.....সারা ভারত জুড়েই, বিশেষত:পূর্বীয় রাজ্যগুলোতে; শুধুমাত্র সাঁওতাল নয়, বিভিন্ন আদিবাসীরাই এই দিনটিকে অত্যন্ত শ্রদ্ধার সঙ্গে পালন করে আসছে....
সাঁওতাল বিদ্রোহকে একদিক থেকে দেখতে গেলে, ভারতবর্ষের বুকে প্রথম গণ অভ্যুত্থান হিসাবে দেখা যেতে পারে.....একটা পর্যায়ে প্রায় ৩০ হাজার মানুষের এক বাহিনী ইংরেজদের ঘুম কেড়ে নিতে সক্ষম হয়েছিল....ইতিহাস তাদের জন্য জয়ীর মুকুট রাখতে পারেনি, কিন্তু এই বিদ্রোহের সাথে যদি গ্রামসমাজের অন্যান্য শ্রেণী ও স্তরের মানুষ সঙ্গবদ্ধ হতে পারতো, তাহলে ভারতের ইতিহাসে "স্বাধীনতা" শব্দটা অনেক আগেই ঢুকে যেতো.....
এই লড়াইয়ের ভিত্তিভূমি ছিলো জল, জঙ্গল, জীবিকার উপরে গণ মানুষের অধিকার কায়েমের সংগ্রাম.....স্বাধিকার, স্বাধীনতা আর ইজ্জতের লড়াই......আদিবাসী সমাজের এই মূল সমস্যাবলী এখনো চরিত্রগতভাবে একই রয়ে গেছে......এখনো পুঁজির সর্বগ্রাসী কর্তৃত্ববাদী আক্রমণ, প্রগতি - উন্নয়ণ - শিল্পায়নের ধুয়ো তুলে, এই মানুষগুলোর উপরেই নেমে আসে.....মুনাফার জাঁতাকলে পিষ্ঠ হয় তাদের অস্তিত্ব....তাই এর বিরুদ্ধে আজও দেশের আনাচে কানাচে প্রাথমিকভাবে এই মানুষগুলোই প্রতিরোধ সংগ্রাম গড়ে তুলছে...
এই প্রতিরোধেরই এক টুকরো ছবি আমার সাথীদের জন্য...........
The song describes the present day exploitation of tribal land and forests in the name of development.

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