अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत - 11
अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत - 11
এ মুহূর্তে বিশ্বের ২৪টি দেশে প্রায় আড়াই লাখ শিশুকে নানা প্রলোভন দেখিয়ে যুদ্ধে জড়ানো হচ্ছে। এর মধ্যে বেশির ভাগই...
हज़ार साल पुराना है उनका गुस्सा हज़ार साल पुरानी है उनकी नफ़रत मैं तो सिर्फ़ उनके बिखरे हुए शब्दों को लय और तुक के साथ लौटा रहा हूँ मगर तुम्हें डर है कि आग भड़का रहा हूँ gorakh pande |
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इससे भी दिलचस्प बात ये है कि शहर में हमेशा की तरह एक खास दरबार में दरोगा की मांग पर इस केस की सुनवाई हुई..... और पिता के अपमान के घूंट पी रहे बेचारे नेता जी को इसी पर सबर करना पड़ गया, कि जब लखनऊ में किसी ने नहीं सुना.... और जिलाध्यक्ष तक लाचार था.... यहां तो चलो दरोगा जी ने हाथ तो मिला लिया। चर्चा हुई कि ....जैसी पार्टी वैसा नेता.... और जैसा नेता वैसा ही सलूक। बहरहाल इस बात की चर्चा करके किसी को अपमानित करना या किसी के खिलाफ गलत सोच को बढ़ावा नहीं देना है। हर शहर की तरह, गाजियाबाद में भी चाहे मुलायम सिंह यादव के नाम पर या शिवपाल जी के.... या फिर आज़म ख़ान के नाम पर कुछ स्वंयभू दरबार गठित कर दिये गये हैं। कुछ लोग रिश्तेदार बताए जाते हैं....कुछ पार्टनर तो कुछ खासमखास....सबूत के तौर महीना दो चार में एक आध बार कोई न नेता जी लाव लश्कर के साथ इस दरबार के स्वामी के यहां पधारते रहते हैं....जहां मशीनरी और सरकारी अमले की हाथ जोड़कर हाज़िरी लगाना मजबूरी बन जाती है....और यहीं से दरबार शहर में स्थापित होने की राहें खुल जाती हैं.... जहां न सिर्फ सरकारी मशीनरी लेकर डीएम एसएसपी तक हाजिरी बजाने में शान समझते हैं बल्कि शहर के इसी तरह के मामलों में अपने ही अंदाज़ से फैसले सुनाए जाते रहे हैं। चाहे बीजेपी के एक नेता की पगड़ी एसएसपी के हाथों उछाले जाने का मामला हो या फिर व्यापारी नेता को बंद कराने और छुड़ावाने का खेल। मामले की गूंज दरबार के दीवाने खास से बाहर सुनी तक नहीं गई।
इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने की एक वजह मुलायम सिंह यादव या उनकी टीम के जादू से ज्यादा पिछली सरकार की करतूत से जनता का त्रस्त होना भी माना गया था। लेकिन हाल ही जिस ढंग से उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार में सरकारी मशीनरी के कारनामे उजागर हो रहे हैं उससे लगने यही लगा है पांच साल होने का जो बी समय बचा है वो जनता के लिए राहत भरा नहीं रहेगा। हाल ही में एक पत्रकार की जलने से हुई मौत के मामले में आरोपी मंत्री और दरोगा के खिलाफ जांच कराने के बजाए, मरने वाले पत्रकार को 30 लाख रुपए और परिवार के दो लोगों को नौकरी पेश कर दी गई। सवाल यह उठता है कि अगर कुछ गलत नहीं हुआ था तो इतना मुआवजा क्यों और अगर कुछ गलत हुआ था तो दोषियों के कार्रवाई से परहेज़ क्यों। इससे तो यही लगता है कि ये सरकार न अपने उस नेता के साथ है जिसके पिता को थाने में बेइज्जत किया न किसी पत्रकार की मौत के मामले पर दोषियों की तलाश करेगी।
इसी सबके बीच दो ही दिन पहले एक ऐसा मामला सामने आया जिसने ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि आख़िर सरकार है किसकी और किसके साथ। एक गरीब मुस्लिम परिवार की नाबालिग लड़की दूसरे समुदाय के किसी शख्स के हाथों बेचे जाने की सूचना पर रात को क्षेत्र की जनता गाजियाबाद के विजय थाने में शिकायत लेकर गई। बाद में उसी क्षेत्र में रहने वाले एक पत्रकार भी जा पहुंचे। आरोप है कि उस वक्त दरोगा पूरे मुस्लिम समाज को गरिया रहे थे और कुद को मुलायम सिंह यादव और बलराम यादव के परिवार का बता कर ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन इसी बीच जब एसओ साहब को लगा कि वहां मौजूद पत्रकार उनकी बहादुरी के कारनामों को रिकार्ड कर रहा है तो उन्होने न सिर्फ के साथ मारपीट कर डाली बल्कि पत्रकार का कैमरा तक छीन लिया। पत्रकार तौसीफ हाशमी ने मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति सहित मानवाधिकार आयोग तक को अपने शिकायती पत्र में कई ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं जिनसे इतना तो साफ हो जाता है कि उत्तर प्रदेश में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।
ये वही उत्तर प्रदेश सरकार है जिसने आते ही पिछली सरकार पर पत्रकारों और जनता के उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। और वादा किया था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जितने फर्जी मामले दर्ज हुए उनको समाप्त किया जाएगा। लेकिन जनाब अखिलेश जी आप पिछली सरकार के कितने मामलों को समाप्त कर चुके हैं उनका तो सबूत जनता और हमारे पास मौजूद है ही। मगर आपसे फिलहाल यही गुज़ारिश है कि अपनी सरकार के बचे खुचे कार्यकाल में जनता को नये मामलों से तो बचा लीजिए। माना कि सरकार यादव परिवार के हाथों में है तो स्वाभाविक है कि हर थाना हर बड़ी पोस्ट पर यादव इंपोर्ट किये जाऐंगे ही। मगर इस सभी यादव अधिकारियों को इतना तो समझा दो कि सरकार बनाने में यादवों की वोट का प्रतिशत कितना था। अगर यही हाल रहा और दूसरे समाज के लोग इस बार नेता को सबक सिखाने पर उतर आए तो अगले विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत की तरह पूर्ण सफाया भी नामुमकिन नहीं है।
लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, सहारा समय, इंडिया टी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ और कई चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं.
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सत्ता के कारिदों से बचें महाराज!
चुनाव जीतना हो तो दलितों और मुसलमानों को टोपी पहनाओ,बूमरैंग होगा यह फारमूला।
मीडिया के सहारे राजनीति नहीं चलती है और सेसंरशिप से तो बेड़ा गर्क ही समझो।
हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी।
राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज।
पलाश विश्वास
अखबारों के संपादक अब राजनीतिक दल तय करते हैं।बंगाल में 34 साल के वाम शासनकाल में डंके की चोट पर यह रिवाज चालू हो गया कि जो उपसंपादक बनने लायक नहीं है,जिसे खबर का अगवाड़ा पिछवाड़ा मालूम नो,न भाषा की तमीज हो और न न्यूजसेंस,ऐसे गदहे संपादक भी हम देखते रहे हैं।
फिर मीडिया में चूजे सप्लाई करने का दस्तूर अलग है।अनके लोग चूजे सप्लाई करते करते किंवदंती में तब्दील हैं तो अनेक संपादक तो बाकायदा चूजों के शौकीन हैं।
इसीलिए राजनीतिक कारिंदों की तरह काम कर रहे संपादकों की किरपा से पब्लिक कहीं ज्यादा बुरबक हैं।
मुसलमान और दलित जरुरत से ज्यादा बुरबक समझे जाते हैं।
शारदा चिटपंड का मामला रफा दफा है और इस प्रकरण में अब तक गिरफ्तार लोगों ने जिन्हें आरोपों की गर्फत में ज्यादा निशाना बनाया,बंगाल का मीडिया उन्हें अब ममता बनर्जी का विकल्प बनाने लगा है।
उनने कुछ नाराज मौलवियों को साथ नत्थी कर लिया है और दीदी से पहले धुंआधार इफ्तार पार्टी भी कर दी है,जिसमें दाढ़ी वाले खूब नजर आये तो जोर शोर से प्रचार होने लगा कि दीदी की जीत आसान नहीं है और टूटने लगा है मुसलमान वोट बैंक।
हम दीदी के कामकाज राजकाज और राजनीति के प्रशंसक नहीं रहे कभी।लेकिन हम जानते हैं कि वामदलों के जड़ों से कट जाने के बाद,संघ परिवार के साथ गुपचुप समझौते की वजह से एक साथ दलितों,हिंदुओ और मुसलमानों के वोट बैंक साधने में फिल वक्त ममता बनर्जी की कोई सानी नहीं है।
गौरतलब है कि करीब दो दशकों तक सड़क की राजनीति करने की वजह से जनता की नब्ज समझने और भवनाएं भड़काने में वे संघ परिवार से कहीं आगे हैं।जिस वजह से बंगाल में कमल की फसल महामारी की शिकार है।
फिल्मी ग्लेमर का इस्तेमाल और बाजार का इस्तेमाल भी दीदी खूब कर रही हैं।
खास बात यह है कि ममता बनर्जी भूमि सुधार के लिए भले कुछ करें या न करें लेकिन जमीन के हक हकूक के बारे में देश भर में सबसे मुखर नेता हैं मुख्यमंत्री बनने के बावजूद और इस मामले में वे निवेशकों की भी परवाह नहीं करतीं।
मसलन,तीस्ता जलविवाद में जिस तरह उत्तर बंगाल के किसानों के हितों के मुताबिक उनने अड़ियल रुख अपनाकर अपनी जड़ें मजबूत की है,वह समझने वाली बात है।
फिर सत्ता का विकेंद्रीकरण राजनीति में ममता बनर्जी करें या न करें,पार्टी में भले ही सारी सत्ता उनमें निहित हो,प्रशासन को जनता की पहुंच में बनाये रखने में वे कामरेड ज्योतिबसु के चरण चिन्हों पर चल रही हैं।
खुद रात दिन दौड़ती हैं और साथ में मंत्रियों और अमलों को बी दूर दराज के इलाकों में हांक कर ले जाती हैं।
काम हो या नहो काम करने का इरादा जताने में उनकी कोई सानी भी नहीं है।
जाहिर है कि हवा हवाई राजनीति और चुनावी मीकरणों के सहारे ममता बनर्जी को हराने की बातें जो कर रहे हैं,उनका कोई जनाधार कहीं नहीं रहा है।
मीडिया को सब मालूम है लेकिन मीडिया के अपने समीकरण हैं,अपने अपने हित अनेक हैं जो साधे जा रहे हैं।
नई दिल्ली में हमारे एक पुराने धर्म निरपेक्ष साथी तो संघ परिवार के नये मुसलमान चेहरा बनते नजर आ रहे हैं।पत्रकारिता से उनने खूब कमा लिया और राजधानी पहुंचकर उनके संपर्क बी खूब सध गये हैं।
कोलकाता से यह करिश्मा एमजे अकबर और राजीव शुक्ला करके रास्ता दिखा चुके हैं।बिहार के चुनावों में उनकी खास भूमिका होनी है।
बिहार में अति दलितों का नया मसीहा पैदा करने का करिश्मा भी इसी मीडिया के होनहार करके दिखा चुके हैं।
हमारे वे साथी मंत्रियों के लेटर पैड लेकर चलने वाले रहे हैं और बहुत संभव है कि जैसे दलितों के सारे रामों का कायाकल्प हो गया ठहरा,वैसे वे भी हनुमान अवतार में बहुत जल्द प्रगट होने वाले हैं और बहुत संभव है कि वे बहुत जल्द केंद्र सरकार में एक और मुसलमान मंत्री बन जायेंगे।
मुसलमानों को ,दलितों कोऔर आदिवासियों को इस तरह मंत्री से संतरी बनाते हुए राजकाज मनुस्मृति का जारी है,लेकिन अब तक भला किसी का हुआ नहीं है और न आगे होने वाला है।पिछड़े फिरबी उतने बुरबक नहीं है और सवर्णों की तरह नेतृत्व में हैं।सत्ता की बागडोर संभाले हुए वे नव ब्राह्मणों में तब्दील हैं और ब्राह्मणों को किनारे किये हुए हैं।पिराने स्वयंसेवको का हाल यह कि खिंसियानी बिल्ली खंभा नोंचे।
सच्चर कमिटी की रपट से मुसलमानों ने बंगाल में वाम शासन का तख्ता पलट कर दिया क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्षता का पाखंड खुला तमाशा है
।दीदी के राजकाज में नमाज अदायगी तो खूब हो रही है और इफ्तार पार्टी की भी धूम है,लेकिन नजरुल इस्लमा जैसे लोग मुसलमानों को खूब बता चुके हैं कि उनके हिस्से में कैसे बाबाजी का ठुल्लू है।
वाम औरकांग्रेस कार्यकर्ता इस हालात से कोई फायदा इसलिए नहीं उठासकते कि इन दलों की जनता के बीच दो कौड़ी की साक नहीं हैं और न उनमें जनता के बीच जाने का जिगरा है।
मुसलमान तो फिर भी समझते हैं और मीडिया के समीकरण के मुताबिक वोटभी नहीं गेरने वाले हैं,यह बार बार वे साबित कर चुके हैं और फतवों का भीउनपर वैसा असर अब होता नही है।लेकिन दलितों का मोहभंग होता नहीं है है और दलित जनता हर हाल में भेड़ धंसान है।फिर बी लोग समझते हैं कि मसलमानों का वोट बैंक दखल संभव है।
महाराष्ट्र में दलितों के सकड़ों किस्म के संगठन,आंदोलन और राजनीतिक अराजनीतिक संगठन का कुल जमा रिजल्ट भीमशक्ति शिवशक्ति एकाकार है तो यूपी में बहन मायावती की बसपा भाजपा के आगे बेबस सी है।
बाकी दलितों के वोट मार कर लेने का भी रिवाज है।यूपी में तो कल तक वोट गेरने का हक ही नहीं था।दलित मार खायेगा,फिर मारने वालों के साथ खड़ा हो जायेगा।मुसलमान और आदिवासी इतने बुरबक भी नहीं है।
बंगाल के दलित तो सत्ता का साथ छोड़ते नहीं हैं कभी वे महज बीस फीसद से कम आबाजदी हैं और आदिवासी महज सात फीसद।दलितों का सबसे बड़ा आंदोलन मतुआ अब हिंदुत्व के शिकंजे में है और उसका एक बड़ा धड़ा अब भी दीदी के साथ है।
वाम दलों और कांगेरस के सात कोई नहीं है और हवा ऐसी बनायी जा रही है कि वाम कांग्रेस गठबंधन से बंगाल में परिवर्तन का रथ उलटा दिया जायेगा।
क्योंकि मीडिया की खबर है कि तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल रॉय अपनी एक अलग पार्टी बनाने की तैयारी में है और इसकी जल्द ही घोषणा करेंगे।
बहरहाल यह दावा उनने नहीं, दावा उनके सहयोगी और पार्टी से बाहर किए गए नेता दीपक घोष ने किया है।मुकुल ने अपने पत्ते कोले ही नहीं है और बाकी सबकुछ कयास है।अंदेरे में तुक्का लगे तो लगे,हो जाये रामवाण,वरना तुक्का।
इस पूर्व केंद्रीय मंत्री ने इसकी पुष्टि करने से मना कर दिया।
यूं दीपक घोष ने बताया कि मसौदा तैयार हो चुका है और हम ईद के बाद चुनाव आयोग के समक्ष नई पार्टी के गठन के लिए दस्तावेज जमा करा देंगे।
वहीँ जब इस बारे में मुकुल रॉय से बात की गई तो उन्होंने घोष के इस बयान से अपना पल्ला झड़ते हुए कहा कि यह उनकी टिप्पणी निजी है और मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं कहना है।
गैरतलब है कि कभी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में अहम् जगह रखने वाले रॉय को सभी पदों से हटा दिया गया है।
वहीँ करोड़ों रुपयों के चिट-फंड घोटाले में CBI द्वारा पूछताछ किए जाने के बाद से उनकी स्थिति बहुत खराब चल रही है।
CBI द्वारा तृणमूल के नेताओं से पूछताछ को पार्टी ने साजिश करार दिया था वहीँ रॉय ने पार्टी के खिलाफ जाकर जांच एजेंसी का सहयोग करने की बात कही थी।
यह भी समझने वाली बात है कि दीदी मोदी साथ साथ हैं।अलग दुकान खोल लेने पर फिर सीबीआई जांच के तेवर क्या होंगे,समझना मुश्किल है।
जेएनयू पलट जड जमीन से कटे माकपा के नये महासचिव भी अपने वफादार पुराने मीडिया कारिंदों के झांसे में आ गये हैं और उनके परस्परविरोधी बयान से बाकी देश में जो होगा सो होगा,बंगाल के वाम कैडर वापसी के लिए कुछ भी नहीं करेंगे ,यह तय है।
मुकुल राय का सांगठनिक करिश्मा ममता बनर्जी की लड़ाकू सड़की जमीन की राजनीति के चलते कामयाब रहा है और भरोसे के चलते दीदी ने उन्हें मौका भी खूब दिया है वरना उनकी राजनीतिक हैसियत क्या थी कि वे भारत के रेल मंत्री बन जाते।
ताजा खबर यह है कि बैरकपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक शीलभद्र व हल्दिया की विधायक सिउली साहा इन दिनों पार्टी से अलग-थलग चल रहे राज्यसभा सदस्य मुकुल रायके करीबी हैं।
गौरतलब है कि मुकुल राय की ओर से शनिवार को निजाम पैलेस में आयोजित की गई इफ्तार पार्टी में दोनों शामिल हुए थे।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मुकुल राय से निकटता व उनके इफ्तार पार्टी में शामिल होने के कारण दोनों को निलंबित किया गया है।
निलंबन के बारे में पूछने पर शीलभद्र व सिउली साहा ने कहा कि उन्हें मीडिया के मार्फत यह खबर मिली है। पार्टी की ओर से उन्हें कोई चिट्ठी नहीं मिली है।
अब मुसलमान इतने बुरबक तो नहीं ही होगे कि मुकुल की अलग पार्टी बन जाने से यकबयक उन्हें ख्वाब आयेगा कि दीदी की हार तय है और वाम काग्रेस गठबंधन की सत्ता होगी।
कारपोरेट मीडिया को बहुत गुमान है,खासकर कुछ बड़बोले संपदकों और प्तरकारों को कि वे जनमत बदल देंगे।कांग्रेस ने जो उनका भरोसा किया तो बेड़ा उनका कितना गर्क हुआ,वह ताजा इतिहास है।
मीडिया और सोशल मीडिया दखल करके शंघ परिवार भी समझने लगा है कि मीडिया और उसके चमचमाते झूठ के सहारे अश्वमेध जारी रहेगा और शत प्रतिशत हिंदुत्व का का अखंड बारत अब अमेकरिका भी होगा।
अमेरिका से जो खबरे छन छनकर आ रही हैं,हम साजा करते रहेंगे कि कैसे बाबी जिंदल का हाल है और कितने आगे पीछ हैं वे।
फिलहाल सारे दावेदारों के मुकाबले हालत उनकी पतली है।
स्वदेश में भी महाजिन्न के चमत्करा और चौसढ आसनों की कवायद से क्या गुलबहार है,फिर वहींच मीडिया एक अकेले ललित मोदी के हवाले से विशुद्धता के अंदरमहल के सारे परदे उटाने लगा है।
हालत यह है कि थूकने पर जरिमाना है और मूत्रदान पर भी जुर्माना है,लेकिन स्वच्छ भारत अभियान बहुत जल्द मूत्रदान अभियान में तब्दील होने वाला है और मंकी बातें सुनकर जनता को मतली होने लगेगी।
राजकाज से लिए सूचनातंत्र भी स्वच्छ और निरपेक्ष होना चाहिए।रंगदार मीडिया दागी चेहरों को भले ही उजला बना दें,भले ही सच को निरंतर छुपाता रहे,न लोकतंत्र उसके भरोसे चल सकता है और न राजकाज।
चप्पुओं के मीडिया साम्राज्य में दलदासों के राजकाज से जैसे जनता को सच मालूम नहीं है,वैसे भी सच सरकार को भी मालूम नहीं हो सकता।झठ के कारोबार में झूठ सच बन जायें तो सचमुच सच का जो खेल होता है,वह तानासाही के दायरे से बहर कभी भी फटनेवाला ज्वालामुखी होता है।
प्रेस की आजादी छीनकर डां.जगन्नाथ मिश्र का क्या हाल हुआ लोग भले भूल गये हैं , लेकिन कालिख पुते सेंसर किये अखबारी पन्नों में इंदिरागांदी का इतिहास भी लिखा है,बहुत बेहतर हो कि महाजिन्न तो पढें ही,बाकी हमारे कामरेड भी देख लें।समाजवादी तो संभल भी न सकेंगे,यूपी में ऐसा बवाल है।
जमीनौ कार्यकर्ता , जमीनौक कार्यकर्ता अर जमींदस्त राजनीति
चबोड़ , चखन्यौ , चचराट ::: भीष्म कुकरेती
उन तो रजनीतिग्य अपण पार्टीक कमियुं बड़ा मा कमि बुल्दन पर अजकाल लालकृष्ण आडवाणी पर यु जौर -च्यार ज्यादा इ लग्युं च। मुलायम सिंग पर बि यु जौर लगदु च। पर ब्याळि उत्तरप्रेदसौ मुख्यमंत्रीन एक बात बोली बल जमीनी कार्यकर्ता और जमीनका कार्यकर्ताओं मा भौत फरक हूंद।
पर दिखे जावो तो राजनीती तो जमीनी कार्यकर्ताओं का ना जमीनका दल्ला कार्यकर्ताओं का जिबळु , जाळ , फंदा मा इ फंसी रौंदी। दुर्योधनन एक इंच जमीन पांडवुं तै नि दे तो कुरुक्षेत्र ह्वे ग्ये। कर्ण बि राजनैतिक कार्यकर्ता बणणो आई पर जमीनी हकीकत या छे कि कर्ण माँ जमीन नि छे तो दुर्योधनन डिस्क्रिमिनेसन पावर प्रयोग करिक कर्ण तै लैंड दे दे। हरियाणा का भूतपूर्व , अभूतपूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा अर रजस्थान का ब्याळो सूबेदार गहलौतन बि डिस्क्रिमिनेसन प्रयोग कर दे अर रॉबर्ट बाड्रा तैं जमीन अलॉट कर दे। दुर्योधन कु डिस्क्रिमिनेसन सही माने ग्ये पर हुड्डा अर गहलौत का डिस्क्रिमिनेसन गलत माने गे। जमीन का मसला राजनीति मा महत्वपूर्ण हूंदी तबि तो द्रोणाचार्य तै राजकीय युद्धगुरु बणन छौ तो द्रुपद की जमीन छीन दे या ह्वे सकद च राजकीय युद्ध गुरु बणनो बाद द्रोणाचार्यन यदुरप्पा पुत्र जन करतूत कर दे हो। जमीन ही तो रजनीति की गूंद हूंदी ।
देहरादून मा जावो जरा ! तो आप तै आधा से जादा नेताऊं परिचय इन पैल्या -
जी यी उत्तराखंड भ्रान्ति दल का नेता छन अर फलैटों दलाली बि करदन।
यदि कॉंग्रेस की सरकार हो तो - जी यी भाजपा का भारीभरकम नेता छन अर इस्टेट एजेंसी का काम बि करदन।
अर भाजपा की सरकार हो तो - जी यी कॉंग्रेस का भारीभरकम नेता छन अर इस्टेट एजेंसी का काम बि करदन।
अब जब कि कॉंग्रेस की सरकार च तो परिचय इन हूंद - यी कॉंग्रेसी छन अर चुनाव की तयारी करणा छन अर फलण लैंड माफिया का सड्डू भाई छन।
गढ़वळि माँ मिसाल च कि बड़ गोर घास खालु अर बछुर थुंतुर चाटल। अब राजनीति मा छूट पार्टीका नेता दल्ला का नाम से भट्याए जांद तो बड़ी पार्टी का नेता भूमाफिया का समधी या साड्डू भाई से ख्याति पांदु।
मुंबई मा यदि ब्वालो कि यी नेता याने सामाजिक कार्यकर्ता छन तो बुलणो जरूरत नि हूंदी कि यी लैंड ग्रैबरों रिस्तेदार छन। लैंड ग्रैबिंग/जमीन हथियाओ अर राजनीति अब एक हैंकाक पर्याय ह्वे गे। झूट बुलणु हूँ त बसुन्धरा राजे बौ अर दुष्यंत भतीजो तै पुछि ल्यावदी निथर चचा जी शरद पवार या भतीजो अजित पंवार नि बताला तो भुजबल का ड्यार पड्यां छापा तो अवश्य ही बताला। हाँ महराष्ट्र का महान कॉंग्रेसी अशोक चौहाण तो अबि बि बुल्दन कि आदर्श सोसाइटी से म्यार क्वी लीण दीण नी च ।
अर तब बि सच नि आणि हो तो क्रिकेटर सुरेश रैना , रविन्द्र जडेजा अर वेस्ट इंडियन ब्रावो त गवाही दे ही द्याला कि इण्डिया मा लैंड ग्रैबिंग अर राजनीती एक हैंकाक पर्याय ह्वे गे । या अलग बात च कि BCCI का मुखिया राजीव शुक्ला , अमित शाह , अरुण जेटली , अनुराह ठाकुर , शरद पवार का बयान तो यो हि ह्वाला कि सब बकबास च। क्रिकेट की जमीनी हकीकत बि या ही च कि क्रिकेट की जमीन बि अब भूमाफिया तयार करदो।
अर तब बि सच नि आणि हो तो जरा डा रमेश निशंक का पॉलिटिकल ग्राफ देखि ल्यावदी बिचारा जमीन का बदौलत ही निशंक से राजनैतिक रंक बणिन । अर जमीन खिसकण से ही तो विजय बहुगुणा की जमीन खिसक ! जमीन राजनीती मा महत्वपूर्ण खेल खेल्दी।
अर एक जमीनी हकीकत बि या च कि जमीनी राजनितिक कार्यकर्ता कबि बि मंत्री नि बण सकदन। मंत्री बणनो बाण तुमतै जमीनक सौदागर अवश्य बणन पोड़ल। झूट बुलणु हो तो जोगेश्वरी , मुंबई का भूतपूर्व जमीनी सौदागर पुरषोत्तम सोलंकी से पुछि ल्यावदी जु अब गुजरात का मंत्री छन।
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halo sir jabhim mana ki app bahot bada karya kar rahe hai parantu kalparso bharat sarkarne yek pusatak pure desme vitarit ki us kitab ke bare me ap chust baithe hai. jisme babasahab ambedkarji ke bare kuchbhi nahi likha hai jo ki adhunik bhartko aur majbuti pradhan karne ko bahut jaruri hai..... us bare me app q nid le rahe ho... |
सरकार आदिवासियों को मार कर आदिवासियों की ज़मीनें बड़े उद्योगपतियों के लिए का काम कर रही है
आदिवासियों की हत्याओं और बलात्कारों का काम करने के लिए इस काम में बदमाश पुलिस अधिकारियों को लगाया गया है .
ज़मीनें छीनने के लिए छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रधान मंत्री मोदी दोनों मिलकर आदिवासियों की हत्याओं , आदिवासी औरतों के बलात्कार करवाने वाले पुलिस अधिकारियों को संरक्षण देने और उन्हें बढ़ावा देने में खुले आम लगे हुए हैं .
एक तरफ सरकार कहती है कि वह लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहती है
लेकिन जब भी कोई आदिवासी लोकतान्त्रिक तरीकों से सरकारी बदमाशियों का पर्दाफाश करता है तो ये बदमाश सरकारें उन आदिवासियों के पीछे पड़ जाती हैं .
आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी ने जब सरकार की बदमाशियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तो पुलिस अधीक्षक ने सोनी सोरी को थाने में ले जाकर बिजली के झटके दिए और उसकी योनी में पत्थर भर दिए .
आदिवासी पत्रकार लिंगा कोडोपी ने जब पुलिस द्वारा आदिवासी औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले उजागर किये तो पुलिस अधिकारियों ने लिंगा को पकड़ा और एसपी के घर में ले जाकर लिंगा के मलद्वार में मिर्च और तेल से सना डंडा घुसेड़ दिया ,जिससे लिंगा की आंतें फट गयीं ,
लिंगा कोडोपी , और सोनी सोरी को पुलिस ने ढाई साल तक जेल में डाल कर रखा .
सरकार जेल में भी सोनी सोरी को नंगा करके वीडियो बनाती रही . सोनी सोरी को पागल घोषित करने की कोशिश करी गयी .
हम सब ने मिलकर किसी तरह सर्वोच्च न्यायालय से सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी को ज़मानत पर रिहा करवाया .
रिहा होने के बाद से ही सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी आदिवासियों पर होने वाले सरकारी ज़ुल्मों के विरुद्ध लोकतान्त्रिक तरीकों से आवाज़ उठा रहे .
सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी प्रेस वार्ता करते हैं रैली करते हैं , पत्र लिखते हैं अदालती करवाई में आदिवासियों की मदद करते हैं .
यह सब न्याय पाने के लोकतान्त्रिक तरीके हैं जिसे प्रत्येक नागरिक को इस्तेमाल करने का अधिकार है
लेकिन सरकार लोकतान्त्रिक तरीकों से ही डरती है
सरकार लोकतान्त्रिक तरीके इस्तेमाल करने वाले आदिवासियों पर हमला करती है उन्हें डराती है परेशान करती है
कल रात को ही सोनी सोरी ने पुलिस की क्रूरता के विरोध में एक प्रेस वार्ता करी
इसके तुरंत बाद पुलिस के बदमाश आई जी कल्लूरी ने सोनी सोरी के भतीजे और आदिवासी पत्रकार लिंगा कोडोपी और सोनी सोरी के पिता को उठवा लिया .
आधी रात तक पुलिस आईजी कल्लूरी और दंतेवाड़ा का एसपी लिंगा कोडोपी को धमकाते रहे, कि तुम और सोनी सोरी सरकार के विरुद्ध रैली और प्रेस वार्ता करना बंद कर दो नहीं तो बहुत नुकसान उठाओगे
कल्लूरी लिंगा को बार बार पिस्तौल दिखा रहा था
लिंगा ने बिना डरे कहा कि आप लोगों ने आदिवासियों की जिंदगी हराम कर दी है हम आदिवासियों के लिए न्याय की आवाज़ ज़रूर उठाएंगे
लिंगा ने खुद को डराने वाले पुलिस अधिकारियों से यह भी कहा कि आप अगर मुझे यहाँ से नहीं जाने देंगे तो बाहर शोर मच जाएगा क्योंकि मैं यहाँ आने की सूचना सब को देकर आया हूँ
आधी रात के बाद एक बजे लिंगा को पुलिस ने धमकियां देकर अवैध हिरासत से रिहा किया
लिंगा कोडोपी सर्वोच्च नयायालय द्वारा दी गयी ज़मानत पर है
पुलिस उसे परेशान नहीं कर सकती
लेकिन आदिवासी इलाके तो अमीरों की लूट का इलाका हैं
वहाँ कोर्ट , लोकतंत्र और कानून नहीं चलते
वहाँ सरकारी क्रूरता का अन्धकार छाया हुआ है
लेकिन हम यह नहीं होने देंगे
दंतेवाड़ा में होने वाले सरकारी गुनाहों की गूँज सारी दुनिया में होगी
दमनकारी सरकार सावधान रहे
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खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं हो पायेगा.
मंत्री सरयू राय चाहते हैं एक रुपये किलो मिले अनाज
रांची : झारखंड के आठ जिलों में एक जुलाई से खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं हो पायेगा. खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने व्यापक जनहित में ऐसा करने का निर्णय लिया है. मंत्री चाहते हैं कि अंत्योदय के अलावा शेष लाभुकों को भी तीन रुपये के बजाय एक रुपये किलो अनाज दिया जाये. पूर्व सरकार ने अक्तूबर-2014 में लाभुकों को तीन रुपये किलो अनाज देने संबंधी अधिसूचना निकाली थी.
अधिनियम को अब 15 जुलाई से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है. सूत्रों के अनुसार, मंत्री की राय है कि अनाज की दर में आयी कमी से सभी लाभुकों को एक रुपये किलो अनाज उपलब्ध कराया जा सकता है. पहले केंद्र से 5.65 रुपये प्रति किलो की दर से अनाज मिलता था. इधर, राज्य सरकार अंत्योदय सहित बीपीएल व अतिरिक्त बीपीएल को भी एक रुपये किलो की दर से अनाज दे रही थी.
वहीं खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बाद केंद्र से अनाज तीन रुपये किलो मिलना है. यानी अनाज की दर प्रति किलो 2.65 रुपये कम होगी. इससे अंत्योदय परिवार को तो एक रुपये किलो अनाज मिलेगा ही, शेष लाभुकों को भी इसी दर पर उपलब्ध कराने पर भी सरकार को वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा.
पहले लाभुक परिवारों की कुल संख्या करीब 35 लाख थी, जो अधिनियम की शर्तो के तहत अब करीब 49 लाख हो गयी है. सूत्रों के अनुसार, मंत्री ने एक रुपये किलो अनाज बांटने पर सहमति दे दी है. अब कैबिनेट से इसके अनुमोदन के बाद यह दर लागू हो जायेगी.
विभाग यह भी चाहता है कि अधिनियम लागू होनेवाले जिलों में कोई लाभुक न छूटे. इसलिए अखबारों में विज्ञापन निकाल कर और कैंप लगा कर लाभुकों से सूची में नाम जुड़वाने का आग्रह किया जायेगा.
सूत्रों के अनुसार, कुछ जिलों में चावल के साथ गेहूं भी देने की मांग की गयी है. विभाग इस पर भी विचार कर रहा है. इस तरह अब सभी व्यवस्था हो जाने पर उक्त आठ जिलों में 15 जुलाई से खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू हो सकता है. वहीं शेष जिलों में इसे अगस्त में लागू होना है.
जंगलों की सुरक्षा में लगी सफेद
गैंग की महिला सदस्य
जंगल की सुरक्षा के लिए माजरी की महिलाएं आगे आई हैं। महिलाओं के डर से माजरी सहित आसपास क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगी है। इसी प्रकार अन्य गांवों के ग्रामीणों को भी वन विभाग का सहयोग करने की समझाइश दी जा रही है। -केएल उइके, रेंजर, दक्षिण वन मंडल मुलताई
जंगल का महत्व समझा तो बदल गई सोच
जंगल की रक्षा का संकल्प लेने वाली सफेद गैंग की अध्यक्ष वच्छला बाई मरकाम और सचिव कौशी बाई ने बताया कि पहले जंगल का महत्व नहीं मालूम था। गांव में शराब बंदी कराने पर जिले से आए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने सम्मान किया। इस दौरान सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने जल, जंगल और जमीन का महत्व बताया। इसके बाद से पेड़ों को काटने की सोच बदली और रक्षा का संकल्प लिया।
आसपास के गांवों में भी बन रही सफेद गैंग
गैंग की सदस्य मनोती बाई उइके ने बताया कि गांव में सफेद गैंग बनाकर शराब बंदी की है। आसपास के गांवों में भी शराब बंदी और जंगलों की सुरक्षा के साथ गांव को हराभरा बनाने के लिए सफेद गैंग बना रहे हैं। तुमड़ीढाना और चकोरा गांव में सफेद गैंग बन चुकी है। गारगुड़, कुंदा, रोहणा, इटावा, रैयतवाड़ी में भी महिलाओं को समझाइश देकर गैंग बनाने की तैयारी चल रही है।
बैतूल िजले के प्रभातपट्टन ब्लॉक से लगी महाराष्ट्र सीमा के पास आदिवासी बहुल गांव है माजरी। अवैध शराब, शराबियों और अवैध धंधों के कारण बदनाम था। एक साल पहले इस गांव की महिलाओं ने सफेद साड़ी पहनी और अपनी गैंग बनाई। शराब बेचने और पीने वालों की पिटाई शुरू की तो पूरे गांव का माहौल ही बदल गया। एक साल में गांव में पूरी तरह से शराब बंद हो गई तो झगड़े भी खत्म हो गए। गांव के युवा और पुरुषों ने काम-धंधों पर जाना शुरू कर दिया। अब इसी गांव की महिलाओं ने पिछले चार महीने से जंगल की कटाई को रोकने का बीड़ा उठाया है। दिन में बकायदा लाठियां लेकर जंगल का भ्रमण करती हैं तो रात को कुल्हाड़ी की आवाज सुनते ही डंडा लेकर पहुंच जाती हैं। गांव के ही गुलाबराव वािडया कहते हैं कि आदिवासी महिलाओं की इस पहल के बाद जंगलों में अवैध कटाई करने वाले भाग खड़े हुए हैं। यही कारण है कि अब गांव के पुरुष भी महिलाओं का साथ दे रहे हैं। वन विभाग भी मानता है कि महिलाओं की इस पहल के बाद माजरी सहित आसपास के क्षेत्र में अवैध कटाई पर रोक लगी है। गांव की महिलाएं अब आसपास के गांवों में पौधारोपण करवा रही हैं।
PANINI ANAND@paninianand|30 June 2015
At a time when very few people in the BJP and the larger Sangh Parivar are willing to speak out, former RSS ideologue KN Govindacharya doesn't pull any punches.
He has many critical positions against the Narendra Modi government - especially on land, environment, labour reforms, GM crops, crony capitalism, the Make in India initiative and obsession with first world economies.
Many of the core issues he would like Prime Minister Modi to pursue are themselves contentious and debatable. However, his views are a window into what many in the RSS feel but do not voice.
In an interview, Govindacharya discusses various aspects of the Modi government, offering some criticism, a little praise and a lot of advice.
PA: Has the organisation been overshadowed by personalities in the BJP?
PA: Isn't the BJP president known mainly because of the Prime Minister?
PA: You are saying that BJP has gone back on its core issues. What about the new slogans that have been coined?
PA: What about foreign policy? Surely that has been an area of success for the Modi government?
PA: The Sangh Parivar has always portrayed America as a 'demon', be it in the context of foreign goods or genetically modified seeds. How do you see the government's economic policies in this respect?
The government must encourage an environment of dialogue in the country. Monologues aren't going to work
PA: The government has a huge majority so what is the compulsion?
PA: What is the cause of disquiet among several MPs, ministers, the Margadarshak Mandal and Sangh-affiliated bodies like Bharatiya Mazdoor Sangh?
PA: Several questions have been raised over the choice of central ministers. The government is neither following the party line, nor the agenda of the Sangh. What is the reason for this?
PA: But what has tied the hands of the RSS?
PA: There is no dearth of leaders in the BJP who make communal statements. Doesn't it reflect the hardline Hindutva nature of the party?
PA: How can Modi overcome this crisis?
PA: Is any scope of ideology left in the BJP, especially when they have Ram Vilas Paswan as well as PDP as their allies and nothing stops them from making more political compromises?
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए...
WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC...